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अध्याय 14

यहोवा “बहुतों की छुड़ौती” का इंतज़ाम करता है

यहोवा “बहुतों की छुड़ौती” का इंतज़ाम करता है

1, 2. इंसानों की हालत बाइबल में कैसे बयान की गयी है, और इससे निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता कौन-सा है?

“सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।” (रोमियों 8:22) प्रेरित पौलुस के ये शब्द दिखाते हैं कि हम किस लाचार हालत में हैं। इंसानी नज़र से देखें, तो दुःख-तकलीफ, पाप और मौत से बाहर निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता। मगर यहोवा, इंसानों की तरह लाचार नहीं है। (गिनती 23:19) न्याय के परमेश्वर ने हमारे लिए इस तकलीफ से बाहर निकलने का रास्ता तैयार किया है। यह रास्ता, छुड़ौती का इंतज़ाम कहलाता है।

2 छुड़ौती, यहोवा की तरफ से इंसान को मिला सबसे नायाब तोहफा है। यह हमें पाप और मौत से छुटकारा दिला सकती है। (इफिसियों 1:7) स्वर्ग में या ज़मीन पर फिरदौस में अनंत जीवन पाने की आशा का आधार भी यही है। (यूहन्ना 3:16; 1 पतरस 1:4, 5) मगर छुड़ौती असल में है क्या? यह कैसे हमें यहोवा के सर्वोत्तम न्याय के बारे में सिखाती है?

छुड़ौती की ज़रूरत कैसे पैदा हुई

3. (क) छुड़ौती की ज़रूरत क्यों पैदा हो गयी? (ख) परमेश्वर आदम की संतान पर से मौत की सज़ा को क्यों खारिज नहीं कर सकता था?

3 आदम के पाप की वजह से छुड़ौती की ज़रूरत पैदा हुई थी। परमेश्वर की आज्ञा न मानकर, आदम अपनी संतान के लिए विरासत में बीमारी, दुःख-दर्द और मौत छोड़ गया। (उत्पत्ति 2:17; रोमियों 8:20) परमेश्वर जज़्बाती होकर मौत की सज़ा को खारिज नहीं कर सकता था। अगर वह ऐसा करता, तो अपने ही ठहराए इस नियम के खिलाफ जाता: “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है।” (रोमियों 6:23) और अगर यहोवा अपने ही न्याय के स्तरों को नकार देता, तो सारे विश्व में न्याय नाम की चीज़ ही न रहती और हर कोई अपनी मनमानी करता!

4, 5. (क) शैतान ने परमेश्वर पर कैसे झूठे इलज़ाम लगाए, और यहोवा के लिए इन इलज़ामों का जवाब देना क्यों ज़रूरी था? (ख) शैतान ने यहोवा के वफादार सेवकों पर क्या इलज़ाम लगाया?

4 जैसा हम अध्याय 12 में देख चुके हैं, अदन की बगावत ने और भी बड़े-बड़े मसले खड़े कर दिए थे। शैतान ने परमेश्वर के अच्छे नाम पर कलंक लगाया। दरअसल, उसने यहोवा पर यह इलज़ाम लगाया कि वह एक झूठा और ऐसा बेरहम तानाशाह है जो अपने प्राणियों की आज़ादी छीन लेता है। (उत्पत्ति 3:1-5) परमेश्वर का उद्देश्य था कि यह धरती धर्मी इंसानों से भर जाए मगर शैतान ने, कुछ देर के लिए ही सही, परमेश्वर के इस उद्देश्य में बाधा डालकर उस पर अपने मकसद में नाकाम होने का इलज़ाम लगाया। (उत्पत्ति 1:28; यशायाह 55:10, 11) अगर यहोवा इन इलज़ामों का जवाब न देता, तो उसके बहुत-से बुद्धिमान प्राणियों का उसकी हुकूमत पर से भरोसा उठ जाता।

5 शैतान ने यहोवा के वफादार सेवकों पर भी झूठा इलज़ाम लगाया। उसने दावा किया कि वे सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए परमेश्वर की सेवा करते हैं, और अगर उन पर ज़रा भी दबाव डाला जाए, तो उनमें से एक भी परमेश्वर का वफादार नहीं रहेगा। (अय्यूब 1:9-11) ये मसले इंसान की दुर्दशा से कहीं ज़्यादा अहमियत रखते थे। यहोवा ने महसूस किया कि शैतान के इन झूठे इलज़ामों का जवाब देना बेहद ज़रूरी है और यह सही भी था। मगर परमेश्वर इन मसलों का जवाब देने के साथ-साथ इंसानों को कैसे बचा सकता था?

छुड़ौती—बराबर कीमत

6. परमेश्वर ने इंसान का उद्धार करने के लिए जो इंतज़ाम किया है, उसके लिए बाइबल में कौन-से कुछ शब्द इस्तेमाल किए गए हैं?

6 यहोवा ने जो हल निकाला, कोई भी इंसान उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता था। यह उसकी परम दया के साथ-साथ उसके अगम न्याय का सबूत था। फिर भी, यह हल बहुत ही सीधा-सादा था। शास्त्र में इसका ज़िक्र अलग-अलग शब्दों से किया गया है जैसे मोल लेना, मेल-मिलाप और प्रायश्‍चित्त करना। (दानिय्येल 9:24; गलतियों 3:13; कुलुस्सियों 1:20; इब्रानियों 2:17) लेकिन, जो शब्द यीशु ने इस्तेमाल किया, वह सबसे बेहतरीन तरीके से इस इंतज़ाम के बारे में बताता है। उसने कहा: “मनुष्य का पुत्र, वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल किई जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे: और बहुतों की छुड़ौती [यूनानी, लीट्रान] के लिये अपने प्राण दे।”—मत्ती 20:28.

7, 8. (क) शास्त्र में “छुड़ौती” शब्द का क्या मतलब है? (ख) छुड़ौती में बराबरी का सिद्धांत किस तरह लागू होता है?

7 छुड़ौती क्या है? इसके लिए जो यूनानी शब्द यहाँ इस्तेमाल हुआ है, वह एक क्रिया से निकला है जिसका मतलब है, “छोड़ देना, आज़ाद करना।” यह शब्द, युद्ध के दौरान बन्दी बनाए गए लोगों की रिहाई की कीमत के लिए इस्तेमाल होता था। तो फिर, छुड़ौती की परिभाषा यह है कि किसी चीज़ को वापस खरीदने के लिए अदा की गयी कीमत। इब्रानी शास्त्र में, “छुड़ौती” के लिए शब्द (कोफेर), एक क्रिया से निकला है जिसका मतलब है “ढकना।” इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किसी की छुड़ौती देने का मतलब है, उसके पापों को ढांपना।भजन 65:3.

8 गौर करने लायक बात है कि थियोलॉजिकल डिक्शनरी ऑफ द न्यू टेस्टामेंट कहती है कि यह शब्द (कोफेर) “हमेशा किसी बराबर की चीज़ को दर्शाता है,” या किसी समान वस्तु को। इसलिए, वाचा के संदूक के ढक्कन का आकार बिलकुल संदूक के बराबर था, और उससे संदूक पूरी तरह ढक जाता था। * उसी तरह, पाप की छुड़ौती देने या उसे ढांपने के लिए, एक ऐसी कीमत अदा करना ज़रूरी था जो बिलकुल उसके बराबर हो, यानी पाप से जो नुकसान हुआ है उसे पूरी तरह से ढांप दे। इसलिए, इस्राएल को दी गयी परमेश्वर की कानून-व्यवस्था में कहा गया था: “प्राण की सन्ती प्राण का, आंख की सन्ती आंख का, दांत की सन्ती दांत का, हाथ की सन्ती हाथ का, पांव की सन्ती पांव का दण्ड देना।”—व्यवस्थाविवरण 19:21.

9. विश्वास करनेवाले मनुष्यों ने जानवरों की बलियाँ क्यों चढ़ायीं, और यहोवा की नज़र में ये बलिदान कैसे थे?

9 विश्वास करनेवाले मनुष्यों, जैसे हाबिल और उसके बाद के वफादार जनों ने परमेश्वर को जानवरों की बलियाँ चढ़ायीं। ऐसा करके, उन्होंने दिखाया कि उन्हें अपने पापी होने का एहसास है और इसलिए उन्हें छुड़ौती की ज़रूरत है। इतना ही नहीं, इन बलियों से उन्होंने अपना यह विश्वास दिखाया कि परमेश्वर अपने “वंश” के ज़रिए उन्हें छुटकारा दिलाने का वादा पूरा करेगा। (उत्पत्ति 3:15; 4:1-4; लैव्यव्यवस्था 17:11; इब्रानियों 11:4) यहोवा ने इन बलिदानों को मंज़ूर किया और अपने उपासकों को अनुग्रह दिखाते हुए धर्मी ठहराया। फिर भी, जानवरों की बलियाँ महज़ एक निशानी थीं। असल में, जानवरों का लहू, इंसान के पाप को ढांप नहीं सकता था, क्योंकि जानवर इंसान से कमतर हैं। (भजन 8:4-8) इसलिए, बाइबल कहती है: “[यह] अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लोहू पापों को दूर करे।” (इब्रानियों 10:1-4) ये बलियाँ, आनेवाले असली छुड़ौती बलिदान की सिर्फ एक तसवीर, या एक निशानी थीं।

“छुटकारे का बराबर दाम”

10. (क) छुड़ौती देनेवाले को किसके बराबर होना था, और क्यों? (ख) क्यों सिर्फ एक इंसान के बलिदान की ज़रूरत थी?

10 प्रेरित पौलुस ने कहा: “आदम में सब मरते हैं।” (1 कुरिन्थियों 15:22) इसलिए, छुड़ौती के लिए आदम के बिलकुल बराबर, यानी एक सिद्ध इंसान के मरने की ज़रूरत थी। (रोमियों 5:14) कोई और किस्म का जीव, न्याय के तराज़ू को बराबर नहीं कर सकता था। सिर्फ एक सिद्ध इंसान जिस पर आदम से लायी मौत की सज़ा लागू न होती हो, वही “छुटकारे का बराबर दाम,” यानी आदम के बिलकुल बराबर की कीमत अदा कर सकता था। (1 तीमुथियुस 2:6, NW) यह ज़रूरी नहीं था कि आदम के हर वंशज की बराबरी में अनगिनत करोड़ों इंसानों की बलि दी जाए। प्रेरित पौलुस ने समझाया: “एक मनुष्य [आदम] के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई।” (तिरछे टाइप हमारे; रोमियों 5:12) और “जब [एक] मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई,” तो परमेश्वर ने इस पाप से छुटकारे का इंतज़ाम भी “[एक] मनुष्य ही के द्वारा” किया। (1 कुरिन्थियों 15:21) वह कैसे?

“सब के लिए छुटकारे का बराबर दाम”

11. (क) इंसान का छुड़ानेवाला कैसे ‘हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखता’? (ख) आदम और हव्वा क्यों छुड़ौती से फायदा नहीं पा सकते थे? (फुटनोट देखिए।)

11 यहोवा ने इंतज़ाम किया कि एक सिद्ध मनुष्य अपनी मरज़ी से अपना जीवन बलिदान करे। रोमियों 6:23 के मुताबिक, “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है।” अपना जीवन बलिदान करके, इंसान के छुड़ानेवाले को ‘हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखना’ था। दूसरे शब्दों में कहें तो उसे आदम के पाप की मज़दूरी देनी पड़ती। (इब्रानियों 2:9; 2 कुरिन्थियों 5:21; 1 पतरस 2:24) न्याय के मुताबिक इस बलिदान का बहुत दूर-दूर तक असर होता। परमेश्वर की आज्ञा माननेवाले आदम के हर बच्चे पर से मौत की सज़ा को रद्द करके, यह छुड़ौती, पाप की शक्ति को उसकी जड़ से ही खत्म कर देती। *रोमियों 5:16.

12. उदाहरण देकर समझाइए कि कैसे एक कर्ज़ चुकाने से बहुत-से लोगों को फायदा होता है।

12 इसे समझने के लिए आइए एक उदाहरण लें: मान लीजिए कि आप एक ऐसे नगर में रहते हैं जहाँ के ज़्यादातर लोग एक बड़ी फैक्ट्री में काम करते हैं। आपको और आपके पड़ोसियों को अच्छा वेतन मिलता है और आपकी ज़िंदगी आराम से कट रही है। लेकिन, फिर एक दिन अचानक फैक्ट्री पर ताला लग जाता है। क्यों? फैक्ट्री का मैनेजर बेईमान निकला और उसने पूरी फैक्ट्री का दिवाला पिटवा दिया। अब आपके पास काम नहीं है और अपने पड़ोसियों की तरह आप अपना खर्च नहीं चला पा रहे। सिर्फ एक आदमी की बेईमानी की वजह से, आपकी पत्नी, बच्चों और आपके लेनदारों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। क्या इस मुसीबत से बाहर निकलने की कोई सूरत है? हाँ, ज़रूर है! एक धनवान सज्जन इस मामले को अपने हाथ में लेने का फैसला करता है। वह जानता है कि इस फैक्ट्री की कितनी अहमियत है। इस फैक्ट्री में काम करनेवालों और उनके परिवारों से भी उसे हमदर्दी है। इसलिए वह कंपनी का सारा कर्ज़ चुकाने और फैक्ट्री को फिर से शुरू करवाने का इंतज़ाम करता है। उस एक कर्ज़ के चुकता होने से कितने ही कर्मचारी, उनके परिवार और लेनदार चैन की साँस लेते हैं। उसी तरह, आदम का कर्ज़ चुकता करने से करोड़ों लोगों को फायदा होता है।

छुड़ौती का इंतज़ाम कौन करता है?

13, 14. (क) यहोवा ने इंसानों के लिए छुड़ौती का इंतज़ाम कैसे किया? (ख) छुड़ौती की कीमत किसे अदा की जाती है और यह कीमत अदा करना ज़रूरी क्यों था?

13 सिर्फ यहोवा उस ‘मेम्ने’ का इंतज़ाम कर सकता था, “जो जगत का पाप उठा ले जाता है।” (यूहन्ना 1:29) मगर परमेश्वर ने इंसान को बचाने के लिए करोड़ों स्वर्गदूतों में से किसी एक को चुनकर यूँ ही नहीं भेज दिया। इसके बजाय, परमेश्वर ने उसे भेजा जो यहोवा के सेवकों के खिलाफ शैतान के इलज़ाम का ऐसा पक्का और अचूक जवाब देता कि इस बारे में फिर कभी कोई सवाल उठने की गुंजाइश ही न रहती। जी हाँ, यहोवा ने अपने एकलौते बेटे को भेजकर ‘जिस से उसका जी प्रसन्न’ था, अपनी तरफ से सबसे बड़ा और सबसे महान बलिदान किया। (यशायाह 42:1) परमेश्वर के बेटे ने भी खुशी-खुशी आत्मिक स्वरूप से ‘अपने को ख़ाली कर दिया।’ (फिलिप्पियों 2:7, हिन्दुस्तानी बाइबिल) यहोवा ने चमत्कार करके स्वर्ग में अपने पहिलौठे बेटे की ज़िंदगी और उसकी शख्सियत को वहाँ से हटाकर, यहूदी कुँवारी मरियम के गर्भ में डाला। (लूका 1:27, 35) मनुष्य बनने पर वह यीशु कहलाता। मगर, कानूनी तौर पर उसे दूसरा आदम कहा जा सकता था, क्योंकि वह बिलकुल आदम के समान था। (1 कुरिन्थियों 15:45, 47) इसलिए, यीशु पापी इंसानों की छुड़ौती के लिए अपनी ज़िंदगी का बलिदान कर सकता था।

14 यह छुड़ौती की कीमत किसे अदा की जाती? भजन 49:7 में साफ तौर पर कहा है: “परमेश्वर को।” लेकिन, क्या खुद यहोवा ने ही यह छुड़ौती देने का इंतज़ाम नहीं किया था? जी हाँ, मगर इसके मायने यह नहीं कि छुड़ौती एक बेमतलब और खानापूर्ति के लिए किया गया महज़ एक लेन-देन है, मानो जैसे एक जेब से पैसा निकालकर दूसरी जेब में डाल देना। हमारे लिए यह समझना ज़रूरी है कि छुड़ौती, किसी चीज़ का लेन-देन भर नहीं, बल्कि एक कानूनी लेन-देन है। यहोवा ने खुद भारी कीमत अदा करके छुड़ौती की कीमत का जो इंतज़ाम किया, उससे उसने ज़ाहिर किया कि वह खुद भी हर हाल में अपने सिद्ध न्याय की माँगों को पूरा करता है।—उत्पत्ति 22:7, 8, 11-13; इब्रानियों 11:17; याकूब 1:17.

15. यीशु के लिए दुःख-तकलीफ झेलना और मरना क्यों ज़रूरी था?

15 सामान्य युग 33 के वसंत में, यीशु मसीह ने खुद को कठिन परीक्षा से गुज़रने दिया जिसके आखिर में उसने छुड़ौती की कीमत अदा की। झूठे इलज़ाम लगाकर उसे कैद किया गया, दोषी ठहराया गया और मार डालने के लिए एक यातना स्तंभ पर कीलों से ठोंककर लटकाया गया, मगर यीशु ने यह सब चुपचाप सहन किया। क्या यीशु के लिए इन सारी तकलीफों को झेलना ज़रूरी था? हाँ यह ज़रूरी था, क्योंकि परमेश्वर के सेवकों की खराई पर उठाया गया मसला भी तो सुलझाना था। गौर करने लायक बात है कि जब यीशु एक नन्हा शिशु था, तब परमेश्वर ने उसे हेरोदेस के हाथों मरने नहीं दिया। (मत्ती 2:13-18) मगर जब यीशु बड़ा हुआ, तब वह उठाए गए मसलों को अच्छी तरह समझता था और शैतान के हमलों की चोट झेलने के लिए पूरी तरह तैयार था। * यीशु को बहुत ही बुरी तरह सताया गया, मगर फिर भी वह “पवित्र [“वफादार,” NW], और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग” रहा। ऐसा करके यीशु ने एक ही बार में बड़े ही ज़बरदस्त तरीके से यह ज़ाहिर कर दिया कि यहोवा के ऐसे सेवक भी हैं जो आज़माइशों के वक्‍त उसके वफादार रहते हैं। (इब्रानियों 7:26) तो फिर, ताज्जुब नहीं कि दम तोड़ते वक्‍त यीशु एक विजेता की तरह बोल पड़ा: “पूरा हुआ।”—यूहन्ना 19:30.

छुड़ाने का अपना काम पूरा करना

16, 17. (क) यीशु ने छुड़ाने का अपना काम कैसे जारी रखा? (ख) यीशु का ‘हमारे लिये परमेश्वर के साम्हने’ हाज़िर होना क्यों ज़रूरी था?

16 इंसान को छुड़ाने का यीशु का काम अभी पूरा नहीं हुआ था। यीशु की मौत के तीसरे दिन, यहोवा ने उसे मरे हुओं में से जिलाया। (प्रेरितों 3:15; 10:40) यह महान काम करके, यहोवा ने अपने बेटे को उसकी वफादारी का न सिर्फ इनाम दिया, बल्कि उसे परमेश्वर के महायाजक के नाते, इंसान को छुड़ाने का काम पूरा करने का मौका भी दिया। (रोमियों 1:4; 1 कुरिन्थियों 15:3-8) प्रेरित पौलुस समझाता है: “जब मसीह . . . महायाजक होकर आया, तो उस ने . . . बकरों और बछड़ों के लोहू के द्वारा नहीं, पर अपने ही लोहू के द्वारा एक ही बार पवित्र स्थान में प्रवेश किया, और अनन्त छुटकारा प्राप्त किया। क्योंकि मसीह ने उस हाथ के बनाए हुए पवित्र स्थान में जो सच्चे पवित्र स्थान का नमूना है, प्रवेश नहीं किया, पर स्वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि हमारे लिये अब परमेश्वर के साम्हने दिखाई दे।”—इब्रानियों 9:11, 12, 24.

17 मसीह अपना सचमुच का लहू स्वर्ग में नहीं ले जा सकता था। (1 कुरिन्थियों 15:50) इसके बजाय, उसका लहू जिसकी निशानी था उसे वह स्वर्ग ले गया: अपने बलि किए हुए सिद्ध इंसानी जीवन की कानूनी कीमत। फिर, परमेश्वर के सामने उसने, पापी इंसानों की छुड़ौती के लिए अपनी ज़िंदगी की यह कीमत औपचारिक रूप से पेश की। क्या यहोवा ने यह बलिदान स्वीकार किया? जी हाँ, इसका सबूत सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त में मिला, जब यरूशलेम में करीब 120 चेलों पर पवित्र आत्मा उंडेली गयी। (प्रेरितों 2:1-4) वह घटना वाकई बड़ी हैरतअंगेज़ थी, मगर छुड़ौती से मिलनेवाले फायदों की यह बस शुरूआत ही थी।

छुड़ौती के फायदे

18, 19. (क) मसीह के लहू से मुमकिन होनेवाले मेल-मिलाप से, लोगों के कौन-से दो दलों को फायदा होता है? (ख) “बड़ी भीड़” के लोगों को, आज और भविष्य में छुड़ौती से कौन-से कुछ फायदे हासिल होंगे?

18 कुलुस्सियों को लिखी अपनी पत्री में, पौलुस समझाता है कि परमेश्वर की प्रसन्नता इसी में थी कि मसीह के ज़रिए बाकी सब चीज़ों का अपने आप से मेल-मिलाप करवाए, यानी यातना स्तंभ पर यीशु के बहाए लहू से उनके साथ शांति कायम करे। पौलुस ये भी बताता है कि इस मेल-मिलाप में लोगों के दो अलग-अलग दल हैं। पहला, ‘स्वर्ग में की वस्तुएं’ और दूसरा, ‘पृथ्वी पर की वस्तुएं’। (कुलुस्सियों 1:19, 20; इफिसियों 1:10) पहला दल, 1,44,000 मसीहियों का है, जिनकी आशा है कि वे स्वर्ग में याजक बनकर सेवा करेंगे, साथ ही वे मसीह यीशु के साथ राजा बनकर धरती की प्रजा पर राज करेंगे। (प्रकाशितवाक्य 5:9, 10; 7:4; 14:1-3) उनके ज़रिए, एक हज़ार सालों के दरमियान आज्ञा माननेवाले इंसानों को धीरे-धीरे छुड़ौती के फायदे दिए जाएँगे।—1 कुरिन्थियों 15:24-26; प्रकाशितवाक्य 20:6; 21:3, 4.

19 ‘पृथ्वी पर की वस्तुएं’ वे लोग हैं जिन्हें फिरदौस बनी ज़मीन पर सिद्ध जीवन जीने की आशा है। प्रकाशितवाक्य 7:9-17 में उन्हें एक “बड़ी भीड़” कहा गया है जो आनेवाले “बड़े क्लेश” में से बचकर पार होगी। मगर छुड़ौती के फायदे पाने के लिए उन्हें तब तक इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। उन्होंने अभी से “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।” छुड़ौती पर विश्वास रखने की वजह से, वे आज भी इस प्यार-भरे इंतज़ाम से आध्यात्मिक फायदे पा रहे हैं। उन्हें परमेश्वर के मित्रों की हैसियत से धर्मी ठहराया गया है! (याकूब 2:23) यीशु के बलिदान की वजह से, वे “साहस के साथ अनुग्रह के सिंहासन के समीप” आ सकते हैं। (इब्रानियों 4:14-16, नयी हिन्दी बाइबिल) जब वे गलती करते हैं, तो उन्हें सच्ची माफी मिलती है। (इफिसियों 1:7) असिद्ध होने पर भी, उनका विवेक साफ है जिसकी वजह से वे खुश हैं। (इब्रानियों 9:9; 10:22; 1 पतरस 3:21) इस तरह, परमेश्वर से मेल-मिलाप होने की आशा भविष्य में पूरा होनेवाला कोई सपना नहीं, बल्कि आज की हकीकत है! (2 कुरिन्थियों 5:19, 20) हज़ार साल के राज्य के दौरान, उन्हें धीरे-धीरे “विनाश के दासत्व से छुटकारा” दिलाया जाएगा और आखिरकार वे “परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त” करेंगे।—रोमियों 8:21.

20. छुड़ौती के बारे में मनन करने का खुद आप पर क्या असर होता है?

20 छुड़ौती के लिए “प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद” हो! (रोमियों 7:25) छुड़ौती का सिद्धांत कितना सीधा-सा है, मगर इतना अगम कि हम विस्मय और श्रद्धा से भर जाते हैं। (रोमियों 11:33) और जब हम एहसानमंदी की भावना से इस पर मनन करते हैं, तो यह हमारे दिलों को छू जाता है, और हम न्याय के परमेश्वर के और करीब खिंचे चले आते हैं। भजनहार की तरह, हमारे पास हर वजह है कि हम यहोवा का गुणगान करें, जो “धर्म और न्याय से प्रीति रखता है।”—भजन 33:5.

^ पैरा. 8 निर्गमन 25:17-22 में, शब्द “ढकना,” कोफेर से जुड़े एक शब्द का अनुवाद है।

^ पैरा. 11 आदम और हव्वा छुड़ौती से फायदा नहीं पा सकते थे। मूसा की कानून-व्यवस्था में, जानबूझकर किसी का खून करनेवाले के बारे में यह सिद्धांत दिया गया था: “जो खूनी प्राणदण्ड के योग्य ठहरे उस से प्राणदण्ड के बदले में जुरमाना [या, छुड़ौती] न लेना।” (गिनती 35:31) ज़ाहिर है कि आदम और हव्वा मौत की सज़ा के लायक थे, क्योंकि उन्होंने जानबूझकर और अपनी मरज़ी से परमेश्वर की आज्ञा तोड़ी थी। ऐसा करके उन्होंने अनंत जीवन की अपनी आशा गँवा दी।

^ पैरा. 15 आदम के पाप को मिटाने के लिए यीशु को एक सिद्ध बालक की तरह नहीं बल्कि एक सिद्ध आदमी की तरह अपनी जान देनी थी। याद रखिए, आदम ने जानबूझकर पाप किया था और उसे अच्छी तरह पता था कि जो काम वह करने जा रहा है वह कितना गंभीर है और उसके क्या-क्या अंजाम निकलेंगे। इसलिए “अन्तिम आदम” बनने और उस पाप को ढांपने के लिए, यीशु को एक प्रौढ़ इंसान के नाते सबकुछ जानते-समझते हुए यहोवा का वफादार रहने का फैसला करना था। (1 कुरिन्थियों 15:45, 47) इस तरह, यीशु ने वफादार रहकर जो ज़िंदगी बितायी और मरकर जो बलिदान दिया, वह ‘धार्मिकता का एक ही कार्य’ था।—रोमियों 5:18, 19, NHT.