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एक सुरक्षित भविष्य—इसे आप कैसे पा सकते हैं

एक सुरक्षित भविष्य—इसे आप कैसे पा सकते हैं

एक सुरक्षित भविष्य—इसे आप कैसे पा सकते हैं

१. किस प्रकार की सुरक्षा आप अपने लिये और अपने प्रिय जनों के लिये चाहेंगे?

जीवन के हर क्षेत्र के लोगों में सुरक्षा पाने की वास्तविक इच्छा है। निश्‍चय ही वही आप अपने और अपने प्रिय जनों के लिये चाहेंगे। अधिकतर लोग किसी अनिश्‍चित भविष्य काल में आनेवाली अच्छी स्थितियों की एक प्रतिज्ञा से और भी ज़्यादा कुछ चाहते हैं। जीवन की बहुत सी आग्रही समस्याएँ हैं जो ठीक अभी हमारा सामना करती हैं। हमें ऐसी चीज़ की ज़रूरत है जो अभी वास्तविक सुरक्षा का प्रबन्ध करती है और जो आनेवाले वर्षों में भी ऐसा ही करती रहेगी। क्या इस प्रकार की सुरक्षा सम्भव है?

२. (क) बाइबल यशायाह ३२:१७, १८ में सुरक्षा के बारे में क्या कहती है? (ख) क्या इस प्रकार की स्थितियाँ आप को आकर्षित करती हैं?

पृथ्वी के सभी भागों में रहनेवाले हर जाति के लोग हैं, जो विश्‍वास करते हैं कि यह सम्भव है। जिस सुरक्षा में उनकी दिलचस्पी है, उसका वर्णन बहुत दिनों पहले परमेश्‍वर के उत्प्रेरित भविष्यवक्‍ता द्वारा किया गया था, जिसने लिखा: “धर्म [सच्ची धार्मिकता, NW] का फल शान्ति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्‍चिन्त रहना होगा। मेरे लोग शान्ति के स्थानों में निश्‍चिन्त रहेंगे, और विश्राम के स्थानों में सुख से रहेंगे।” (यशायाह ३२:१७, १८) पृथ्वी के सभी भागों में सैकड़ों हज़ारों लोग आज संसार की वर्तमान अशान्ति के बावजूद भी शान्तिपूर्ण सुरक्षा का आनन्द उठाना शुरू कर चुके हैं, और उनके पास कारण है कि वे और भी उज्ज्वल भविष्य की आस देखें। आप भी उनके साथ इस प्रकार के लाभों के भागीदार हो सकते हैं।

३. क्या कोई और चीज़ है जिसकी बाइबल प्रतिज्ञा करती है जो मानवजाति के लिये सुरक्षा में परिणित होगी? (प्रकाशितवाक्य २१:४, ५)

ये व्यक्‍ति उस समय की आशा करते हैं, जो अब बहुत निकट है, जब ‘कोई लोगों को न डराएगा’—ऐसा समय जब अपराध का अन्त हो जाएगा, एक व्यक्‍ति की सम्पत्ति और स्वयं व्यक्‍ति पर ख़तरे का अन्त हो जाएगा। (मीका ४:४) उनके पास विश्‍वास करने का दृढ़ कारण है कि बहुत से लोग जो अभी जी रहे हैं वे उस दिन को देखेंगे जब भूख न रहेगी, क्योंकि “देश में . . . बहुत सा अन्‍न होगा।” (भजन ७२:१६) और वे ख़ुद उस प्रतिज्ञा की पूर्ति को देखने की आस देखते हैं कि ‘परमेश्‍वर उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।’ (प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) किस रीति से वे इतने निश्‍चित हो सकते हैं कि इस प्रकार की चीज़ें वास्तव में घटित होंगी? क्योंकि ये प्रतिज्ञाएँ परमेश्‍वर के अपने वचन, बाइबल में पायी जाती हैं।

४. हालाँकि लिखने के लिये मनुष्यों को प्रयोग किया गया, क्यों बाइबल में लिखी गयी बातें वास्तव में परमेश्‍वर की तरफ़ से हैं? (२ तीमुथियुस ३:१६, १७)

बाइबल जो कुछ हमारे भविष्य के बारे में कहती है वह इतिहास के झुकावों का अर्थ बताने के मानव प्रयत्नों का परिणाम नहीं है। लिखने के लिये मनुष्यों का प्रयोग किया गया, परन्तु उन का मन परमेश्‍वर की आत्मा के द्वारा संचालित किया गया था। इस रीति से यह संदेश परमेश्‍वर की तरफ़ से है। इसके विषय-वस्तु के स्रोत के बारे में, बाइबल स्वयं कहती है: “पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती। क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्‍त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे।” (२ पतरस १:२०, २१) आज हमारे लिये यह समझना कठिन नहीं होना चाहिए कि किस तरह परमेश्‍वर इसे कर सकता था। मनुष्यों ने भी अंतरिक्ष में यात्रा करते समय वापस पृथ्वी पर संदेश भेजे हैं, और ये अद्‌भुत सफ़ाई से ग्रहण किये गये। क्या स्वर्ग में परमेश्‍वर, एक बहुत ही उच्च तरीक़े से, विश्‍वासी मनुष्यों को संदेश नहीं भेज सकता था जो उसके साथ अच्छा सम्बन्ध रखते थे? निश्‍चय ही! भले कारणों के साथ, तब, किस रीति से आप एक सुरक्षित भविष्य पा सकते हैं इसके बारे में बाइबल क्या कहती है उसे जाँचने का हम आपको निमंत्रण देते हैं।

कहाँ पर वास्तविक सहायता पायी जा सकती है

५. बाइबल हमें मुद्रा और दूसरी भौतिक सम्पत्तियों के लिये कौन सा वास्तविक दृष्टिकोण रखने का प्रोत्साहन देती है? (सभोपदेशक ७:१२)

बाइबल हमें जीवन को वास्तविक रूप से देखने में मदद करती है। हमारे स्थायी कल्याण को दृष्टि में रखते हुए, यह हमें प्रेरणा देती है कि जो हमेशा स्थिर रहेगा उस पर हम विश्‍वास करें। आज लाखों लोग भौतिक सम्पत्ति पर अपना भरोसा रखते हैं। पैसे और दूसरी भौतिक सम्पत्ति के मूल्य को स्वीकार करते हुए भी बाइबल प्रकट करती है कि ये सब जीवन में बड़ी चीज़ें नहीं हैं। यह निर्विवाद सत्य की बात कहती है कि “किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता।” (लूका १२:१५) सम्पत्ति अपना मूल्य खो सकती है। वे चोरी और नाश हो सकती हैं। साथ ही, स्वामी का जीवन ऐसे व्यक्‍ति द्वारा ख़तरे में पड़ सकता है जो उसका धन चुराने की कोशिश करता है। वास्तविक सुरक्षा कहीं और होनी चाहिए। परन्तु कहाँ?

६. क्यों यह तर्क-संगत नहीं कि हम भविष्य के प्रति अपनी समस्त आशाओं को जो मानव नेता प्रतिज्ञा करते हैं, पर निर्भर करें?

कुछ ऐसे लोग हैं जो अपनी सभी आशाओं को जो कुछ मानव नेता प्रतिज्ञा करते हैं उस पर दृढ़ करते हैं। परन्तु क्या आपको ऐसा करना चाहिए? बिना इस प्रश्‍न को उठाते हुए भी कि व्यक्‍तिगत नेता ईमानदार और योग्य हैं या नहीं, बाइबल इन बातों की गहराई तक जाती है यह याद दिलाते हुए कि वे सब मर जाते हैं। बुद्धिमानी से यह हमें सावधान करती है: “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्‍ति नहीं। उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।” (भजन १४६:३, ४) अतः, अधिकतम, मानव नेता मानवजाति के एक भाग के मामलों पर केवल कुछ वर्षों तक प्रभाव डाल सकते हैं। जहाँ तक दीर्घकालीन सुरक्षा की बात आती है, वे लोग आपको यह सुरक्षा नहीं दे सकते हैं, जैसे कि वे ख़ुद को नहीं दे सकते हैं।

७. (क) कौन वास्तव में हमारे लिये दीर्घकालीन सुरक्षा का प्रबन्ध कर सकता है, और क्यों? (प्रेरितों १७:२८) (ख) हमें किस चीज़ की ज़रूरत है यदि हमें उस सुरक्षा का आनन्द उठाना है?

परन्तु एक जन है जो यह दे सकता है। वह आकाश और पृथ्वी का सृष्टिकर्ता है। इस पृथ्वी के बनाये जाने से पहले, वह अस्तित्व में था; और इस बीसवीं शताब्दी के बीतने के बहुत दिनों बाद भी, वह हमेशा बना रहेगा। जैसा भजन ९०:२ उससे कहता है: “वरन अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही ईश्‍वर है।” वह जीवन का स्रोत है और वही है जिसने पृथ्वी को शक्‍ति दी कि जीवित वस्तुओं का पोषण करे। इस रीति से, हमारा वर्तमान कल्याण और भविष्य की प्रत्याशाएँ उसके ऊपर निर्भर करती हैं। इसलिये यदि हमें किसी भी प्रकार की वास्तविक सुरक्षा का आनन्द उठाना है, हमें उसके साथ एक अच्छा सम्बन्ध रखने की आवश्‍यकता है।

८. (क) किस प्रकार के व्यक्‍तियों को परमेश्‍वर खोज रहा है? (ख) अतः, व्यक्‍तिगत रूप से हमें क्या करने के लिये इच्छुक होना चाहिए ताकि उस माँग को पूरा कर सकें? (मत्ती ७:२१-२३)

क्या इसका यह अर्थ हुआ कि सिर्फ़ हमारे जीवन में किसी एक धर्म का होना काफ़ी है? इस प्रकार का अनुमान लगाना ग़लत होगा। जिन लोगों के साथ परमेश्‍वर एक अनुकूल सम्बन्ध रखता है वे एक निश्‍चित प्रकार के लोग हैं। किस प्रकार के? बाइबल उनके बारे में ऐसा वर्णन करती है: “सच्चे भक्‍त पिता का भजन [उपासना, NW] आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही भजन [उपासना, NW] करनेवालों को ढूंढता है। परमेश्‍वर आत्मा है, और अवश्‍य है कि उसके भजन [उपासना, NW] करनेवाले आत्मा और सच्चाई से भजन [उपासना, NW] करें।” (यूहन्‍ना ४:२३, २४) क्या आप परमेश्‍वर की उपासना “सच्चाई से” करनेवाले हैं? क्या आप ने परमेश्‍वर के वचन की सहायता से अपने विश्‍वासों की जाँच की है, यह देखने के लिये कि वे पूर्ण रूप से “सत्यवादी ईश्‍वर” के लिखित वचन के अनुसार हैं कि नहीं? (भजन ३१:५) क्या आप ऐसा करने के लिये इच्छुक हैं? जो शिक्षा एवं प्रथा सच्चाई के अनुकूल नहीं हैं, वे किसी को भी स्थायी लाभ नहीं पहुँचा सकती हैं। वे असली बातों की उपेक्षा करने का कारण बनती हैं; वे ग़लत दिशा में लोगों की अगुवाई करती हैं। एक व्यक्‍ति सच्चाई को जानने तथा सच्चाई की समता में जीवन में सुधार लाने के द्वारा ही वास्तविक सुरक्षा के साथ सन्तोष प्राप्त कर सकता है। एक अति-महत्त्वपूर्ण सच्चाई परमेश्‍वर की पहचान से सम्बद्ध है।

९, १०. (क) परमेश्‍वर का व्यक्‍तिगत नाम क्या है? (ख) अपने किसी मित्र को प्रमाणित करने के लिये कि परमेश्‍वर का नाम क्या है, आप कौन से शास्त्रपद का प्रयोग करेंगे? (ग) कुछ अनुवादों ने किस रीति से उस नाम को छुपाने का प्रयत्न किया है? (भजन ११०:१, AV)

क्या आप उसके व्यक्‍तिगत नाम को जानते हैं? यह “परमेश्‍वर” या “प्रभु” नहीं है। ये पदवी हैं, जैसे कि “श्रीमान्‌” और “राजा” पदवी हैं। किन्तु, बाइबल के ऑथोराइज़्ड्‌ वर्शन (सा.यु. १६११ में अनुवादित) के अनुसार, भजन ८३:१८ कहता है: “केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” (तिरछे टाइप हमारे) यह ऐसा एक नाम नहीं जिसे मनुष्यों ने परमेश्‍वर को दिया है। जैसा कि बाइबल के रिवाइज़्ड्‌ वर्शन (अमेरिकन स्टैंडर्ड एडिशन्‌, सा.यु. १९०१ में प्रकाशित) में दिखाया गया है, परमेश्‍वर अपने बारे में कहता है: “मैं यहोवा हूं, मेरा नाम यही है।” (यशायाह ४२:८) मूल इब्रानी शास्त्र के कुछ अनुवाद इस नाम का अनुवाद “याहवे” करते हैं। दूसरे केवल अंग्रेजी में शब्द “LORD” का प्रयोग करते हैं, परन्तु इन ख़ास उदाहरणों में, जैसा यहाँ दिखाया गया है, वे अकसर इसे ऐसा ही छापते हैं, एक बड़े अक्षर “L” के साथ छोटे रूप में बड़े अक्षर होते हैं, इस रीति से यह बताते हुए कि उनके अनुवादों में जो वे बता रहे हैं मूल भाषा के पाठ में और भी ज़्यादा कुछ है।

१० एक उदाहरण के लिये, क्यों नहीं आप अपने बाइबल में भजन ८:९ देखें। कॉमन बाइबल के अनुसार (कॅथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट धर्मविज्ञानियों के समर्थन से १९७३ में प्रकाशित), यह कहता है: “हे प्रभु [अंग्रेजी में ‘LORD’], हमारे प्रभु [अंग्रेजी में ‘Lord’], तेरा नाम सारी पृथ्वी पर प्रतापमय है!” इस पद में शब्द “प्रभु” [‘Lord’] के विभिन्‍न रूपों पर ध्यान दें। पहली बार, बड़े अक्षर “L” के बाद छोटे रूप के बड़े अक्षर प्रयोग किये गये हैं; पर दूसरी बार वही शब्द आता है और यह पहले बड़े अक्षर और बाक़ी छोटे अक्षरों में लिखा हुआ है। (कॅथोलिक न्यू अमेरिकन बाइबल में यह भजन ८:१० में पाया जाता है। *) किन्तु दूसरे अनुवाद, किसी भी चीज़ को छुपाने की कोशिश न करते हुए, इस पद का अनुवाद करते हैं: “हे यहोवा, हे हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है!”

११. (क) क्या यह वास्तव में ज़रूरी है कि परमेश्‍वर का नाम जानें और उसका प्रयोग करें? (प्रेरितों १५:१४) (ख) यदि हम यहोवा से प्रेम करते हैं, किस रीति से हमें व्यक्‍तिगत तौर से उस नाम का प्रयोग करना चाहिए? (यशायाह ४३:१०)

११ कुछ अनुवादक सोच सकते हैं कि वे परमेश्‍वर के लिये व्यक्‍तिगत नाम का प्रयोग न करने के द्वारा बाइबल को बहुत लोगों के लिये स्वीकार्य बना रहे हैं, किन्तु क्या वे अनुवादकों के रूप में ईमानदार हैं जबकि वे उस नाम को छुपाने की कोशिश करते हैं जो मूलभाषा के पाठ में किसी भी दूसरे नाम से ज़्यादा बार प्रकट होता है? सच्चा परमेश्‍वर चाहता है कि लोग उसका नाम जानें। उसने यह स्पष्ट किया जब उसने अपने सेवक मूसा को प्राचीन मिस्र के शासक को सूचना देने के लिये कहा कि क्यों परमेश्‍वर ने उस समय तक उसे बचाकर रखा था। यह किस लिये था? “कि तुझे अपना सामर्थ्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूं,” परमेश्‍वर ने कहा। (निर्गमन ९:१६) परमेश्‍वर के नाम का प्रयोग करना, और आदर के साथ करना हमारे लिये महत्त्वपूर्ण है। और यदि हम सच्चाई से प्रेम करते हैं, तो हम अपनी पहचान एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा के उपासकों के रूप में करवाने से हिचकेंगे नहीं।

१२. उपासना में मूर्तियों के प्रयोग को परमेश्‍वर किस नज़र से देखता है? (भजन ११५:३-८; व्यवस्थाविवरण ७:२५)

१२ किन्तु हमें सावधान रहना होगा कि परमेश्‍वर का नाम उस चीज़ के साथ न जोड़ें जिसे वह स्वीकार नहीं करता। याद रखें, “परमेश्‍वर आत्मा है, और अवश्‍य है कि उसके भजन [उपासना, NW] करनेवाले आत्मा और सच्चाई से भजन [उपासना, NW] करें।” (यूहन्‍ना ४:२४) यदि हम इस सत्य का मूल्यांकन करते हैं कि “परमेश्‍वर आत्मा है,” और यदि हम उसकी उपासना “आत्मा” से करते हैं, अर्थात्‌, आत्मिक रीति से, तो हम भौतिक वस्तुओं को परमेश्‍वर का प्रतिनिधित्व करने के लिये प्रयोग नहीं करेंगे। यूहन्‍ना १:१८ के अनुसार, ‘परमेश्‍वर को किसी मनुष्य ने कभी नहीं देखा,’ इसलिये उसका कोई चित्र या नक्काशी की हुई प्रतिमा बनाना अन्होना है। एक मूर्ति जो न देख, न सुन, न बोल सकती है, जो अपने सामने उपासना करनेवालों की मदद करने के लिये एक अंगुली भी नहीं उठा सकती है, जीवते परमेश्‍वर का कभी भी उचित रीति से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती। अवश्‍य, मूर्तियाँ स्वयं परमेश्‍वर का प्रतिनिधित्व करने के लिये नहीं हैं, परन्तु प्रश्‍न यह है, क्या वे धार्मिक भक्‍ति की चीज़े हैं? जब परमेश्‍वर ने दस आज्ञाएँ दीं, उसने विशिष्ट रूप से कहा कि कोई भी मूर्ति इस प्रकार के उद्देश्‍य के लिये बनायी न जाये। उसने आज्ञा दी: “तू अपने लिये कोई नक्काशी की हुई मूरत न बनाना, न किसी की समानता बनाना . . . तू उनको दण्डवत्‌ न करना, और न सेवा करना।” (निर्गमन २०:४,५, कॅथोलिक जरूसलेम बाइबल) इसके बजाय कि हम उन वस्तुओं का प्रयोग करें जिन्हें यहोवा स्वीकार नहीं करता, सच्चाई के प्रति प्रेम हमें परमेश्‍वर को जैसा वह वास्तव में है वैसा ही उसे जानने के लिए मदद करेगा।

१३. (क) यहोवा किस प्रकार का परमेश्‍वर है? (ख) उसके कौन से गुण आपको ख़ास तौर से आकर्षित करते हैं?

१३ उसके गुण ऐसे हैं कि वे धार्मिकता से प्रेम करनेवाले हर व्यक्‍ति के दृढ़ विश्‍वास को जीत लेते हैं। इन गुणों में से कुछ, जैसा कि सर्वशक्‍तिमान सामर्थ्य और बुद्धि जो किसी भी मनुष्य से अति बढ़कर है, उसकी भौतिक सृष्टि के कामों से प्रकट होते हैं। और क्या आप इससे सहमत नहीं होंगे कि सूर्यास्त की सुन्दरता, चिड़ियों के मधुर संगीत, फूलों की सुगन्ध, और बहुत से स्वाद जिसका आप आनन्द उठाते हैं मानवजाति के प्रति परमेश्‍वर के प्रेम को प्रतिबिम्बित करते हैं? परन्तु बाइबल इससे भी बढ़कर हमें परमेश्‍वर के बारे में बताती है। यह प्रकट करती है कि यहोवा उसी बात का समर्थन करता है जो सही है, परन्तु वह करुणाशील और विचारवान भी है। यह इस रीति से उसका वर्णन करती है: “यहोवा, यहोवा, ईश्‍वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, हज़ारों पीढ़ियों तक निरन्तर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा।” (निर्गमन ३४:६, ७) और बाइबल प्राचीन इस्राएल की जाति के साथ कई सदियों तक परमेश्‍वर के व्यवहार को बताती है, व्यवहार जो स्पष्टता से इन गुणों को प्रकट करते हैं। वही लिखित अभिलेख यह भी प्रमाणित करता है कि “परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों १०:३४, ३५) वह चाहता है कि सभी प्रकार के लोग उसके साथ एक अच्छे सम्बन्ध का आनन्द उठाएँ, और उसने दयापूर्वक प्रबन्ध किया है जिसके कारण यह सम्भव हो।

१४. किस रीति से एक व्यक्‍ति का जीवन प्रभावित होता है जब वह वास्तव में यहोवा पर अपना भरोसा रखता है? (नीतिवचन ३:५, ६)

१४ जैसे ही एक व्यक्‍ति सच्चे परमेश्‍वर के सराहने योग्य गुणों का मूल्यांकन विकसित करने लगता है, क्या होता है? परमेश्‍वर का “नाम” उसके लिए अधिक अर्थपूर्ण हो जाता है। वह अपना भरोसा यहोवा पर रखता है, परमेश्‍वर के तरीक़े से काम करता है, और परिणामस्वरूप, वह सुरक्षा का अनुभव करता है। यह ऐसा है जैसा कि नीतिवचन १८:१० कहता है: “यहोवा का नाम दृढ़ कोट है; धर्मी उस में भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है।”

१५. (क) क्यों हमारा भविष्य यहोवा पर निर्भर करता है? (ख) कौन सा गम्भीर निर्णय प्रत्येक व्यक्‍ति के सामने है? (व्यवस्थाविवरण ३०:१९, २०)

१५ उस सुरक्षा में एक व्यक्‍ति की भविष्य की प्रत्याशाएँ भी शामिल हैं। वास्तव में, यहोवा के ऊपर सारी मानवजाति का भविष्य निर्भर करता है। क्यों? क्योंकि यह पृथ्वी उसकी सृष्टि है और सभी जो इस पर जीते हैं जीवन को क़ायम रखनेवाले उसके प्रबन्धों पर निर्भर हैं। बाइबल में उसने अपने लोगों के लिये सुरक्षित, आनन्दमय जीवन की स्थितियों का प्रबन्ध करने के अपने उद्देश्‍य को बताया है। स्वर्ग या पृथ्वी की कोई भी चीज़ सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर को अपने उद्देश्‍य को पूरा करने से रोक नहीं सकती। किन्तु, वह उद्देश्‍य हमें स्वतंत्र इच्छा से वंचित नहीं करता है। यह हम में से हरेक की इच्छा जाने बिना हमारी नियति स्थिर नहीं करता है। परन्तु यह हमारे सामने एक गम्भीर निर्णय ज़रूर प्रस्तुत करता है: क्या यहोवा ने जो कुछ हमारे लिये किया, और जो अभी भविष्य में करेगा उसके प्रति मूल्यांकन हमें अपने जीवन को उसकी इच्छा की समता में लाने के लिये प्रेरित करता है? एक व्यक्‍ति का विश्‍वास न करना इस तथ्य को बदल नहीं सकता कि यहोवा सच्चा परमेश्‍वर है, न ही यह उसके उद्देश्‍य में बदलाहट लाएगा। परन्तु यह निश्‍चित कर सकता है कि एक व्यक्‍ति व्यक्‍तिगत रूप से उसके प्रेमपूर्ण उद्देश्‍य से लाभ प्राप्त करता है या नहीं। वास्तव में चुनाव जीवन और मृत्यु के बीच है।

क्यों असुरक्षा मानव जीवन को बिगाड़ती है

१६. कौन सी कुछ चीज़ें हैं जो आज जीवन को असुरक्षित बनाती हैं?

१६ इस बात का मूल्यांकन करने के लिये कि किस रीति से यहोवा का उद्देश्‍य सच्ची सुरक्षा में परिणित होता है, हम लाभ के साथ उन बातों में से कुछेक को ध्यान में ला सकते हैं जो आज जीवन को असुरक्षित बनाती हैं। इनमें प्रेम की कमी, क़ानून की उपेक्षा, दूसरों की सम्पत्ति का आदर न करना, और अपना काम बनाने के लिये झूठ और हिंसा का सहारा लेना शामिल है। इसके साथ ही साथ, हम बीमारी और इस सत्य को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं कि किसी न किसी समय लोग मरेंगे ही। अपने व्यक्‍तिगत अनुभव और प्रेक्षण दोनों के द्वारा, हम जानते हैं कि किस रीति से ये बातें मानवजीवन को प्रभावित करती हैं। परन्तु यह सब कुछ कैसे हुआ? इसका उत्तर बाइबल में पाया जाता है।

१७. शुरू में, क्या कारण था कि आदम और हव्वा ने सुरक्षा का आनन्द उठाया? (उत्पत्ति १:३१; २:८, १५)

१७ बाइबल की सबसे पहली पुस्तक हमें सूचना देती है कि जब यहोवा ने हमारे पहले मानव माता-पिता, आदम और हव्वा की सृष्टि की, उसका काम बहुत अच्छा था। उनकी बनावट में कोई भी कमी नहीं थी जो बीमारी में परिणित होती; उनके सामने हमेशा तक जीवित रहने की प्रत्याशा थी। प्रेममय रीति से, परमेश्‍वर ने उन्हें बगीचा रूपी पार्क, अदन में एक परादीस को उनके घर के तौर पर दिया। उदारता से उसने उनके बगीचा रूपी घर में बीज पैदा करनेवाले भरपूर छोटे छोटे पेड़-पौधों को और फल पैदा करनेवाले पेड़ों को उन्हें जीवित रखने के लिये शामिल किया। उसने उनके जीवन को यह निर्देश देते हुए उद्देश्‍य से भर दिया कि वे मछलियों, चिड़ियों और सभी जानवरों पर अधिकार करें, और पृथ्वी पर खेती करें और इसे अपनी सन्तानों से भरें जब तक कि पूरी पृथ्वी उस परादीस के समान नहीं बन जाती जिसमें उसने उन्हें रखा था। उस प्रकार के वातावरण में सुरक्षा का अनुभव करना स्वाभाविक था। परन्तु यदि उन्हें हमेशा उस सुरक्षा का आनन्द उठाना था तो उन्हें कुछ करने की ज़रूरत थी।

१८. (क) आदम और हव्वा से किस चीज़ की माँग की गयी थी यदि उन्हें लगातार सुरक्षा में रहना था? (ख) किस रीति से यहोवा ने उनकी आज्ञाकारिता की परीक्षा ली, और क्यों यह एक महत्त्वपूर्ण बात थी? (लूका १६:१०)

१८ उन्हें परमेश्‍वर के साथ सम्बन्ध में अपनी स्थिति को स्वीकार करने की ज़रूरत थी। पृथ्वी और इसमें की सभी चीजें उनके सृष्टिकर्ता की थीं, अतः उसे यह निर्णय करने का अधिकार था कि किस रीति से इनका प्रयोग किया जाए। स्वयं जीवन का दान एक शर्त पर निर्भर था; अर्थात्‌ आदम और हव्वा इसका आनन्द उठाते रहेंगे इस शर्त पर कि वे अपने स्वर्गीय पिता के प्रति प्रेमपूर्ण आज्ञाकारिता की माँग को पूरा करते रहें। इस माँग की गम्भीरता पर ज़ोर देने के लिये, यहोवा ने आदमी को यह आज्ञा दी: “तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्‍य मर जाएगा।” (उत्पत्ति २:१६, १७) आज्ञाकारिता यह प्रदर्शित करती कि मनुष्य परमेश्‍वर को एक शासक के रूप में स्वीकार करता था; आज्ञा न मानने का अर्थ परमेश्‍वर की सिद्ध इच्छा को त्यागना था। इस क़ानून में किसी भी प्रकार की कठिनाई अन्तर्ग्रस्त नहीं थी; इसने मनुष्य को कोई भी ऐसी चीज़ जिसकी उसे आवश्‍यकता थी, से वंचित नहीं किया, परन्तु इसने एक साधारण, लेकिन प्रभावपूर्ण, परीक्षा सामने रखी, ऐसी परीक्षा जो जिस परिस्थिति में वह जीवित था उसके अनुसार उचित थी। इसने आदम और उसकी पत्नी हव्वा को मौका दिया कि अपने स्वर्गीय पिता के प्रति प्रेम प्रकट करें।

१९. (क) कौन सी चीज़ें जो असुरक्षा का कारण होती हैं, सबसे पहले आदम और हव्वा के पाप के सम्बन्ध में और फिर उसके बाद प्रकट होती रहीं? (ख) जैसा कि रोमियों ५:१२ में वर्णन किया गया है, किस रीति से आदम की सभी सन्तान प्रभावित हुईं?

१९उत्पत्ति के तीसरे अध्याय में बाइबल का अभिलेख प्रकट करता है कि वे असफल हुए। उन्होंने जानबूझकर उस पेड़ से खाया जिसे परमेश्‍वर ने “सीमा से बाहर” स्थित किया था। वह सुरक्षा जिसका आनन्द पहले मानव जोड़े को प्राप्त था, नष्ट हो गयी। वे चीज़ें जो आज असुरक्षा का कारण बनती हैं उस समय पहली बार अस्तित्व में आयीं। उसमें परमेश्‍वर के प्रति प्रेम की कमी, उसके क़ानून की उपेक्षा, और उसकी सम्पत्ति का निरादर करना शामिल था। परमेश्‍वर के द्वारा अस्वीकृत होने के कारण, आदम और हव्वा को अदन से बाहर निकाल दिया गया। परादीस के बाहर, उनकी बहुत सी सन्तानें, जिनमें उनका अपना पुत्र कैन भी था, और भी अपमानजनक हो गयीं जैसे जैसे वे हिंसा की ओर बढ़ती गयीं। जिन लोगों ने जानबूझकर परमेश्‍वर के क़ानून की उपेक्षा नहीं की, उन्होंने भी अपने शरीर में पाप के उत्तराधिकार के प्रभावों को महसूस किया। जैसे कि रोमियों ५:१२ व्याख्या करता है: “एक मनुष्य [आदम] के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।”

२०. (क) अदन में विद्रोह किसके द्वारा आरम्भ हुआ? (प्रकाशितवाक्य १२:९) (ख) वह कैसे शैतान, अर्थात्‌ इब्‌लीस बना? (याकूब १:१४, १५)

२० किन्तु यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पहला विद्रोह आदम या उसकी पत्नी के द्वारा शुरू नहीं हुआ। बाइबल इस प्रकार ज़िक्र करती है कि हव्वा से एक “सर्प” ने बात की, जो उसे छल के द्वारा परमेश्‍वर के क़ानून को तोड़ने का प्रलोभन देता है। अवश्‍य, एक वास्तविक साँप बात नहीं कर सकता; और बाइबल बाद में उस सर्प के पीछे की शक्‍ति को एक अदृश्‍य आत्मिक व्यक्‍ति बताती है। यह आत्मिक व्यक्‍ति दुष्ट होने के लिये सृजा नहीं गया था। परन्तु, जैसे कि मानव के विषय में सच था, परमेश्‍वर के इस आत्मिक पुत्र के पास भी स्वतंत्र इच्छा थी, अर्थात्‌ अपनी आन्तरिक शक्‍ति को किस रीति से प्रयोग करना है की योग्यता। ग़लत इच्छाओं पर मन लगाने के द्वारा, उसने घमण्ड को बढ़ाया; वह चाहता था कि दूसरे प्राणी एक ईश्‍वर के रूप में उसकी उपासना करें। अपने उद्देश्‍य को प्राप्त करने के लिये उसने जो रास्ता अपनाया, उसके द्वारा उसने स्वयं को परमेश्‍वर का एक विरोधी, अर्थात्‌ एक शैतान, और एक झूठा कलंक लगाने वाला, अर्थात्‌ एक इब्‌लीस बनाया।

२१. (क) हव्वा से बात करते समय, शैतान ने कौन से दावे किये? (ख) क्यों शैतान ने जो कहा उसके अनुसार काम करने के द्वारा हव्वा अपनी स्थिति और अच्छी न कर सकी?

२१ वह हव्वा के पास आया, पहले तो प्रश्‍न पूछते हुए और फिर हव्वा को यह कहते हुए सीधे परमेश्‍वर का प्रतिवाद किया: “तुम निश्‍चय न मरोगे [यदि तुम वर्जित वृक्ष से खाओ], वरन परमेश्‍वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो जाओगे।” (उत्पत्ति ३:१-५) स्त्री को लगा कि यह उन सब चीज़ों से बेहतर है जो उसके पास थीं। परन्तु इस पर विश्‍वास करने के द्वारा, क्या उसने वास्तव में और महान सुरक्षा प्राप्त की? क्या उसके पति ने उसके साथ अपराध में शामिल होकर अधिक उन्‍नति की? नहीं; यह सब एक झूठ था। यह निर्णयात्मक रीति से प्रमाणित हुआ जब वे मर गये, और आज तक मनुष्य मरते जाते हैं।

२२. (क) अदन में कौन से परमावश्‍यक वाद-विषय खड़े किये गये, और किस रीति से ये सारी सृष्टि की सुरक्षा को प्रभावित करते हैं? (ख) अय्यूब के दिनों में और कौन सा आरोप लगाया गया, और इस का क्या अर्थ था? (अय्यूब १:७-१२; २:१-५)

२२ वहाँ अदन में परमावश्‍यक वाद-विषय खड़े किये गये, और वे सभी सृष्टि की सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। परमेश्‍वर की सत्यता को चुनौती दी गयी, और इससे उसके शासकपन की सत्यता और धार्मिकता पर प्रश्‍न उठाया गया। यह संकेत दिया गया कि मनुष्य अपने स्तरों को बनाने, अपने शासक होकर कार्य करने, क्या भला है और क्या बुरा है इसके प्रति अपने निर्णय लेने के द्वारा और सम्पन्‍न होंगे। शैतान का विद्रोह और पहले मानव जोड़े का परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार रहने में असफल होना इस प्रश्‍न को खड़ा करता है कि परमेश्‍वर के अन्य बुद्धिमान प्राणी क्या करेंगे। क्या कोई परमेश्‍वर के प्रति वफ़ादार रहेगा? बाद में, मानव अय्यूब के दिनों में, शैतान ने यह आरोप लगाया कि वे जो परमेश्‍वर की सेवा करते हैं वे ऐसा स्वार्थी प्रतिफलों के लिये करते हैं, प्रेम के द्वारा नहीं। “क्या अय्यूब परमेश्‍वर का भय बिना लाभ के मानता है?” शैतान ने तर्क किया। (अय्यूब १:९) उसने यह संकेत किया कि कोई भी यहोवा के शासकपन के प्रति वफ़ादार नहीं रहेगा यदि उसे, परमेश्‍वर के बैरी को, मनुष्य को परीक्षा में डालने के लिये अनुमति दी जाए। जब तक ये वाद-विषय तय नहीं किये जाते तब तक मानवजाति पूर्ण सुरक्षा का आनन्द नहीं उठा सकती है। किन्तु यहोवा जानता था कि ये वाद-विषय धार्मिकता से प्रेम करनेवालों की पूर्ण संतुष्टि के लिए तय किए जा सकते थे, और उसने इसी को दृष्टि में रखते हुए प्रबन्ध बनाया।

प्रबन्ध जो एक सुरक्षित भविष्य को सम्भव बनाते हैं

२३. (क) हमारे प्रथम माता-पिता को न्याय सुनाते समय, यहोवा ने हमारे लिये क्या सम्भव बनाया? (२ पतरस ३:९) (ख) मानवजाति के भविष्य के लिये यहोवा का प्रबन्ध किस पर केन्द्रित है?

२३ जब अपने परमेश्‍वर का विद्रोह करने के लिये हमारे प्रथम माता-पिता पर न्याय-निर्णय दिया गया, यहोवा उनकी सन्तानों को भूला नहीं जो तब पैदा नहीं हुए थे। प्रेममय रूप से उसने एक उद्देश्‍य की रचना की जो हममें से हरेक के लिये यह चुनना सम्भव बनाता है कि हम उस परमेश्‍वरीय शासन के अधीन रहना चाहते हैं या नहीं। वह उद्देश्‍य परमेश्‍वर के पुत्र यीशु मसीह पर केंद्रित है।

२४. (क) एक मानव बनने से पहले यीशु का किस प्रकार का जीवन था? (ख) क्यों हमें उसे परमेश्‍वर या परमेश्‍वर के बराबर व्यक्‍ति करके नहीं कहना चाहिए? (यूहन्‍ना १७:३)

२४ यह पुत्र स्वर्गीय लोक में यहोवा की सबसे पहली सृष्टि थी। “उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की,” बाइबल हमें सूचित करती है। (कुलुस्सियों १:१५-१७) परन्तु परमेश्‍वर के नियुक्‍त समय पर, उसके पुत्र ने स्वर्गीय महिमा को छोड़ा और आश्‍चर्यकर्म द्वारा इस पृथ्वी पर एक मानव के रूप में पैदा हुआ। स्वर्गदूत जिब्राईल, जिसे पहले से ही जन्म के बारे में बताने के लिये भेजा गया था, ने यह नहीं कहा कि वह बच्चा जो जन्म लेगा परमेश्‍वर होगा। इसके बजाय, उसने इसे ‘परमेश्‍वर के पुत्र’ का जन्म कहकर घोषित किया। (लूका १:३५) यीशु ने ख़ुद परमेश्‍वर होने का दावा नहीं किया। उसने शैतान के समान चाल नहीं दिखायी, जिसने अपनी उपासना चाही। सत्यता से उसने कहा: “पिता मुझ से बड़ा है।” (यूहन्‍ना १४:२८) इसलिए, सच्चाई के परमेश्‍वर के साथ अच्छे सम्बन्ध का आनन्द उठाने के लिये, हमें उसके पुत्र को परमेश्‍वर या परमेश्‍वर के बराबर एक व्यक्‍ति कहते हुए उसे एक फ़र्क पद नहीं देना चाहिए।

२५. यीशु का पृथ्वी पर मनुष्य बनकर अधिक दबाव के अधीन अपनी खराई को प्रमाणित करने के द्वारा क्या पूरा किया गया?

२५ यहाँ पृथ्वी पर यीशु ने उन अनुभवों का सामना किया जो उसने कभी नहीं किया था। स्वर्ग में अपने पिता की इच्छा पूरी करने में वह निर्दोष था। लेकिन क्या वह एक पुरुष के रूप में इस पृथ्वी पर वफ़ादार बना रहेगा, ख़ास तौर पर जब उस पर दुःख और ऐसे अपमान लाए जाते जिसके योग्य वह नहीं था? शैतान ने यह प्रमाणित करने के लिये ठान लिया था कि कोई भी, यहाँ तक कि परमेश्‍वर का सर्वप्रथम पुत्र भी, वफ़ादार नहीं रहेगा अगर उसे परीक्षा में डाला जाए। परन्तु यीशु, परमेश्‍वर के वचन पर स्थिर रहा, और उसने अपने पथ-प्रदर्शक के रूप में उस पर निर्भर करते हुए, प्रलोभनों को दूर करने में इसे उद्धृत किया। ग़लत काम करने के लिये दबाव को उसने दृढ़तापूर्वक ठुकराया, यह कहते हुए: “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है, कि तू प्रभु [यहोवा, NW] अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।” (मत्ती ४:१०) मृत्यु तक यीशु ने अपनी वफ़ादारी एक शासक के तौर पर यहोवा के प्रति बनाई रखी, और उसने यह ऐसी परीक्षाओं के अधीन किया जो आदम द्वारा सामना की गयी किसी भी परीक्षा से बहुत कठिन थीं। इस रीति से यीशु ने शैतान द्वारा लगाए गये झूठे आरोपों से अपने पिता के नाम को शुद्ध किया। अपने उदाहरण के द्वारा यीशु ने हमें दिखाया कि किस रीति से प्रलोभन पर विजय प्राप्त करें और किस रीति से प्रकट करें कि हम भी यहोवा के शासकपन के वफ़ादार समर्थक हैं।

२६. यीशु का एक सिद्ध मानव के तौर पर मरने के द्वारा और क्या परिणित हुआ, और वह हमारे लिये क्या सम्भव बनाता है? (१ तीमुथियुस २:३-६)

२६ किन्तु, परमेश्‍वर के पुत्र द्वारा हमारे लिये एक अच्छे उदाहरण से ज़्यादा और भी कुछ प्रबन्ध किया गया। यीशु ने ख़ुद बताया कि वह इसलिये आया कि “बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे।” (मरकुस १०:४५) यह ज़रूरी था यदि मानवजाति को कभी पाप से, और बीमारी तथा मृत्यु से जो पाप द्वारा परिणित होती हैं, मुक्‍त होना था। परमेश्‍वर के क़ानून के अनुसार, छुड़ौती का मूल्य एक सिद्ध मानव जीवन होना था, ताकि आदम द्वारा खोए हुए सिद्ध मानव जीवन के अनुरूप हो। आदम की कोई भी असिद्ध सन्तान इसका प्रबन्ध नहीं कर सकती थी। प्रेम के साथ यहोवा ने ख़ुद प्रबन्ध किया। उसने अपने ही पुत्र को पृथ्वी पर भेजा। फिर, यीशु की मृत्यु के बाद, परमेश्‍वर ने उसे दोबारा जीवित किया, अब एक आत्मिक व्यक्‍ति के रूप में, और उसके मानव जीवन के मूल्य को मानवजाति के लिये बलिदान के रूप में स्वीकार किया। इसने हमारे लिये उस मौके को खोल दिया कि जो चीज़ आदम ने खो दी थी उसे फिर से प्राप्त करें। जैसा कि बाइबल वर्णन करती है: “परमेश्‍वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्‍वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्‍ना ३:१६) इससे क्या ही अद्‌भुत प्रत्याशा हमारे लिये सम्भव होती है, यदि हम परमेश्‍वर के पुत्र पर विश्‍वास करते हैं, और जो उसने सिखाया उसे सीखते हैं तथा अपना जीवन पूरी रीति से इसके अनुसार बिताते हैं!

२७. (क) क्यों यीशु राजनीतिक मामलों में अन्तर्ग्रस्त नहीं हुआ? (यूहन्‍ना १८:३६) (ख) यीशु ने अपने अनुयायियों को सरकारों के प्रति कौन सी मनोवृत्ति रखने के लिये सिखाया? (मत्ती २२:१७-२१)

२७ इस प्रकार के विश्‍वास में उस भूमिका का मूल्यांकन करना भी शामिल है जो यहोवा ने अपने पुत्र को सरकार में दी है। यीशु अपने दिनों के राजनीतिक मामलों में अन्तर्ग्रस्त नहीं हुआ; वह जानता था कि कोई भी मानव सरकार परमेश्‍वर के शासकपन का समर्थन नहीं करती है। चाहे वे शासक परमेश्‍वर पर विश्‍वास करने के बारे में जो कुछ भी कहें, वे लोग भले और बुरे के लिये अपना स्तर लागू कर रहे थे। इस रीति से, चाहे वे इसे स्वीकार करें या नहीं, वे सभी परमेश्‍वर के बैरी, इब्‌लीस शैतान की अगुवाई के अनुसार चल रहे थे, जिसे बाइबल “इस संसार का सरदार” कहती है। (यूहन्‍ना १४:३०) यीशु ने अपने चेलों को अपना कर चुकाना, और क़ानून का पालन करना सिखाया, जब तक परमेश्‍वर इन मनष्यों की सरकारों को अस्तित्व में रहने की अनुमति देता है। परन्तु उसने यह स्पष्ट किया कि सुरक्षित भविष्य की एक मात्र आशा परमेश्‍वर के राज्य के द्वारा है, एक वास्तविक धार्मिक सरकार जो ख़ुद स्वर्ग से कार्य करती है और सारी मानवजाति के ऊपर अधिकार रखती है। अतः, उसने उन्हें परमेश्‍वर से प्रार्थना करना सिखाया: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” यीशु ने उन्हें उस राज्य के क़ानूनों के अनुसार जैसा बाइबल में दिया गया है जीवन बिताने के लिये प्रेरित किया। और उसने उन्हें “राज्य का यह सुसमाचार” हर जगह लोगों को प्रचार करने का काम सौंपा।—मत्ती ६:१०; २४:१४.

२८. परमेश्‍वर का राज्य क्या है, और किस रीति से हम इसके प्रति अपना मूल्यांकन दिखा सकते हैं? (मत्ती ६:३३)

२८ वह राज्य यहोवा का अपनी इच्छा पूरी करने का साधन है। यह सभी बुद्धिमान सृष्टि को फिर से यहोवा के राजत्व के अधीन एकता में लाएगा। उस स्वर्गीय सरकार के सदस्यों में पृथ्वी से लिये गये व्यक्‍ति होंगे जिन्होंने यहोवा के प्रभुत्व, उसके शासन को अपनी वफ़ादारी से समर्थन किया है। इनको एक ‘छोटा झुण्ड’ कहा गया है। (लूका १२:३२) बाइबल की आख़िरी किताब प्रकट करती है कि वे सीमित संख्या में “एक लाख चौआलीस हजार जन हैं, . . . जो पृथ्वी पर से मोल लिए गए थे।” (प्रकाशितवाक्य १४:१,) लेकिन, वह मुख्य जन जिसे राजकीय अधिकार सौंपा गया है, परमेश्‍वर का अपना पुत्र यीशु मसीह है। परमेश्‍वरीय भविष्यवाणी की पूर्ति में, उसी को यहोवा द्वारा “ऐसी प्रभुता, महिमा और राज्य दिया गया, कि देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्‍न-भिन्‍न भाषा बोलनेवाले सब उसके अधीन हों।” (दानिय्येल ७:१३, १४) यह हममें से हरेक के लिये परमावश्‍यक है कि उस परमेश्‍वरीय प्रबन्ध के पूर्ण सामन्जस्य में जीवन बितायें। वे जो ऐसा करने से इन्कार करते हैं उन्हें दूसरों की सुरक्षा में दख़ल देने के लिये सदा के लिए अनुमति नहीं दी जाएगी।

२९. (क) मानव शासन कितने दिनों से चल रहा है, और क्यों यह ज़्यादा दिन तक नहीं चलेगा? (यिर्मयाह १७:५) (ख) शैतान के लिये इसका क्या अर्थ होगा? (ग) मानव सरकारों का क्या होगा? (घ) दुष्ट लोगों का क्या होनेवाला है? (ङ) उनका क्या होगा जो यहोवा के शासकपन के प्रति उदासीन हैं? (२ थिस्सलुनीकियों १:६-९)

२९ अदन में विद्रोह के बाद से, मनुष्यों ने लगभग छः हज़ार वर्ष के लिए मानव शासकपन के फलों को चखा है। यह एक भयंकर विपत्ति रही है। उचित रूप से बाइबल इस पीढ़ी की तरफ़ संकेत करती है जिसके दौरान परमेश्‍वर अपने न्याय-दण्ड की कार्यवाई करेगा। यह मानवजाति के सबसे बड़े दुश्‍मन, इब्‌लीस शैतान के लिये क्या अर्थ रखेगा? उसे और उसके पिशाचों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा, ‘अथाह कुंड में डालकर बन्द कर दिया जाएगा’ ताकि मानवजाति को बहका न सकें। (प्रकाशितवाक्य २०:१-३) परमेश्‍वर के न्याय-दण्ड की कार्यवाई मनुष्यों की सरकारों के लिये क्या अर्थ रखेगी? बाइबल भविष्यवाणी करती है, “राज्य . . . उन सब [मनुष्यों के] राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।” (दानिय्येल २:४४) यह झूठ बोलनेवालों, चोरों, और हिंसा करनेवालों के लिये क्या अर्थ रखेगा? “दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भली भांति देखने पर भी उसको न पाएगा।” (भजन ३७:१०) यह उनके लिये क्या अर्थ रखेगा जो उदासीन रीति से यहोवा के शासकपन को नज़रअंदाज़ करते हैं? नूह के दिनों में “जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उन्होंने कुछ भी ध्यान नहीं दिया,” यह वैसा ही होगा जब परमेश्‍वर अपने पुत्र को न्याय-दण्ड की कार्यवाई करने के लिये प्रयोग करेगा।—मत्ती २४:३९, NW.

३०. ये सभी बातें यहोवा के शासकपन का वफ़ादारी से समर्थन करने वालों के लिये क्या अर्थ रखेंगी? (प्रकाशितवाक्य ७:९, १०, १३, १४)

३० परन्तु ये सब बातें उनके लिये क्या अर्थ रखेंगी जिन्होंने प्रमाणित किया है कि वे यहोवा के शासकपन का वफ़ादारी से समर्थन करनेवाले हैं? इसका अर्थ होगा परमेश्‍वर के धार्मिक नये प्रबन्ध में जाने के लिये छुटकारा। इससे जो प्रभाव जीवन पर पड़ेगा, उसका एक उदाहरण प्राचीन इस्राएल देश के साथ परमेश्‍वर के व्यवहार द्वारा प्रस्तुत किया गया। यह ठीक उसी तरह हुआ जैसा कि परमेश्‍वर ने मूसा को कहने के लिये निर्देश दिया: “तुम . . . उस देश में जिसका भागी तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हें करता है बस जाओ, और वह तुम्हारे चारों ओर के सब शत्रुओं से तुम्हें विश्राम दे।” (व्यवस्थाविवरण १२:१०) सुलैमान राजा के शासनकाल की स्थिति के बारे में, यह लिखा गया था: “दान [सुदूर उत्तर] से [दक्षिण में] बेर्शेबा तक के सब यहूदी और इस्राएली अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले . . . निडर रहते थे।” (१ राजा ४:२५) परमेश्‍वर की व्यवस्था के अनुसार सभी परिवारों के लिए खेती करने और उसमें रहने के लिये अपनी ज़मीन थी। परमेश्‍वर के प्रति आज्ञाकारिता उसकी आशिष में परिणित हुई, और जैसा कि उसने प्रतिज्ञा की थी, इसमें ‘वर्षा को अपने अपने समय पर बरसाना’ भी शामिल था। (व्यवस्थाविवरण ११:१३-१५) वहाँ आर्थिक सुरक्षा थी।

३१. जैसा भजन ७२ में वर्णन किया गया है, परमेश्‍वर के राज्य के अधीन सारी पृथ्वी में सुरक्षा लानेवाली कौनसी स्थितियाँ व्याप्त होंगी?

३१ यह बाइबल में लिपिबद्ध की गयी थी, केवल एक ऐतिहासिक अभिलेख के लिए नहीं, परन्तु हमारे प्रोत्साहन के लिए। प्रभु यीशु मसीह, जिसे यहोवा ने सारी पृथ्वी पर राजा होने के लिये नियुक्‍त किया है, को शास्त्र में “सुलैमान से भी बड़ा” कहा गया है। (लूका ११:३१) मसीह के शासन के अधीन, सुलैमान के शासन के अधीन यहूदा और इस्राएल की परिस्थिति से और भी अच्छी स्थिति सारी पृथ्वी पर फैल जाएगी। भजन ७२ बहुत सुन्दर रीति से आशिषों का इस प्रकार वर्णन करता है: “उसके दिनों में धर्मी फूले फलेंगे, और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा, तब तक शान्ति बहुत रहेगी। वह समुद्र से समुद्र तक और महानद [फरात] से पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा। वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लोहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा। देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्‍न होगा।” (भजन ७२:७, ८, १४, १६) तब जो स्थिति व्याप्त होगी, वह वैसी ही स्थिति होगी जिसका वर्णन यीशु मसीह ने एक आदमी से किया था, जिसने निवेदन किया कि जब यीशु अपने शासन में आए तो वह उसे याद रखे। यीशु ने उससे कहा: “तू मेरे साथ परादीस में होगा।”—लूका २३:४३, NW.

३२. (क) मरे हुए लोगों के लिये भी इन महान प्रबन्धों से लाभ प्राप्त करना कैसे सम्भव होगा? (ख) पुनरुत्थित लोग कहाँ से लौट रहे होंगे? (यहेजकेल १८:४; अय्यूब १४:१३)

३२ वे लोग जो आदम द्वारा पाप को विरासत में पाने के कारण मर चुके हैं, उन्हें उस समय याद किया जाएगा। वे भी परमेश्‍वर के पुत्र की छुड़ौती बलिदान के अधीन आते हैं। प्रोत्साहनपूर्वक बाइबल भविष्यवाणी करती है: “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरितों २४:१५) इसका क्या मतलब है? बाइबल कहती है कि “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते।” (सभोपदेशक ९:५) वे कब्र में निर्जीव हैं। तो फिर, पुनरुत्थान का अर्थ है फिर से जीवित होना। “छोटे झुण्ड” के लोग जो यीशु मसीह के साथ स्वर्गीय जीवन के भागी होंगे, उनको छोड़ बाक़ी सभी लोग जो जिलाये जाएँगे मनुष्य के रूप में होंगे, और उनके सामने यहाँ, हाँ, इसी पृथ्वी पर सदा सर्वदा जीने की प्रत्याशा होगी।

३३. (क) किस माध्यम द्वारा बीमारी और मृत्यु को हटा दिया जाएगा? (मरकुस २:१-१२) (ख) क्या आप व्यक्‍तिगत रूप से इन प्रबन्धों से लाभ उठाना चाहते हैं जिन्हें यहोवा ने एक सुरक्षित भविष्य के लिये बनाया है?

३३ यह मानव परिवार के लिये नवीनीकरण का एक समय होगा। स्वर्गीय राज्य के निर्देशन के अधीन में पाप के सभी निशान तथा इसके सभी प्रभावों को यीशु के बलिदान के मूल्य को लागू करने के द्वारा उन सभी लोगों से हटा दिया जायगा जो विश्‍वास करते हैं। जब यीशु पृथ्वी पर था, उसने प्रदर्शित किया कि मानवजाति के लिये इसका क्या अर्थ होगा। उसने सभी प्रकार के रोगों को चंगा किया, यहाँ तक कि अंधों को आँखें दी और लंगड़ों को चंगा किया। परमेश्‍वर के नये प्रबन्ध में पृथ्वी उन व्यक्‍तियों से भर जाएगी जो इस प्रकार की आशिषों का अनुभव करेंगे। परमेश्‍वरीय प्रतिज्ञा है: “वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं।” (प्रकाशितवाक्य २१:४) हाँ, सभी चीज़ें जिन से जीवन असुरक्षित बना है, नहीं रहेंगी। यह क्या ही महान प्रत्याशा है!

३४. क्या कोई वास्तविक सुरक्षा है जिसका अभी आनन्द उठाया जा सकता है?

३४ परन्तु सभी चीज़ें जो सुरक्षा में परिणित होती हैं भविष्य के लिये नहीं रखी गयी हैं। बहुत कुछ का ठीक अभी आनन्द उठाया जा सकता है।

सुरक्षा जिसका अभी आनन्द उठाया जा सकता है।

३५. कौन सी चीज़ें यहाँ बतायी गयी हैं जो काफ़ी हद तक व्यक्‍तिगत सुरक्षा में परिणित होंगी?

३५ एक व्यक्‍ति को जीवन में चाहे जो भी परिस्थितियों का सामना करना पड़े, तो भी अधिकतर लोग इस बात से सहमत होंगे कि जिस व्यक्‍ति को रोज़ का भोजन और काफ़ी कपड़ों की प्रतिभूति दी जाए, उसको एक उच्च स्तर की सुरक्षा प्राप्त है। इसके अतिरिक्‍त यदि जिन लोगों के साथ वह अधिकतर संगति करता है उनमें एक दूसरे के प्रति वास्तविक प्रेम है, तो यह उस सुरक्षा को बढ़ाने में और योगदान देगा। और अगर वह जानता कि भविष्य में क्या रखा है, तो यह भी हर प्रकार की अनिश्‍चितता की भावना को अधिक कम करने में मदद करेगा। परन्तु अधिकतर लोग इस प्रकार की सुरक्षा का आनन्द नहीं उठा रहे हैं। क्या इसका यह अर्थ हुआ कि परमेश्‍वर के वचन में दी गयी सुरक्षा की प्रतिज्ञाएँ केवल भविष्य में पूरी होंगी? या लोग अभी भी उन प्रतिज्ञाओं पर विश्‍वास करने और उनके अनुसार चलने के द्वारा सुरक्षा पा सकते हैं? क्या अभी ऐसे व्यक्‍ति हैं जो एकता में ऐसा कर रहे हैं?

३६. (क) किन परिस्थितियों के अधीन परमेश्‍वर कहता है कि वह प्रतिदिन के भोजन और कपड़ों का ठीक अभी प्रबन्ध करेगा? (ख) कौन इस प्रकार की सुरक्षा का आनन्द उठाते हैं, और वे किस प्रकार से इन प्रबन्धों को प्राप्त करते हैं? (इफिसियों ४:२८)

३६ यहोवा के गवाह के नाम से जाने जानेवाले मसीहियों ने परमेश्‍वर के वचन को सत्य पाया है और अनुभव किया है कि इसे अपने जीवन में प्रयोग करने से उन्हें ठीक इसी समय अद्‌भुत लाभ प्राप्त होते हैं। ये लाभ एक व्यक्‍ति के प्रतिदिन के जीवन में आध्यात्मिक बातों पर सही महत्त्व देने के द्वारा आते हैं। अवश्‍य, पृथ्वी पर सभी कोई, चाहे आध्यात्मिक बातों की ओर झुकाव रखते हों या नहीं, पृथ्वी जो उत्पादन करती है उससे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु बाइबल दिखाती है कि परमेश्‍वर उन व्यक्‍तियों के कल्याण में ख़ास दिलचस्पी रखता है जो उसकी सेवा को पहला स्थान देते हैं। अपने चेलों के विश्‍वास को मज़बूत करने के लिये, यीशु ने कहा: “तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएंगे, या क्या पहिनेंगे? क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएं चाहिए। इसलिये पहले तुम उसके राज्य और धर्म [धार्मिकता, NW] की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।” (मत्ती ६:३१-३३) परन्तु वे किस रीति से ये “सब वस्तुएं” पाते हैं, वे वस्तु जो एक व्यक्‍ति को शारीरिक रीति से जीने के लिये ज़रूरी हैं? यह नहीं कि मसीही कलीसिया उनको आर्थिक रूप से मदद करती है। इसके बजाय, वे सभी इच्छापूर्वक काम करने वाले हैं। और जब लोग वास्तव में अपने जीवन में यहोवा के राज्य और उसकी धार्मिकता को पहला स्थान देते हैं, तब परमेश्‍वर जीवन की जरूरतों को प्राप्त करने के उनके प्रयत्नों पर आशिष देता है। वह उनकी प्रार्थना सुनता है कि “हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे।” (मत्ती ६:११) जब तक वर्तमान जगत उपस्थिति में है, यहोवा अपने सेवकों को भौतिक बहुतायत देने की प्रतिज्ञा नहीं करता है, परन्तु वह उन्हें ज़रूर आश्‍वासन देता है कि जिन चीज़ों की उन्हें वास्तव में ज़रूरत है, वे उन्हें मिलेंगी। और परमेश्‍वर को छोड़ और कोई व्यक्‍ति नहीं जो उन्हें ये चीज़ें बेहतर रीति से दे सके।

३७. (क) किस प्रकार के चालचलन और मनोवृत्ति असुरक्षा उत्पन्‍न करते हैं? (ख) मूलतः, उस प्रकार के लोगों में कौन से गुण की कमी है? (ग) यीशु के कहने के अनुसार इस प्रकार का प्रेम कहाँ पाया जाएगा?

३७ भौतिक ज़रूरतों का महान प्रबन्धकर्ता साथ ही साथ कुछ और चीज़ों को प्राप्य करता है जो अभी सुरक्षा के लिये ज़रूरी हैं। जैसे कि आप इसका मूल्यांकन कर सकते हैं, जीवन की भौतिक आवश्‍यकताओं का होना एक व्यक्‍ति को सन्तुष्ट और सुरक्षित महसूस नहीं करवा सकता है यदि उसके साथी ऐसे लोग हैं जो उसमें वास्तविक दिलचस्पी नहीं रखते हैं। जब लोग झूठ बोलते और धोखा देते हैं; जब वे अपनी ज़बान का दूसरों की भावनाओं की चिन्ता किये बग़ैर प्रयोग करते हैं; जब भौतिक सम्पत्ति, त्वचा के रंग या राष्ट्रीय मूल के आधार पर दूसरों का न्याय करते हैं; और जब “दयालुता” अक्सर एक छुपे हुए स्वार्थी कारण के साथ दिखायी जाती है तब असुरक्षा उत्पन्‍न होती है। उस प्रकार के लोगों में जिस चीज़ की कमी है वह है प्रेम—दूसरे लोगों के प्रति वास्तविक निःस्वार्थ चिन्ता। क्या इस प्रकार का प्रेम वास्तव में पाया जा सकता है—न केवल कुछ व्यक्‍तियों में, लेकिन लोगों के एक पूर्ण समाज के एक ख़ास गुण के रूप में? यीशु मसीह हमें आश्‍वासन देता है कि यह हो सकता है। उसने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” और वह जानता था कि इस प्रकार के लोग हमारे दिनों में होंगे, क्योंकि उसने अपने चेलों से कहा: “देखो! मैं इस रीति-व्यवस्था के अन्त तक सब दिन तुम्हारे संग हूँ।”—यूहन्‍ना १३:३५; मत्ती २८:२०, NW.

३८. किस रीति से बाइबल हमारी मदद करती है कि उन लोगों को पहचानें जिनमें इस प्रकार का प्रेम है? (१ यूहन्‍ना ४:२०, २१)

३८ अगर आपने अपने साथियों के मध्य इस प्रेम की कमी को देखा है, तो आपको कहीं और ढूँढ़ने की ज़रूरत है। बाइबल, १ यूहन्‍ना ४:८ में आवश्‍यक निर्देशन का प्रबन्ध करती है, यह कहते हुए: “जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्‍वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्‍वर प्रेम है।” सो, उन लोगों के मध्य जो ‘परमेश्‍वर को जानते’ हैं इस प्रकार का प्रेम पाया जा सकता है। इसका निश्‍चय ही यह अर्थ नहीं कि सभी लोग जो धार्मिक स्वभाव रखते हैं उनके मध्य आप इसे पाएँगे; आप जानते हैं कि यह ऐसा नहीं है। परन्तु इसे आप उनके मध्य पाएँगे जो एकमात्र परमेश्‍वर यहोवा को जानते हैं, जो उसके नाम को आदर के साथ प्रयोग करते हैं और जो निष्कपटता से अपने जीवन को उसकी इच्छा के अनुसार ढालने की चेष्टा करते हैं। इस प्रकार की संगति के लाभ प्रत्यक्ष हैं।

३९. इस प्रकार के लोगों के बीच रहने के अलावा, एक व्यक्‍ति और क्या कर सकता है जिसका कारण सुरक्षा और जीवन का आनन्द होगा?

३९ अवश्‍य, इस तरीक़े से एक व्यक्‍ति संसार के बाक़ी लोगों के भ्रष्ट चालचलन के प्रभाव से परिमुक्‍त नहीं हो जाता। तथापि, जब वह व्यक्‍तिगत रूप से परमेश्‍वर पर अपनी निर्भरता को स्वीकार करता है और बाइबल में दिये गये सही और ग़लत के विषय में परमेश्‍वर के स्तर को स्वीकार करता है, उसे महान रीति से लाभ प्राप्त होता है। वह उन कामों में फँसने से बचा रहता है जो मनोव्यथा और दुःख में परिणित होते हैं। जैसा कि नीतिवचन १:३३ कहता है: “जो मेरी सुनेगा [अर्थात्‌, ईश्‍वरीय बुद्धि को], वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा।” उसका जीवन सही अर्थों से भर जाएगा यदि वह इसे सृष्टिकर्ता की इच्छा की समता में व्यतीत करता है। इसके बजाय कि निराशा का अनुभव करे जिसका बहुत से लोग अनुभव करते हैं, वह उस आनन्द का भागीदार हो सकता है जो दूसरों को मानवजाति की समस्याओं का एकमात्र वास्तविक हल—परमेश्‍वर के राज्य, के बारे में सीखने में सहायता करने के द्वारा परिणित होता है। यीशु ने इस प्रकार के काम के बारे में भविष्यवाणी की, यह कहते हुए: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती २४:१४.

४०. यहोवा के गवाह भविष्य के बारे में कैसे महसूस करते हैं, और क्यों? (लूका २१:२८-३२)

४० जैसे जैसे इस प्रचार के काम में भाग लेनेवाले लोग भविष्य की तरफ़ देखते हैं उन्हें भय नहीं होता। बाइबल का अध्ययन करने के द्वारा, और जो कुछ यह कहती है उस पर विश्‍वास करने के द्वारा, वे जानते हैं कि भविष्य में क्या रखा है। इसके बजाय कि संसार के मामलों में कोई भी अप्रिय विकास होने के द्वारा निराश महसूस करें, वे इनमें इस रीति-रिवाज के अन्त के बारे में बाइबल की भविष्यद्वाणियों की पूर्ति देखते हैं। वे जानते हैं कि अब तुरन्त, इसी पीढ़ी में, परमेश्‍वर उन सभी लोगों को नाश करने जा रहा है जो उसके सही शासकपन का तिरस्कार करते हैं और जो अपने संगी लोगों के जीवन का आनन्द बिगाड़ते हैं। विश्‍वास के साथ वे उस आशा की पूर्ति की आस देखते हैं जो २ पतरस ३:१३ में दी गई है, जो कहता है: “उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।”

४१, ४२. (क) अतः, क्यों यहोवा के गवाह ठीक अभी एक उच्च स्तर की सुरक्षा का अनुभव करते हैं, हालाँकि वे समस्याओं से भरे एक संसार के मध्य जीवन बिताते हैं? (ख) क्या आप वह सुरक्षा चाहेंगे जिसका आनन्द यहोवा के गवाहों को प्राप्त है?

४१ यही वह सुरक्षा है जिसका ठीक अभी यहोवा परमेश्‍वर के मसीही उपासक आनन्द उठा रहे हैं, वे जो “पिता का भजन [उपासना, NW] आत्मा और सच्चाई से” करते हैं। यह उनका यहोवा के धार्मिक स्तरों के अधीन होने और उन्हें अपने जीवन में कार्य करने देने से परिणित होता है। जैसे कि यशायाह ३२:१७, १८ में भविष्यवाणी की गयी है: “धर्म [सच्ची धार्मिकता, NW] का फल शान्ति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्‍चिन्त रहना होगा। मेरे लोग शान्ति के स्थानों में निश्‍चिन्त रहेंगे, और विश्राम के स्थानों में सुख से रहेंगे।” वे यहोवा की सर्वसत्ता के वफ़ादार समर्थक हैं। वे भले और बुरे के लिये अपना स्तर नहीं बनाते हैं। वे ख़ुद आप ही संसार की समस्याओं का हल करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। कृतज्ञता के साथ वे उस प्रेमपूर्ण प्रबन्ध को स्वीकार करते और थामे रहते हैं जो यहोवा ने बनाया है, अर्थात्‌ यीशु मसीह के हाथ में परमेश्‍वर का राज्य।

४२ क्या आप उस सुरक्षा के भागीदार होना चाहते हैं जिसका वे आनन्द उठाते हैं? आप हो सकते हैं।

इस के लिये आप क्या कर सकते हैं

४३. यहोवा के गवाहों के राज्य गृह में जाने से, आप ख़ुद क्या देख सकेंगे?

४३ पहला क़दम यह है कि उन लोगों के साथ संगति करें जो इस प्रकार की सुरक्षा का आनन्द उठाते हैं। इस रीति से आप अपने लिये देख सकते हैं कि क्या यह वास्तव में वही है जिसकी आप खोज कर रहे थे। यहोवा के गवाह आप के क्षेत्र के राज्य गृह में अपनी सभाओं में आपको आने के लिये हार्दिक स्वागत करते हैं। आप पाएँगे कि उनकी सभाएँ कर्मकाण्ड से भरी हुई नहीं हैं, और कोई भी चन्दा नहीं लिया जाता है। इसके बजाय, वहाँ परमेश्‍वर के वचन और किस रीति से यह हमारे जीवन को प्रभावित करता है, की अर्थपूर्ण चर्चा की जाती है। बाइबल सलाह देती है: “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें।” (इब्रानियों १०:२४,२५) यही वह मनोभाव है जो आप राज्य गृह में पाएँगे।

४४. (क) यदि आपको व्यक्‍तिगत रूप से उस सुरक्षा का आनन्द उठाना है जो राज्य गृह में अन्य लोगों में आप देखते हैं, आपको किस चीज़ की ज़रूरत है? (ख) क्यों हममें से किसी को भी इस प्रकार के सम्बन्ध को हमेशा के लिए प्राप्त नहीं समझना चाहिए, लेकिन इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

४४ इस प्रकार की सभाओं में भाग लेना आपको उस सुरक्षा को देखने में समर्थ करेगा जिसका दूसरे लोग आनन्द उठाते हैं, और इसमें कोई शक़ नहीं कि आप उनकी संगति का आनन्द उठाएँगे। लेकिन किसी और चीज़ की भी ज़रूरत है यदि आप इस प्रकार की सुरक्षा का आनन्द उठाना चाहते हैं। आपकी सबसे बड़ी आवश्‍यकता यहोवा परमेश्‍वर के साथ एक स्वीकारयोग्य सम्बन्ध है। वही वह व्यक्‍ति है जिस पर आपकी वर्तमान कुशलता और भविष्य के लिए सभी प्रत्याशाएँ दोनों निर्भर हैं। इस प्रकार का एक सम्बन्ध ऐसा नहीं है जिसे हम हमेशा के लिए प्राप्त समझ सकते हैं। हम इसे लेकर पैदा नहीं हुए। हम सभी पापी आदम की सन्तान हैं, सो हम एक ऐसे मानव परिवार में जन्मे हैं जो परमेश्‍वर से दूर किया हुआ है। यहोवा की कृपा प्राप्त करने के लिये, हमें उसके साथ मेल मिलाप करने की ज़रूरत है, और यह केवल उसके प्रेममय प्रबन्ध पर विश्‍वास करने के आधार पर सम्भव है जो उसने अपने पुत्र के बलिदान के द्वारा किया है। जैसा यीशु ने स्वयं कहा: “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।”—यूहन्‍ना १४:६.

४५. (क) पहले हमें जीवन के विषय में और किस रीति से जीवन को प्रयोग करना है, के विषय में किस बात का मूल्यांकन करना चाहिए? (प्रकाशितवाक्य ४:११) (ख) यहोवा को प्रसन्‍न करने के लिये, व्यक्‍तिगत रूप से उसके बारे में हमें क्या महसूस करना चाहिए? (ग) क्यों पानी में बपतिस्मा लेना महत्त्वपूर्ण है, और कौन सी चीज़ ज़रूरी है इससे पहले कि एक व्यक्‍ति बपतिस्मा प्राप्त करने के लिये तैयार हो? (मत्ती २८:१९, २०)

४५ हमें मूल्यांकन करने की ज़रूरत है कि हम अपना जीवन परमेश्‍वर से पाते हैं और हमारे जीवन को परमेश्‍वर की आज्ञाकारिता में बिताने की कोई भी असफलता भूल है। अगर हम भूतकाल में हुए किसी भी चूक के लिये निष्कपटता से पछताते हैं कि हम ने अपने जीवन को परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार प्रयोग नहीं किया है, तो हम अपने जीवन को परमेश्‍वर की इच्छा के सामन्जस्य में लाते हुए, उस ग़लत रास्ते को त्याग देंगे और मन फिराएँगे। इसमें वह कार्य अन्तर्ग्रस्त है जो यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि उन्हें अवश्‍य करना है, अर्थात्‌ ‘अपने आप का इन्कार करें।’ (मत्ती १६:२४) एक व्यक्‍ति जो यह करता है आगे को यह दावा नहीं करता कि उसका यह “अधिकार” है कि अपना जीवन परमेश्‍वर की इच्छा की परवाह किये बग़ैर अपनी स्वार्थी इच्छा को सन्तुष्ट करने के लिये बिताए। इसके बजाय, वह परमेश्‍वर के पुत्र के निर्देश अनुसार, अपने आपको परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने के लिये पूर्ण रूप से अधीन करता है। और वह यह इसलिए करता है क्योंकि यह सही है और क्योंकि वह निश्‍चित है कि यहोवा जो कुछ करता है उसका एक अच्छा और धार्मिक उद्देश्‍य है, और यह कि जो कुछ परमेश्‍वर करता है हमारे लिये आशिष में परिणित होगा यदि हम धार्मिकता से प्रेम करते हैं। वह वास्तव में ‘अपने सारे हृदय, मन, प्राण और शक्‍ति से’ परमेश्‍वर से प्रेम करता है। (मरकुस १२:२९,३०) इस प्रकार का वादा अपने हृदय में करने के बाद, वह सार्वजनिक पानी के बपतिस्मा के लिये अपने आपको प्रस्तुत करने के लिए तैयार होता है, यीशु मसीह का अनुकरण करते हुए, तथा उसने अपने चेलों को जो निर्देश दिया था उसका पालन करते हुए। केवल इसी रीति से, जैसा कि परमेश्‍वर के वचन में दिया गया है, एक व्यक्‍ति सच्चे परमेश्‍वर के साथ स्वीकार योग्य सम्बन्ध में आ सकता है और उस सुरक्षा का भागीदार हो सकता है जिसका आनन्द उसकी सेवा करनेवाले उठा सकते हैं।

४६. किस रीति से हम प्रदर्शित करते हैं कि हम वास्तव में यहोवा को अपने शासक के तौर पर चाहते हैं?

४६ इसके बाद, यह प्रदर्शित करते रहना महत्त्वपूर्ण है कि आपने वास्तव में उस स्वतंत्र मार्ग को त्याग दिया है जिसका शैतान समर्थन करता है; कि आप भले और बुरे के लिये अपना स्तर नहीं बनाते हैं; कि आप यहोवा को अपने शासक के रूप में वास्तव में चाहते हैं। आपको वैसा करने की ज़रूरत है जैसा कि नीतिवचन ३:५, ६ में कहा गया है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” जी हाँ, वह आपके मार्ग को सच्ची और सदा रहने वाली सुरक्षा की ओर निर्देशित करेगा।

४७. कौन सी सुरक्षा उन्हें मिलती है जो वास्तव में यहोवा के प्रेमपूर्ण प्रबन्धों को स्वीकार करते हैं?

४७ कितनी अद्‌भुत आशिषें उन सभों को मिल सकती हैं जो वास्तव में उन प्रेमपूर्ण प्रबन्धों को स्वीकार करते हैं जिसका यहोवा ने मानवजाति के लिए प्रबन्ध किया है! उसके शासकपन के अधीन दृढ़ स्थिति लेने के कारण, वे अभी सुरक्षित हैं, और भविष्य के लिये उनकी निश्‍चित प्रत्याशाएँ हैं। यहोवा की प्रेममय दयालुता और उसकी सत्यता के कारण, वे पूर्ण रूप से सन्तोष देने वाली सुरक्षा के भागीदार होंगे जो परमेश्‍वर के राज्य के अधीन उसके पुत्र यीशु मसीह के हाथों में मनुष्यजाति को प्राप्त होगी।

[फुटनोट]

^ पैरा. 10 न्यू इंग्लिश बाइबल में अनुवादकों द्वारा प्रयोग की गयी यह विधि भजन १३५:५ और नहेमायाह १०:२९ में अच्छी तरह देखी जा सकती है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज ४ पर तसवीर]

लोग जो आज जीवित हैं उस दिन को देखेंगे जब भूख न रहेगी

[पेज ४ पर तसवीर]

भविष्य के लिये हमारी प्रत्याशाएँ उस जन पर निर्भर हैं जिसने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की

[पेज १३ पर तसवीर]

हमारे प्रथम माता-पिता के बारे में बाइबल अभिलेख यह दिखाता है कि क्यों आज असुरक्षा मानव जीवन को बिगाड़ती है

[पेज २२ पर तसवीर]

परमेश्‍वर के राज्य के अधीन, अपराध का अन्त, और एक व्यक्‍ति की सम्पत्ति तथा जान के ख़तरे का अन्त हो जाएगा

[पेज २४ पर तसवीर]

परमेश्‍वर का वचन प्रतिज्ञा करता है कि बीमारी और मृत्यु हटाई जाएगी—हाँ, प्रिय जन भी जो मर गये हैं फिर जीने के लिये जिलाये जाएँगे