इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्याय 10

अपनी शक्ति इस्तेमाल करने में “परमेश्वर के समान बनो”

अपनी शक्ति इस्तेमाल करने में “परमेश्वर के समान बनो”

1. असिद्ध इंसान अकसर किस छिपे हुए फंदे में फँस जाते हैं?

“मुमकिन नहीं कि जहाँ शक्ति हो वहाँ कोई छिपा हुआ फंदा न हो।” उन्नीसवीं सदी की एक कवियत्री के ये शब्द एक छिपे हुए खतरे की तरफ इशारा करते हैं, वह है: शक्ति का गलत इस्तेमाल। दुःख की बात है कि असिद्ध इंसान अकसर इस फंदे में फँस जाते हैं। जी हाँ, पूरे इतिहास में “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि ला[या] है।” (सभोपदेशक 8:9) शक्ति का इस्तेमाल, जिसमें प्रेम न हो, इंसानों पर अनगिनित आफतें लाया है।

2, 3. (क) यहोवा जिस तरीके से अपनी शक्ति इस्तेमाल करता है, उसमें क्या बात कमाल की है? (ख) हमारे पास शक्ति के नाम पर क्या-क्या है और यह तमाम शक्ति हमें कैसे इस्तेमाल करनी चाहिए?

2 लेकिन, क्या यह कमाल की बात नहीं कि यहोवा परमेश्वर जिसके पास असीम शक्ति है, इसका गलत इस्तेमाल कभी नहीं करता? जैसा हम पिछले अध्यायों में देख चुके हैं, वह अपनी सृजने की, नाश करने की, रक्षा करने की या बहाल करने की शक्ति हमेशा अपने प्यार-भरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करता है। यह समझने के बाद कि वह किस तरीके से अपनी शक्ति इस्तेमाल करता है, हम उसके करीब खिंचे चले आते हैं। इसी से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम भी अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने में ‘परमेश्वर के समान बनें।’ (इफिसियों 5:1, हिन्दुस्तानी बाइबिल) लेकिन हम अदना इंसानों के पास क्या शक्ति है?

3 याद रहे कि इंसान को ‘परमेश्वर के स्वरूप’ और समानता में रचा गया था। (उत्पत्ति 1:26, 27) इसलिए हमारे पास भी शक्ति है, चाहे थोड़ी ही सही। हमारे पास जो शक्ति है उसमें अलग-अलग काम करने की काबिलीयत; दूसरों पर नियंत्रण रखने या उन पर अधिकार चलाने की शक्ति; दूसरों पर, खासकर जो हमें प्यार करते हैं उन पर प्रभाव डालने की क्षमता; हमारी शारीरिक ताकत (बल); या हमारी धन-संपत्ति शामिल है। यहोवा के बारे में भजनहार ने कहा: “जीवन का सोता तेरे ही पास है।” (भजन 36:9) इसलिए, जो भी जायज़ अधिकार या शक्ति हमारे पास है वह सीधे तौर पर या घूम-फिरकर परमेश्वर ही से मिलती है। इसलिए हम यह शक्ति इस ढंग से इस्तेमाल करना चाहेंगे जिससे उसे खुशी मिले। हम यह कैसे कर सकते हैं?

प्यार बेहद ज़रूरी है

4, 5. (क) शक्ति का सही इस्तेमाल करने के लिए क्या ज़रूरी है और परमेश्वर की अपनी मिसाल यह कैसे ज़ाहिर करती है? (ख) प्रेम, शक्ति का सही इस्तेमाल करने में कैसे हमारी मदद करेगा?

4 शक्ति का सही तरह इस्तेमाल करने का राज़ है, प्यार। खुद परमेश्वर की मिसाल से क्या यह ज़ाहिर नहीं होता? अध्याय 1 को याद कीजिए जिसमें परमेश्वर के चार खास गुणों—शक्ति, न्याय, बुद्धि और प्रेम पर चर्चा की गयी थी। इन चारों में सबसे बड़ा कौन-सा गुण है? प्रेम। पहला यूहन्ना 4:8 कहता है: “परमेश्वर प्रेम है।” जी हाँ, प्रेम यहोवा का स्वभाव है; वह जो कुछ करता है प्रेम की वजह से करता है। इसलिए वह जब भी अपनी शक्ति दिखाता है, तो उसकी वजह प्रेम होती है और इससे उन सभी का भला होता है जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं।

5 शक्ति का सही इस्तेमाल करने में भी प्रेम हमारी मदद करता है। आखिर, बाइबल हमें बताती है कि प्रेम “कृपाल” है और “अपनी भलाई नहीं चाहता।” (1 कुरिन्थियों 13:4, 5) इसलिए, प्रेम हमें उन लोगों के साथ कठोरता या क्रूरता से व्यवहार करने से रोकेगा, जिन पर हम कुछ हद तक अधिकार रखते हैं। इसके बजाय, हम दूसरों के साथ इज़्ज़त से पेश आएँगे और उनकी ज़रूरतों और भावनाओं को अपनी ज़रूरतों और भावनाओं से ज़्यादा अहमियत देंगे।—फिलिप्पियों 2:3, 4.

6, 7. (क) परमेश्वर का भय क्या है, और यह गुण क्यों हमें शक्ति का गलत इस्तेमाल करने से रोकेगा? (ख) परमेश्वर को नाराज़ न करने के डर और उसके लिए प्रेम के बीच क्या नाता है, मिसाल देकर समझाइए।

6 प्रेम एक और गुण से जुड़ा है, जो हमें शक्ति का गलत इस्तेमाल करने से दूर रखता है। वह है, परमेश्वर का भय। इस गुण की अहमियत क्या है? नीतिवचन 16:6 कहता है: “यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं।” शक्ति का गलत इस्तेमाल वाकई ऐसी बुराई है जिससे हमें बचना चाहिए। परमेश्वर का भय हमें उन लोगों के साथ बुरा सलूक करने से रोकेगा जिन पर हमारा अधिकार है। क्यों? इसलिए कि उनके साथ हम जैसा भी व्यवहार करते हैं उसके लिए हमें परमेश्वर को लेखा देना होगा। (नहेमायाह 5:1-7, 15) मगर परमेश्वर का भय इससे भी बढ़कर है। “भय” के लिए मूल भाषाओं में इस्तेमाल होनेवाले शब्दों का अकसर मतलब होता है, परमेश्वर के लिए गहरी श्रद्धा और विस्मय। इस तरह बाइबल भय को परमेश्वर के प्रेम के साथ जोड़ती है। (व्यवस्थाविवरण 10:12, 13) श्रद्धा और विस्मय की भावना में परमेश्वर को नाराज़ न करने का सही भय भी शामिल है—इसलिए नहीं कि अगर वह नाराज़ होगा तो इसका अंजाम बुरा होगा बल्कि इसलिए कि हम उससे सच्चा प्यार करते हैं।

7 इसे समझने के लिए एक मिसाल लीजिए: एक छोटे लड़के और उसके पिता के बीच जो प्यार और विश्वास का रिश्ता होता है, ज़रा उसके बारे में सोचिए। लड़का महसूस कर सकता है कि पिता को उससे प्यार है और वह उसकी परवाह करता है। मगर उसे यह भी पता है कि पिता उससे क्या चाहता है और अगर वह शरारत करेगा तो उसे पिता से डांट या सज़ा भी मिलेगी। मगर लड़का अपने पिता से डर-डरकर नहीं जीता बल्कि वह उसे दिलो-जान से प्यार करता है। वह ऐसे काम करने की ताक में रहता है जिसे देखकर उसके पिता के चेहरे पर मुसकान खिल उठे। यही बात परमेश्वर के भय के बारे में भी सही है। हम अपने स्वर्गीय पिता, यहोवा से प्रेम करते हैं, इसलिए हम ऐसा कोई भी काम करने से डरते हैं जिससे “वह मन में अति खेदित” महसूस करे। (उत्पत्ति 6:6) इसके बजाय, हम उसके दिल को खुश करने के मौके ढूँढ़ते हैं। (नीतिवचन 27:11) इसलिए हम अपनी शक्ति का सही इस्तेमाल करना चाहते हैं। आइए देखें कि हम ऐसा कैसे कर सकते हैं।

परिवार में

8. (क) परिवार में पतियों को क्या अधिकार मिला है, और इस अधिकार का इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए? (ख) पति कैसे दिखा सकता है कि वह अपनी पत्नी का आदर करता है?

8 सबसे पहले परिवार पर गौर कीजिए। इफिसियों 5:23 कहता है: “पति पत्नी का सिर है।” पति को परमेश्वर से मिले इस अधिकार का कैसे इस्तेमाल करना चाहिए? बाइबल पतियों से कहती है कि वे अपनी पत्नी के साथ ‘समझदारी से रहें, उसे निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करें।’ (1 पतरस 3:7, NHT) यूनानी संज्ञा जिसका अनुवाद “आदर” किया है, उसका मतलब है “मूल्यवान, महत्वपूर्ण, . . . इज़्ज़त के काबिल।” इस शब्द के दूसरे रूपों का अनुवाद ‘उपहार’ और “कीमती” किया गया है। (प्रेरितों 28:10, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; 1 पतरस 2:7) एक पति अगर अपनी पत्नी का आदर करता है तो वह कभी उसे मारेगा-पीटेगा नहीं; न ही वह उसका अपमान करेगा न ही मज़ाक उड़ाएगा, ताकि पत्नी यह न समझने लगे कि उसकी कोई कीमत नहीं। इसके बजाय, वह उसको अनमोल समझता है और उसके साथ इज़्ज़त से पेश आता है। वह घर के अंदर और बाहर भी, अपनी बातों और कामों से दिखाता है कि वह उसके लिए कीमती है। (नीतिवचन 31:28) ऐसा पति न सिर्फ अपनी पत्नी का प्यार और आदर पाता है, बल्कि इससे भी बढ़कर परमेश्वर का अनुग्रह पाता है।

पति और पत्नी एक-दूसरे के साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आकर अपनी शक्ति का सही इस्तेमाल करते हैं

9. (क) पत्नियों को परिवार में क्या अधिकार हासिल है? (ख) अपनी काबिलीयतों से पति का साथ देने में क्या बात पत्नी की मदद करेगी, और इसका नतीजा क्या होगा?

9 पत्नियों के पास भी परिवार में कुछ हद तक अधिकार या शक्ति होती है। बाइबल ऐसी भक्त स्त्रियों के बारे में बताती है जिन्होंने मुखियापन के सही दायरे में रहते हुए, अपने पतियों को अच्छे फैसले करने में मदद दी या जब उन्होंने पति को गलत फैसला करते देखा तो उन्हें ऐसा करने से रोका। (उत्पत्ति 21:9-12; 27:46–28:2) हो सकता है कि पत्नी का दिमाग पति से ज़्यादा तेज़ हो, या उसमें ऐसी दूसरी खूबियाँ हों जो पति में नहीं। फिर भी, उसके मन में अपने पति के लिए “गहरी इज़्ज़त” (NW) होनी चाहिए और उसके ‘ऐसे आधीन रहना चाहिए जैसे प्रभु के।’ (इफिसियों 5:22, 33) अगर एक पत्नी यह सोचकर चले कि उसे अपने कामों से परमेश्वर को खुश करना है, तो वह अपनी काबिलीयतों से अपने पति का साथ देगी, न कि उसे नीचा दिखाने या उस पर रोब जमाने की कोशिश करेगी। ऐसी “बुद्धिमान स्त्री” अपने पति के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर परिवार को और भी मज़बूत करने के लिए काम करती है। इस तरह परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता भी शांतिमय होता है।—नीतिवचन 14:1.

10. (क) परमेश्वर ने माता-पिता को क्या अधिकार दिया है? (ख) “अनुशासन” शब्द का मतलब क्या है, और यह कैसे दिया जाना चाहिए? (फुटनोट भी देखिए।)

10 माता-पिता को भी परमेश्वर ने अधिकार या शक्ति दी है। बाइबल सलाह देती है: “पिताओ, अपने बच्चों को क्रोध न दिलाओ, वरन्‌ प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में उनका पालन-पोषण करो।” (इफिसियों 6:4, NHT) बाइबल में, शब्द “अनुशासन” का मतलब “परवरिश, तालीम, हिदायत” हो सकता है। बच्चों को अनुशासन की ज़रूरत होती है; वे ऐसे माहौल में अच्छी तरह फलते-फूलते हैं जहाँ उन्हें साफ-साफ बताया जाता है कि उन्हें किन नियमों को मानना है, उनकी हदें और सीमाएँ क्या हैं। बाइबल बताती है कि ऐसा अनुशासन या हिदायत प्यार की वजह से दिए जाने चाहिए। (नीतिवचन 13:24) इसलिए, “छड़ी की ताड़ना” का कभी-भी गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, जिससे बच्चे की भावनाओं को ठेस पहुँचे या उसे शारीरिक चोट पहुँचे। * (नीतिवचन 22:15; 29:15) जब माता-पिता प्यार से नहीं बल्कि सख्ती और कठोरता से अनुशासन देते हैं, तो वे अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करते हैं और यह बच्चे की भावनाओं को कुचल सकता है। (कुलुस्सियों 3:21) दूसरी तरफ, अगर सही मात्रा में और ठीक तरीके से अनुशासन दिया जाए, तो इससे बच्चे को महसूस होता है कि उसके माता-पिता उससे प्यार करते हैं और वे उसे एक अच्छा इंसान बनाने के लिए उसकी चिंता करते हैं।

11. बच्चे अपनी शक्ति का सही इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?

11 बच्चों के बारे में क्या? वे अपनी शक्ति का सही इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? नीतिवचन 20:29 कहता है: “जवानों का गौरव उनका बल है।” बेशक जवानों के लिए अपना बल और जोश इस्तेमाल करने का सबसे बढ़िया तरीका है, अपने “[महान] सृजनहार” की जी-जान से सेवा करना। (सभोपदेशक 12:1) नौजवानों को हमेशा याद रखना चाहिए कि वे जो कुछ करते हैं, उसका असर उनके माता-पिता की भावनाओं पर होता है। (नीतिवचन 23:24, 25) जब बच्चे, परमेश्वर का भय माननेवाले अपने माता-पिता की आज्ञा मानते हैं और सही राह पर चलते हैं, तो उनके माता-पिता का दिल आनंदित होता है। (इफिसियों 6:1) ऐसे चालचलन से “प्रभु . . . प्रसन्न होता है।”—कुलुस्सियों 3:20.

कलीसिया में

12, 13. (क) कलीसिया में अपने अधिकार के बारे में प्राचीनों का नज़रिया कैसा होना चाहिए? (ख) उदाहरण देकर समझाइए कि प्राचीनों को क्यों अपने झुंड की रखवाली कोमलता से करनी चाहिए।

12 यहोवा ने कलीसिया में अगुवाई के लिए ओवरसियरों को ठहराया है। (इब्रानियों 13:17) इन काबिल भाइयों को परमेश्वर से मिले अधिकार का इस्तेमाल करके झुंड की ज़रूरी देखभाल करनी चाहिए ताकि उनकी आध्यात्मिक खुशहाली बढ़ती चली जाए। क्या प्राचीनों का पद उन्हें अपने संगी भाई-बहनों पर रोब जमाने का हकदार बनाता है? बिलकुल नहीं! प्राचीनों के लिए ज़रूरी है कि वे कलीसिया में अपनी ज़िम्मेदारी के बारे में संतुलित नज़रिया रखें और नम्र हों। (1 पतरस 5:2, 3) बाइबल ओवरसियरों से कहती है: “परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उसने अपने प्रिय पुत्र के रक्‍त से प्राप्त किया है।” (प्रेरितों 20:28, नयी हिन्दी बाइबिल) यही सबसे बड़ी वजह है कि क्यों झुंड के हर सदस्य के साथ कोमलता से पेश आना ज़रूरी है।

13 इसे समझने के लिए हम यह उदाहरण ले सकते हैं। आपका एक करीबी दोस्त अपनी किसी कीमती चीज़ की देखभाल करने के लिए आपसे कहता है। आप जानते हैं कि आपके दोस्त ने इस चीज़ को बहुत बड़ी कीमत देकर पाया है। तो क्या आप उस अमानत को बहुत संभालकर, हद-से-ज़्यादा एहतियात के साथ नहीं रखेंगे? उसी तरह, परमेश्वर ने प्राचीनों को अपनी एक बहुत ही बेशकीमती चीज़ संभालने की ज़िम्मेदारी सौंपी है, वह है: कलीसिया, जिसके सदस्यों की तुलना भेड़ों से की गयी है। (यूहन्ना 21:16, 17) यहोवा को अपनी भेड़ें बेहद प्यारी हैं—इतनी प्यारी कि उसने उन्हें अपने एकलौते पुत्र, यीशु मसीह का कीमती लहू देकर मोल लिया है। यहोवा ने अपनी इन भेड़ों के लिए सबसे बड़ी कीमत अदा की है। नम्र प्राचीन इस बात को हमेशा ध्यान में रखकर यहोवा की भेड़ों के साथ प्यार से पेश आते हैं।

“जीभ” की शक्ति

14. हमारी जीभ में क्या शक्ति है?

14 बाइबल कहती है: “जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं।” (नीतिवचन 18:21) वाकई, हमारी जीभ से बहुत नुकसान हो सकता है। हममें से ऐसा कौन है जिसका दिल कोई कड़वी या नश्तर चुभोनेवाली बात सुनकर तड़पा न हो? मगर इसी ज़बान में बिगड़े हुए को दुरुस्त करने की भी शक्ति है। नीतिवचन 12:18 कहता है: “बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।” जी हाँ, अच्छे और हिम्मत बढ़ानेवाले शब्द, दिल पर मरहम का काम करते हैं जिससे बहुत चैन मिलता है। आइए कुछ मिसालों पर गौर करें।

15, 16. हम दूसरों का हौसला बढ़ाने के लिए किन तरीकों से अपनी जीभ का इस्तेमाल कर सकते हैं?

15 पहला थिस्सलुनीकियों 5:14 (NW) हमसे गुज़ारिश करता है: ‘हताश प्राणियों को सांत्वना’ दो। जी हाँ, कभी-कभी यहोवा के वफादार सेवकों को भी हताशा से जूझना पड़ता है। हम ऐसों की मदद कैसे कर सकते हैं? साफ शब्दों में उनकी सच्ची तारीफ कीजिए ताकि वे जान सकें कि यहोवा की नज़र में वे कितने अनमोल हैं। बाइबल की आयतों के शक्तिशाली शब्दों से उन्हें दिखाइए कि यहोवा सचमुच “टूटे मनवालों” और “पिसे हुओं” की परवाह करता है और उनसे प्यार करता है। (भजन 34:18) जब हम दूसरों को दिलासा देने के लिए अपनी जीभ की शक्ति का इस्तेमाल करेंगे, तो हम दिखाएँगे कि हम अपने करुणामयी परमेश्वर की मिसाल पर चल रहे हैं, जो ‘दुखियों को शान्ति देता है।’—2 कुरिन्थियों 7:6, NHT.

16 हम अपनी जीभ की शक्ति से दूसरों की हिम्मत भी बंधा सकते हैं, जिसकी उन्हें सख्त ज़रूरत है। क्या हमारे किसी भाई या बहन के अज़ीज़ की मौत हो गयी है? हमदर्दी भरे शब्दों से हम उनके लिए अपनी परवाह और चिंता ज़ाहिर कर सकते हैं और इससे उनके दुःखी दिल को दिलासा मिल सकता है। क्या एक बुज़ुर्ग भाई या बहन को ऐसा महसूस होता है जैसे किसी को उनकी ज़रूरत नहीं? सोच-समझकर कहे गए शब्दों से बुज़ुर्गों को यह यकीन दिलाया जा सकता है कि उनकी अभी-भी ज़रूरत है और उनकी कदर की जाती है। क्या कोई बहुत वक्‍त से बीमार है? फोन पर या खुद उससे मिलकर चंद प्यार-भरे शब्द बोलने से हम उस बीमार इंसान का हौसला बढ़ा सकते हैं। हमारा सिरजनहार कितना खुश होता होगा जब हम अपनी जीभ की शक्ति से ऐसे बोल बोलते हैं, “जो उन्नति के लिये उत्तम” हैं!—इफिसियों 4:29.

सुसमाचार सुनाना—अपनी शक्ति इस्तेमाल करने का सबसे बेहतरीन तरीका

17. दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए हम किस खास तरीके से अपनी जीभ का इस्तेमाल कर सकते हैं, और हमें ऐसा क्यों करना चाहिए?

17 अपनी जीभ की शक्ति इस्तेमाल करने का सबसे अहम तरीका है, दूसरों को परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी देना। नीतिवचन 3:27 कहता है: “जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्‍ति रहे, तो उनका भला करने से न रुकना।” दूसरों को जीवन बचानेवाला सुसमाचार सुनाना हमारे ऊपर एक कर्ज़ है। यहोवा ने इतनी उदारता से हमें जो यह ज़रूरी संदेश सौंपा है, उसे अपने तक रखना ठीक नहीं होगा। (1 कुरिन्थियों 9:16, 22) तो फिर, हमें किस हद तक यह काम करना चाहिए, इस बारे में यहोवा क्या चाहता है?

अपनी “सारी शक्‍ति” से यहोवा की सेवा करना

18. यहोवा हमसे क्या उम्मीद करता है?

18 यहोवा के लिए हमारा प्यार हमें प्रचार में पूरा-पूरा हिस्सा लेने के लिए उकसाता है। इस मामले में, यहोवा हमसे क्या उम्मीद करता है? वह हमसे जो चाहता है, वह हम सभी कर सकते हैं चाहे हमारे हालात कैसे भी क्यों न हों: “जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो।” (कुलुस्सियों 3:23) यीशु ने सबसे बड़ी आज्ञा दोहराते हुए कहा: “तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्‍ति से प्रेम रखना।” (मरकुस 12:30) जी हाँ, यहोवा हममें से हरेक से यह उम्मीद करता है कि वह तन-मन से उससे प्यार करे और उसकी सेवा करे।

19, 20. (क) सारे प्राण में हमारा मन, बुद्धि और शक्ति शामिल है, फिर भी मरकुस 12:30 में इनका अलग-से ज़िक्र क्यों किया गया है? (ख) यहोवा की सेवा तन-मन से करने का क्या मतलब है?

19 परमेश्वर की सेवा तन-मन से या सारे प्राण से करने का क्या मतलब है? तन-मन का मतलब है पूरा इंसान और उसकी तमाम शारीरिक और दिमागी काबिलीयतें। जब हमारे तन-मन या प्राण में सबकुछ आ गया, तो मरकुस 12:30 में हमारे मन, हमारी बुद्धि और शक्ति का अलग-से ज़िक्र क्यों किया गया है? एक उदाहरण पर गौर कीजिए। बाइबल के ज़माने में, एक इंसान अपने आपको (यानी अपने तन) को गुलामी में बेच सकता था। फिर भी, यह मुमकिन था कि वह दास अपने स्वामी की पूरे दिल से सेवा न कर रहा हो; वह शायद अपनी पूरी ताकत लगाकर या अपनी दिमागी काबिलीयत से अपने स्वामी के काम को आगे न बढ़ा रहा हो। (कुलुस्सियों 3:22) इन बातों को ध्यान में रखते हुए यीशु ने उन बाकी चीज़ों का इसलिए ज़िक्र किया ताकि वह इस बात पर ज़ोर दे सके कि हमें परमेश्वर की सेवा करते वक्‍त अपना सबकुछ लगा देना चाहिए और कुछ भी बाकी नहीं रख छोड़ना चाहिए। तन-मन से परमेश्वर की सेवा करने का मतलब है अपने आपको दे देना, उसकी सेवा में अपनी ताकत और शक्तियों को पूरा-पूरा इस्तेमाल करना।

20 तन-मन से सेवा करने का क्या यह मतलब है कि हम सभी को प्रचार के काम में एक बराबर वक्‍त और ताकत लगानी चाहिए? यह तो शायद ही मुमकिन हो, क्योंकि हर इंसान के हालात और काबिलीयतें अलग-अलग होती हैं। मिसाल के लिए, एक नौजवान जिसकी सेहत अच्छी है और जिसमें दमखम और जोश है वह प्रचार में शायद ज़्यादा समय दे पाए, मगर जो ढलती उम्र की वजह से कमज़ोर हो गए हैं, वे शायद इतना समय न दे पाएँ। एक अकेला इंसान जिस पर परिवार की ज़िम्मेदारियाँ नहीं हैं, वह शायद प्रचार में ज़्यादा हिस्सा ले पाए, जबकि एक परिवारवाला ऐसा न कर पाए। अगर हमारे पास ताकत है और हमारे हालात ऐसे हैं कि हम प्रचार में काफी कुछ कर पाते हैं, तो हमें इसके लिए कितना धन्यवाद देना चाहिए! बेशक, हम ऐसे नहीं बनना चाहेंगे जो हमेशा अपने काम की दूसरों के साथ तुलना करके, उनकी नुक्ताचीनी करे। (रोमियों 14:10-12) इसके बजाय, हम दूसरों का हौसला बढ़ाने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल करेंगे।

21. अपनी शक्ति इस्तेमाल करने का सबसे बेहतरीन और महत्त्वपूर्ण तरीका क्या है?

21 यहोवा ने शक्ति का सही इस्तेमाल करने के मामले में सबसे श्रेष्ठ मिसाल कायम की है। असिद्ध इंसान होने के बावजूद, हम उसकी मिसाल पर चलने की पूरी कोशिश करना चाहेंगे। हम अपनी शक्ति का सही इस्तेमाल कर सकते हैं, अगर हम उन लोगों के साथ इज़्ज़त से पेश आएँ जो हमारे अधीन हैं। इसके अलावा, हम जीवन बचानेवाला यह प्रचार काम तन-मन से करना चाहते हैं, जिसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी यहोवा ने हमें सौंपी है। (रोमियों 10:13, 14) याद रहे, जब आप अपना सर्वोत्तम देते हैं, और तन-मन से देते हैं तो इससे यहोवा खुश होता है। हमें समझनेवाले और प्यार करनेवाले ऐसे परमेश्वर की सेवा करते वक्‍त, क्या आपका दिल आपको वह सब करने के लिए नहीं उभारता जो आपके बस में है? अपनी शक्ति इस्तेमाल करने का इससे बेहतर और महत्त्वपूर्ण तरीका और कोई नहीं है।

^ पैरा. 10 बाइबल के ज़माने में, “छड़ी” के लिए इब्रानी में जो शब्द इस्तेमाल होता था उसका मतलब था एक ऐसी लकड़ी या लाठी, जो एक चरवाहा अपनी भेड़ों को हाँकने के लिए इस्तेमाल करता है। (भजन 23:4) उसी तरह माता-पिता के अधिकार की “छड़ी” यह सुझाती है कि वे अपने बच्चों को प्यार से सही राह दिखाएँ, न कि कठोरता से या बेरहमी से उन्हें सज़ा दें।