अध्याय तीन
पृथ्वी के लिए परमेश्वर का मकसद क्या है?
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परमेश्वर ने इंसानों को किस मकसद से बनाया था?
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परमेश्वर के खिलाफ बगावत कैसे हुई?
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भविष्य में धरती पर ज़िंदगी कैसी होगी?
1. पृथ्वी के बारे में परमेश्वर का मकसद क्या है?
इस पृथ्वी के बारे में यहोवा का मकसद वाकई लाजवाब है। वह चाहता है कि यह दुनिया हँसते-मुस्कराते और सेहतमंद लोगों से आबाद हो। बाइबल बताती है कि शुरू में “परमेश्वर ने . . . अदन देश में एक बाटिका लगाई” थी और उसमें “सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए।” इसके बाद उसने पहले इंसान आदम और उसकी पत्नी हव्वा को बनाकर फल-फूलों से भरपूर उस सुंदर बागीचे में रखा। यह खूबसूरत फिरदौस उनका घर था। फिर उसने उन्हें यह आशीष दी: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो।” (उत्पत्ति 1:28; 2:8, 9, 15) इससे पता चलता है कि शुरू से परमेश्वर का यही मकसद था कि इंसान बच्चे पैदा करें, अदन के बाग की सरहदें बढ़ाते हुए सारी धरती को एक फिरदौस बना दें और सभी जीव-जंतुओं की देखभाल करें।
2. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि पृथ्वी के बारे में परमेश्वर का मकसद ज़रूर पूरा होगा? (ख) बाइबल के मुताबिक पृथ्वी पर कैसे लोग सदा तक जीएँगे?
2 क्या आपको लगता है कि यहोवा परमेश्वर का यह मकसद कभी पूरा होगा? परमेश्वर ने खुद यह ऐलान किया है: “मैं ही ने यह बात कही है . . . और उसे सुफल भी करूंगा।” (यशायाह 46:9-11; 55:11) जी हाँ, परमेश्वर जो ठान लेता है, उसे ज़रूर पूरा करता है! परमेश्वर ने कहा है कि उसने “[पृथ्वी को] सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।” (यशायाह 45:18) परमेश्वर धरती को किस तरह के लोगों से आबाद करना चाहता था? और कब तक के लिए? बाइबल इसका जवाब देती है: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।”
3. आज धरती पर कैसे हालात हैं, और इससे क्या सवाल उठते हैं?
3 लेकिन परमेश्वर का यह मकसद अब तक पूरा नहीं हुआ है। आज लोग बीमार होते हैं और मर जाते हैं। यहाँ तक कि वे आपस में लड़ाइयाँ करके एक-दूसरे की जान ले लेते हैं। परमेश्वर ने हरगिज़ नहीं चाहा था कि दुनिया की ऐसी हालत हो! फिर हालात बिगड़ क्यों गए? परमेश्वर का मकसद अब तक पूरा क्यों नहीं हुआ? इसका जवाब न तो कोई इतिहास की किताब दे सकती है, न ही कोई इंसान। भला क्यों? क्योंकि समस्या की शुरूआत स्वर्ग में हुई थी।
दुश्मन कहाँ से आया
4, 5. (क) दरअसल वह कौन था जिसने साँप के ज़रिए हव्वा से बात की थी? (ख) एक ईमानदार और शरीफ इंसान चोर कैसे बन सकता है?
4 बाइबल की पहली किताब बताती है कि परमेश्वर का एक दुश्मन है, जो सबसे पहले अदन के बाग में हुए किस्से में नज़र आता है। वहाँ उसे “सर्प” कहा गया है, मगर वह सचमुच एक साँप नहीं था। बाइबल की आखिरी किताब बताती है कि वह असल में ‘इब्लीस और शैतान है जो सारे संसार का भरमानेवाला है।’ उसे “पुराना सांप” भी कहा गया है। (उत्पत्ति 3:1; प्रकाशितवाक्य 12:9) दरअसल, शैतान एक शक्तिशाली स्वर्गदूत या आत्मिक प्राणी है। उसने हव्वा से बात करने के लिए साँप को ऐसे इस्तेमाल किया जिससे हव्वा को लगे कि साँप ही बात कर रहा है। यह बिलकुल वैसा था जैसे एक पेटबोला अपने होंठ हिलाए बिना इस तरह आवाज़ निकालता है मानो पास रखा एक पुतला बोल रहा हो। यह आत्मिक प्राणी उस वक्त मौजूद था जब परमेश्वर, धरती को इंसानों के रहने के लिए तैयार कर रहा था।
5 यहोवा के बनाए सभी प्राणी तो सिद्ध थे यानी उनमें कोई खोट नहीं था, फिर “इब्लीस” या “शैतान” को किसने बनाया? किसी ने नहीं! सीधे शब्दों में कहें तो परमेश्वर का यह शक्तिशाली आत्मिक पुत्र खुद-ब-खुद इब्लीस बन
6. परमेश्वर का एक शक्तिशाली आत्मिक पुत्र, शैतान इब्लीस कैसे बना?
6 शैतान यानी इब्लीस के मामले में भी ऐसा ही हुआ। उसने परमेश्वर को आदम और हव्वा से यह कहते सुना था कि वे बच्चे पैदा करके धरती को आबाद करें। (उत्पत्ति 1:27, 28) तब उसके मन में यह खयाल आया: ‘कितना अच्छा हो अगर सभी इंसान परमेश्वर के बजाय मेरी उपासना करें!’ यह गलत इच्छा उसके दिल में ज़ोर पकड़ने लगी। आखिरकार उसने अपनी इस गलत इच्छा को पूरा करने का मौका ढूँढ़ लिया। उसने हव्वा को भरमाने के लिए परमेश्वर के बारे में झूठ बोला। (उत्पत्ति 3:1-5) इस तरह उसने खुद को “इब्लीस” बना लिया, जिसका मतलब है, “निंदा करनेवाला।” साथ ही, वह “शैतान” भी बन गया जिसका मतलब है, “विरोधी” या “दुश्मन।”
7. (क) आदम और हव्वा क्यों मर गए? (ख) आदम के सभी बच्चे क्यों बूढ़े होकर मर जाते हैं?
7 शैतान के झूठ और धोखे में आकर आदम और हव्वा ने परमेश्वर की आज्ञा तोड़ दी। (उत्पत्ति 2:17; 3:6) इसका अंजाम वही हुआ जो परमेश्वर ने उन्हें पहले से बता रखा था। वे दोनों मर गए। (उत्पत्ति 3:17-19) आदम की सारी संतान पैदाइश से पापी है क्योंकि उन्होंने यह पाप अपने पिता से विरासत में पाया है। (रोमियों 5:12) इसे समझने के लिए उस साँचे की मिसाल लीजिए जिसमें ब्रैड बनायी जाती है। अगर वह साँचा टेढ़ा-मेढ़ा हो, तो उसमें बनायी जानेवाली ब्रैड कैसी होगी? हर ब्रैड का आकार बिगड़ा हुआ होगा। जिस तरह साँचा अपना आकार ब्रैड को देता है, उसी तरह आदम ने भी अपनी असिद्धता विरासत में अपनी सारी संतान को दी। इस असिद्धता की वजह से सभी इंसान बूढ़े होकर मर जाते हैं।
8, 9. (क) शैतान ने यहोवा पर क्या इलज़ाम लगाया? (ख) परमेश्वर ने उसी वक्त उन बागियों को खत्म क्यों नहीं किया?
8 शैतान ने जब आदम और हव्वा को पाप करने के लिए बहकाया, तो यह यहोवा के खिलाफ बगावत का ऐलान था। हम यह कैसे कह सकते हैं? दरअसल उसने यहोवा के हुकूमत करने के तरीके पर उँगली उठायी। एक तरह से शैतान कह रहा था: ‘यहोवा दुष्ट राजा है। वह झूठ बोलता है और अपनी प्रजा को अच्छी चीज़ों से दूर रखना चाहता है। इंसान को उसकी कोई ज़रूरत नहीं है, वह अपने लिए अच्छे-बुरे का फैसला खुद कर सकता है। और अगर मैं इंसान पर हुकूमत करूँ तो वह ज़्यादा खुश रहेगा।’ यह यहोवा का कितना बड़ा अपमान था और उस पर कैसा घिनौना इलज़ाम लगाया गया! यहोवा इसका कैसे जवाब देता? कुछ लोगों को लगता है कि अगर यहोवा ने उसी घड़ी उन बागियों का काम तमाम कर दिया होता, तो मामला वहीं खत्म हो जाता। मगर क्या ऐसा करने से यहोवा पर लगाया गया इलज़ाम मिट जाता? क्या इससे यह साबित हो पाता कि परमेश्वर के हुकूमत करने का तरीका ही सही है?
9 यहोवा का इंसाफ सच्चा है, वह उन बागियों को अपनी बात साबित करने का पूरा-पूरा मौका देना चाहता था। यही वजह है कि उसने उसी वक्त उन्हें खत्म नहीं किया। इसके बजाय, उसने फैसला किया कि शैतान को मुँहतोड़ जवाब देने और उसे झूठा साबित करने के लिए कुछ वक्त गुज़रने दिया जाए। इसलिए परमेश्वर ने इंसान को शैतान के इशारों पर अपनी हुकूमत खुद चलाने का मौका दिया। यहोवा ने ऐसा क्यों किया और उसने इन मसलों को सुलझाने के लिए इतने लंबे अरसे तक क्यों इंतज़ार किया, इस बारे में अध्याय 11 में और खुलकर चर्चा की जाएगी। फिलहाल हम इन सवालों पर गौर करेंगे: क्या शैतान की बात मानकर आदम और हव्वा सही कर रहे थे जिसने उनके लिए कभी कुछ अच्छा नहीं किया था? और क्या उनका यह यकीन कर लेना सही था कि यहोवा परमेश्वर झूठा और ज़ालिम है जबकि उनका सबकुछ उसी का दिया हुआ था? अगर आप उनकी जगह होते, तो क्या करते?
10. आप यहोवा की तरफ होकर शैतान को कैसे झूठा साबित कर सकते हैं?
10 इन सवालों के बारे में सोचना ज़रूरी है क्योंकि आज भी दुनिया के हर इंसान को यह फैसला करना है कि वह किसकी तरफ है। आपको भी यह दिखाने का मौका दिया गया है कि आप किसकी तरफ हैं। आप शैतान के लगाए इलज़ामों को गलत साबित करने के लिए यहोवा की तरफ आ सकते हैं। आप यहोवा की हुकूमत कबूल करके यह दिखा सकते हैं कि शैतान झूठा है। (भजन 73:28; नीतिवचन 27:11) मगर अफसोस कि आज दुनिया के अरबों लोगों में से बहुत कम ऐसे हैं जिन्होंने ऐसा करने का फैसला किया है। अब यह अहम सवाल उठता है कि क्या बाइबल वाकई सिखाती है कि इस दुनिया पर शैतान हुकूमत कर रहा है?
इस संसार पर कौन हुकूमत कर रहा है?
11, 12. (क) शैतान ने यीशु के सामने जो परीक्षा रखी, वह कैसे दिखाती है कि वही इस संसार का सरदार है? (ख) और कौन-सी बातें साबित करती हैं कि इस संसार पर शैतान का राज है?
11 यीशु ने कभी इस बात से इनकार नहीं किया कि इस संसार पर शैतान हुकूमत कर रहा है। एक बार शैतान ने यीशु को चमत्कार से “सारे जगत के राज्य और उसका विभव” दिखाया और कहा: “यदि तू गिरकर मुझे प्रणाम करे, तो मैं यह सब कुछ तुझे दे दूंगा।” (मत्ती 4:8, 9; लूका 4:5, 6) ज़रा सोचिए, अगर शैतान दुनिया के तमाम राज्यों का मालिक न होता, तो क्या वह यीशु को यह सब देने की पेशकश कर सकता था और क्या यह यीशु के लिए एक परीक्षा होती? उस घड़ी यीशु ने इस बात से इनकार नहीं किया कि दुनिया के सारे राज्य शैतान के हैं। अगर ये सारी हुकूमतें शैतान की न होतीं, तो यीशु ज़रूर उसकी इस बात को काटता।
12 यह सच है कि यहोवा ही सर्वशक्तिमान परमेश्वर है और वही इस शानदार जहान का बनानेवाला है। (प्रकाशितवाक्य 4:11) मगर, बाइबल में कहीं भी नहीं लिखा है कि दुनिया के राज्यों पर यहोवा परमेश्वर या यीशु मसीह की हुकूमत चल रही है। इसके बजाय, यीशु ने साफ-साफ कहा कि शैतान ही “इस जगत का सरदार” है। (यूहन्ना 12:31; 14:30; 16:11) इतना ही नहीं, बाइबल में शैतान को ‘इस संसार का ईश्वर’ बताया गया है। (2 कुरिन्थियों 4:3, 4) और-तो-और, इस विरोधी या शैतान के बारे में मसीही प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।”
शैतान की इस दुनिया को कैसे मिटाया जाएगा
13. एक नयी दुनिया की ज़रूरत क्यों है?
13 यह दुनिया दिन-ब-दिन और भी खतरनाक होती जा रही है। जगह-जगह फौजें सड़कों पर उतर आयी हैं, बेईमान नेता दीमक की तरह समाज को खोखला कर रहे हैं, धर्म-गुरुओं का पाखंड आसमान छू रहा है और खूँखार अपराधियों की भरमार है। दुनिया इतनी बदतर हो चुकी है कि इसे सुधारना नामुमकिन है। इसलिए बाइबल बताती है कि बहुत जल्द परमेश्वर इस दुष्ट संसार को हरमगिदोन की लड़ाई में मिटा डालेगा। इसके बाद, वह एक नयी दुनिया लाएगा जिसमें सिर्फ धर्मी लोग रहेंगे।
14. परमेश्वर ने अपने राज्य के लिए किसे राजा चुना, और इसके बारे में क्या भविष्यवाणी की गयी थी?
यशायाह 9:6,7, नयी हिन्दी बाइबिल) इसी राज्य के बारे में यीशु ने अपने चेलों को यह प्रार्थना करना सिखाया: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती 6:10) जैसा हम इस किताब में आगे देखेंगे, परमेश्वर का राज्य जल्द ही आज की सरकारों को मिटा देगा, और पूरी दुनिया पर हुकूमत करेगा। (दानिय्येल 2:44) इसके बाद, सारी धरती को एक खूबसूरत फिरदौस बना दिया जाएगा।
14 अपने स्वर्गीय राज्य या सरकार का राजा होने के लिए यहोवा ने यीशु मसीह को चुना है। इसके बारे में सदियों पहले बाइबल में यह भविष्यवाणी की गयी थी: “हमारे लिए एक बालक का जन्म हुआ है; हमें एक पुत्र दिया गया है। राज-सत्ता उसके कंधों पर है। उसका यह नाम रखा जाएगा: . . . शान्ति का शासक। उसकी राज्य-सत्ता बढ़ती जाएगी, उसके कल्याणकारी कार्यों का अन्त न होगा।” (नयी दुनिया जल्द आनेवाली है!
15. “नई पृथ्वी” का मतलब क्या है?
15 बाइबल हमें यह भरोसा दिलाती है: “[परमेश्वर] की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (2 पतरस 3:13; यशायाह 65:17) कभी-कभी बाइबल में “पृथ्वी” शब्द का इस्तेमाल लोगों का ज़िक्र करने के लिए भी किया गया है। (यशायाह 1:2) इसलिए “नई पृथ्वी” का मतलब है, उन लोगों का समाज जो परमेश्वर की मंज़ूरी पाते हैं।
16. जिन लोगों को परमेश्वर मंज़ूर करता है, उन्हें वह कौन-सा नायाब तोहफा देगा, और उसे पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
16 यीशु ने वादा किया था कि जो परमेश्वर की मंज़ूरी पाएँगे, उन्हें आनेवाली नयी दुनिया में “अनन्त जीवन” का नायाब तोहफा मिलेगा। (मरकुस 10:30) कृपया अपनी बाइबल खोलकर यूहन्ना 3:16 और 17:3 पढ़िए। इन आयतों में यीशु ने बताया है कि कभी न अंत होनेवाला जीवन या हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए। गौर कीजिए कि जो लोग आनेवाले फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे, उनके लिए बाइबल में क्या-क्या आशीषें बतायी गयी हैं।
17, 18. हम कैसे यकीन रख सकते हैं कि पूरी दुनिया में शांति होगी और किसी भी तरह का डर नहीं होगा?
भजन 37:10, 11) पूरी दुनिया में शांति होगी क्योंकि ‘परमेश्वर पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटा देगा।’ (भजन 46:9; यशायाह 2:4) उस वक्त ‘धर्मी फूले फलेंगे, और तब तक शान्ति बहुत रहेगी जब तक चन्द्रमा बना रहेगा,’ यानी हमेशा-हमेशा तक!
18 यहोवा के उपासकों को किसी भी बात का डर नहीं होगा। बाइबल के ज़माने में, जब इस्राएलियों ने परमेश्वर की आज्ञा मानी, तो वे निडर बसे रहे। (लैव्यव्यवस्था 25:18, 19) उसी तरह फिरदौस में भी यहोवा के उपासक निडर बसे रहेंगे। वह क्या ही खुशी का आलम होगा!
19. हम कैसे जानते हैं कि परमेश्वर की नयी दुनिया में खाने-पीने की कोई कमी नहीं होगी?
19 अकाल नहीं होगा। भजनहार ने अपने गीत में कहा: “देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्न होगा।” (भजन 72:16) धर्मी लोगों पर यहोवा की आशीष होगी और ‘भूमि अपनी उपज देगी।’
20. हम क्यों पक्का यकीन रख सकते हैं कि सारी धरती एक फिरदौस बना दी जाएगी?
20 सारी धरती को एक फिरदौस बना दिया जाएगा। आज पापी इंसानों ने धरती के जिन इलाकों को बरबाद कर रखा है, वहाँ नए-नए सुंदर घर और बागीचे बनाए जाएँगे। (यशायाह 65:21-24; प्रकाशितवाक्य 11:18) वक्त के गुज़रते पूरी धरती को अदन के बाग की तरह हरा-भरा और खूबसूरत बना दिया जाएगा। और हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर ‘अपनी मुट्ठी खोलकर, प्रत्येक प्राणी की इच्छा को सन्तुष्ट करता रहेगा।’
21. यह क्यों कहा जा सकता है कि इंसानों और जानवरों को एक-दूसरे से कोई खतरा नहीं होगा?
21 इंसानों और जानवरों को एक-दूसरे से कोई खतरा नहीं होगा। जंगली और पालतू जानवर साथ मिलकर चरेंगे। खूँखार-से-खूँखार जानवरों से भी छोटे बच्चों को कोई खतरा नहीं होगा।
22. बीमारियों का क्या होगा?
मत्ती 9:35; मरकुस 1:40-42; यूहन्ना 5:5-9) तब “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।”
23. मरे हुओं का जी उठना क्यों हमारे लिए खुशियों का समय होगा?
23 हमारे जो अज़ीज़ मर गए हैं, उन्हें ज़िंदा किया जाएगा और उन्हें हमेशा तक जीने की आशा मिलेगी। आज जो लोग मौत की नींद सो रहे हैं, उनमें से जितने परमेश्वर की याद में बसे हैं, उन्हें जिलाया जाएगा। दरअसल, “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।”
24. फिरदौस में जीने के बारे में आपको कैसा लगता है?
24 हम सबके महान सिरजनहार, यहोवा परमेश्वर के बारे में जो लोग सीखने और उसकी सेवा करने का फैसला करते हैं, उन्हें फिरदौस में क्या ही खुशहाल ज़िंदगी मिलेगी! आनेवाले इसी फिरदौस के बारे में यीशु ने उस मुजरिम से वादा किया था, जिसे उसके बराबर सूली में लटकाया गया था: “तू मेरे साथ फिरदौस में होगा।” (लूका 23:43, किताब-ए-मुकद्दस) यीशु मसीह के बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा सीखना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है, क्योंकि उसी के ज़रिए हमें ये सारी आशीषें मिलेंगी।