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अध्याय दस

जब परिवार का एक सदस्य बीमार है

जब परिवार का एक सदस्य बीमार है

१, २. अय्यूब की खराई तोड़ने की कोशिश में शैतान ने त्रासदी और बीमारी को कैसे प्रयोग किया?

पुरुष अय्यूब को निश्‍चित ही उनमें गिना जाना चाहिए जिन्होंने एक सुखी पारिवारिक जीवन का आनन्द लिया। बाइबल उसे ‘पूरबियों में सबसे बड़ा’ कहती है। उसके पास सात पुत्र और तीन पुत्रियाँ थीं, कुल मिलाकर दस बच्चे। उसके पास अच्छी तरह से अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए साधन भी थे। सबसे महत्त्वपूर्ण, उसने आध्यात्मिक बातों में अगुवाई की और वह यहोवा के सम्मुख अपने बच्चों की स्थिति के बारे में चिन्तित था। इस सब का परिणाम हुआ घनिष्ठ और सुखी पारिवारिक बंधन।—अय्यूब १:१-५.

अय्यूब की स्थिति यहोवा परमेश्‍वर के मुख्य-विरोधी, शैतान की नज़रों से नहीं बची। शैतान परमेश्‍वर के सेवकों की खराई तोड़ने के तरीक़ों की ताक में निरन्तर रहता है। उसने अय्यूब के सुखी परिवार को बरबाद करने के द्वारा उस पर आक्रमण किया। फिर, उसने “अय्यूब को पांव के तलवे से ले सिर की चोटी तक बड़े बड़े फोड़ों से पीड़ित किया।” इस प्रकार शैतान ने अय्यूब की खराई तोड़ने की आशा में त्रासदी और बीमारी का प्रयोग किया।—अय्यूब २:६, ७.

३. अय्यूब के रोग के क्या लक्षण थे?

बाइबल अय्यूब के रोग का चिकित्सीय नाम नहीं देती। लेकिन, वह हमें इसके लक्षण बताती है। उसकी देह कीड़ों से ढकी हुई थी, और उसकी चमड़ी कड़ी होकर गिर रही थी। अय्यूब की साँस घिनौनी थी, और उसके शरीर से दुर्गन्ध आती थी। वह पीड़ा से तड़प रहा था। (अय्यूब ७:५; १९:१७; ३०:१७, ३०) घोर-व्यथा में अय्यूब राख पर बैठा एक ठीकरे से अपने आपको खुजलाता था। (अय्यूब २:८) सचमुच एक दयनीय दृश्‍य!

४. समय-समय पर हर परिवार को क्या अनुभव होता है?

यदि आप एक इतनी गंभीर बीमारी से पीड़ित होते तो आप कैसी प्रतिक्रिया दिखाते? आज, शैतान परमेश्‍वर के सेवकों पर बीमारी नहीं लाता जैसा कि वह अय्यूब पर लाया। फिर भी, मानव अपरिपूर्णता, दैनिक जीवन के तनाव, और हमारे बिगड़ते वातावरण के कारण, यह अति संभव है कि समय-समय पर परिवार के सदस्य बीमार पड़ेंगे। रोक-थाम के लिए हमारे क़दम उठाने के बावजूद, हम सभी बीमार पड़ सकते हैं, हालाँकि अय्यूब के जितना दुःख शायद ही कोई झेले। जब बीमारी हमारे घर पर हमला करती है, तो यह सचमुच एक चुनौती हो सकती है। इसलिए आइए देखें कि मनुष्यजाति के इस सदा-विद्यमान शत्रु से निपटने में बाइबल हमारी मदद कैसे करती है।—सभोपदेशक ९:११; २ तीमुथियुस ३:१६.

आप इसके बारे में कैसा महसूस करते हैं?

५. छोटी-मोटी बीमारी के किस्सों में परिवार के सदस्य प्रायः कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं?

कारण चाहे जो भी हो, जीवन के सामान्य नित्यक्रम में बाधा हमेशा कठिन होती है, और यह ख़ासकर तब सच होता है यदि बाधा एक लम्बी बीमारी के कारण आयी है। थोड़े समय की बीमारी भी फेर-फार, रिआयत, और त्याग की माँग करती है। परिवार के स्वस्थ सदस्यों को शायद चुप रहना पड़े ताकि बीमार को आराम मिल सके। उनको शायद कुछ गतिविधियाँ छोड़नी पड़ें। फिर भी, अधिकांश परिवारों में छोटे बच्चे भी बीमार भाई-बहन या जनक के लिए करुणा महसूस करते हैं, हालाँकि कभी-कभार उनको शायद यह याद दिलाना पड़े कि विचारशील हों। (कुलुस्सियों ३:१२) छोटी-मोटी बीमारी के मामले में, परिवार प्रायः जो कुछ ज़रूरी है उसे करने के लिए तैयार रहता है। इसके अलावा, परिवार का हर सदस्य यह आशा करता कि यदि वह बीमार पड़ता तो उसे भी ऐसा ही लिहाज़ दिखाया जाता।—मत्ती ७:१२.

६. यदि परिवार के एक सदस्य को कोई गंभीर, स्थायी बीमारी हो जाती है, तो कभी-कभी कौन-सी प्रतिक्रियाएँ देखने में आती हैं?

लेकिन, यदि रोग बहुत गंभीर है और बाधाएँ बहुत बड़ी और लम्बी हैं, तब क्या? उदाहरण के लिए, यदि दौरा पड़ने के कारण परिवार में किसी को लकवा मार गया है, एलज़ाइमर रोग के कारण विकलाँग हो गया है, या किसी अन्य बीमारी के कारण कमज़ोर हो गया है, तब क्या? अथवा यदि परिवार का एक सदस्य किसी मानसिक रोग से पीड़ित है, जैसे कि स्किटसाफ्रीनीया, तब क्या? शुरू-शुरू में सामान्य प्रतिक्रिया होती है तरस—इस बात का दुःख कि एक प्रियजन इतना पीड़ित है। लेकिन, तरस के बाद अन्य प्रतिक्रियाएँ हो सकती हैं। जब परिवार के सदस्य पाते हैं कि एक व्यक्‍ति की बीमारी के कारण वे बहुत प्रभावित हो रहे हैं और उनकी स्वतंत्रता कम हो रही है, तो उन्हें शायद कुढ़न हो। वे शायद सोचें: “यह मेरे साथ ही क्यों होना है?”

७. अय्यूब की बीमारी पर उसकी पत्नी ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी, और प्रत्यक्षतः वह क्या भूल गयी?

लगता है कि अय्यूब की पत्नी के मन में कुछ ऐसा ही विचार आया। याद रखिए, वह अपने बच्चों को पहले ही खो चुकी थी। जैसे-जैसे वे त्रासिक घटनाएँ हुईं, निःसंदेह वह और भी परेशान होती गयी। अंततः, जब उसने अपने कभी फुरतीले और हट्टे-कट्टे पति को एक दर्दनाक, घिनौनी बीमारी से पीड़ित देखा, तो प्रतीत होता है कि वह उस अति-महत्त्वपूर्ण तत्व को भूल गयी जो सभी त्रासदियों से बढ़कर था—वह सम्बन्ध जो उसका और उसके पति का परमेश्‍वर के साथ था। बाइबल कहती है: “तब [अय्यूब की] स्त्री उस से कहने लगी, क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्‍वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा।”—अय्यूब २:९.

८. जब परिवार का एक सदस्य बहुत बीमार है, तब कौन-सा शास्त्रवचन परिवार के अन्य सदस्यों को एक उचित दृष्टिकोण रखने में मदद देगा?

अनेक लोग निराश हो जाते हैं, यहाँ तक कि उनको क्रोध आता है जब उनका जीवन किसी और की बीमारी के कारण बहुत अधिक बदल जाता है। फिर भी, एक मसीही जो स्थिति पर सोच-विचार करता है उसे आख़िरकार यह एहसास होना चाहिए कि यह उसे अपने प्रेम की असलियत को दिखाने का एक अवसर देता है। सच्चा प्रेम “धीरजवन्त है, और कृपाल है; . . . [और] अपनी भलाई नहीं चाहता, . . . वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।” (१ कुरिन्थियों १३:४-७) इसलिए, नकारात्मक भावनाओं को प्रबल होने देने के बजाय, यह अत्यावश्‍यक है कि हम उन्हें नियंत्रण में रखने के लिए अपना भरसक प्रयास करें।—नीतिवचन ३:२१.

९. जब एक सदस्य गंभीर रूप से बीमार है, तब कौन-से आश्‍वासन एक परिवार को आध्यात्मिक और भावात्मक रूप से मदद दे सकते हैं?

उस समय परिवार के आध्यात्मिक और भावात्मक हित को सुरक्षित रखने के लिए क्या किया जा सकता है जब उसका एक सदस्य गंभीर रूप से बीमार है? निःसंदेह, हर बीमारी अपनी ही ख़ास देखरेख और इलाज की माँग करती है, और इस प्रकाशन में किसी चिकित्सा या गृह-सेवा प्रक्रियाओं की सलाह देना उपयुक्‍त नहीं होगा। फिर भी, एक आध्यात्मिक अर्थ में, यहोवा “सब झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है।” (भजन १४५:१४) राजा दाऊद ने लिखा: “क्या ही धन्य है वह जो कंगाल की सुधि लेता है: संकट के दिन यहोवा उसे छुड़ाएगा। यहोवा उसकी रक्षा कर के उसे जीवित रखेगा, . . . रोग-शय्या पर यहोवा उसे संभालेगा।” (भजन ४१:१-३, NHT) यहोवा अपने सेवकों को आध्यात्मिक रूप से जीवित रखता है, उस समय भी जब वे स्वयं अपनी शक्‍ति के बाहर भावात्मक रूप से परेशान होते हैं। (२ कुरिन्थियों ४:७) जिनके घराने में कोई गंभीर रूप से बीमार है, ऐसे परिवारों के अनेक सदस्यों ने भजनहार के शब्दों को दोहराया है: “मैं अत्यन्त दुःख में पड़ा हूं; हे यहोवा, अपने वचन के अनुसार मुझे जिला [“जीवित रख,” NW]।”—भजन ११९:१०७.

एक चंगाई देनेवाली आत्मा

१०, ११. (क) यदि एक परिवार को बीमारी के साथ सफलतापूर्वक निपटना है, तो कौन-सी बात अत्यावश्‍यक है? (ख) एक स्त्री अपने पति की बीमारी से कैसे निपटी?

१० “रोग में मनुष्य अपनी आत्मा से सम्भलता है,” बाइबल का एक नीतिवचन कहता है, “परन्तु जब आत्मा हार जाती है तब इसे कौन सह सकता है?” (नीतिवचन १८:१४) सदमा परिवार की आत्मा साथ ही साथ एक ‘मनुष्य की आत्मा’ को पीड़ित कर सकता है। परन्तु, “शान्त मन, तन का जीवन है।” (नीतिवचन १४:३०) एक परिवार गंभीर बीमारी के साथ सफलतापूर्वक निपटता है या नहीं, यह काफ़ी हद तक उसके सदस्यों की मनोवृत्ति, या आत्मा पर निर्भर करता है।—नीतिवचन १७:२२ से तुलना कीजिए।

११ एक मसीही स्त्री को अपने विवाह के केवल छः साल बाद अपने पति को एक दौरे के कारण अशक्‍त होते देखने का दुःख सहना पड़ा। “मेरे पति की आवाज़ पर बुरी तरह से असर पड़ा, और उनके साथ बातचीत करना लगभग असंभव हो गया,” उसने याद किया। “वह क्या कहने की कोशिश कर रहे थे उसे समझने का प्रयास करने का मानसिक तनाव बहुत अधिक था।” पति ने जिस घोर-व्यथा और निराशा का अनुभव किया होगा उसकी भी कल्पना कीजिए। इस दम्पति ने क्या किया? हालाँकि उनका घर मसीही कलीसिया से काफ़ी दूर था, बहन ने आध्यात्मिक रूप से मज़बूत रहने के लिए अपनी पूरी कोशिश की। ऐसा उसने संगठन की सभी नवीनतम जानकारी, साथ ही प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं में आध्यात्मिक भोजन की निरन्तर सप्लाई के साथ दिनाप्त रहने के द्वारा किया। इसने उसे चार साल बाद अपने प्रिय पति की मृत्यु तक उसकी सेवा करने के लिए आध्यात्मिक शक्‍ति दी।

१२. जैसे अय्यूब के किस्से से दिखता है, कभी-कभी बीमार व्यक्‍ति क्या योग देता है?

१२ अय्यूब के किस्से में वह, जो पीड़ित था, मज़बूत रहा। “क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?” उसने अपनी पत्नी से पूछा। (अय्यूब २:१०) इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि बाद में शिष्य याकूब ने धीरज और सहनशीलता के एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में अय्यूब का उल्लेख किया! याकूब ५:११ (NHT) में हम पढ़ते हैं: “तुमने अय्यूब के धैर्य के विषय में तो सुना ही है, और प्रभु के व्यवहार के परिणाम को देखा है कि प्रभु अत्यन्त करुणामय और दयालु है।” उसी प्रकार आज, अनेक किस्सों में परिवार के बीमार सदस्य की साहसी मनोवृत्ति ने घराने में दूसरों को एक सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने में मदद दी है।

१३. जो परिवार गंभीर बीमारी का अनुभव कर रहा है उसे कैसी तुलना नहीं करनी चाहिए?

१३ जिनको परिवार में बीमारी से निपटना पड़ा है उनमें से अधिकांश लोग मानते हैं कि परिवार के सदस्यों को शुरू-शुरू में असलियत का सामना करने में कठिनाई होना असाधारण नहीं है। वे यह भी बताते हैं कि जिस रीति से एक व्यक्‍ति स्थिति को देखता है वह अति-महत्त्वपूर्ण है। गृहस्थी के नित्यक्रम में बदलाव और फेर-फार करना शुरूआत में शायद कठिन हो। लेकिन यदि एक व्यक्‍ति वास्तव में प्रयास करता है, तो वह नयी स्थिति के अनुकूल बन सकता है। ऐसा करते समय, यह महत्त्वपूर्ण है कि हम अपनी परिस्थितियों की तुलना दूसरों की परिस्थितियों के साथ न करें जिनके परिवार में बीमारी नहीं है, और यह न सोचें कि उनका जीवन ज़्यादा आसान है, और कि ‘यह बात उचित नहीं है!’ असल में, कोई भी वास्तव में यह नहीं जानता कि दूसरों को कौन-से भार उठाने पड़ते हैं। सभी मसीही यीशु के शब्दों से सांत्वना प्राप्त करते हैं: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।”—मत्ती ११:२८.

प्राथमिकताएँ रखना

१४. उचित प्राथमिकताएँ कैसे रखी जा सकती हैं?

१४ गंभीर बीमारी का सामना करते समय, भला होगा कि एक परिवार इन उत्प्रेरित शब्दों को याद रखे: “बहुत से मंत्रियों की सम्मति से बात ठहरती है।” (नीतिवचन १५:२२) क्या परिवार के सदस्य एकसाथ आकर उस स्थिति पर चर्चा कर सकते हैं जो बीमारी के कारण खड़ी हुई है? प्रार्थनापूर्वक ऐसा करना और मार्गदर्शन के लिए परमेश्‍वर के वचन की ओर मुड़ना निश्‍चित ही उपयुक्‍त होगा। (भजन २५:४) एक ऐसी चर्चा में किस बात पर विचार किया जाना चाहिए? चिकित्सीय, आर्थिक, और पारिवारिक फ़ैसले किए जाने हैं। मुख्य परिचर्या कौन करेगा? उस परिचर्या का समर्थन करने के लिए परिवार कैसे सहयोग दे सकता है? किए गए प्रबन्धों का परिवार के हरेक सदस्य पर कैसा प्रभाव पड़ेगा? मुख्य परिचारक की आध्यात्मिक और अन्य ज़रूरतों के बारे में कैसे ध्यान रखा जाएगा?

१५. गंभीर बीमारी का अनुभव करनेवाले परिवारों के लिए यहोवा क्या सहारा देता है?

१५ यहोवा के निर्देशन के लिए मन से प्रार्थना करना, उसके वचन पर मनन करना, और बाइबल द्वारा सूचित मार्ग पर साहसपूर्वक चलना अकसर हमारी अपेक्षाओं से अधिक आशिषों में परिणित होता है। परिवार के एक बीमार सदस्य का रोग हमेशा शायद न दबे। लेकिन यहोवा पर भरोसा रखने से किसी भी स्थिति में हमेशा सर्वोत्तम परिणाम मिलता है। (भजन ५५:२२) भजनहार ने लिखा: “हे यहोवा, तेरी करुणा ने मुझे थाम लिया। जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है।”—भजन ९४:१८, १९. भजन ६३:६-८ भी देखिए।

बच्चों की मदद करना

जब परिवार एकसाथ काम करता है, तब समस्याओं से निपटा जा सकता है

१६, १७. छोटे बच्चों के साथ उनके भाई या बहन की बीमारी पर चर्चा करते समय कौन-सी बातें स्पष्ट की जा सकती हैं?

१६ गंभीर बीमारी परिवार में बच्चों के लिए समस्याएँ खड़ी कर सकती है। यह महत्त्वपूर्ण है कि माता-पिता बच्चों को उन ज़रूरतों को समझने में मदद दें जो आ पड़ी हैं। उन्हें यह भी समझाया जाना चाहिए कि मदद करने के लिए वे क्या कर सकते हैं। यदि जो बीमार हो गया है वह एक बच्चा है, तो उसके भाई-बहनों को यह समझने में मदद दी जानी चाहिए कि बीमार बच्चे की जो अतिरिक्‍त सेवा और परिचर्या की जा रही है उसका यह अर्थ नहीं कि दूसरे बच्चों को कम प्रेम किया जाता है। कुढ़न या जलन को विकसित होने देने के बजाय, माता-पिता दूसरे बच्चों को एक दूसरे के साथ अधिक घनिष्ठ बंधन बाँधने और सच्चा स्नेह रखने में मदद दे सकते हैं, जैसे-जैसे वे बीमारी के कारण खड़ी हुई स्थिति को संभालने में सहयोग देते हैं।

१७ छोटे बच्चे प्रायः ज़्यादा जल्दी प्रतिक्रिया दिखाएँगे यदि माता-पिता उन्हें चिकित्सीय स्थितियों के बारे में लम्बी या जटिल व्याख्याएँ देने के बजाय उनकी संवेदना को छूते हैं। सो उन्हें इस बारे में थोड़ा-बहुत बताया जा सकता है कि परिवार के बीमार सदस्य पर क्या गुज़र रही है। यदि स्वस्थ बच्चे यह देखते हैं कि किस प्रकार रोग बीमार जन को ऐसे अनेक काम करने से रोकता है जिनके बारे में वे रुककर सोचते भी नहीं, तो संभवतः उनमें “भाईचारे की प्रीति” अधिक होगी और वे “करुणामय” होंगे।—१ पतरस ३:८.

१८. बीमारी के कारण खड़ी हुई समस्याओं को समझने में बड़े बच्चों को कैसे मदद दी जा सकती है, और इससे उन्हें कैसे लाभ पहुँच सकता है?

१८ बड़े बच्चों को यह समझने में मदद दी जानी चाहिए कि स्थिति कठिन है और वह परिवार में सभी की ओर से त्याग की माँग करती है। क्योंकि डॉक्टरों की फ़ीस और दवा-दारू का ख़र्च देना होता है, तो माता-पिता के लिए शायद यह संभव न हो कि दूसरे बच्चों के लिए उतना करें जितना कि वे करना चाहते हैं। क्या बच्चे इससे कुढ़ेंगे और महसूस करेंगे कि उन्हें वंचित रखा जा रहा है? अथवा क्या वे स्थिति को समझेंगे और ज़रूरी त्याग करने के लिए तत्पर होंगे? काफ़ी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि मामले पर चर्चा किस रीति से की गयी है और परिवार में कैसी आत्मा उत्पन्‍न की गयी है। सचमुच, अनेक परिवारों में परिवार के एक सदस्य की बीमारी ने बच्चों को पौलुस की सलाह पर चलने के लिए प्रशिक्षित करने में मदद दी है: “विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। हर एक अपनी ही हित की नहीं, बरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे।”—फिलिप्पियों २:३, ४.

चिकित्सीय उपचार को किस दृष्टि से देखें

१९, २०. (क) जब परिवार का एक सदस्य बीमार होता है, तब परिवार के सिर के कन्धे पर कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ होती हैं? (ख) हालाँकि बाइबल एक चिकित्सीय पाठ्य-पुस्तक नहीं है, फिर भी बीमारी से निपटने में वह किस प्रकार मार्गदर्शन प्रदान करती है?

१९ जब तक कि चिकित्सीय उपचार परमेश्‍वर के नियम के विरुद्ध नहीं जाता, संतुलित मसीही उससे इनकार नहीं करते। जब उनके परिवार का एक सदस्य बीमार हो जाता है, तब वे पीड़ित जन के दुःख को दूर करने के लिए मदद माँगने में देर नहीं करते। फिर भी, चिकित्सकों की राय अलग-अलग हो सकती है, जिन्हें तौला जाना चाहिए। इसके अतिरिक्‍त, हाल के सालों में नयी-नयी बीमारियाँ और विकार उत्पन्‍न हुए हैं, और इनमें से अनेकों के लिए उपचार का कोई सामान्य रूप से स्वीकृत तरीक़ा नहीं है। कभी-कभी यह पता लगाना भी कठिन होता है कि बीमारी असल में है क्या। तो, एक मसीही को क्या करना चाहिए?

२० हालाँकि एक बाइबल लेखक एक चिकित्सक था और प्रेरित पौलुस ने अपने मित्र तीमुथियुस को सहायक चिकित्सीय सलाह दी, फिर भी शास्त्र एक नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक है, चिकित्सीय पाठ्य-पुस्तक नहीं। (कुलुस्सियों ४:१४; १ तीमुथियुस ५:२३) अतः, चिकित्सीय उपचार के मामलों में, एक मसीही परिवार के सिर को स्वयं अपने संतुलित फ़ैसले करने हैं। संभवतः वे शायद महसूस करें कि उन्हें एक से ज़्यादा चिकित्सकों की राय लेने की ज़रूरत है। (नीतिवचन १८:१७ से तुलना कीजिए।) वे अपने परिवार के बीमार सदस्य के लिए निश्‍चित ही उपलब्ध सर्वोत्तम सहायता चाहते हैं, और अधिकांश जन इसे सामान्य डॉक्टरों से लेते हैं। कुछ लोग वैकल्पिक स्वास्थ्य उपचारों के साथ ज़्यादा निश्‍चिन्त महसूस करते हैं। यह भी एक व्यक्‍तिगत फ़ैसला है। फिर भी, स्वास्थ्य समस्याओं से निपटते समय मसीही ऐसा नहीं करते कि ‘परमेश्‍वर के वचन को अपने पांव के लिये दीपक और अपने मार्ग के लिये उजियाला’ होने से रोक दें। (भजन ११९:१०५) वे बाइबल में दिए गए मार्गदर्शन पर चलना जारी रखते हैं। (यशायाह ५५:८, ९) अतः, वे ऐसी नैदानिक प्रक्रियाओं के पास भी नहीं फटकते जिनमें से प्रेतात्मवाद की बू आती है, और वे ऐसे उपचारों से दूर रहते हैं जो बाइबल सिद्धान्तों का उल्लंघन करते हैं।—भजन ३६:९; प्रेरितों १५:२८, २९; प्रकाशितवाक्य २१:८.

२१, २२. एशिया की एक स्त्री ने एक बाइबल सिद्धान्त पर कैसे तर्क किया, और जो फ़ैसला उसने किया वह उसकी स्थिति में कैसे सही साबित हुआ?

२१ एशिया की एक जवान स्त्री के किस्से पर विचार कीजिए। यहोवा की एक साक्षी के साथ अध्ययन करने के फलस्वरूप बाइबल के बारे में सीखना शुरू करने के कुछ ही समय बाद, उसने समयपूर्व एक बच्ची को जन्म दिया जिसका वजन केवल सवा तीन पाउण्ड था। उस स्त्री का दिल टूट गया जब एक डॉक्टर ने उससे कहा कि बच्ची गंभीर रूप से अपंग होगी और कभी चल नहीं पाएगी। डॉक्टर ने उसे सलाह दी कि बच्ची को किसी संस्थान में दे दे। उसका पति इस विषय में अनिश्‍चित था। वह किसकी ओर मुड़ सकती थी?

२२ वह कहती है: “मुझे बाइबल से यह सीखना याद है कि ‘बच्चे यहोवा के दिए हुए मीरास हैं, गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है।’” (भजन १२७:३, NHT फुटनोट) उसने इस “मीरास” को घर ले जाने और उसकी देखरेख करने का फ़ैसला किया। शुरू में कठिनाई हुई, लेकिन यहोवा के साक्षियों की स्थानीय कलीसिया में मसीही मित्रों की मदद से वह स्त्री स्थिति संभाल सकी और बच्ची को ज़रूरी ख़ास ध्यान दे सकी। बारह साल बाद, वह बच्ची राज्यगृह में सभाओं में जा रही थी और वहाँ युवजनों की संगति का आनन्द ले रही थी। वह माँ टिप्पणी करती है: “मैं कितनी आभारी हूँ कि बाइबल सिद्धान्तों ने मुझे सही काम करने के लिए प्रेरित किया। बाइबल ने मुझे यहोवा परमेश्‍वर के सामने एक साफ़ अंतःकरण बनाए रखने और कोई मलाल न रखने में मदद दी जो कि मुझे जीवन-भर टीसता।”

२३. बीमारों और उनकी देखरेख करनेवालों के लिए बाइबल क्या सांत्वना देती है?

२३ बीमारी हमारे साथ सर्वदा नहीं रहेगी। भविष्यवक्‍ता यशायाह ने आगे उस समय की ओर संकेत किया जब “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।” (यशायाह ३३:२४) वह प्रतिज्ञा तेज़ी से निकट आ रहे नए संसार में पूरी होगी। लेकिन तब तक, हमें बीमारी और मृत्यु के साथ जीना है। ख़ुशी की बात है कि परमेश्‍वर का वचन हमें मार्गदर्शन और सहायता देता है। बाइबल जो मूल आचरण-नियम प्रदान करती है वे स्थायी हैं, और वे अपरिपूर्ण मनुष्यों के सदा-बदलते मतों से कहीं ऊँचे हैं। अतः, एक बुद्धिमान व्यक्‍ति भजनहार के साथ सहमत होता है जिसने लिखा: “यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; यहोवा के नियम विश्‍वासयोग्य हैं, साधारण लोगों को बुद्धिमान बना देते हैं; . . . यहोवा के नियम सत्य और पूरी रीति से धर्ममय हैं। . . . उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है।”—भजन १९:७, ९, ११.