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अध्याय 1

“देखो, हमारा परमेश्वर यही है”

“देखो, हमारा परमेश्वर यही है”

1, 2. (क) आप परमेश्वर से क्या-क्या सवाल पूछना चाहेंगे? (ख) मूसा ने परमेश्वर से क्या पूछा?

क्या आप कभी परमेश्वर से आमने-सामने बातचीत करने के बारे में सोच सकते हैं? इस जहान के महाराजाधिराज से बात करने का ख्याल आते ही भय और श्रद्धा से बदन में सिहरन दौड़ जाती है। खुद, यहोवा परमेश्वर आपसे बात कर रहा है! पहले तो आप हिचकिचाते हैं, पर फिर किसी तरह हिम्मत जुटाकर बोल पाते हैं। वह आपकी बात ध्यान से सुनता है, आपको जवाब देता है और यह कहकर आपकी घबराहट दूर करता है कि आप उससे जो चाहे पूछ सकते हैं। अब आप क्या पूछेंगे?

2 सदियों पहले, एक इंसान के साथ ठीक ऐसा ही हुआ। उसका नाम था, मूसा। लेकिन उसने परमेश्वर से जो सवाल पूछा उससे शायद आपको ताज्जुब हो। उसने ना तो अपने बारे में कुछ पूछा, ना ही अपने भविष्य के बारे में और ना ही इंसान की दुर्दशा के बारे में, इसके बजाय उसने परमेश्वर से उसका नाम पूछा। आपको शायद यह बात अजीब लगे, क्योंकि मूसा तो पहले ही परमेश्वर का नाम जानता था। इससे ज़ाहिर है कि ज़रूर उसके सवाल पूछने का कोई गहरा अर्थ रहा होगा। दरअसल, मूसा इससे बढ़कर अहमियत रखनेवाला और कोई सवाल पूछ ही नहीं सकता था। इसका जवाब हम सबके लिए बहुत मायने रखता है। इसकी मदद से, परमेश्वर के करीब आने के लिए आप निहायत ज़रूरी कदम उठा सकते हैं। वह कैसे? आइए परमेश्वर और मूसा के बीच हुई उस अद्‌भुत बातचीत पर गौर करें।

3, 4. परमेश्वर के साथ मूसा की बातचीत से पहले क्या-क्या हुआ, और उस बातचीत का सारांश क्या था?

3 मूसा की उम्र 80 साल थी। वह चालीस साल से अपने जातिभाई, इस्राएलियों से दूर रहा था जो मिस्र देश में गुलाम थे। एक दिन, जब वह अपने ससुर की भेड़-बकरियाँ चरा रहा था तो उसने एक अजीबो-गरीब नज़ारा देखा। एक झाड़ी में आग लगी हुई थी, मगर वह भस्म नहीं होती थी। वह बस जलती जा रही थी और चारों तरफ उजियाला फैल रहा था, मानो किसी ने उस पहाड़ी पर बड़ी मशाल जला रखी हो। तहकीकात करने के लिए मूसा झाड़ी के नज़दीक गया। लेकिन जब आग की लपट में से अचानक एक आवाज़ सुनायी दी, तो मूसा ज़रूर डर के मारे उछल पड़ा होगा! वहाँ, एक स्वर्गदूत के ज़रिए परमेश्वर ने बहुत देर तक मूसा से बातें कीं। जैसा कि आप जानते होंगे कि इस मौके पर मूसा की आनाकानी के बावजूद परमेश्वर ने उसे, चैन की ज़िंदगी छोड़कर मिस्र वापस जाने की आज्ञा दी और इस्राएलियों को बंधुआई से छुड़ाने की ज़िम्मेदारी सौंपी।—निर्गमन 3:1-12.

4 उस वक्‍त, मूसा चाहता तो परमेश्वर से जो चाहे पूछ सकता था। मगर, ध्यान दीजिए कि उसने क्या पूछा: “जब मैं इस्राएलियों के पास जाकर उन से यह कहूं, कि तुम्हारे पितरों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, तब यदि वे मुझ से पूछें, कि उसका क्या नाम है? तब मैं उनको क्या बताऊं?”—निर्गमन 3:13.

5, 6. (क) मूसा का सवाल हमें कौन-सी एक सीधी मगर बहुत अहम सच्चाई सिखाता है? (ख) परमेश्वर के नाम को लेकर कौन-सा घिनौना काम किया गया है? (ग) यह बात क्यों इतनी अहमियत रखती है कि परमेश्वर ने इंसान को अपना नाम बताया है?

5 मूसा के इस सवाल से हम सबसे पहले यह सीखते हैं कि परमेश्वर का एक नाम है। हमें इस सीधी-सी सच्चाई की अहमियत को कम नहीं समझना चाहिए। हालाँकि, बहुत-से लोग इसे बिलकुल अहमियत नहीं देते। इसलिए, परमेश्वर के नाम को बहुत-सी बाइबलों से निकालकर, उसकी जगह “प्रभु” और “परमेश्वर” जैसी उपाधियाँ डाल दी गयी हैं। धर्म के नाम पर इससे बढ़कर दुःख-भरा और घिनौना काम और क्या हो सकता है? जब आप किसी से पहली बार मिलते हैं, तो सबसे पहले क्या पूछते हैं? क्या आप उसका नाम नहीं पूछते? परमेश्वर को जानने के बारे में भी यही सच है। वह कोई बेनाम या दूरी बनाए रखनेवाला शख्स नहीं जिसे जानना या समझना नामुमकिन हो। हालाँकि वह दिखायी नहीं देता, मगर उसका एक व्यक्तित्व है, अपना एक नाम है और वह है, यहोवा।

6 इतना ही नहीं, जब परमेश्वर हमें अपना नाम बताता है, तो हम कुछ ऐसा होने की उम्मीद कर सकते हैं जो बहुत ही बढ़िया और सनसनीखेज़ है। वह उसे जानने का हमें न्यौता दे रहा है। वह चाहता है कि हम ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन, सबसे उम्दा चुनाव करें, यानी उसके करीब आएँ। मगर यहोवा ने हमें सिर्फ अपना नाम ही नहीं बताया, बल्कि अपनी शख्सियत के बारे में भी बताया है।

परमेश्वर के नाम का मतलब

7. (क) परमेश्वर के नाम से क्या मतलब समझ में आता है? (ख) जब मूसा ने परमेश्वर से उसका नाम पूछा तो वह असल में क्या जानना चाहता था?

7 यहोवा ने अपना नाम खुद चुना है और इस नाम का बहुत गहरा अर्थ है। “यहोवा” नाम से यह मतलब समझ में आता है, “वह बनने का कारण होता है।” पूरे जहान में उसके जैसा और कोई नहीं, क्योंकि उसी ने सबकुछ बनाया है और वह ऐसे काम करता है जिससे उसके सभी मकसद पूरे होते हैं। और यही सच्चाई हमारे अंदर विस्मय और श्रद्धा की भावना पैदा करती है। लेकिन क्या परमेश्वर के नाम का असली मतलब सिर्फ इतना ही है? मूसा बेशक इससे और ज़्यादा जानना चाहता था। वह पहले से जानता था कि परमेश्वर का नाम यहोवा है और वह सिरजनहार है। वह यह नाम पहली बार नहीं सुन रहा था। लोग इस नाम को सदियों से इस्तेमाल करते आए थे। इसलिए हम कह सकते हैं कि जब मूसा परमेश्वर का नाम पूछ रहा था, तो वह इस नाम के शख्स के बारे में पूछ रहा था। दरअसल वह कह रहा था: ‘मैं तेरे लोगों, इस्राएल से तेरे बारे में क्या कहूँ जिससे वे तुझ पर विश्वास करें, और उन्हें यकीन हो कि तू सचमुच उन्हें छुड़ाएगा?’

8, 9. (क) यहोवा ने मूसा के सवाल का क्या जवाब दिया, और इस जवाब का अकसर कैसे गलत अनुवाद किया गया है? (ख) इन शब्दों का क्या मतलब है, “मुझे जो साबित होना है वह मैं साबित होऊँगा”?

8 जवाब में यहोवा ने अपनी शख्सियत का एक रोमांचक पहलू बताया जो उसके नाम के अर्थ से ही जुड़ा है। उसने मूसा से कहा: “मुझे जो साबित होना है वह मैं साबित होऊँगा।” (निर्गमन 3:14, NW) हिन्दी बाइबल और कई दूसरे अनुवादों में यह आयत यूँ लिखी है: “मैं जो हूं सो हूं।” मगर बड़ी सावधानी से किए गए बाइबल के अनुवाद दिखाते हैं कि परमेश्वर सिर्फ अपने वजूद में होने की बात को पक्का नहीं कर रहा था। इसके बजाय, यहोवा मूसा को—और हम सभी को—यह समझाना चाहता था कि वह अपने वादों को पूरा करने के लिए जो ज़रूरी है वह बन जाएगा या ‘साबित होगा।’ जे. बी. रॉदरहैम के अनुवाद में यह आयत बड़े स्पष्ट शब्दों में यूँ लिखी है: “मैं जो चाहता हूँ वही बन जाऊँगा।” बाइबल की इब्रानी भाषा के एक विशेषज्ञ ने इस आयत के बारे में समझाया: “चाहे किसी भी तरह के हालात या कैसी भी ज़रूरत क्यों न हो . . . , परमेश्वर उस ज़रूरत को पूरा करनेवाला ‘बन’ जाएगा।”

9 इस्राएलियों के लिए इसके क्या मायने थे? चाहे उनके सामने पहाड़ जैसी बाधा क्यों न खड़ी हो जाए, चाहे वे बड़ी-से-बड़ी मुश्किल में क्यों न फँस जाएँ, यहोवा उन्हें गुलामी से छुड़ाने और वादा किए गए देश में लाने के लिए जो ज़रूरी है, वह बन जाएगा। बेशक यह नाम, परमेश्वर पर भरोसा रखने की प्रेरणा देता था। आज इससे हमारा भी भरोसा बढ़ता है। (भजन 9:10) वह कैसे?

10, 11. यहोवा का नाम कैसे हमें यह बुलावा देता है कि हम उसे दुनिया का सबसे बेहतरीन पिता समझें जो तरह-तरह की भूमिकाएँ निभाता है? उदाहरण देकर समझाइए।

10 आइए एक उदाहरण से यह समझें: माता-पिता जानते हैं कि अपने बच्चों की देखभाल करने में उन्हें तरह-तरह के काम करने पड़ते हैं। एक ही दिन के अंदर, माता या पिता को एक नर्स, बावर्ची, शिक्षक, अनुशासन देनेवाला, जज और न जाने क्या-क्या बनना पड़ता है। कभी-कभी उन्हें लगता है कि उनसे जो उम्मीद की जाती है, वे उस पर खरे नहीं उतर रहे हैं। वे देखते हैं कि उनके नन्हे-मुन्नों को उन पर कितना भरोसा है, जो यह मानते हैं कि डैडी या मम्मी हर चोट को ठीक कर सकते हैं, हर झगड़े को सुलझा सकते हैं, टूटे हुए किसी भी खिलौने को जोड़ सकते हैं और उनके दिमाग में एक-के-बाद-एक उठनेवाले हर सवाल का जवाब भी दे सकते हैं। लेकिन कुछ माता-पिता महसूस करते हैं कि वे बच्चों के इस भरोसे के लायक नहीं, क्योंकि वे इन सभी बातों में खरे नहीं उतर पाते। और इस वजह से वे निराश हो जाते हैं। वे कई भूमिकाओं को पूरा करने में नाकाम महसूस करते हैं।

11 यहोवा भी एक प्यार करनेवाला पिता है। वह अपने सिद्ध स्तरों को तोड़े बिना, इस धरती पर अपने बच्चों की ज़रूरतों को बेहतरीन तरीके से पूरा कर सकता है। ऐसा करने के लिए वह कुछ भी बन सकता है। इसलिए उसका नाम, यहोवा, हमें बुलावा देता है कि हम उसे ऐसा बेहतरीन पिता समझें जो पूरे जहान में कहीं नहीं मिल सकता। (याकूब 1:17) मूसा और दूसरे वफादार इस्राएलियों ने बहुत जल्द जान लिया कि यहोवा अपने नाम के मुताबिक काम भी करता है। वे विस्मय से ताकते रह गए, जब यहोवा ऐसा वीर सेनापति बना जिसे कोई हरा नहीं सकता, हवा-पानी जैसे सृष्टि के तत्त्वों का स्वामी, लाजवाब कानून-साज़, न्यायी, शिल्पकार, अन्नदाता, यहाँ तक कि उनके कपड़ों और जूतियों को सुरक्षित रखनेवाला और भी बहुत कुछ साबित हुआ।

12. यहोवा के बारे में फिरौन का रवैया, मूसा के रवैए से कैसे अलग था?

12 इस तरह परमेश्वर ने अपना नाम ज़ाहिर किया है और अपनी शख्सियत की रोमांचक बातों के बारे में बताया है जो उसके नाम से जुड़ी हैं। उसने अपने कामों से भी दिखाया है कि वह अपने बारे में जो बताता है, वह सच है। बेशक, परमेश्वर खुद यह चाहता है कि हम उसे जानें। तो फिर, हम इस बारे में क्या करेंगे? मूसा परमेश्वर को जानना चाहता था। मूसा की इस गहरी लालसा ने उसकी ज़िंदगी बदल दी और वह अपने स्वर्गीय पिता के बहुत ही करीब आ गया। (गिनती 12:6-8; इब्रानियों 11:27) मगर अफसोस, मूसा के ज़माने में ऐसे बहुत-से लोग थे जिन्हें परमेश्वर के बारे में जानने की ज़रा भी इच्छा नहीं थी। जब मूसा ने मिस्र के मगरूर राजा फिरौन के सामने यहोवा का ज़िक्र किया तो उसने उलटा जवाब दिया: “यहोवा कौन है?” (निर्गमन 5:2) फिरौन ने यहोवा के बारे में ज़्यादा जानने के लिए यह सवाल नहीं पूछा था। इसके बजाय, उसने इस्राएल के परमेश्वर को ठट्ठों में उड़ा दिया और ऐसे दिखाया मानो उसकी नज़रों में परमेश्वर की कोई अहमियत नहीं, ना ही वह उसके ध्यान देने लायक है। आज भी बहुत-से लोग इसी तरह सोचते हैं। इस सोच ने लोगों को इस कदर अंधा कर दिया है कि वे दुनिया की इस सबसे बड़ी सच्चाई को नहीं समझ पाते—यहोवा इस जहान का परमप्रधान परमेश्वर है।

परमप्रधान परमेश्वर यहोवा

13, 14. (क) बाइबल में यहोवा को बहुत-सी उपाधियाँ क्यों दी गयी हैं, और इनमें से कुछ क्या हैं? (“ यहोवा की कुछ उपाधियाँ” नाम का बक्स देखिए।) (ख) सिर्फ यहोवा “परमप्रधान” परमेश्वर कहलाने का हकदार क्यों है?

13 यहोवा ज़रूरत के हिसाब से तरह-तरह की भूमिकाएँ अदा करता है, इसलिए उसे शास्त्र में बहुत-सी उपाधियाँ दी गयी हैं। लेकिन ये उपाधियाँ उसके नाम की बराबरी नहीं कर सकतीं; बल्कि ये हमें सिखाती हैं कि उसके नाम में क्या-क्या शामिल है। मिसाल के लिए, उसे ‘परमप्रधान यहोवा’ कहा गया है। (भजन 97:9) यह गौरवपूर्ण उपाधि बाइबल में कई बार आती है, और इससे हमें यहोवा के स्थान का पता लगता है। सिर्फ वही सारे जहान का असली सम्राट है। आइए देखें क्यों।

14 सिर्फ यहोवा ही है जो सिरजनहार कहला सकता है। प्रकाशितवाक्य 4:11 कहता है: “हे हमारे प्रभु [यहोवा], और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” आदर और महिमा से भरे ये शब्द किसी और शख्स के लिए नहीं हो सकते। इस दुनिया की एक-एक चीज़ यहोवा की बदौलत अस्तित्त्व में है! बेशक, इस जहान का महाराजाधिराज और सिरजनहार होने के नाते, सिर्फ यहोवा ही आदर, सामर्थ और महिमा के योग्य है और इन्हें पाने का हकदार भी।

15. यहोवा को “सनातन राजा” क्यों कहा गया है?

15 “सनातन राजा” एक और उपाधि है जो सिर्फ यहोवा के लिए इस्तेमाल होती है। (1 तीमुथियुस 1:17; प्रकाशितवाक्य 15:3) इसका मतलब क्या है? अपनी सीमाओं की वजह से हमारे दिमाग के लिए यह बात समझना मुश्किल है। मगर सच्चाई यह है कि यहोवा सनातन है, यानी भूतकाल और भविष्यकाल दोनों ही दिशाओं में वह युग-युग से है और युग-युग तक रहेगा। भजन 90:2 कहता है: “अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही ईश्वर है।” इसलिए यहोवा की कोई शुरूआत नहीं है; वह हमेशा ही वजूद में रहा है। तभी उसे “अति प्राचीन” कहा गया है और यह सही भी है। इस दुनिया में किसी भी चीज़ या किसी भी शख्स के पैदा होने से बहुत पहले से वह अस्तित्त्व में है! (दानिय्येल 7:9, 13, 22) तो फिर, कौन है जो यहोवा के महाराजाधिराज होने के हक पर सवाल उठाने की जुर्रत कर सकता है?

16, 17. (क) हम यहोवा को क्यों नहीं देख सकते, और इससे हमें क्यों ताज्जुब नहीं होना चाहिए? (ख) किस अर्थ में हम कह सकते हैं कि यहोवा दिखायी देनेवाली और महसूस की जा सकनेवाली चीज़ों से ज़्यादा वास्तविक है?

16 फिर भी, फिरौन जैसे कुछ लोग ऐसे हैं जो यहोवा के इस हक पर सवाल उठाते हैं। इस समस्या की एक वजह यह है कि असिद्ध इंसान आँखों देखी चीज़ पर बहुत ज़्यादा भरोसा रखते हैं। हम इस दुनिया के महाराजाधिराज को नहीं देख सकते। वह आत्मा है, इसलिए इंसान की नज़र उसे नहीं देख सकती। (यूहन्ना 4:24) यही नहीं, अगर हाड़-माँस का इंसान यहोवा के सामने खड़ा हो तो वह ज़िंदा नहीं बच पाएगा। यहोवा ने खुद मूसा से कहा: “तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता।”—निर्गमन 33:20; यूहन्ना 1:18.

17 इससे हमें ताज्जुब नहीं होना चाहिए। गौर कीजिए कि मूसा ने यहोवा के तेज का सिर्फ एक अंश देखा, और वह भी एक स्वर्गदूत के माध्यम से, जो परमेश्वर का प्रतिनिधि बनकर आया था। इसका उस पर कैसा असर हुआ? इसके बाद कुछ समय तक, मूसा के चेहरे से ‘किरणें निकलती’ रहीं। इस्राएली तो मूसा का चेहरा देखने से भी डरते थे। (निर्गमन 33:21-23; 34:5-7, 29, 30) तो फिर, इसमें शक नहीं कि एक अदना इंसान, इस जहान के महाराजाधिराज को उसकी पूरी महिमा के वैभव के साथ कभी नहीं देख सकता! क्या इसका मतलब यह है कि परमेश्वर उतना वास्तविक नहीं है जितनी वे चीज़ें हैं जिन्हें हम देख या छू सकते हैं? यह बात नहीं है। ऐसी बहुत-सी चीज़ें हैं जिन्हें हम देख नहीं सकते मगर जिनके होने पर हम शक नहीं करते, जैसे हवा, रेडियो की तरंगें, और हमारे विचार। और फिर, यहोवा अमिट और अविनाशी है। समय के बीतने, यहाँ तक कि अरबों-खरबों साल बीतने के बाद भी उसमें रत्ती भर परिवर्तन नहीं होता! इस अर्थ से वह दिखायी देनेवाली या महसूस की जा सकनेवाली किसी भी चीज़ से कहीं ज़्यादा वास्तविक और अटल है, क्योंकि दिखायी देनेवाली चीज़ें वक्‍त के साथ-साथ पुरानी होती और सड़ जाती हैं। (मत्ती 6:19) लेकिन, क्या हमें यह मानना चाहिए कि वह कोई निराकार, अनजानी शक्ति है जिसे ‘पहला कारण’ कहा जाता है? आइए इस बात की जाँच करें।

परमेश्वर की शख्सियत

18. यहेजकेल को क्या दर्शन दिया गया, और यहोवा के पास रहनेवाले “जीवधारियों” के चार मुख किस बात के प्रतीक हैं?

18 हालाँकि हम परमेश्वर को देख नहीं सकते, बाइबल में ऐसे कई हिस्से हैं जिनसे हमें स्वर्ग की एक झलक मिलती है और इन्हें पढ़कर हम रोमांचित हो उठते हैं। इसकी एक मिसाल यहेजकेल का पहला अध्याय है। यहेजकेल को एक विशाल अलौकिक रथ के रूप में, यहोवा के स्वर्गीय संगठन का दर्शन दिया गया। यहोवा के चारों ओर शक्तिशाली आत्मिक जीवधारियों के बारे में यहेजकेल का वर्णन खासकर लाजवाब है। (यहेजकेल 1:4-10) ये ‘जीवधारी’ हर-पल यहोवा के साथ रहते हैं और उनका रूप हमें उनके परमेश्वर के बारे में बहुत खास जानकारी देता है। हर जीवधारी के चार मुख हैं—बैल, सिंह, उकाब पक्षी और मनुष्य का। बेशक, ये यहोवा की शख्सियत के चार बेमिसाल गुणों के प्रतीक हैं।—प्रकाशितवाक्य 4:6-8, 10.

19. (क) बैल का मुख, (ख) सिंह का मुख, (ग) उकाब पक्षी का मुख, और (घ) मनुष्य का मुख किन-किन गुणों के प्रतीक हैं?

19 बाइबल में, बैल ज़्यादातर शक्ति का प्रतीक रहा है और यह सही भी है क्योंकि इस जानवर में गज़ब की ताकत होती है। दूसरी तरफ, सिंह न्याय का प्रतीक है, क्योंकि सच्चा न्याय करने के लिए साहस चाहिए और सिंह इसी गुण के लिए जाना जाता है। उकाब अपनी तेज़ नज़र के लिए जाना जाता है, क्योंकि वह कई किलोमीटर की दूरी से भी छोटी-से-छोटी चीज़ को देख सकता है। इसलिए उकाब का चेहरा, परमेश्वर की दूरंदेशी बुद्धि का बिलकुल सही प्रतीक है। और मनुष्य का मुख किस बात का प्रतीक है? मनुष्य जो परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है, अकेला ऐसा प्राणी है जो परमेश्वर का सबसे खास गुण यानी प्रेम ज़ाहिर करने के काबिल है। (उत्पत्ति 1:26) यहोवा की शख्सियत के इन पहलुओं—शक्ति, न्याय, बुद्धि और प्रेम—पर शास्त्र में इतनी बार ज़ोर दिया गया है कि इन्हें परमेश्वर के खास गुण कहा जा सकता है।

20. क्या हमें यह चिंता सतानी चाहिए कि शायद यहोवा की शख्सियत बदल गयी हो, और आप ऐसा जवाब क्यों देते हैं?

20 क्या हमें यह चिंता सतानी चाहिए कि बाइबल में दिया हुआ परमेश्वर का यह ज़िक्र तो हज़ारों साल पुराना है, क्या इतने वक्‍त में वह बदल नहीं गया होगा? बिलकुल नहीं, परमेश्वर की शख्सियत कभी नहीं बदलती। वह कहता है: “मैं यहोवा बदलता नहीं।” (मलाकी 3:6) जब मरज़ी आए तब बदलने के बजाय, यहोवा हर मामले में इस तरह व्यवहार करता है जैसे एक आदर्श पिता करता है। वह हालात के मुताबिक ऐसे गुण ज़ाहिर करता है जो ज़रूरी हैं। उसके चार खास गुणों में सबसे बड़ा है, प्रेम। परमेश्वर के हर काम में यह गुण नज़र आता है। वह प्रेम की खातिर अपनी शक्ति और बुद्धि ज़ाहिर करता है और न्याय करता है। दरअसल, बाइबल में परमेश्वर और उसके इस गुण के बारे में एक अनोखी बात कही गयी है। यह कहती है: “परमेश्वर प्रेम है।” (1 यूहन्ना 4:8) गौर कीजिए, यह नहीं कहा गया कि परमेश्वर में प्रेम है या परमेश्वर प्रेम से भरा है। जी नहीं, इसके बदले यह कहती है कि परमेश्वर खुद प्रेम है। प्रेम, परमेश्वर का स्वभाव है और यही प्रेम उसे हर काम करने को उकसाता है।

“देखो, हमारा परमेश्वर यही है”

21. जब हम यहोवा के गुणों को और अच्छी तरह जानेंगे, तो उसके बारे में कैसा महसूस करेंगे?

21 क्या आपने कभी किसी छोटे बच्चे को बड़ी मासूमियत के साथ यह कहते हुए सुना है, “वो देखो, मेरे डैडी”? वह बड़े फख्र से अपने दोस्तों को अपना डैडी दिखाता है। यहोवा के बारे में उसके सेवकों को भी ऐसा ही महसूस करना चाहिए और इसकी कई वजह भी हैं। बाइबल ऐसे वक्‍त के बारे में भविष्यवाणी करती है जब वफादार जन खुशी से चिल्ला उठेंगे: “देखो, हमारा परमेश्वर यही है।” (यशायाह 25:8, 9) आप यहोवा के गुणों के बारे में जितनी गहरी समझ पाएँगे, उतना ही आप महसूस करेंगे कि उसके जैसा पिता कोई और हो ही नहीं सकता।

22, 23. बाइबल हमारे स्वर्गीय पिता की कैसी तसवीर पेश करती है, और हम कैसे जानते हैं कि वह हमें अपने करीब लाना चाहता है?

22 यह पिता कठोर, रूखा या दूर-दूर रहनेवाला नहीं है जैसा कि कई बैरागी धर्मगुरुओं और दार्शनिकों ने परमेश्वर के बारे में सिखाया है। किसी कठोर परमेश्वर के करीब आने का हमारा मन नहीं चाहेगा, ना ही बाइबल हमारे स्वर्गीय पिता की ऐसी तसवीर पेश करती है। इसके बजाय, बाइबल में उसे “आनंदित परमेश्वर” कहा गया है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) उसमें ज़बरदस्त भावनाओं के साथ-साथ कोमल भावनाएँ भी हैं। जब परमेश्वर के बनाए हुए बुद्धिमान प्राणी, उन नियमों के खिलाफ जाते हैं जो उसने उन्हीं की भलाई के लिए बनाए हैं, तो वह “मन में अति खेदित” होता है। (उत्पत्ति 6:6; भजन 78:41) लेकिन, जब हम उसके वचन के मुताबिक बुद्धिमानी से काम करते हैं, तब हम उसका “मन आनन्दित” करते हैं।—नीतिवचन 27:11.

23 हमारा पिता चाहता है कि हम हमेशा उसके करीब रहें। उसका वचन हमें उकसाता है कि “उसे टटोलकर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं!” (प्रेरितों 17:27) लेकिन, यह कैसे मुमकिन है कि हम मामूली इंसान इस दुनिया के महाराजाधिराज के करीब आएँ?