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कहानी 110

तीमुथियुस​—पौलुस का नया साथी

तीमुथियुस​—पौलुस का नया साथी

यहाँ प्रेरित पौलुस के साथ जो जवान लड़का है, वह तीमुथियुस है। तीमुथियुस लुस्त्रा शहर में अपने परिवार के साथ रहता था। उसकी माँ का नाम यूनीके और नानी का नाम लोइस था।

यह तीसरी बार था, जब पौलुस लुस्त्रा आया। करीब एक साल पहले वह बरनबास के साथ पहली बार यहाँ आया था। इस बार वह अपने दोस्त सीलास के साथ आया।

जानते हैं यहाँ पौलुस तीमुथियुस से क्या कह रहा है? वह कह रहा है: ‘क्या तुम मेरे और सीलास के साथ चलना चाहोगे? तुम्हारी मदद से हम उन लोगों को भी परमेश्‍वर के बारे में बता सकेंगे, जो दूर-दूराज़ के इलाकों में रहते हैं।’

तीमुथियुस ने जवाब दिया: ‘हाँ-हाँ, क्यों नहीं।’ फिर तीमुथियुस अपने घरवालों से अलविदा कहकर पौलुस और सीलास के साथ चल दिया। लेकिन उनके सफर के बारे में और जानने से पहले, आइए देखें कि अब तक पौलुस के साथ क्या-क्या हुआ। इसके लिए हमें 17 साल पीछे जाना होगा।

याद है ना, पौलुस पहले कैसे यीशु के चेलों को सताता था? मगर अब वह खुद यीशु का एक चेला बन गया था! वह लोगों को यीशु के बारे में सिखाने लगा। यह बात उसके दुश्‍मनों को पसंद नहीं आयी। इसलिए कुछ समय बाद, उन्होंने उसे मार डालने की साज़िश रची। जब यह बात यीशु के दूसरे चेलों को पता चली, तो उन्होंने पौलुस को एक टोकरी में बिठाया और शहर की दीवार के बाहर उतार दिया। इस तरह उन्होंने उसे मरने से बचा लिया।

वहाँ से पौलुस परमेश्‍वर के बारे में बताने, यानी प्रचार करने के लिए अन्ताकिया गया। यहीं पर यीशु के चेलों को पहली बार ‘मसीही’ कहकर बुलाया गया। फिर अन्ताकिया से पौलुस और बरनबास को प्रचार करने के लिए दूर-दूर के देशों में भेजा गया। उन देशों के जिन शहरों में वे गए, उनमें से एक था लुस्त्रा, जहाँ तीमुथियुस रहता था।

करीब एक साल बाद, जब पौलुस प्रचार के लिए दूसरी बार अलग-अलग जगह गया, तो वह वापस लुस्त्रा आया। तब उसने तीमुथियुस को अपने साथ चलने के लिए कहा। पता है फिर पौलुस, तीमुथियुस और सीलास कहाँ-कहाँ गए? चलिए नक्शा देखकर पता करते हैं।

सबसे पहले वे पास के एक शहर इकुनियुम गए, फिर अन्ताकिया। उसके बाद वे त्रोआस, फिलिप्पी, थिस्सलुनीके और बिरीया गए। क्या आपको नक्शे में अथेने शहर दिखायी दे रहा है? पौलुस ने वहाँ भी प्रचार किया। उसके बाद वे तीनों डेढ़ साल कुरिन्थुस में प्रचार करते रहे। सबसे आखिर में वे इफिसुस गए, जहाँ वे कुछ दिनों के लिए ही रुके। फिर वे जहाज़ से वापस कैसरिया आ गए। वहाँ से वे अन्ताकिया गए, जहाँ पौलुस रुक गया।

देखा आपने, तीमुथियुस पौलुस के साथ “सुसमाचार” का प्रचार करने और कई मसीही कलीसियाएँ शुरू करने के लिए कितने दूर-दूर गया! इसके लिए उसने सैंकड़ों किलोमीटर का लंबा सफर तय किया। बड़े होकर क्या आप भी तीमुथियुस की तरह परमेश्‍वर के एक अच्छे सेवक बनना चाहेंगे?