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अध्याय पाँच

अपने बच्चे को बालकपन से प्रशिक्षित कीजिए

अपने बच्चे को बालकपन से प्रशिक्षित कीजिए

१, २. अपने बच्चों को पालने में मदद के लिए माता-पिताओं को किसकी ओर देखना चाहिए?

“बच्चे यहोवा के दिए हुए मीरास हैं,” एक क़दरदान जनक ने कुछ ३,००० साल पहले कहा। (भजन १२७:३, NHT फुटनोट) सचमुच, जनकता का आनन्द परमेश्‍वर की ओर से एक अनमोल प्रतिफल है, प्रतिफल जो अधिकांश विवाहित लोगों को उपलब्ध है। लेकिन, जिनको बच्चे होते हैं उनको जल्द ही यह एहसास हो जाता है कि आनन्द के साथ-साथ जनकता ज़िम्मेदारियाँ भी लाती है।

ख़ासकर आज, बच्चों का पालन-पोषण करना एक बहुत कठिन काम है। फिर भी, अनेक लोगों ने इसे सफलता के साथ किया है, और उत्प्रेरित भजनहार यह कहते हुए मार्ग बताता है: “यदि घर को यहोवा न बनाए, तो उसके बनानेवालों का परिश्रम व्यर्थ होगा।” (भजन १२७:१) यहोवा के उपदेशों का आप जितनी बारीक़ी से पालन करेंगे, आप उतने बेहतर जनक बनेंगे। बाइबल कहती है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।” (नीतिवचन ३:५) जब आप अपनी २०-वर्षीय शिशु-पालन परियोजना को शुरू करते हैं तब क्या आप यहोवा की सलाह को सुनने के लिए तैयार हैं?

बाइबल का दृष्टिकोण स्वीकार करना

३. बच्चों के पालन-पोषण में पिताओं की क्या ज़िम्मेदारी है?

संसार-भर के अनेक घरों में, पुरुष बाल प्रशिक्षण को मुख्यतः स्त्री का कार्य समझते हैं। यह सच है कि परमेश्‍वर का वचन रोटी कमानेवाले मुख्य व्यक्‍ति के रूप में पिता की भूमिका का वर्णन करता है। लेकिन, वह यह भी कहता है कि घर में भी पिता की ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। बाइबल कहती है: “अपना बाहर का कामकाज ठीक करना, और खेत में उसे तैयार कर लेना; उसके बाद अपना घर बनाना।” (नीतिवचन २४:२७) परमेश्‍वर की दृष्टि में, माता-पिता बाल प्रशिक्षण में साझेदार हैं।—नीतिवचन १:८, ९.

४. हमें लड़कों को लड़कियों से श्रेष्ठ क्यों नहीं समझना चाहिए?

आप अपने बच्चों को किस दृष्टि से देखते हैं? रिपोर्टें कहती हैं कि एशिया में “अकसर लड़की के जन्म पर प्रसन्‍नता नहीं होती।” बताया जाता है कि लैटिन अमरीका में अभी-भी लड़कियों के साथ पक्षपात किया जाता है, “अधिक प्रबुद्ध परिवारों” में भी। लेकिन, सत्य यह है कि लड़कियाँ दूसरे दर्जे के बच्चे नहीं। प्राचीन समय के एक विख्यात पिता, याकूब ने अपनी सभी संतानों का वर्णन इस प्रकार किया, “[मेरे] बच्चे . . . जिन्हें परमेश्‍वर ने अनुग्रह करके दिया है,” और इसमें उस समय तक जन्मी कोई भी पुत्रियाँ सम्मिलित थीं। (उत्पत्ति ३३:१-५, NHT; ३७:३५) उसी प्रकार, यीशु ने उसके पास लाए गए सभी “बालकों” (लड़कों और लड़कियों) को आशिष दी। (मत्ती १९:१३-१५) हम निश्‍चित हो सकते हैं कि उसने यहोवा का दृष्टिकोण प्रतिबिम्बित किया।—व्यवस्थाविवरण १६:१४.

५. उनका परिवार कितना बड़ा होगा यह फ़ैसला करते समय एक दम्पति को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

क्या आपके समुदाय में यह अपेक्षा की जाती है कि एक स्त्री यथासंभव बच्चों को जन्म दे? उचित ही, एक विवाहित दम्पति कितने बच्चे पैदा करते हैं यह उनका व्यक्‍तिगत फ़ैसला है। यदि माता-पिता के पास ढेरों बच्चों को खिलाने, पहनाने, और शिक्षित करने के लिए साधन नहीं हैं तब क्या? निश्‍चित ही, दम्पति को इस पर विचार करना चाहिए जब वे यह फ़ैसला करते हैं कि उनका परिवार कितना बड़ा होगा। कुछ दम्पति जो अपने सभी बच्चों को नहीं संभाल सकते, उनमें से कुछ को पालने की ज़िम्मेदारी रिश्‍तेदारों को सौंप देते हैं। क्या यह प्रथा वांछनीय है? वास्तव में नहीं। और यह माता-पिता को अपने बच्चों के प्रति अपनी बाध्यता से मुक्‍त नहीं करता। बाइबल कहती है: “यदि कोई अपने लोगों की, और विशेषकर अपने परिवार की, देखभाल नहीं करता तो वह अपने विश्‍वास से मुकर गया है।” (१ तीमुथियुस ५:८, NHT) ज़िम्मेदार दम्पति यह योजना बनाने की कोशिश करते हैं कि उनका “परिवार” कितना बड़ा होगा ताकि वे ‘अपने लोगों की देखभाल’ कर सकें। क्या वे ऐसा करने के लिए जनन नियंत्रण कर सकते हैं? यह भी एक व्यक्‍तिगत फ़ैसला है, और यदि विवाहित दम्पति यह मार्ग लेने का फ़ैसला करते हैं, तो गर्भ निरोधक का चुनाव भी एक व्यक्‍तिगत मामला है। “हर एक व्यक्‍ति अपना ही बोझ उठाएगा।” (गलतियों ६:५) लेकिन, वह जनन नियंत्रण जिसमें किसी प्रकार का गर्भपात सम्मिलित हो बाइबल सिद्धान्तों के विरुद्ध है। यहोवा परमेश्‍वर “जीवन का सोता” है। (भजन ३६:९) इसलिए, गर्भ में आने के बाद एक जीवन को मिटाना यहोवा के प्रति घोर अनादर दिखाता और हत्या के बराबर है।—निर्गमन २१:२२, २३; भजन १३९:१६; यिर्मयाह १:५.

अपने बच्चे की ज़रूरतें पूरी करना

६. एक बच्चे का प्रशिक्षण कब शुरू होना चाहिए?

नीतिवचन २२:६ कहता है: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये।” बच्चों को प्रशिक्षित करना माता-पिताओं का एक और प्रमुख कर्तव्य है। लेकिन, वह प्रशिक्षण कब शुरू होना चाहिए? बहुत जल्दी। प्रेरित पौलुस ने बताया कि तीमुथियुस को “बालकपन से” प्रशिक्षित किया गया था। (२ तीमुथियुस ३:१५) यहाँ प्रयुक्‍त यूनानी शब्द एक छोटे शिशु को या यहाँ तक कि एक अजन्मे बच्चे को सूचित कर सकता है। (लूका १:४१, ४४; प्रेरितों ७:१८-२०) अतः, तीमुथियुस ने बहुत छुटपन से प्रशिक्षण प्राप्त किया—और यह उचित ही था। बालकपन एक बच्चे को प्रशिक्षण देना शुरू करने का आदर्श समय है। एक छोटे शिशु को भी ज्ञान की भूख होती है।

७. (क) यह क्यों महत्त्वपूर्ण है कि माता-पिता दोनों एक शिशु के साथ एक घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित करें? (ख) यहोवा और उसके एकलौते पुत्र के बीच कैसा सम्बन्ध था?

“जब मैं ने पहली बार अपने बच्चे को देखा,” एक माँ कहती है, “मुझे उससे प्रेम हो गया।” अधिकांश माताओं के साथ ऐसा ही होता है। माँ और बच्चे के बीच वह सुन्दर लगाव बढ़ता जाता है जब जन्म के बाद वे एकसाथ समय बिताते हैं। दूध पिलाना उस आत्मीयता को और बढ़ाता है। (१ थिस्सलुनीकियों २:७ से तुलना कीजिए।) एक माँ का अपने शिशु के साथ लाड़-दुलार करना और उससे बात करना शिशु की भावात्मक ज़रूरतों को पूरा करने में अति-महत्त्वपूर्ण हैं। (यशायाह ६६:१२ से तुलना कीजिए।) लेकिन पिता के बारे में क्या? उसे भी अपनी नयी संतान के साथ एक घनिष्ठ सम्बन्ध बाँधना चाहिए। स्वयं यहोवा इसका एक उदाहरण है। नीतिवचन की पुस्तक में, हम अपने एकलौते पुत्र के साथ यहोवा के सम्बन्ध के बारे में सीखते हैं, जिसको यह कहते हुए चित्रित किया गया है: “यहोवा ने मुझे काम करने के आरम्भ में . . . उत्पन्‍न किया। . . . प्रति दिन मैं उसकी प्रसन्‍नता थी।” (नीतिवचन ८:२२, ३०; यूहन्‍ना १:१४) उसी प्रकार, एक अच्छा पिता अपने बच्चे के जीवन की शुरूआत से ही उसके साथ एक सुखद, प्रेममय सम्बन्ध विकसित करता है। “ढेर सारा स्नेह दिखाइए,” एक पिता कहता है। “कोई बच्चा कभी पप्पियों-झप्पियों से नहीं मरा।”

८. माता-पिताओं को यथाशीघ्र शिशुओं को कैसा मानसिक उत्तेजन देना चाहिए?

लेकिन शिशुओं को इससे ज़्यादा की ज़रूरत है। जन्म के क्षण से ही, उनका मस्तिष्क जानकारी प्राप्त करने और जमा करने के लिए तैयार रहता है, और माता-पिता इसके मूल स्रोत हैं। उदाहरण के रूप में भाषा को लीजिए। अनुसंधायक कहते हैं कि एक बच्चे का बोलना और पढ़ना सीखने की कुशलता का “अपने माता-पिता के साथ बच्चे के आरम्भिक संपर्क के स्वभाव के साथ निकटता से सम्बन्ध है ऐसा विचार है।” शिशुपन से ही अपने बच्चे के साथ बात कीजिए और उसे पढ़कर सुनाइए। जल्द ही वह आपकी नक़ल करना चाहेगा, और देखते-देखते आप उसे पढ़ना सिखा रहे होंगे। संभव है कि वह स्कूल में प्रवेश लेने से पहले ही पढ़ने में समर्थ हो जाए। यह ख़ासकर सहायक होगा यदि आप एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ शिक्षक कम हैं और कक्षाएँ बहुत भरी हुई होती हैं।

९. माता-पिताओं को कौन-सा अति-महत्त्वपूर्ण लक्ष्य याद रखने की ज़रूरत है?

मसीही माता-पिताओं की सबसे प्रमुख चिन्ता है अपने बच्चे की आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करना। (व्यवस्थाविवरण ८:३ देखिए।) किस लक्ष्य के साथ? अपने बच्चे को एक मसीहतुल्य व्यक्‍तित्व विकसित करने, वस्तुतः “नये मनुष्यत्व” को पहनने में मदद देने के लिए। (इफिसियों ४:२४) इसके लिए उन्हें उचित निर्माण सामग्री और उचित निर्माण तरीक़ों पर विचार करने की ज़रूरत है।

अपने बच्चे को यत्नपूर्वक सत्य सिखाइए

१०. बच्चों को कौन-से गुण विकसित करने की ज़रूरत है?

१० एक भवन की गुणवत्ता अधिकांशतः इस पर निर्भर करती है कि ढाँचे में किस क़िस्म की सामग्री प्रयोग की गयी है। प्रेरित पौलुस ने कहा कि मसीही व्यक्‍तित्व के लिए सर्वोत्तम निर्माण सामग्री है ‘सोना, चान्दी, बहुमोल पत्थर।’ (१ कुरिन्थियों ३:१०-१२) ये विश्‍वास, बुद्धि, समझ, निष्ठा, आदर, और यहोवा और उसके नियमों के प्रति प्रेममय मूल्यांकन जैसे गुणों को चित्रित करते हैं। (भजन १९:७-११; नीतिवचन २:१-६; ३:१३, १४) माता-पिता बहुत बचपन से अपने बच्चों को ये गुण विकसित करने में कैसे मदद दे सकते हैं? बहुत पहले बतायी गयी एक विधि का पालन करने के द्वारा।

११. इस्राएली माता-पिताओं ने ईश्‍वरीय व्यक्‍तित्व विकसित करने में अपने बच्चों की मदद कैसे की?

११ इस्राएल जाति के प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से कुछ ही समय पहले, यहोवा ने इस्राएली माता-पिताओं से कहा: “आज मैं जिन वचनों की आज्ञा तुझे दे रहा हूँ वे तेरे मन में बनी रहें। और तू उनको यत्नपूर्वक अपने बाल-बच्चों को सिखाना, तथा अपने घर में बैठे, मार्ग पर चलते, और लेटते तथा उठते समय उनकी चर्चा किया करना।” (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७, NHT) जी हाँ, माता-पिताओं को उदाहरण, साथी, संचारक, और शिक्षक होने की ज़रूरत है।

१२. यह क्यों अत्यावश्‍यक है कि माता-पिता अच्छे उदाहरण बनें?

१२ एक उदाहरण बनिए। पहले, यहोवा ने कहा: ‘ये वचन तेरे मन में बने रहें।’ फिर, उसने आगे कहा: “तू उनको यत्नपूर्वक अपने बाल-बच्चों को सिखाना।” सो ईश्‍वरीय गुण पहले जनक के हृदय में होने चाहिए। जनक को सत्य से प्रेम होना चाहिए और उसके अनुसार जीना चाहिए। केवल तभी वह बच्चे के हृदय तक पहुँच सकता है। (नीतिवचन २०:७) क्यों? क्योंकि बच्चे जो सुनते हैं उसकी बनिस्बत वे उससे ज़्यादा प्रभावित होते हैं जो वे देखते हैं।—लूका ६:४०; १ कुरिन्थियों ११:१.

१३. अपने बच्चों को ध्यान देने के बारे में मसीही माता-पिता यीशु के उदाहरण की नक़ल कैसे कर सकते हैं?

१३ एक साथी बनिए। यहोवा ने इस्राएल में माता-पिताओं से कहा: ‘अपने बाल-बच्चों से घर में बैठे और मार्ग पर चलते चर्चा किया करना।’ यह बच्चों के साथ समय बिताने की माँग करता है चाहे माता-पिता कितने भी व्यस्त क्यों न हों। प्रत्यक्षतः यीशु ने महसूस किया कि बच्चे उसका समय पाने के योग्य थे। उसकी सेवकाई के अन्तिम दिनों के दौरान, “लोग बालकों को उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे।” यीशु की प्रतिक्रिया क्या थी? “उस ने उन्हें गोद में लिया, और . . . उन्हें आशीष दी।” (मरकुस १०:१३, १६) कल्पना कीजिए, यीशु की मृत्यु की घड़ी निकट आती जा रही थी। फिर भी, उसने इन बच्चों को अपना समय और ध्यान दिया। क्या ही उत्तम सीख!

१४. माता-पिताओं का अपने बच्चे के साथ समय बिताना क्यों लाभकारी है?

१४ एक संचारक बनिए। अपने बच्चे के साथ समय बिताना उसके साथ संचार करने में आपकी मदद करेगा। आप जितना ज़्यादा संचार करते हैं उतना ही बेहतर समझ पाएँगे कि उसका व्यक्‍तित्व कैसे विकसित हो रहा है। लेकिन याद रखिए, संचार करना बात करने से ज़्यादा है। “मुझे सुनने की कला विकसित करनी पड़ी,” ब्राज़िल में एक माँ ने कहा, “अपने हृदय से सुनना।” उसका धीरज फल लाया जब उसका पुत्र उसके साथ अपनी भावनाएँ बाँटने लगा।

१५. जब मनोरंजन की बात आती है तब कौन-सी बात मन में रखने की ज़रूरत है?

१५ बच्चों को ‘हंसने के समय और नाचने के समय,’ मनोरंजन के लिए समय की ज़रूरत होती है। (सभोपदेशक ३:१, ४; जकर्याह ८:५) मनोरंजन बहुत फलदायी होता है जब माता-पिता और बच्चे एकसाथ इसका आनन्द लेते हैं। यह एक दुःखद सच्चाई है कि अनेक घरों में मनोरंजन का अर्थ है टॆलिविज़न देखना। जबकि कुछ टॆलिविज़न कार्यक्रम मनोरंजक हो सकते हैं, अनेक अच्छे मूल्यों को नष्ट करते हैं, और टॆलिविज़न देखना एक परिवार में संचार को कम करने का कारण बन सकता है। इसलिए, क्यों न अपने बच्चों के साथ कोई रचनात्मक कार्य करें? गाना गाइए, खेल खेलिए, मित्रों के साथ संगति कीजिए, आनन्ददायी स्थानों की सैर कीजिए। ऐसी गतिविधियाँ संचार को प्रोत्साहित करती हैं।

१६. यहोवा के बारे में माता-पिताओं को अपने बच्चों को क्या सिखाना चाहिए, और उन्हें यह कैसे करना चाहिए?

१६ एक शिक्षक बनिए। “तू [इन वचनों को] यत्नपूर्वक अपने बाल-बच्चों को सिखाना,” यहोवा ने कहा। संदर्भ आपको बताता है कि क्या और कैसे सिखाना है। पहले, “तू अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने सारे मन, अपने सारे प्राण, तथा अपनी सारी शक्‍ति से प्रेम कर।” (व्यवस्थाविवरण ६:५, NHT) फिर, ‘इन वचनों को यत्नपूर्वक सिखाना।’ यहोवा और उसके नियमों के प्रति एकनिष्ठ प्रेम विकसित करने के लक्ष्य से उपदेश दीजिए। (इब्रानियों ८:१० से तुलना कीजिए।) ‘यत्नपूर्वक सिखाना’ पद का अर्थ है दोहराव के द्वारा सिखाना। सो वस्तुतः, यहोवा आपसे कहता है कि अपने बच्चों को एक ईश्‍वरीय व्यक्‍तित्व विकसित करने में मदद देने का मुख्य तरीक़ा है उसके बारे में संगत रूप से बात करना। इसमें उनके साथ एक नियमित बाइबल अध्ययन करना सम्मिलित है।

१७. माता-पिताओं को अपने बच्चे में शायद क्या विकसित करने की ज़रूरत पड़े? क्यों?

१७ अधिकांश माता-पिता जानते हैं कि एक बच्चे के हृदय में जानकारी बिठाना आसान नहीं है। प्रेरित पतरस ने संगी मसीहियों से आग्रह किया: “नवजात शिशुओं की तरह, वचन के शुद्ध दूध की लालसा विकसित करो।” (१ पतरस २:२, NW) अभिव्यक्‍ति “लालसा विकसित करो” सुझाती है कि अनेकों को आध्यात्मिक भोजन के लिए स्वाभाविक रूप से भूख नहीं होती। माता-पिताओं को शायद वह लालसा अपने बच्चे में विकसित करने के तरीक़ों का पता लगाने की ज़रूरत पड़े।

१८. यीशु के सिखाने के कुछ तरीक़े क्या हैं जिनकी नक़ल करने के लिए माता-पिताओं को प्रोत्साहित किया जाता है?

१८ यीशु दृष्टान्तों का प्रयोग करने के द्वारा हृदयों तक पहुँचा। (मरकुस १३:३४; लूका १०:२९-३७) सिखाने का यह तरीक़ा ख़ासकर बच्चों के साथ प्रभावकारी है। सजीव, दिलचस्प कहानियाँ, शायद वे जो प्रकाशन बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक में दी गयी हैं, प्रयोग करने के द्वारा बाइबल सिद्धान्त सिखाइए। * बच्चों को अंतर्ग्रस्त कीजिए। बाइबल घटनाओं के चित्र बनाने और अभिनय करने में उनको अपनी रचनात्मकता प्रयोग करने दीजिए। यीशु ने प्रश्‍नों का भी प्रयोग किया। (मत्ती १७:२४-२७) अपने पारिवारिक अध्ययन के दौरान उसके तरीक़े की नक़ल कीजिए। परमेश्‍वर का एक नियम मात्र बताने के बजाय, इस प्रकार के प्रश्‍न पूछिए, यहोवा ने हमें यह नियम क्यों दिया? यदि हम इसे मानें तो क्या होगा? यदि हम इसे नहीं मानें तो क्या होगा? ऐसे प्रश्‍न एक बच्चे को तर्क करने और यह देखने में मदद देते हैं कि परमेश्‍वर के नियम व्यावहारिक और अच्छे हैं।—व्यवस्थाविवरण १०:१३.

१९. यदि अपने बच्चों के साथ व्यवहार करते समय माता-पिता बाइबल सिद्धान्तों पर चलते हैं, तो बच्चे कौन-से बड़े लाभों का आनन्द लेंगे?

१९ एक उदाहरण, एक साथी, एक संचारक, और एक शिक्षक होने के द्वारा आप अपने बच्चे को उसके आरम्भिक वर्षों से ही यहोवा परमेश्‍वर के साथ एक घनिष्ठ व्यक्‍तिगत सम्बन्ध बाँधने में मदद दे सकते हैं। यह सम्बन्ध आपके बच्चे को एक मसीही के रूप में ख़ुश रहने के लिए प्रोत्साहित करेगा। वह उस समय भी अपने विश्‍वास के अनुसार जीने का प्रयत्न करेगा जब समकक्ष दबाव और प्रलोभन आते हैं। इस अनमोल सम्बन्ध का मूल्यांकन करने के लिए हमेशा उसकी मदद कीजिए।—नीतिवचन २७:११.

अनुशासन की अत्यावश्‍यकता

२०. अनुशासन क्या है, और यह किस रीति से दिया जाना चाहिए?

२० अनुशासन प्रशिक्षण है जो मन और हृदय को सुधारता है। बच्चों को निरन्तर इसकी ज़रूरत होती है। पौलुस पिताओं को सलाह देता है कि “प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में [अपने बच्चों का] पालन-पोषण करो।” (इफिसियों ६:४, NHT) माता-पिताओं को प्रेम से अनुशासन देना चाहिए, बिलकुल वैसे ही जैसे यहोवा देता है। (इब्रानियों १२:४-११) प्रेम पर आधारित अनुशासन तर्क करने के द्वारा दिया जा सकता है। अतः, हमसे कहा गया है कि “अनुशासन को सुनो।” (नीतिवचन ८:३३, NW) अनुशासन कैसे दिया जाना चाहिए?

२१. अपने बच्चों को अनुशासन देते समय माता-पिताओं को कौन-से सिद्धान्त मन में रखने चाहिए?

२१ कुछ माता-पिता सोचते हैं कि अपने बच्चों को अनुशासन देने में बस उनसे धमकी-भरी आवाज़ में बोलना, उन्हें डाँटना, या यहाँ तक कि उनका अपमान करना सम्मिलित है। लेकिन, इसी विषय पर पौलुस चेतावनी देता है: “पिताओ, अपने बच्चों को क्रोध न दिलाओ।” (इफिसियों ६:४, NHT) सभी मसीहियों से आग्रह किया गया है कि ‘सब के साथ कोमल हों और विरोधियों को नम्रता से समझाएँ।’ (२ तीमुथियुस २:२४, २५) मसीही माता-पिता, जबकि दृढ़ता की ज़रूरत को समझते हैं, अपने बच्चों को अनुशासन देते समय इन शब्दों को मन में रखने की कोशिश करते हैं। लेकिन, कभी-कभी तर्क करना अपर्याप्त होता है, और शायद किसी क़िस्म की सज़ा की ज़रूरत हो।—नीतिवचन २२:१५.

२२. यदि एक बच्चे को सज़ा देने की ज़रूरत है, तो उसे क्या समझने में मदद दी जानी चाहिए?

२२ अलग-अलग बच्चों के लिए अलग-अलग क़िस्म के अनुशासन की ज़रूरत होती है। कुछ बच्चे ‘केवल शब्दों के द्वारा नहीं सुधरते।’ अवज्ञा के लिए कभी-कभी दी गयी सज़ा उनके लिए प्राण-रक्षक हो सकती है। (नीतिवचन १७:१०; २३:१३, १४; २९:१९, NHT) लेकिन, एक बच्चे को समझ आना चाहिए कि उसे सज़ा क्यों दी जा रही है। “छड़ी और डांट से बुद्धि प्राप्त होती है।” (तिरछे टाइप हमारे।) (नीतिवचन २९:१५; अय्यूब ६:२४) इसके अलावा, सज़ा की सीमाएँ होती हैं। “मैं तेरी ताड़ना उचित रूप से करूंगा,” यहोवा ने अपने लोगों से कहा। (तिरछे टाइप हमारे।) (यिर्मयाह ४६:२८ख, NHT) बाइबल क्रोध में आकर कोड़े मारने या अत्यधिक पिटाई करने का किसी भी हालत समर्थन नहीं करती, जो एक बच्चे को चोट लगाते और यहाँ तक कि घायल कर देते हैं।—नीतिवचन १६:३२.

२३. जब एक बच्चे को उसके माता-पिता से सज़ा मिलती है तो उसे क्या समझने में समर्थ होना चाहिए?

२३ जब यहोवा ने अपने लोगों को चेतावनी दी कि वह उन्हें अनुशासन देगा, उसने पहले कहा: “मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूं।” (यिर्मयाह ४६:२८क) उसी प्रकार, जिस भी उपयुक्‍त रीति से दिया जाए, माता-पिता के अनुशासन को एक बच्चे को कभी-भी इस भावना के साथ नहीं छोड़ना चाहिए कि वह त्यागा हुआ है। (कुलुस्सियों ३:२१) इसके बजाय, बच्चे को यह महसूस होना चाहिए कि अनुशासन इसलिए दिया गया है क्योंकि जनक ‘उसके साथ,’ उसकी ओर है।

हानि से अपने बच्चे की सुरक्षा कीजिए

२४, २५. एक डरावना ख़तरा कौन-सा है जिससे इन दिनों बच्चों को सुरक्षा की ज़रूरत है?

२४ अनेक वयस्क अपने बचपन की ओर देखते हैं कि वह एक सुखी समय था। उन्हें सुरक्षा की एक सुखद भावना याद आती है, एक निश्‍चिन्तता कि उनके माता-पिता हर हाल में उनकी देखरेख करेंगे। माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे ऐसा महसूस करें, लेकिन आज के पतित संसार में, बच्चों को सुरक्षित रखना पहले से ज़्यादा मुश्‍किल है।

२५ एक डरावना ख़तरा जो हाल के सालों में बढ़ गया है वह है बच्चों का लैंगिक उत्पीड़न। मलेशिया में, बाल उत्पीड़न की रिपोर्टें दस साल की अवधि में चौगुनी हो गयीं। जर्मनी में हर साल कुछ ३,००,००० बच्चों के साथ लैंगिक दुर्व्यवहार किया जाता है, और एक अध्ययन के अनुसार, एक दक्षिण अमरीकी देश में अनुमानित वार्षिक संख्या है विस्मयकारी ९०,००,०००! त्रासदी तो यह है कि इनमें से अधिकांश बच्चों को उन्हीं के घर में ऐसे लोगों द्वारा उत्पीड़ित किया जाता है जिन्हें वे जानते हैं और जिन पर वे भरोसा करते हैं। लेकिन बच्चों के पास अपने माता-पिता की एक कड़ी प्रतिरक्षा होनी चाहिए। माता-पिता संरक्षक कैसे हो सकते हैं?

२६. कौन-से कुछ तरीक़ों से बच्चों को सुरक्षित रखा जा सकता है, और ज्ञान एक बच्चे की सुरक्षा कैसे कर सकता है?

२६ चूँकि अनुभव दिखाता है कि जो बच्चे सॆक्स के बारे में शायद ही कुछ जानते हैं वे बाल उत्पीड़कों से ख़ासकर असुरक्षित हैं, एक प्रमुख निवारक क़दम है बच्चे को शिक्षित करना, तब भी जब वह छोटा ही है। ज्ञान “बुराई के मार्ग से, और उलट फेर की बातों के कहनेवालों से” सुरक्षा प्रदान कर सकता है। (नीतिवचन २:१०-१२) कैसा ज्ञान? बाइबल सिद्धान्तों का, नैतिक रूप से क्या सही और क्या ग़लत है उसका ज्ञान। यह ज्ञान भी कि कुछ बड़े लोग बुरे कार्य करते हैं और कि एक युवा व्यक्‍ति को आज्ञा मानने की ज़रूरत नहीं जब लोग अनुचित कार्यों का प्रस्ताव रखते हैं। (दानिय्येल १:४, ८; ३:१६-१८ से तुलना कीजिए।) ऐसा उपदेश केवल एक ही बार देकर मत रुक जाइए। एक पाठ को अच्छी तरह याद रखने के लिए अधिकांश बच्चों को ज़रूरत होती है कि उसको दोहराया जाए। जब बच्चे थोड़े बड़े हो जाते हैं, तो एक पिता गोपनीयता रखने के अपनी पुत्री के अधिकार का प्रेमपूर्वक आदर करेगा, और एक माता अपने पुत्र का—इस प्रकार क्या उचित है इसके बारे में वे एक बच्चे की समझ को सुदृढ़ करेंगे। और निःसंदेह, दुर्व्यवहार से बचने का एक सर्वोत्तम उपाय है माता-पिता के रूप में आपका सूक्ष्म निरीक्षण।

ईश्‍वरीय मार्गदर्शन माँगिए

२७, २८. जब माता-पिता एक बच्चे को पालने की चुनौती का सामना करते हैं तब उनकी मदद का सबसे बड़ा स्रोत कौन है?

२७ सचमुच, बालकपन से एक बच्चे का प्रशिक्षण एक चुनौती है, लेकिन विश्‍वासी माता-पिताओं को इस चुनौती का सामना अकेले करने की ज़रूरत नहीं। न्यायियों के दिनों में, जब मानोह नामक एक पुरुष ने जाना कि वह पिता बननेवाला था, तब उसने अपने बच्चे के पालन-पोषण के बारे में यहोवा से मार्गदर्शन माँगा। यहोवा ने उसकी प्रार्थनाएँ सुनीं।—न्यायियों १३:८, १२, २४.

२८ समान रूप से आज, जब विश्‍वासी माता-पिता अपने बच्चों को पालते हैं, तो वे भी प्रार्थना में यहोवा से बात कर सकते हैं। जनक होना मेहनत का काम है, लेकिन बड़े प्रतिफल हैं। हवाई में एक मसीही दम्पति कहते हैं: “उस कठिन किशोरावस्था से पहले आपके पास अपना कार्य पूरा करने के लिए १२ साल हैं। लेकिन यदि आपने बाइबल सिद्धान्तों को लागू करने के लिए मेहनत की है, तो यह आनन्द और शान्ति की कटनी काटने का समय है जब वे फ़ैसला करते हैं कि वे हृदय से यहोवा की सेवा करना चाहते हैं।” (नीतिवचन २३:१५, १६) जब आपका बच्चा वह फ़ैसला करता है, तब आप भी यह कहने को प्रेरित होंगे: “बच्चे यहोवा के दिए हुए मीरास हैं।”

^ पैरा. 18 वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।