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अध्याय आठ

परमेश्वर का राज्य क्या है?

परमेश्वर का राज्य क्या है?
  • परमेश्वर के राज्य के बारे में बाइबल हमें क्या बताती है?

  • परमेश्वर का राज्य क्या करेगा?

  • यह राज्य, धरती पर परमेश्वर की इच्छा कब पूरी करेगा?

1. अब हम किस जानी-मानी प्रार्थना पर गौर करनेवाले हैं?

दुनिया में लाखों लोगों को एक प्रार्थना ज़बानी याद है। इस जानी-मानी प्रार्थना को ‘प्रभु की प्रार्थना’ कहा जाता है। यीशु मसीह ने खुद यह प्रार्थना एक नमूने के तौर पर लोगों को सिखायी थी। इस प्रार्थना में की गयी एक-एक बिनती गौर करने लायक है। आइए इसमें की गयी पहली तीन बिनतियों की जाँच करें। ऐसा करने से आप अच्छी तरह सीख पाएँगे कि बाइबल और क्या-क्या सिखाती है।

2. यीशु ने अपने चेलों को जो प्रार्थना सिखायी, उसकी पहली तीन बिनतियाँ क्या हैं?

2 इस प्रार्थना में सबसे पहले क्या आना चाहिए, इस बारे में यीशु ने अपने चेलों को हिदायत देते हुए कहा: “तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो; ‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।’” (मत्ती 6:9-13) इन पहली तीन बिनतियों का क्या मतलब है?

3. परमेश्वर के राज्य के बारे में हमें क्या-क्या जानने की ज़रूरत है?

3 पहली बिनती परमेश्वर के नाम यहोवा के बारे में है और इसके बारे में हमने इस किताब से काफी कुछ सीख लिया है। दूसरी बिनती परमेश्वर की इच्छा या मकसद के बारे में है और इस बारे में भी हम कुछ हद तक जान चुके हैं। जैसे, परमेश्वर इंसानों के लिए क्या कुछ कर चुका है, और आगे क्या-क्या करेगा। लेकिन तीसरी बिनती में जब यीशु कह रहा था: “तेरा राज्य आए,” तो वह किस बारे में बात कर रहा था? परमेश्वर का राज्य क्या है? इसके आने से परमेश्वर का नाम कैसे पवित्र होगा? और उस राज्य के आने और परमेश्वर की इच्छा पूरी होने के बीच क्या नाता है? हमें इन सारे सवालों के जवाब जानने की ज़रूरत है।

परमेश्वर का राज्य क्या है

4. परमेश्वर का राज्य क्या है, और इसका राजा कौन है?

4 परमेश्वर का राज्य एक सरकार है। इस सरकार को यहोवा परमेश्वर ने बनाया है और इसका एक राजा भी चुना है। वह राजा कौन है? यीशु मसीह। इस दुनिया के सभी राजाओं और शासकों के मुकाबले यीशु कहीं ज़्यादा महान और शक्तिशाली है। इसलिए उसे “राजाओं का राजा, और प्रभुओं का प्रभु” कहा गया है। (1 तीमुथियुस 6:15) दुनिया का कोई भी काबिल-से-काबिल नेता लोगों की भलाई के लिए जितना कर सकता है, उससे कहीं ज़्यादा भलाई करने की ताकत यीशु के पास है।

5. परमेश्वर का राज्य कहाँ से और किस पर हुकूमत करेगा?

5 परमेश्वर का राज्य कहाँ से हुकूमत करेगा? वहीं से जहाँ इसका राजा यीशु है। ज़रा सोचिए कि आज यीशु कहाँ है? आपको याद होगा कि जब यीशु धरती पर था तो उसके दुश्मनों ने उसे काठ पर लटकाकर मार डाला था और वह फिर से जी उठा था। इसके कुछ समय बाद वह वापस स्वर्ग लौट गया। (प्रेरितों 2:33) परमेश्वर के राज्य का राजा यीशु आज स्वर्ग में है, इसलिए उसका यह राज्य भी स्वर्ग में है। तभी तो बाइबल उसके राज्य को “स्वर्गीय राज्य” कहती है। (2 तीमुथियुस 4:18) हालाँकि यह राज्य स्वर्ग में है, मगर वह धरती पर हुकूमत करेगा।प्रकाशितवाक्य 11:15.

6, 7. कौन-कौन-सी बातें यीशु को दुनिया के तमाम राजाओं से महान साबित करती हैं?

6 राजा यीशु में ऐसी क्या खूबी है जो उसे दुनिया के तमाम राजाओं से कहीं महान साबित करती है? एक तो यह कि वह कभी नहीं मरेगा। दुनिया के राजाओं और यीशु के बीच फर्क बताते हुए बाइबल कहती है: “अमरता केवल [यीशु] की है, और वह अगम्य ज्योति में रहता है।” (1 तीमुथियुस 6:16) इसका मतलब है कि यीशु लोगों की भलाई के लिए जितने भी काम करेगा, वे कभी नहीं मिटेंगे और उनसे लोगों का सदा तक भला होता रहेगा। और इसमें कोई शक नहीं कि वह ज़रूर लोगों की भलाई के लिए बड़े-बड़े काम करेगा।

7 यीशु के बारे में बाइबल की इस भविष्यवाणी पर गौर कीजिए: “यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्‍ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी। और उसको यहोवा का भय सुगन्ध सा भाएगा। वह मुंह देखा न्याय न करेगा और न अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय करेगा; परन्तु वह कंगालों का न्याय धर्म [“धार्मिकता,” NHT] से, और पृथ्वी के नम्र लोगों का निर्णय खराई से करेगा।” (यशायाह 11:2-4) ये शब्द दिखाते हैं कि राजा यीशु धरती के लोगों पर धार्मिकता और करुणा से राज करेगा। क्या आप ऐसा राजा नहीं चाहेंगे?

8. यीशु के साथ राज करनेवाले दूसरे कौन होंगे?

8 परमेश्वर के राज्य के बारे में एक और सच्चाई यह है कि यीशु अकेले राज नहीं करेगा। उसके साथ राज करनेवाले दूसरे भी होंगे। वे कौन होंगे? प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को बताया था: “यदि हम धीरज से सहते रहेंगे, तो उसके साथ राज्य भी करेंगे।” (2 तीमुथियुस 2:12) जी हाँ, परमेश्वर ने पौलुस, तीमुथियुस और ऐसे ही दूसरे वफादार सेवकों को चुना है, ताकि वे यीशु के साथ राज करें। यह अनोखी आशीष कितने लोगों को मिलेगी?

9. यीशु के साथ कितने लोग राज करेंगे, और परमेश्वर ने उन्हें कब से चुनना शुरू किया?

9 यह जानने के लिए, याद कीजिए कि इस किताब के 7वें अध्याय में हमने क्या सीखा था। प्रेरित यूहन्ना को एक दर्शन दिया गया था, जिसमें उसने देखा कि “मेम्ना [यानी यीशु मसीह] सिय्योन पहाड़ [स्वर्ग में अपने राजपद] पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौआलीस हजार जन हैं, जिन के माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ है।” ये 1,44,000 जन कौन हैं? इसका जवाब खुद यूहन्ना देता है: “ये वे ही हैं जो मेमने के पीछे पीछे जहां कहीं वह जाता है चलते हैं। ये परमेश्वर और मेमने के लिए प्रथम फल होने को मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं।” (NHT) (प्रकाशितवाक्य 14:1, 4) जी हाँ, ये 1,44,000 जन यीशु मसीह के वे वफादार चेले हैं, जिन्हें खास तौर पर स्वर्ग में उसके साथ राज करने के लिए चुना गया है। जब उनकी मौत होती है तब वे स्वर्ग में जीवन पाते हैं, और वहाँ से वे यीशु के साथ इस ‘पृथ्वी पर राज्य करेंगे।’ (प्रकाशितवाक्य 5:10) परमेश्वर ऐसे वफादार लोगों को यीशु के 12 चेलों के ज़माने से चुनता आ रहा है, जो 1,44,000 की गिनती को पूरा करेंगे।

10. इंसानों पर राज करने के लिए, यीशु और 1,44,000 जनों को चुनना क्यों एक प्यार-भरा इंतज़ाम है?

10 यह यहोवा का एक प्यार-भरा इंतज़ाम है कि उसने यीशु और 1,44,000 जनों को इंसानों पर हुकूमत करने के लिए चुना है। यह हम क्यों कह सकते हैं? पहली बात, यीशु खुद इस धरती पर जीया था, इसलिए वह अच्छी तरह जानता है कि इंसानों की ज़िंदगी कैसी होती है और जब दुःख-तकलीफें आती हैं, तो कैसा महसूस होता है। पौलुस ने कहा कि यीशु ऐसा नहीं “जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; बरन वह सब बातों में हमारी नाईं परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला।” (इब्रानियों 4:15; 5:8) दूसरी बात, यीशु के साथ राज करनेवालों ने भी इस धरती पर कई दुःख उठाए और बहुत कुछ सहा। इतना ही नहीं, उन्हें लगातार अपनी असिद्धताओं और कमज़ोरियों से संघर्ष करना पड़ा और उन्होंने हर तरह की बीमारियों की मार भी झेली है। इसलिए, कोई शक नहीं कि वे जिन पर राज करेंगे उनका दुःख-दर्द समझने में उन्हें ज़रा भी मुश्किल नहीं होगी!

परमेश्वर का राज्य क्या करेगा?

11. यीशु ने अपने चेलों से यह प्रार्थना करने के लिए क्यों कहा कि परमेश्वर की इच्छा स्वर्ग में पूरी हो?

11 यीशु ने जब अपने चेलों को बताया कि उन्हें परमेश्वर के राज्य के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, तो उसने यह भी बिनती करने को कहा कि परमेश्वर की इच्छा जैसे “स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” यीशु ने ऐसा क्यों कहा? क्या स्वर्ग में परमेश्वर की इच्छा पूरी नहीं हो रही थी? परमेश्वर स्वर्ग में है, और वहाँ उसके वफादार स्वर्गदूत हमेशा से उसकी इच्छा पूरी करते आए हैं। मगर जैसा हम इस किताब के तीसरे अध्याय में सीख चुके हैं, एक ऐसा स्वर्गदूत भी था जिसने परमेश्वर की इच्छा पूरी करना छोड़ दिया और उसने आदम और हव्वा को भी पाप करने के लिए भड़काया। यह दुष्ट स्वर्गदूत, शैतान इब्लीस था। उसके बारे में बाइबल और क्या बताती है, यह हम 10वें अध्याय में सीखेंगे। मगर परमेश्वर की इच्छा के खिलाफ जानेवालों में शैतान अकेला नहीं था। ऐसे और भी कई दुष्ट स्वर्गदूत थे, जो शैतान के पीछे हो लिए थे। इन्हें दुष्टात्माएँ कहा जाता है। इन सभी को कुछ वक्‍त तक स्वर्ग में रहने दिया गया। इसलिए एक ऐसा वक्‍त भी था जब स्वर्ग में हर कोई परमेश्वर की इच्छा पूरी नहीं कर रहा था। मगर परमेश्वर का राज्य इन हालात को बदलनेवाला था। जब राजा यीशु मसीह ने अपनी हुकूमत शुरू की, तो उसने शैतान के खिलाफ जंग लड़ी।प्रकाशितवाक्य 12:7-9.

12. प्रकाशितवाक्य 12:10 में किन दो बहुत ही अहम घटनाओं के बारे में बताया गया है?

12 आगे क्या हुआ इस बारे में यह भविष्यवाणी बताती है: “मैं ने स्वर्ग पर से यह बड़ा शब्द आते हुए सुना, कि अब हमारे परमेश्वर का उद्धार, और सामर्थ, और राज्य, और उसके मसीह का अधिकार प्रगट हुआ है; क्योंकि हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाला [शैतान], जो रात दिन हमारे परमेश्वर के साम्हने उन पर दोष लगाया करता था, गिरा दिया गया।” (प्रकाशितवाक्य 12:10) क्या आपने ध्यान दिया कि बाइबल की इस आयत में दो बहुत ही अहम घटनाओं के बारे में बताया गया है? पहली, परमेश्वर का राज्य जिसका राजा यीशु मसीह है, अपनी हुकूमत शुरू करता है। दूसरी, शैतान को स्वर्ग से निकालकर पृथ्वी पर फेंक दिया जाता है।

13. शैतान को स्वर्ग से निकाले जाने का क्या नतीजा निकला?

13 इन दो घटनाओं का क्या नतीजा निकला? स्वर्ग में इसका जो असर हुआ, उसके बारे में लिखा है: “इस कारण, हे स्वर्गो, और उन में के रहनेवालो मगन हो।” (प्रकाशितवाक्य 12:12) जी हाँ, स्वर्ग में रहनेवाले वफादार स्वर्गदूतों ने खुशियाँ मनायीं, क्योंकि शैतान और उसकी दुष्टात्माओं को स्वर्ग से निकाल दिया गया। और अब स्वर्ग में सिर्फ यहोवा परमेश्वर के वफादार सेवक हैं। वहाँ अब पूरी तरह से अमन-चैन और शांति है और हर कोई साथ मिलकर काम कर रहा है, और परमेश्वर के खिलाफ जानेवाला कोई नहीं है। अब सही मायनों में स्वर्ग में परमेश्वर की इच्छा पूरी हो रही है।

शैतान और उसकी दुष्टात्माओं को स्वर्ग से बाहर निकालने की वजह से धरती पर हाय पड़ी। ऐसी मुसीबतें बहुत जल्द खत्म हो जाएँगी

14. शैतान को पृथ्वी पर फेंक दिए जाने का क्या अंजाम हुआ है?

14 लेकिन इन घटनाओं का धरती पर क्या अंजाम हुआ? बाइबल बताती है: “हे पृथ्वी, और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” (प्रकाशितवाक्य 12:12) शैतान गुस्से से आग-बबूला हो रहा है, क्योंकि स्वर्ग से तो उसे निकाल दिया गया है और धरती पर भी उसका थोड़ा ही समय बाकी रह गया है। क्रोध में आकर वह दुनिया पर “हाय” यानी घोर संकट और ढेरों आफतें ला रहा है। इस “हाय” के बारे में हम अगले अध्याय में और ज़्यादा सीखेंगे। मगर यह सब देखकर, हमारे मन में सवाल आ सकता है कि ‘ऐसे में परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर उसकी इच्छा कैसे पूरी कर सकता है?’

15. धरती के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है?

15 याद कीजिए कि धरती के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है। आपने इस बारे में तीसरे अध्याय में सीखा था। अदन के बाग में परमेश्वर ने आदम और हव्वा को बताया था कि उसकी इच्छा है कि यह सारी धरती एक फिरदौस बन जाए, और ऐसे धर्मी इंसानों से भर जाए जो कभी न मरें। मगर जब शैतान के बहकावे में आकर आदम और हव्वा से पाप किया, तब परमेश्वर की यह इच्छा पूरी होने में कुछ देर के लिए रुकावट आ गयी। लेकिन परमेश्वर की इच्छा बदली नहीं है। आज भी यहोवा की यही मरज़ी है कि ‘धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी हों, और वे उस में सदा बसे रहें।’ (भजन 37:29) परमेश्वर की इस इच्छा को उसका राज्य पूरा करेगा। कैसे?

16, 17. दानिय्येल 2:44 परमेश्वर के राज्य के बारे में हमें क्या बताता है?

16 दानिय्येल 2:44 में दी गयी भविष्यवाणी पर ध्यान दीजिए। वहाँ लिखा है: “उन राजाओं के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन वह उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।” यह भविष्यवाणी हमें परमेश्वर के राज्य के बारे में क्या बताती है?

17 एक तो यह कि परमेश्वर के राज्य को “उन राजाओं के दिनों में” यानी उस वक्‍त शुरू होना था, जब दुनिया के राज्य या सरकारें मौजूद होतीं। भविष्यवाणी में दूसरी बात यह बतायी गयी है कि परमेश्वर का यह राज्य सदा तक स्थिर रहेगा। इसे कोई हरा नहीं सकेगा, न ही कोई और सरकार इसकी जगह लेगी। तीसरी यह कि परमेश्वर के राज्य और इस दुनिया की सरकारों के बीच एक युद्ध होगा और जीत परमेश्वर के राज्य की होगी। आखिर में सिर्फ यही एक सरकार रहेगी जो दुनिया के सभी इंसानों पर हुकूमत करेगी। उस वक्‍त हर इंसान देख पाएगा कि दुनिया की सबसे बेहतरीन सरकार किस तरह राज करती है!

18. परमेश्वर के राज्य और इस दुनिया की सरकारों के बीच होनेवाली आखिरी लड़ाई का नाम क्या है?

18 परमेश्वर के राज्य और इस दुनिया की सरकारों के बीच होनेवाली आखिरी लड़ाई के बारे में बाइबल बहुत कुछ बताती है। जैसे यह कि इस आखिरी युद्ध का समय जैसे-जैसे पास आएगा, दुष्टात्माएँ “सारे संसार के राजाओं” को गुमराह करने के लिए झूठ फैलाएँगी। किस इरादे से? ताकि “उन्हें [यानी इन राजाओं को] सर्वशक्‍तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई के लिये इकट्ठा करें।” दुनिया के इन तमाम राजाओं को ‘उस जगह इकट्ठा किया जाएगा जो इब्रानी में हर-मगिदोन कहलाता है।’ (प्रकाशितवाक्य 16:14, 16) इन दोनों आयतों के मुताबिक, परमेश्वर के राज्य और इंसानी सरकारों के बीच होनेवाले आखिरी युद्ध को हरमगिदोन की लड़ाई कहा गया है।

19, 20. आज परमेश्वर की इच्छा क्यों पूरी नहीं हो रही?

19 हरमगिदोन के युद्ध से परमेश्वर का राज्य क्या हासिल करेगा? एक बार फिर याद कीजिए कि धरती के लिए परमेश्वर की इच्छा क्या है। यहोवा परमेश्वर चाहता था कि यह धरती फिरदौस बने और इसमें धर्मी और सिद्ध इंसान सदा तक जीएँ और उसकी सेवा करें। तो फिर आज परमेश्वर की इच्छा क्यों पूरी नहीं हो रही? इसलिए क्योंकि धरती पर जीनेवाले हम सभी इंसान पाप करते हैं, बीमार होते और आखिर में मर जाते हैं। मगर जैसे हमने अध्याय 5 में सीखा था, यीशु ने हमारी खातिर इसलिए अपनी जान दी ताकि हम हमेशा की ज़िंदगी पा सकें। आपको यूहन्ना की किताब के ये शब्द ज़रूर याद होंगे: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”यूहन्ना 3:16.

20 एक और समस्या यह है कि बहुत-से लोग दुष्टता के काम करने में लगे हुए हैं। वे झूठ बोलते हैं, धोखा देते हैं और बदचलनी के काम करते हैं। वे परमेश्वर की इच्छा पूरी करना चाहते ही नहीं। मगर दुष्ट काम करनेवाले ऐसे हर इंसान को परमेश्वर की हरमगिदोन की लड़ाई में मिटा दिया जाएगा। (भजन 37:10) परमेश्वर की इच्छा इसलिए भी पूरी नहीं हो रही क्योंकि दुनिया की सरकारें ऐसा करने का बढ़ावा नहीं देतीं। ये इंसानी सरकारें कमज़ोर, क्रूर और भ्रष्ट हैं। बाइबल साफ-साफ कहती है: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।”सभोपदेशक 8:9.

21. परमेश्वर का राज्य धरती पर उसकी इच्छा कैसे पूरी करेगा?

21 हरमगिदोन की जंग के बाद, इंसानों पर सिर्फ एक सरकार राज करेगी और वह है, परमेश्वर का राज्य। यह राज्य परमेश्वर की इच्छा पूरी करेगा और इंसानों को शानदार आशीषें दिलाएगा। जैसे, यह शैतान और उसकी दुष्टात्माओं को हटा देगा। (प्रकाशितवाक्य 20:1-3) वफादार लोगों पर यीशु के बलिदान के फायदे लागू किए जाएँगे, इसलिए न तो वे कभी बीमार होंगे, ना ही उन्हें कभी मौत का मुँह देखना पड़ेगा। इसके बजाय, वे इस राज्य की प्रजा बनकर हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे। (प्रकाशितवाक्य 22:1-3) धरती को फिरदौस बनाया जाएगा। इस तरह, यह राज्य धरती परमेश्वर की इच्छा पूरी करेगा और उसका नाम पवित्र करेगा। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि आखिरकार परमेश्वर के राज्य में जीनेवाला हर इंसान यहोवा के नाम का आदर करेगा।

परमेश्वर का राज्य कब कार्रवाई करेगा?

22. हम कैसे जानते हैं कि यीशु के धरती पर रहते वक्‍त या उसके पुनरुत्थान के फौरन बाद परमेश्वर का राज्य नहीं आया था?

22 जब यीशु ने अपने चेलों को यह प्रार्थना करने के लिए कहा कि “तेरा राज्य आए,” तो इससे साफ हो जाता है कि उस वक्‍त तक परमेश्वर का राज्य नहीं आया था। तो क्या यह राज्य उस वक्‍त आया जब यीशु स्वर्ग लौटा? जी नहीं। क्योंकि पतरस और पौलुस, दोनों ने कहा था कि यीशु के पुनरुत्थान पाने और स्वर्ग जाने के बाद भजन 110:1 की यह भविष्यवाणी उस पर पूरी हुई: “मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं।” (प्रेरितों 2:32-35; इब्रानियों 10:12, 13) इसका मतलब है कि यीशु को कुछ वक्‍त तक इंतज़ार करना था।

परमेश्वर के राज्य की हुकूमत में, उसकी इच्छा पृथ्वी पर पूरी होगी, ठीक जैसे स्वर्ग में होती है

23. (क) परमेश्वर के राज्य ने कब राज करना शुरू किया? (ख) अगले अध्याय में किस बारे में चर्चा की जाएगी?

23 कब तक? उन्नीसवीं सदी के दौरान, सच्चे मन से बाइबल का अध्ययन करनेवाले एक समूह ने हिसाब लगाया कि यीशु का इंतज़ार सन्‌ 1914 में खत्म होना था। (इस तारीख के बारे में जानकारी के लिए “सन्‌ 1914—बाइबल की भविष्यवाणी का अहम साल” नाम का अतिरिक्त लेख देखिए।) सन्‌ 1914 से दुनिया में जो घटनाएँ होने लगीं, वे इस बात का सबूत थीं कि उन सच्चे बाइबल विद्यार्थियों का हिसाब बिलकुल सही था। बाइबल की भविष्यवाणियों के पूरा होने से यह साबित हो गया कि सन्‌ 1914 में मसीह राजा बना और परमेश्वर के राज्य ने उसी साल राज करना शुरू किया। इसका मतलब यह है कि हम उस वक्‍त में जी रहे हैं, जब शैतान का “थोड़ा ही समय” बाकी रह गया है। (प्रकाशितवाक्य 12:12; भजन 110:2) हम पूरे यकीन के साथ यह भी कह सकते हैं कि परमेश्वर का राज्य, धरती पर उसकी इच्छा पूरी करने के लिए बहुत जल्द कार्रवाई करेगा। क्या यह सबसे बड़ी खुशखबरी नहीं? क्या आप इस पर यकीन करते हैं? अगला अध्याय यह जानने में आपकी मदद करेगा कि बाइबल वाकई ये सारी बातें सिखाती है।