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“नहीं, यह नहीं हो सकता!”

“नहीं, यह नहीं हो सकता!”

न्यूयॉर्क (अमरीका) में रहनेवाला एक आदमी बताता है: “मेरा बेटा जॉनाथन अकसर अपने दोस्तों से मिलने जाया करता था जो हमारे घर से कुछ मील की दूरी पर रहते थे। मगर मेत्नी वेलन्टीना को उसका वहाँ जाना पसंद नहीं था। सड़क के ट्रैफिक को देखकर हमेशा उसकी जान सूखती रहती थी। मगर जॉनाथन को इलेक्ट्रॉनिक्स का बेहद शौक था। उसके दोस्तों का एक वर्कशॉप था, इसलिए वह वहाँ जाकर काम सीखता था। एक दिन मैं न्यू यॉर्क के पश्‍चिमी मैनहैटन, के अपने घर में था। मेरी पत्नी अपने मायकेवालों से मिलने पोर्टो रिको गयी हुई थी। मैंने सोचा ‘जॉनाथन बस आता ही होगा।’ इतने में दरवाज़े की घंटी बजी। मैंने मन में कहा, ‘ज़रूर वही होगा।’ लेकिन वह नहीं था, बल्कि पुलिसवाले थे और उनके संग अस्पताल के चिकित्सा-दल के कुछ कर्मचारी थे। पुलिस अफसर ने मुझसे पूछा ‘क्या आप पहचान सकते हैं कि यह ड्राइविंग लाइसेंस किसका है?’ ‘हाँ, यह तो मेरे बेटे जॉनाथन का है।’ ‘आपके लिए एक बुरी खबर है। एक दुर्घटना हुई है और . . . आपका बेटा . . . आपका बेटा उसमें मारा गया।’ यह सुनते ही मैंने कहा, ‘नहीं, यह नहीं हो सकता!’ उस घड़ी मानो मेरा कलेजा मेरे सीने में ही फट गया। इतने साल बीत गए हैं मगर आज तक हमारे दिलों में यह ज़ख्म हरा है।”

‘आपके लिए एक बुरी खबर है। एक दुर्घटना हुई है और . . . आपका बेटा . . . आपका बेटा उसमें मारा गया।’

बार्सिलोना (स्पेन) में रहनेवाला एक पिता लिखता है: “सन्‌ 1960 के दशक में मेरा एक खुशहाल परिवार था। मेरी पत्नी मारिया थी और हमारे तीन बच्चे थे, 13 साल का डेविड, 11 साल का पॉकिटो और हमारी बेटी इसबेल, जो 9 साल की थी।

“मार्च 1963 की बात है। एक दिन मेरा बेटा पॉकिटो स्कूल से आते ही कहने लगा कि उसका सिर, दर्द के मारे फटा जा रहा है। हमें कुछ सूझ नहीं रहा था कि दर्द क्यों हो रहा है। लेकिन ज़्यादा इंतज़ार करने की नौबत नहीं आयी। तीन घंटे के बाद उसकी मौत हो गई। दरअसल, उसके दिमाग की नस फटने से अंदर-ही-अंदर खून बहने लगा था, जिसने देखते-ही-देखते उसके प्राण ले लिए।

“पॉकिटो को गुज़रे 30 साल से भी ऊपर हो गए लेकिन उसे खोने का गम आज भी हमारे सीने में बरकरार है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई माँ-बाप अपने बच्चे के मरने पर ऐसा महसूस ना करे कि उनके शरीर का कोई अंग कट गया है। चाहे कितने ही साल क्यों ना गुज़र जाएँ और चाहे उनके और कितने ही बच्चे क्यों ना हो जाएँ, एक बच्चे को खोने का यह गम कभी नहीं जाता।”

अपने बच्चों को खो देनेवाले इन माता-पिताओं के दो अनुभवों से यह पता चलता है कि जब कोई बच्चा गुज़र जाता है तो माता-पिता को कितना गहरा सदमा और जख़्म दे जाता है। एक डॉक्टर की कही यह बात कितनी सच है: “बड़ों के मुकाबले एक घर में किसी बच्चे की मौत ज़्यादा दुःखदायी और दर्दनाक होती है क्योंकि कोई भी उम्मीद नहीं करता कि बड़ों से पहले बच्चों की मौत हो। . . . एक बच्चे की मौत से [बेटे, बहू और पोते-पोतियों का मुँह देखने के] सारे सपने, सारे अरमान चकनाचूर हो जाते हैं।” और कोई भी औरत जिसका बच्चा जन्म लेने से पहले ही उसके गर्भ में दम तोड़ देता है, इतना ही गहरा दुःख महसूस कर सकती है।

दुःख से सरोबार एक पत्नी कहती है: “मेरे पति, रस्सल दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान प्रशांत महासागर के युद्ध क्षेत्र में सहायक डॉक्टर की हैसियत से काम करते थे। उन्होंने अपनी आँखों से बहुत ही भयंकर लड़ाइयाँ देखीं और इस दौरान वो सही सलामत बच भी गए। फिर वो अमरीका लौट आए और वहाँ चैन की ज़िंदगी बिताने लगे। बाद में उन्होंने परमेश्‍वर के वचन के सेवक के तौर पर सेवा की। और 60 के होने पर उनमें दिल की बीमारी के लक्षण नज़र आने लगे, मगर वे चुस्ती-फुर्ती से काम करने की कोशिश करते थे। फिर जुलाई 1988 में एक दिन उन्हें बहुत ज़बरदस्त दिल का दौरा पड़ा और वो चल बसे। उनकी मौत से मैं पूरी तरह टूट गयी। मुझे उनको अलविदा कहने का भी मौका नहीं मिला। वो न सिर्फ मेरे पति थे, बल्कि मेरे सबसे अच्छे दोस्त भी थे। हमने ज़िंदगी के चालीस साल साथ-साथ गुज़ारे थे। अब मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि मुझसे ज़्यादा ज़िंदगी में अकेला और कोई नहीं।”

ये तो बस कुछेक ही हादसे हैं जबकि दुनिया भर के परिवारों को ऐसे हज़ारों दर्दनाक हादसे हर दिन झेलने पड़ते हैं। शोक में डूबे हुए लोगों से अगर पूछा जाए कि आपके बच्चे, आपके पति, आपकी पत्नी, आपके माता-पिता, या आपके दोस्त को जब मौत ने आपसे छीन लिया तब आपको कैसा लगा; तो ज़्यादातर का जवाब सुनकर आपको प्रेरित पौलुस की कही वही बात याद आएगी कि मौत हमारा “अन्तिम बैरी” है। आम तौर पर, जब किसी को मौत की खबर मिलती है तो सबसे पहले तो उसे विश्‍वास ही नहीं होता है। वह यही कहता है “नहीं, ये कभी नहीं हो सकता! मैं नहीं मानता।” लोग और भी बहुत कुछ महसूस करते हैं, जिनके बारे में हम आगे देखेंगे।—1 कुरिन्थियों 15:25, 26.

लेकिन दुःख की भावनाओं का ज़िक्र करने से पहले आइए हम कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब पाने की कोशिश करें। क्या किसी इंसान की मौत होने का मतलब यह है कि उसका नामोनिशान मिट गया है? क्या कोई उम्मीद की किरण बाकी है कि हम अपने मरे हुए अज़ीज़ों को दोबारा देख सकेंगे?

एक सच्ची आशा है

बाइबल के लेखक पौलुस ने यह उम्मीद दिलायी है कि हमारे “अंतिम बैरी,” मौत से छुटकारा पाने की एक सच्ची आशा है। उसने लिखा: “सब से अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है।” “सब से पिछला दुश्‍मन जो नाश किया जाएगा, वह मौत है।” (1 कुरिन्थियों 15:26; हिन्दुस्तानी बाइबल ) पौलुस इतने यकीन के साथ यह कैसे कह सका? क्योंकि यह आशा उसे एक ऐसे इंसान ने दी थी जिसे मुरदों में से जी उठाया गया था, और वह था, यीशु मसीह। (प्रेरितों 9:3-19) इसीलिए पौलुस यह भी लिख सका: “जब मनुष्य [आदम] के द्वारा मृत्यु आई; तो मनुष्य [यीशु मसीह] ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया। और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएँगें।”—1 कुरिन्थियों 15:21, 22.

जब यीशु ने नाईन नगर की एक विधवा को और उसके मरे हुए बेटे को देखा तो वह बहुत ही दुःखी हुआ। बाइबल बताती है: “जब [यीशु, नाईन] नगर के फाटक के पास पहुंचा, तो देखो, लोग एक मुरदे को बाहर लिए जा रहे थे; जो अपनी मां का एकलौता पुत्र था, और वह विधवा थी: और नगर के बहुत से लोग उसके साथ थे। उसे देख कर प्रभु को तरस आया, और उस से कहा; मत रो। तब उस ने पास आकर अर्थी को छूआ; और उठानेवाले ठहर गए तब उस ने कहा; हे जवान, मैं तुझ से कहता हूं, उठ। तब वह मुरदा उठ बैठा, और बोलने लगा: और उस ने उसे उस की मां को सौंप दिया। इस से सब पर भय छा गया; और वे परमेश्‍वर की बड़ाई करके कहने लगे कि हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्‍ता उठा है, और परमेश्‍वर ने अपने लोगों पर कृपा दृष्टि की है।” देखा आपने, यीशु को उस विधवा पर इतना तरस आया कि उसने उसके बेटे को दोबारा ज़िंदा कर दिया! इस घटना को मन में रखकर आप देख सकते हैं कि भविष्य में क्या ही शानदार समय आनेवाला है!—लूका 7:12-16.

इस तरह यीशु ने एक ऐसा पुनरुत्थान किया जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा और जिसके बहुत-से चश्‍मदीद गवाह भी थे। इससे यीशु की इस भविष्यवाणी के सच होने का सबूत मिला जो उसने इस घटना से कुछ समय पहले की थी कि “नए आकाश” के अधीन धरती पर मरे हुओं को दोबारा ज़िंदा किया जाएगा। उस भविष्यवाणी में यीशु ने कहा था: “इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।”—प्रकाशितवाक्य 21:1, 3, 4; यूहन्‍ना 5:28, 29; 2 पतरस 3:13.

एक और पुनरुत्थान के चश्‍मदीद गवाहों में पतरस भी शामिल था। उसके अलावा 12 चेलों में से कुछ और भी थे जो हमेशा यीशु के साथ रहते थे। उन्होंने गलील सागर के पास, पुनरुत्थान पाए हुए यीशु को सचमुच उनसे बातें करते सुना था। यह वृत्तांत कहता है: “यीशु ने उन से कहा, कि आओ, भोजन करो और चेलों में से किसी को हियाव न हुआ, कि उस से पूछे, कि तू कौन है? क्योंकि वे जानते थे, कि हो न हो यह प्रभु ही है। यीशु आया, और रोटी लेकर उन्हें दी, और वैसे ही मछली भी। यह तीसरी बार है, कि यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद चेलों को दर्शन दिए।”—यूहन्‍ना 21:12-14.

इसी वजह से पतरस पूरे यकीन के साथ लिख सका: “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्‍वर और पिता का धन्यवाद दो, जिस ने यीशु मसीह के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया।”—1 पतरस 1:3.

प्रेरित पौलुस ने भी पुनरुत्थान में अपने मज़बूत विश्‍वास का सबूत दिया। उसने लिखा: “जो बातें व्यवस्था और भविष्यद्वक्‍ताओं की पुस्तकों में लिखी हैं, उन सब की प्रतीति करता हूं। और परमेश्‍वर से आशा रखता हूं जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।”—प्रेरितों 24:14, 15.

इसलिए आज लाखों लोग इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि वे, अपने मरे हुए अज़ीज़ों को दोबारा ज़रूर देख सकेंगे। और उस वक्‍त हालात ऐसे नहीं होंगे जैसे आज हैं। उस वक्‍त हालात कैसे होंगे? इस बारे में बाइबल में दी गई जानकारी पर हम इस ब्रोशर के आखिरी हिस्से में चर्चा करेंगे, जिसका शीर्षक है, “मरे हुओं के लिए एक पक्की आशा।”

लेकिन सबसे पहले आइए हम उन सवालों पर गौर करें जो किसी अज़ीज़ की मौत का मातम मनाने के दौरान, आपके मन में उठ सकते हैं: क्या इस तरह से दुःख मनाना स्वाभाविक है? मैं अपने इस दुःख के साथ कैसे जीऊँ? यह दुःख सहने में दूसरे लोग मेरी कैसे मदद कर सकते हैं? शोक में तड़पते दूसरे लोगों की मैं कैसे मदद कर सकता हूँ? और सबसे ज़रूरी सवाल, मरे हुओं के बारे में बाइबल कौन-सी पक्की आशा देती है? क्या मैं मरे हुए अपने अज़ीज़ों को कभी दोबारा देख पाऊँगा? अगर हाँ तो कहाँ?