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अध्याय 3

“यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है”

“यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है”

1, 2. भविष्यवक्ता यशायाह ने क्या दर्शन देखा, और इससे हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?

यशायाह ने परमेश्वर का एक दर्शन देखा, जिसे देखकर उसमें भय और श्रद्धा की भावनाएँ समा गयीं। यह दर्शन इतना असली लग रहा था, मानो वह वाकई परमेश्वर के सामने खड़ा हो! यशायाह ने बाद में लिखा कि उसने सचमुच यहोवा को अपने आलीशान “सिंहासन पर विराजमान देखा।” यहोवा के वस्त्र के घेर से यरूशलेम का विशाल मंदिर भर गया।—यशायाह 6:1, 2.

2 वहाँ यशायाह को जो सुनाई दिया उससे भी उसका दिल भय और विस्मय से भर गया। वह था, एक गीत। परमेश्वर की प्रशंसा में गाया जानेवाला यह गीत इतना ज़ोरदार था कि मंदिर की नींव तक हिल गयी। यह गीत साराप गा रहे थे, जो बहुत ऊँचे पद पर सेवा करनेवाले आत्मिक प्राणी हैं। एक सुर में गाए जा रहे इस गीत के ज़बरदस्त बोल परमेश्वर के प्रताप का क्या ही बढ़िया तरीके से बखान करते हैं: “सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।” (यशायाह 6:3, 4) “पवित्र” शब्द को तीन बार गाने से इस पर खास ज़ोर दिया गया और ऐसा करना सही भी है, क्योंकि यहोवा की पवित्रता सर्वोत्तम है, उसके जैसा पवित्र दूसरा कोई है ही नहीं। (प्रकाशितवाक्य 4:8) पूरी बाइबल में यहोवा की पवित्रता पर ज़ोर दिया गया है। सैकड़ों ऐसी आयतें हैं जो उसके नाम के साथ “पवित्र” और “पवित्रता” शब्द इस्तेमाल करती हैं।

3. यहोवा की पवित्रता के बारे में गलत विचारों की वजह से कैसे बहुत-से लोग परमेश्वर के करीब आने के बजाय उससे दूर-दूर रहते हैं?

3 तो ज़ाहिर है कि इससे यहोवा हमें अपने बारे में यह ज़रूरी बात समझाना चाहता है कि वह पवित्र है। मगर, आज बहुत-से लोग इस विचार से ही नफरत करते हैं। कुछ लोग यह मान बैठे हैं कि खुद को पवित्र कहनेवाले अपने आपको दूसरों से ज़्यादा धर्मी समझते हैं या पावनता का बस ढोंग करते हैं, मगर उनका यह मानना ठीक नहीं है। दूसरी तरफ, ऐसे लोग भी हैं जो लगातार इस भावना से लड़ते रहते हैं कि वे अच्छे इंसान नहीं हैं और वे शायद परमेश्वर की पवित्रता के बारे में सोचकर उसके पास आने के बजाय उससे दूर-दूर रहें। उन्हें शायद इस बात का डर हो कि वे इस पवित्र परमेश्वर के करीब आने के कभी लायक नहीं बन सकते। इसलिए, अफसोस की बात है कि बहुत-से लोग परमेश्वर से दूर चले जाते हैं क्योंकि वह पवित्र है। लेकिन सच तो यह है कि परमेश्वर की इस पवित्रता से ही हमें उसके करीब आने की प्रेरणा मिलती है। क्यों? इस सवाल का जवाब देने से पहले, आइए हम चर्चा करें कि सच्ची पवित्रता क्या है।

पवित्रता क्या है?

4, 5. (क) पवित्रता का क्या मतलब है, और क्या नहीं है? (ख) किन दो अहम तरीकों से यहोवा “अलग” है?

4 परमेश्वर पवित्र है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह अपने आप में लीन रहनेवाला, घमंडी या दूसरों का तिरस्कार करनेवाला परमेश्वर है। दरअसल, वह खुद ऐसे दुर्गुणों से नफरत करता है। (नीतिवचन 16:5; याकूब 4:6) तो फिर, “पवित्र” शब्द का असल में क्या मतलब है? यह शब्द, बाइबल की इब्रानी भाषा के जिस शब्द से निकला है, उसका मतलब है “अलग।” उपासना में, “पवित्र” उसे कहा जाता है जो साधारण कामों में इस्तेमाल के लिए न हो या जिसे पावन ठहराया गया हो। पवित्रता से स्वच्छता और शुद्धता का भी ज़ोरदार एहसास मिलता है। यह शब्द यहोवा पर कैसे लागू होता है? क्या इसका मतलब यह है कि वह हम असिद्ध इंसानों से बिलकुल “अलग” है, हमसे बहुत दूर?

5 नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है। ‘इस्राएल के पवित्र,’ यहोवा ने कहा कि वह अपने लोगों के “बीच में रहनेवाला” परमेश्वर है, फिर चाहे वे असिद्ध और पापी ही क्यों न हों। (यशायाह 12:6; होशे 11:9) तो फिर, परमेश्वर की पवित्रता उसे लोगों से दूर नहीं कर देती। फिर, वह “अलग” कैसे है? दो अहम तरीकों से। पहला, वह सारी सृष्टि से अलग है, क्योंकि अकेला वही परमप्रधान है। उसकी शुद्धता, उसकी स्वच्छता सर्वोच्च है और वह सदा तक ऐसा ही रहेगा। (भजन 40:5; 83:18) दूसरा, पाप से यहोवा पूरी तरह दूर या अलग है और इससे हमें दिलासा मिलता है। क्यों?

6. इससे हमें क्यों दिलासा मिलता है कि यहोवा में पाप की प्रवृत्ति नहीं?

6 हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ सच्ची पवित्रता, विरले ही मिलती है। इंसानी समाज परमेश्वर से दूर है, इसलिए इसका हर अंग किसी-न-किसी तरह पाप और असिद्धता से भ्रष्ट और दूषित है। हम सभी को अपने अंदर बसे पाप से लड़ना पड़ता है। और अगर हम पल भर के लिए लापरवाह हो जाएँ, तो पाप हमें अपने वश में कर सकता है। (रोमियों 7:15-25; 1 कुरिन्थियों 10:12) लेकिन यहोवा को ऐसा कोई खतरा नहीं है। उसमें पाप करने की प्रवृत्ति नहीं है, इसलिए कभी-भी उस पर पाप का ज़रा भी दाग नहीं लगेगा। इसका मतलब है कि वह पूरी तरह से भरोसे के लायक है, और इससे हमारा विश्वास और पक्का होता है कि यहोवा वाकई एक आदर्श पिता है। जी हाँ, यहोवा असिद्ध इंसानी पिताओं की तरह नहीं है, क्योंकि वह कभी-भी भ्रष्ट नहीं होगा, ना ही गुस्से से बेकाबू होकर अपने बच्चों को चोट पहुँचाएगा। उसकी पवित्रता के कारण यह सब होना नामुमकिन है। यहोवा ने तो कई बार अपनी पवित्रता की कसम खाई है, क्योंकि कोई और चीज़ ऐसी नहीं है जिस पर भरोसा किया जा सके। (आमोस 4:2) क्या इससे हमारा भरोसा और मज़बूत नहीं होता?

7. क्यों कहा जा सकता है कि पवित्रता यहोवा के स्वभाव में ही है?

7 पवित्रता यहोवा के स्वभाव में है। इसका क्या मतलब हुआ? यह समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए: इन शब्दों पर गौर करें, “इंसान” और “असिद्ध।” आप इंसान के बारे में बताते वक्‍त, असिद्धता का ज़िक्र किए बिना नहीं रह सकते। असिद्धता हमारी रग-रग में बसी है और हमारे हर काम में नज़र आती है। अब इन दो बहुत ही अलग शब्दों पर गौर कीजिए—“यहोवा” और “पवित्र।” पवित्रता मानो यहोवा में समायी हुई है। उससे जुड़ी हर चीज़, हर काम, स्वच्छ, शुद्ध और खरा होता है। हम यहोवा का असली रूप तब तक नहीं जान सकते जब तक हम इस गहरे शब्द, “पवित्र” का सही-सही अर्थ न समझ लें।

“पवित्रता यहोवा की है”

8, 9. क्या बात दिखाती है कि यहोवा असिद्ध इंसानों को कुछ हद तक पवित्र बनने में मदद देता है?

8 यहोवा पवित्रता का साकार रूप है, इसलिए कहा जा सकता है कि सारी पवित्रता का स्रोत वही है। वह स्वार्थी नहीं कि इस अनमोल गुण को अपने पास ही रखे; बल्कि वह दिल खोलकर दूसरों को भी यह गुण देता है। जब परमेश्वर ने जलती हुई झाड़ी में से एक स्वर्गदूत के ज़रिए मूसा से बात की, तो आस-पास की ज़मीन तक पवित्र हो गयी, क्योंकि यहोवा वहाँ पर मौजूद था!—निर्गमन 3:5.

9 क्या यहोवा की मदद से असिद्ध इंसान पवित्र बन सकते हैं? जी हाँ, कुछ हद तक। परमेश्वर ने अपने लोगों यानी इस्राएलियों के सामने एक “पवित्र जाति” बनने की आशा रखी। (निर्गमन 19:6) उसने उस जाति को उपासना की एक ऐसी व्यवस्था दी जो पवित्र, स्वच्छ और शुद्ध थी। इसीलिए, मूसा की व्यवस्था में पवित्रता का ज़िक्र बार-बार आता है। दरअसल, महायाजक अपनी पगड़ी पर सामने की तरफ सोने की एक पट्टिका पहनता था, जिसे हर कोई रोशनी में चमकता हुआ देख सकता था। उस पटिया पर ये शब्द खुदे हुए थे: “पवित्रता यहोवा की है।” (निर्गमन 28:36, NW) इसलिए उनकी उपासना, यहाँ तक कि उनका जीने का तरीका भी स्वच्छता और शुद्धता की वजह से बाकी जातियों से श्रेष्ठ होना चाहिए था। यहोवा ने उनसे कहा: “तुम पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूं।” (लैव्यव्यवस्था 19:2) जब तक इस्राएली परमेश्वर की सलाह के मुताबिक उस हद तक चलते जितना असिद्ध इंसानों के लिए संभव है, तो वे परमेश्वर की नज़रों में उस हद तक पवित्र ठहरते।

10. जहाँ तक पवित्रता की बात है, प्राचीन इस्राएल और आस-पास की जातियों के बीच क्या फर्क था?

10 इस्राएल में पवित्रता पर जो इतना ज़ोर दिया गया था, वह आस-पड़ोस की जातियों में की जानेवाली उपासना से एकदम अलग था। वे विधर्मी जातियाँ उन देवताओं को पूजती थीं जिनका वजूद था ही नहीं और जिनकी उपासना सिर्फ एक ढकोसला थी। इन देवताओं को हिंसक, लोभी और अनैतिक काम करनेवालों के रूप में दर्शाया जाता था। वे हर मुमकिन तरीके से अपवित्र थे। ऐसे देवताओं की उपासना ने लोगों को भी अपवित्र कर दिया था। इसलिए, यहोवा ने अपने सेवकों को चेतावनी दी कि वे इन विधर्मी उपासकों और उनकी भ्रष्ट धार्मिक प्रथाओं से कोसों दूर रहें।—लैव्यव्यवस्था 18:24-28; 1 राजा 11:1, 2.

11. यहोवा के स्वर्गीय संगठन की पवित्रता को (क) स्वर्गदूतों, (ख) सारापों और (ग) यीशु ने कैसे दर्शाया?

11 अच्छे-से-अच्छे हालात में भी यहोवा की चुनी हुई प्राचीन इस्राएल जाति, परमेश्वर के स्वर्गीय संगठन की पवित्रता को सिर्फ कुछ हद तक ही दर्शा सकी। लाखों आत्मिक प्राणी जो पूरी निष्ठा से परमेश्वर की सेवा करते हैं, उन्हें ‘लाखों पवित्र’ पुकारा गया है। (व्यवस्थाविवरण 33:2; यहूदा 14) वे परमेश्वर की पवित्रता की उज्ज्वल और शुद्ध मनोहरता को परिपूर्ण तरीके से ज़ाहिर करते हैं। और उन सारापों को याद कीजिए जिन्हें यशायाह ने दर्शन में देखा था। उनके गीत के बोल दिखाते हैं कि ये शक्तिशाली आत्मिक प्राणी सारे जहान में यहोवा की पवित्रता का ऐलान करने में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन, इनमें से एक आत्मिक प्राणी सबसे श्रेष्ठ है और वह है, परमेश्वर का एकलौता पुत्र, यीशु। वह यहोवा की पवित्रता का सबसे श्रेष्ठ साकार रूप है। इसलिए, वह ‘परमेश्वर के पवित्र जन’ के तौर पर जाना जाता है।—यूहन्ना 6:68, 69.

पवित्र नाम, पवित्र आत्मा

12, 13. (क) परमेश्वर के नाम को पवित्र कहना क्यों सही है? (ख) परमेश्वर के नाम का पवित्र किया जाना क्यों ज़रूरी है?

12 परमेश्वर के अपने नाम के बारे में क्या? जैसा हमने पहले अध्याय में देखा, यह नाम सिर्फ एक उपाधि या कोई लेबल नहीं है। यह नाम दिखाता है कि यहोवा कैसा परमेश्वर है और उसमें कौन-कौन-से गुण हैं। इसलिए, बाइबल कहती है कि उसका “नाम पवित्र है।” (यशायाह 57:15) मूसा की व्यवस्था में परमेश्वर के नाम का अनादर करनेवाले के लिए मौत की सज़ा थी। (लैव्यव्यवस्था 24:16) और ध्यान दीजिए कि यीशु ने प्रार्थना में सबसे पहला दर्जा किस बात को दिया: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना [“किया,” NW] जाए।” (मत्ती 6:9) किसी को पवित्र करने का मतलब है उसे पावन समझकर अलग रखना, उसे श्रद्धा देना और उसकी इज़्ज़त करना। मगर परमेश्वर का नाम जो पहले से पवित्र है, उसे पवित्र किए जाने की क्या ज़रूरत है?

13 झूठ और निंदा का सहारा लेकर परमेश्वर के पवित्र नाम को कलंकित और बदनाम किया गया है। अदन में, शैतान ने यहोवा के बारे में झूठ बोला और मानो यह कहा कि उसे इंसान पर हुकूमत करने का कोई हक नहीं। (उत्पत्ति 3:1-5) तब से, इस अपवित्र संसार के शासक, शैतान ने पूरी-पूरी कोशिश की है कि परमेश्वर के बारे में झूठ फैलता चला जाए। (यूहन्ना 8:44; 12:31; प्रकाशितवाक्य 12:9) धर्मों ने सिखाया है कि परमेश्वर अपनी मन-मरज़ी करता है या वह बड़ा बेरहम है और हमारी पहुँच से बाहर है। इन्हीं धर्मों का दावा रहा है कि जब वे युद्धों में एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, तब भी परमेश्वर उनका साथ देता है। परमेश्वर की सृष्टि के लाजवाब कामों को देखकर अकसर कहा जाता है कि यह सब अपने आप ही आ गया या विकासवाद से शुरू हुआ। जी हाँ, परमेश्वर के नाम को बहुत ही घिनौने तरीके से बदनाम किया गया है। इसलिए इस नाम का पवित्र किया जाना ज़रूरी है; और यह जिस आदर और महिमा के लायक है वह इसे मिलनी चाहिए। हमें उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है, जब उसके नाम को पवित्र किया जाएगा और उसकी हुकूमत बुलंद की जाएगी। इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है कि हम इस महान उद्देश्य में अपनी छोटी-सी भूमिका अदा कर सकें।

14. परमेश्वर की आत्मा को पवित्र क्यों कहा गया है और पवित्र आत्मा की निंदा करने का पाप सबसे संगीन क्यों है?

14 यहोवा से जुड़ी एक और चीज़ है जिसका ज़िक्र लगभग हर बार पवित्र शब्द से किया जाता है—उसकी आत्मा या सक्रिय शक्ति। (उत्पत्ति 1:2) यहोवा अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विश्व का यह सबसे ज़बरदस्त बल इस्तेमाल करता है। परमेश्वर जो कुछ करता है, वह उसे पवित्र, शुद्ध और स्वच्छ तरीके से करता है, इसलिए उसकी सक्रिय शक्ति को पवित्र आत्मा या पवित्रता की आत्मा का बिलकुल सही नाम दिया गया है। (लूका 11:13; रोमियों 1:4) पवित्र आत्मा की निंदा करना, जिसका मतलब है जानबूझकर यहोवा के उद्देश्यों के खिलाफ काम करना ऐसा पाप है जिसकी माफी नहीं है।—मरकुस 3:29.

यहोवा की पवित्रता क्यों हमें उसके नज़दीक लाती है

15. यहोवा की पवित्रता देखकर उसके लिए ईश्वरीय भय होना क्यों सही है और यह किस किस्म का भय है?

15 तो फिर, यह समझना मुश्किल नहीं कि बाइबल क्यों कहती है, परमेश्वर की पवित्रता देखकर इंसान के अंदर ईश्वरीय भय पैदा होना चाहिए। मिसाल के लिए, भजन 99:3 कहता है: “वे तेरे महान और भययोग्य नाम का धन्यवाद करें! वह तो पवित्र है!” लेकिन, यह भय कोई खौफ नहीं है बल्कि यह विस्मय और श्रद्धा की वह गहरी भावना है, जो आदर का सबसे श्रेष्ठ, सबसे महान रूप है। ऐसा महसूस करना सही भी है, क्योंकि परमेश्वर की पवित्रता हमसे कहीं श्रेष्ठ और महान है। यह स्वच्छता में वैभवशाली और महिमा से भरपूर है। फिर भी, इसकी वजह से हमें परमेश्वर से दूर नहीं भागना चाहिए। इसके बजाय, परमेश्वर की पवित्रता के बारे में सही नज़रिया हमें उसके और करीब लाएगा। क्यों?

जिस तरह शोभा या सुंदरता हमें अपनी तरफ खींचती है, उसी तरह पवित्रता से हमें आकर्षित होना चाहिए

16. (क) पवित्रता और सुंदरता का आपस में क्या नाता है? एक मिसाल दीजिए। (ख) दर्शन में यहोवा का वर्णन करते वक्‍त कैसे स्वच्छता, शुद्धता और उजियाले पर ज़ोर दिया गया है?

16 एक वजह तो यह है, बाइबल कहती है कि पवित्रता और सुंदरता का आपस में गहरा नाता है। भजन 96:6 में, परमेश्वर के पवित्र स्थान का ज़िक्र करते हुए कहा गया है: “उसके पवित्रस्थान में सामर्थ्य और शोभा है।” शोभा या सुंदरता हमें अपनी तरफ खींचती है। मसलन, पेज 33 की तसवीर पर गौर कीजिए। क्या आपको यह तसवीर देखते रहने का मन नहीं करता? इसमें ऐसा क्या है? ध्यान से देखिए कि पानी कितना साफ लग रहा है। ज़रूर हवा भी साफ होगी, क्योंकि आकाश का नीला रंग साफ नज़र आ रहा है और धूप भी खिली हुई है। अब इसी नज़ारे में अगर थोड़ी फेर-बदल कर दी जाए—पानी का बहाव कूड़े-करकट की वजह से कहीं-कहीं रुका हुआ हो, लोगों ने पेड़ों और पत्थरों पर नाम या नारे लिख-लिखकर उनकी सूरत बिगाड़ दी हो, हवा धूएँ की वजह से प्रदूषित हो—तो ऐसा नज़ारा हमारी आँखों को नहीं भाएगा; हमें यह तसवीर गंदी लगेगी। कुदरत में भी सुंदरता वहाँ होती है जहाँ स्वच्छता, शुद्धता और उजियाला हो। इन्हीं शब्दों से यहोवा की पवित्रता का वर्णन भी किया जा सकता है। इसीलिए, दर्शन में यहोवा के रूप का वर्णन पढ़कर हम मोहित हो जाते हैं! उजियाले से दमकता, रत्न और मणियों-सा चकाचौंध, आग की तरह धधकता या सबसे शुद्ध और चमकदार कीमती धातुओं की तरह चमचमाता—हमारे पवित्र परमेश्वर की सुंदरता ऐसी ही है।—यहेजकेल 1:25-28; प्रकाशितवाक्य 4:2, 3.

17, 18. (क) यशायाह पर उसके दर्शन का पहले क्या असर पड़ा? (ख) यहोवा ने यशायाह की हिम्मत बँधाने के लिए साराप को कैसे इस्तेमाल किया, और साराप ने जो किया उसका क्या अर्थ था?

17 लेकिन, परमेश्वर के इतना पवित्र होने की वजह से क्या हमें खुद को उसके सामने बहुत छोटा महसूस करना चाहिए? जवाब है, बेशक महसूस करना चाहिए। हम यहोवा के आगे वाकई बहुत छोटे हैं, इतने छोटे कि हम उसके साथ खुद की तुलना करने की बात तक नहीं सोच सकते, कहाँ यहोवा और कहाँ हम। लेकिन क्या इस एहसास की वजह से हम परमेश्वर से दूर चले जाएँगे? गौर कीजिए कि जब साराप यहोवा की पवित्रता का ऐलान कर रहे थे, तो यशायाह ने क्या कहा। “मैं ने कहा, हाय! हाय! मैं नाश हुआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठवाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठवाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है!” (यशायाह 6:5) जी हाँ, यहोवा की सर्वोच्च पवित्रता ने यशायाह को याद दिलाया कि वह किस कदर पाप में पड़ा हुआ असिद्ध इंसान है। पहले तो, परमेश्वर का वह वफादार सेवक इस एहसास की वजह से बेहाल हो गया और हिम्मत हार बैठा। मगर यहोवा ने उसे उस हाल में छोड़ नहीं दिया।

18 एक साराप ने फौरन इस भविष्यवक्ता की हिम्मत बँधायी। कैसे? यह शक्तिशाली आत्मिक प्राणी उड़कर वेदी के पास गया, वहाँ से जलता हुआ कोयला उठाकर उसे यशायाह के होठों से छुआया। इससे शायद आपको लगे कि यशायाह के लिए यह वाकया हिम्मत दिलानेवाला तो नहीं मगर दर्दनाक ज़रूर रहा होगा। मगर याद रखिए कि यह एक दर्शन है, और इसकी घटनाओं का गहरा लाक्षणिक अर्थ है। यशायाह एक वफादार यहूदी था। वह अच्छी तरह जानता था कि हर दिन मंदिर की वेदी पर पापों के प्रायश्‍चित्त के लिए बलिदान चढ़ाए जाते थे। और उस साराप ने प्यार से यशायाह को याद दिलाया कि चाहे वह “अशुद्ध होंठवाला” यानी एक असिद्ध इंसान है, फिर भी वह परमेश्वर के सामने शुद्ध ठहर सकता है। * यहोवा, एक असिद्ध और पापी इंसान को पवित्र मानने के लिए तैयार था—कम-से-कम कुछ हद तक।—यशायाह 6:6, 7.

19. हम असिद्ध होने के बावजूद कैसे कुछ हद तक पवित्र हो सकते हैं?

19 यह आज भी सच है। यरूशलेम की वेदी पर चढ़ाए जानेवाले वे सभी बलिदान आनेवाली एक महान सच्चाई, उस सिद्ध बलिदान की बस छाया थे जो सा.यु. 33 में यीशु मसीह ने चढ़ाया था। (इब्रानियों 9:11-14) अगर हम सचमुच अपने पापों का प्रायश्‍चित्त करें, अपने गलत मार्ग को छोड़कर सही मार्ग पर चलें और उस बलिदान पर विश्वास करें, तो हमें माफ किया जाएगा। (1 यूहन्ना 2:2) हम भी परमेश्वर के सामने शुद्ध विवेक के साथ खड़े रह पाएँगे। इसलिए, प्रेरित पतरस हमें याद दिलाता है: “लिखा है, कि पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।” (1 पतरस 1:16) ध्यान दीजिए कि यहोवा यह नहीं कहता कि हम उतने ही पवित्र हों जितना पवित्र वह है। वह कभी-भी हमसे कुछ ऐसा करने की उम्मीद नहीं करता जो हमारे लिए नामुमकिन है। (भजन 103:13, 14) इसके बजाय, यहोवा हमसे पवित्र होने को इसलिए कहता है, क्योंकि वह पवित्र है। असिद्ध होने के बावजूद, ‘प्रिय बालकों’ की तरह, हम पूरी-पूरी कोशिश करते हैं कि अपने परमेश्वर जैसे बनें। (इफिसियों 5:1) इसलिए हमें पवित्र होने की लगातार कोशिश करते रहने की ज़रूरत है। जैसे-जैसे हम आध्यात्मिक उन्नति करते हैं, हम दिन-ब-दिन “पवित्रता को सिद्ध” करने का काम करते हैं।—2 कुरिन्थियों 7:1.

20. (क) यह समझना क्यों ज़रूरी है कि हम अपने पवित्र परमेश्वर की नज़रों में शुद्ध हो सकते हैं? (ख) यशायाह ने जब जाना कि उसके पाप माफ किए गए हैं, तब उस पर कैसा असर हुआ?

20 यहोवा, ऐसी हर चीज़ से प्रेम करता है जो खरी और शुद्ध है। पाप से उसे घृणा है। (हबक्कूक 1:13) मगर वह हमसे घृणा नहीं करता। अगर हम पाप को उसी नज़र से देखते हैं जैसे यहोवा देखता है, यानी बुराई से घृणा और भलाई से प्रेम करें और यीशु मसीह के सिद्ध नक्शेकदम पर चलने की कोशिश करें, तो यहोवा हमारे पापों को माफ करेगा। (आमोस 5:15; 1 पतरस 2:21) जब हम यह समझ लेते हैं कि हम अपने पवित्र परमेश्वर की नज़र में शुद्ध ठहर सकते हैं, तो इसका हम पर बहुत गहरा असर होता है। याद कीजिए कि यहोवा की पवित्रता देखकर पहले यशायाह को अपनी अशुद्धता का एहसास हुआ। वह पुकार उठा: “हाय! मैं नाश हुआ।” मगर जब उसे यह समझ आया कि उसके पापों को माफ किया गया है, तो उसका नज़रिया बदला। जब यहोवा ने एक काम की ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए पूछा कि किसे भेजा जाए, तो यशायाह ने फौरन खुद को इस काम के लिए पेश किया हालाँकि उसे यह नहीं मालूम था कि उसे क्या करना होगा। उसने जोश से भरकर कहा: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।”—यशायाह 6:5-8.

21. हमारे पास यह विश्वास करने का क्या आधार है कि हम पवित्रता का गुण पैदा कर सकते हैं?

21 हम पवित्र परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं, हमारे अंदर अच्छे गुण डाले गए हैं और हमें आध्यात्मिक बातों को समझने और आध्यात्मिक काम करने की काबिलीयत दी गयी है। (उत्पत्ति 1:26) इसलिए, हम सभी के लिए पवित्र होना मुमकिन है। जब हम पवित्रता का गुण बढ़ाने की कोशिश करते हैं, तो यहोवा बड़ी खुशी से हमारी मदद करता है। ऐसा करते वक्‍त, हम अपने पवित्र परमेश्वर के और करीब आते जाएँगे। इतना ही नहीं, जब हम आनेवाले अध्यायों में यहोवा के गुणों पर ध्यान देंगे, तो हम देखेंगे कि उसके करीब आने के और भी कई ज़बरदस्त कारण हैं!

^ पैरा. 18 “अशुद्ध होंठवाला,” ये शब्द इस्तेमाल करना बिलकुल सही है, क्योंकि बाइबल में अकसर होंठों को, भाषा या बोली के लिए लाक्षणिक अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है। असिद्ध इंसानों में, बहुत-से पाप इसलिए होते हैं क्योंकि हम अपनी ज़बान का सही तरह से इस्तेमाल नहीं करते।—नीतिवचन 10:19; याकूब 3:2, 6.