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अध्याय चौदह

ढलती उम्र में साथ-साथ

ढलती उम्र में साथ-साथ

१, २. (क) जैसे-जैसे बुढ़ापा पास आता है कौन-से परिवर्तन होते हैं? (ख) बाइबल समय के धर्म-परायण लोगों ने बुढ़ापे में संतुष्टि कैसे पायी?

जैसे-जैसे हमारी उम्र ढलती है कई परिवर्तन होते हैं। शारीरिक कमज़ोरी हमारी ताक़त को चूस लेती है। आईना देखो तो नयी-नयी झुर्रियाँ नज़र आती हैं, धीरे-धीरे बाल सफ़ेद होते जाते हैं और झड़ने भी लगते हैं। हमारी याददाश्‍त कमज़ोर पड़ सकती है। नए सम्बन्ध विकसित होते हैं जब बच्चे विवाह करते हैं, और फिर जब नाती-पोते आते हैं। नौकरी से निवृत्ति के बाद, कुछ लोगों की जीवन-चर्या बदल जाती है।

असल में, बढ़ती उम्र कष्टदायी हो सकती है। (सभोपदेशक १२:१-८) फिर भी, बाइबल समय में परमेश्‍वर के सेवकों पर विचार कीजिए। हालाँकि वे अंततः मर गए, उन्होंने बुद्धि और समझ दोनों को प्राप्त किया, जिससे बुढ़ापे में उनको बहुत संतुष्टि मिली। (उत्पत्ति २५:८; ३५:२९; अय्यूब १२:१२; ४२:१७) वे ढलती उम्र में ख़ुश रहने में कैसे सफल हुए? निश्‍चित ही उन सिद्धान्तों के सामंजस्य में जीने के द्वारा जिन्हें हम आज बाइबल में अभिलिखित पाते हैं।—भजन ११९:१०५; २ तीमुथियुस ३:१६, १७.

३. पौलुस ने वृद्ध पुरुषों और स्त्रियों के लिए कौन-सी सलाह दी?

तीतुस को लिखी अपनी पत्री में, प्रेरित पौलुस ने उनके लिए ठोस मार्गदर्शन दिया जिनकी उम्र ढल रही है। उसने लिखा: “बूढ़े पुरुष, सचेत [“मिताचारी,” NW] और गम्भीर और संयमी हों, और उन का विश्‍वास और प्रेम और धीरज पक्का हो। इसी प्रकार बूढ़ी स्त्रियों का चाल चलन पवित्र लोगों सा हो, दोष लगानेवाली और पियक्कड़ नहीं; पर अच्छी बातें सिखानेवाली हों।” (तीतुस २:२, ३) इन शब्दों को मानना आपको ढलती उम्र की चुनौतियों का सामना करने में मदद दे सकता है।

अपने बच्चों के स्वतंत्र जीवन के अनुसार बदलाव कीजिए

४, ५. जब उनके बच्चे घर छोड़ते हैं तब अनेक माता-पिता कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं, और कुछ लोग नयी स्थिति के अनुसार बदलाव कैसे करते हैं?

बदलती भूमिकाएँ बदलाव की माँग करती हैं। यह कितना सच साबित होता है जब सयाने बच्चे विवाह करके घर छोड़ देते हैं! अनेक माता-पिताओं को तब जाकर पहली बार पता चलता है कि वे बूढ़े हो रहे हैं। हालाँकि माता-पिता ख़ुश होते हैं कि उनके बच्चे बड़े हो गए हैं, वे अकसर चिन्ता करते हैं कि बच्चों को स्वतंत्र जीवन के लिए तैयार करने में उन्होंने अपना भरसक किया है या नहीं। और उनको बच्चों का घर में न होना खल सकता है।

स्वाभाविक है कि माता-पिता अपने बच्चों के हित की चिन्ता करना नहीं छोड़ते, बच्चों के घर छोड़ने के बाद भी। “काश मुझे उनके बारे में अकसर समाचार मिलता रहे, जिससे कि मैं आश्‍वस्त हो जाऊँ कि वे ठीक-ठाक हैं—मेरी ख़ुशी इसी में है,” एक माँ ने कहा। एक पिता कहता है: “जब हमारी पुत्री ने घर छोड़ा, तब बहुत कठिनाई हुई। उससे हमारे परिवार में एक बड़ा खालीपन आ गया क्योंकि हमने हमेशा हर काम एकसाथ किया था।” इन माता-पिताओं ने अपने बच्चों के अभाव का सामना कैसे किया है? अनेक किस्सों में, आगे बढ़कर दूसरे लोगों की मदद करने के द्वारा।

६. पारिवारिक सम्बन्धों के प्रति उचित दृष्टिकोण रखने में कौन-सी बात मदद करती है?

जब बच्चे विवाह कर लेते हैं, तो माता-पिताओं की भूमिका बदल जाती है। उत्पत्ति २:२४ कहता है: “पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे।” (तिरछे टाइप हमारे।) मुखियापन और सुव्यवस्था के बारे में ईश्‍वरीय सिद्धान्तों को स्वीकार करना माता-पिताओं को उचित दृष्टिकोण रखने में मदद देगा।—१ कुरिन्थियों ११:३; १४:३३, ४०.

७. एक पिता ने कौन-सी उत्तम मनोवृत्ति विकसित की जब उसकी पुत्रियाँ विवाह करके घर छोड़ गयीं?

एक दम्पति की दो पुत्रियों के विवाह करके चले जाने के बाद, उस दम्पति ने अपने जीवन में एक रिक्‍तता अनुभव की। शुरू-शुरू में, पति को अपने दामादों से चिढ़ थी। लेकिन जब उसने मुखियापन के सिद्धान्त पर विचार किया, तब उसे एहसास हुआ कि उसकी पुत्रियों के पति अब अपने अपने घराने के लिए ज़िम्मेदार थे। इसलिए, जब उसकी पुत्रियाँ सलाह माँगतीं, तब वह उनसे पूछता कि उनके पतियों का क्या विचार है, और फिर वह निश्‍चित करता कि भरसक सहारा दे। अब उसके दामाद उसे मित्र समझते हैं और उसकी सलाह का स्वागत करते हैं।

८, ९. कुछ माता-पिताओं ने अपने सयाने बच्चों के स्वतंत्र जीवन के अनुसार कैसे बदलाव किया है?

यदि नव-विवाहित वह नहीं करते जो माता-पिता के विचार से सर्वोत्तम है, हालाँकि वे कोई अशास्त्रीय काम नहीं करते, तब क्या? “हम हमेशा उन्हें यहोवा का दृष्टिकोण देखने में मदद देते हैं,” एक दम्पति समझाते हैं जिनके बच्चे विवाहित हैं, “लेकिन यदि हम उनके किसी फ़ैसले से सहमत नहीं होते, तो हम उसे स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें अपना समर्थन और प्रोत्साहन देते हैं।”

अमुक एशियाई देशों में, कुछ माताओं को ख़ासकर यह स्वीकार करना कठिन लगता है कि उनके पुत्रों का अपना स्वतंत्र जीवन है। लेकिन, यदि वे मसीही व्यवस्था और मुखियापन का आदर करती हैं, तो वे पाती हैं कि बहुओं के साथ उनका मनमुटाव बहुत कम हो जाता है। एक मसीही स्त्री का अनुभव है कि पारिवारिक घर से उसके पुत्रों का जाना “सदा-बढ़ते आभार का स्रोत” साबित हुआ है। अपनी नयी गृहस्थी चलाने की उनकी योग्यता को देखकर वह अति प्रसन्‍न है। क्रमशः, इससे उनकी ढलती उम्र में, उसका और उसके पति का शारीरिक और मानसिक बोझ हलका हुआ है।

अपने वैवाहिक बंधन को नव-शक्‍ति देना

१०, ११. कौन-सी शास्त्रीय सलाह अधेड़ उम्र के कुछ फन्दों से बचने में लोगों की मदद करेगी?

१० अधेड़ उम्र तक पहुँचने पर लोग तरह-तरह से प्रतिक्रिया दिखाते हैं। कुछ पुरुष उम्र से छोटा दिखने के प्रयास में अपना पहनावा बदल लेते हैं। अनेक स्त्रियाँ उन परिवर्तनों के बारे में चिन्ता करती हैं जो रजोनिवृत्ति से आते हैं। दुःख की बात है कि कुछ अधेड़ उम्र के लोग विपरीत लिंग के युवा सदस्यों के साथ इश्‍कबाज़ी करने के द्वारा अपने साथियों में चिढ़ और जलन भड़काते हैं। लेकिन, धर्म-परायण वृद्ध पुरुष “संयमी” होते हैं, वे अनुचित कामनाओं को वश में कर लेते हैं। (१ पतरस ४:७) उसी प्रकार प्रौढ़ स्त्रियाँ अपने विवाह की स्थिरता को बनाए रखने के लिए मेहनत करती हैं क्योंकि वे अपने पतियों से प्रेम करती हैं और यहोवा को प्रसन्‍न करना चाहती हैं।

११ उत्प्रेरणा के अधीन, राजा लमूएल ने “भली पत्नी” की प्रशंसा का अभिलेख किया जो अपने पति से ‘अपने जीवन के सारे दिनों में बुरा नहीं, वरन भला ही व्यवहार करती है।’ एक मसीही पति इस बात का मूल्यांकन करने से नहीं चूकेगा कि उसकी पत्नी अपनी अधेड़ उम्र में आयी किसी भावात्मक उलझन से कैसे निपटने की कोशिश करती है। उसका प्रेम उसे ‘पत्नी की प्रशंसा’ करने के लिए उकसाएगा।—नीतिवचन ३१:१०, १२, २८.

१२. जैसे-जैसे साल बीतते हैं दम्पति एक दूसरे के और निकट कैसे आ सकते हैं?

१२ शिशु-पालन के व्यस्त सालों में, आप दोनों ने शायद अपने बच्चों की ज़रूरतों पर ध्यान देने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी अपनी व्यक्‍तिगत इच्छाएँ एक किनारे की हों। उनके जाने के बाद अब समय है अपने वैवाहिक जीवन पर फिर से ध्यान केंद्रित करने का। “जब मेरी पुत्रियों ने घर छोड़ा,” एक पति कहता है, “मैं ने अपनी पत्नी के साथ फिर से प्रणय-याचन शुरू कर दिया।” एक और पति कहता है: “हम एक दूसरे के स्वास्थ्य पर नज़र रखते हैं और एक दूसरे को व्यायाम करने की ज़रूरत के बारे में ध्यान दिलाते हैं।” जिससे कि उनको अकेलापन न महसूस हो, वह और उसकी पत्नी कलीसिया के अन्य सदस्यों का अतिथि-सत्कार करते हैं। जी हाँ, दूसरों में दिलचस्पी दिखाना आशिषें लाता है। इसके अलावा, यह यहोवा को प्रसन्‍न करता है।—फिलिप्पियों २:४; इब्रानियों १३:२, १६.

१३. जैसे-जैसे एक दम्पति की उम्र साथ-साथ ढलती है, तब स्पष्टता और निष्कपटता क्या भूमिका निभाती हैं?

१३ अपने और अपने विवाह-साथी के बीच संचार की खाई न बनने दीजिए। एकसाथ खुलकर बात कीजिए। (नीतिवचन १७:२७) “हम परवाह करने और विचारशील होने के द्वारा एक दूसरे के बारे में अपनी समझ गहरी करते हैं,” एक पति टिप्पणी करता है। उसकी पत्नी सहमत है, वह कहती है: “जैसे-जैसे हमारी उम्र ढली है, हमने एकसाथ चाय पीने, बातचीत करने, और एक दूसरे को सहयोग देने का आनन्द लेना सीखा है।” आपका स्पष्ट और निष्कपट होना आपके वैवाहिक बंधन को मज़बूत करने में मदद दे सकता है, उसको वह शक्‍ति दे सकता है जो विवाह के विध्वंसक, शैतान के हमलों को निष्फल करेगी।

अपने नाती-पोतों का आनन्द लीजिए

१४. एक मसीही के रूप में तीमुथियुस के पालन-पोषण में उसकी नानी ने प्रत्यक्षतः क्या भूमिका निभायी?

१४ नाती-पोते बुज़ुर्गों की “शोभा” हैं। (नीतिवचन १७:६) नाती-पोतों की संगति सचमुच आनन्दमय हो सकती है—जीवंत और स्फूर्तिदायी। बाइबल लोइस की प्रशंसा करती है, जो एक ऐसी नानी थी जिसने अपनी पुत्री यूनीके के साथ मिलकर अपना विश्‍वास अपने नन्हे नाती तीमुथियुस के साथ बाँटा। वह युवा यह जानते हुए बड़ा हुआ कि उसकी माता और उसकी नानी, दोनों ने बाइबल सत्य को मूल्यवान समझा।—२ तीमुथियुस १:५; ३:१४, १५.

१५. नाती-पोतों के सम्बन्ध में, दादा-दादी क्या मूल्यवान योग दे सकते हैं, लेकिन उन्हें किस बात से दूर रहना चाहिए?

१५ तो, यह एक ख़ास क्षेत्र है जिसमें दादा-दादी एक सबसे मूल्यवान योग दे सकते हैं। दादा-दादियों, आप अपने बच्चों के साथ यहोवा के उद्देश्‍यों के बारे में अपना ज्ञान पहले ही बाँट चुके हैं। अब आप उसी प्रकार एक और पीढ़ी के साथ भी कर सकते हैं! बहुत-से छोटे बच्चे रोमांचित हो उठते हैं जब उनके दादा-दादी उन्हें बाइबल कहानियाँ सुनाते हैं। निःसन्देह, अपने बच्चों को यत्नपूर्वक बाइबल सत्य सिखाने की पिता की ज़िम्मेदारी को आप अपने ऊपर नहीं ले लेते। (व्यवस्थाविवरण ६:७) इसके बजाय, आप उसमें सहायता करते हैं। ऐसा हो कि भजनहार की प्रार्थना आपकी भी हो: “हे परमेश्‍वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्‍न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं।”—भजन ७१:१८; ७८:५, ६.

१६. दादा-दादी अपने परिवार में तनाव पैदा होने का कारण बनने से कैसे दूर रह सकते हैं?

१६ दुःख की बात है कि कुछ दादा-दादी नन्हे-मुन्‍नों को इतना सिर पर चढ़ा लेते हैं कि दादा-दादी और उनके सयाने बच्चों के बीच तनाव पैदा हो जाता है। लेकिन, आपकी निश्‍छल कृपा संभवतः आपके नाती-पोतों के लिए यह आसान बना दे कि जब अपने माता-पिता को कोई बात बताने का उनका मन नहीं होता तब वे भरोसे के साथ आपको बताएँ। कभी-कभी बच्चे आशा करते हैं कि उनके नरम दादा-दादी उनका पक्ष लेंगे, उनके माता-पिता का नहीं। तब क्या? बुद्धि से काम लीजिए और अपने नाती-पोतों को प्रोत्साहित कीजिए कि अपने माता-पिता से खुलकर बात करें। आप समझा सकते हैं कि यह यहोवा को प्रसन्‍न करता है। (इफिसियों ६:१-३) यदि आवश्‍यक हो, तो आप प्रस्ताव रख सकते हैं कि आप पहले से उनके माता-पिता से बात करके बच्चों के लिए उन तक पहुँच का रास्ता बना देंगे। आपने सालों के दौरान जो सीखा है उसके बारे में अपने नाती-पोतों को साफ़-साफ़ बताइए। आपकी निष्कपटता और स्पष्टवादिता उनकी मदद कर सकती है।

उम्र के साथ-साथ बदलाव कीजिए

१७. बूढ़े होते मसीहियों को भजनहार के किस दृढ़-संकल्प का अनुकरण करना चाहिए?

१७ जैसे-जैसे साल गुज़रते हैं, आप पाएँगे कि आप वह सब कुछ नहीं कर पाते जो आप किया करते थे या जो आप करना चाहते हैं। बूढ़े होने की प्रक्रिया के साथ व्यक्‍ति समझौता कैसे करे? अपने मन में आप शायद ३० साल का अनुभव करें, लेकिन आईना देखने पर एक अलग सच्चाई सामने आती है। निरुत्साहित मत होइए। भजनहार ने यहोवा से निवेदन किया: “बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझ को छोड़ न दे।” भजनहार के दृढ़-संकल्प का अनुकरण करने का दृढ़-निश्‍चय कीजिए। उसने कहा: “मैं तो निरन्तर आशा लगाए रहूंगा, और तेरी स्तुति अधिक अधिक करता जाऊंगा।”—भजन ७१:९, १४.

१८. एक प्रौढ़ मसीही सेवा-निवृत्ति का लाभकारी प्रयोग कैसे कर सकता है?

१८ अनेक लोगों ने नौकरी से निवृत्ति के बाद यहोवा की अधिक स्तुति करने के लिए पहले से तैयारी की है। “मैं ने पहले से सोच लिया था कि जब हमारी पुत्री स्कूल छोड़ेगी तब मैं क्या करूँगा,” एक पिता समझाता है जो अब सेवा-निवृत्त है। “मैं ने दृढ़-संकल्प किया कि मैं पूर्ण-समय प्रचार सेवकाई करना शुरू करूँगा, और मैं ने अपना कारोबार बन्द कर दिया ताकि और पूर्ण रूप से यहोवा की सेवा करने के लिए खाली हो सकूँ। मैं ने परमेश्‍वर के निर्देशन के लिए प्रार्थना की।” यदि आपकी उम्र सेवा-निवृत्ति की हो रही है, तो हमारे महान सृष्टिकर्ता की घोषणा से सांत्वना प्राप्त कीजिए: “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूंगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूंगा।”—यशायाह ४६:४.

१९. जो बूढ़े हो रहे हैं उनके लिए क्या सलाह दी गयी है?

१९ नौकरी से निवृत्ति होने पर बदलाव करना शायद आसान न हो। प्रेरित पौलुस ने बूढ़े पुरुषों को सलाह दी कि “मिताचारी” हों। यह सामान्य नियंत्रण की माँग करता है, कि आराम का जीवन जीने की प्रवृत्ति के आगे नहीं झुकें। सेवा-निवृत्ति के बाद नित्यक्रम और आत्म-अनुशासन की ज़रूरत शायद पहले से और भी ज़्यादा हो। तो व्यस्त रहिए, ‘प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाइए, क्योंकि यह जानते हैं कि आपका परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।’ (१ कुरिन्थियों १५:५८) दूसरों की मदद करने के लिए अपनी गतिविधियाँ फैलाइए। (२ कुरिन्थियों ६:१३) अनेक मसीही एक सीमित गति से जोश के साथ सुसमाचार का प्रचार करने के द्वारा ऐसा करते हैं। जैसे-जैसे आपकी उम्र ढलती है, आपका “विश्‍वास और प्रेम और धीरज पक्का हो।”—तीतुस २:२.

अपने विवाह-साथी के अभाव का सामना करना

२०, २१. (क) वर्तमान रीति-व्यवस्था में, एक विवाहित दम्पति को अंततः कौन-सी चीज़ अलग कर देती है? (ख) हन्‍नाह शोकित विवाह-साथियों के लिए कैसे एक उत्तम उदाहरण प्रदान करती है?

२० यह दुःखद परन्तु सच्ची बात है कि वर्तमान रीति-व्यवस्था में मृत्यु अंततः विवाहित दम्पतियों को अलग कर देती है। शोकित मसीही विवाह-साथी जानते हैं कि उनके प्रियजन अब सो रहे हैं, और वे विश्‍वस्त हैं कि वे उन्हें दुबारा देखेंगे। (यूहन्‍ना ११:११, २५) लेकिन अभाव दुःखदायी तो होता ही है। जीवित साथी उससे कैसे निपट सकता है? *

२१ यह याद करना कि अमुक बाइबल पात्र ने क्या किया मदद देगा। हन्‍नाह विवाह के मात्र सात साल बाद विधवा हो गयी थी, और जब हम उसके बारे में पढ़ते हैं, तब वह ८४ साल की थी। हम निश्‍चित हो सकते हैं कि अपने पति को खोने पर उसने दुःख मनाया। उसने कैसे सामना किया? उसने रात-दिन मंदिर में यहोवा परमेश्‍वर की पवित्र सेवा की। (लूका २:३६-३८) इसमें कोई संदेह नहीं कि हन्‍नाह का प्रार्थनापूर्ण सेवा से भरा जीवन उस शोक और अकेलेपन के लिए एक बड़ा पीड़ाहारी था, जो उसने एक विधवा के रूप में महसूस किया।

२२. कुछ विधवाओं और विधुरों ने अकेलेपन का सामना कैसे किया है?

२२ “बात करने के लिए कोई साथी न होना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है,” एक ७२-वर्षीय स्त्री समझाती है जो दस साल पहले विधवा हो गयी। “मेरे पति एक अच्छे सुननेवाले थे। हम कलीसिया के और मसीही सेवकाई में अपने हिस्से के बारे में बात करते।” एक और विधवा कहती है: “हालाँकि समय घाव भर देता है, मैं ने यह कहना ज़्यादा सही पाया है कि व्यक्‍ति अपने समय के साथ क्या करता है वह घाव भरने में मदद करता है। आप दूसरों की मदद करने के लिए ज़्यादा अच्छी स्थिति में हैं।” एक ६७-वर्षीय विधुर इससे सहमत है, वह कहता है: “शोक से निपटने का एक अत्युत्तम तरीक़ा है दूसरों को सांत्वना देने में अपने आपको लगा देना।”

बुढ़ापे में परमेश्‍वर को मूल्यवान

२३, २४. बाइबल बूढ़े लोगों के लिए कौन-सी बड़ी सांत्वना देती है, ख़ासकर उनको जिनका विवाह-साथी मर गया है?

२३ जबकि मृत्यु एक प्रिय साथी को दूर कर देती है, यहोवा हमेशा साथ रहता है, हमेशा सच्चा है। “एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है,” प्राचीन समय के राजा दाऊद ने गाया, “उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं।”—भजन २७:४.

२४ “उन विधवाओं का जो सचमुच विधवा हैं आदर कर,” प्रेरित पौलुस आग्रह करता है। (१ तीमुथियुस ५:३) इस उपदेश के बाद दी गयी सलाह दिखाती है कि ऐसी योग्य विधवाओं को जिनके नज़दीकी रिश्‍तेदार नहीं थे, शायद कलीसिया की ओर से भौतिक सहायता की ज़रूरत पड़ी हो। लेकिन, “आदर कर” उपदेश के अर्थ में उनको मूल्यवान समझने का विचार सम्मिलित है। धर्म-परायण विधवाएँ और विधुर इस ज्ञान से कितनी सांत्वना पा सकते हैं कि यहोवा उनको मूल्यवान समझता है और उनको संभालेगा!—याकूब १:२७.

२५. बुज़ुर्गों के लिए अब भी कौन-सा लक्ष्य है?

२५ “बूढ़ों की शोभा उनके पक्के बाल हैं,” परमेश्‍वर का उत्प्रेरित वचन कहता है। वे “शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; [जब] वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” (नीतिवचन १६:३१; २०:२९) तो, चाहे विवाहित हों या फिर से अकेले, यहोवा की सेवा को अपने जीवन में प्रथम स्थान देना जारी रखिए। इस प्रकार आपका परमेश्‍वर के साथ अभी एक अच्छा नाम होगा और एक ऐसे संसार में सनातन जीवन की प्रत्याशा होगी जहाँ बुढ़ापे की पीड़ाएँ नहीं होंगी।—भजन ३७:३-५; यशायाह ६५:२०.

^ पैरा. 20 इस विषय की अधिक विस्तृत चर्चा के लिए, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित ब्रोशर जब आपका कोई प्रियजन मर जाता है (अंग्रेज़ी) देखिए।