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अध्याय सात

क्या घर में एक विद्रोही है?

क्या घर में एक विद्रोही है?

१, २. (क) यहूदी धार्मिक अगुवों के विश्‍वासघात को विशिष्ट करने के लिए यीशु ने कौन-सा दृष्टान्त दिया? (ख) यीशु के दृष्टान्त से हम किशोरों के बारे में कौन-सी बात सीख सकते हैं?

अपनी मृत्यु से कुछ ही दिन पहले, यीशु ने यहूदी धार्मिक अगुवों के एक समूह से एक विचार-उत्तेजक प्रश्‍न पूछा। उसने कहा: “तुम क्या सोचते हो? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे और उसने पहिले के पास जाकर कहा, ‘बेटे जा, आज दाख की बारी में काम कर।’ और उसने उत्तर दिया, ‘अच्छा, मैं जाऊंगा,’ परन्तु वह नहीं गया। फिर पिता ने दूसरे के पास जाकर वैसा ही कहा, परन्तु उसने उत्तर दिया, ‘मैं नहीं जाऊंगा।’ फिर भी इसके बाद वह पछताया और गया। इन दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की?” यहूदी अगुवों ने उत्तर दिया: “दूसरे ने।”—मत्ती २१:२८-३१, NHT.

यीशु यहाँ यहूदी अगुवों के विश्‍वासघात को विशिष्ट कर रहा था। वे पहले पुत्र के समान थे, जिन्होंने परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने की प्रतिज्ञा की और फिर अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं की। लेकिन अनेक माता-पिता स्वीकार करेंगे कि यीशु का दृष्टान्त पारिवारिक जीवन की एक अच्छी समझ पर आधारित था। जैसे उसने इतनी अच्छी तरह दिखाया, यह जानना कि युवा लोग क्या सोच रहे हैं अथवा पहले से यह बताना कि वे क्या करेंगे अकसर मुश्‍किल होता है। एक युवा व्यक्‍ति अपनी किशोरावस्था के दौरान शायद अनेक समस्याएँ उत्पन्‍न करे और फिर बड़ा होकर एक ज़िम्मेदार, आदरणीय वयस्क बने। जब हम किशोर-विद्रोह की समस्या पर चर्चा करते हैं तो इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

एक विद्रोही क्या होता है?

३. माता-पिताओं को जल्दबाज़ी में अपने बच्चे पर एक विद्रोही का ठप्पा क्यों नहीं लगाना चाहिए?

कभी-कभार, आप शायद उन किशोरों के बारे में सुनें जो अपने माता-पिता के विरुद्ध स्पष्ट रूप से विद्रोह करते हैं। आप शायद एक ऐसे परिवार को भी व्यक्‍तिगत रूप से जानते हों जिसमें एक किशोर को नियंत्रण में रखना असंभव लगता हो। लेकिन, यह जानना हमेशा आसान नहीं होता कि क्या एक बच्चा वास्तव में विद्रोही है। इसके अतिरिक्‍त, यह समझना मुश्‍किल हो सकता है कि क्यों कुछ बच्चे विद्रोह करते हैं और दूसरे—एक ही घराने के भी—नहीं करते। यदि माता-पिता को संदेह है कि उनका एक बच्चा शायद एक पक्के विद्रोही में बदल रहा है, तो उन्हें क्या करना चाहिए? इसका उत्तर देने के लिए, हमें पहले इस विषय में बात करनी होगी कि एक विद्रोही क्या होता है।

४-६. (क) एक विद्रोही क्या होता है? (ख) यदि उनका किशोर कभी-कभार अवज्ञा करता है तो माता-पिता को कौन-सी बात ध्यान में रखनी चाहिए?

सरल शब्दों में कहें तो, एक विद्रोही वह व्यक्‍ति होता है जो जानबूझकर और बारंबार एक उच्चतर अधिकार की अवज्ञा करता अथवा उसका विरोध करता और उसे चुनौती देता है। निःसंदेह, ‘एक बच्चे के मन में मूढ़ता रहती है।’ (नीतिवचन २२:१५) सो सभी बच्चे एक-न-एक समय पर जनकीय अधिकार एवं दूसरे अधिकार का विरोध करते हैं। यह ख़ासकर शारीरिक और भावात्मक विकास के समय के दौरान सच होता है जिसे किशोरावस्था कहा जाता है। किसी भी व्यक्‍ति के जीवन में परिवर्तन तनाव उत्पन्‍न करेगा, और किशोरावस्था में तो अनेक परिवर्तन होते हैं। आपका किशोर पुत्र या पुत्री बचपन से बाहर निकलकर वयस्कता के मार्ग पर जा रही है। इस कारण, किशोरावस्था के दौरान, कुछ माता-पिताओं और बच्चों में बड़ी मुश्‍किल से पटरी खाती है। अकसर माता-पिता अनजाने में इस बदलाव की गति को कम करने की कोशिश करते हैं जबकि किशोर उसे बढ़ाना चाहते हैं।

एक विद्रोही किशोर जनकीय मूल्यों से पीठ फेर लेता है। लेकिन, याद रखिए कि अवज्ञा के कुछ कार्य बच्चे को एक विद्रोही नहीं बना देते। और आध्यात्मिक मामलों में, कुछ बच्चे पहले-पहल बाइबल सच्चाई में शायद थोड़ी या कोई दिलचस्पी न दिखाएँ, लेकिन वे शायद विद्रोही न हों। एक जनक होने के नाते, अपने बच्चे पर जल्दी से एक ठप्पा मत लगा दीजिए।

क्या सभी युवा लोगों की किशोरावस्था की विशेषता होती है जनकीय अधिकार के विरुद्ध विद्रोह? नहीं, बिलकुल नहीं। वास्तव में, प्रतीयमानतः प्रमाण यह सूचित करता कि बहुत कम किशोर ही गंभीर किशोर-विद्रोह करते हैं। फिर भी, उस बच्चे के बारे में क्या जो हठपूर्वक और बारंबार विद्रोह करता है? कौन-सी बात ऐसा विद्रोह भड़का सकती है?

विद्रोह के कारण

७. शैतानी वातावरण एक बच्चे को विद्रोह करने के लिए कैसे प्रभावित कर सकता है?

विद्रोह का एक प्रमुख कारण है संसार का शैतानी वातावरण। “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (१ यूहन्‍ना ५:१९) शैतान के वश में पड़े संसार ने एक हानिकर संस्कृति विकसित की है, जिसके साथ मसीहियों को संघर्ष करना पड़ता है। (यूहन्‍ना १७:१५) उस संस्कृति का अधिकतर भाग आज पहले से ज़्यादा घटिया, ज़्यादा ख़तरनाक, और ज़्यादा बुरे प्रभावों से भरा हुआ है। (२ तीमुथियुस ३:१-५, १३) यदि माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा, चेतावनी, और सुरक्षा नहीं देते, तो युवा लोग आसानी से “उस आत्मा” के द्वारा अभिभूत हो सकते हैं “जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य्य करता है।” (इफिसियों २:२) इसी से सम्बन्धित है समकक्ष दबाव। बाइबल कहती है: “मूर्खों का साथी नाश हो जाएगा।” (नीतिवचन १३:२०) उसी प्रकार, ऐसों के साथ संगति करनेवाला जो इस संसार की आत्मा से भरे हुए हैं, संभवतः उसी आत्मा से प्रभावित होगा। यदि युवा लोगों को यह समझना है कि ईश्‍वरीय सिद्धान्तों के प्रति आज्ञाकारिता सबसे अच्छी जीवन-शैली का आधार है तो उन्हें लगातार मदद की ज़रूरत है।—यशायाह ४८:१७, १८.

८. कौन-से तत्व एक बच्चे द्वारा विद्रोह का कारण बन सकते हैं?

विद्रोह का एक और कारण घर का माहौल हो सकता है। उदाहरण के लिए, यदि एक जनक मद्यव्यसनी है, नशीले पदार्थों का दुष्प्रयोग करता है, या दूसरे जनक के साथ हिंसा करता है, तो जीवन के प्रति किशोर का दृष्टिकोण विकृत हो सकता है। जब बच्चा महसूस करता है कि उसके माता-पिता को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं, तो शायद अपेक्षाकृत शान्त घरों में भी विद्रोह छिड़ जाए। लेकिन, किशोर-विद्रोह हमेशा बाहरी प्रभावों से ही उत्पन्‍न नहीं होता। ऐसे माता-पिता होने के बावजूद जो ईश्‍वरीय सिद्धान्तों को लागू करते हैं और जो उन्हें काफ़ी हद तक उनके चारों ओर के संसार से सुरक्षा देते हैं, कुछ बच्चे जनकीय मूल्यों से पीठ फेर लेते हैं। क्यों? संभवतः हमारी समस्याओं की एक और जड़—मानव अपरिपूर्णता—के कारण। पौलुस ने कहा: “एक मनुष्य [आदम] के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।” (रोमियों ५:१२) आदम एक स्वार्थी विद्रोही था, और उसने अपनी सभी संतान के लिए एक बुरा उत्तराधिकार छोड़ा है। कुछ युवा बस विद्रोह करने का चुनाव कर लेते हैं, जैसा कि उनके पूर्वज ने किया।

ढील देनेवाला एली और सख़्ती करनेवाला रहूबियाम

९. शिशु-पालन में कौन-से नितांत एक बच्चे को विद्रोह करने के लिए भड़का सकते हैं?

शिशु-पालन के प्रति माता-पिता का असंतुलित दृष्टिकोण भी किशोर-विद्रोह का कारण बना है। (कुलुस्सियों ३:२१) कुछ कर्तव्यनिष्ठ माता-पिता अपने बच्चों के साथ बहुत सख़्ती करते और उन्हें कड़ा अनुशासन देते हैं। दूसरे ढील देते हैं, और वह मार्गदर्शन नहीं देते जो उनके अनुभवहीन किशोर की सुरक्षा करता। इन दो नितांत रूपों के बीच संतुलन बनाना हमेशा आसान नहीं होता। और अलग-अलग बच्चों की अलग-अलग ज़रूरतें होती हैं। एक को शायद दूसरे से अधिक निरीक्षण की ज़रूरत हो। फिर भी, दो बाइबल उदाहरण नितांत ढील देने या नितांत सख़्ती करने के ख़तरों को दिखाने में मदद देंगे।

१०. हालाँकि एली संभवतः एक वफ़ादार महायाजक था, वह क्यों एक बेकार जनक था?

१० प्राचीन इस्राएल का महायाजक एली एक पिता था। उसने ४० साल सेवा की, और निःसंदेह वह परमेश्‍वर की व्यवस्था से भली-भांति परिचित था। संभव है कि एली ने अपने नियमित याजकीय कार्यों को काफ़ी वफ़ादारी के साथ किया और शायद उसने अपने पुत्रों, होप्नी और पीनहास को भी परमेश्‍वर की व्यवस्था अच्छी तरह से सिखायी हो। लेकिन, एली अपने पुत्रों के साथ बहुत नरम था। होप्नी और पीनहास पदधारी याजकों के रूप में सेवा करते थे, लेकिन वे “लुच्चे” थे, उन्हें केवल अपनी लालसाओं और अनैतिक अभिलाषाओं को संतुष्ट करने में दिलचस्पी थी। इसके बावजूद, जब उन्होंने पवित्र भूमि पर घृणित कार्य किए तो एली के पास उन्हें पद से हटाने का साहस नहीं था। उसने उन्हें बस हलके से झिड़का। अपनी ढील के द्वारा, एली ने परमेश्‍वर से ज़्यादा अपने पुत्रों को सम्मान दिया। फलस्वरूप, उसके पुत्रों ने यहोवा की शुद्ध उपासना के विरुद्ध विद्रोह किया और एली के समस्त घराने ने विपत्ति सही।—१ शमूएल २:१२-१७, २२-२५, २९; ३:१३, १४; ४:११-२२.

११. माता-पिता एली के ग़लत उदाहरण से क्या सीख सकते हैं?

११ एली के पुत्र वयस्क हो चुके थे जब ये घटनाएँ हुईं, लेकिन यह इतिहास अनुशासन न देने के ख़तरे का महत्त्व दिखाता है। (नीतिवचन २९:२१ से तुलना कीजिए।) कुछ माता-पिता शायद प्रेम को ढील के साथ उलझा दें, और स्पष्ट, संगत, एवं उचित नियम बनाने और लागू करने से चूक जाएँ। जब ईश्‍वरीय सिद्धान्तों का उल्लंघन किया जाता है तब भी, वे प्रेममय अनुशासन लागू करने की उपेक्षा करते हैं। ऐसी ढील के कारण, अंततः शायद उनके बच्चे जनकीय अथवा किसी भी अन्य प्रकार के अधिकार पर ध्यान नहीं दें।—सभोपदेशक ८:११ से तुलना कीजिए।

१२. अधिकार चलाने में रहूबियाम ने क्या ग़लती की?

१२ रहूबियाम अधिकार चलाने में दूसरे नितांत का उदाहरण है। वह इस्राएल के संयुक्‍त राज्य का अन्तिम राजा था, लेकिन वह एक अच्छा राजा नहीं था। रहूबियाम ने उत्तराधिकार में वह देश पाया था जिसके लोग उसके पिता, सुलैमान द्वारा उन पर लादे गए भार के कारण असंतुष्ट थे। क्या रहूबियाम ने समझदारी दिखायी? जी नहीं। जब एक प्रतिनिधि-मंडल ने उससे कुछ दमनकारी दबाव हटाने के लिए कहा तो वह अपने वृद्ध सलाहकारों की प्रौढ़ सलाह को मानने से चूक गया और आज्ञा दी कि लोगों का जूआ और भी भारी कर दिया जाए। उसके अक्खड़पन ने दस उत्तरी गोत्रों द्वारा एक विद्रोह भड़काया, और राज्य के दो टुकड़े हो गए।—१ राजा १२:१-२१; २ इतिहास १०:१८.

१३. माता-पिता रहूबियाम की ग़लती से कैसे बच सकते हैं?

१३ माता-पिता रहूबियाम के बाइबल वृत्तांत से कुछ महत्त्वपूर्ण सीख ले सकते हैं। उन्हें प्रार्थना में ‘यहोवा को खोजने’ और बाइबल सिद्धान्तों के प्रकाश में अपने शिशु-पालन के तरीक़ों को जाँचने की ज़रूरत है। (भजन १०५:४) “अन्धेर से बुद्धिमान बावला हो जाता है,” सभोपदेशक ७:७ कहता है। सुविचारित सीमाएँ किशोरों को बढ़ने का अवसर देती हैं और साथ ही उनको हानि से बचाती हैं। लेकिन बच्चों को ऐसे माहौल में नहीं रखना चाहिए जो इतना अनम्य और रोक-टोक लगानेवाला हो कि वे उचित हद तक आत्म-निर्भरता और आत्म-विश्‍वास विकसित न कर पाएँ। जब माता-पिता उचित छूट और स्पष्ट रूप से निर्धारित दृढ़ सीमाओं के बीच एक संतुलन बनाने का प्रयास करते हैं, तो अधिकांश किशोर विद्रोह करने के लिए कम प्रवृत्त होंगे।

मूल ज़रूरतों को पूरा करना विद्रोह को रोक सकता है

संभवतः, बच्चे बड़े होकर अधिक स्थायी होंगे यदि उनके माता-पिता उन्हें अपनी किशोरावस्था की समस्याओं से निपटने में मदद दें

१४, १५. माता-पिताओं को अपने बच्चे के विकास को किस दृष्टि से देखना चाहिए?

१४ हालाँकि माता-पिता अपने बच्चे को शिशुपन से वयस्कता तक शारीरिक रूप से बढ़ते देखकर ख़ुश होते हैं, परन्तु उनको शायद तब बेचैनी हो जब उनका किशोर बालक उन पर निर्भरता छोड़कर उपयुक्‍त आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ना शुरू करता है। इस बदलाव की अवधि के दौरान, चकित मत होइए यदि आपका किशोर कभी-कभार थोड़ा ज़िद्दी या असहयोगी होता है। याद रखिए कि मसीही माता-पिताओं का लक्ष्य होना चाहिए एक प्रौढ़, स्थिर, और ज़िम्मेदार मसीही को बड़ा करना।—१ कुरिन्थियों १३:११; इफिसियों ४:१३, १४ से तुलना कीजिए।

१५ यह शायद काफ़ी मुश्‍किल हो, लेकिन माता-पिताओं को ज़्यादा स्वतंत्रता के लिए अपने किशोर के किसी निवेदन के प्रति नकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया दिखाने की आदत छोड़ने की ज़रूरत है। एक हितकर रीति से, बच्चे को एक व्यक्‍ति के रूप में बड़ा होने की ज़रूरत है। सचमुच, अपेक्षाकृत छोटी उम्र में, कुछ किशोर काफ़ी बड़ों-जैसा दृष्टिकोण विकसित करना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए, बाइबल युवा राजा योशिय्याह के बारे में कहती है: “जब वह [लगभग १५ वर्ष का] युवा ही था तो . . . दाऊद के परमेश्‍वर की खोज करने लगा।” यह उल्लेखनीय किशोर स्पष्टतः एक ज़िम्मेदार व्यक्‍ति था।—२ इतिहास ३४:१-३, NHT.

१६. जैसे-जैसे बच्चों को ज़्यादा ज़िम्मेदारी दी जाती है, उन्हें क्या स्वीकार करना चाहिए?

१६ लेकिन, स्वतंत्रता अपने साथ उत्तरदायित्व लाती है। इसलिए, अपने उभरते वयस्क को उसके कुछ फ़ैसलों और कार्यों के परिणाम अनुभव करने दीजिए। यह सिद्धान्त, “मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा,” किशोरों और साथ ही वयस्कों पर लागू होता है। (गलतियों ६:७) बच्चों को सर्वदा सुरक्षा नहीं दी जा सकती। लेकिन, यदि आपका बच्चा कोई बिलकुल ही अस्वीकार्य काम करना चाहता है तब क्या? एक ज़िम्मेदार जनक के नाते, आपको कहना होगा, “नहीं।” और, जबकि आप शायद कारण समझाएँ, किसी भी बात को आपकी न को हाँ में नहीं बदलना चाहिए। (मत्ती ५:३७ से तुलना कीजिए।) फिर भी, एक शान्त और तर्कसंगत ढंग से “नहीं” कहने की कोशिश कीजिए, चूँकि “कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है।”—नीतिवचन १५:१.

१७. एक किशोर की कुछ ज़रूरतें क्या होती हैं जो एक जनक को पूरी करनी चाहिए?

१७ चाहे युवा लोग रोक-टोक और नियमों के साथ हमेशा तत्परता से सहमत न हों, तो भी उनको संगत अनुशासन की सुरक्षा की ज़रूरत होती है। एक जनक की मनोदशा के अनुसार यदि नियमों को बारंबार बदला जाता है तो यह कुंठित करता है। इसके अतिरिक्‍त, आत्मसंशय, संकोच, अथवा आत्म-विश्‍वास की कमी से निपटने के लिए यदि किशोरों को आवश्‍यकतानुसार प्रोत्साहन और मदद मिलती है, तो संभव है कि वे बड़े होकर अधिक स्थायी होंगे। जब किशोरों पर भरोसा किया जाता है क्योंकि वे इसके योग्य ठहरे हैं, तो वे इसका भी मूल्यांकन करते हैं।—यशायाह ३५:३, ४; लूका १६:१०; १९:१७ से तुलना कीजिए।

१८. किशोरों के बारे में कुछ प्रोत्साहक सच्चाइयाँ क्या हैं?

१८ माता-पिता यह जानकर सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं कि जब घराने में शान्ति, स्थिरता, और प्रेम होता है तो बच्चे प्रायः उन्‍नति करते हैं। (इफिसियों ४:३१, ३२; याकूब ३:१७, १८) अनेक युवजन ऐसे परिवारों से आए हैं जिनमें मद्यव्यसनता, हिंसा, या कोई अन्य हानिकर प्रभाव विशिष्ट था, परन्तु वे बुरे घरेलू वातावरण से ऊपर उठे हैं और बड़े होकर उत्तम वयस्क बने हैं। अतः, यदि आप एक ऐसा घर प्रदान करते हैं जहाँ आपके किशोर सुरक्षित महसूस करते हैं और यह जानते हैं कि उन्हें प्रेम, स्नेह, और ध्यान मिलेगा—चाहे उस सहारे के साथ शास्त्रीय सिद्धान्तों के सामंजस्य में उचित रोक-टोक और अनुशासन भी क्यों न हो—अति संभव है कि वे बड़े होकर ऐसे वयस्क बनेंगे जिन पर आपको गर्व होगा।—नीतिवचन २७:११ से तुलना कीजिए।

जब बच्चे मुश्‍किल में पड़ जाते हैं

१९. जबकि माता-पिताओं को लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की देनी चाहिए जिस पर उसको चलना चाहिए, बच्चे पर क्या ज़िम्मेदारी है?

१९ अच्छे पालन-पोषण से निश्‍चित ही फ़र्क पड़ता है। नीतिवचन २२:६ कहता है: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।” फिर भी, उन बच्चों के बारे में क्या जिनको गंभीर समस्याएँ होती हैं जबकि उनके पास अच्छे माता-पिता हैं? क्या यह संभव है? जी हाँ। इस नीतिवचन के शब्दों को अन्य आयतों के प्रकाश में समझा जाना चाहिए जो बच्चे की इस ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देती हैं कि वह माता-पिता की ‘सुने’ और आज्ञा माने। (नीतिवचन १:८, NW) यदि पारिवारिक तालमेल होना है तो दोनों, जनक और बच्चे को शास्त्रीय सिद्धान्तों को लागू करने में सहयोग देना चाहिए। यदि माता-पिता और बच्चे एकसाथ काम नहीं करते, तो मुश्‍किलें होएँगी।

२०. जब बच्चे लापरवाह होने के कारण भूल करते हैं, तो माता-पिता के लिए क्या करना बुद्धिमत्तापूर्ण होगा?

२० जब एक किशोर भूल करता है और मुसीबत में पड़ जाता है तो माता-पिता को कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए? ख़ासकर उस समय, युवजन को मदद की ज़रूरत है। यदि माता-पिता याद रखते हैं कि वे एक अनुभवहीन युवा के साथ व्यवहार कर रहे हैं, तो वे अत्यधिक प्रतिक्रिया दिखाने की प्रवृत्ति का ज़्यादा आसानी से विरोध करेंगे। पौलुस ने कलीसिया में प्रौढ़ व्यक्‍तियों को सलाह दी: “यदि कोई मनुष्य [“अनजाने में,” NW] किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो।” (गलतियों ६:१) माता-पिता एक ऐसे युवा व्यक्‍ति के साथ व्यवहार करते समय जो लापरवाह होने के कारण एक भूल कर बैठता है, इसी प्रक्रिया को अपना सकते हैं। स्पष्ट रूप से यह समझाने के साथ-साथ कि उसका आचरण क्यों ग़लत था और वह उस भूल को दोहराने से कैसे दूर रह सकता है, माता-पिता को यह स्पष्ट करना चाहिए कि दुराचरण बुरा है, युवा नहीं।—यहूदा २२, २३ से तुलना कीजिए।

२१. यदि उनके बच्चे एक गंभीर पाप करते हैं, तो मसीही कलीसिया के उदाहरण पर चलते हुए माता-पिताओं को कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?

२१ यदि युवजन का अपचार अति गंभीर है तब क्या? ऐसा है तो बच्चे को ख़ास मदद और कुशल मार्गदर्शन की ज़रूरत है। जब कलीसिया का एक सदस्य कोई गंभीर पाप करता है, तो उसे पश्‍चाताप करने और मदद के लिए प्राचीनों के पास जाने का प्रोत्साहन दिया जाता है। (याकूब ५:१४-१६) जब वह पश्‍चाताप कर लेता है, तो उसे आध्यात्मिक रूप से पुनःस्थापित करने के लिए प्राचीन उसके साथ काम करते हैं। परिवार में भूल करनेवाले किशोर की मदद करने की ज़िम्मेदारी माता-पिता पर है, हालाँकि उन्हें शायद प्राचीनों के साथ इस मामले पर चर्चा करने की ज़रूरत पड़े। निश्‍चित ही उन्हें प्राचीनों के निकाय से ऐसे कोई घोर पाप छिपाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए जो उनके एक बच्चे ने किए हों।

२२. यदि उनका बच्चा एक गंभीर भूल करता है, तो यहोवा की नक़ल करते हुए माता-पिता कैसी मनोवृत्ति बनाए रखने की कोशिश करेंगे?

२२ व्यक्‍ति के ख़ुद के बच्चों से सम्बन्धित एक गंभीर समस्या बहुत कष्टदायी होती है। भावात्मक रूप से परेशान होकर, माता-पिताओं को शायद पथभ्रष्ट संतान को गुस्से में धमकी देने का मन करे; लेकिन यह उसे और कटु बना सकता है। ध्यान में रखिए कि इस युवा व्यक्‍ति का भविष्य शायद इस बात पर निर्भर हो कि उसके साथ इस कठिन समय में कैसे व्यवहार किया जाता है। यह भी याद रखिए कि जब यहोवा के लोग जो सही था उससे हट गए तो वह क्षमा करने के लिए तत्पर था —यदि वे बस पश्‍चाताप कर लेते। उसके प्रेममय शब्द सुनिए: “यहोवा कहता है, आओ, हम आपस में वादविवाद करें: तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम की नाईं उजले हो जाएंगे; और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तौभी वे ऊन के समान श्‍वेत हो जाएंगे।” (यशायाह १:१८) माता-पिताओं के लिए क्या ही उत्तम उदाहरण!

२३. जब उनका एक बच्चा कोई गंभीर पाप करता है, तो माता-पिताओं को कैसे कार्य करना चाहिए, और उन्हें किस बात से दूर रहना चाहिए?

२३ अतः, पथभ्रष्ट बच्चे को अपना मार्ग बदलने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कीजिए। अनुभवी माता-पिताओं और कलीसिया प्राचीनों से ठोस सलाह माँगिए। (नीतिवचन ११:१४) कोशिश कीजिए कि आवेश में आकर ऐसा कुछ बोलें या करें नहीं जो आपके बच्चे के लिए आपके पास लौटना मुश्‍किल कर दे। अनियंत्रित रोष और कटुता से दूर रहिए। (कुलुस्सियों ३:८) जल्दी से हिम्मत मत हारिए। (१ कुरिन्थियों १३:४, ७) बुराई से घृणा कीजिए, परन्तु अपने बच्चे के प्रति कठोर और कटु मत बनिए। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि माता-पिताओं को एक उत्तम उदाहरण रखने का प्रयत्न करना चाहिए और परमेश्‍वर पर अपना विश्‍वास मज़बूत रखना चाहिए।

एक हठीले विद्रोही को संभालना

२४. एक मसीही परिवार में कभी-कभी कौन-सी दुःखद स्थिति उठ जाती है, और एक जनक को कैसी प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए?

२४ कुछ मामलों में यह स्पष्ट हो जाता है कि एक युवा ने विद्रोह करने और मसीही मूल्यों को पूरी तरह से ठुकराने का निश्‍चित फ़ैसला कर लिया है। तब ध्यान दूसरे बच्चों के पारिवारिक जीवन को बनाए रखने या पुनःनिर्मित करने पर केंद्रित किया जाना चाहिए। ध्यान रखिए कि आप अपनी सारी शक्‍ति विद्रोही पर न लगा दें, और इस प्रकार दूसरे बच्चों के प्रति लापरवाह हो जाएँ। मुसीबत को बाक़ी के परिवार से छिपाने की कोशिश करने के बजाय, उनके साथ उपयुक्‍त हद तक और एक आश्‍वासन देनेवाले ढंग से मामले पर चर्चा कीजिए।—नीतिवचन २०:१८ से तुलना कीजिए।

२५. (क) यदि एक बच्चा हठीला विद्रोही बन जाता है, तो मसीही कलीसिया के नमूने पर चलते हुए माता-पिताओं को शायद क्या करना पड़े? (ख) यदि उनका एक बच्चा विद्रोह करता है तो माता-पिताओं को कौन-सी बात ध्यान में रखनी चाहिए?

२५ वह व्यक्‍ति जो कलीसिया में एक असुधार्य विद्रोही बन जाता है उसके बारे में प्रेरित यूहन्‍ना ने कहा: “उसे न तो घर में आने दो, और न नमस्कार करो।” (२ यूहन्‍ना १०) माता-पिता शायद स्वयं अपने बच्चे के प्रति एक समान स्थिति अपनाना ज़रूरी समझें यदि वह बालिग़ है और पूरी तरह से विद्रोही बन जाता है। ऐसा क़दम उठाना शायद बहुत मुश्‍किल और झटका पहुँचानेवाला हो, परन्तु कभी-कभी यह बाक़ी के परिवार को बचाने के लिए अत्यावश्‍यक होता है। आपके घराने को आपकी सुरक्षा और जारी निरीक्षण की ज़रूरत है। अतः, आचरण की स्पष्ट रूप से निर्धारित, परन्तु उचित सीमाएँ बनाए रखिए। दूसरे बच्चों के साथ संचार कीजिए। इसमें दिलचस्पी लीजिए कि स्कूल में और कलीसिया में उनका कैसा चल रहा है। साथ ही, उन्हें बताइए कि जबकि आप विद्रोही बच्चे के कार्यों को स्वीकार नहीं करते, आप उससे घृणा नहीं करते। बुरे कार्य की निन्दा कीजिए, बच्चे की नहीं। जब याकूब के दो पुत्रों ने अपने क्रूर कार्य के कारण परिवार के लिए दुश्‍मनी मोल ली, तब याकूब ने उनके हिंसक क्रोध को धिक्कारा, स्वयं पुत्रों को नहीं।—उत्पत्ति ३४:१-३१; ४९:५-७.

२६. यदि उनका एक बच्चा विद्रोह करता है तो कर्तव्यनिष्ठ माता-पिता किस बात से सांत्वना प्राप्त कर सकते हैं?

२६ आपके परिवार में जो हुआ है उसके लिए शायद आप ख़ुद को ज़िम्मेदार मानें। लेकिन यदि आपने प्रार्थनापूर्वक अपने भरसक सब कुछ किया है, यहोवा की सलाह पर यथाशक्‍ति चले हैं, तो अपने आपको अकारण दोष देने की कोई ज़रूरत नहीं। इस तथ्य से सांत्वना प्राप्त कीजिए कि कोई भी एक परिपूर्ण जनक नहीं हो सकता, लेकिन आपने कर्तव्यनिष्ठा के साथ एक अच्छा जनक होने की कोशिश की। (प्रेरितों २०:२६ से तुलना कीजिए।) परिवार में एक पक्का विद्रोही होना मर्मभेदी है, लेकिन यदि आपके साथ ऐसा होता है तो आश्‍वस्त रहिए कि परमेश्‍वर समझता है और वह अपने समर्पित सेवकों को कभी नहीं त्यागेगा। (भजन २७:१०) सो अपने घर को बाक़ी के कोई बच्चों के लिए एक सुरक्षित, आध्यात्मिक आश्रय बनाए रखने के लिए दृढ़निश्‍चयी रहिए।

२७. उड़ाऊ पुत्र की नीति-कथा को याद करते हुए, एक विद्रोही बच्चे के माता-पिता किस बात की हमेशा आशा कर सकते हैं?

२७ इसके अलावा, आपको आशा कभी नहीं छोड़नी चाहिए। उचित प्रशिक्षण देने के आपके प्रारंभिक प्रयास शायद अंततः भटके हुए बच्चे के हृदय को प्रभावित करें और उसको होश में ले आएँ। (सभोपदेशक ११:६) कई मसीही परिवारों को आप ही के जैसा अनुभव हुआ है, और कुछ ने अपने पथभ्रष्ट बच्चों को वापस आते देखा है, काफ़ी कुछ वैसे ही जैसे उड़ाऊ पुत्र के बारे में यीशु की नीति-कथा में उस पिता ने देखा। (लूका १५:११-३२) शायद आपके साथ भी ऐसा ही हो।