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माँ-बाप होने के नाते आपकी ज़िम्मेदारी

माँ-बाप होने के नाते आपकी ज़िम्मेदारी

माँ-बाप होने के नाते आपकी ज़िम्मेदारी

हावर्ड मेडिकल स्कूल के पीटर गॉरस्की कहते हैं: “अगर आप अपने बच्चे को एहसास दिलाएँ कि वह आपके जिगर का टुकड़ा है, आपके परिवार का हिस्सा है और अगर उसके आगे लक्ष्य रखें और उसे सवाल पूछने का बढ़ावा दें, तो उसके दिमाग का विकास ज़रूर होगा। हम माता-पिताओं का यह लक्ष्य नहीं कि हमारे बच्चों का मस्तिष्क मुकम्मल तौर पर काम करे, उनसे कोई गलती ही न हो। हम बस इतना चाहते हैं कि वे बड़े होकर तंदुरुस्त, समझदार और दूसरों का खयाल रखनेवाले इंसान बनें।”

आप माता-पिताओं को इससे ज़्यादा खुशी और किस बात से मिल सकती है कि आपके बच्चे बड़े होकर नेक और दूसरों की परवाह करनेवाले इंसान बनें! मगर यह खुशी आपको मिलेगी या नहीं, यह काफी हद तक आप पर निर्भर करता है। आपको अपने बच्चों के लिए मिसाल रखने, उनका दोस्त बनने, उनके साथ बातचीत करने और उनको सिखाने में पहल करना होगा। हालाँकि पैदाइश से सभी बच्चों में सही-गलत की थोड़ी-बहुत समझ होती है, मगर माता-पिता को चाहिए कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, वे उन्हें नैतिक आदर्शों के बारे में सिखाते रहें।

बच्चों को कौन ढालता है?

बच्चों पर सबसे ज़्यादा किसका असर होता है, इस पर खोजकर्ताओं के अलग-अलग खयालात हैं। कुछ खोजकर्ता मानते हैं कि उन पर खासकर हमउम्र साथियों का असर होता है। मगर डॉ. टी. बेरी ब्रेज़लटन और डॉ. स्टैनली ग्रीनस्पैन नाम के बाल-विकास विशेषज्ञों का कुछ और कहना है। उनके मुताबिक, छुटपन से ही प्यार और समझ के साथ बच्चों की परवरिश करना माता-पिता की ज़िम्मेदारी है और इसे हरगिज़ कम नहीं आँका जा सकता।

यह सच है कि बच्चे के सही तरह से विकास करने में हमउम्र साथियों का और उसे बाद में मिलनेवाले तजुरबे का भी हाथ होता है। मगर परिवार में बच्चों के साथ प्यार और समझदारी से पेश आना ज़रूरी है। उन्हें यह भी सिखाना ज़रूरी है कि वे अपनी भावनाओं पर काबू कैसे पाएँ। ऐसी मदद मिलने पर बच्चे आम तौर पर दूसरों के साथ मिल-जुलकर काम करने, दया दिखाने और हमदर्दी जताने के लिए ज़्यादा तैयार होते हैं।

बच्चों को छुटपन से ट्रेनिंग देने में कड़ी मेहनत लगती है। अगर आप इसमें कामयाब होना चाहते हैं, तो समझदारी इसी में है कि आप उन लोगों से सलाह-मशविरा करें जो ज़्यादा तजुरबा रखते हैं। फिर तय करें कि आपको ठीक क्या करना है और उसी के मुताबिक कदम उठाएँ। और अगर आप पहली बार माँ-बाप बने हैं, तो ऐसा करना आपके लिए खासकर ज़रूरी है। बच्चों के विकास के बारे में विशेषज्ञों ने ढेरों किताबें लिखी हैं। अकसर देखा गया है कि वे बाइबल में दी गयी भरोसेमंद सलाह से ही मिलती-जुलती सलाह देते हैं। परमेश्‍वर के वचन में दिए बेहतरीन उसूलों पर चलने से कई माता-पिताओं को बच्चों की परवरिश करने में कामयाबी मिली है। इसलिए आइए बाइबल की कुछ कारगर सलाहों पर गौर करें।

दिल खोलकर प्यार दिखाइए

बच्चे, नए पौधों की तरह होते हैं। पौधों की प्यार से देखभाल की जाए और उन पर लगातार ध्यान दिया जाए, तो वे अच्छी तरह बढ़ते हैं। रोज़ पानी देने और धूप में रखने से नए पौधों को ज़रूरी पोषण मिलता है और वे फलते-फूलते और मज़बूत होते हैं। उसी तरह, अगर माँ-बाप अपनी बातों और अपने कामों से बच्चों पर प्यार बरसाएँ, तो वे भी मानसिक और भावात्मक रूप से फलेंगे-फूलेंगे और मज़बूत होंगे।

बाइबल सरल शब्दों में कहती है: “प्रेम से उन्‍नति होती है।” (1 कुरिन्थियों 8:1) जो माँ-बाप दिल खोलकर अपने बच्चों पर प्यार ज़ाहिर करते हैं, वे दरअसल अपने सिरजनहार यहोवा की मिसाल पर चल रहे हैं। बाइबल बताती है कि यीशु ने अपने बपतिस्मे के मौके पर अपने पिता को यह कहते हुए सुना कि वह उससे प्यार करता है और उससे खुश है। हालाँकि उस वक्‍त यीशु बच्चा नहीं मगर बड़ा हो चुका था, फिर भी अपने पिता की यह बात सुनकर उसका दिल कैसे गद्‌गद हो उठा होगा!—लूका 3:22.

आप अपने बच्चों को जो प्यार दिखाते हैं, सोने से पहले जो कहानियाँ सुनाते हैं, यहाँ तक कि उनके साथ जो खेल खेलते हैं, ये सब उनके विकास के लिए निहायत ज़रूरी हैं। डॉ. जे. फ्रेज़र मस्टर्ड कहते हैं: ‘बच्चा जो कुछ करता है, वह उसे ज़िंदगी-भर भुला नहीं सकता बल्कि अपने तजुरबे के भंडार में उसे जोड़ता है। इसलिए जब बच्चा घुटनों के बल चलना सीख रहा होता है, तो आप उसे कैसा बढ़ावा देते और कैसा रवैया दिखाते हैं, यह बहुत मायने रखता है।’ जी हाँ, माता-पिता का प्यार और परवाह ही वह मज़बूत बुनियाद है जिसकी बिना पर बच्चे बड़े होकर समझदार और ज़िम्मेदार इंसान बनते हैं।

अच्छा दोस्त बनिए और खुलकर बातचीत कीजिए

बच्चे के साथ वक्‍त बिताने से आप दोनों के बीच एक अटूट बंधन कायम होगा। इसके अलावा, वह आपसे खुलकर बात करना सीखेगा। शास्त्र में इस तरह बच्चों के साथ वक्‍त बिताकर एक करीबी रिश्‍ता कायम करने का बढ़ावा दिया गया है, फिर चाहे यह घर बैठे किया जाए या किसी और जगह पर और किसी भी मुनासिब वक्‍त पर।—व्यवस्थाविवरण 6:6,7; 11:18-21.

बाल-विकास विशेषज्ञ मानते हैं कि महँगे खिलौनों या किसी भी तरह के मनोरंजन से ज़्यादा बच्चों के साथ माता-पिता का वक्‍त बिताना ज़रूरी है। आप रोज़ाना अपने बच्चों के साथ मिलकर ऐसा कोई काम कर सकते हैं जिसमें ज़्यादा खर्च न हो और जिससे आपको उनके साथ वक्‍त बिताने का मौका भी मिले। मसलन, आप उन्हें पार्क ले जा सकते हैं, जहाँ वे कुदरत के नज़ारों का लुत्फ उठा सकें। ऐसे मौकों पर आप उनसे सवाल पूछकर उन्हें बेझिझक बातचीत करने के लिए उकसा सकते हैं।

बाइबल कहती है कि “नाचने का भी समय [होता] है।” (सभोपदेशक 3:1, 4) जी हाँ, बच्चों के लिए खेल-कूद ज़रूरी है ताकि उनकी दिमागी काबिलीयतें, लोगों से घुलने-मिलने की और अपनी भावनाओं को सही ढंग से ज़ाहिर करने की काबिलीयतें बढ़ें। डॉ. मस्टर्ड का कहना है कि खेल न सिर्फ ज़रूरी बल्कि निहायत ज़रूरी हैं। वे कहते हैं: “खासकर खेल से ही बच्चों के मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं की ऐसी कड़ियाँ बनती हैं जिनसे वे अलग-अलग तरह के काम करने के काबिल बनते हैं।” बच्चे के लिए मामूली-सी चीज़ें भी खिलौना हो सकती हैं, जैसे गत्ते का एक खाली बक्स। घर पर ऐसी कई चीज़ें बच्चों का खिलौना बन सकती हैं जिनसे उन्हें किसी तरह का नुकसान नहीं होता। बच्चों को ऐसी चीज़ों के साथ खेलने में उतना ही मज़ा आता है जितना कि महँगे और नयी टैक्नोलॉजी के खिलौने से आता है। *

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बड़े लोग यह तय करने में हद कर देते हैं कि बच्चों को कब-क्या करना है, तो वे उनकी कल्पना-शक्‍ति और कुछ नया करने की दिमागी काबिलीयत को मार रहे होंगे। अच्छा होगा अगर माता-पिता इस मामले में संयम से काम लें। बच्चे को अपनी छोटी-सी दुनिया के बारे में खुद जानने की छूट दें और उन्हें अपनी काबिलीयतों को आज़माने का मौका दें। अकसर बच्चा अपना मन बहलाने के लिए कोई-न-कोई तरीका ढूँढ़ ही लेता है। मगर इसका यह मतलब नहीं कि आप उस पर नज़र रखने की ज़िम्मेदारी से बरी हो जाते हैं। आपको बराबर देखना चाहिए कि वह क्या कर रहा है और कहाँ खेल रहा है ताकि उसे कोई चोट न पहुँचे।

वक्‍त निकालिए

बच्चों की देखरेख और परवरिश में, उन्हें तालीम देना बेहद ज़रूरी है क्योंकि तभी वे बड़े होकर ज़िंदगी के हर हालात का सामना करने के काबिल बनेंगे। कई माँ-बाप हर दिन वक्‍त निकालकर अपने बच्चों को कुछ-न-कुछ पढ़कर सुनाते हैं। इससे उन्हें बच्चों को यह सिखाने का मौका मिलता है कि किस तरह का बर्ताव अच्छा है और किस तरह का बुरा। वे यह भी सिखा पाते हैं कि सिरजनहार के मुताबिक क्या सही है और क्या गलत। बाइबल कहती है कि तीमुथियुस, जो एक वफादार शिक्षक और मिशनरी था, ‘बालकपन से पवित्र शास्त्र को जानता था।’—2 तीमुथियुस 3:15.

अगर बच्चे को पढ़कर सुनाया जाए, तो उसके मस्तिष्क में सिनैप्सिस की ज़्यादा कड़ियाँ बन सकती हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि पढ़ते वक्‍त आपकी आवाज़ में प्यार और परवाह झलके। मगर बच्चों को क्या पढ़कर सुनाना चाहिए, इस बारे में शिक्षा की प्रोफेसर लिन्डा सीगल इस बात की तरफ ध्यान दिलाती हैं: “बच्चों को ऐसी बातें पढ़कर सुनाएँ, जिससे उन्हें मज़ा आए।” इसके अलावा, बच्चों को हर दिन, एक ही समय पर पढ़कर सुनाने की कोशिश कीजिए। फिर वे कहानी सुनने के वक्‍त का बेसब्री से इंतज़ार करेंगे।

तालीम देने में अनुशासन देना भी शामिल है। अगर अनुशासन प्यार से दिया जाए, तो इससे नन्हे-मुन्‍नों को फायदा हो सकता है। नीतिवचन 13:1 कहता है: “बुद्धिमान पुत्र पिता की शिक्षा सुनता है।” मगर याद रखें कि अनुशासन देने में कई बातें शामिल हैं। मसलन, बच्चों को उनकी गलतियों का एहसास दिलाने के लिए उन्हें डाँटना, कुछ समय के लिए उन पर पाबंदियाँ लगाना या उन्हें कोई और तरह की सज़ा देना शामिल हो सकता है। डॉ. ब्रेज़ल्टन जिनका हवाला पहले दिया गया है, वे कहते हैं कि अनुशासन का मतलब है “एक बच्चे को यह सिखाना कि वह कैसे अपनी भावनाओं को काबू में रखे और बस से बाहर होकर कुछ हरकत न करे। हर बच्चा चाहता है कि कोई उसे बताए कि उसकी हद क्या है। प्यार के बाद बच्चे की दूसरी बड़ी ज़रूरत है, अनुशासन।”

एक माँ या बाप होने के नाते, आप कैसे पक्का कर सकते हैं कि आप जिस मकसद से अनुशासन देते हैं, वह ज़रूर पूरा होगा? एक तरीका है, अपने बच्चों को समझाना कि आप उन्हें क्यों अनुशासन दे रहे हैं। अपने बच्चों को ताड़ना देते वक्‍त उन्हें एहसास दिलाएँ कि आप उनसे प्यार करते हैं और उनकी मदद करना चाहते हैं।

मेहनत जो रंग लाती है

फ्रेड एक पिता है जो हर रोज़, अपनी बिटिया के सोने से पहले उसे पढ़कर सुनाता था। उसने तब से यह आदत बनायी है जब उसकी बेटी बहुत छोटी थी। समय के गुज़रते उसने गौर किया कि उसकी गुड़िया को कई कहानियाँ मुँह-ज़बानी याद हो गयी हैं और जब वह पढ़ता है, तो उसकी बच्ची भी उसके साथ-साथ शब्दों और उनके उच्चारण को पहचान पाती है। क्रिस एक और पिता है, जो बिना नागा अपने बच्चों को पढ़कर सुनाता था। उसकी हमेशा यही कोशिश थी कि वह अपने बच्चों को अलग-अलग किस्म की जानकारी पढ़कर सुनाए। जब बच्चे बहुत छोटे थे, तब उन्हें सही-गलत और परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े सबक सिखाने के लिए, वह बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक जैसी किताबों में दी तसवीरों का इस्तेमाल करता था। *

दूसरे माँ-बाप पढ़ने के अलावा बच्चों के साथ तरह-तरह के काम करने की कोशिश करते हैं, जैसे ड्रॉइंग-पेंटिंग करना, साज़ बजाना, कैम्पिंग जाना, या परिवार के साथ चिड़ियाघर जैसी जगहों की सैर करना। ऐसे मौकों पर वे बच्चों को अच्छे सबक और नैतिक आदर्श सिखा सकते हैं। क्योंकि यही वह उम्र है जब ऐसी बातें उनके दिलो-दिमाग में घर कर जाती हैं।

क्या ये सारी मेहनत वाकई रंग लाती है? जो माँ-बाप ऊपर बतायी कारगर हिदायतों को मानते हैं और अपने बच्चों के लिए एक शांत और सुरक्षित माहौल बनाने में अपना भरसक करते हैं, उनके मामले में यह गुंजाइश ज़्यादा रहती है कि उनके बच्चे ज़िंदगी के बारे में सही नज़रिया कायम करेंगे। अगर आप अपने नन्हे-मुन्‍ने के शुरूआती सालों में उसकी सोचने-समझने और बातचीत करने की काबिलीयत बढ़ाते हैं, तो आप उसे एक आदर्श इंसान बनने और आध्यात्मिक बातों में मज़बूत होने में मदद देंगे।

बाइबल के नीतिवचन 22:6 में सदियों पहले यह बात लिखी गयी थी: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।” बच्चों को ट्रेनिंग देने में माता-पिता का वाकई बड़ा हाथ होता है। इसलिए दिल खोलकर अपने बच्चों के लिए प्यार दिखाइए। उनके साथ वक्‍त बिताइए, उनकी अच्छी देखरेख कीजिए और उन्हें तालीम दीजिए। इससे उनकी और आपकी ज़िंदगी में खुशियाँ भर आएँगी।—नीतिवचन 15:20. (g04 10/22)

[फुटनोट]

^ मार्च 22,1993 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) में, “अफ्रीकी खिलौने, मुफ्त में” लेख देखिए।

^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है। साक्षियों ने एक और अँग्रेज़ी किताब भी प्रकाशित की है, महान शिक्षक से सीखिए। यह छोटे बच्चों को सिखाने के लिए एक बढ़िया किताब है।

[पेज 7 पर बक्स]

अपने शिशु के साथ खेलना

◼ शिशुओं का ध्यान एक चीज़ पर ज़्यादा देर नहीं टिकता, इसलिए जब तक उनको खेलने में मज़ा आता है, तब तक उनके साथ खेलिए।

◼ अगर आप बच्चे को खेलने के लिए खिलौने देते हैं, तो ध्यान रखिए कि उनसे बच्चे को कोई चोट न लगे। साथ ही, खिलौने ऐसे हों जिनसे खेलने से उसका दिमाग काम करे।

◼ ऐसे खेल खेलिए जिनमें आप एक ही जगह बैठे न रहें। शिशुओं को खासकर ऐसे खेलों से बहुत मज़ा आता है जिनमें वे बार-बार कोई खिलौना फेंकते हैं और आप हर बार उसे उठाकर उन्हें देते हैं।

[चित्र का श्रेय]

किताब: Clinical Reference Systems

[पेज 10 पर बक्स/तसवीर]

अपने बच्चे को पढ़कर सुनाने के कुछ सुझाव

◼ हर लफ्ज़ को साफ-साफ बोलिए और उसका सही-सही उच्चारण कीजिए। एक बच्चा वैसा ही बोलना सीखता है, जैसे वह अपने माँ-बाप को बोलते सुनता है।

◼ जो बच्चे बहुत छोटे हैं, उन्हें कहानी की किताब पढ़कर सुनाते वक्‍त, लोगों और चीज़ों की तसवीर दिखाइए और उनके नाम बताइए।

◼ अगर बच्चा थोड़ा बड़ा है, तो इस उम्र में उसे जिन बातों में ज़्यादा दिलचस्पी होती है, उन्हीं से जुड़ी किताबें पढ़कर सुनाइए।

[चित्र का श्रेय]

किताब: Pediatrics for Parents

[पेज 8, 9 पर तसवीरें]

वक्‍त निकालकर अपने बच्चों के साथ मौज-मस्ती कीजिए