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ज़बान का सही इस्तेमाल करना क्यों ज़रूरी है?

ज़बान का सही इस्तेमाल करना क्यों ज़रूरी है?

बाइबल क्या कहती है?

ज़बान का सही इस्तेमाल करना क्यों ज़रूरी है?

एक देश के प्रधानमंत्री से जब एक बुज़ुर्ग औरत मिलने आयी, तो प्रधानमंत्री ने उससे बड़े अदब से बात की। लेकिन उसके जाते ही प्रधानमंत्री ने उसे एक बददिमाग औरत कहा और अपने कर्मचारियों को फटकारा कि उसे इधर आने ही क्यों दिया। प्रधानमंत्री इस बात से बेखबर था कि उसका माइक ऑन है और सब लोग उसे सुन रहे हैं। उसके मुँह से ऐसी बातें सुनकर, पूरा देश हक्का-बक्का रह गया। इस घटना से प्रधानमंत्री की इज़्ज़त तो मिट्टी में मिली ही, आठ दिन बाद वह चुनाव भी हार गया।

इंसान कई बार चाहकर भी अपनी ज़बान पर पूरी तरह काबू नहीं रख पाता। (याकूब 3:2) फिर भी, जैसा कि ऊपर दिए अनुभव से पता चलता है, शब्दों में बहुत ताकत होती है। आप क्या कहते हैं और किस लहज़े में कहते हैं, उससे आपके नाम, आपके करियर यहाँ तक कि दूसरों के साथ आपके रिश्‍ते पर अच्छा या बुरा असर हो सकता है।

लेकिन क्या आपको पता है कि आपकी बातों से कुछ और भी ज़ाहिर होता है? बाइबल समझाती है कि आपकी बातों से ज़ाहिर होता है कि आप अंदर से कैसे इंसान हैं। यीशु ने कहा था: “जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है।” (मत्ती 12:34) जी हाँ, आपकी बातें दिखाती हैं कि आप किस तरह के इंसान हैं, आपकी भावनाएँ और आपके सोच-विचार कैसे हैं। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि आप बात करने के अपने तरीके को गहराई से जाँचें। क्या इस मामले में बाइबल आपकी मदद कर सकती है? आगे दिए मुद्दों पर गौर कीजिए।

बात करने का अपना तरीका कैसे सुधारें?

हमारी बातों की शुरूआत हमारी सोच से होती है। इसलिए अगर आप बात करने का अपना तरीका सुधारना चाहते हैं, तो पहले आपको अपने सोचने के तरीके में सुधार लाना होगा। ध्यान दीजिए कि परमेश्‍वर के वचन में दी सलाहों को मानने से किस तरह आपकी सोच पर अच्छा असर हो सकता है, जिससे आपकी बोली में भी सुधार आए।

अपने मन को अच्छी बातों से भरिए। ये अच्छी बातें क्या हैं, इस बारे में बाइबल बताती है: “जो बातें सच्ची हैं, जो बातें गंभीर सोच-विचार के लायक हैं, जो बातें नेकी की हैं, जो बातें पवित्र और साफ-सुथरी हैं, जो बातें चाहने लायक हैं, जो बातें अच्छी मानी जाती हैं, जो सद्‌गुण हैं और जो बातें तारीफ के लायक हैं, लगातार उन्हीं पर ध्यान देते रहो।”फिलिप्पियों 4:8.

इस बेहतरीन सलाह को मानने से आप तुरंत गलत खयालों को अपने मन से निकाल सकेंगे। याद रखिए, आप जो देखते या पढ़ते हैं, वह आपके दिलो-दिमाग में घर कर जाता है और आपकी सोच पर गहरा असर करता है। इसलिए गलत और गंदे खयालों से बचने के लिए ज़रूरी है कि आप उन चीज़ों से दूर रहें जो आप पर गलत असर डाल सकती हैं। इसका मतलब है, ऐसे मनोरंजन से दूर रहना जिनमें बहुत मार-धाड़ और अश्‍लीलता दिखायी जाती है। (भजन 11:5; इफिसियों 5:3, 4) अपना मन शुद्ध और अच्छे विचारों पर लगाएँ। ऐसा करने में बाइबल आपकी मदद कर सकती है। उदाहरण के लिए, नीतिवचन 4:20-27; इफिसियों 4:20-32 और याकूब 3:2-12 पढ़िए। गौर कीजिए कि इन वचनों में दिए सिद्धांत बातचीत करने के आपके तरीके को कैसे सुधार सकते हैं। *

बोलने से पहले सोचिए। नीतिवचन 12:18 कहता है: “ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच-विचार का बोलना तलवार की नाईं चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।” अगर आपके मुँह से अकसर ‘चुभनेवाली’ बातें निकलती हैं, तो क्यों न कोशिश करें कि कुछ भी बोलने से पहले आप उसके बारे में अच्छी तरह सोच लें। नीतिवचन 15:28 में दी इस बढ़िया सलाह पर चलिए: “धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूं, परन्तु दुष्टों के मुंह से बुरी बातें उबल आती हैं।”

इस सिलसिले में यह लक्ष्य रखिए: अगले एक महीने तक कोशिश कीजिए कि आप अपनी ज़बान पर काबू रखेंगे और जो मुँह में आए वह नहीं बोलेंगे, खासकर तब जब आप बहुत गुस्से में हों। इसके बजाय, इस लेख में दी बाइबल की आयतों पर गहराई से सोचेंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि आप सोच-समझकर, शांति से और प्यार से बात करें। (नीतिवचन 15:1-4, 23) लेकिन इसके अलावा भी आपको कुछ करने की ज़रूरत है।

प्रार्थना में परमेश्‍वर से मदद माँगिए। बाइबल के एक लेखक ने अपनी प्रार्थना में कहा: “मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्‍वर।” (भजन 19:14) यहोवा परमेश्‍वर को अपनी ख्वाहिश बताइए कि आप अपनी ज़बान का इस तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं जिससे उसे खुशी मिले और दूसरों को भी आपका साथ अच्छा लगे। नीतिवचन 18:20, 21 कहता है: “मन को भानेवाले शब्द बोलिए, आपको खुशी होगी कि आपने ऐसा किया। शब्द या तो ज़िंदगी दे सकते हैं या मौत।”—कॉन्टेम्प्ररी इंग्लिश वर्शन।

बाइबल को आइने की तरह इस्तेमाल कीजिए। परमेश्‍वर का वचन एक आइने की तरह है जिसमें आप खुद की बारीकी से जाँच कर सकते हैं। (याकूब 1:23-25) मिसाल के लिए, नीचे दिए बाइबल के तीन सिद्धांतों पर गौर कीजिए और अपने-आप से पूछिए, ‘मेरे बात करने का तरीका कैसा है और इस मामले में दूसरे मेरे बारे में क्या राय रखते हैं?’

“कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध धधक उठता है।” (नीतिवचन 15:1) क्या आप कोमलता से बात करते हैं और शांति बनाए रखने की कोशिश करते हैं?

“कोई गंदी बात तुम्हारे मुँह से न निकले, मगर सिर्फ ऐसी बात निकले जो ज़रूरत के हिसाब से हिम्मत बँधाने के लिए अच्छी हो, ताकि उससे सुननेवालों को फायदा पहुँचे।” (इफिसियों 4:29) क्या आपकी बातों से दूसरों की हिम्मत बढ़ती है?

“तुम्हारे बोल हमेशा मन को भानेवाले, सलोने हों। अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम्हें हर एक को वैसे जवाब देना आ जाएगा, जैसे तुमसे उम्मीद की जाती है।” (कुलुस्सियों 4:6) क्या आप मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी इस बात का खयाल रखते हैं कि आपके बोल मन को भानेवाले हों और उनसे दूसरों को ठेस न पहुँचे?

जब आप आइने के सामने खड़े होकर अपनी कमियाँ ठीक करते हैं, तो आप न सिर्फ दूसरों की नज़र में अच्छे दिखते हैं बल्कि आप खुद भी अच्छा महसूस करते हैं। परमेश्‍वर के वचन के आइने में देखकर अपनी बोली को सुधारने से आपको इसी तरह के फायदे मिल सकते हैं। (g11-E 06)

[फुटनोट]

^ आप वेब साइट www.watchtower.org पर बाइबल पर आधारित और भी लेख पढ़ सकते हैं।

क्या आपने कभी सोचा है?

● आपकी बातों से आपके बारे में क्या पता चलता है?—लूका 6:45.

● आपको दूसरों से किस तरह बात करनी चाहिए?—इफिसियों 4:29; कुलुस्सियों 4:6.

● आप अपनी बोली सुधारने के लिए क्या कारगर कदम उठा सकते हैं?—भजन 19:14; फिलिप्पियों 4:8.

[पेज 32 पर तसवीर]

हम जो बोलते हैं, उसका असर हमारे नाम और दूसरों के साथ हमारे रिश्‍ते पर पड़ता है