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अध्याय एक

परमेश्वर के बारे में सच्चाई क्या है?

परमेश्वर के बारे में सच्चाई क्या है?
  • क्या परमेश्वर सचमुच आपकी परवाह करता है?

  • परमेश्वर असल में कैसा है? क्या उसका कोई नाम है?

  • क्या हम परमेश्वर के करीब आ सकते हैं?

1, 2. सवाल पूछना अच्छा क्यों है?

क्या आपने कभी गौर किया है कि बच्चे किस तरह सवाल पूछते हैं? कई बच्चे बात करना सीखते नहीं कि बड़ों के आगे सवालों की झड़ी लगा देते हैं। वे बड़ी-बड़ी आँखें करके, मासूमियत से आपकी तरफ देखते और पूछते हैं: आसमान नीला क्यों है? तारे क्यों चमकते हैं? चिड़ियों को गाना किसने सिखाया? आप शायद उन्हें जवाब देने की पूरी कोशिश करें, मगर उनके सभी सवालों का जवाब देना आसान नहीं होता। क्योंकि आप चाहे कितना ही अच्छा जवाब क्यों न दें, वे तपाक से फिर पूछेंगे, ऐसा क्यों?

2 सवाल सिर्फ बच्चे नहीं पूछते बल्कि जैसे-जैसे हम सब बड़े होते हैं, हमारे मन में भी कई सवाल उठते हैं। हम ये सवाल इसलिए पूछते हैं ताकि यह जान सकें कि ज़िंदगी में किस राह पर चलना सही रहेगा और किन-किन खतरों से बचना होगा। कुछ सवाल हम इसलिए पूछते हैं क्योंकि पैदाइश से हमारे अंदर अलग-अलग बातों को जानने की ख्वाहिश होती है। इसलिए सवाल पूछना अच्छा है। लेकिन ऐसा मालूम पड़ता है कि ज़्यादातर लोग वक्‍त के गुज़रते सवाल पूछना छोड़ देते हैं, खासकर ज़िंदगी के कुछ अहम सवाल। और अगर पूछते भी हैं तो जवाब जानने की तकलीफ नहीं उठाते।

3. कुछ लोग ज़िंदगी के सबसे ज़रूरी सवालों के जवाब ढूँढ़ना क्यों छोड़ देते हैं?

3 ज़रा इस किताब की जिल्द पर दिए सवाल के बारे में सोचिए, और उन सवालों के बारे में भी जो इस किताब के शुरूआती लेख में या इस अध्याय के शुरू में दिए गए हैं। ये ज़िंदगी के कुछ सबसे ज़रूरी सवाल हैं। लेकिन बहुतों ने इनके जवाब ढूँढ़ना छोड़ दिया है। आखिर इसकी वजह क्या है? क्या इन सवालों के जवाब बाइबल में पाए जा सकते हैं? कुछ लोगों को लगता है कि बाइबल में दिए जवाबों को समझना बहुत मुश्किल है। कुछ इस डर से सवाल नहीं पूछते कि लोग उनकी हँसी न उड़ाएँ। और दूसरे ऐसे हैं जिन्हें लगता है कि इन सवालों की गुत्थी सुलझाना सिर्फ बड़े-बड़े धर्म-गुरुओं और ज्ञानियों के बस की बात है। इस बारे में आपकी क्या राय है?

4, 5. ज़िंदगी के ऐसे कुछ अहम सवाल क्या हैं जो शायद हमारे मन में उठें, और हमें क्यों इनके जवाब ढूँढ़ने चाहिए?

4 बेशक, आप इन बड़े-बड़े सवालों के जवाब ज़रूर जानना चाहेंगे। मिसाल के लिए, कभी-कभी आप सोचते होंगे: ‘आखिर ज़िंदगी का मकसद क्या है? क्या यही कि हम पैदा हों, कुछ साल जीएँ और बूढ़े होकर मर जाएँ? जिस परमेश्वर ने हम सबको रचा है, वह असल में कैसा है?’ ऐसे सवाल पूछना अच्छी बात है। और हम आपको बढ़ावा देते हैं कि जब तक आपको इनके सही-सही जवाब नहीं मिल जाते, तब तक आप हार न मानें। दुनिया के महान शिक्षक यीशु मसीह ने कहा था: “मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा।”मत्ती 7:7.

5 अगर आप इन अहम सवालों के जवाब ‘ढूँढ़ते रहें,’ तो आपकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। (नीतिवचन 2:1-5) इस बारे में लोग चाहे आपसे जो भी कहें, सच तो यह है कि इन सवालों के जवाब मौजूद हैं। आप उन्हें कहाँ पा सकते हैं? बाइबल में। इन जवाबों को समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं। और-तो-और, इन्हें जानने से न सिर्फ आपको सच्ची खुशी और एक सुनहरे भविष्य की आशा मिलेगी, बल्कि आज भी आप ज़िंदगी में सच्चा सुख पा सकेंगे। तो आइए सबसे पहले एक ऐसे सवाल पर ध्यान दें, जिसने कई लोगों को उलझन में डाल रखा है।

क्या परमेश्वर को हमारी कोई परवाह नहीं, क्या वह पत्थरदिल है?

6. बहुत-से लोग ऐसा क्यों सोचते हैं कि परमेश्वर को इंसान के दुःखों की कोई परवाह नहीं है?

6 कई लोग कहेंगे, ‘हाँ, बिलकुल।’ उनका कहना है कि ‘अगर परमेश्वर इंसान की परवाह करता, तो क्या आज दुनिया की यह हालत होती?’ जहाँ भी देखो, मार-काट मची है, लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं और चारों तरफ मुसीबतें-ही-मुसीबतें हैं। हमें खुद भी अपनी ज़िंदगी में कितने ही दुःख झेलने पड़ते हैं। ढेरों बीमारियाँ हैं, तकलीफें हैं या फिर अज़ीज़ों की मौत का गम। इसलिए बहुत-से लोग पूछते हैं, ‘अगर परमेश्वर को हमारी फिक्र होती तो वह इन मुसीबतों को आने ही क्यों देता?’

7. (क) धर्म-गुरुओं की वजह से क्यों कई लोग सोचते हैं कि परमेश्वर पत्थरदिल है? (ख) हम पर जो मुसीबतें आती हैं, उनके बारे में बाइबल असल में क्या सिखाती है?

7 इससे भी बदतर तो यह है कि कई बार लोग, धर्म-गुरुओं की बातें सुनकर सोचते हैं कि परमेश्वर बेरहम या पत्थरदिल है। वह कैसे? जब कोई हादसा होता है, तो धर्म-गुरु कहते हैं कि ऊपरवाले की यही मरज़ी थी। यह कहकर वे दुनिया की सारी मुसीबतों के लिए परमेश्वर को कसूरवार ठहराते हैं। लेकिन क्या परमेश्वर के बारे में ऐसा कहना सही है? इस बारे में बाइबल असल में क्या सिखाती है? याकूब 1:13 जवाब देता है: “जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।” ज़ाहिर है कि परमेश्वर दुनिया में फैली बुराई के लिए हरगिज़ ज़िम्मेदार नहीं। (अय्यूब 34:10-12) यह सच है कि वह बुरी घटनाओं को होने की इजाज़त देता है। मगर किसी काम की इजाज़त देने और खुद उसके लिए ज़िम्मेदार होने में बड़ा फर्क है।

8, 9. (क) आप क्या मिसाल देकर समझाएँगे कि बुराई की इजाज़त देने और उसके लिए ज़िम्मेदार होने में फर्क है? (ख) परमेश्वर ने इंसानों को बुरे रास्ते पर चलने की जो इजाज़त दी, उसे हम क्यों गलत नहीं ठहरा सकते?

8 आइए एक समझदार और प्यार करनेवाले पिता की मिसाल लें। उसका बेटा बड़ा तो हो गया है, मगर इस कदर ढीठ और बागी बन गया है कि पिता की एक नहीं सुनता। वह घर में नहीं रहना चाहता। इसलिए पिता उसे अपनी मरज़ी पर छोड़ देता है। घर से निकलकर वह लड़का बुरे-से-बुरा काम करता है और मुसीबतों में फँस जाता है। तो क्या अब उसकी मुसीबतों के लिए पिता को कसूरवार ठहराना सही होगा? बिलकुल नहीं। (लूका 15:11-13) उसी तरह, जब इंसानों ने गलत रास्ता चुनने का फैसला किया, तो परमेश्वर ने भी उन्हें अपनी मरज़ी पर छोड़ दिया। मगर इस वजह से उन पर जो मुसीबतें आयीं, उनके लिए वह कसूरवार नहीं था। इसलिए आज इंसान की सारी तकलीफों के लिए परमेश्वर पर इलज़ाम लगाना सरासर गलत होगा।

9 हमारा सिरजनहार बेहद बुद्धिमान और शक्तिशाली है। अगर उसने इंसानों को बुराई के रास्ते पर चलने दिया है तो ज़रूर इसका कोई वाजिब कारण होगा। वह कारण क्या था, यह हम इंसानों को बताना परमेश्वर के लिए ज़रूरी नहीं, फिर भी प्यार की खातिर उसने हमें यह कारण बताया है। इस बारे में आप अध्याय 11 में और ज़्यादा सीख सकेंगे। मगर आप इस बात का ज़रूर यकीन रख सकते हैं कि हमारी समस्याओं के लिए परमेश्वर ज़िम्मेदार नहीं है। इसके उलट, सिर्फ वही हमारे लिए छुटकारा पाने की आखिरी उम्मीद है!यशायाह 33:2.

10. हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्वर, बुराई के अंजामों को मिटा देगा?

10 एक और कारण से परमेश्वर को कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। वह यह कि परमेश्वर पवित्र है। (यशायाह 6:3) वह शुद्ध है, उसमें बुराई दूर-दूर तक नहीं। इसलिए हम उस पर पूरा भरोसा रख सकते हैं। ऐसा भरोसा हम दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं पर नहीं रख सकते, क्योंकि वे अकसर बेईमान निकलते हैं। और चाहे एक नेता ईमानदार भी हो, मगर बुराई के अंजामों को मिटाकर हालात सुधारना उसके बस में नहीं। लेकिन जहाँ तक परमेश्वर की बात है, वह सर्वशक्तिमान है। वह बुराई के सभी अंजामों को दूर करने की ताकत रखता है और ऐसा करेगा भी। जब परमेश्वर कार्रवाई करेगा, तो हमेशा-हमेशा के लिए बुराई को मिटा देगा!भजन 37:9-11.

हमारे साथ होनेवाली नाइंसाफी के बारे में परमेश्वर कैसा महसूस करता है?

11. (क) दुनिया में फैली नाइंसाफी के बारे में परमेश्वर कैसा महसूस करता है? (ख) आपको तकलीफें झेलता देखकर परमेश्वर को कैसा महसूस होता है?

11 इस बीच दुनिया में जो कुछ हो रहा है और आपको जो तकलीफें झेलनी पड़ रही हैं, उनके बारे में परमेश्वर कैसा महसूस करता है? बाइबल सिखाती है कि वह “न्याय से प्रीति” रखनेवाला परमेश्वर है। (भजन 37:28) इसलिए सही क्या है और गलत क्या, इसकी उसे बेहद परवाह है। वह हर तरह के अन्याय से नफरत करता है। बाइबल बताती है कि जब प्राचीन समय में हर कहीं बुराई फैल गयी थी, तो परमेश्वर “मन में अति खेदित हुआ” था। (उत्पत्ति 6:5, 6) परमेश्वर बदला नहीं है। (मलाकी 3:6) आज भी उसे यह देखकर घृणा आती है कि सारी दुनिया कैसे दुःख-तकलीफों से भर गयी है। लोगों के आँसू देखकर उसका दिल तड़प उठता है। तभी तो बाइबल कहती है कि “उस को तुम्हारी फिक्र है।”1 पतरस 5:7, हिन्दुस्तानी बाइबल।

बाइबल सिखाती है कि यहोवा प्यार करनेवाला सिरजनहार है जिसने पूरे जहान को बनाया है

12, 13. (क) हमारे अंदर प्यार जैसे अच्छे गुण क्यों हैं, और प्यार होने की वजह से हम दुनिया के दुःखों के बारे में कैसा महसूस करते हैं? (ख) आप क्यों यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर दुनिया की समस्याएँ दूर करने के लिए ज़रूर कदम उठाएगा?

12 हम क्यों यकीन के साथ कह सकते हैं कि इंसानों को दुःख झेलता देखकर परमेश्वर तड़प उठता है? इसके एक और सबूत पर गौर कीजिए। बाइबल सिखाती है कि इंसान को परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया था। (उत्पत्ति 1:26) तो हमारे अंदर अच्छे गुणों का होना दिखाता है कि ये गुण ज़रूर परमेश्वर में होंगे। मिसाल के लिए, क्या यह देखकर आपको बहुत दुःख नहीं होता कि बेकसूर लोगों के साथ नाइंसाफी हो रही है? अगर हाँ, तो यकीन मानिए कि आपको जितना दुःख होता है उससे कहीं ज़्यादा दुःख परमेश्वर को होता है।

13 परमेश्वर ने हमें जिन खूबियों के साथ बनाया है उनमें से एक है, प्यार करने की काबिलीयत। इससे पता चलता है कि वह खुद कैसा परमेश्वर है। बाइबल सिखाती है कि “परमेश्वर प्रेम है।” (1 यूहन्ना 4:8) हमारे अंदर प्यार का जज़्बा इसलिए है क्योंकि यह जज़्बा परमेश्वर में था। अगर दुनिया की सारी दुःख-तकलीफों और नाइंसाफी को मिटाना आपके बस में होता, तो क्या लोगों के लिए प्यार आपको ऐसा करने के लिए नहीं उकसाता? ज़रूर उकसाता! ठीक उसी तरह आप यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर सारी दुःख-तकलीफों और नाइंसाफी को ज़रूर मिटाएगा। इस किताब के शुरूआती लेख में जिन वादों का ज़िक्र किया गया है, वे सिर्फ एक सपना या कोरी कल्पना नहीं हैं। परमेश्वर के वादे हर हाल में पूरे होंगे! मगर इन वादों पर विश्वास करने के लिए आपको उस परमेश्वर के बारे में ज़्यादा जानना होगा जिसने ये वादे किए हैं।

परमेश्वर चाहता है कि आप उसे जानें

अगर आप किसी से अपनी जान-पहचान करना चाहते हैं, तो क्या आप उसे अपना नाम नहीं बताएँगे? परमेश्वर बाइबल के ज़रिए हमसे अपनी जान-पहचान करा रहा है

14. परमेश्वर का नाम क्या है, और हमें क्यों उसका इस्तेमाल करना चाहिए?

14 किसी से जान-पहचान करने के लिए आप क्या करते हैं? क्या आप उसे अपना नाम नहीं बताते? बिलकुल। तो क्या परमेश्वर का भी एक नाम है? कई धर्म कहते हैं कि उसका नाम “परमेश्वर” या “प्रभु” है। मगर ये परमेश्वर के नाम नहीं हैं। ये सिर्फ उपाधियाँ हैं, जैसे “राजा” और “राष्ट्रपति” उपाधियाँ हैं। बाइबल सिखाती है कि परमेश्वर की भी कई उपाधियाँ हैं और “परमेश्वर” और “प्रभु” इन्हीं में से दो हैं। मगर बाइबल यह भी सिखाती है कि परमेश्वर का अपना एक नाम है: यहोवा। भजन 83:18 कहता है: “केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” अगर आपकी बाइबल में यह नाम नहीं है, तो इसकी वजह जानने के लिए आप इस किताब में “परमेश्वर के नाम का इस्तेमाल और इसका मतलब” नाम का अतिरिक्त लेख देख सकते हैं। सच्चाई तो यह है कि परमेश्वर का नाम बाइबल की पुरानी हस्तलिपियों में हज़ारों बार आया है। इससे पता चलता है कि यहोवा खुद यह चाहता है कि आप उसका नाम जानें और उसे इस्तेमाल भी करें। एक तरह से वह बाइबल के ज़रिए हमसे अपनी जान-पहचान करा रहा है।

15. यहोवा नाम का मतलब क्या है?

15 परमेश्वर ने खुद को जो नाम दिया है वह गहरा मतलब रखता है। उसके नाम, यहोवा का मतलब है कि वह अपने हर वादे को पूरा कर सकता है और अपने मकसद को अंजाम दे सकता है। * परमेश्वर का नाम अपने आप में बेजोड़ है। इस नाम को धारण करने का हक सिर्फ उसी को है। यहोवा परमेश्वर कई तरीकों से बेजोड़ है, यानी उसके जैसा पूरे जहान में कोई नहीं है। वह कैसे?

16, 17. इन उपाधियों से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं: (क) “सर्वशक्‍तिमान”? (ख) ‘युग युग का राजा’? (ग) “सिरजनहार”?

16 हमने देखा कि भजन 83:18 यहोवा के बारे में यह कहता है: “केवल तू . . . परमप्रधान है।” उसी तरह, सिर्फ यहोवा को “सर्वशक्‍तिमान” कहा गया है। प्रकाशितवाक्य 15:3 कहता है: “हे सर्वशक्‍तिमान प्रभु परमेश्वर, तेरे कार्य्य बड़े, और अद्‌भुत हैं, हे युग युग के राजा, तेरी चाल ठीक और सच्ची है।” “सर्वशक्‍तिमान” की उपाधि से पता चलता है कि यहोवा, पूरे जहान में सबसे शक्तिशाली है। उसकी शक्ति असीम है; उसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। और खिताब ‘युग युग का राजा,’ हमें बताता है कि यहोवा एक और मायने में सबसे अलग है। वही अकेला ऐसा है जिसकी कोई शुरूआत नहीं है, यानी वह अनादिकाल से अस्तित्त्व में है। भजन 90:2 कहता है: “अनादिकाल से अनन्तकाल [या, हमेशा] तक तू ही ईश्वर है।” परमेश्वर के ऐसे गुणों को जानकर क्या हमारा दिल विस्मय से नहीं भर जाता? क्या हमारे दिल में श्रद्धा नहीं भर जाती?

17 यहोवा एक और तरह से बेजोड़ है, सिर्फ वही हमारा सिरजनहार है। प्रकाशितवाक्य 4:11 कहता है: “हे हमारे प्रभु, और परमेश्वर, तू ही महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है; क्योंकि तू ही ने सब वस्तुएं सृजीं और वे तेरी ही इच्छा से थीं, और सृजी गईं।” दुनिया की तमाम चीज़ें आज इसीलिए वजूद में हैं क्योंकि यहोवा ने इन्हें बनाया था, फिर चाहे वे स्वर्ग के अनदेखे आत्मिक प्राणी हों या रात के वक्‍त आसमान में चमकते तारे, पेड़ पर उगनेवाले फल हों या फिर सागर और नदियों में तैरनेवाली मछलियाँ।

क्या आप यहोवा के करीब आ सकते हैं?

18. कुछ लोग ऐसा क्यों सोचते हैं कि वे कभी-भी परमेश्वर के करीब नहीं आ सकते, मगर इस बारे में बाइबल क्या सिखाती है?

18 विस्मय और श्रद्धा पैदा करनेवाले इन महान गुणों के बारे में पढ़कर कुछ लोग एक तरह का डर महसूस करने लगते हैं। वे सोचते हैं कि कहाँ इतना महान परमेश्वर यहोवा और कहाँ मैं। मैं उसके करीब आने की बात सोच भी नहीं सकता। मेरा वजूद, यहोवा की नज़रों में न के बराबर होगा। लेकिन क्या ऐसा सोचना सही है? इस बारे में बाइबल जो सिखाती है, वह लोगों के खयालात से बिलकुल अलग है। यह यहोवा के बारे में कहती है: “वह हम में से किसी से दूर नहीं!” (प्रेरितों 17:27) यहाँ तक कि बाइबल हमसे यह गुज़ारिश करती है: “परमेश्वर के करीब आओ, और वह तुम्हारे करीब आएगा।”याकूब 4:8, NW.

19. (क) परमेश्वर के करीब आने के लिए हम सबसे पहले क्या कर सकते हैं, और इससे क्या फायदा होगा? (ख) परमेश्वर के कौन-से गुण आपको सबसे ज़्यादा भाते हैं?

19 आप परमेश्वर के करीब कैसे आ सकते हैं? पहली बात, फिलहाल आप जो कर रहे हैं उसे जारी रखिए, यानी परमेश्वर के बारे में सीखते रहिए। यीशु ने कहा था: “अनन्त जीवन यह है कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्वर का, और जिसे तू ने भेजा है, अर्थात्‌ यीशु मसीह का ज्ञान लेते रहें।” (यूहन्ना 17:3, NW) जी हाँ, बाइबल सिखाती है कि यहोवा और यीशु के बारे में जानने से हमें “अनन्त जीवन” मिलेगा! जैसे इस अध्याय में पहले बताया गया है, “परमेश्वर प्रेम है।” (1 यूहन्ना 4:16) यहोवा में और भी कई बेहतरीन गुण हैं जो हमारे मन को भा जाते हैं। मिसाल के लिए, बाइबल बताती है कि यहोवा “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य” है। (निर्गमन 34:6) वह “भला और क्षमा करनेवाला है।” (भजन 86:5) परमेश्वर धीरज धरता है। (2 पतरस 3:9) वह वफादार है। (प्रकाशितवाक्य 15:4, NW) जब आप बाइबल से यहोवा के बारे में ज़्यादा सीखेंगे, तो आप पाएँगे कि उसमें ऐसे और भी कई मनभावने गुण हैं।

20-22. (क) हम परमेश्वर को नहीं देख सकते, क्या इस वजह से उसके करीब आना नामुमकिन है? समझाइए। (ख) कुछ लोग शायद आप पर कैसा दबाव डालें, मगर आपको क्या करना चाहिए?

20 यह सच है कि आप परमेश्वर को देख नहीं सकते क्योंकि वह आत्मा है। (यूहन्ना 1:18; 4:24; 1 तीमुथियुस 1:17) लेकिन अगर आप बाइबल से उसके बारे में सीखते रहें, तो उसे अच्छी तरह जान सकेंगे। जैसे भजनहार ने कहा, आप ‘यहोवा की मनोहरता निहार’ सकेंगे। (भजन 27:4, NHT; रोमियों 1:20) यहोवा के बारे में आप जितना ज़्यादा सीखेंगे, उसका वजूद आपको उतना ही सच्चा लगेगा। तब आपके दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ेगा और आप खुद को उसके और करीब महसूस करेंगे।

एक अच्छा पिता अपने बच्चे के लिए जो प्यार महसूस करता है, वह उस महान प्यार की बस एक झलक है जो स्वर्ग में रहनेवाला पिता हमारे लिए महसूस करता है

21 समय के गुज़रते आप जान सकेंगे कि बाइबल क्यों सिखाती है कि हम यहोवा को अपना पिता समझें। (मत्ती 6:9) उसने हमें न सिर्फ ज़िंदगी दी है, बल्कि एक पिता की तरह वह चाहता है कि हम अपनी ज़िंदगी में खुश रहें। (भजन 36:9) बाइबल यह भी सिखाती है कि इंसान यहोवा के दोस्त बन सकते हैं। (याकूब 2:23) ज़रा सोचिए—आप भी उस परमेश्वर के दोस्त बन सकते हैं जो सारे जहान का मालिक है!

22 जैसे-जैसे आप बाइबल के अध्ययन में आगे बढ़ते जाएँगे, कुछ लोग यह अध्ययन बंद करने के लिए आप पर दबाव डाल सकते हैं। शायद वे सोचें कि आप अपने धर्म की शिक्षाओं को मानना छोड़ देंगे, इसलिए आपका अध्ययन बंद करवाने में ही भलाई है। लेकिन आप ठान लीजिए कि कोई भी आपको यहोवा का दोस्त बनने से रोकने न पाए क्योंकि उससे अच्छा दोस्त और कोई नहीं हो सकता!

23, 24. (क) आप जो सीख रहे हैं, उसके बारे में आपको क्यों सवाल करते रहना चाहिए? (ख) अगले अध्याय का विषय क्या है?

23 बेशक, यहोवा के बारे में ऐसी कुछ बातें होंगी जिन्हें शुरू-शुरू में समझना आपके लिए मुश्किल होगा। ऐसे में दूसरों से मदद माँगने के लिए नम्रता की ज़रूरत होगी, फिर भी आप झिझकिए मत। यीशु ने कहा था कि छोटे बच्चों की तरह नम्र होना अच्छी बात है। (मत्ती 18:2-4) और जैसा कि हम जानते हैं, छोटे बच्चे बहुत सारे सवाल पूछते हैं। परमेश्वर चाहता है कि आप अपने सवालों के जवाब पाएँ। बाइबल में ऐसे कुछ लोगों की तारीफ की गयी है जिन्होंने परमेश्वर के बारे में सीखने के लिए गहरी दिलचस्पी दिखायी थी। उन्होंने यह जानने के लिए शास्त्र की ध्यान से जाँच-परख की कि वे जो सीख रहे थे, वह सच्चाई है या नहीं।प्रेरितों 17:11.

24 यहोवा के बारे में सीखने का सबसे बढ़िया तरीका है, बाइबल की जाँच करना। बाइबल दुनिया की हर किताब से अलग है। किस मायने में? इस विषय पर अगले अध्याय में चर्चा की जाएगी।

^ पैरा. 15 परमेश्वर के नाम के मतलब और उच्चारण के बारे में ज़्यादा जानकारी, “परमेश्वर के नाम का इस्तेमाल और इसका मतलब” नाम का अतिरिक्त लेख में है।