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“युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्‍वर का है”

“युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्‍वर का है”

“युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्‍वर का है”

डब्ल्यू. ग्लेन हाउ की ज़ुबानी

यहोवा के साक्षियों ने पिछले 60 सालों में कनाडा में ढेरों मुकद्दमे लड़े हैं। इन मुकद्दमों में उन्होंने जो जीत हासिल की वह किसी से छिपी नहीं है। हाल ही में वकीलों की एक अमरीकी संस्था ने यहोवा के साक्षियों के कुछ मुकद्दमों में ज़ोरदार वकालत करने का मुझे पुरस्कार दिया। इस मौके पर बताया गया कि यहोवा के साक्षियों ने जो “मुकद्दमे जीते हैं उनसे हर कनाडावासी के अधिकारों की रक्षा हुई है।” आइए मैं आपको ऐसे ही कुछ मुकद्दमों के बारे में बताऊँ और यह भी कि मैं यहोवा के साक्षियों से कैसे मिला और कैसे उनके लिए मुकद्दमे लड़े।

हम टोरॉन्टो, कनाडा में रहते थे। सन्‌ 1924 में पहली बार, जॉर्ज रिक्स नाम का एक ‘बाइबल स्टूडेन्ट’ हमारे घर आया। (उस वक्‍त यहोवा के साक्षी इसी नाम से जाने जाते थे।) तब मैं सिर्फ पाँच साल का था और मेरा भाई जॊ तीन साल का। क्योंकि मेरे पिताजी स्वभाव से ही ज़्यादा बातें नहीं करते थे मेरी माँ, बेसी ने उस साक्षी की बातों में दिलचस्पी दिखाई।

इसके बाद मेरी माँ ने सभाओं में जाना शुरू कर दिया। पिताजी को माँ का सभाओं और प्रचार में जाना बिलकुल पसंद नहीं आया। इसलिए माँ कुछ सफरी प्रचारकों को घर बुलाती थी ताकि वे पिताजी से सच्चाई के बारे में बातें करें। उनमें से एक प्रचारक था जॉर्ज यंग। जब पिताजी ने देखा कि बाइबल की शिक्षाओं का परिवार पर अच्छा असर हो रहा है तो उन्होंने धीरे-धीरे विरोध करना बंद कर दिया। हालाँकि पिताजी खुद कभी साक्षी नहीं बने मगर उन्होंने सच्चाई में आगे बढ़ने में हमारी पूरी-पूरी मदद की।

सन्‌ 1929 में मेरी माँ पायनियर बनी। प्रचार में माँ का जोश और लगन आज भी हमारे लिए एक बेहतरीन मिसाल है। अपनी इसी लगन से वह बहुतों को सच्चाई में ला सकी। और सन्‌ 1969 में जब उसने पृथ्वी पर अपना जीवनकाल समाप्त किया तब भी वह पायनियर थी।

परमेश्‍वर की सेवा करने का फैसला करना

सन्‌ 1936 में, मैं अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई खत्म कर चुका था। उस समय दुनिया-भर में फैली महामंदी की वज़ह से नौकरी मिलना बहुत मुश्‍किल था। इसलिए हाई स्कूल के बाद, आगे पढ़ने के लिए मैं टोरॉन्टो यूनिवर्सिटी गया। जब 1940 में, मैंने वकील बनने का फैसला किया तो मेरी माँ को कोई हैरानी नहीं हुई। मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तो माँ अकसर तंग आकर कहती थी: “यह बदमाश हर बात में इतनी बहस करता है कि देखना बड़ा होकर यह ज़रूर वकील बनेगा!”

जब मैं लॉ पढ़ने की तैयारी कर रहा था, तभी जुलाई 4, 1940 को कनाडा की सरकार ने अचानक यहोवा के साक्षियों पर पाबंदी लगा दी। इससे पहले मैंने कभी-भी आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी नहीं ली थी। लेकिन जब मैंने देखा कि सरकार किस तरह सीधे-साधे, बेकसूर लोगों के छोटे-से संगठन पर ज़ुल्म ढा रही है तो मुझे यकीन हो गया कि यही लोग यीशु के सच्चे चेले हैं, जिनके बारे में उसने कहा था: “मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे।” (मत्ती 24:9) मैं उन दिनों को कभी भूल नहीं सकता। उसी दौरान मैंने फैसला किया कि मैं भी यहोवा परमेश्‍वर की सेवा करूँगा। और फरवरी 10, 1941 को मैंने बपतिस्मा ले लिया।

मैं पायनियर बनना चाहता था, मगर भाई जैक नेथन ने मुझे पहले अपनी लॉ की पढ़ाई खत्म कर लेने की सलाह दी। उस वक्‍त जैक नेथन ही कनाडा में प्रचार के काम की देखरेख करते थे। मैंने उनकी बात मान ली और मई 1943 में ट्रेनिंग खत्म करने के बाद पायनियरिंग शुरू कर दी। उसी साल अगस्त में मुझे टोरॉन्टो में वॉच टावर सोसाइटी के ब्रांच ऑफिस में बुला लिया गया। वहाँ मुझे यहोवा के साक्षियों की कानूनी समस्याओं में मदद करने का काम सौंपा गया और सितंबर में, ऑन्टेरीओ की अदालत ने मुझे एक वकील की हैसियत से मुकद्दमे लड़ने की मान्यता दे दी।

कानून के ज़रिए सुसमाचार की रक्षा

दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान भी कनाडा में यहोवा के साक्षियों पर पाबंदी लगी रही और उन पर बहुत अत्याचार किए गए। आदमी, औरतें सभी को बस इसलिए गिरफ्तार किया जा रहा था क्योंकि वे यहोवा के साक्षी थे। स्कूलों से साक्षी बच्चों को निकाल दिया गया। इतना ही नहीं, उन्हें अपने माँ-बाप से अलग करके दूसरों के हवाले कर दिया गया। सरकार का कहना था कि ‘यहोवा के साक्षियों ने अपने बच्चों को गलत शिक्षाएँ दी हैं इसलिए वे झण्डे को सलामी नहीं देते ना ही राष्ट्रीय गीत गाते हैं। वे अपने बच्चों की सही परवरिश करने के लायक नहीं हैं।’ सरकार और धर्म: अपने हक के लिए यहोवा के साक्षियों की लड़ाई (अँग्रेज़ी) किताब के लेखक, प्रोफेसर विलियम कैपलन ने कहा: “एक तरफ सरकार यहोवा के साक्षियों पर ज़ुल्म ढा रही थी तो दूसरी तरफ आम जनता ने देशभक्‍ति की आड़ लेकर साक्षियों को सताना शुरू कर दिया था।”

इस दौरान हमने सरकार से पाबंदी हटाने की कई बार अपील की लेकिन हमारी हर कोशिश नाकाम रही। बाद में, अक्‍तूबर 14, 1943 में सिर्फ नाम के लिए ये पाबंदियाँ हटाई गईं। अभी-भी बहुत से साक्षी जेलों और लेबर कैंपों में कैद थे। बच्चों को स्कूलों में दाखिला नहीं मिल रहा था और टोरॉन्टो में वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी एण्ड द इंटरनैशनल बाइबल स्टूडेन्ट्‌स एसोसिएशन के नाम पर जो ब्रांच ऑफिस था, वह भी सरकार के कब्ज़े में था।

सन्‌ 1943 के आखिर में, मैं कनाडा ब्रांच की देख-रेख करनेवाले भाई, पर्सी चैपमन के साथ न्यू यॉर्क गया। दरअसल हम, वॉच टावर सोसाइटी के प्रेज़ीडेंट नेथन नॉर और वाइस प्रेज़ीडेंट और वकील हेडन कॉविंगटन से सलाह-मशविरा करने गए थे कि हमें क्या करना चाहिए। भाई कॉविंगटन के पास वकालत का काफी अनुभव था। आगे चलकर उन्होंने अमरीका के सुप्रीम कोर्ट में 45 मुकद्दमों में से 36 मुकद्दमों में जीत हासिल की।

धीरे-धीरे कनाडा में यहोवा के साक्षियों को पाबंदी से राहत मिलने लगी। सन्‌ 1944 में सरकार ने टोरॉन्टो का ब्रांच ऑफिस साक्षियों को लौटा दिया और ब्रांच ने उन भाई-बहनों को वापस बुला लिया जो पहले यहाँ काम करते थे। फिर 1945 में, ऑन्टेरीओ प्रांत की सबसे बड़ी अदालत ने यह फैसला सुनाया कि साक्षी बच्चों पर उनके विवेक के खिलाफ काम करने का दबाव ना डाला जाए। साथ ही जिन बच्चों को स्कूल से निकाला गया था उन्हें दोबारा स्कूल में भरती करने के निर्देश दिए गए। फिर, 1946 में कनाडा की सरकार ने लेबर कैंपों में कैद सभी साक्षियों को रिहा कर दिया। भाई कॉविंगटन से मैंने यही सीखा कि ऐसे मुकद्दमे लड़ने के लिए हिम्मत और पक्के इरादे की ज़रूरत तो होती ही है मगर उससे भी ज़्यादा यहोवा पर भरोसा रखने की ज़रूरत पड़ती है।

क्विबेक में कानूनी लड़ाई

कनाडा के ज़्यादातर इलाकों में यहोवा के साक्षियों को अपना धर्म मानने की आज़ादी मिल गई थी मगर फ्राँसीसी क्विबेक में नहीं, क्योंकि वह एक कैथोलिक प्रांत था। 300 से भी ज़्यादा सालों से इस इलाके में रोमन कैथोलिक चर्च का दबदबा था। स्कूल, अस्पताल, और सरकारी दफ्तरों जैसी ज़रूरी सेवाओं की बागडोर भी उन्हीं के हाथों में थी। यहाँ तक कि विधान सभा में स्पीकर की कुर्सी के साथ ही कैथोलिक कार्डिनल के लिए भी एक सिंहासन रखा गया था!

क्विबेक का प्रधान मंत्री और अटॉर्नी जनरल मॉरिस ड्यूप्लेसी एक तानाशाह था। उसके बारे में क्विबेक का इतिहासकार ज़्हेरार पेल्टया कहता है: “ड्यूप्लेसी के 20 साल के राज में झूठ, भ्रष्टाचार, आतंक और अन्याय का बोलबाला रहा। अपनी बातों से उसने लोगों की इतनी मति भ्रष्ट कर दी कि वे अपनी समझ-बूझ खो बैठे थे।” रोमन कैथोलिक कार्डिनल विल्लेन्यूव से हाथ मिलाकर तो उसकी ताकत दुगनी हो गई थी।

सन्‌ 1940 की शुरूआत में क्विबेक में 300 साक्षी थे। मेरा भाई जॊ, भी क्विबेक में पायनियर था। मगर जब वहाँ प्रचार का काम ज़ोर पकड़ने लगा तो पादरियों ने साक्षियों पर ज़ुल्म करने के लिए पुलिस पर दबाव डाला। साक्षियों को इसी आरोप पर बार-बार गिरफ्तार किया जाता था कि उनके पास प्रचार करने का लाइसेन्स नहीं है।

इस दौरान मुझे टोरॉन्टो और क्विबेक के बीच बहुत भाग-दौड़ करनी पड़ी। इसलिए आखिर में मुझे क्विबेक में रहकर उन वकीलों के साथ काम करने को कहा गया जो हमारे भाई-बहनों के मुकद्दमे लड़ रहे थे। हर दिन सबसे पहले मुझे यह पता करना होता था कि कितने भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया है और फिर मैं कोर्ट जाकर उनकी ज़मानत का इंतज़ाम करता। फ्रैंक रॉन्करली नाम का एक रईस भाई, ज़्यादातर साक्षियों की ज़मानत देकर हमारी बहुत मदद करता था।

सन्‌ 1944 में यहोवा के साक्षियों के खिलाफ अदालत में 40 मुकद्दमे दर्ज़ थे। मगर 1946 तक यह संख्या बढ़कर 800 हो गई। मानो इतना काफी नहीं था कि अब कैथोलिक पादरियों ने भीड़ को हमारे खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया। इस वज़ह से हमें घृणा और हिंसा का शिकार होना पड़ा।

इस मुसीबत का हल ढूँढ़ने के लिए मॉन्ट्रियल में नवंबर 2 और 3, 1946 को एक खास सम्मेलन रखा गया। इसके आखिरी भाषण: “हम क्या करेंगे?” में भाई नॉर ने एक ट्रैक्ट रिलीज़ किया जिसका शीर्षक था: “परमेश्‍वर, यीशु और आज़ादी के खिलाफ क्विबेक की भड़कती नफरत—कनाडा वासियों के लिए कलंक है।” सम्मेलन में हाज़िर सभी भाई-बहन इस ट्रैक्ट को पाकर खुशी से उछल पड़े! इस ज़बरदस्त ट्रैक्ट ने उन वारदातों का कच्चा-चिट्ठा खोलकर रख दिया था, जिनमें पादरियों ने साक्षियों के खिलाफ दंगे करवाए थे और जिनमें पुलिस और लोगों की भीड़ ने साक्षियों पर बेरहमी से ज़ुल्म ढाए थे। ट्रैक्ट के रिलीज़ के 12 दिन बाद ही इसे पूरे कनाडा में बाँटना शुरू कर दिया गया।

नतीजा यह हुआ कि चंद दिनों बाद ही ड्यूप्लेसी ने खुल्लमखुल्ला ऐलान कर दिया, ‘यहोवा के साक्षियों के खिलाफ जंग—रहम की भीख नहीं दी जाएगी।’ उसने यह आरोप लगाया कि इस ट्रैक्ट में देश के खिलाफ ज़हरीली बातें लिखी हैं। और जो कोई इस ट्रैक्ट को बाँटेगा उसे देशद्रोही करार दिया जाएगा। लेकिन उसको क्या पता था कि उसके इस आरोप का उल्टा हमें ही फायदा होनेवाला है। वह कैसे? वह ऐसे कि उसका आरोप इतना संगीन था कि इसमें गिरफ्तार होनेवाले लोगों के मुकद्दमों को क्विबेक की अदालतों से निकालकर, कनाडा के सुप्रीम कोर्ट में ले जाया जा सकता था। जैसा कहा जाता है ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ ड्यूप्लेसी ने भी गुस्से में इस अहम बात को नज़रअंदाज़ कर दिया था। लेकिन वह हार मानने के लिए तैयार नहीं था। उसने गैर-कानूनी तरीके से भाई फ्रैंक रॉन्करली का शराब बेचने का लाइसेन्स रद्द करवा दिया। उसे पता था कि हमारे ज़्यादातर भाइयों की ज़मानत वही भरता है। चंद महीनों में ही मॉन्ट्रियल में भाई रॉन्करली का अच्छा-खासा रेस्तराँ बंद हो गया और वह कंगाल होने लगा।

इतना ही नहीं, साक्षियों की गिरफ्तारियाँ बढ़ने से उनके खिलाफ दर्ज़ मुकद्दमे 800 से बढ़कर 1,600 हो गए। बहुत-से वकील और जजों ने तंग आकर कहा कि ‘क्विबेक की अदालतें तो साक्षियों के मुकद्दमों से ही भर गई हैं। उनकी वज़ह से दूसरे केस आगे ही नहीं बढ़ पा रहे।’ तो हमने उन्हें जवाब दिया, इसे सुलझाने का सबसे आसान तरीका बताएँ: ‘पुलिस से कहो कि साक्षियों को गिरफ्तार करने के बजाय अपराधियों को पकड़े!’

दो यहूदी वकीलों ने इन मुकद्दमों को लड़ने में हमारी बहुत मदद की। एक था, ए. एल. स्टाइन जो मॉन्ट्रियल का रहनेवाला था और दूसरा था क्विबेक का सैम एस. बार्ड। ये दोनों बड़े ही निडर वकील थे और 1949 में, मेरे वकील बनने से पहले इन्होंने साक्षियों के लिए कई मुकद्दमे लड़े थे। इन मुकद्दमों में साक्षियों ने जो धीरज धरा और जितने ज़ुल्म सहे उनसे प्रभावित होकर, कनाडा के प्रधान मंत्री, पीयर एलीअत ट्रूदो ने कहा है कि क्विबेक में यहोवा के साक्षियों की “समाज ने खिल्ली उड़ायी, उन पर ज़ुल्म ढाए और उनसे नफरत की, मगर साक्षियों ने कभी-भी अपनी मर्यादा पार नहीं की। उन्होंने चर्च, सरकार, देश, पुलिस और जनता के सभी अत्याचारों का जवाब सिर्फ कानून के दायरे में रहकर ही दिया।”

क्विबेक अदालत की नफरत भी साफ नज़र आती थी। जब मेरे भाई जॊ पर शांति भंग करने का आरोप लगाया गया तब जज ज़्हाँन मरसिए ने उसे 60 दिनों तक जेल की सज़ा सुनाई। लेकिन उसके दिल में इतनी नफरत थी कि वह खुद पर काबू नहीं रख पाया और दाँत पीसते हुए चिल्लाकर बोला, ‘तुझे तो ज़िंदगी भर जेल में सड़ना चाहिए!’

एक अखबार के मुताबिक जज मरसिए ने क्विबेक पुलिस को यह आदेश दिए थे कि उन्हें “जो भी यहोवा का साक्षी नज़र आए, या जिस पर उन्हें शक हो, उन सबको गिरफ्तार कर लिया जाए।” मरसिए का यह बर्ताव दिखाता है कि ट्रैक्ट क्विबेक की भड़कती नफरत में जो बातें लिखी थीं वे एकदम सच थीं। क्विबेक को छोड़कर कनाडा में दूसरी कई जगहों के अखबारों में ऐसी सुर्खियाँ छपीं, “क्विबेक में अंधकार युग की फिर से शुरूआत,” (द टोरॉन्टो स्टार), “धर्माधिकरण की वापसी” (द ग्लोब एण्ड मेल, टोरॉन्टो), “फ़ासिस्टवाद की बू,” (द गज़ैट, नोवा स्कोशा प्रांत में ग्लेस बे शहर)।

देशद्रोह के आरोप का जवाब

सन्‌ 1947 में मैंने और श्री स्टाइन ने मिलकर भाई एमे बूशे का मुकद्दमा लड़ा। दरअसल एमे ने अपने घर के आसपास क्विबेक की भड़कती नफरत ट्रैक्ट बाँटा था। इसलिए उसे गिरफ्तार करके उस पर देशद्रोही होने का झूठा इलज़ाम लगाया गया। अदालत में हमने साबित किया कि इस ट्रैक्ट में लिखी एक-एक बात सच है। इसका मकसद लोगों को यह बताना है कि साक्षियों पर कैसे-कैसे अत्याचार हो रहे हैं। इसके अलावा हमने यह भी बताया कि इन अत्याचारों के लिए जो लोग ज़िम्मेदार हैं उनके खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। एमे का दोष सिर्फ इतना है कि उसने इस ट्रैक्ट के ज़रिए लोगों को सच्चाई बतानी चाही। अगर उसे दोषी करार दिया जाता है तो इसका मतलब होगा कि सच बोलनेवाला हर इंसान दोषी है!

क्विबेक की अदालतों में “देशद्रोह” की 350 साल पुरानी परिभाषा यह है कि कोई भी व्यक्‍ति सरकार के खिलाफ कुछ कहे तो उसे अपराधी ठहराया जा सकता है। ड्यूप्लेसी यही आस लगाकर बैठा था कि इस आरोप के आधार पर साक्षियों का मुँह बंद करवाया जा सकता है। मगर 1950 में कनाडा के सुप्रीम कोर्ट ने हमारी यह दलील मंज़ूर कर ली कि आज लोकतंत्र के ज़माने में “देशद्रोह” उसे कहा जाता है जिसमें लोगों को सरकार के खिलाफ हिंसा या बगावत करने के लिए भड़काया जाए। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने हमारे पक्ष में यह फैसला सुनाया कि क्विबेक की भड़कती नफरत ट्रैक्ट सिर्फ सच्चाई पेश करता है और सच्चाई बोलने की आज़ादी सबको है। साक्षियों ने इसे बाँटकर देशद्रोह जैसा कोई काम नहीं किया। इस ज़बरदस्त फैसले के साथ ही हमारे खिलाफ दायर 123 देशद्रोह के मुकद्दमों की पलक झपकते ही धज्जियाँ उड़ गईं। यह सब देखकर मेरा मन बोल उठा, यहोवा ने ही हमें यह जीत दिलायी है।

सेंसर-व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई

क्विबेक शहर का अपना एक कानून था जिसके मुताबिक पुलिस चीफ से परमिट लिए बिना कोई भी अपना प्रकाशन नहीं बाँट सकता था। यह संविधान में दी गई धर्म की आज़ादी का सीधा-सीधा उल्लंघन था। इसी कानून की बिनाह पर सफरी ओवरसियर लॉरये सोमूर को 3 महीने की जेल हुई।

सन्‌ 1947 में हमने एक केस दायर किया जिसमें हमने कहा कि भाई सोमूर के अधिकारों का उल्लंघन किया गया है और हमने अपील की कि यह कानून यहोवा के साक्षियों पर लागू न किया जाए। क्विबेक की अदालत ने हमारी अपील नामंज़ूर कर दी। तब हम 1953 में यह केस कनाडा के सुप्रीम कोर्ट ले गए। सुप्रीम कोर्ट में सात दिनों तक 9 जजों के सामने यह केस चलता रहा और अक्‍तूबर में हमने यह केस जीत लिया। अदालत का कहना था कि बाइबल प्रकाशनों को बाँटना यहोवा के साक्षियों की उपासना का एक अहम भाग है और ऐसा करने के लिए उन्हें किसी परमिट की ज़रूरत नहीं।

बूशे केस ने यह साबित कर दिया था कि यहोवा के साक्षियों को अपनी बात कहने की कानूनी तौर पर आज़ादी है और सोमूर केस ने हमेशा-हमेशा के लिए यह साबित कर दिया था कि साक्षियों को ना सिर्फ अपनी बात कहने की बल्कि यह भी आज़ादी है कि वे इसे कहीं भी और किसी भी तरीके से कह सकते हैं। सोमूर केस की जीत से क्विबेक में 1,100 ऐसे आरोप जो साक्षियों के खिलाफ लगाए गए थे रद्द कर दिए गए। सबूतों की कमी की वज़ह से मॉन्ट्रियल में भी साक्षियों के खिलाफ 500 से भी ज़्यादा आरोप हटा लिए गए। बहुत जल्द क्विबेक में साक्षियों के खिलाफ एक भी केस नहीं बचा।

ड्यूप्लेसी का आखिरी वार

जब यहोवा के साक्षियों के खिलाफ ड्यूप्लेसी के सारे कानूनी दाँव-पेच नाकाम रहे तो उसने जनवरी 1954 की शुरूआत में विधान सभा के सामने एक नया कानून बनाने का प्रस्ताव रखा। यह था बिल नं. 38. पत्रकारों के मुताबिक यह नया बिल ‘साक्षी विरोधी कानून’ था। इस बिल के मुताबिक अगर किसी को शक है कि एक व्यक्‍ति सरकार के खिलाफ कुछ “गलत या अपमानजनक बातें” कहने का इरादा रखता है तो बिना कोई सबूत पेश किए वह उस व्यक्‍ति के खिलाफ शिकायत दर्ज़ करवा सकता है। अगर एक बार ऐसी शिकायत दर्ज़ हो जाए तो बस फिर क्या था। ड्यूप्लेसी उस आदमी को रोकने के लिए तुरंत ऑर्डर जारी करवा सकता था। और एक बार यह ऑर्डर निकल जाता तो ऐसा काम करनेवाले पूरे समूह पर पाबंदी लग जाती। इसके अलावा उनकी सारी बाइबलें और धार्मिक प्रकाशनों को ज़ब्त करके नाश कर दिया जाता। और मुकद्दमे का फैसला होने तक उनके इकट्ठा होने की जगहें भी सील कर दी जातीं। और अकसर ऐसे मुकद्दमों का फैसला होते-होते बरसों बीत जाते हैं।

यह नया बिल दरअसल 15वीं सदी में स्पेन के तोरकेमादा के बनाए कानून की एक नकल थी। इस नए बिल नं. 38 के बारे में प्रेस सूत्रों ने जानकारी दी कि क्विबेक के पुलिसवालों को साक्षियों के सभी किंगडम हॉलों को सील करके वहाँ रखी बाइबल और अन्य किताबों को नष्ट करने के आदेश मिले हैं। इस बड़ी मुसीबत से बचने के लिए हमने क्विबेक से अपनी सारी किताबें निकलवा लीं। मगर हमने प्रचार करना नहीं छोड़ा। अब प्रचार करते वक्‍त हम सिर्फ अपनी बाइबल साथ रखते थे।

आखिर में जनवरी 28, 1954 में इस बिल को एक नया कानून बना दिया गया। दूसरे दिन सुबह नौ बजे मैं अदालत पहुँच गया। इससे पहले कि ड्यूप्लेसी हमारे खिलाफ यह नया कानून इस्तेमाल करे, मैं चाहता था कि इस कानून को रोकने के लिए हमें अदालत से ऑर्डर मिल जाए। मगर जज ने कहा कि फिलहाल वह इस नए कानून के खिलाफ कोई ऑर्डर जारी नहीं कर सकता क्योंकि इस कानून को अभी तक इस्तेमाल नहीं किया गया है। मगर जज ने यह गारंटी ज़रूर दी कि अगर किसी भी वक्‍त सरकार इस कानून को इस्तेमाल करेगी तो वह इसके खिलाफ ऑर्डर ज़रूर जारी करेगा। जज की यह गारंटी कोर्ट ऑर्डर के बराबर थी। इससे यह होता कि अगर ड्यूप्लेसी नए कानून की आड़ में हम पर वार करना भी चाहता तो नाकाम रहता।

अगले हफ्ते हम इस ताक में बैठे थे कि शायद पुलिस इस नए कानून के सिलसिले में कोई कदम उठाएगी। मगर कुछ भी नहीं हुआ! इसकी वज़ह जानने के लिए मैंने एक प्लैन बनाया। हमने दो पायनियर बहनों यानी विक्टोरिया डगालुक (जिसे शादी के बाद बहन स्टील के नाम से जाना जाता है) और हेलेन डगालुक (जिसे शादी के बाद बहन सिमकॉक्स के नाम से जाना जाता है) को ड्यूप्लेसी के शहर, ट्रॉ-रिव्यर में प्रकाशनों के साथ घर-घर के प्रचार काम पर भेजा। मगर फिर भी कुछ नहीं हुआ। जब ये बहनें प्रचार कर रही थीं तो मैंने पुलिस को फोन करने के लिए लॉरये सोमूर को भेजा। उसने पुलिस को खबर दी कि यहोवा के साक्षी उसके इलाके में प्रचार कर रहे हैं फिर भी पुलिस क्यों ड्यूप्लेसी के नए कानून को लागू नहीं कर रही?

बड़े लज्जित स्वर में एक पुलिस अफसर ने फोन पर जवाब दिया: “जी हाँ, हम जानते हैं कि ऐसा कानून है मगर अफसोस कि हम आपकी मदद नहीं कर सकते। दरअसल यहोवा के साक्षियों ने अगले दिन ही इस कानून के खिलाफ कोर्ट से ऑर्डर जारी करवा लिया था।” यह खबर सुनते ही हम अपने सारे प्रकाशन दोबारा इस प्रांत में ले आए। इसके बाद 10 सालों तक हम इस कानून के खिलाफ मुकद्दमा लड़ते रहे लेकिन इस दौरान कभी-भी हमारे प्रचार के काम में किसी भी तरह की रुकावट नहीं आयी।

हमने न सिर्फ इस नए कानून के खिलाफ ऑर्डर जारी करवाया बल्कि हम यह भी साबित करना चाहते थे कि यह कानून संविधान के खिलाफ है। हम यह दिखाना चाहते थे कि यह नया कानून सिर्फ यहोवा के साक्षियों को कुचलने के लिए बनाया गया है। हमने ड्यूप्लेसी को ही अदालत में बुलाकर उससे पूछ-ताछ करने के लिए उसे कोर्ट से ऑर्डर भेजा। यह शेर को उसकी माँद में ललकारने के बराबर था। ड्यूप्लेसी इस बुलावे से इंकार भी नहीं कर सकता था। मैं उससे ढाई घंटे तक सवाल पर सवाल करता रहा। मैं बार-बार उससे पूछता रहा कि आखिर “यहोवा के साक्षियों के खिलाफ जंग—रहम की भीख नहीं दी जाएगी,” ऐलान करने का उसका क्या मकसद था? मैंने यह भी पूछा, ‘आपके यह कहने का क्या मतलब था कि एक बार बिल नं. 38 लागू हो जाए तो क्विबेक से साक्षियों का नामो-निशान मिट जाएगा?’ ड्यूप्लेसी यह सब सुनकर आग-बबूला हो गया और उसने झल्लाकर मुझसे कहा: “बदतमीज़! कल का छोकरा मुझसे मुँहज़ोरी करता है!”

मैंने जवाब दिया: “श्रीमान ड्यूप्लेसी, आपको यहाँ मेरे बारे में अपनी राय ज़ाहिर करने के लिए नहीं बुलाया गया। वैसे आपके बारे में मेरी राय भी कुछ बुरी नहीं! खैर, बेहतर यही होगा कि हम अदालत का वक्‍त ज़ाया न करें और आप यह बताने का कष्ट करें कि आपने मेरे आखिरी सवाल का जवाब क्यों नहीं दिया?”

सन्‌ 1959 में ड्यूप्लेसी की मौत हो गयी मगर उसकी मौत से कुछ समय पहले कनाडा के सुप्रीम कोर्ट ने उसे, भाई रॉन्करली के शराब के लाइसेन्स को गैर-कानूनी रूप से रद्द करने के लिए कसूरवार ठहराया। उसे भाई रॉन्करली का सारा नुकसान भरने का आदेश दिया गया। उस फैसले के बाद, हमारे प्रति क्विबेक के सभी लोगों का बर्ताव बदलने लगा।

फिर 1964 में बिल नं. 38 केस को कनाडा के सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश किया गया। मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के खिलाफ कुछ भी फैसला करने से इंकार कर दिया क्योंकि इस कानून का अभी तक इस्तेमाल ही नहीं हुआ था। ड्यूप्लेसी की मौत के बाद किसी ने फिर कभी इस बिल के बारे में कोई बात नहीं उठायी। इसकी वज़ह से यह कानून साक्षियों के खिलाफ तो क्या, किसी के खिलाफ भी इस्तेमाल नहीं किया गया। सन्‌ 1943 में क्विबेक में 300 साक्षी थे मगर आज उनकी गिनती बढ़कर 33,000 से भी ज़्यादा हो गई है। कनाडा के इस प्रांत के सबसे बड़े धार्मिक समूहों में से यहोवा के साक्षियों का चौथा नंबर आता है। मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि इन मुकद्दमों में मिली जीत या प्रचार में हमारी कामयाबी, हमारे अपने बलबूते पर नहीं बल्कि यहोवा की मदद से हासिल हुई है। उसी ने हमें जीत दिलायी है क्योंकि युद्ध हमारा नहीं बल्कि यहोवा का है।—2 इतिहास 20:15.

हालात में बदलाव

सन्‌ 1954 में मेरी शादी इंग्लैंड की एक खूबसूरत पायनियर मारग्रेट बीगल से हुई। शादी के बाद हम दोनों ने एक साथ पायनियरिंग की। मगर मैंने वकालत नहीं छोड़ी और कनाडा और अमरीका में यहोवा के साक्षियों के लिए कई मुकद्दमे लड़ता रहा। साथ ही यूरोप और आस्ट्रेलिया के कई मुकद्दमों में मैंने दूसरे साक्षी वकीलों की मदद की। इस दौरान मारग्रेट ने सेक्रेटरी बनकर मुझे पूरा साथ दिया। सन्‌ 1984 में, मैं मारग्रेट के साथ कनाडा ब्रांच में सेवा करने गया। वहाँ, मैंने लीगल डिपार्टमेंट को दोबारा स्थापित करने में मदद दी। दुःख की बात है कि 1987 में मारग्रेट की कैंसर से मौत हो गई।

मेरा भाई जॊ और उसकी पत्नी एल्सी, वॉच टावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड की नौवीं क्लास में थे। सन्‌ 1969 में माँ की मौत के बाद उन दोनों ने पिताजी की देख-रेख का ज़िम्मा उठाया और उनकी मौत तक उनकी अच्छी तरह से देखभाल करते रहे। मैं उनका यह एहसान कभी-भी नहीं भूलूँगा क्योंकि उन्होंने 16 साल तक मेरे लिए यह ज़िम्मेदारी सँभाली ताकि मैं पूर्ण-समय की सेवा करता रहूँ।

युद्ध आज भी जारी है

यहोवा के साक्षियों ने अब तक जो मुकद्दमे लड़े हैं वे अलग-अलग तरह के थे। जैसे कुछ मुकद्दमों में किंगडम हॉल और असेंब्ली हॉल के लिए जगह हासिल करने की लड़ाई थी या फिर हॉल बनाने के परमिट को लेकर मुकद्दमा चल रहा था। कुछ ऐसे केस भी थे जिनमें पति या पत्नी में से एक साक्षी नहीं था और अपने बच्चों की पूरी देख-रेख करने का हक चाहता था या अपने साक्षी पति या पत्नी को अपने धर्म की अच्छी बातें बच्चों को सिखाने से रोकने के लिए कोर्ट से ऑर्डर लेना चाहता था।

सन्‌ 1989 में कनाडा ब्रांच में एक अमरीकी वकील लिन्डा मैनिंग कुछ समय के लिए कानूनी समस्याओं में मदद करने के लिए आयी थी। उसी साल नवंबर में हमारी शादी हो गई और तब से हम खुशी-खुशी इस ब्रांच में सेवा कर रहे हैं।

सन्‌ 1990 के बाद के सालों में, मैं कनाडा ब्रांच के एक वकील जॉन बर्न्स के साथ जापान गया। वहाँ के स्कूलों में हर बच्चे को जूडो और कराटे की कंपलसरी ट्रेनिंग दी जाती है। वहाँ हमने साक्षी बच्चों के लिए मुकद्दमा लड़ने में अपने भाइयों की मदद की कि इस ट्रेनिंग में भाग लेना या न लेना हर छात्र की अपनी मरज़ी है। यह मुकद्दमा भी हमने जीत लिया। एक और मुकद्दमे में हमने साबित किया कि किसी की मरज़ी के खिलाफ उसे खून नहीं चढ़ाया जा सकता और एक व्यक्‍ति को खून लेने से इंकार करने का हक है।

फिर 1995 और 1996 के बीच मुझे और लिन्डा को पाँच महीने के लिए सिंगापुर में रहने का मौका मिला। वहाँ के साक्षियों पर पाबंदी लगायी गयी है और हम उसी सिलसिले में सिंगापुर गए थे। मैंने वहाँ के 64 भाई-बहनों के लिए मुकद्दमा लड़ा। उनका अपराध बस यही था कि वे मसीही सभाओं में जाते थे और उनके पास बाइबल और दूसरे प्रकाशन थे। हालाँकि इनमें से एक भी मुकद्दमा जीतने में हम कामयाब नहीं रहे मगर हमने देखा कि किस तरह यहोवा अपने सेवकों को मुश्‍किल से मुश्‍किल हालात में वफादार बने रहने की ताकत देता है।

यहोवा के काम आया, यह उसका एहसान है

अब मैं 80 साल का हूँ मगर मुझे खुशी है कि मेरी सेहत अच्छी है और आज भी मैं यहोवा के लोगों के लिए इस कानूनी लड़ाई में हिस्सा ले रहा हूँ। मैं अब भी अदालत में जाकर सच्चाई के लिए लड़ने को तैयार हूँ। मुझे यह देखकर बड़ी खुशी होती है कि कनाडा में साक्षियों की संख्या 1940 में 4,000 से बढ़कर 1,11,000 हो चुकी है। कल तक जो विरोध करते थे आज वे नहीं हैं। लेकिन यहोवा के लोग आज भी बरकरार हैं और यहोवा उन्हें लगातार आशीष दे रहा है।

इस दौरान क्या मैंने मुसीबतों का सामना किया है? बेशक। लेकिन मुझे यहोवा के इस वचन से हमेशा हिम्मत मिली: “जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएं, उन में से कोई सफल न होगा।” (यशायाह 54:17) इस वचन से ताकत पाकर मैंने पूर्ण-समय की सेवकाई में “सुसमाचार के लिये उत्तर और प्रमाण देने में” अपनी ज़िंदगी के 56 से भी ज़्यादा साल लगा दिए हैं और आज भी मैं पूरे विश्‍वास के साथ कह सकता हूँ कि यशायाह की भविष्यवाणी सौ फीसदी सच है।—फिलिप्पियों 1:7.

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मैं अपने छोटे भाई और माता-पिता के साथ

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वकील हेडन कॉविंगटन

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नेथन नॉर के साथ

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कार्डिनल विल्लेन्यूव के सामने घुटनों के बल झुका हुआ ड्यूप्लेसी

[चित्र का श्रेय]

Photo by W. R. Edwards

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फ्रैंक रॉन्करली

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Courtesy Canada Wide

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एमे बूशे

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मेरा साथी वकील जॉन बर्न्स और मेरी पत्नी लिन्डा