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कहानी 67

यहोशापात ने यहोवा पर भरोसा रखा

यहोशापात ने यहोवा पर भरोसा रखा

ये इतने सारे लोग कहाँ जा रहे हैं? और जो सबसे आगे-आगे चल रहे हैं, वे क्या कर रहे हैं? ये सब लोग लड़ाई के लिए जा रहे हैं और जो लोग आगे-आगे चल रहे हैं, वे गाना गा रहे हैं। आप शायद पूछें: ‘अगर ये सभी लोग लड़ाई के लिए जा रहे हैं, तो गाना गानेवालों के पास तलवार या भाला क्यों नहीं है?’ चलिए पता करते हैं।

यह तब की बात है, जब यहोशापात इस्राएल के दो गोत्रवाले राज्य का राजा था। उस समय, उत्तर के दस गोत्रवाले राज्य का राजा अहाब था, जिसकी रानी ईज़ेबेल थी। यहोशापात एक अच्छा राजा था। उसका पिता आसा भी अच्छा राजा था। इसलिए दक्षिण के दो गोत्रवाले राज्य के लोग कई सालों तक खुशी से रहे।

लेकिन फिर एक दिन यहोशापात को उसके नौकरों ने बताया: ‘सेईर के पहाड़ी देश और मोआब और अम्मोन देशों से एक बहुत बड़ी सेना हम पर हमला करने आ रही है।’ यह खबर मिलते ही लोग डर के मारे थर-थर काँपने लगे। कई इस्राएली यरूशलेम में यहोवा से मदद माँगने के लिए इकट्ठा हुए। वे सब राजा के साथ यहोवा के मंदिर में गए। वहाँ यहोशापात ने यहोवा से प्रार्थना की: ‘हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा! हमारी समझ में नहीं आ रहा है कि हम क्या करें। इस बड़ी सेना के आगे तो हम कुछ भी नहीं। इसलिए हे यहोवा, हमारी मदद कर।’

यहोवा ने उनकी प्रार्थना सुनी। उसने अपने एक सेवक से लोगों को यह बताने के लिए कहा: ‘यह लड़ाई तुम्हारी नहीं, परमेश्‍वर की है। इसलिए तुम्हें लड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। बस खड़े रहो और देखो कि यहोवा तुम्हें कैसे बचाएगा।’

तब अगले दिन सुबह यहोशापात ने लोगों से कहा: ‘यहोवा पर भरोसा रखो!’ फिर उसने मंदिर में यहोवा के भजन गानेवाले कुछ लेवियों से कहा कि वे सैनिकों के आगे-आगे चलें। वे पूरे रास्ते यहोवा की तारीफ में गीत गाते रहे। पता है, जब इस्राएली लड़ाई के मैदान में पहुँचे तब उन्होंने क्या देखा? यही कि दुश्‍मन सेना के सभी सैनिक मरे पड़े हैं! हुआ यह कि यहोवा ने उनके बीच ऐसी गड़बड़ी डाली कि वे आपस में ही लड़ने लगे। इस तरह, उन्होंने एक-दूसरे को मार डाला।

यहोशापात ने यहोवा पर भरोसा रखकर कितनी बुद्धिमानी का काम किया, है ना? अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो हम भी बुद्धिमान होंगे।