गीत ६५
प्रगती करू या!
१. क-रू या उ-न्न-ती, चा-लू या पु-ढे!
झ-टु-नी से-वे-त नि-पु-ण हो-ऊ सा-रे!
दे-ता रा-ज्या स-दा स्था-न प-हि-ले,
मि-ळे या-हा-ची कृ-पा.
सो-पि-ले रा-ज्या-चे बीज आ-म्हा,
पे-रू या स-र्व न-म्र म-नांत,
अं-कु-रे बी-ज ते वा-ढु-नी जे-व्हा,
हो-ई गौ-रव या-हा-चा.
२. क-रू या उ-न्न-ती, दे-ऊ या म-दत!
पा-णी घा-लु-नी रो-पां-ची क-रू म-शा-गत,
वा-ढ-ण्या दे-ऊ त्यां आ-धा-र स-तत,
या-ह दे-ईल फळ आ-म्हा.
आ-हे भ-व्य ज-री का-र्य हे,
त्या-ची श-क्ती सा-हा-य्य क-रे.
वा-ह-ता स-र्व-स्व आ-म्हा-ला मि-ळे,
स-मा-धा-ना-चा ठे-वा.
३. क-रू या उ-न्न-ती, न मा-गे फिर-ता!
झा-ले रा-ज्य सु-रू, सां-गू या हे स-र्वां-ना!
ना-ही भी-ती वै-ऱ्यां-ची आ-म्हा आ-ता,
क-रू या-हा-ची से-वा.
ये-शू-च्या पा-व-लां-वर चा-लू,
स-र्व-दा या-हा-वर वि-सं-बू,
ने-क मा-र्गा-व-री ने-टा-ने चा-लू,
ला-भे-ल जी-वन आ-म्हा!
(फिलिप्पै. १:२७; ३:१६; इब्री १०:३९ ही वचनंसुद्धा पाहा.)