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शोक मनानेवालों के लिए मदद

शोक मनानेवालों के लिए मदद

शोक मनानेवालों के लिए मदद

“यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है।” —भजन 34:18.

जब हमारे किसी अज़ीज़ की मौत हो जाती है तो हमारे अंदर भावनाओं का तूफान उमड़ने लगता है, हमें सदमा पहुँचता है, शरीर सुन्‍न पड़ जाता है, उदासी छायी रहती है और हो सकता है हम खुद को अपराधी महसूस करें या अपने आपसे गुस्सा हो जाएँ। मगर हर कोई एक जैसी भावनाओं से नहीं गुज़रता। फिर भी, जब हम अपने दुख पर काबू नहीं रख पाते तो उसे ज़ाहिर करने में कोई बुराई नहीं।

“अपना दुख ज़ाहिर कीजिए!”

हैलौइसा नाम की एक डॉक्टर ने अपनी माँ की मौत के बाद अपनी भावनाओं को अंदर-ही-अंदर दबाने की कोशिश की। वह कहती है, “शुरू-शुरू में तो मैं रोयी मगर जल्द ही मैं अपनी भावनाओं को दबाने लगी ठीक वैसे ही जैसे मैं अपने किसी मरीज़ की मौत पर किया करती थी। इस वजह से मेरी सेहत बिगड़ने लगी। जो अपने अज़ीज़ों को मौत में खो देते हैं उनके लिए मेरा एक सुझाव है, अपना दुख ज़ाहिर कीजिए! अपने दिल से गुबार निकालिए, आप अच्छा महसूस करेंगे।”

लेकिन हो सकता है कई दिन या हफ्ते गुज़रने के बाद भी आप सिसिलिया की तरह महसूस करें जिसके पति की कैंसर से मौत हो गयी थी। वह कहती है, “कभी-कभी मैं बहुत निराश हो जाती हूँ क्योंकि कुछ लोगों को लगता है कि अब तक तो मुझे अपने दुख से उबर जाना चाहिए था, जबकि मैं ऐसा नहीं कर पायी हूँ।”

अगर आप भी ऐसे ही दौर से गुज़र रहे हैं, तो याद रखिए कि दुख ज़ाहिर करने का कोई एक “सही” तरीका नहीं है। कुछ लोग जल्दी सँभल जाते हैं, तो कुछ को वक्‍त लगता है। इस दुख से बाहर आने के लिए खुद पर दबाव मत डालिए और ना ही यह सोचिए कि आपको “फलाँ दिन” तक सामान्य होना ही पड़ेगा। *

अगर आपको लगता है कि आप निराशा के अँधेरे में खोते जा रहे हैं और आप अपने दुख से कभी नहीं उबर पाएँगे, तब आप क्या कर सकते हैं? शायद आप नेक इंसान याकूब की तरह महसूस करें। उसे जब पता चला कि उसके बेटे यूसुफ की मौत हो चुकी है, तो वह ‘शांति पाने से इनकार करता रहा।’ (उत्पत्ति 37:35, NW) अगर आपके साथ भी ऐसा ही हो रहा है, तो आप इससे उबरने के लिए कौन-से कारगर कदम उठा सकते हैं?

अपना ख्याल रखिए। सिसिलिया कहती है, “कई बार मैं थककर चूर हो जाती हूँ और मुझे लगता है कि मैं हद-से-ज़्यादा दुख में डूबती जा रही हूँ।” जैसा कि सिसिलिया की बातों से ज़ाहिर होता है, दुख हमें शारीरिक और मानसिक तौर पर तोड़कर रख सकता है। इसलिए अच्छा होगा कि आप अपनी सेहत का ध्यान रखें। भरपूर आराम लें और पौष्टिक खाना खाएँ।

हो सकता है आपकी भूख मर गयी हो, आपको बाज़ार से कुछ लाने या खाना पकाने का मन ना करे। लेकिन अगर आप पौष्टिक खाना नहीं खाएँगे तो आपको आसानी से कोई संक्रमण लग सकता है और आप जल्दी बीमार पड़ सकते हैं। थोड़ा-थोड़ा खाना खाने की कोशिश कीजिए ताकि आपकी सेहत अच्छी बनी रहे। *

अगर मुमकिन हो, तो हल्की-फुल्की कसरत शुरू कीजिए, जैसे कि पैदल चलना। इस तरह कम-से-कम आप घर से बाहर निकलेंगे। साथ ही, थोड़ी-बहुत कसरत से हमारे दिमाग में एंडोर्फिन्स नाम का एक रसायन निकलता है, जिससे हम अच्छा महसूस करते हैं।

दूसरों की मदद लीजिए। जब किसी के जीवन-साथी की मौत हो जाती है तब दूसरों की मदद लेना और भी ज़रूरी हो जाता है। हो सकता है कि वह कई काम निपटाता हो और अब वे अधूरे पड़े हैं। मिसाल के लिए, अगर आपका जीवन-साथी पैसों से जुड़े मसले या घर के काम सँभालता था, तो उसके न रहने पर शुरू-शुरू में उन मामलों की देख-रेख करना आपके लिए मुश्‍किल हो सकता है। ऐसे वक्‍त में समझदार दोस्तों की सलाहों से आपको बहुत मदद मिल सकती है।—नीतिवचन 25:11.

सच्चे दोस्त के बारे में बाइबल कहती है कि वह “विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।” (नीतिवचन 17:17) इसलिए यह सोचकर खुद को दूसरों से अलग मत कीजिए कि आप उनके लिए बोझ बन जाएँगे। सच तो यह है कि दूसरों के साथ मिलने-जुलने से आपको अपने दुख से पार पाने में मदद मिलेगी। सैली नाम की एक नौजवान स्त्री कहती है कि जब उसकी माँ की मौत हुई तो उसे दूसरों के साथ से बहुत मदद मिली। वह कहती है, “मेरे काफी सारे दोस्त मेरा जी हलका करने के लिए मुझे अपने साथ ले जाते थे। इससे मुझे अकेलेपन की खाई से बाहर निकलने में मदद मिली। जब लोग मुझसे पूछते थे कि ‘तुम अब कैसी हो?’ तो मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैंने पाया कि माँ के बारे में बात करने से मुझे अपने गम से उबरने में मदद मिली।”

याद करने की कोशिश कीजिए। अपने अज़ीज़ के साथ बिताए अच्छे वक्‍त को याद कीजिए। इसके लिए आप पुरानी तसवीरें देख सकते हैं। यह सच है कि शुरूआत में उन पलों को याद करके शायद आपको बहुत दुख हो। मगर वक्‍त के साथ-साथ, ये यादें दर्द पहुँचाने के बजाय मरहम का काम करेंगी।

आप एक डायरी भी लिख सकते हैं। उसमें आप अपने अज़ीज़ के साथ बिताए अच्छे पलों और उन बातों को दर्ज़ कर सकते हैं, जो आप उससे कहना चाहते थे। अपनी लिखी बातों को पढ़ने से शायद आप अपनी भावनाएँ ज़्यादा अच्छी तरह समझ पाएँ। लिखने से एक फायदा यह भी होगा कि आप अपने दिल में दबी बातों को बाहर निकाल पाएँगे।

अपने अज़ीज़ की कोई चीज़ सँभालकर रखने के बारे में क्या? इस मामले में लोगों की अलग-अलग राय होती है और इसमें ताज्जुब नहीं क्योंकि हर कोई अलग तरीके से दुख मनाता है। कुछ लोगों को लगता है कि अगर वे अपने अज़ीज़ की कोई चीज़ सँभालकर रखेंगे तो वे अपना गम कभी कम नहीं कर पाएँगे। पर कुछ लोगों को इससे मदद मिलती है। सैली जिसका पहले ज़िक्र किया गया था कहती है, “मैंने अपनी माँ की बहुत-सी चीज़ें अब तक सहेजकर रखी हैं। इससे मैं गम से बाहर निकल पायी हूँ!” *

‘हर तरह का दिलासा देनेवाले परमेश्‍वर’ पर भरोसा रखिए। बाइबल कहती है: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा।” (भजन 55:22) हम परमेश्‍वर से सिर्फ इसलिए प्रार्थना नहीं करते कि इससे हमें सुकून मिलेगा बल्कि हम परमेश्‍वर पर पूरा भरोसा करते हैं और जानते हैं कि ऐसा करना ज़रूरी है। क्योंकि वह ‘हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है जो हमारी सब दुःख-तकलीफों में हमें दिलासा देता है।’—2 कुरिंथियों 1:3, 4.

सबसे ज़्यादा दिलासा हमें परमेश्‍वर के वचन बाइबल से मिलता है। मसीही प्रेषित पौलुस ने कहा: “मैं परमेश्‍वर से आशा रखता हूँ, . . . कि अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोग मरे हुओं में से जी उठेंगे।” (प्रेषितों 24:15) बाइबल में मरे हुओं के दोबारा ज़िंदा किए जाने की आशा उन सभी को दिलासा देती है, जिन्होंने अपने किसी अज़ीज़ को मौत में खोया है। * लॉरेन नाम की स्त्री ने यह बात बिलकुल सच पायी जिसके जवान भाई की एक दुर्घटना में मौत हो गयी। वह कहती है, “चाहे मैं कितनी भी दुखी होती थी मगर मैं बाइबल ज़रूर पढ़ती, फिर चाहे मैं एक ही आयत पढ़ूँ। मैं खासकर ऐसी आयतें पढ़ती थी जिनसे मुझे दिलासा मिलता था और मैं उन्हें बार-बार पढ़ती थी। उदाहरण के लिए मुझे यीशु के उन शब्दों से बहुत दिलासा मिला जो उसने लाज़र की मौत पर उसकी बहन मार्था से कहे थे: ‘तेरा भाई जी उठेगा।’”—यूहन्‍ना 11:23.

“उसे अपने ऊपर कभी हावी मत होने दीजिए”

गम का सामना करना मुश्‍किल ज़रूर होता है, लेकिन ऐसा करने से आप उससे उबर पाएँगे। ऐसा मत सोचिए कि ज़िंदगी में आगे बढ़कर आप कुछ गलत कर रहे हैं मानो अपने अज़ीज़ को भुला रहे हैं या उसे धोखा दे रहे हैं। सच तो यह है कि आप उसे कभी नहीं भुला पाएँगे। कई बार उसकी यादें आपके ज़हन में ताज़ा हो जाएँगी, मगर धीरे-धीरे उसकी यादें आपको रुलाएँगी नहीं।

अज़ीज़ों के साथ बिताए खट्टे-मीठे अनुभव शायद आपको गुदगुदा जाएँ। उदाहरण के लिए एशली कहती है, “मुझे माँ की मौत से पहलेवाला दिन आज भी अच्छी तरह याद है जब वह काफी दिन बाद बिस्तर से उठी थीं और उनकी तबियत भी कुछ ठीक लग रही थी। जब मेरी बड़ी बहन माँ के बाल बना रही थी, तो किसी बात पर हम तीनों हँसने लगीं और मैंने बहुत समय बाद माँ को मुस्कराते हुए देखा। हम दोनों के साथ वह कितनी खुश लग रही थीं!”

आप उन बातों को भी याद कर पाएँगे जो आपने अपने अज़ीज़ से सीखी थीं। उदाहरण के लिए, सैली कहती है: “मेरी माँ कमाल की टीचर थीं। सलाह देने का उनका तरीका इतना बढ़िया होता था कि उससे कभी दिल को ठेस नहीं पहुँचती थी। उन्होंने मुझे सिखाया कि मैं उनके या अपने पिता के कहने पर फैसले ना लूँ बल्कि खुद अपनी मरज़ी से फैसले लूँ।”

अपने अज़ीज़ों की यादों के सहारे ही हमें आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है। एलिक्स नाम के एक जवान को भी यह बात सही लगी। वह कहता है, “मेरे पिता ने मुझे सिखाया था कि अपनी ज़िंदगी मज़े से जीओ और उनकी मौत के बाद मैंने ठान लिया कि मैं इसी तरह जीऊँगा। जो अपने माता-पिता को खो चुके हैं उनसे मैं यही कहूँगा कि उनकी मौत का गम आप कभी भुला नहीं पाएँगे लेकिन उसे अपने ऊपर कभी हावी मत होने दीजिए। उन्हें खोने का दुख तो आपको होगा ही लेकिन यह मत भूलिए कि आपकी ज़िंदगी अभी खत्म नहीं हुई है और उसे आपको सबसे अच्छी तरह जीना है।” (g11-E 04)

[फुटनोट]

^ ऐसे हालात में आपको जल्दबाज़ी में कोई फैसला नहीं करना चाहिए, जैसे कि घर बदलना या किसी नए रिश्‍ते में बँधना। ऐसे फैसले आपको थोड़ा वक्‍त गुज़रने के बाद ही करने चाहिए, जब आपने अपने दुख पर काबू पा लिया हो।

^ हालाँकि शराब आपको अपना गम भुलाने में मदद कर सकती है, पर उसका असर सिर्फ कुछ समय के लिए होता है। यह आपको हमेशा के लिए अपना गम भुलाने में मदद नहीं करेगी और आपको इसकी लत भी लग सकती है।

^ हर इंसान अलग तरीके से अपना गम ज़ाहिर करता है इसलिए दोस्तों और रिश्‍तेदारों को उन पर अपनी राय नहीं थोपनी चाहिए।—गलातियों 6:2, 5.

^ मरे हुए किस हाल में हैं और दोबारा ज़िंदा किए जाने के परमेश्‍वर के वादे के बारे में और जानकारी के लिए बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब के अध्याय 6 और 7 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 31 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“चाहे मैं कितनी भी दुखी होती थी मगर मैं बाइबल ज़रूर पढ़ती, फिर चाहे मैं एक ही आयत पढ़ूँ।”—लॉरेन

[पेज 30 पर बक्स/तसवीर]

“दोष की भावना से उबरना”

शायद आपको लगता हो कि आपकी ही किसी लापरवाही की वजह से आपके अज़ीज़ की मौत हो गयी है। चाहे आप सचमुच कसूरवार हों या फिर आपको सिर्फ ऐसी गलतफहमी हो गई हो, मगर यह समझना कि इस तरह दोषी महसूस करना लाज़िमी है, अपने आप में फायदेमंद हो सकता है। मगर ऐसा मत सोचिए कि आपको ये भावनाएँ अपने अंदर दबाकर रख लेनी चाहिए। दोष की भावना से आप अंदर-ही-अंदर किस कदर घुट रहे हैं इसके बारे में किसी से बात कीजिए। तब आप मन में बहुत हलका महसूस करेंगे।

यकीन कीजिए कि हम चाहे एक इंसान से कितना ही प्यार क्यों न करें, उसकी ज़िंदगी हमारी मुट्ठी में नहीं है। और न ही हम उसे उन घटनाओं से पूरी तरह महफूज़ रख सकते हैं जो “समय और संयोग” के वश में हैं। (सभोपदेशक 9:11) और यह भी यकीन रखिए कि आप मरनेवाले की भलाई ही चाहते थे। उदाहरण के लिए, क्या आप उसे डॉक्टर के पास इसलिए जल्द-से-जल्द नहीं ले गए क्योंकि आप चाहते थे कि आपका अज़ीज़ बीमारी से मर जाए? हरगिज़ नहीं! तो आप कैसे कह सकते हैं कि आप ही अपने अज़ीज़ की मौत के ज़िम्मेदार हैं? आप ज़िम्मेदार नहीं हैं।

एक माँ, कार दुर्घटना में मरनेवाली अपनी बेटी की मौत के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानती थी। मगर उसने खुद को दोषी समझने की इस भावना पर काबू पाना सीखा। वह बताती है: “मैं खुद को कसूरवार ठहरा रही थी कि मैंने उसे बाहर क्यों भेजा। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि ऐसी बातें सोचने का कोई तुक नहीं है। दरअसल उसे अपने पापा के साथ सामान खरीदने के लिए भेजना कोई गलत बात नहीं थी। यह एक भयानक हादसा था और मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती थी।”

फिर भी आप कहें ‘लेकिन शायद मैं कुछ ऐसा कह सकती थी या कर सकती थी जिससे यह सब ना होता।’ आपकी यह बात सच है, मगर क्या हम में से कोई भी पिता, माँ या बच्चा सिद्ध है? बाइबल यह बात हमारे ध्यान में लाती है: “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं: जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है।” (याकूब 3:2; रोमियों 5:12) इसलिए इस हकीकत को कबूल कीजिए कि आप सिद्ध नहीं हैं। अगर आप हमेशा यही सोचते रहेंगे, कि ‘काश! मैंने ये किया होता, या वो किया होता,’ तो इससे कुछ बदलेगा नहीं, हाँ इतना ज़रूर होगा कि दुख से उबरने में आपको और ज़्यादा समय लगेगा। *

[फुटनोट]

^ इस बक्स में दी जानकारी ब्रोशर जब आपका कोई अपना मर जाए से ली गयी है। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

[पेज 29 पर तसवीर]

कभी-कभी बुज़ुर्ग माता-पिता को मौत के गम में डूबे अपने बच्चे को दिलासा देना पड़ता है

[पेज 32 पर तसवीरें]

डायरी लिखने, पुराने फोटो देखने और दूसरों से मदद लेने के ज़रिए आप अपने अज़ीज़ की मौत के गम से उबर सकते हैं