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कहानी 34

खाने की एक नयी चीज़

खाने की एक नयी चीज़

क्या आप बता सकते हैं कि लोग ज़मीन से क्या उठा रहे हैं? यह खाने की चीज़ है, जो बर्फ की तरह सफेद और चूरा-चूरा है।

इस्राएलियों को मिस्र छोड़े एक ही महीना हुआ था। इस समय वे जंगल में थे। वहाँ खाने की बहुत कमी थी। इसलिए लोग शिकायत करने लगे: ‘यहोवा हमें मिस्र में ही मार डालता तो अच्छा होता। वहाँ कम-से-कम हमारी पसंद का खाना तो मिलता था।’

तब यहोवा ने कहा: ‘मैं आसमान से खाना बरसाऊँगा।’ और उसने ऐसा ही किया। अगले दिन सुबह इस्राएलियों ने ज़मीन पर चारों तरफ सफेद रंग की कोई चीज़ पड़ी देखी। इस पर वे एक-दूसरे से पूछने लगे: ‘यह क्या है?’

मूसा ने कहा: ‘यह खाने की चीज़ है जो यहोवा ने तुम्हें दी है।’ लोग उस चीज़ को मन्‍ना कहने लगे। उसका स्वाद शहद से बनी रोटियों जैसा था।

मूसा ने लोगों से कहा: ‘तुम उतना ही मन्‍ना उठाना जितना खा सको।’ इसलिए वे हर सुबह उसे बटोरते थे। बाद में जैसे-जैसे धूप तेज़ होती, ज़मीन पर पड़ा बचा-खुचा मन्‍ना पिघल जाता।

मूसा ने यह भी कहा: ‘किसी को भी मन्‍ना दूसरे दिन तक बचाकर नहीं रखना है।’ मगर कुछ लोगों ने उसकी बात नहीं मानी। जानते हैं तब क्या हुआ? जो मन्‍ना उन्होंने बचाकर रखा था, दूसरी सुबह उसमें कीड़े पड़ गए और उससे बदबू आने लगी!

मगर हफ्ते में एक दिन, यहोवा ने लोगों को दुगना मन्‍ना इकट्ठा करने के लिए कहा। वह कौन-सा दिन था? वह था, छठा दिन। यहोवा ने लोगों से कहा कि छठे दिन, वे दो दिन के लिए मन्‍ना जमा करें, क्योंकि सातवें दिन वह मन्‍ना नहीं बरसाएगा। इस तरह जब वे सातवें दिन के लिए मन्‍ना बचाते, तो उसमें न तो कीड़े पड़ते, ना ही बदबू आती! यह एक और चमत्कार था!

इस्राएली जितने सालों तक जंगल में रहे, यहोवा उन्हें मन्‍ना खिलाता रहा।