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अध्याय तेरह

यदि विवाह टूटने पर है

यदि विवाह टूटने पर है

१, २. जब विवाह दबाव में होता है, तब कौन-सा प्रश्‍न पूछा जाना चाहिए?

वर्ष १९८८ में लूचीआ नाम की एक इटालियन स्त्री बहुत हताश थी। * दस साल के बाद उसके विवाह का अन्त हो रहा था। कई बार उसने अपने पति के साथ मेल-मिलाप करने की कोशिश की थी, लेकिन काम बना ही नहीं। सो अनुरूपता न होने के कारण वह अलग हो गयी और अब उसे अकेले ही दो पुत्रियों को पालना था। पीछे उस समय की ओर देखते हुए, लूचीआ याद करती है: “मैं निश्‍चित थी कि कुछ भी हमारे विवाह को नहीं बचा सकता।”

यदि आपको वैवाहिक समस्याएँ हो रही हैं, तो आप शायद समझ सकें कि लूचीआ को कैसा लगता है। शायद आपके विवाह में मुश्‍किलें हों और आप सोच रहे हों कि क्या इसे अब भी बचाया जा सकता है। यदि ऐसा है, तो आप इस प्रश्‍न पर विचार करना सहायक पाएँगे: विवाह को सफल बनाने में मदद देने के लिए परमेश्‍वर ने बाइबल में जितनी भी अच्छी सलाह दी है क्या मैं ने वह सब मानी है?—भजन ११९:१०५.

३. जबकि तलाक़ प्रचलित हो गया है, अनेक तलाक़शुदा लोगों और उनके परिवारों की कैसी प्रतिक्रिया की रिपोर्ट मिली है?

जब पति-पत्नी के बीच अत्यधिक तनाव होता है, तब विवाह को तोड़ देना सबसे सरल मार्ग प्रतीत हो सकता है। लेकिन, जबकि अनेक देशों ने टूटे परिवारों में भयानक वृद्धि देखी है, हाल के अध्ययन दिखाते हैं कि उन तलाक़शुदा पुरुषों और स्त्रियों की संख्या कम नहीं जिनको इस विच्छेद पर पछतावा है। इनमें से कई लोग उनकी तुलना में जो अपना विवाह बनाए रखते हैं, अधिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं। ये समस्याएँ दोनों शारीरिक और मानसिक हो सकती हैं। तलाक़शुदा माता-पिता के बच्चों की उलझन और उनका दुःख अकसर सालों तक रहता है। टूटे परिवार के माता-पिता और मित्र भी पीड़ित होते हैं। और परमेश्‍वर, विवाह का आरंभक स्थिति को जिस दृष्टि से देखता है उसके बारे में क्या?

४. विवाह में समस्याओं से कैसे निपटा जाना चाहिए?

जैसा पिछले अध्यायों में बताया गया है, परमेश्‍वर का उद्देश्‍य था कि विवाह जीवन-भर का बंधन हो। (उत्पत्ति २:२४) तो फिर, इतने सारे विवाह क्यों टूटते हैं? यह शायद रातोंरात न हो। प्रायः चेतावनी-चिन्ह दिखते हैं। विवाह में छोटी-छोटी समस्याएँ बढ़ती चली जा सकती हैं जब तक कि वे अलंघ्य न दिखने लगें। लेकिन यदि बाइबल की सहायता से इन समस्याओं से तुरन्त निपटा जाए, तो अनेक विवाह टूटने से बचाए जा सकते हैं।

व्यावहारिक बनिए

५. किसी भी विवाह में व्यावहारिक रूप से किस स्थिति का सामना किया जाना चाहिए?

एक तत्व जो कभी-कभी समस्याओं का कारण बनता है वह है एक या दोनों विवाह-साथियों की अव्यावहारिक अपेक्षाएँ। प्रेम-कथाएँ, लोकप्रिय पत्रिकाएँ, टॆलीविज़न कार्यक्रम, और फ़िल्में ऐसी आशाएँ और सपने जगा सकती हैं जो वास्तविक जीवन से कहीं परे होते हैं। जब ये सपने सच नहीं होते, तब व्यक्‍ति को ऐसा लग सकता है कि उसके साथ धोखा हुआ है, वह असंतुष्ट, यहाँ तक कि कटु महसूस कर सकता है। परन्तु, दो अपरिपूर्ण व्यक्‍ति विवाह में सुख कैसे पा सकते हैं? एक सफल सम्बन्ध बनाने में परिश्रम लगता है।

६. (क) बाइबल विवाह के बारे में कौन-सा संतुलित दृष्टिकोण देती है? (ख) विवाह में मतभेदों के कुछ कारण क्या हैं?

बाइबल व्यावहारिक है। वह विवाह के आनन्द को स्वीकार करती है, लेकिन वह चेतावनी भी देती है कि जो विवाह करते हैं उन्हें “शारीरिक दुख होगा।” (१ कुरिन्थियों ७:२८) जैसे बताया जा चुका है, दोनों साथी अपरिपूर्ण हैं और पाप करने को प्रवृत्त हैं। प्रत्येक साथी की मानसिक और भावात्मक रचना और पालन-पोषण भिन्‍न होता है। दम्पति कभी-कभी पैसे, बच्चों, और ससुराल वालों के बारे में असहमत होते हैं। एकसाथ कार्य करने के लिए समय की कमी और लैंगिक समस्याएँ भी झगड़े का स्रोत हो सकती हैं। * ऐसे मामलों को संभालने में समय लगता है, लेकिन ढाढ़स बाँधिए! अधिकांश विवाहित दम्पति ऐसी समस्याओं का सामना करने में समर्थ होते हैं और ऐसे हल निकाल लेते हैं जो परस्पर स्वीकार्य हों।

मतभेदों पर चर्चा कीजिए

७, ८. यदि विवाह-साथियों के बीच कटु भावनाएँ या ग़लतफ़हमियाँ हैं, तो उन्हें दूर करने का शास्त्रीय तरीक़ा क्या है?

कटु भावनाओं, ग़लतफ़हमियों, या व्यक्‍तिगत कमियों के बारे में चर्चा करते समय अनेक लोग शान्त रहना कठिन पाते हैं। सीधे-सीधे यह कहने के बजाय: “आपने मुझे समझा नहीं,” एक विवाह-साथी भावात्मक होकर समस्या को बढ़ा-चढ़ा सकता है। अनेक लोग कहेंगे: “आपको सिर्फ़ अपनी परवाह है,” या “आपको मुझसे प्रेम नहीं।” क्योंकि दूसरा विवाह-साथी बहस में नहीं पड़ना चाहता, वह शायद कोई प्रतिक्रिया न दिखाए।

बाइबल की यह सलाह मानना बेहतर मार्ग है: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे।” (इफिसियों ४:२६) अपनी शादी की ६०वीं सालगिरह तक पहुँचने पर, एक सुखी विवाहित दम्पति से उनके सफल विवाह का रहस्य पूछा गया। पति ने कहा: “हमने सीखा कि मतभेदों को दूर करने से पहले नहीं सोएँ, चाहे वे कितने भी छोटे क्यों न हों।”

९. (क) शास्त्र में किस बात की पहचान संचार के एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में करायी गयी है? (ख) चाहे इसके लिए साहस और नम्रता चाहिए, तोभी अकसर विवाह-साथियों को क्या करने की ज़रूरत होती है?

जब एक पति-पत्नी असहमत होते हैं, तो प्रत्येक को “सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा” होने की ज़रूरत है। (याकूब १:१९) ध्यानपूर्वक सुनने के बाद, दोनों साथी शायद क्षमा माँगने की ज़रूरत समझें। (याकूब ५:१६) निष्कपटता से यह कहने के लिए कि “आपको चोट पहुँचाने के लिए क्षमा कीजिए,” नम्रता और साहस चाहिए। लेकिन इस ढंग से मतभेदों को दूर करना एक विवाहित दम्पति को न सिर्फ़ अपनी समस्याओं को सुलझाने में बल्कि वह स्नेह और अंतरंगता विकसित करने में भी बहुत मदद देगा जिससे वे एक दूसरे की संगति का और भी आनन्द उठाएँगे।

वैवाहिक हक्क पूरा करना

१०. पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों को बचाव की कौन-सी सलाह दी जो आज एक मसीही पर लागू हो सकती है?

१० जब प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखा, तब उसने विवाह की सलाह दी ‘क्योंकि व्यभिचार का प्रचलन’ था। (१ कुरिन्थियों ७:२, NW) आज संसार प्राचीन कुरिन्थ के जितना बुरा है, अथवा उससे भी बदतर है। वे अनैतिक विषय जिन पर संसार के लोग खुलकर बात करते हैं, उनका अश्‍लील पहनावा, तथा पत्रिकाओं और पुस्तकों में, टीवी पर, और फ़िल्मों में प्रस्तुत की गयी उत्तेजक कहानियाँ, सभी मिलकर अनुचित काम-वासना जगाते हैं। समान वातावरण में रह रहे कुरिन्थियों को प्रेरित पौलुस ने कहा: “विवाह करना कामातुर रहने से भला है।”—१ कुरिन्थियों ७:९.

११, १२. (क) पति-पत्नी एक दूसरे को क्या देने के लिए बाध्य हैं, और यह किस आत्मा से दिया जाना चाहिए? (ख) यदि वैवाहिक हक्क को कुछ समय तक नहीं दिया जाना है, तो स्थिति से कैसे निपटा जाना चाहिए?

११ इसलिए, बाइबल विवाहित मसीहियों को आज्ञा देती है: “पति अपनी पत्नी का हक्क पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का।” (१ कुरिन्थियों ७:३) ध्यान दीजिए कि यहाँ बल देने पर है—माँग करने पर नहीं। यदि प्रत्येक साथी दूसरे की भलाई के बारे में चिन्ता करता है तभी विवाह में शारीरिक अंतरंगता सचमुच संतोषप्रद होती है। उदाहरण के लिए, बाइबल पतियों को आज्ञा देती है कि अपनी पत्नियों के साथ “बुद्धिमानी से” व्यवहार करें। (१ पतरस ३:७) यह ख़ासकर वैवाहिक हक्क देने और लेने के बारे में सच है। यदि एक पत्नी के साथ कोमलता से व्यवहार नहीं किया जाता, तो उसके लिए विवाह के इस पहलू का आनन्द उठाना शायद मुश्‍किल हो।

१२ ऐसे समय होते हैं जब विवाह-साथियों को एक दूसरे को वैवाहिक हक्क से वंचित रखना पड़ सकता है। यह पत्नी के बारे में महीने के अमुक समय में या जब वह बहुत थकान महसूस करती है तब सच हो सकता है। (लैव्यव्यवस्था १८:१९ से तुलना कीजिए।) यह पति के बारे में सच हो सकता है जब वह कार्य-स्थल में किसी गंभीर समस्या का सामना कर रहा है और भावात्मक रूप से शक्‍तिहीन महसूस करता है। कुछ समय तक वैवाहिक हक्क पूरा न करने के ऐसे मामलों से निपटने का सबसे अच्छा तरीक़ा होता है कि दोनों साथी खुलकर स्थिति पर चर्चा करें और “आपस की सम्मति” से सहमत हों। (१ कुरिन्थियों ७:५) यह दोनों में से किसी भी साथी को ग़लत निष्कर्ष पर कूदने से रोकेगा। लेकिन, यदि पत्नी सोच-समझ कर अपने पति को वंचित करती है या यदि पति जानबूझकर प्रेममय रीति से वैवाहिक हक्क पूरा करने से चूकता है, तो साथी प्रलोभन में पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में, एक विवाह में समस्याएँ उठ सकती हैं।

१३. मसीही अपने सोच-विचार को शुद्ध रखने के लिए किस प्रकार कार्य कर सकते हैं?

१३ सभी मसीहियों की तरह, परमेश्‍वर के विवाहित सेवकों को अश्‍लील चित्रण से दूर रहना चाहिए, जो अशुद्ध और अस्वाभाविक अभिलाषाएँ उत्पन्‍न कर सकता है। (कुलुस्सियों ३:५) उन्हें विपरीत लिंग के सभी सदस्यों के साथ व्यवहार करते समय अपने विचारों और कार्यों पर भी ध्यान रखना है। यीशु ने चेतावनी दी: “जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।” (मत्ती ५:२८) सॆक्स के सम्बन्ध में बाइबल की सलाह को मानने से दम्पतियों को प्रलोभन में पड़ने और व्यभिचार करने से बचने में समर्थ होना चाहिए। वे विवाह में आनन्दप्रद अंतरंगता का मज़ा लेते रह सकते हैं जिसमें सॆक्स को विवाह के आरंभक, यहोवा की ओर से एक हितकर उपहार के रूप में संजोया जाता है।—नीतिवचन ५:१५-१९.

तलाक़ के लिए बाइबलीय आधार

१४. कभी-कभी कौन-सी दुःखद स्थिति आ जाती है? क्यों?

१४ ख़ुशी की बात है कि अधिकांश मसीही विवाहों में, जो भी समस्याएँ उठती हैं उनसे निपटा जा सकता है। लेकिन, कभी-कभी ऐसा नहीं होता। क्योंकि मनुष्य अपरिपूर्ण हैं और एक पापमय संसार में रहते हैं जो कि शैतान के वश में है, कुछ विवाह टूटने की हद तक पहुँच जाते हैं। (१ यूहन्‍ना ५:१९) मसीहियों को ऐसी कष्टकर स्थिति से कैसे निपटना चाहिए?

१५. (क) तलाक़ का वह एकमात्र शास्त्रीय आधार क्या है जिसके बाद पुनःविवाह किया जा सकता है? (ख) कुछ लोगों ने एक विश्‍वासघाती विवाह-साथी से तलाक़ लेने का चुनाव क्यों नहीं किया है?

१५ जैसा इस पुस्तक के अध्याय २ में उल्लेख किया गया है, व्यभिचार तलाक़ का वह एकमात्र शास्त्रीय आधार है जिसके बाद पुनःविवाह किया जा सकता है। * (मत्ती १९:९) यदि आपके पास पक्का सबूत है कि आपके विवाह-साथी ने विश्‍वासघात किया है, तो आपके सामने एक कठिन फ़ैसला है। क्या आप विवाह बनाए रखेंगे या तलाक़ ले लेंगे? कोई नियम नहीं हैं। कुछ मसीहियों ने सच्चा पश्‍चाताप करनेवाले साथी को पूरी तरह से क्षमा कर दिया है, और सुरक्षित रखा गया विवाह ठीक निकला है। कुछ लोगों ने बच्चों के कारण तलाक़ नहीं लेने का फ़ैसला किया है।

१६. (क) कौन-सी कुछ बातों ने कुछ लोगों को प्रेरित किया है कि अपने पथभ्रष्ट विवाह-साथी से तलाक़ लें? (ख) जब एक निर्दोष साथी तलाक़ लेने का या नहीं लेने का फ़ैसला करता है, तो किसी को उसके फ़ैसले की आलोचना क्यों नहीं करनी चाहिए?

१६ दूसरी ओर, पापमय कार्य के कारण शायद गर्भ ठहर गया हो या लैंगिक रूप से फैलनेवाली कोई बीमारी हो गयी हो। या संभवतः बच्चों को लैंगिक रूप से दुर्व्यवहारी जनक से बचाने की ज़रूरत है। स्पष्टतया, फ़ैसला करने से पहले काफ़ी बातों पर विचार किया जाना है। लेकिन, यदि आप अपने विवाह-साथी की निष्ठाहीनता के बारे में जानने के बाद उसके साथ फिर से लैंगिक सम्बन्ध रखते हैं, तो इस प्रकार आप दिखाते हैं कि आपने अपने साथी को क्षमा कर दिया है और विवाह को बनाए रखने की इच्छा रखते हैं। अब तलाक़ लेकर पुनःविवाह करने के शास्त्रीय आधार नहीं रहे। किसी को दस्तंदाज़ होने और आपके फ़ैसले को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, और जब आप फ़ैसला करते हैं, तब न ही किसी को आपके फ़ैसले की आलोचना करनी चाहिए। जो फ़ैसला आप करते हैं उसके परिणामों के साथ आपको जीना होगा। “हर एक व्यक्‍ति अपना ही बोझ उठाएगा।”—गलतियों ६:५.

अलगाव के आधार

१७. यदि व्यभिचार नहीं हुआ है, तो शास्त्र अलगाव या तलाक़ के साथ कौन-से प्रतिबन्ध जोड़ता है?

१७ क्या ऐसी स्थितियाँ हैं जो विवाह-साथी के व्यभिचार न करने पर भी उससे अलगाव या संभवतः तलाक़ को उचित ठहरा सकती हैं? जी हाँ, लेकिन ऐसी स्थिति में, एक मसीही पुनःविवाह के विचार से किसी दूसरे व्यक्‍ति के साथ प्रसंग रखने के लिए स्वतंत्र नहीं है। (मत्ती ५:३२) जबकि बाइबल ऐसे अलगाव की रिआयत देती है, वह निर्धारित करती है कि अलग होनेवाला व्यक्‍ति “बिन दूसरा ब्याह किए रहे; या . . . फिर मेल कर ले।” (१ कुरिन्थियों ७:११) कौन-सी कुछ नितांत स्थितियाँ हैं जिनमें अलगाव उचित प्रतीत हो सकता है?

१८, १९. कौन-सी कुछ नितांत स्थितियाँ हैं जिनके कारण एक विवाह-साथी कानूनी अलगाव या तलाक़ के औचित्य पर विचार कर सकता है, हालाँकि पुनःविवाह नहीं किया जा सकता है?

१८ पति के सरासर आलस और बुरी आदतों के कारण परिवार शायद दरिद्र हो जाए। * वह शायद परिवार की आमदनी को जुए में उड़ा दे अथवा उसे नशीले पदार्थों या शराब की लत में फूँक दे। बाइबल कहती है: “यदि कोई . . . अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्‍वास से मुकर गया है, और अविश्‍वासी से भी बुरा बन गया है।” (१ तीमुथियुस ५:८) यदि ऐसा पुरुष अपने तौर-तरीक़े बदलने से इनकार कर देता है, संभवतः अपनी बुरी लतों का ख़र्च भी उस पैसे से उठाता है जो उसकी पत्नी कमाती है, तो पत्नी कानूनी अलगाव लेने के द्वारा अपने और अपने बच्चों के हित की रक्षा करने का चुनाव कर सकती है।

१९ ऐसी कानूनी कार्यवाही पर तब भी विचार किया जा सकता है यदि एक विवाह-साथी अपने साथी के प्रति अत्यधिक हिंसक है, संभवतः उसको बार-बार इतना पीटता है कि उसका स्वास्थ्य और यहाँ तक कि जीवन भी ख़तरे में है। इसके अतिरिक्‍त, यदि एक विवाह-साथी निरन्तर दूसरे विवाह-साथी को किसी तरह से परमेश्‍वर की आज्ञाएँ तोड़ने के लिए मजबूर करने की कोशिश करता है, तो ख़तरे में पड़ा साथी भी अलगाव पर विचार कर सकता है, ख़ासकर तब यदि बात इस हद तक पहुँच गयी है कि आध्यात्मिक जीवन को ख़तरा है। जो साथी जोख़िम में है वह शायद इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन” करने का एकमात्र तरीक़ा है कानूनी अलगाव लेना।—प्रेरितों ५:२९.

२०. (क) परिवार टूटने की स्थिति में, प्रौढ़ मित्र और प्राचीन क्या दे सकते हैं, और उन्हें क्या नहीं देना चाहिए? (ख) क्या करने के लिए बहाने के रूप में विवाहित व्यक्‍तियों को अलगाव और तलाक़ के बारे में बाइबल के हवालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए?

२० विवाह-साथी द्वारा नितांत दुर्व्यवहार के सभी मामलों में, किसी को भी निर्दोष साथी पर अलग होने के लिए या साथ रहने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए। जबकि प्रौढ़ मित्र और प्राचीन सहारा और बाइबल-आधारित सलाह दे सकते हैं, वे एक पति-पत्नी के बीच में क्या होता है उसका हर विवरण नहीं जान सकते। वह केवल यहोवा देख सकता है। निःसंदेह, एक मसीही पत्नी परमेश्‍वर के विवाह प्रबन्ध का आदर नहीं कर रही होती यदि वह विवाह तोड़ने के लिए तुच्छ बहाने बनाती। लेकिन यदि एक अत्यधिक ख़तरनाक स्थिति बनी रहती है, और ऐसे में यदि वह अलग होने का चुनाव करती है तो किसी को उसकी आलोचना नहीं करनी चाहिए। एक ऐसे मसीही पति के सम्बन्ध में भी बिलकुल यही बातें कही जा सकती हैं जो अलगाव चाहता है। “हम सब के सब परमेश्‍वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे।”—रोमियों १४:१०.

कैसे एक टूटा विवाह बचाया गया

२१. कौन-सा अनुभव दिखाता है कि विवाह पर बाइबल की सलाह काम करती है?

२१ पहले उल्लिखित लूचीआ को अपने पति से अलग हुए तीन महीने हुए थे जब वह यहोवा के साक्षियों से मिली और उनके साथ बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया। “मैं बहुत हैरान हुई,” वह समझाती है, “बाइबल ने मेरी समस्या का व्यावहारिक हल प्रदान किया। मात्र एक सप्ताह अध्ययन करने के बाद, मैं तुरन्त अपने पति के साथ मेल करना चाहती थी। आज मैं यह कह सकती हूँ कि यहोवा जानता है कि संकट में पड़े विवाहों को कैसे बचाना है क्योंकि उसकी शिक्षाएँ साथियों को एक दूसरे का सम्मान करना सीखने में मदद देती हैं। जैसा कि कुछ लोग दावा करते हैं, यह सच नहीं है कि यहोवा के साक्षी परिवारों को विभाजित करते हैं। मेरे किस्से में, इसका बिलकुल विपरीत सच निकला।” लूचीआ ने अपने जीवन में बाइबल सिद्धान्तों को लागू करना सीखा।

२२. सभी विवाहित दम्पतियों को किस में विश्‍वास रखना चाहिए?

२२ लूचीआ कोई अपवाद नहीं है। विवाह को एक आशिष होना चाहिए, भार नहीं। ऐसा होने के लिए, यहोवा ने अब तक लिखी गयी वैवाहिक सलाह का सबसे उत्तम स्रोत प्रदान किया है—उसका अनमोल वचन। बाइबल “साधारण लोगों को बुद्धिमान” बना सकती है। (भजन १९:७-११) इसने अनेक विवाहों को बचाया है जो टूटने पर थे और अन्य अनेकों को सुधारा है जिनमें गंभीर समस्याएँ थीं। ऐसा हो कि सभी विवाहित दम्पति उस वैवाहिक सलाह में पूरा विश्‍वास रखें जो यहोवा परमेश्‍वर प्रदान करता है। वह सचमुच काम करती है!

^ पैरा. 1 नाम बदल दिया गया है।

^ पैरा. 6 इनमें से कुछ क्षेत्रों पर पिछले अध्यायों में चर्चा की गयी थी।

^ पैरा. 15 “व्यभिचार” अनुवादित बाइबल पद में परस्त्रीगमन, समलिंगकामुकता, पशुगमन, और गुप्तांगों के प्रयोग से सम्बन्धित दूसरे ज्ञानकृत अनुचित कार्य सम्मिलित हैं।

^ पैरा. 18 इसमें ऐसी स्थितियाँ सम्मिलित नहीं हैं जिनमें पति अपने नेक इरादों के बावजूद, अपने परिवार का भरण-पोषण करने में समर्थ नहीं है क्योंकि कारण उसके बस से बाहर हैं, जैसे कि बीमारी या रोज़गार के अवसरों की कमी।