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प्यार करें तो जताएँ भी

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प्यार करें तो जताएँ भी

“बच्चों को कई बार सीने से लगाइए!” यह सलाह बाल-मनोरोगविज्ञान के एक प्रोफेसर ने एक स्त्री को दी जो पहली बार माँ बनी और जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। दरअसल, उसने प्रोफेसर से बच्चों की बढ़िया परवरिश करने की सलाह माँगी थी। उस प्रोफेसर ने आगे कहा: “प्यार और अपनापन दिखाने के कई तरीके हैं। जैसे, गले लगाना, चूमना और प्यार, समझ, खुशी, दरियादिली और माफी की बातें करना। साथ ही, ज़रूरत पड़ने पर अनुशासन भी देना। हमें कभी-भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि हमारे बच्चे जानते हैं कि हम उनसे कितना प्यार करते हैं।”

स्पर्श पर खोज करनेवाले इंस्टिट्यूट की निर्देशिका, टिफनी फीइल्ड ऊपर दी गयी सलाह से पूरी तरह सहमत हैं। यह इंस्टिट्यूट, अमरीकी राज्य फ्लोरिडा के ‘यूनिवर्सिटी ऑफ माइआमी’ में पाया जाता है। टिफनी दावे के साथ कहती हैं: “बच्चों की खुशी, सेहत और विकास के लिए खाना और कसरत जितना ज़रूरी होता है, उतना ही ज़रूरी होता है उन्हें प्यार से छूना और सहलाना।”

यह तो रही बच्चों की बात, पर बड़ों के बारे में क्या? क्या उनमें भी यह ज़रूरत होती है कि कोई उन्हें प्यार से छूए? बेशक। मनोविज्ञानी क्लॉड स्टाइनर अपनी खोजबीन से इस नतीजे पर पहुँचें कि हमारी चाहे जो भी उम्र हो, मानसिक रूप से सेहतमंद रहने के लिए ज़रूरी है कि लोग हमारी हौसला-अफज़ाई करें और छूकर हमें बढ़ावा दें। लॉरा नाम की एक नर्स जो बुज़ुर्गों के एक बड़े समूह की देखभाल करती है, वह कहती है: “मैंने देखा है कि जब बुज़ुर्गों में प्यार बाँटा जाता है, तो उनके व्यवहार में बहुत फर्क पड़ता है। प्यार से पेश आने और छूने से आप उनका भरोसा जीत पाते हैं और फिर वे राज़ी-खुशी आपकी बातें मानते हैं। यही नहीं, उनकी गरिमा भी बनी रहती है।”

प्यार जताने का फायदा सिर्फ उस व्यक्‍ति को नहीं होता, जिससे प्यार जताया जाता है। बल्कि इससे प्यार जतानेवालों को भी फायदा होता है। जैसे यीशु मसीह ने एक मौके पर कहा था, “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” (प्रेषितों 20:35) और यह खुशी तब दो गुना बढ़ जाती है, जब खासकर ऐसे लोगों को खुलकर प्यार ज़ाहिर किया जाता है, जो चिंता से घिरे रहते हैं, मायूस होते हैं या जिनमें आत्म-विश्‍वास की कमी होती है। पुराने ज़माने में ऐसे लोगों को प्यार-भरी मदद कैसे दी गयी थी, इसकी ढेरों मिसालें बाइबल में दर्ज़ हैं।

उदाहरण के लिए, उस आदमी को लीजिए “जिसका शरीर पूरी तरह कोढ़ से ग्रस्त था” और जिसे समाज से बेदखल कर दिया गया था। जब यीशु मसीह ने प्यार से उसे छूआ, तो ज़रा सोचिए उसे क्या ही राहत मिली होगी!—लूका 5:12, 13; मत्ती 8:1-3.

बूढ़े भविष्यवक्‍ता दानिय्येल के बारे में सोचिए। जब परमेश्‍वर के एक स्वर्गदूत ने उसकी हौसला-अफज़ाई की और उसे तीन बार छूआ, तो उसमें कितना जोश भर गया होगा। दरअसल, दानिय्येल शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह थक चुका था और इससे उबरने के लिए उसे इसी प्यार-भरी छुआई और हौसला बढ़ानेवाले शब्दों की ज़रूरत थी।—दानिय्येल 10:9-11, 15, 16, 18, 19.

एक मौके पर प्रेषित पौलुस के करीबी दोस्त उससे मिलने आए। उन्होंने इफिसुस से मीलेतुस का कुछ 50 किलोमीटर का लंबा सफर तय किया था। मीलेतुस में पौलुस ने उन्हें बताया कि अब उनसे शायद दोबारा मिलना नहीं होगा। इस पर उसके वफादार दोस्त उसके “गले लगकर उसे प्यार से चूमने लगे।” ज़रा सोचिए, इससे पौलुस को कितनी हिम्मत मिली होगी।—प्रेषितों 20:36, 37.

इन सारी बातों का निचोड़ यही है कि बाइबल और नए ज़माने की खोज, दोनों से हमें यही बढ़ावा मिलता है कि हम खुलकर एक-दूसरे को प्यार जताएँ। यह एक ज़रूरत है, जिसे पूरा करने पर एक इंसान शारीरिक और मानसिक रूप से सेहतमंद रहता है। यही नहीं, प्यार और अपनापन सिर्फ बच्चों से नहीं बल्कि बड़े-बुज़ुर्गों से भी जताया जाना चाहिए। (g09-E 12)