गीत १०५
“देव प्रेम आहे”
१. प्रे-मा-चे स्व-रू-प दे-व,
प्रे-मा-ने आ-म्हा सां-गे,
‘बां-ध-वां क-रु-नी प्री-ती,
व्हा मा-झी प्रि-य मु-ले.’
दा-ख-वू या स-र्वां आ-पण,
स-दा प्रे-म या-हा-चे.
गू-ज हे ख-ऱ्या सु-खा-चे,
गू-ज हे स-फल-ते-चे!
२. प्री-ती न-म्र, नी-ति-वं-त,
ती सा-रे स-हन क-री.
न हे-वा क-रे क-धी-ही,
तीच अ-से ख-री प्री-ती.
दे-व-प्री-ती-ची अ-क्ष-रे,
गि-र-वू या जी-व-नी.
चुक-लो न-क-ळत त-री, तो
प्रे-मा-ने पु-न्हा शिक-वी.
३. रा-गा द्वे-षा-ची जळ-म-टे,
का-ढु-नी म-ना-तु-नी.
प्रे-मा-चा सु-गं-ध सा-ऱ्या,
दर-व-ळा-वा जी-व-नी.
दे-वा-वर नि बां-ध-वां-वर,
क-रु-नी ख-री प्री-ती,
ओ-ळ-खेल आ-म्हा सा-रे जग,
या निः-स्वा-र्थ प्रे-मा-ने.
(मार्क १२:३०, ३१; १ करिंथ. १२:३१–१३:८; १ योहा. ३:२३ ही वचनंसुद्धा पाहा.)