क्या एक परमेश्वर है जो चिन्ता करता है?
क्या एक परमेश्वर है जो चिन्ता करता है?
१, २. (अ) क्या पहले परिच्छेद में दिये गये प्रश्नों को आपने पूछा है? (ब) कौन सी अवस्थाएं लोगों द्वारा इस प्रकार के प्रश्नों को पूछने का कारण बनती हैं?
अगर परमेश्वर अस्तित्व में है, तो क्यों उसने सारे इतिहास के दौरान लोगों में भयानक चीजों को घटित होने दिया? यदि वह वास्तव में हमारी चिन्ता करता है, क्यों वह दुष्टता और पीड़ा को जारी रहने की अनुमति देता है?
२ विचार करनेवाले व्यक्ति सब जगह उन प्रश्नों को पूछते हैं। और सही कारणों से, क्योंकि शताब्दियों से मानव परिवार भयंकर युद्धों, खाद्य पदार्थ में कमी, गरीबी, अपराध और बीमारी से बहुत ज्यादा पीड़ित रहा है। अन्याय और अत्याचार ने अत्याधिक दुःख पैदा किया है। इसी रीति से बाढ़ और भुईंडोल के संकट। अधिकतर, निर्दोष लोग अपने बिना किसी दोष के दुःख उठातें हैं। क्या ये सभी इसका प्रमाण हैं कि हमें जो कुछ भी होता है उसकी परमेश्वर चिन्ता नहीं करता है? क्या एक और उत्तम संसार की कोई वास्तविक आशा है, जहाँ हम पूरी रीति से इस पृथ्वी पर सभी समस्याओं से स्वतंत्र होकर जीवन का आनन्द उठा सकते हैं?
३. इन प्रश्नों के उत्तरों को पता लगा सकना क्यों विचारनीय है?
३ इस प्रकार के प्रश्न सत्यतापूर्ण, संतोषजनक उत्तरों की माँग करते हैं। परन्तु यह कहा जाना, “परमेश्वर की इच्छा है कि हम दुःख उठायें,” या, “ये सब चीजें हम नहीं समझ सकते हैं” सत्यतापूर्ण या संतोषजनक नहीं है। यदि परमेश्वर ने इतनी आश्चर्यजनक व्यवस्था में इस विस्मयकारी विश्व–मंडल की सृष्टि की, निश्चय ही उसके पास सही कारण होंगे कि मानवजाति को इतना अव्यवस्थित होने की अनुमति दे। और क्या, इस तरह का सृष्टिकर्ता अपने मानव सृष्टि के लिये इतना भी चिन्ता नहीं करता है हमे यह बतलाने को, कि उस ने दुष्टता को अनुमति क्यों दिया है? क्या उसके लिये उचित नहीं होगा कि इन बुरी स्थितियों को उचित समय पर ठीक कर दें यदि उसमें ऐसा करने की शक्ति है? कोई भी प्रेममय पिता अपने बच्चों से वैसा करेगा यदि वह कर सके। निश्चय ही एक सर्वशक्तिमान,
सर्व–बुद्धिमान, प्रेममय सृष्टिकर्ता अपने पार्थिव बच्चों के लिए कुछ कम नहीं करेगा।कौन सबसे अच्छी तरह से जवाब दे सकता है?
४. कौन अच्छी तरह हमें बता सकता है कि क्यों परमेश्वर दुष्टता को अनुमति देता है?
४ कौन, परमेश्वर द्वारा दुष्टता को अनुमति दिये जाने के लिये सब से अच्छी तरह जवाब दे सकता है? यदि आप पर कोई दोष आरोपित किया गया हो, क्या आप चाहेंगे कि जो दूसरे लोगों ने कहा है लोग केवल उसी को सुनें? या आप खुद बात को उस व्यक्ति के मन से स्पष्ट कर देना चाहेंगे जो शुद्ध हृदय से जानना चाहता है? यह परमेश्वर है जिसे दुष्टता की अनुमति देने के लिये दोष लगाया गया है। चूँकि वही सही तौर पर जानता है कि क्यों वह इसे अनुमति देता है, क्या यह न्यायपूर्ण नहीं होगा कि उसे खुद बोलने दिया जाय? मनुष्यों की तरफ उत्तर के लिये देखना कभी भी संतोषजनक नहीं होगा, क्योंकि अक्सर इन बातों के लिये उनके पास विरोधी विचार होते हैं।
५. क्या यह विश्वास करना उचित है कि परमेश्वर बाइबल का प्रकाशक है? (२ पतरस १:२१; हबक्कुक २:२)
५ परमेश्वर कहाँ पर उत्तरों का प्रबन्ध करता है? केवल एक ही स्रोत है जिसका सृष्टिकर्ता ने अधिकार देने का दावा किया है ताकि हमें बताये क्या हुआ और क्यों हुआ। वह स्रोत बाइबल है, जो कहती है: “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है।” (२ तीमुथियुस ३:१६) * यह कोई आश्चर्य करने की बात नहीं है, क्योंकि परमेश्वर यदि इस आश्चर्यजनक विश्व–मंडल की सृष्टि कर सकता है, निश्चय ही वह एक पुस्तक का लेखक भी हो सकता है। मात्र मनुष्य लोग आवाज़ और विचार, इतना कि तस्वीर भी अदृष्य वायु तरंग द्वारा आपके रेडिओ या टेलिविज़न सेट में प्रसारित कर सकते हैं। अतः यह सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता के लिये कोई बड़ा काम नहीं होगा कि अपने विचारों को विश्वस्त मानव लेखकों को प्रसारित करे और इसे देखे कि वे इन्हें सही सही लिख डालें। इसी लिये प्रेरित पौलुस निश्चयता से कह सकता था: “जब हमारे द्वारा परमेश्वर के सुसमाचार का वचन तुम्हारे पास पहुँचा, तो तुम ने उसे मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्वर का वचन समझकर (और सचमुच यह ऐसा ही है) ग्रहन किया।”—१ थिस्सलुनीकियों २:१३.
६. बाइबल का इतिहास पीछे कितनी दूर जाता है, और, इसलिए, कौनसी सूचना हमें यह दे सकती है? (लूका १:१-४; लूका ३:२३-३८ पर ध्यान दें।)
६ शायद आपने बाइबल की जाँच कभी नहीं की। फिर भी आपको यह जानकर शायद दिलचस्पी होगी की यह सबसे पूर्ण, तारीख के साथ आज अस्तित्व में ऐतिहासिक अभिलेख है। वास्तव में, एक पहली शताब्दी का इतिहासकार, लूका, मेडिकल डॉक्टर, नासरत के यीशु की वंशावली का कदम–ब–कदम, नाम–ब–नाम, चार हजार वर्ष के इतिहास के दौरान पहिले पुरुष तक पता लगा सका। चूँकि बाइबल मानव अस्तित्व के प्रारम्भ तक जाती है, यह हमें बता सकती है कि दुष्टता के लिये किसे दोष दिया जाना चाहिए, कि क्यों परमेश्वर ने उसे अनुमति दी, और किस रीति से इसे ठीक किया जायेगा।
क्या परमेश्वर का दोष है?
७. जब गलती की जाती है, किसे दोष दिया जाना चाहिए?
७ अगर किसी और व्यक्ति ने अपराध किया, आप कैसा महसूस करेंगे अगर आपको इसके लिये दोषी ठहराया जाय? इसे आप बहुत अन्याय मानेंगे। न्याय इसकी माँग करती है कि दोषी को दण्ड दिया जाय और निर्दोष को दोष से मुक्त किया जाय। यदि एक मोटर गाडी चलाने वाला एक व्यस्त चौक में रूकने के संकेत के चिन्ह पर ध्यान नहीं देता है और इसके नतीजे में एक बुरी दुर्घटना का शिकार होता है, यह कानून का दोष नहीं है। यदि एक व्यक्ति पेटू बन जाता है और हद से ज्यादा खाने के कारण बीमार पड़ जाता हैं, यह किसान का दोष नहीं है जो भोजन पैदा करता है। यदि अच्छी तरह पालन–पोषण करने के बावजूद भी, एक जवान व्यक्ति घर छोड़ देता है, अपने पिता की अच्छे सलाहों पर ध्यान नहीं देता है और कठिनाइयों में फंस जाता हैं, यह पिता का दोष नहीं है। तब क्यों स्वर्गीय पिता, परमेश्वर, को हम दोष देंगे जब मानवजाति गलती करती हैं? क्या दोष उस पर नहीं रखा जाना चाहिए जो इसका हकदार है—दोषी व्यक्ति पर?
८. यदि हम परमेश्वर को बुराई के लिये दोष देते हैं कौनसी प्रतिकूलता सामने आती हैं?
८ साथ ही साथ, कुछ और है जिस पर विचार करना चाहिए। यदि हम परमेश्वर को इन चीजों के बारे में दोष देंगे जैसे कि आहार की कमी होने के कारण भूख, किसे हम तब उत्पादी खेतों और फलों के बागो के लिये श्रेय देंगे जो इतनी अधिक मात्रा में अन्य देशों में अन्न उत्पादन करते हैं? यदि हम बीमारी के लिये परमेश्वर को दोष देंगे, किसे हम शरीर के अद्भुत लाभकर व्यवस्थाएँ के लिए श्रेय देंगे? यदि हम शहर के गंदी बस्ती के लिये परमेश्वर को दोष देंगे, किसे हम महान पर्बतों, साफ तालाबों, मन को हर्षित करने वाले फूलों और खूबसूरत पेड़ों के लिये श्रेय देंगे? स्पष्ट रूप से, यदि हम परमेश्वर को संसार की तकलीफों के लिये दोष देंगे और तब पृथ्वी पर की अच्छी चीजों के लिये उसे श्रेय देंगे, यह एक विरोध विचार है। एक प्रेममय परमेश्वर अच्छे और बुरे दोनों को एक ही समय में बढ़ाने नहीं देगा।
९. क्या यह कहना तर्क संगत है कि परमेश्वर अस्तित्व में नहीं है क्योंकि मनुष्य गलत काम करते हैं? (यशायाह ४५:१८)
९ यह कहना कि परमेश्वर अस्तित्व में नहीं है समस्या को बहुत ख़राब बना देता है। यह विश्वास करना कि पृथ्वी और इसमें जीवन के अद्र्भित रूप बस ऐसे ही हो गये तथ्य को अवहेलना करना है। सत्य यह है कि पृथ्वी किसी भी घर से जीवन धारण रखने के लिये अच्छी तरह से तैयार की गयी है, फिर भी हरेक घर का एक बुद्धिमान रचना करनेवाला और बनाने वाला है। तब इस ग्रह के बारे में क्या कहें जिसमें जीवन को धारण रखने वाला प्रणाली के लिये हवा, जमीन और पानी का और भी महान प्रबन्ध हैं? बाइबल तर्कसंगत रूप से कहती है: “हर एक घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, पर जिसने सब कुछ बनाया वह परमेश्वर है।” (इब्रानियों ३:४) सत्य है, कि कुछ लोग यह अनुमान करते हैं कि यदि मानव बुरा काम करते हैं इसका अर्थ हुआ कि परमेश्वर अस्तित्व में नहीं है। किन्तु, यह इस प्रकार कहना होगा कि क्योंकि घरों में रहने वाले लोग बुरे काम करते हैं इसलिये घरों का कोई रचना करनेवाला या बनाने वाला नहीं है। यह इस प्रकार भी कहना होगा कि क्योंकि एक व्यक्ति बुरा काम करता है इसलिए उसका कोई पिता भी नहीं था।
१०. दुष्टता के प्रति अधिकतर दोष किसे दिया जाना चाहिए?
१० किसे तब उन भयानक चीजों के लिये जो मानव परिवार के साथ घटित हुई हैं दोष दिया जाना चाहिए? अधिकतर दोष खुद लोगों पर ही लादा जाना चाहिए। मानवीय बेईमानी और नैराश्य अपराधों का कारण होते हैं। मानवीय घमण्ड और स्वार्थ टूटे–फूटे विवाहों, घृणाओं और जातीय
पक्षपात का कारण होते हैं। मानवीय भूल और लापरवाही दूषित वातावरण और गंदगी का कारण होती हैं। मानवीय अभिमान और मूर्खता युद्धों का कारण बनती है; और पूरे राष्ट्र जब अंधों के समान इन राजनीतिक नेताओं का अनुसरण कर उन युद्धों में भाग लेते हैं, तब उन्हें दुःखों के लिये दोष का भागीदार होना चाहिए। भूख और गरीबी प्राथमिक रूप से मानव उपेक्षा और लोभ का कारण हैं। ध्यान दीजिए: संसार युद्ध–सामग्री के लिये २०० अरब डॉलर से ज्यादा प्रत्येक वर्ष खर्च करता है। यदि यह सभी पैदावार और समान रूप से भोजन के बँटवारे और खराब आवास को खत्म करने के लिये उचित रीति से व्यवहार किया जाय, सोचिए क्या कुछ किया जा सकता है!११. चूँकि पादरी लोग अपने राष्ट्र की सेनाओं के लिये प्रार्थना करते हैं, क्या उन युद्धों के लिये परमेश्वर को दोष दिया जाना चाहिए जो उन सेनाओं द्वारा लड़े जाते हैं? (यशायाह १:१५; नीतिवचन २८:९)
११ न ही परमेश्वर को उन बुराइयों के लिये दोष दिया यूहन्ना १३:३४, ३५) अगर उनमें यह प्रेम नहीं हैं, तब परमेश्वर कहता हैं कि वे “कैन के समान [है] . . . जो उस दुष्ट से था, और जिसने अपने भाई को घात किया।” (१ यूहन्ना ३:१०-१२) परमेश्वर के नाम से लोगों की हत्या करना, चाहे धार्मिक न्यायालय में या युद्धों में, झूठे देवताओं को बच्चों का बलिदान देने की प्राचीन रीति के समान है, एक बात जिसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है कि उसने ‘जिसकी आज्ञा कभी न दी और न उसके हृदय में वह कभी आया।’—यिर्मयाह ७:३१.
जा सकता है जो धर्म के नाम पर की जाती हैं। उदाहरण के लिये, पादरी लोग उनके राष्ट्रों के युद्धों पर परमेश्वर की आशिष के लिये प्रार्थना करते हैं। फिर भी अक्सर, हालाँकि एक दूसरे के विरोध होते हुए, सैनिक एक दूसरे की हफ़ा करते हैं जो एकही धर्म के हैं! परमेश्वर को उसके लिये दोष नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि जो वे करते हैं उसके लिये उन्हें वह खंडन करता है यह कहते हुए कि वे जो वास्तव में उसकी सेवा करते हैं ‘आपस में प्रेम रखते हैं।’ (१२. क्यों धर्म के पादरी लोगों को बाइबल में “कपटी” कहा गया है? (मत्ती १५:७-९)
१२ पादरी लोगों का राजनीतिक हस्तक्षेप, युद्धों का समर्थन, और झूठी शिक्षाओं जैसे कि परमेश्वर संसार के दुखों के लिये उत्तरदायी है, या वह सदाकाल के लिये लोगों को एक वास्तविक नरक की आग में जलाता है, विचारवान व्यक्तियों और परमेश्वर के प्रतिकूल है। धर्म नेता जो परमेश्वर के विरोध में इन चीजों की शिक्षा देते और प्रचलित करते हैं परमेश्वर के वचन में “कपटी” कहलाते है, जो उन्हें साथ ही साथ कहता है: “तुम चूना फिरी हुई कब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुन्दर दिखाई देती हैं, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी हैं। इसी रीति से तुम भी ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो, परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए हो।” (मत्ती २३:२७, २८) वास्तव में कपटी धर्मनेताओं के बारें में यीशु ने कहा: “तुम अपने पिता इब्लीस से हो।”—यूहन्ना ८:४४.
१३. (अ) सो क्या परमेश्वर को दोष दिया जाय जब मनुष्य, इतना कि धर्म–नेता, गलती करते हैं? (ब) तथापि, कौन से प्रश्न अब भी पूछे जा सकते हैं?
१३ नहीं, परमेश्वर को उन गलतियों के लिये दोष नहीं दिया जा सकता
है जो मानव स्वयं करते हैं। और उसे उन गलतियों के लिये दोष नहीं दिया जा सकता जिन्हें पादरीं लोगों के द्वारा आशीष दी गयी जो परमेश्वर की सेवा करने का दावा करते हैं जो न सत्य बोलते हैं और न उसका व्यवहार करते हैं। खैर, तब क्या परमेश्वर ने जिस रीति से मानवजाति को बनाया उसमे क्या कुछ दोष था? क्या उसने मानवजाती को एक ख़राब शुरूआत दी?एक खरी शुरूआत
१४. परमेश्वर ने हमारे प्रथम माता–पिता को जो आरम्भ दिया उसका वर्णन करें। (उत्पत्ति १:२६-३१; २:७-९, १५)
१४ जब एक व्यक्ति उत्पत्ति की पुस्तक के प्रथम दो अध्यायों को पढ़ता है, यह एकदम स्पष्ट हो जाता है कि जब परमेश्वर ने पुरुष और स्त्री की सृष्टि की उसने उन्हें एक खरी शुरूआत दी थी। उसने उन्हें सिद्ध शरीरों और मन के साथ सृष्टि किया था, ताकि बीमारी और मृत्यु उनको कभी पीड़ा नहीं पहुंचाये। उनका घर एक सुन्दर, आनन्ददायक फूलों, हरी–भरी सब्ज़ियों और फल पैदा करने वाले पेड़ों का एक पार्क जैसे बाटिका था। उसमें किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी। इसके विपरीत, वर्हां बहुतायत थी। साथ ही साथ, परमेश्वर ने हमारे प्रथम माता–पिता के सामने दिलचस्प काम और उत्तेजक लक्ष्य रखा। उसने उन्हें निर्देश दिया कि उस परादीस के पार्क जैसी अवस्थाओं को सारी पृथ्वी पर फैलायें। समय पर उन्हें इस में सिद्ध बच्चों की सहायता प्राप्त होती जिन्हें वे पैदा करते। इस रीति से, अन्त में मानवजाति को लोगों की एक सिद्ध जाति होनी थी, एक पार्थिव परादीस के अधिकारी होते हुए, सदाकाल तक जीवन का आनन्द उठाती और जानवरों को भी अपने प्रेमपूर्ण अधिकार में रखते हुए।
१५. मानव सिद्धता का क्या अर्थ है, और इसका क्या अर्थ नहीं है?
१५ परन्तु क्यों बातें इतनी आपत्तिजनक हो गयीं? क्या यह इस कारण हुई कि परमेश्वर ने मानवजाति को वास्तव में सिद्ध रूप से सृष्टि नहीं की? नहीं, वह बात नहीं है, क्योंकि व्यवस्थाविवरण ३२:४ परमेश्वर के बारे में कहता है: “उसका काम खरा है।” किन्तु, मानव सिद्धता का यह अर्थ नहीं कि पहला मानव जोड़ा सब कुछ जानता था, या सभी कुछ कर सकता था, या जो गलत है उसे नहीं कर सकता था। सिद्ध जीवनधारियों की भी सीमायें हैं। उदाहरण के लिये, शारिरिक सीमांए थीं। यदि वे भोजन नहीं करते, पानी नहीं पीते, या श्वास नहीं लेते तो वे मर जाते। न ही वे इस प्रकार की चीजें कर सकते थे कि गुरूत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन करके एक ऊँची जगह से कूद जायें और आशा करें कि उन्हें चोट नहीं लगे। साथ ही साथ उनकी मानसिक सीमाएं थीं। प्रकट रूप से, आदम और हव्वा को बहुत सी बातें सीखनी थी, क्योंकि उनका कोई अनुभव नहीं था। लेकिन चाहे जितना भी वे सीखे होते, वे अपने सृष्टिकर्ता के बराबर कभी नहीं जान सकते थे। इसलिए, हालाँकि सिद्ध थे, वे मानव लोक में होने के कारण सीमाबद्ध थे। सिद्धता का केवल यह अर्थ था कि वे पूर्ण थे, कि उनकी शारिरिक और मानसिक बनावट में कोई दोष नहीं था।
१६. किन सीमाओं के अधीन मानव स्वतंत्रता को सबसे अच्छी तरह चलने के लिये बनाया गया? (१ पतरस २:१६)
१६ साथ ही साथ, परमेश्वर ने मनुष्यों को स्वतंत्र नैतिक विचार का कार्यकर्ता कर के सृष्टि की, किसी सहज ज्ञान के द्वारा प्रदर्शन न किये जाने के लिये, जैसा कि जानवर हैं। और निश्चय ही आप इस प्रकार की स्वतंत्रता का मूल्याँकन करेंगे। आप नहीं चाहेंगें कि आपके जीवन के हर मिनट में आपको कोई हमेशा आज्ञा देता रहे कि आपको क्या करना चाहिए। किन्तु, वह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं थी, अर्थात, बिना सीमा के, परन्तु सापेक्षिक होनी थी। इसका परमेश्वर के कानूनों की सीमाओं के अन्दर ही व्यवहार किया जाना था। वे अच्छे कानून थोड़े और सरल थे, पूरे मानव परिवार की सबसे ज्यादा खुशी को मन में रखते हुए बनाये गये थे। मानवजाति के प्रति परमेश्वर का प्रेम इस माँग को लेकर प्रकट किया गया कि वे उसके कानून का पालन करे, क्योंकि वह जानता था कि उन कानूनों के प्रति आदर उनको कभी न समाप्त होने वाले लाभ देगा। परमेश्वर और उसके कानूनों के प्रति अनादर उनकी खुशी में हस्तक्षेप करेगा। यह कोई भी भलाई को उत्पन्न नहीं करेगा। वास्तव में, यह निश्चित आपत्ति को पैदा करेगा, क्योंकि परमेश्वर ने आदम और हव्वा को चेतावनी दी कि यदि वे उसे त्यागेंगे तब वे “अवश्य मर” जाएंगे। (उत्पत्ति २:१७) अतः जीवित रहने के लिये, उन्हें केवल भोजन खाने, पानी पीने और निश्वास लेनें की जरूरत नहीं थी, परन्तु परमेश्वर और उसके कानूनों के द्वारा मार्गदर्शित किये जाने की जरूरत थी।
१७. कौन सा और परमावश्यक कारण है जिसके लिये मनुष्यों को परमेश्वर पर निर्भर होने की जरूरत है? (भजन संहिता १४६:३; यिर्मयाह १७:५-९)
१७ एक और निर्णायक कारण है कि क्यों हमारे प्रथम माता–पिता को परमेश्वर पर निर्भर रहने की जरूरत थी। कारण है कि मनुष्यों की इस रीति से सृष्टि नहीं की गयी कि परमेश्वर से स्वतंत्र रहकर अपनी मामलों को सफलता पूर्वक संचालन कर सकें। परमेश्वर ने उन्हें वैसा करने का अधिकार या योग्यता नहीं दी थी। जैसा कि बाइबल कहती है: “मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं है।” (यिर्मयाह १०:२३) इसी लिये बाइबल सूचित करती है: “जो अपने ऊपर भरोसा रखता है, वह मूर्ख है।”—नीतिवचन २८:२६.
किस रीति से दुष्टता आरम्भ हुई?
१८. हमारे प्रथम माता–पिता द्वारा क्या गड़बड़ी हुई? (याकूब १:१४, १५; भजन संहिता ३६:९)
१८ इतने अच्छे आरम्भ के होते हुए भी क्या गड़बड़ हो गया? यह हुआ: हमारे प्रथम माता–पिता, आदम और हव्वा ने, चुनाव की स्वतंत्रता का गलत रूप से व्यवहार किया। उन्होने निर्णय किया कि वे अपनी इच्छाओं पर चलेंगे इसके बजाय कि परमेश्वर के शासन के आधीन हो। वास्तव में, स्त्री ने उत्पत्ति ३:५) वे क्या भला है और क्या बुरा है खुद निर्णय करना चाहते थे, अपने विचारों पर भरोसा करते हुए। उन्होंने उस बहुत बड़े नुकसान पर दृष्टि नहीं की जो इस प्रकार के विचार से परिणामित होती। परन्तु वही हुआ, क्योंकि ‘परमेश्वर झूठ नहीं बोल सकता।’ (तीतुस १:२) जब उन्होंनें परमेश्वर के शासकपन से अपने आपको अलग कर लिया, जो परिणामित हुआ वह है, विस्तृत अर्थ में, उस के मुताबिक, जब आप एक बिजली के पँखे का प्लग निकाल लेते हैं। इसको चलाने वाली शक्ति से अलग हो जाने के कारण, पँखा धीमा हो जाता है और अन्त में एकदम बन्द हो जाता है। ठीक इसी रीति से, जब प्रथम मानव जोड़े ने अपने आप को जीवन के सोते, यहोवा परमेश्वर से अलग कर लिया, अन्त में उनकी अवनति हुई और वे मर गये, जैसा कि परमेश्वर ने उन्हें चितावनी दी थी कि उनको होगा।
सोचा कि वे “भले और बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो” जायेंगे। (१९. क्यों पूर्ण मानव जाति जन्म से असिद्ध है? (रोमियों ५:१२)
१९ चूँकि हमारे प्रथम माता–पिता ने इसके पहले कि उनकी कोई सन्तान हो विद्रोह किया, उनके प्रथम बच्चे के पैदा होने से पहले असिद्धता आरम्भ हो चुकी थी। आदम और हव्वा एक दोषयुक्त ढाँचा बन गये। सभी चीजें भी जो उनसे पैदा हुईं दोषयुक्त थीं। वे अपने बच्चों को केवल वही दे सकते थे जो उनके पास अभी था—असिद्ध शरीर और मन। वे और कभी भी सिद्ध नहीं रहे क्योंकि उन्होंने अपने आप को उस स्रोत, यहोवा परमेश्वर से अलग कर लिया जो सिद्धता और जीवन को धारण रखता है। सो बाइबल जो कुछ रोमियों ५:१२ में कहती है उसके अनुसार, हरेक व्यक्ति ने जो उस समय से पैदा हुआ असिद्धता में जन्म लिया, और वह बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु के उन्मुख हैं। परन्तु परमेश्वर को इसके लिये दोष नहीं दिया जा सकता है। व्यवस्थाविवरण ३२:५ कहता है: “लोग टेढ़े और तिरछे हैं; ये बिगड़ गए, ये उसके पुत्र नहीं; यह उनका कलंक है।” और सभोपदेशक ७:२९ कहता है: “परमेश्वर ने मनुष्य को सीधा बनाया, परन्तु उन्हों ने बहुत सी युक्तियाँ निकाली हैं।”
२०. क्यों थोड़े से लोगों की गलतियाँ बहुत से लोगों के नुकसान में परिणित हो सकती हैं?
२० लेकिन क्या यह विचारनीय है कि केवल दो व्यक्तियों की अनाज्ञाकारिता हरेक जन के लिये इतने दुःखदायी परिणामों को लायी? हम जानते हैं कि एक इमारत की बनावट में एक व्यक्ति द्वारा एक छोटी सुरक्षा के पहलू के सम्बन्ध में मानवीय असावधानी उस भयंकर आपत्ति में परिणामित हो सकती हैं जिसमें बहुत लोगों की जान जा सकती है। इसी प्रकार के लक्षण का एक बाँध में ध्यान न दिया जाना इसके टूटने का और बाढ़ का कारण हो सकता जो बहुत ज्यादा विनाशकारी होगा। एक शासक द्वारा बुराई को एक बार किया जाना एक सरकार में बुराईयों की एक प्रतिक्रिया की श्रृंखला को आरम्भ कर सकती है जो लाखों लोगो के नुकसान की ओर अगुवाई करेगी। एक परिवार में, जब एक पिता और एक माता गलत चुनाव करते हैं, उनके बच्चे गम्भीर परिणामों से पीड़ित हो सकते हैं। हमारे प्रथम माता–पिता ने गलत चुनाव किया। उसके परिणाम में, पूरा मानव परिवार असिद्धता और भयंकर आपत्ति में प्रवेश कर गया।
२१. क्यों परमेश्वर मृत्यु दण्ड को थामे रहा, और फिर भी किस रीति से उसकी दया दिखायी गयी?
२१ चूँकि परमेश्वर का कानून शामिल था, और उसकी खराई भी, वह उस उल्लँघन को बिना उस कानून पर जोर दिये ऐसे ही जाने नहीं दे सकता था। उसके प्रति उसके कानूनों के प्रति लोग क्या आदर रखेंगे यदि उसने इसके लिये कुछ भी नहीं किया? क्या हम उन शासकों का आदर करते हैं जो अपने कानूनों का पालन नहीं करते, या वे लोग कुछ लोगों को बिना कोइ दण्ड देकर जान बूझकर तोड़ने की अनुमति देते हैं? इसलिये परमेश्वर ने अनाज्ञाकारिता के प्रति अपने कहे गये दण्ड को पूरा किया, जो मृत्यु था। लेकिन दयापूर्वक उसने पहले जोडे को सन्तान उत्पन्न करने दिया, जिसका हमें मूल्याँकन करना चाहिए, नहीं तो हम कभी भी पैदा नहीं हुए होते। और हालाँकि आदाम और हव्वा के अपराध के कारण हम असिद्ध हैं क्या हम नहीं चाहते हैं कि मरने के बजाय हम जीवित रहें?
२२. और कौन दुष्टता के लिये एक बहुत मात्रा में उत्तरदायी है? (मत्ती ४:१-११; इफिसियों ६:१२)
२२ तो क्या हम यह कहेंगे कि दुष्टता पूर्ण रूप से मनुष्यों से शुरू हुई? नहीं, इसमें और भी कुछ है। परमेश्वर द्वारा बुद्धिमान जीवधारियों को उत्पन्न करना मनुष्यों तक सीमित नहीं था। पहले ही से वह अनगिनत बुद्धिमान पुत्रों, आत्मिक जीवधारियों को स्वर्ग में सृष्टि कर चुका था। जब कि वे भी स्वतंत्र नैतिक विचार के कार्यकर्ता थे, उन्हें भी जीवित रहने के लिये परमेश्वर के अच्छे और विचारनीय कानूनों के अधीन होना था। किन्तु, इन आत्मिक जीवधारियों में से एक ने गलत विचारों पर मन लगाया। और जब एक व्यक्ति जो गलत हैं उस पर मनन करता है, वह उतनी दूर तक बढ़ सकता उत्पत्ति ३:४) उसने सृष्टिकर्ता पर लगातार चलने वाले जीवन और खुशी के लिये निर्भर रहने की आवश्यकता पर प्रश्न उठाया। वास्तव में उन्होंने उनको बताया कि अनाज्ञाकारिता उनके लिये बातों को और भी उन्नत कर देगा, उनको परमेश्वर के समान बन जाने का कारण हो सकता है। इस रीति से उसनें परमेश्वर की सत्यता पर प्रश्न उठाया। और परमेश्वर के कानूनों पर प्रश्न उठाकर, उसने परमेश्वर के शासन करने के तरीके पर सन्देह पैदा किया—वास्तव में, परमेश्वर के शासन करने के अधिकार पर। इसी कारण से वह शैतान कहलाया गया, जिसका अर्थ है विरोधी, और इबलीस, जिसका अर्थ है झूठा कलंक लगाने वाला।
है जहाँ वह उस गलत चीज को कर बैठता है जिसके बारे में वह सोच रहा है। वैसा ही इस आत्मिक जीवधारी के साथ हुआ। उसने अभिलाषा को उतनी दूर तक बढ़ाया कि इसने उसे परमेश्वर की कार्यवाई को चुनौती देने के लिये उसकाया। उसने आदम की पत्नी हव्वा से कहा, कि वे परमेश्वर की आज्ञा तोड़ सकते थे और फिर भी, उसने कहा, “तुम निश्चय न मरोगे।” (क्यों इसे इतने दिनों तक जारी रहने दिया गया
२३, २४. क्यों वाद–विषय का सुलह होने में समय लगता है?
२३ क्योंकि परमेश्वर इतना अधिक शक्तिशाली है, कि वह आसानी से इन मानव और आत्मिक विद्रोहियों को आरम्भ ही में नाश कर सकता था। परन्तु यह बातों का संतोषजनक रीति से सुलह नहीं किया होता। क्यों नहीं? क्योंकि यहाँ परमेश्वर की शक्ति को चुनौती नहीं दी गयी। जो वाद–विषय खड़े किये गये वे नैतिक थे। और उनमें सबसे परमावश्यक वाद–विषय यह था: क्या विद्रोह का तरीका सफल प्रमाणित होगा? क्या शासनपन जो परमेश्वर की उपेक्षा करता है पुरे मानव परिवार के प्रति हमेशा के लिये लाभ दे सकता है? क्या लोगों पर परमेश्वर का शासकपन उनके लिये अच्छा होगा, या मनुष्य का शासकपन उससे अच्छा होगा? परमेश्वर अपनी बुद्धी द्वारा, जानता था कि यह, और दूसरे मुख्य वाद–विषय जो खडे किये गये, ठीक करने में समय लेंगे। अतः उसने एक निश्चित अवधि की अनुमति दी जो मनुष्यों को काफी मौका देगी,
कि अपने राजनीतिक, सामाजिक, उद्योग सम्बन्धी और वैज्ञानिक सम्बन्धी कार्यों के शिखर पर पहुँच जायें।२४ वह अवधि का अन्तराल केवल कुछ दिनों या कुछ वर्षों का नहीं हो सकता था। यह बहुत सी पीढ़ियों को लेगा ताकि उत्तर को बिना किसी उचित सन्देह के प्रदर्शित किया जाय। न्यायालय के मुकदमों में कभी हफ्तों या महीनों लग सकते हैं जहाँ केवल दो व्यक्ति अन्तर्ग्रस्त हैं। परमेश्वर के शासकपन के सम्बन्ध में महान वाद–विषय जो संदेह में है पूर्ण उत्तर की माँग करता है, एक अपूर्ण निपटाए नहीं। इस रीति से इन वाद–विषयों का तय किये जाने से फिर कभी भी भविष्य में किसी समय और दोहराने की आवश्यकता नहीं होगी। एक प्रेममय परमेश्वर पूर्ण रूप से निपटारे के सिवा और कुछ कम की आशा नहीं करेगा। और हम खुश हो सकते हैं कि यह वैसा है, क्योंकि इस प्रकार का एक निपटाए खत्म न होने वाली शान्ति और सुरक्षा का परमेश्वर के विश्व–मंडलीय परिवार के लिये रास्ता खोल सकता है, स्वर्ग में और पृथ्वी पर।
२५. भौतिक उन्नति के बावजूद भी, क्या मनुष्यों का परमेश्वर से स्वतंत्र होना सच्ची शान्ति और खुशी लाया है?
२५ लगभग ६,००० वर्ष बीत चुके हैं जबसे ये वाद–विषय प्रथम खड़े
किये गये। परमेश्वर के शासन से स्वतंत्र रहने का क्या नतीजा हुआ है? सभी प्रकार की सरकार, सभी प्रकार के समाजिक प्रबन्ध, सभी प्रकार की आर्थिक रीतियों और सभी प्रकार के साम्प्रदायिक धर्मों का व्यवहार किया गया है। परन्तु कोई भी चीज़ सच्ची शान्ति, सुरक्षा, हमेशा रहनेवाला स्वास्थ और खुशी नहीं लायी। क्या कोई भौतिक उन्नति के बारे में दावा कर सकता है जबकि केवल दूसरे विश्व युद्ध ने पाँच करोड़ लोगों की जान ले ली? क्या यह उन्नति है कि मनुष्य को चन्द्रमा में भेजें, जबकि वही रॉकेट न्यूक्लियर विस्फोटक पदार्थ के साथ मानवजाति को सम्पूर्ण विनाश कर सकते हैं, और जब सैकड़ों लाखों लोग पृथ्वी पर भूख और गरीबी से उसी समय पीड़त थे जब मनुष्य चन्द्रमा पर चलते थे? इसमें क्या फायदा है कि एक घर हर प्रकार की सुविधाओं से भरा हो जब परिवार के लोग बहस के कारण अलग अलग हो जाते है, जब कि विवाह–विच्छेद की संख्या नियमित रूप से बढ़ती जाती हैं, जब पड़ोस में अपराध का भय फैलता है, जब प्रदूषण और अधिक भीड़ का गन्दा पड़ोस बढ़ता है, जहाँ आर्थिक मंदी लाखों लोगों को नौकरी से निकाल देती है, जब दंगा, गृह युद्ध और सरकारों का पलटना वार्षिक रूप से घटित होता है जो मनुष्य के घर और जीने के तरीके को खतरे में डाल देता है?२६. जो समय अनुमति में दिया गया मनुष्य का परमेश्वर से स्वतंत्र होने के बारे में क्या प्रकट किया है? (भजन संहिता १२७:१)
२६ सच्चाई वही है जैसा कि यूनाइटेड नेशन्स के सेक्रटरी–जनरल कर्ट वॉल्डहैम ने स्वीकार किया: “भौतिक उन्नति के होते हुए भी, मानव जीवन को असुरक्षा का इस से बड़ा अनुभव कभी नहीं हुआ था जैसा कि यह आज अनुभव कर रहा है।” * पुस्तक ऍनवाइरनमेन्टल एथिक्स भी कहती है: “मनुष्य को साफ हवा साँस द्वारा लेने, शुद्ध जल को पीने और आनन्द उठाने, और अपने प्राकृतिक वातावरण के अद्र्भित बातों का आनन्द उठाने के लिये सृजा गया, उसने अपने वातावरण को बदल दिया और पाता है कि वह इसके अनुकूल नहीं हो सकता। वह खुद अपना अधिक परिणाम में घात के लिये तैयारी कर रहा है।” * वास्तव में दुष्टता को बहुत दिनों के लिये अनुमति देना सभी विचारनीय व्यक्तियों को प्रदर्शित करना चाहिए कि मनुष्यों को इस योग्यता के साथ सृजा नहीं गया है कि परमेश्वर के प्रदर्शन के बिना सफलता पूर्वक अपने मामलों को चला सके। और छः हज़ार वर्षों की मानव असफलता के प्रमाण के साथ, कभी भी परमेश्वर को कोई यह आरोप नहीं लगा सकता कि उसने मनुष्यों को अनुभव करने के लिये काफी समय नहीं दिया। दिया गया समय यह प्रमाणित करने के लिये काफी रहा है कि परमेश्वर के विरोध में विद्रोह करने का तरीका एक पूर्ण विनाश रहा है।
दुष्टता का शीघ्र अन्त होना है
२७. कितनी बड़ी बदलाहट का परमेश्वर ने उद्देश्य रखा है? (नीतिवचन २:२१, २२; रोमियों १६:२०)
२७ मानव परिवार की भलाई के लिये एक तीव्र बदलाहट की आवश्यकता है। वास्तव में, हमें एक पूर्ण नये रीति–रिवाज़ की जरूरत है। जैसा कि समाज शास्त्री एरिक फ्रोम ने स्वीकार किया, कि समाज की बुराईयाँ ठीक की जा सकती हैं “केवल यदि पूरी रीति को जैसा कि यह ६,००० वर्षों के इतिहास के दौरान अस्तित्व में थी हटाकर एक मौलिक रूप में अन्य किसी को इसकी जगह रखी जा सके।” * ठीक यह वह चीज़ है जो परमेश्वर के मन में हैं! जब उसकी नियुक्त की गयी अवधि समाप्त हो जाती है, परमेश्वर ने गारन्टी दी है कि वह पूरे वर्तमान दुष्ट रीति–रिवाज को उनके साथ जो इसे पसन्द करते हैं नाश कर अस्तित्व से मिटा देगा। वह “सब दुष्टों को सत्यानाश” करेगा।—भजन संहिता १४५:२०.
२८. हम जिस समय में जीते हैं उसे बाइबल क्या कहती है, और क्यों? (२ तिमुथियुस ३:१-५, १२ १३; मत्ती २४:३-१४)
२८ यह कब होगा? बहुत जल्द, क्योंकि परमेश्वर का वचन प्रकट करता है कि अद्वितीय कठिनाईयाँ जो १९१४ से जब से पहला विश्वयुद्ध आरम्भ हुआ मानवजाति पर आयी हैं एक चिन्ह बनाती हैं, यह पहचान दिखाते हुए जिसे बाइबल कहती है “अन्तिम दिनों।” वाइबल ने भविष्यद्वाणी
की कि इन “अन्तिम दिनों” में विश्वयुद्ध, वहुत बढ़ते हुए अपराध, भूख, संक्रामक रोग, अधिकतर लोगों द्वारा मर्यादाहीन विलास खोजना, परमेश्वर पर विश्वास करने से दूर होना, धर्म का कपट और पतन, और बहुत सी दूसरी घटनाएं घटित होंगी। यह एक अँगुली की छाप की रेखाओं के छाप के समान होंगी, हमारी पीढ़ी को निश्चयता से पहचानते हुए कि एक अन्तिम पीढ़ी हैं जिसमें परमेश्वर इस प्रकार की भयंकर अवस्थाओं को सहन करेगा। यीशु ने भविष्यद्वाणी की कि हमारा समय ही वास्तव में इस रीति–रिवाज के अन्त को देखेगा जो इस पृथ्वी पर अधिकार करता है।२९. किस तरह से हम जानते हैं कि इस रीती का अन्त निकट है?
२९ यीशु ने साथ ही साथ उस पीढ़ी के लोगों के बारे में कहा जिन्होंने १९१४ में “अन्तिम दिनों” के आरम्भ को देखा: “मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।” (मत्ती २४:३४) इसका मतलब है कि कुछ लोग जो १९१४ में जब प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हुआ जीवित थे वे इस वर्तमान रीति–रिवाज के अन्त को देखने के लिये जीवित रहेंगे। वह प्रथम विश्व युद्ध की पीढ़ी अब बहुत बूढ़ी हो रही है, और यह दृढ़ प्रमाण है कि दुष्टता का अन्त तेजी से नज़दीक आ रहा है।
३०. हर उन मानव शासन की राज्य शासन रीती का क्या होगा जो पृथ्वी पर अभी अधिकार कर रहे हैं? (सपन्याह ३:८; यशायाह १:२८)
३० जब अन्त आयेगा, तब परमेश्वर अपनी शक्तिशाली सामर्थ को दिखायेगा और मनुष्यों के मामलों में प्रत्यक्षतः हस्तक्षेप करेगा। सभी मानवीय रीति जो उसके विरोध में हैं चूर चूर कर दी जायेंगी। दानिएल २ अध्याय ४४ पद की भविष्यद्वाणी, इसके बारे में कहती है: “उन
राजाओं के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर एक राज्य स्थापित करेगा जो कभी भी नाश नहीं होगा, न उसका प्रभुत्व दूसरे लोगों के हाथ में किया जाएगा। वह इन सब राज्यों को चूर चूर करेगा और उनका अन्त कर डालेगा, और वह सदा स्थिर रहेगा।” (रिवाइज्ड़ स्टैंडर्ड वर्ज़न) सभी नुकसान पहूँचाने वाली मानव रीति को रास्ते से हटा देने के साथ, पृथ्वी पर परमेश्वर का शासन पूर्ण नियंत्रण करेगा।३१. सारी मानवजाति के लिये परमेश्वर कौन सी सरकार का प्रबन्ध करेगा? (मत्ती ६:९, १०)
३१ इसलिये, परमेश्वर के शासन को एक नयी सरकार के साथ व्यवहार किया जायेगा, एक स्वर्गीय सरकार, परमेश्वर का राज्य। यही वह सरकार है जिसे यीशु मसीह ने अपनी शिक्षा का मुख्य विषय बनाया। और उसने भविष्यद्वाणी की कि उचित समय पर केवल यही सारे पृथ्वी का नियंत्रण करेगी। चूँकि राज्य स्वर्ग से शासन करेगा, परमेश्वर द्वारा निर्देशित होगा, कोई भी ऐसा मौका नहीं होगा कि यह स्वार्थी मनुष्यों के द्वारा बुराई से भर जाय। अतः शासन शक्ति वहीं होगी जहाँ पर यह सबसे पहले थी, स्वर्ग में, परमेश्वर के साथ। परमेश्वर का शासन पृथ्वी पर अधिकार रखने के साथ, उसका वादा है कि “जगत के रहनेवाले धर्म [धार्मिकता, NW] को” सीखेंगे। (यशायाह २६:९) न ही किसी झूठे धर्म द्वारा धोखा दिया जायगा, क्योंकि वहाँ कोई भी नहीं रहेगा। प्रत्येक रहनेवालों को परमेश्वर और उसके उद्देश्यों के बारे में सच्चाई सिखाई जायेगी, ताकि, पूर्ण रूप से “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।”—यशायाह ११:९.
एक धार्मिक नया प्रबन्ध
३२. परमेश्वर के राज्य के शासन के अधीन, कितनी दूर तक शान्ति होगी? (यशायाह २:२-४)
३२ परमेश्वर के राज्य के शासन के अधीन, एक पूर्ण रूप से नया मानव समाज का विकास होगा, एक समाज जो ईश्वर भक्त लोगों का बना होगा। इस नये प्रबन्ध में, हमारे लिये परमेश्वर की महान चिन्ता जो वह करता है उसके द्वारा प्रदर्शित किया जायगा। एक चीज़ और, युद्ध कभी भी मनुष्यों की शान्ति और खुशी को नष्ट नहीं करेगा। क्यों नहीं? क्योंकि भजन संहिता ४६:८, ९) वह शान्ति कितनी पूर्ण होगी? परमेश्वर का भविष्यद्वाणी रूपी वचन कहता है: “नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाऐगे।”—भजन संहिता ३७:११.
सभी लोग जो इस वर्तमान दुष्ट संसार के अन्त से बच निकलेंगे पहले ही से शान्ति के मार्ग की शिक्षा प्राप्त किये हुए होंगे, ताकि नये मानव समाज को एक शान्तिपूर्ण आरम्भ मिले। तब, सभी लोग जो उस नये प्रबन्ध में जीने आयेंगे परमेश्वर की इच्छा पूरी करने की उसी शिक्षा को प्राप्त करते रहेंगे। उसी कारण से बाइबल की प्रतिज्ञा निश्चय ही पूर्ण होगी कि परमेश्वर “पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है।” (३३. पृथ्वी पर कौनसी बदलाहट होगी?
३३ इसके साथ ही साथ, वे लोग जो नये प्रबन्ध में रहेंगे इस पृथ्वी को एक परादीस में बदलेंगे जिसका परमेश्वर ने आरम्भ में इसके लिये उद्देश्य भजन संहिता ६७:६; ७२:१६.
रखा था। मनुष्यजाति के लिये वह कितना सँतोषजनक काम होगा! और परादीस पूर्व अवस्था में लाने पर, लोग पूर्ण रूप से तालाबों, नदियों और समुद्रों; पहाड़ों, पर्वतों, तराईयों और घाटियों; सुन्दर फूलों, पौधों और पेड़ों; साथ ही साथ दिलचस्प जानवरों का आनन्द उठा सकेंगे। और न खाद्य पदार्थ में कमी होगी, क्योंकि “भूमि ने अपनी उपज दी है, परमेश्वर जो हमारा परमेश्वर है, उसने हमें आशीष दी है।” हाँ “देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्न होगा।”—३४. कौन सी शारीरिक चँगाइयाँ होंगी?
३४ हमेशा की शान्ति और अत्याधिक भोजन के साथ ही साथ बहुत सुन्दर स्वास्थ्य होगा। चूँकि परमेश्वर ने मनुष्य को सृजा, वह किसी भी डॉक्टर से अच्छी तरह जानता है कि ठीक क्या किया जाय कि लँगड़े–लूले चंगे हो जाय, अंधे देखने लगें और बहरे सुनने लगे, और किस रीती से सभी बीमारियों, बुढ़ापे और मृत्यु को अस्तित्व से मिटा दिया जाय। इसे करने के लिये परमेश्वर के सामर्थ को यीशु मसीह के द्वारा एक संकेत या छोटे पैमाने पर प्रदर्शित किया गया जब वह पृथ्वी पर था। बाइबल हमें कहती हैं: “भीड़ पर भीड़ लंगड़ो, अन्धों, गूंगों, टुंड़ों और बहुत औरों को लेकर उसके पास आए; और उन्हें उसके पावों पर डाल दिया, और उस ने उन्हें चंगा किया। सो जब लोगों ने देखा, कि गूंगे बोलते और टुण्ढ़े चंगे होते और लंगड़े चलते और अन्धे देखते हैं, तो अचम्भा” हुए।—३५, ३६. किस रीती से मरे हुए लोगों को परमेश्वर के नये प्रबन्ध में जीने का मौका दिया जायगा? ( यूहन्ना ५:२८, २९; लूका ७:११-१५)
३५ यीशु ने इस पार्थिव परादीस का निर्देशन दिया जब उसने उस पुरुष से कहा जो उसके साथ लटकाया गया था: “तू मेरे साथ परादीस में लूका २३:४३, न्यू.व.) परन्तु वह पुरूष मर गया। अतः वह कैसे परादीस में जाएगा? एक और अद्र्भित प्रबन्ध के द्वारा जो प्रकट करता है कि परमेश्वर कितनी अधिक चिन्ता करता है—मृतकों में से पुनरूत्थान द्वारा। बाइबल प्रेरितों के काम २४:१५ में कहती है: “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” जब पृथ्वी पर था, यीशु ने मृतकों को जिलाया यह दिखाने के लिए कि उसके राज्य के शासन के अधीन परमेश्वर को ऐसा करने का सामर्थ है।
होगा।” (३६ क्या आप पुनरुत्थान के विचार पर विश्वास करना कठिन पाते हैं? फिर अभी भी आप टेलिविज़न के कार्यक्रम में उन लोगों को देखते हैं जो बहुत पहले मर चुके हैं। आप उनकी आवाजें सुनते हैं, उनकी कार्यवाई को देखते हैं और उनके विशेष गुणों पर ध्यान देते हैं। यदि केवल मनुष्य टेलिविज़न के टेपों में इस प्रकार की चीजों को सुरक्षित रख सकते हैं, यह सर्व बुद्धिमान परमेश्वर के लिये कठिन नहीं होगा कि अपने स्मरण में प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तिगत और विशेष गुण की छाप बनायें रखे जिसे वह फिर से सृष्ट करना चाहता है। यह उसने किया है, और वह इस प्रकार के मृतकों को फिर से जीवन के लिए उठायेगा। इस रीति से, उन्हें भी परमेश्वर के नये प्रबन्ध में जीवन का आनन्द उठाने का मौका प्राप्त यशायाह २५:८) इस रीति से लोग सदा जीवित रह सकेंगे!
होगा। और कब्रों को खाली करने के द्वारा, और लोगों को वंशागत में प्राप्त बीमारी, बुढ़ापे और मृत्यु से चंगा करने के द्वारा परमेश्वर “मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा।” (३७. क्यों ऐसा कहा जा सकता है कि परमेश्वर किसी भी नुकसान से और भी ज्यादा पूरा करेगा जिसको लोगों ने अन्याय के द्वारा प्राप्त किया?
३७ अपने राज्य के द्वारा, परमेश्वर पूर्ण रूप से बुरी स्थितियों को बदल देगा जो इतने दिनों तक प्रबल रहीं! अनन्त काल तक वह हमारे लिये अपनी महान चिंता आशिषों की वर्षा करने के द्वारा प्रकट करेगा वह हर उन चोटों से अधिक ज्यादा होगा जिन्हें हमने भूतकाल में अनुभव किया था। पहले के कष्ट जिसका इस वर्तमान रीति में हमने अनुभव किया हमारे स्मरण में तब घूमिल हो जायगा, यदि हम उन्हें याद करना चाहेंगे। परमेश्वर की प्रतिज्ञा है कि: “मैं नया आकाश [सारी मानवजाति के ऊपर एक नयी स्वर्गीय सरकार] और नई पृथ्वी [एक धार्मिक मानव समाज] उत्पन्न करता हूँ; और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी। इसलिये जो मैं उत्पन्न करने पर हूँ, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो।” (यशायाह ६५:१७, १८) ठीक सामने इस प्रकार की महान आशीषों के साथ, आप देख सकते है क्यों बाइबल कहती है कि परमेश्वर “उन की आँखों से सब आंसू पोंछ डालेगा।” और क्यों नहीं? क्योंकि “मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रही।”—प्रकाशितवाक्य २१:४.
परमेश्वर चिन्ता करता है—क्या हम करते हैं?
३८. किस प्रकार के लोगों को परमेश्वर अपने नये प्रबन्ध में चाहता है? (भजन संहिता ३७:३७, ३८)
३८ यह तथ्य कि परमेश्वर जल्द दुष्टता का अन्त करेगा और एक अद्र्भित नये प्रबन्ध को आरम्भ करेगा प्रकट करता है कि वह वास्तव में हमारे बारे में चिन्ता करता है। परन्तु क्या हम उसके बारे में चिन्ता करते हैं? यदि है तो हमें उसे बताना चाहिए। परन्तु हमने क्या करना चाहिए? बाइबल कहती है: “संसार और उसकी अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, १ यूहन्ना २:१७) जिस प्रकार के लोगों को परमेश्वर अपने नये प्रबन्ध में चाहता है वे वे लोग हैं जो उसकी इच्छा पूरी करते हैं और उसके धार्मिक शासकपन के अधीन होते हैं। ये उस प्रकार के लोग है जो उसके कानूनों का पालन करेंगे और “नई पृथ्वी” को जीने के लिये एक अच्छी जगह बनाने में योगदान करेंगे। लोग जो परमेश्वर के शासन का विरोध करते हैं केवल तकलीफ पैदा करनेवाले होंगे, सो उन्हें वहाँ रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (३९. यदि आप अनन्त जीवन चाहते हैं, आप को कौन सी खोज करनी है? (नीतिवचन २:१-६)
३९ क्या आप परमेश्वर के नये प्रबन्ध में जीना चाहते हैं? तब सबसे पहला काम यह करना है कि जीवन के लिये परमेश्वर की मांगो को सीखें। क्या यह बहुत ज्यादा माँग है? यदि आप को एक पार्क जैसे वातावरण के साथ एक सुन्दर घर बिना किसी मूल्य के दिया जाय, क्या आप समय नहीं निकालेंगे कि पता लगायें कि आप किस रीति से योग्य बनें? परमेश्वर का वचन इससे और अधिक प्रदान करता है—एक परादीसीय पृथ्वी पर अनन्त जीवन—यदि हम पता लगाने के लिये खोजें कि हमारे लिये उसकी इच्छा क्या है, और तब इसे करें। बाइबल कहती है: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।”—यूहन्ना १७:३.
४०. बाइबल अभी कौन सी और लाभ देती है? (२ तिमुथियुस ३:१६, १७)
४० बाइबल से सीखना आप को और आपके परिवार को व्यावहारिक प्रदर्शन देगा जो इन कठिन समयों में प्रत्येक दिन जीने के लिये बहुत जरूरी है। इसके साथ, यह सच्चे मन की शान्ति का प्रबन्ध करता है, क्योंकि यह हमें बताती हैं कि क्यों अवस्था इतनी खराब हैं और भविष्य में क्या रखा है। सबसे ज्यादा जरूरी है, यह आपको परमेश्वर के प्रति वास्तविक प्रेम को विकास करने के लिये योग्य बनायगी, यह देखते हुए कि वह “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।”—इब्रानियों ११:६.
४१. कौन सी सहायता यहोवा के गवाह आप के लिये बिना मूल्य प्रबन्ध कर सकते हैं?
४१ यहोवा के गवाह खुशी से और स्वच्छन्दता से उसके नये प्रबन्ध में १ पतरस ५:६, ७.
जीवन के लिये परमेश्वर के प्रबन्धों के बारे में और सीखने के लिये आपको सहायता देने के लिये अपना समय देंगे। इसमें कोई शक नहीं कि परमेश्वर और बाइबल के प्रति आपके मन में और अन्य प्रश्न भी होंगे। यहोवा के गवाह इन सब की चर्चा आपके साथ आपके घर में, आपके अपने बाइबल से करने में आनन्दित होंगे। तब इसके बजाय कि जीवन का एक स्वतंत्र रास्ता अपनाएं या असिद्ध मनुष्यों के विचारों पर भरोसा करें, आप आज पायी जाने वाली सबसे उत्तम सूचना द्वारा प्रदर्शित किये जायेंगे। अतः, जब कि अभी समय बाकी है, आपसे अर्ज किया जाता है कि वैसा ही करें जैसा परमेश्वर के वचन द्वारा उत्प्रेरित सलाह कहती है: “परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, . . . क्योंकि उसको तुम्हारी चिन्ता है।”—[फुटनोट]
^ पैरा. 5 यदि अन्य प्रकार से सूचित न हो, तो उपयोग किया गया बाइबल अनुवाद द होली बाइबल हिन्दी—ओ. वी. है। यदि उद्धरण के बाद NW या NHT आता है तो वह शास्त्रवचन क्रमशः अंग्रेज़ी न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ़ द होली स्क्रिप्चर्स्—विद रॆफ्रॆंसॆज़ से अनुवादित या द होली बाइबल—ए न्यू हिन्दी ट्रांस्लेशन से उद्धृत है।
^ पैरा. 26 न्यू यार्क टाइम्स, नवम्बर ६, १९७२, पृष्ठ ५.
^ पैरा. 26 एनवाइरनमेन्टल एथिक्स, डॉनेल्ड आर. स्कोबी द्वारा सम्पादन किया हुआ, १९७१, पृष्ठ १७.
^ पैरा. 27 न्यू यार्क पोस्ट, मार्च ३०, १९७४, पृष्ठ ३५.
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज २२ पर चार्ट]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
एक पीढ़ी में
१९१४
विश्व युद्ध
अधिक अकाल
रोग का संक्रामान
हिंसक अपराध
भूमण्डलीय दुषित वातावरण
इस रीति–रिवाज का अन्त
[पेज ६ पर तसवीर]
यदि मानव गरीबी और गन्दगी के लिये परमेश्वर पर आरोप लगाया जाय. . .
[पेज ७ पर तसवीर]
. . . पृथ्वी की सुन्दरता और फलदार खेतों के लिये किस को श्रेय दिया जा सकता है?
[पेज ९ पर तसवीर]
पृथ्वी किसी भी घर से जीवन धारण करने के लिये ज्यादा अच्छा से तैयार किया गया है
[पेज ९ पर तसवीर]
चूंकि हर एक घर का एक बनाने वाला है, पृथ्वी इस से भी कितना अधिक!
[पेज १३ पर तसवीर]
बाइबल दिखलाती है कि परमेश्वर का उद्देश्य था कि मनुष्य को हमेशा आनन्द पाने के लिये सम्पूर्ण पृथ्वी को एक सुन्दर पार्क, एक परादीस बनाए
[पेज १४ पर तसवीर]
जब एक पँखे को अपनी शक्ति के स्रोत से अलग किया जाता है, धीमा हो के बन्द हो जाता है। इसी प्रकार, जब मनुष्य जाति ने परमेश्वर से अपने को अलग कर दिया, अवनति का परिणाम हुआ
[पेज १६ पर तसवीर]
जब एक छोटी सुरक्षा के पहलू का अवहेलना किया जाता है, एक बड़ा बाँध धँस जा सकता है। जब हमारे पहले माता–पिता ने यहोवा के कानून को तोड़ दिया, दुष्टता और पीड़ित का बाढ़ शुरू हुआ
[पेज १९ पर तसवीर]
एक न्यायालय का मुकदमा हफ्तों लग सकता है जहाँ केवल दो व्यक्ति अन्तर्ग्रस्त हैं। वाद–विषय, जो परमेश्वर के शासकपन पर अन्तर्ग्रस्त है, पूर्ण रूप से तय किया जाना चाहिए, सर्वदा के लिये, और उसके लिये काफी समय की आवश्यकता है
[पेज २४ पर तसवीर]
परमेश्वर के नये प्रबन्ध में युद्ध नहीं होंगें, क्योंकि वह “लड़ाइयों को मिटाता है”
[पेज २५ पर तसवीर]
फिर कभी मनुष्य जाति भूख से पीड़ित नहीं होंगे
[पेज २५ पर तसवीर]
परमेश्वर की आशीष से पृथ्वी बहुतायत से उपज देगी
[पेज २६ पर तसवीर]
बुढ़े व्यक्ति शक्ति की पूर्व अवस्था में लाए जाएँगे जो जवानी और पूर्ण स्वास्थ्य से आता है
[पेज २७ पर तसवीर]
सब मृत जो परमेश्वर के स्मरण में है जीवन की पूर्व अवस्था में लाये जाएगें और अपने प्रिय जनो से मिलेंगे
[पेज २९ पर तसवीर]
परमेश्वर के राज्य के शासन में, जीवन इतना आनन्दमय होगा, जितना कि कोई दुःख को हम ने अभी अन्याय से अनुभव किया है उस से कहीं अधिक आनन्द की पूर्ति होगी।
[पेज ३१ पर तसवीर]
यदि आनन्ददायक वातावरण में जीवन बाटा जा रहा है, तो क्या आप योग्य होने के लिये जानना नहीं चाहेंगे? परमेश्वर का नया प्रबन्ध इस से ज्यादा प्रतिज्ञा करता हैं, पर योग्य होने के लिये हमे सीखने को समय लगाना होगा