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मानूँ एहसान

मानूँ एहसान
  1. 1. पहाड़ों की चोटियों पर खिले हुए फूल,

    पर्वतों से आता, हवाओं का सुरूर।

    सूरज की धूप, गगन से चली आए,

    उड़ती चिड़ियों संग बादलों की चाल।

    (प्री-कोरस)

    दिया मैंने क्या

    इन नज़ारों के बदले

    और कैसे कहूँ

    कदर करता कितना!

    (कोरस)

    होना है एहसानमंद

    और बताना याह को

    कि हूँ मैं एहसानमंद

    उसके प्यार के लिए।

    मैं, ना कभी

    लूँगा हलके में, उसके काम कोई भी,

    मन में रखूँगा, याह के सारे काम।

    मानूँ एहसान मैं,

    मानूँ एहसान मैं।

  2. 2. आसमाँ का कैनवस है रंगों से भरा,

    सुंदर है कितनी, तेरी चित्रकारी,

    नदी में बहता कलकल करता पानी;

    टिमटिम तारों से भरी चाँदनी।

    (प्री-कोरस)

    दिया मैंने क्या

    इन नज़ारों के बदले

    और कैसे कहूँ

    कदर करता कितना!

    (कोरस)

    होना है एहसानमंद

    और बताना याह को

    कि हूँ मैं एहसानमंद

    उसके प्यार के लिए।

    मैं, ना कभी

    लूँगा हलके में, उसके काम कोई भी,

    मन में रखूँगा, याह के सारे काम।

    मानूँ एहसान मैं।

    (खास पंक्‍तियाँ)

    देखी तेरी बुद्धि और बल

    और भलाई हर इक पल

    और तेरा प्यार।

    हाँ हूँ मैं एहसानमंद

    तेरा एहसानमंद।

    (कोरस)

    होना है एहसानमंद

    और बताना याह को

    कि हूँ मैं एहसानमंद

    उसके प्यार के लिए।

    मैं, ना कभी

    लूँगा हलके में, उसके काम कोई भी,

    मन में रखूँगा, याह के सारे काम।

    मानूँ एहसान मैं,

    मानूँ एहसान मैं।

    मानें एहसान हम।