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मसीहा के आने का समय बताया गया

मसीहा के आने का समय बताया गया

ग्यारहवाँ अध्याय

मसीहा के आने का समय बताया गया

1. यहोवा समय का हिसाब रखता है इसलिए हम किस बात का भरोसा रख सकते हैं?

यहोवा की तरह समय का हिसाब रखनेवाला और कोई नहीं है। समय और काल उसी के हाथों में हैं। उसने अपना काम पूरा करने का भी समय और काल ठहराया है। (प्रेरितों 1:7) और वह किसी भी समय पर जब भी कोई काम करने की ठान लेता है तो वह पूरा करके रहता है। उसका वचन पत्थर की लकीर है!

2, 3. दानिय्येल ने खासकर किस भविष्यवाणी को बहुत ध्यान से जाँचा और बाबुल पर उस वक्‍त किसका राज था?

2 दानिय्येल भविष्यवक्‍ता अच्छी तरह जानता था कि यहोवा अपने हर काम का समय ठहराता है और उसे पूरा करने की ताकत भी रखता है। इसलिए परमेश्‍वर के वादों पर उसका विश्‍वास बहुत मज़बूत था। उसने पवित्रशास्त्र का गहरा अध्ययन किया था, खासकर यरूशलेम के उजड़ने के बारे में की गयी भविष्यवाणियों का। परमेश्‍वर ने यिर्मयाह के ज़रिये भविष्यवाणी में प्रकट किया था कि पवित्र नगर यरूशलेम कब तक उजाड़ पड़ा रहेगा और दानिय्येल ने इस भविष्यवाणी को बहुत ध्यान से जाँचा। वह लिखता है: “मादी क्षयर्ष का पुत्र दारा, जो कसदियों के देश पर राजा ठहराया गया था, उसके राज्य के पहिले वर्ष में, मुझ दानिय्येल ने शास्त्र के द्वारा समझ लिया कि यरूशलेम की उजड़ी हुई दशा यहोवा के उस वचन के अनुसार, जो यिर्मयाह नबी के पास पहुंचा था, कुछ वर्षों के बीतने पर अर्थात्‌ सत्तर वर्ष के बाद पूरी हो जाएगी।”—दानिय्येल 9:1, 2; यिर्मयाह 25:11.

3 इससे पहले, दानिय्येल ने दीवार पर लिखे चार शब्दों का अर्थ बताकर बाबुल साम्राज्य के बारे में जो भविष्यवाणी की थी वह सच साबित हो चुकी थी। सा.यु.पू. 539 में एक ही झटके में बाबुल का साम्राज्य गिर गया और ‘मादियों और फारसियों को दे दिया गया।’ जी हाँ, अब दारा मादी बाबुल या ‘कसदियों के देश पर राज करने लगा था।—दानिय्येल 5:24-28, 30, 31.

दानिय्येल दीन होकर यहोवा से बिनती करता है

4. (क) अगर यहूदी चाहते थे कि परमेश्‍वर उन्हें छुटकारा दिलाए तो उनके लिए क्या करना ज़रूरी था? (ख) दानिय्येल यहोवा से क्या माँगता है और कैसे?

4 दानिय्येल को इस बात का एहसास हो गया था कि यरूशलेम के उजड़े रहने के 70 साल पूरे होनेवाले हैं। यह जानकर दानिय्येल ने क्या किया? वह खुद हमें बताता है: “तब मैं अपना मुख प्रभु परमेश्‍वर की ओर करके गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करने लगा, और उपवास कर, टाट पहिन, राख में बैठकर वरदान मांगने लगा। मैं ने अपने परमेश्‍वर यहोवा से इस प्रकार प्रार्थना की और पाप का अंगीकार किया।” (दानिय्येल 9:3, 4) अगर यहूदी चाहते थे कि परमेश्‍वर उन पर दया करे और उन्हें बँधुआई से छुटकारा दिलाए तो यह ज़रूरी था कि वे अपने हृदय को शुद्ध करें। (लैव्यव्यवस्था 26:31-46; 1 राजा 8:46-53) इसका मतलब है कि उन्हें विश्‍वास करने, दीन होने और उन पापों के लिए दिल से पश्‍चाताप करने की ज़रूरत थी जिनकी वज़ह से उनको बँधुआई में जाना पड़ा था। दानिय्येल ने अपनी पापी यहूदी जाति के लिए परमेश्‍वर से दया की भीख माँगी। कैसे? दिल से सच्चा पश्‍चाताप दिखाने के लिए उसने उपवास किया, टाट ओढ़कर शोक मनाते हुए वह परमेश्‍वर के सामने गिड़गिड़ाया।

5. किस वज़ह से दानिय्येल को इस बात का यकीन होता जा रहा था कि यहूदी आज़ाद होकर अपने वतन में जा बसेंगे?

5 यिर्मयाह की भविष्यवाणी से दानिय्येल के मन में उम्मीदें जागी थीं क्योंकि इसके मुताबिक वह घड़ी पास आ रही थी जब यहूदी अपने वतन यहूदा लौट जाते। (यिर्मयाह 25:12; 29:10) दानिय्येल को इस बात का और भी यकीन होता जा रहा था। क्योंकि परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता यशायाह ने यह भविष्यवाणी की थी कि कुस्रू नाम का एक राजा यहूदियों को बाबुल की गुलामी से आज़ाद करेगा और यरूशलेम नगर और उसके मंदिर को दोबारा बनाने में उनकी मदद करेगा। और देखिए, उस वक्‍त कुस्रू नाम का ही एक राजा फारस पर राज करने लगा था! (यशायाह 44:28–45:3) मगर दानिय्येल को यह नहीं मालूम था कि यह सब कैसे होगा। इसलिए वह लगातार यहोवा से बिनती करता रहा।

6. दानिय्येल ने प्रार्थना में क्या-क्या कबूल किया?

6 दानिय्येल ने यहोवा को उसकी दया और उसके सच्चे प्यार का वास्ता दिया। उसने दीन होकर यह कबूल किया कि यहूदियों ने बलवा करके पाप किया है, और न तो उन्होंने यहोवा की आज्ञा ही मानी और ना उसके भविष्यवक्‍ताओं के वचनों पर ही ध्यान दिया। उनके “विश्‍वासघात के कार्यों के कारण” परमेश्‍वर ने उनको सज़ा दी और उन्हें “देश देश में तितर-बितर कर” दिया। (NHT) वे इसी के लायक थे, इसलिए दानिय्येल ने प्रार्थना की: “हे यहोवा हम लोगों ने अपने राजाओं, हाकिमों और पूर्वजों समेत तेरे विरुद्ध पाप किया है, इस कारण हम को लज्जित होना पड़ता है। परन्तु, यद्यपि हम अपने परमेश्‍वर प्रभु से फिर गए, तौभी तू दयासागर और क्षमा की खानि है। हम तो अपने परमेश्‍वर यहोवा की शिक्षा सुनने पर भी उस पर नहीं चले जो उस ने अपने दास नबियों से हमको सुनाई। वरन सब इस्राएलियों ने तेरी व्यवस्था का उल्लंघन किया, और ऐसे हट गए कि तेरी नहीं सुनी। इस कारण जिस शाप की चर्चा परमेश्‍वर के दास मूसा की व्यवस्था में लिखी हुई है, वह शाप हम पर घट गया, क्योंकि हम ने उसके विरुद्ध पाप किया है।”—दानिय्येल 9:5-11; निर्गमन 19:5-8; 24:3, 7, 8.

7. यहूदियों को बँधुआई में जाने देने की यहोवा की सज़ा क्यों जायज़ थी?

7 यहोवा ने इस्राएलियों को खबरदार किया था कि अगर वे उसकी आज्ञा को तोड़ेंगे और उसकी वाचा को ठुकरा देंगे तो उसका बहुत बुरा अंजाम होगा। (लैव्यव्यवस्था 26:31-33; व्यवस्थाविवरण 28:15; 31:17) दानिय्येल कबूल करता है कि परमेश्‍वर ने उन्हें जो सज़ा दी थी वह जायज़ थी। वह कहता है: “उस ने हमारे और न्यायियों के विषय जो वचन कहे थे, उन्हें हम पर यह बड़ी विपत्ति डालकर पूरा किया है; यहां तक कि जैसी विपत्ति यरूशलेम पर पड़ी है, वैसी सारी धरती पर और कहीं नहीं पड़ी। जैसे मूसा की व्यवस्था में लिखा है, वैसे ही यह सारी विपत्ति हम पर आ पड़ी है, तौभी हम अपने परमेश्‍वर यहोवा को मनाने के लिये न तो अपने अधर्म के कामों से फिरे, और न तेरी सत्य बातों पर ध्यान दिया। इस कारण यहोवा ने सोच विचारकर हम पर विपत्ति डाली है; क्योंकि हमारा परमेश्‍वर यहोवा जितने काम करता है उन सभों में धर्मी ठहरता है; परन्तु हम ने उसकी नहीं सुनी।”—दानिय्येल 9:12-14.

8. दानिय्येल ने यहोवा से किस लिए फरियाद की?

8 दानिय्येल जानता था कि उसके लोगों ने जो किया वह सही नहीं था इसलिए वह अपने लोगों की तरफदारी करने के लिए परमेश्‍वर से बिनती नहीं कर रहा था। बल्कि वह मानता है कि उसके लोगों के पाप की वज़ह से ही उन्हें बँधुआई में जाना पड़ा, इसलिए वह कहता है: “हम ने पाप किया है और दुष्टता ही की है।” (दानिय्येल 9:15) और दानिय्येल इसलिए बिनती नहीं कर रहा था कि वह कष्टों से छुटकारा पाना चाहता था। नहीं, उसने इसलिए यह फरियाद की क्योंकि वह यहोवा की महिमा और सम्मान चाहता था। यहोवा ने यिर्मयाह की भविष्यवाणी में जो वादा किया था अगर वह उसे पूरा करता और यहूदियों के अपराध क्षमा करके उन्हें उनके वतन वापस ले जाता तो उसके बड़े और पवित्र नाम की क्या ही महिमा होती! दानिय्येल गिड़गिड़ाकर बिनती करता है: “हे प्रभु, हमारे पापों और हमारे पुरखाओं के अधर्म के कामों के कारण यरूशलेम की और तेरी प्रजा की, और हमारे आस पास के सब लोगों की ओर से नामधराई [निंदा] हो रही है; तौभी तू अपने सब धर्म के कामों के कारण अपना क्रोध और जलजलाहट अपने नगर यरूशलेम पर से उतार दे, जो तेरे पवित्र पर्वत पर बसा है।”—दानिय्येल 9:16.

9. (क) दानिय्येल ने अपनी प्रार्थना के आखिर में क्या कहा? (ख) दानिय्येल क्या सोचकर व्याकुल हो रहा था, और किस बात से पता चलता है कि उसे परमेश्‍वर के नाम के लिए गहरी श्रद्धा थी?

9 दानिय्येल का रोम-रोम यहोवा को पुकार रहा था: “हे हमारे परमेश्‍वर, अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनकर, अपने उजड़े हुए पवित्रस्थान पर अपने मुख का प्रकाश चमका; हे प्रभु, अपने नाम के निमित्त यह कर। हे मेरे परमेश्‍वर, कान लगाकर सुन, आंख खोलकर हमारी उजड़ी हुई दशा और उस नगर को भी देख जो तेरा कहलाता है; क्योंकि हम जो तेरे साम्हने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करते हैं, सो अपने धर्म के कामों पर नहीं, वरन तेरी बड़ी दया ही के कामों पर भरोसा रखकर करते हैं। हे प्रभु, सुन ले; हे प्रभु, पाप क्षमा कर; हे प्रभु, ध्यान देकर जो करना है उसे कर, विलम्ब न कर; हे मेरे परमेश्‍वर, तेरा नगर और तेरी प्रजा तेरी ही कहलाती है; इसलिये अपने नाम के निमित्त ऐसा ही कर।” (दानिय्येल 9:17-19) अगर परमेश्‍वर अपने लोगों को माफ नहीं करता और उन्हें बँधुआई में ही रहने देता, और अपने पवित्र नगर यरूशलेम को हमेशा के लिए उजाड़ पड़ा रहने देता तो दूसरी जातियाँ कैसे मान लेतीं कि वही सारे जहान का महाराजा और मालिक है? क्या वे जातियाँ यह न कहतीं कि बाबुल के देवताओं के आगे यहोवा की एक ना चली? हाँ, इससे यहोवा का नाम बदनाम होता और यही सोच-सोचकर दानिय्येल बहुत व्याकुल हो रहा था। दानिय्येल की किताब में यहोवा का नाम कुल 19 बार आता है जिसमें से 18 बार यह नाम इसी प्रार्थना में आता है, इससे पता चलता है कि दानिय्येल को यहोवा के नाम के लिए कितनी श्रद्धा थी!

जिब्राएल वेग से उड़ता हुआ आता है

10. (क) दानिय्येल के पास किसे भेजा गया और क्यों? (ख) दानिय्येल, जिब्राएल को “वह पुरुष” क्यों कहता है?

10 जब दानिय्येल प्रार्थना कर ही रहा था तब जिब्राएल स्वर्गदूत उसके सामने प्रकट हुआ। उसने कहा: “हे दानिय्येल, मैं तुझे बुद्धि और प्रवीणता देने को अभी निकल आया हूं। जब तू गिड़गिड़ाकर बिनती करने लगा, तब ही इसकी आज्ञा निकली, इसलिये मैं तुझे बताने आया हूं, क्योंकि तू अति प्रिय ठहरा है; इसलिये उस विषय को समझ ले और दर्शन की बात का अर्थ बूझ ले।” लेकिन दानिय्येल, जिब्राएल स्वर्गदूत के बारे में बताते वक्‍त उसे “वह पुरुष” कहता है, ऐसा क्यों? (दानिय्येल 9:20-23) याद कीजिए कि जब इससे पहले दानिय्येल बकरे और मेढ़े के दर्शन का भेद जानना चाहता था तब “पुरुष का रूप धरे हुए कोई” उसके सामने प्रकट हुआ था। वह पुरुष स्वर्गदूत जिब्राएल ही था जिसे दानिय्येल को उस दर्शन की समझ देने और उसका अर्थ बताने के लिए भेजा गया था। (दानिय्येल 8:15-17) इसी तरह अब भी जब दानिय्येल ने प्रार्थना की तो यही स्वर्गदूत जिब्राएल एक इंसान के रूप में उसके पास आया और उससे ठीक वैसे ही बात की जैसे दो आदमी आपस में करते हैं।

11, 12. (क) यहोवा का मंदिर या वेदी न होने पर भी, बाबुल में रहनेवाले भक्‍त यहूदी किस तरह मूसा की व्यवस्था में बताए गए बलिदानों के लिए आदर दिखाते थे? (ख) दानिय्येल को “अति प्रिय” पुरुष क्यों कहा गया?

11 जिब्राएल “सांझ के अन्‍नबलि के समय” वहाँ आया था। यरूशलेम का मंदिर और उसमें यहोवा की वेदी को नष्ट कर दिया था। यहूदियों को बँधुआ बनाकर बाबुल ले जाया गया था और झूठे धर्म को माननेवाले बाबुल में, सच्चे परमेश्‍वर यहोवा को बलिदान नहीं चढ़ाए जाते थे। लेकिन हाँ, बाबुल में रहनेवाले परमेश्‍वर के सच्चे यहूदी भक्‍त एक काम ज़रूर करते थे। मूसा की व्यवस्था में ठहराए गए बलिदान चढ़ाने के समय पर वे यहोवा से प्रार्थना करके उसका धन्यवाद ज़रूर करते थे। दानिय्येल भी यहोवा का ऐसा ही सच्चा भक्‍त था इसलिए उसे “अति प्रिय” पुरुष कहा गया है। यहोवा जो ‘प्रार्थनाओं का सुननेवाला’ है वह दानिय्येल की भक्‍ति से बहुत खुश था इसलिए उसने दानिय्येल की विश्‍वास से भरी प्रार्थना का जवाब देने के लिए फौरन जिब्राएल को भेजा।—भजन 65:2.

12 जब यहोवा से प्रार्थना करने की वज़ह से दानिय्येल की जान भी जा सकती थी, तब भी उसने दिन में तीन बार प्रार्थना करना न छोड़ा। (दानिय्येल 6:10, 11) इसलिए तो वह यहोवा को इतना प्यारा था! प्रार्थना के साथ-साथ वह परमेश्‍वर के वचन पर मनन भी करता था और इसके ज़रिए वह अच्छी तरह जान पाया कि यहोवा की इच्छा क्या है। दानिय्येल नित्य प्रार्थना में लगा रहा। वह जानता था कि परमेश्‍वर कैसी प्रार्थनाओं को सुनकर उनका जवाब देता है और वह उसी तरह आदर के साथ प्रार्थना करता रहा। उसने हमेशा कबूल किया कि परमेश्‍वर धर्मी है और उसके सारे काम खरे हैं। (दानिय्येल 9:7, 14, 16) हालाँकि दानिय्येल के दुश्‍मन चाहकर भी उसमें कोई दोष नहीं ढूँढ़ सके थे, लेकिन उसे खुद इस बात का अच्छी तरह एहसास था कि बाकी इंसानों की तरह वह भी परमेश्‍वर के सामने पापी ही है और उसने अपने पापों को स्वीकार भी किया।—दानिय्येल 6:4; रोमियों 3:23.

पापों का अन्त करने के लिए “सत्तर सप्ताह”

13, 14. (क) जिब्राएल, दानिय्येल को कौन-सी अहम जानकारी देता है? (ख) “सत्तर सप्ताह” कितने लंबे हैं और यह हम कैसे जानते हैं?

13 दानिय्येल की प्रार्थनाओं का उसे क्या ही बढ़िया जवाब मिलता है! यहोवा दानिय्येल को ना सिर्फ इस बात का यकीन दिलाता है कि यहूदी अपने देश में जाकर फिर से बस जाएँगे, बल्कि वह उस पर ऐसा भेद प्रकट करता है जिसकी अहमियत इस सबसे भी कहीं ज़्यादा बढ़कर थी। यह भेद मसीहा के आने के बारे में था। (उत्पत्ति 22:17, 18; यशायाह 9:6, 7) जिब्राएल दानिय्येल को बताता है: “तेरे लोगों और तेरे पवित्र नगर के लिये सत्तर सप्ताह ठहराए गए हैं कि उनके अन्त तक अपराध का होना बन्द हो, और पापों का अन्त और अधर्म का प्रायश्‍चित्त किया जाए, और युगयुग की धार्मिकता प्रगट होए; और दर्शन की बात पर और भविष्यद्वाणी पर छाप दी जाए, और परमपवित्र का अभिषेक किया जाए। सो यह जान और समझ ले, कि यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने से लेकर अभिषिक्‍त प्रधान के समय तक सात सप्ताह बीतेंगे। फिर बासठ सप्ताहों के बीतने पर चौक और खाई समेत वह नगर कष्ट के समय में फिर बसाया जाएगा।”—दानिय्येल 9:24, 25.

14 दानिय्येल के लिए यह कितनी बड़ी खुशखबरी थी! यरूशलेम नगर दोबारा बसाया जाता और इसके नए मंदिर में शुद्ध उपासना फिर से शुरू की जाती, इतना ही नहीं बल्कि ठहराए हुए ठीक समय पर “अभिषिक्‍त प्रधान” भी प्रकट होने वाला था। यह सब “सत्तर सप्ताह” के अंदर पूरा होनेवाला था। जिब्राएल सत्तर “सप्ताह” कहता है, वह दिनों का ज़िक्र नहीं करता। इसलिए ये सत्तर सप्ताह सात दिनों के सप्ताह नहीं थे, जो सिर्फ 490 दिन या करीब एक साल चार महीने तक का समय था। क्योंकि भविष्यवाणी के मुताबिक, “चौक और खाई” के साथ यरूशलेम नगर के फिर से बसाए जाने के लिए इससे कहीं ज़्यादा वक्‍त लगा था। इन सप्ताहों का एक दिन एक साल के बराबर है। आज के कई बाइबल अनुवादों से पता चलता है कि इस भविष्यवाणी का हरेक सप्ताह सात साल के बराबर है। उदाहरण के लिए, यहूदी प्रकाशन संस्था द्वारा प्रकाशित तनख़—द होली स्क्रिप्चर्स में दानिय्येल 9:24 के फुटनोट में इसे “सत्तर सप्ताहों के साल” अनुवाद किया गया है। एन अमैरिकन ट्रान्सलेशन में लिखा है: “तेरे लोगों के लिए और तेरे पवित्र नगर के लिए सत्तर सप्ताहों के साल ठहराए गए हैं।” मॉफेट और रॉदरहैम के अनुवादों में भी ऐसा ही लिखा है।

15. “सत्तर सप्ताह” किन तीन हिस्सों में बँटे हुए हैं और इनकी शुरूआत कब होती?

15 जिब्राएल ने जो कहा उसके मुताबिक, “सत्तर सप्ताह” तीन हिस्सों में बँटे हुए थे: (1) “सात सप्ताह,” (2) “बासठ सप्ताह” और (3) “एक सप्ताह।” ये हुए 49 साल, जमा 434 साल, जमा 7 साल यानी कुल मिलाकर 490 साल। गौर करने लायक बात है कि द रिवाइज़्ड इंग्लिश बाइबल कहती है: “तेरे लोगों के लिए और तेरे पवित्र नगर के लिए सात के सत्तर गुणा साल ठहराए गए हैं।” बँधुआई में जाने और बाबुल में सत्तर साल तक कष्ट उठाने के बाद, आनेवाले 490 साल तक यानी 7 गुणा 70 साल तक यहूदियों पर परमेश्‍वर की खास आशीष रहती। इन सालों की शुरूआत “यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने से लेकर” होती। लेकिन यह आज्ञा कब निकलती?

“सत्तर सप्ताह” शुरू होते हैं

16. जैसा कुस्रू के फरमान से ज़ाहिर है, उसने यहूदियों को किस खास मकसद के लिए अपने वतन लौटने दिया?

16 इन ‘सत्तर सप्ताहों’ की शुरूआत कब हुई, इस सिलसिले में तीन घटनाएँ गौर करने लायक हैं। पहली घटना सा.यु.पू. 537 में हुई जब कुस्रू ने यह फरमान जारी किया कि यहूदी अपने वतन लौटकर वहाँ बस जाएँ। इसमें लिखा था: “फारस का राजा कुस्रू यों कहता है: कि स्वर्ग के परमेश्‍वर यहोवा ने पृथ्वी भर का राज्य मुझे दिया है, और उस ने मुझे आज्ञा दी, कि यहूदा के यरूशलेम में मेरा एक भवन बनवा। उसकी समस्त प्रजा के लोगों में से तुम्हारे मध्य जो कोई हो, उसका परमेश्‍वर उसके साथ रहे, और वह यहूदा के यरूशलेम को जाकर इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा का भवन बनाए—जो यरूशलेम में है वही परमेश्‍वर है। और जो कोई किसी स्थान में रह गया हो, जहां वह रहता हो, उस स्थान के मनुष्य चान्दी, सोना, धन और पशु देकर उसकी सहायता करें और इस से अधिक परमेश्‍वर के यरूशलेम के भवन के लिये अपनी अपनी इच्छा से भी भेंट चढ़ाएं।” (एज्रा 1:2-4) ज़ाहिर है कि इस फरमान का खास मकसद था, मंदिर को यानी ‘यहोवा के भवन’ को उसकी पहली जगह पर दोबारा बनाना।

17. जो चिट्ठी एज्रा को मिली थी उसमें उसके यरूशलेम जाने की क्या वज़ह बतायी गयी थी?

17 दूसरी घटना फारस के राजा अर्तक्षत्र (यानी ज़रक्सीज़ I के बेटे अर्तक्षत्र लोन्गिमेनस) के राज के सातवें साल में घटी। उस समय पर, शास्त्री एज्रा ने बाबुल से यरूशलेम तक का सफर किया जिसमें उसे चार महीने लगे। उसके पास राजा की खास चिट्ठी भी थी लेकिन उसे यरूशलेम को फिर से बनाने का अधिकार नहीं दिया गया था। इसके बजाय एज्रा को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी कि वह ‘यहोवा के भवन को संवारे।’ इसलिए उस चिट्ठी में सोने और चाँदी, पवित्र पात्रों, और गेहूँ, दाखरस, तेल और नमक के दान देने का ज़िक्र था जिसे मंदिर में यहोवा की उपासना के लिए इस्तेमाल किया जाना था। इसमें यह भी कहा गया था कि मंदिर में सेवा करनेवालों से कर न लिया जाए।—एज्रा 7:6-27.

18. क्या खबर सुनकर नहेमायाह उदास हो गया था, और राजा अर्तक्षत्र को यह कैसे मालूम पड़ा?

18 तीसरी घटना इसके 13 साल बाद, यानी फारस के राजा अर्तक्षत्र (लोन्गिमेनस) के राज के 20वें साल में घटी। उस वक्‍त नहेमायाह “शूशन नाम राजगढ़” में राजा को दाखमधु पिलानेवाले के पद पर था। इससे पहले जो यहूदी बाबुल से वापस लौटे थे उन्होंने कुछ हद तक यरूशलेम नगर को दोबारा बनाया था। लेकिन अभी-भी उस नगर का हाल बुरा था। नहेमायाह को यह खबर मिली कि “यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई, और उसके फाटक जले हुए हैं।” यह सुनकर वह बहुत दुखी हुआ और उसका दिल बैठ गया। जब राजा ने देखा कि नहेमायाह उदास है तो उसने उससे पूछा, तू क्यों उदास है। नहेमायाह ने जवाब दिया: “राजा सदा जीवित रहे! जब वह नगर जिस में मेरे पुरखाओं की कबरें हैं, उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं, तो मेरा मुंह क्यों न उतरे?”—नहेमायाह 1:1-3; 2:1-3.

19. (क) जब अर्तक्षत्र ने नहेमायाह से सवाल पूछा तो उसने उत्तर देने से पहले क्या किया? (ख) नहेमायाह ने राजा से क्या माँगा और उसने यहोवा का एहसान कैसे माना?

19 नहेमायाह के बारे में हम आगे पढ़ते हैं: “फिर राजा ने मुझसे कहा, इसके लिये तू मुझसे क्या करवाना चाहता है? इससे पहले कि मैं उत्तर देता, मैंने स्वर्ग के परमेश्‍वर से विनती की। फिर मैंने राजा को उत्तर देते हुए कहा, ‘यदि यह राजा को भाये और यदि मैं राजा के प्रति सच्चा रहा हूँ तो यहूदा के नगर यरूशलेम में मुझे भेज दिया जाये जहाँ मेरे पूर्वज दफनाये हुए हैं। मैं वहाँ जाकर उस नगर को फिर से बसाना चाहता हूँ।’” यह बिनती अर्तक्षत्र को अच्छी लगी, इतना ही नहीं उसने वह बात भी मान ली जो नहेमायाह ने आगे कही: “यदि राजा को मेरे लिए कुछ करने में प्रसन्‍नता हो तो मुझे यह माँगने की अनुमति दी जाये। कृपा करके परात नदी के पश्‍चिमी क्षेत्र के राज्यपालों को दिखाने के लिये कुछ पत्र दिये जायें। ये पत्र मुझे इसलिए चाहिए ताकि वे राज्यपाल यहूदा जाते हुए मुझे अपने-अपने इलाकों से सुरक्षापूर्वक निकलने दें। मुझे द्वारों, दीवारों, मन्दिरों के चारों ओर के प्राचीरों और अपने घर के लिये लकड़ी की भी आवश्‍यकता है। इसलिए मुझे आपसे आसाप के नाम भी एक पत्र चाहिए, आसाप आपके जंगलात का हाकिम है।” नहेमायाह ने यहोवा का एहसान माना क्योंकि वह जानता था कि इसमें यहोवा का ही हाथ है, उसने कहा: “राजा ने मुझे पत्र और वह हर वस्तु दे दी जो मैंने मांगी थी। क्योंकि परमेश्‍वर मेरे प्रति दयालु था।”—नहेमायाह 2:4-8, ईज़ी-टू-रीड वर्शन.

20. (क) ‘यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा का निकलना’ असल में कब शुरू हुआ? (ख) “सत्तर सप्ताह” कब शुरू हुए, और कब खत्म होने थे? (ग) “सत्तर सप्ताह” की शुरूआत और खत्म होने की सही तारीख के सबूत क्या हैं?

20 राजा अर्तक्षत्र ने अपने राज के 20वें साल की शुरूआत में, यानी निसान महीने में नहेमायाह को इसकी इजाज़त दे दी। मगर, ‘यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा का निकलना’ असल में इसके कई महीने बाद हुआ। यह आज्ञा तब निकली जब नहेमायाह यरूशलेम पहुँच गया और इस नगर को बनाने का काम शुरू कर दिया। नहेमायाह यरूशलेम कब पहुँचा? याद कीजिए, एज्रा को पूर्व दिशा में बाबुल से यरूशलेम पहुँचने के लिए चार महीने लगे थे, और शूशन राजगढ़ जहाँ नहेमायाह था वह तो बाबुल से भी 322 किलोमीटर दूर पूर्व में था। इसलिए नहेमायाह को यरूशलेम पहुँचने में और ज़्यादा वक्‍त लगा होगा। इसका मतलब है कि नहेमायाह राजा अर्तक्षत्र के राज के 20वें साल यानी सा.यु.पू. 455 के आखिरी महीनों में यरूशलेम पहुँचा होगा। तब से भविष्यवाणी में बताए गए “सत्तर सप्ताह” या 490 साल शुरू हुए। वे सा.यु. 36 के आखिरी महीनों में खत्म होने थे।—पेज 197 पर “अर्तक्षत्र का राज कब शुरू हुआ?” देखिए।

“अभिषिक्‍त प्रधान” प्रकट होता है

21. (क) पहले “सात सप्ताह” में क्या बनकर पूरा होना था और किन मुश्‍किलों के बावजूद? (ख) मसीहा को किस साल में प्रकट होना था, और उस साल क्या हुआ इस बारे में लूका हमें क्या बताता है?

21 जब तक यरूशलेम पूरी तरह बनाया गया तब तक कितने साल बीत चुके थे? जैसा भविष्यवाणी में कहा गया था, यह नगर “कष्ट के समय में” बसाया जाता। क्योंकि एक तो खुद यहूदियों में आपस में रगड़े-झगड़े थे, ऊपर से सामरी और बाकी जातियों के लोग उनके लिए मुश्‍किलें खड़ी कर रहे थे। फिर भी, करीब सा.यु.पू. 406 तक यानी “सात सप्ताह” या 49 सालों में यरूशलेम नगर को दोबारा बनाने का काम उस हद तक पूरा हो चुका था जितना ज़रूरी था। (दानिय्येल 9:25) भविष्यवाणी के मुताबिक सात सप्ताह या 49 साल बीत चुके थे और इसके बाद बासठ सप्ताह या 434 साल और बीतनेवाले थे जिनके बाद मसीहा प्रकट होता। “सात सप्ताह” यानी 49 साल जमा बासठ सप्ताह यानी 434 साल कुल मिलाकर 483 साल हुए। तो फिर, “सत्तर सप्ताह” शुरू होने के 483 साल बाद, वायदा किया हुआ मसीहा प्रकट होनेवाला था। तो, सा.यु.पू. 455 में ‘यरूशलेम के फिर से बसाने की आज्ञा के निकलने’ से 483 साल गिनने पर हम सा.यु. 29 तक पहुँचते हैं। इस साल में क्या हुआ था? सुसमाचार लेखक लूका हमें बताता है: “तिबिरियुस कैसर के राज्य के पंद्रहवें वर्ष में जब पुन्तियुस पीलातुस यहूदिया का हाकिम था, और गलील में हेरोदेस नाम चौथाई . . . के राजा थे। . . . उस समय परमेश्‍वर का वचन जंगल में जकरयाह के पुत्र यूहन्‍ना के पास पहुंचा। और वह यरदन के आस पास के सारे देश में आकर, पापों की क्षमा के लिये मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार करने लगा।” इस वक्‍त लोग मसीहा के आने की “आस लगाए हुए थे।”—लूका 3:1-3, 15.

22. कब और कैसे यीशु, भविष्यवाणी में बताया गया मसीहा बना?

22 यूहन्‍ना वह मसीहा नहीं था जिसके आने की भविष्यवाणी की गई थी। लेकिन यूहन्‍ना ने सा.यु. 29 में यीशु नासरी के बपतिस्मे पर जो देखा, उसके बारे में उसने कहा: “मैं ने आत्मा को कबूतर की नाईं आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया। और मैं तो उसे पहिचानता नहीं था, परन्तु जिस ने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझ से कहा, कि जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है। और मैं ने देखा, और गवाही दी है, कि यही परमेश्‍वर का पुत्र है।” (यूहन्‍ना 1:32-34) इस तरह, जब यीशु ने बपतिस्मा लिया तब वह अभिषिक्‍त यानी मसीहा या ख्रिस्त बन गया। इसके कुछ समय बाद, बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना के चेले अन्द्रियास ने अभिषिक्‍त यीशु को देखा और जाकर अपने भाई शमौन पतरस को बताया: “हम को ख्रिस्तस अर्थात्‌ मसीह मिल गया।” (यूहन्‍ना 1:41) इस तरह वह “अभिषिक्‍त प्रधान” बिलकुल ठीक समय पर यानी 69 सप्ताहों के खत्म होने पर प्रकट हुआ!

आखिरी सप्ताह की घटनाएँ

23. “अभिषिक्‍त प्रधान” को क्यों मरना था और यह घड़ी कब आती?

23 सत्तरवें सप्ताह में क्या-क्या होना था? जिब्राएल ने बताया था कि “सत्तर सप्ताह” ठहराए गए हैं कि “अपराध का होना बन्द हो, और पापों का अन्त और अधर्म का प्रायश्‍चित्त किया जाए, और युगयुग की धार्मिकता प्रगट होए; और दर्शन की बात पर और भविष्यद्वाणी पर छाप दी जाए, और परमपवित्र का अभिषेक किया जाए।” लेकिन यह सब पूरा करने के लिए “अभिषिक्‍त प्रधान” को मरना था। कब? जिब्राएल बताता है: “उन बासठ सप्ताहों के बीतने पर अभिषिक्‍त पुरुष काटा जाएगा: और उसके हाथ कुछ न लगेगा; . . . और वह प्रधान एक सप्ताह के लिये बहुतों के संग दृढ़ वाचा बान्धेगा, परन्तु आधे ही सप्ताह के बीतने पर वह मेलबलि और अन्‍नबलि को बन्द करेगा।” (दानिय्येल 9:26क, 27क) “आधे ही सप्ताह के बीतने पर,” यानी सत्तरवें सप्ताह के बीच में ही वह घड़ी आती जो सबसे अहम थी।

24, 25. (क) जैसे भविष्यवाणी की गयी थी मसीह कब मार डाला गया और उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान से किसका अंत हो गया? (ख) यीशु की मृत्यु से अब क्या-क्या मुमकिन था?

24 यीशु मसीह ने अपना प्रचार काम सा.यु. 29 के आखिरी महीनों में शुरू किया और उसने साढ़े तीन साल तक यह काम किया। और जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, सा.यु. 33 की शुरूआत में मसीह को ‘काट डाला गया,’ जब उसने इंसानों की छुड़ौती देने के लिए यातना स्तंभ पर अपनी जान दी। (यशायाह 53:8; मत्ती 20:28) फिर यीशु पुनरुत्थान पाकर स्वर्ग गया तब उसने सिद्ध मानव के रूप में जीने का अपना हक परमेश्‍वर को देकर पापी मानवजाति को मोल लिया। तब से मूसा की व्यवस्था के मुताबिक जानवरों की बलि चढ़ाने और भेंट चढ़ाने की ज़रूरत नहीं रही। हालाँकि सा.यु. 70 तक, यहूदी याजक यरूशलेम के मंदिर में बलिदान चढ़ाते रहे लेकिन ऐसे बलिदानों की अब परमेश्‍वर की नज़रों में कोई कीमत नहीं थी। एक सर्वोत्तम बलिदान चढ़ाया जा चुका था जिसे बार-बार चढ़ाए जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इसलिए प्रेरित पौलुस ने लिखा: ‘मसीह ने तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ा दिया। क्योंकि उस ने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किए जाते हैं, सर्वदा के लिये सिद्ध कर दिया है।’—इब्रानियों 10:12, 14.

25 यह सच है कि यीशु के काट डाले जाने और पुनरुत्थान पाकर स्वर्ग जाने के बाद भी इंसान पाप और मौत के शिकंजे से आज़ाद नहीं हुआ। मगर इससे भविष्यवाणी की पूर्ति हुई कि ‘अपराध का होना बन्द हुआ, और पापों का अन्त और अधर्म का प्रायश्‍चित्त किया गया, और धार्मिकता प्रगट हुई।’ यीशु के बलिदान के साथ परमेश्‍वर ने व्यवस्था को हटा दिया था, जो यहूदियों को दोषी ठहराती थी और लगातार पापी होने का एहसास कराती थी। (रोमियों 5:12, 19, 20; गलतियों 3:13, 19; इफिसियों 2:15; कुलुस्सियों 2:13, 14) लेकिन अब मसीहा के प्रायश्‍चित बलिदान के आधार पर जो लोग अपने पापों से पश्‍चाताप करते, उनके पाप माफ किए जा सकते थे और उनकी सज़ा रद्द की जा सकती थी। इस बलिदान पर विश्‍वास करनेवाले अब परमेश्‍वर से मेल-मिलाप कर सकते थे। वे ‘मसीह यीशु में परमेश्‍वर से अनन्त जीवन’ का इनाम पाने की उम्मीद रख सकते थे।—रोमियों 3:21-26; 6:22, 23; 1 यूहन्‍ना 2:1, 2.

26. (क) हालाँकि व्यवस्था वाचा हटा दी गयी थी, फिर भी किस वाचा को ‘एक सप्ताह तक दृढ़ता से बाँधे रखा गया’? (ख) 70वें सप्ताह के खत्म होने पर क्या हुआ?

26 यहोवा ने तो सा.यु. 33 में मसीह की मौत के आधार पर व्यवस्था वाचा को हटा दिया था। तो फिर, यह कैसे कहा जा सकता है कि मसीहा ‘एक सप्ताह के लिये बहुतों के संग दृढ़ वाचा बान्धे रहेगा’? वह व्यवस्था की वाचा नहीं बल्कि इब्राहीम को दी गई वाचा को दृढ़ता से बाँधे रहा। यहोवा ने इब्राहीम के साथ जो वाचा बाँधी थी उसकी आशीषें पाने का मौका परमेश्‍वर ने इब्राहीम के यहूदी वंशजों को 70वें सप्ताह के आखिर तक दिया। लेकिन इसके बाद परमेश्‍वर ने अन्यजातियों को भी इन आशीषों में शामिल होने का मौका दिया। सा.यु. 36 में ‘सत्तर सप्ताहों’ के साल खत्म होने पर, प्रेरित पतरस ने अन्यजातियों के कई लोगों को और इतालिया के एक भक्‍त कुरनेलियुस और उसके परिवार को सुसमाचार सुनाया। और उस समय से अन्यजातियों के बीच में सुसमाचार सुनाया जाना शुरू हो गया।—प्रेरितों 3:25, 26; 10:1-48; गलतियों 3:8, 9, 14.

27. किस “परमपवित्र” का अभिषेक किया गया और कैसे?

27 भविष्यवाणी में कहा था कि इसी 70वें सप्ताह में “परमपवित्र का अभिषेक” भी किया जाएगा। लेकिन यहाँ यरूशलेम के मंदिर में परमपवित्र स्थान के अभिषेक की बात नहीं हो रही। यहाँ “परमपवित्र” का मतलब है स्वर्ग में परमेश्‍वर का निवासस्थान। वहीं यीशु ने अपने स्वर्गीय पिता को अपने इंसानी जीवन का बलिदान पेश किया। सा.यु. 29 में यीशु के बपतिस्मे से स्वर्ग के इसी परमपवित्र का अभिषेक हुआ या एक आत्मिक मंदिर की शुरूआत हुई। और इस आत्मिक मंदिर में स्वर्ग में यहोवा का वासस्थान वह असली परमपवित्र है जिसके नमूने के मुताबिक पृथ्वी पर मूसा के समय में निवासस्थान में और बाद में मंदिर में परमपवित्र भाग बनाया गया था।—इब्रानियों 9:11, 12.

एक भविष्यवाणी जिसकी परमेश्‍वर ने गारंटी दी

28. ‘दर्शन की बात पर और भविष्यद्वाणी पर छाप देने’ या उसे “मुहरबन्द” करने का क्या मतलब है?

28 मसीहा के बारे में जिब्राएल ने जो भविष्यवाणी की थी, उसमें ‘दर्शन की बात पर और भविष्यद्वाणी पर छाप देने’ या उसे “मुहरबन्द” (NHT) करने की बात भी कही गयी थी। इसका मतलब यह था कि मसीहा के बलिदान, पुनरुत्थान, स्वर्ग में परमेश्‍वर के सामने हाज़िर होने और 70वें सप्ताह में होनेवाली सभी घटनाओं को पूरा करने के पीछे परमेश्‍वर का हाथ होता यानी उन पर उसकी मुहर होती। इसलिए यह भविष्यवाणी ज़रूर पूरी होती और इस पर भरोसा किया जा सकता था। यह दर्शन मुहरबन्द किया गया था जिसका मतलब है कि यह दर्शन सिर्फ मसीहा के लिए था। इस दर्शन की पूर्ति सिर्फ उसी में और उसके द्वारा किए जा रहे परमेश्‍वर के कामों से होती। दर्शन की बातें ठहराए गए मसीहा पर ही पूरी उतरतीं इसलिए सिर्फ उसी में इस दर्शन की पूर्ति समझ में आती। कोई और इस भविष्यवाणी की मुहर नहीं खोल सकता था।

29. दोबारा बसाए गए यरूशलेम का क्या अंजाम होनेवाला था और क्यों?

29 इससे पहले जिब्राएल ने भविष्यवाणी की थी कि यरूशलेम फिर से बसेगा। लेकिन अब वह बताता है कि यरूशलेम नगर और उसके मंदिर को दोबारा नाश किया जाएगा। वह कहता है: “आनेवाले प्रधान की प्रजा नगर और पवित्रस्थान को नाश कर डालेगी। उसका अन्त बाढ़ से होगा, और अन्त तक भी लड़ाई होती रहेगी, उसका उजड़ जाना निश्‍चित है। . . . और घृणित वस्तुओं के शिखर [पंख, फुटनोट] पर वह उजाड़ने वाला तब तक दिखाई देगा जब तक ठहराया हुआ विनाश उस पर पूरा पूरा न पड़ जाए।” (दानिय्येल 9:26ख, 27ख, NHT) यह सब “सत्तर सप्ताह” के खत्म होने के बाद होना था लेकिन आखिरी या सत्तरवें “सप्ताह” में जो हुआ यह विनाश उसी का अंजाम था। क्योंकि इस सत्तरवें सप्ताह में ही यहूदियों ने मसीहा को ठुकरा दिया और उसे मरवा डाला।—मत्ती 23:37, 38.

30. इतिहास के सबूतों के मुताबिक, वक्‍त के सबसे बड़े पाबंद का हुक्म कैसे पूरा हुआ?

30 इतिहास इस बात का सबूत देता है कि सा.यु. 66 में सीरिया के रोमी गवर्नर सेस्टियस गैलस ने अपनी फौजों के साथ आकर यरूशलेम को घेर लिया। यहूदियों ने इन फौजों से लड़ाई की लेकिन रोमी फौजें यरूशलेम में घुस गईं और वे उत्तर में मंदिर की दीवार की नींव खोदकर उसे गिराने की कोशिश करने लगे। रोमी सैनिक अपने साथ ध्वज या झंडे लाए थे जिनकी वे पूजा करते थे। इसलिए इन झंडों के साथ वहाँ मौजूद होने से वे ऐसी “घृणित वस्तु” ठहरे जिसकी वज़ह से वह नगर पूरी तरह उजड़ सकता था। (मत्ती 24:15, 16) फिर सा.यु. 70 में जनरल टाइटस रोमी फौजों को लेकर “बाढ़” की तरह आया और उसने यरूशलेम नगर और उसके मंदिर को पूरी तरह तबाह कर दिया। कोई भी उन्हें रोक नहीं सका क्योंकि परमेश्‍वर ने इसका हुक्म दिया था या इसे “ठहराया” था। वक्‍त के सबसे बड़े पाबंद यहोवा ने एक बार फिर अपना वचन पूरा किया!

आपने क्या समझा?

• यरूशलेम के उजाड़ रहने के 70 साल जब पूरे होनेवाले थे, तब दानिय्येल यहोवा से क्या बिनती करता है?

• “सत्तर सप्ताह” कितने लंबे थे, और ये कब शुरू हुए और कब खत्म हुए?

• “अभिषिक्‍त प्रधान” कब प्रकट हुआ, और किस अहम घड़ी में उसे ‘काट डाला’ गया?

• किस वाचा को ‘एक सप्ताह तक बहुतों के साथ दृढ़ता से बाँधे’ रखा गया?

• “सत्तर सप्ताह” के बाद क्या हुआ?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 197 पर बक्स/तसवीर]

अर्तक्षत्र का राज कब शुरू हुआ?

फारस के राजा अर्तक्षत्र ने किस साल में राज करना शुरू किया इस बारे में इतिहासकार अलग-अलग राय रखते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि वह सा.यु.पू. 465 में राजा बना, क्योंकि उसके पिता जरक्सीज़ ने सा.यु.पू. 486 में राज करना शुरू किया था और उसकी मौत अपने राज के 21वें साल में हुई थी। लेकिन इस बात का सबूत है कि अर्तक्षत्र सा.यु.पू. 475 में राजगद्दी पर बैठा था और सा.यु.पू. 474 उसके राज का पहला साल था। आइए देखें कैसे?

प्राचीन फारस की राजधानी पर्सेपोलिस की खुदाई में जो शिलालेख और मूर्तियाँ मिली हैं उनसे पता चलता है कि जरक्सीज़ अपने पिता दारा I के साथ राजा था। जरक्सीज़ ने कुल 21 साल तक राज किया जिसमें से 10 साल तक उसने अपने पिता दारा I के साथ राज किया था। और सा.यु.पू. 486 में दारा I की मौत के बाद उसने 11 साल तक अकेले राज किया। तो अगर हम सा.यु.पू. 486 से 11 साल और गिनते हैं तो हम सा.यु.पू. 475 तक पहुँचते हैं। और यही वह समय था जब जरक्सीज़ का बेटा अर्तक्षत्र राजा बना था और सा.यु.पू. 474 उसके राज का पहला साल था।

इस बात का दूसरा सबूत हमें यूनान देश के एथेनी जनरल थेमिस्टक्लीज़ के सिलसिले में मिलता है, जिसने सा.यु.पू. 480 में जरक्सीज़ की सेनाओं को हराया था। बाद में थेमिस्टक्लीज़ पर गद्दार होने का इलज़ाम लगाया गया, इसलिए यूनान के लोग उससे नफरत करने लगे। थेमिस्टक्लीज़ यूनान से भाग गया और उसने फारस के राजदरबार में पनाह लेनी चाही और वहाँ उसे काफी इज़्ज़त मिली। एक यूनानी इतिहासकार थुसिडीज़ के मुताबिक यह उस वक्‍त की बात है जब अर्तक्षत्र “अभी-अभी राजा बना था।” यूनानी इतिहासकार डाइडोरस सिकलस कहते हैं कि थेमिस्टक्लीज़ की मौत सा.यु.पू. 471 में हुई थी। थेमिस्टक्लीज़ ने राजा अर्तक्षत्र के सामने हाज़िर होने से पहले फारसी भाषा सीखने के लिए एक साल की मोहलत माँगी थी तो इसका मतलब है कि वह फारस के इलाके एशिया माइनर में सा.यु.पू. 473 तक आ चुका होगा। इस तारीख को जेरोम का क्रॉनिकल ऑफ युसेबियस सही बताता है। जब थेमिस्टक्लीज़ सा.यु.पू. 473 में एशिया पहुँचा था तब अर्तक्षत्र “अभी-अभी राजा बना था।” इसलिए और भी दूसरे विद्वानों के अलावा, जर्मन विद्वान अर्नेस्ट हेंग्सटर्नबर्ग ने अपनी क्रिस्टोलॉजी ऑफ दी ओल्ड टेस्टामेंट में यह कहा कि अर्तक्षत्र ने सा.यु.पू. 474 में राज करना शुरू किया। उन्होंने आगे कहा: “अर्तक्षत्र के राज का बीसवाँ साल सा.यु.पू. 455 था।”

[तसवीर]

थेमिस्टक्लीज़ की मूर्ति

[पेज 188 पर रेखाचित्र/तसवीरें]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

“सत्तर सप्ताह”

455 सा.यु.पू. 406 सा.यु.पू. 29 सा.यु. 33 सा.यु. 36 सा.यु.

‘यरूशलेम को फिर फिर से बसाया मसीहा मसीहा “सत्तर सप्ताह”

से बसाने की आज्ञा’ गया यरूशलेम प्रकट होता है काट डाला जाता है का अन्त

7 सप्ताह 62 सप्ताह 1 सप्ताह

49 साल 434 साल 7 साल

[पेज 180 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 193 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]