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अध्याय 3

परमेश्‍वर के दोस्तों को अपने दोस्त बनाइए

परमेश्‍वर के दोस्तों को अपने दोस्त बनाइए

“बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा।”—नीतिवचन 13:20.

1-3. (क) बाइबल की किस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता? (ख) हम ऐसे दोस्त कैसे चुन सकते हैं जिनका हम पर अच्छा असर हो?

लोग एक तरह से स्पंज की तरह होते हैं। जैसे स्पंज पानी को सोख लेता है, वैसे ही हम वह सब अपना लेते हैं जो हम अपने आस-पास देखते-सुनते हैं। जिन लोगों के साथ हम अपना ज़्यादातर वक्‍त बिताते हैं, अकसर हम भी उन्हीं के जैसे बन जाते हैं। अनजाने में ही सही, हम उनकी तरह सोचने लगते हैं, उनका तौर-तरीका, सही-गलत के बारे में उनका नज़रिया और उनकी अच्छी-बुरी आदतें अपना लेते हैं।

2 बाइबल संगति के बारे में एक ऐसी सच्चाई बताती है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। यह कहती है, “बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा, लेकिन मूर्खों के साथ मेल-जोल रखनेवाला बरबाद हो जाएगा।” (नीतिवचन 13:20) यह नीतिवचन बस कभी-कभार होनेवाली मुलाकातों की बात नहीं कर रहा है। इस आयत के बारे में बाइबल पर टिप्पणी देनेवाली एक किताब कहती है कि किसी ‘के साथ रहने’ का मतलब है कि आपको उससे प्यार और लगाव है। क्या आप इससे सहमत नहीं कि हम जिनसे प्यार करते हैं अकसर हम उन्हीं के जैसा व्यवहार करने लगते हैं? यह इसलिए होता है क्योंकि उनके साथ हमारी भावनाएँ जुड़ी होती हैं और हम उनके साँचे में ढलते जाते हैं, फिर चाहे वह अच्छे के लिए हो या बुरे के लिए।

3 खुद को परमेश्‍वर के प्यार के लायक बनाए रखने के लिए, यह ज़रूरी है कि हम ऐसे दोस्त चुनें जिनका हम पर अच्छा असर हो। हम ऐसे दोस्त कैसे चुन सकते हैं? इसका सीधा-सा तरीका यह है कि हम उनसे प्यार करें जिनसे परमेश्‍वर प्यार करता है, उसके दोस्तों को हम अपना दोस्त बनाएँ। ज़रा सोचिए, जिन लोगों में यहोवा को भानेवाले गुण हैं, उनसे बेहतर साथी और कौन हो सकते हैं? तो आइए चर्चा करें कि परमेश्‍वर किस तरह के लोगों से प्यार करता है। एक बार जब हम यहोवा का नज़रिया जान लेंगे तो हम अच्छे दोस्त चुन पाएँगे।

परमेश्‍वर किस तरह के लोगों से प्यार करता है

4. यहोवा को अपनी पसंद के दोस्त चुनने का हक क्यों है? यहोवा ने अब्राहम को अपना “दोस्त” क्यों कहा?

4 जहाँ दोस्त चुनने की बात आती है, यहोवा की अपनी खास पसंद है। यहोवा को अपनी पसंद के दोस्त चुनने का हक भी है। और क्यों न हो, वह सारे जहान का मालिक है। उसके दोस्त बनना दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान है। यहोवा किस तरह के लोगों को अपना दोस्त बनाना पसंद करता है? सिर्फ उन्हीं को जो उस पर भरोसा करते हैं और हर हाल में उस पर पूरा विश्‍वास रखते हैं। यहोवा ऐसे ही लोगों के करीब आता है। इसकी मिसाल है, कुलपिता अब्राहम जो अपने लाजवाब विश्‍वास के लिए जाना जाता है। उसके विश्‍वास की सबसे बड़ी परीक्षा तब हुई जब उससे कहा गया कि अपने बेटे की बलि चढ़ाए। * एक पिता के लिए इससे बड़ी परीक्षा और क्या हो सकती है! फिर भी अब्राहम ने “इसहाक को मानो बलि चढ़ा ही दिया था” क्योंकि उसे पूरा विश्‍वास था कि “परमेश्‍वर उसके बेटे को मरे हुओं में से भी ज़िंदा करने के काबिल है।” (इब्रानियों 11:17-19) यहोवा पर ऐसा विश्‍वास दिखाने और उसकी आज्ञा मानने की वजह से अब्राहम को यहोवा ने अपना “दोस्त” कहा।—यशायाह 41:8; याकूब 2:21-23.

5. जो लोग यहोवा के वफादार रहकर उसकी आज्ञा मानते हैं, उनके बारे में वह कैसा महसूस करता है?

5 वफादारी और आज्ञा मानने का गुण यहोवा की नज़रों में बहुत अहमियत रखता है। वह उन लोगों से प्यार करता है जो हर हाल में, हर कीमत पर उसके वफादार रहते हैं। (2 शमूएल 22:26 पढ़िए।) जैसे हमने इस किताब के पहले अध्याय में देखा, यहोवा ऐसे लोगों से बहुत खुश होता है जो उससे प्यार करने की वजह से उसकी आज्ञा मानते हैं। नीतिवचन 3:32 कहता है कि वह “सीधे-सच्चे लोगों से गहरी दोस्ती रखता है।” जो लोग वफादारी से यहोवा के स्तरों पर चलते हैं, उन्हें वह प्यार से एक न्यौता देता है। वे उसके “तंबू” में मेहमान बन सकते हैं, यानी वे उसकी उपासना कर सकते हैं और किसी भी वक्‍त उससे प्रार्थना कर सकते हैं।—भजन 15:1-5.

6. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यीशु से प्यार करते हैं? यहोवा ऐसे लोगों के बारे में कैसा महसूस करता है जो उसके बेटे से प्यार करते हैं?

6 यहोवा ऐसे लोगों से प्यार करता है जो उसके इकलौते बेटे, यीशु से प्यार करते हैं। यीशु ने कहा था, “अगर कोई मुझसे प्यार करता है, तो वह मेरे वचन पर चलेगा और मेरा पिता उससे प्यार करेगा। हम उसके पास आएँगे और उसके साथ निवास करेंगे।” (यूहन्‍ना 14:23) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यीशु से प्यार करते हैं? उसकी आज्ञाएँ मानकर, जिनमें से एक यह है कि हम राज की खुशखबरी सुनाएँ और चेले बनाएँ। (मत्ती 28:19, 20; यूहन्‍ना 14:15, 21) साथ ही, यीशु के ‘नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलकर’ हम दिखाते हैं कि हम उससे प्यार करते हैं। यानी परिपूर्ण न होने पर भी, जहाँ तक हो सके हम अपनी बातचीत और अपने व्यवहार में यीशु की मिसाल पर चलते हैं। (1 पतरस 2:21) ऐसे लोगों को देखकर यहोवा का दिल खुश हो जाता है जो उसके बेटे से प्यार करने की वजह से उसकी मिसाल पर चलने की कोशिश करते हैं।

7. यहोवा के दोस्तों को अपना दोस्त बनाना क्यों बुद्धिमानी है?

7 जैसे हमने देखा, यहोवा अपने दोस्तों में जो गुण चाहता है वे हैं, विश्‍वास, वफादारी, आज्ञा मानना और यीशु और उसके स्तरों से प्यार करना। हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए: ‘क्या मेरे करीबी दोस्तों में ये गुण हैं? और क्या वे परमेश्‍वर के स्तरों पर चलते हैं? क्या मैंने यहोवा के दोस्तों को अपना दोस्त बनाया है?’ ऐसा करना बुद्धिमानी है। जो लोग अपने अंदर परमेश्‍वर को भानेवाले गुण बढ़ाते हैं और जोश से राज की खुशखबरी सुनाते हैं, उनका हम पर बढ़िया असर हो सकता है। ऐसे दोस्तों की संगति हमारी मदद कर सकती है कि हम परमेश्‍वर को खुश करने के अपने इरादे पर डटे रहें।—“ अच्छा दोस्त किसे कहते हैं?” नाम का बक्स देखिए।

बाइबल की एक मिसाल से सीखिए

8. (क) नाओमी और रूत, (ख) तीन इब्री लड़कों और (ग) पौलुस और तीमुथियुस के बीच की दोस्ती में क्या बात आपके दिल को छू गयी?

8 बाइबल में ऐसे कई लोगों की मिसालें दर्ज़ हैं, जिन्होंने अच्छे दोस्त चुनने की वजह से फायदा पाया। जैसे नाओमी और उसकी बहू रूत, बैबिलोन में एक-दूसरे का साथ निभानेवाले तीन इब्री लड़के, साथ ही पौलुस और तीमुथियुस। (रूत 1:16; दानियेल 3:17, 18; 1 कुरिंथियों 4:17; फिलिप्पियों 2:20-22) मगर अब आइए हम दोस्ती की एक अनोखी मिसाल पर गौर करें: दाविद और योनातान की दोस्ती।

9, 10. दाविद और योनातान की दोस्ती की बुनियाद क्या थी?

9 बाइबल बताती है कि जब दाविद ने गोलियात को मार डाला तो इसके बाद “योनातान और दाविद के बीच गहरी दोस्ती हो गयी और वह अपनी जान के बराबर दाविद से प्यार करने लगा।” (1 शमूएल 18:1) इस तरह वे दोनों एक-दूसरे के जिगरी दोस्त बन गए, हालाँकि उन दोनों की उम्र में काफी फर्क था। उनकी यह दोस्ती मैदान-ए-जंग में योनातान की मौत तक कायम रही। * (2 शमूएल 1:26) इन दोनों की गहरी दोस्ती की बुनियाद क्या थी?

10 दाविद और योनातान, दोनों परमेश्‍वर से बेहद प्यार करते थे और दोनों की यह दिली तमन्‍ना थी कि वे हर हाल में परमेश्‍वर के वफादार रहें। परमेश्‍वर को खुश करने की यही तमन्‍ना उन्हें दोस्ती के बंधन में बाँधे हुए थी। दोनों ने अपने-अपने गुणों से एक-दूसरे का दिल जीत लिया था। दाविद की हिम्मत और उसका जोश देखकर योनातान कायल हो गया था कि कैसे उसने निडर होकर यहोवा के नाम की पैरवी की है। दूसरी तरफ, दाविद भी उम्र में बड़े योनातान का गहरा आदर करता था। क्योंकि उसने देखा कि योनातान ने कैसे यहोवा के इस इंतज़ाम का वफादारी से समर्थन किया कि दाविद राजा बने और बिना किसी लालच के खुद से ज़्यादा दाविद की भलाई की चिंता की। मिसाल के लिए, जिस दौरान योनातान के पिता, दुष्ट राजा शाऊल का क्रोध दाविद पर भड़का हुआ था, तब दाविद उससे बचने के लिए वीराने में भटकता फिर रहा था। इस दौरान एक वक्‍त पर दाविद बहुत मायूस हो गया था। ऐसे में योनातान ने बड़े ही लाजवाब तरीके से दिखाया कि वह दाविद का वफादार है। वह खुद ‘दाविद से मिलने गया और उसने यहोवा पर दाविद का भरोसा और बढ़ाया।’ (1 शमूएल 23:16) ज़रा सोचिए, जब दाविद ने देखा कि उसका प्यारा दोस्त योनातान उससे मिलने और उसकी हिम्मत बँधाने आया है, तो उसे कैसा महसूस हुआ होगा! *

11. योनातान और दाविद की दोस्ती से आप क्या सीखते हैं?

11 योनातान और दाविद की दोस्ती से हम क्या सीखते हैं? दोस्तों के बीच यह बात सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है कि वे आध्यात्मिक बातों की कदर करनेवाले हों। जब हम उन लोगों के साथ ज़्यादा वक्‍त बिताएँगे जो हमारी तरह बाइबल की शिक्षाओं को मानते हैं, अच्छे-बुरे के बारे में उसके स्तरों पर चलते हैं और हमारी तरह परमेश्‍वर के वफादार बने रहना चाहते हैं, तो हम एक-दूसरे के विचार, भावनाएँ और अनुभव जान सकेंगे और एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकेंगे और हिम्मत बँधा सकेंगे। (रोमियों 1:11, 12 पढ़िए।) आध्यात्मिक बातों को अहमियत देनेवाले ऐसे दोस्त हमें मसीही भाई-बहनों के बीच मिलेंगे। लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि राज-घर में आनेवाला हर कोई एक अच्छा दोस्त है? नहीं, ऐसा ज़रूरी नहीं है।

करीबी दोस्त चुनना

12, 13. (क) मसीही भाई-बहनों के बीच भी हमें क्यों सोच-समझकर दोस्त चुनने चाहिए? (ख) पहली सदी की मंडलियों को किस समस्या का सामना करना पड़ा था? और इस वजह से पौलुस ने कैसी कड़ी चेतावनियाँ दीं?

12 हमारे दोस्त हमें परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने में मदद दें, इसके लिए ज़रूरी है कि मंडली के अंदर भी हम सोच-समझकर दोस्त चुनें। क्या इससे हमें ताज्जुब होना चाहिए? जी नहीं। हो सकता है कि मंडली के कुछ भाई-बहन आध्यात्मिक मायने में प्रौढ़ या तजुरबेकार न हों। जैसे एक पेड़ के कुछ फल पकने में ज़्यादा वक्‍त लगाते हैं, वैसे ही कुछ भाई-बहनों को आध्यात्मिक प्रौढ़ता हासिल करने में ज़्यादा वक्‍त लगता है। इसलिए हर मंडली में ऐसे मसीही होते हैं जिन्होंने अलग-अलग स्तर पर आध्यात्मिक तरक्की की होती है। (इब्रानियों 5:12–6:3) लेकिन हाँ, जो सच्चाई में नए हैं या कमज़ोर हैं, उनके साथ हम प्यार और सब्र से पेश आते हैं ताकि हम उन्हें आध्यात्मिक तरक्की करने में मदद दें।—रोमियों 14:1; 15:1.

13 कभी-कभी मंडली में ऐसे हालात पैदा होते हैं जब हमें संगति के मामले में खास सावधानी बरतने की ज़रूरत पड़ती है। कुछ लोग शायद गलत चालचलन में पड़ गए हों। दूसरों ने शायद हमेशा शिकायत करने की या कड़वी बातें बोलने की आदत डाल ली हो। पहली सदी की मंडलियों में भी ऐसी समस्या थी। ज़्यादातर मसीही वफादार थे, मगर कुछ लोग सीधी चाल नहीं चल रहे थे। कुरिंथ की मंडली में ऐसे लोग थे जो कुछ मसीही शिक्षाओं को नहीं मानते थे। इसलिए प्रेषित पौलुस ने उस मंडली को चेतावनी दी, “धोखा न खाओ। बुरी संगति अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।” (1 कुरिंथियों 15:12, 33) पौलुस ने तीमुथियुस को सावधान किया कि संगी मसीहियों के बीच भी ऐसे लोग होंगे जो सीधाई से नहीं चलते। तीमुथियुस से कहा गया कि वह ऐसे लोगों से दूर रहे और उन्हें अपना करीबी दोस्त न बनाए।—2 तीमुथियुस 2:20-22 पढ़िए।

14. संगति के बारे में पौलुस की चेतावनियों में जो सिद्धांत पाया जाता है, उस पर हम कैसे अमल कर सकते हैं?

14 पौलुस की चेतावनियों में जो सिद्धांत पाया जाता है, उस पर हम कैसे अमल कर सकते हैं? चाहे मंडली के अंदर हो या बाहर, हमें ऐसे किसी भी इंसान के साथ ज़्यादा मेल-जोल नहीं रखना चाहिए जिसकी संगति से हमारी सोच भ्रष्ट हो सकती है। (2 थिस्सलुनीकियों 3:6, 7, 14) हमें यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते की हिफाज़त करनी चाहिए। याद रखिए कि एक स्पंज की तरह हम अपने करीबी दोस्तों की सोच, उनका रवैया और उनके तौर-तरीके अपना लेते हैं। अगर हम स्पंज को सिरके में डुबोएँ तो यह उम्मीद नहीं कर सकते कि उसे निचोड़ने पर पानी निकलेगा। उसी तरह, अगर हम ऐसे लोगों के साथ मेल-जोल रखेंगे जो हम पर बुरा असर डालते हैं, तो हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि उनकी दोस्ती से हमारे अंदर अच्छे गुण पैदा होंगे।—1 कुरिंथियों 5:6.

मसीही भाई-बहनों के बीच आपको अच्छे दोस्त मिल सकते हैं

15. मंडली में आप ऐसे दोस्त कैसे पा सकते हैं, जिनका यहोवा के साथ मज़बूत रिश्‍ता है?

15 खुशी की बात यह है कि मसीही भाई-बहनों के बीच अच्छे दोस्त पाने की ज़्यादा संभावना होती है। (भजन 133:1) मंडली में आप ऐसे दोस्त कैसे पा सकते हैं जो यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत बनाए रखने के लिए जी-जान से मेहनत करते हैं? जब आप अपने अंदर परमेश्‍वर के गुण बढ़ाएँगे और उसके स्तरों पर चलेंगे, तो आपमें ऐसे गुण देखकर आपके जैसी सोच रखनेवाले आपकी तरफ ज़रूर खिंचे चले आएँगे। इसके अलावा, नए दोस्त बनाने के लिए आपको भी कुछ कदम उठाने होंगे। (“ हमने अच्छे दोस्त कैसे बनाए” नाम का बक्स देखिए।) ऐसे लोगों को ढूँढ़िए जिनमें वही गुण हों जो आप अपने अंदर बढ़ाना चाहते हैं। ‘अपने दिलों को बड़ा करने’ की बाइबल की सलाह मानिए। और मंडली में दोस्त चुनते वक्‍त यह मत देखिए कि वे किस जाति, देश और संस्कृति से हैं। (2 कुरिंथियों 6:13; 1 पतरस 2:17 पढ़िए।) सिर्फ उन्हीं के साथ दोस्ती मत कीजिए जो आपके हम-उम्र हैं। याद कीजिए कि योनातान, दाविद से उम्र में बहुत बड़ा था। उसी तरह, अपने से बड़ों के साथ दोस्ती करने से हम उनके तजुरबे और उनकी बुद्धि के भंडार से बहुत फायदा पा सकते हैं।

जब मुश्‍किलें खड़ी होती हैं

16, 17. अगर कोई भाई या बहन हमें किसी तरह चोट पहुँचाता है, तो हमें मंडली से दूर क्यों नहीं जाना चाहिए?

16 कभी-कभी भाई-बहनों के बीच समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं, क्योंकि मंडली में अलग-अलग स्वभाव के और अलग-अलग माहौल में पले-बढ़े लोग होते हैं। एक भाई या बहन शायद कुछ ऐसा कहे या कर दे जिससे हमें ठेस पहुँचे। (नीतिवचन 12:18) अलग-अलग शख्सियत, राय या गलतफहमियाँ कई बार मुश्‍किलें पैदा कर देती हैं। क्या हम ऐसी समस्याओं की वजह से ठोकर खाएँगे और मंडली से दूर हो जाएँगे? अगर हम यहोवा से और उन लोगों से प्यार करें जिनसे वह प्यार करता है, तो हम ऐसा हरगिज़ नहीं करेंगे।

17 यहोवा ने हमें बनाया है और उसी की बदौलत हमारा जीवन कायम है। इसलिए उसका हक बनता है कि हम उससे प्यार करें और सिर्फ उसकी भक्‍ति करें। (प्रकाशितवाक्य 4:11) आज यहोवा, मसीही मंडली को इस्तेमाल कर रहा है, इसलिए हम पूरी वफादारी से मंडली को भी सहयोग देंगे। (इब्रानियों 13:17) अगर कोई मसीही भाई या बहन हमें किसी तरह चोट पहुँचाता है या निराश करता है, तो हम अपनी नाराज़गी दिखाने के लिए सभाओं में आना बंद नहीं करेंगे। ऐसा करने की हम सोच भी कैसे सकते हैं? यहोवा ने तो हमें ठेस नहीं पहुँचायी। हम यहोवा से प्यार करते हैं इसलिए हम कभी-भी उससे या उसके लोगों से मुँह नहीं मोड़ेंगे!—भजन 119:165 पढ़िए।

18. (क) मंडली में शांति को बढ़ावा देने के लिए हम क्या कर सकते हैं? (ख) जब किसी को माफ करने का वाजिब कारण हो, तो उसे माफ करने से क्या-क्या आशीषें मिलती हैं?

18 अपने मसीही भाइयों के लिए प्यार हमें उभारता है कि हम मंडली में शांति को बढ़ावा दें। यहोवा जिनसे प्यार करता है, उनसे वह यह उम्मीद नहीं करता कि वे कोई गलती नहीं करेंगे, न ही हमें उम्मीद करनी चाहिए। भाइयों से प्यार करने की वजह से हम उनकी छोटी-मोटी गलतियों को अनदेखा करते हैं और याद रखते हैं कि हम सभी पापी हैं और गलतियाँ करते हैं। (नीतिवचन 17:9; 1 पतरस 4:8) प्यार होने से हम “एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ” करते रहेंगे। (कुलुस्सियों 3:13) इस सलाह को मानना हमेशा आसान नहीं होता। अगर हम मन-ही-मन कुढ़ते रहें, तो हम नाराज़ रहेंगे और हमें लगेगा कि हम अपने गुस्से से उस भाई को सज़ा दे रहे हैं जिसने हमें ठेस पहुँचायी है। मगर असल में नाराज़ रहने से हम अपना ही नुकसान करते हैं। अगर किसी को माफ करने का वाजिब कारण है, तो उसे माफ करने से बढ़िया आशीषें मिलती हैं। (लूका 17:3, 4) यह हमें मन की शांति और सुकून देता है, साथ ही मंडली में शांति बनी रहती है और सबसे बड़ी बात, यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता सलामत रहता है।—मत्ती 6:14, 15; रोमियों 14:19.

मेल-जोल कब बंद कर दें

19. किन हालात में कुछ लोगों से मेल-जोल बंद रखना हमारे लिए ज़रूरी हो सकता है?

19 मंडली में कभी-कभी हमें बताया जाता है कि हम किसी शख्स के साथ अब से मेल-जोल बंद कर दें, जो अब तक मंडली का सदस्य था। ऐसा तब होता है जब कोई परमेश्‍वर का कानून तोड़ता है और पछतावा नहीं दिखाता और इस वजह से मंडली से उसका बहिष्कार किया जाता है, या जब कोई झूठी शिक्षाएँ सिखाता है और इस तरह मसीही विश्‍वास को ठुकरा देता है या जब कोई खुद मंडली से नाता तोड़ लेता है। परमेश्‍वर का वचन हमें साफ बताता है कि ऐसे लोगों के साथ “मेल-जोल रखना बंद कर दो।” * (1 कुरिंथियों 5:11-13 पढ़िए; 2 यूहन्‍ना 9-11) अगर यह शख्स हमारा दोस्त रहा हो या हमारा रिश्‍तेदार हो, तो उससे दूर रहना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती हो सकता है। तब क्या हम अपने इरादे पर अटल रहेंगे और इस तरह दिखाएँगे कि हम किसी और से ज़्यादा यहोवा के वफादार हैं और न्याय के बारे में उसके नियमों को वफादारी से मानना चाहते हैं? याद रखिए कि जब कोई यहोवा का वफादार रहकर उसकी आज्ञा मानता है तो ऐसी वफादारी यहोवा की नज़र में अनमोल है।

20, 21. (क) बहिष्कार करने का इंतज़ाम क्यों एक प्यार-भरा इंतज़ाम है? (ख) हमें सोच-समझकर दोस्त क्यों चुनने चाहिए?

20 बहिष्कार करने का इंतज़ाम वाकई यहोवा का एक प्यार-भरा इंतज़ाम है। वह कैसे? पश्‍चाताप न करनेवाले को मंडली से बाहर करना दिखाता है कि हम यहोवा के पवित्र नाम और उसके स्तरों का आदर करते हैं। (1 पतरस 1:15, 16) साथ ही, बहिष्कार के इंतज़ाम की वजह से मंडली की हिफाज़त होती है। परमेश्‍वर के वफादार सेवक जानबूझकर पाप करनेवालों के बुरे असर से बचे रहते हैं। वे इस भरोसे के साथ अपनी सेवा जारी रख सकते हैं कि मंडली उनके लिए एक ऐसा आशियाना है, जहाँ वे इस दुनिया की बुराइयों से सुरक्षित हैं। (1 कुरिंथियों 5:7; इब्रानियों 12:15, 16) ऐसी सख्त कार्रवाई करना गुनहगार के लिए प्यार का सबूत है। क्योंकि उसे होश में आने के लिए शायद इसी झटके की ज़रूरत हो और शायद इसकी वजह से वह यहोवा के पास लौट आने के लिए ज़रूरी कदम उठाए।—इब्रानियों 12:11.

21 हम इस सच्चाई को झुठला नहीं सकते कि हमारे करीबी दोस्तों का हम पर ज़बरदस्त असर होता है और हम उनके साँचे में ढल सकते हैं। इसलिए हमें सोच-समझकर दोस्त चुनने चाहिए। अगर हम यहोवा के दोस्तों को अपना दोस्त बनाएँ और जिनसे वह प्यार करता है उनसे प्यार करें तो हमें सबसे अच्छे दोस्त मिलेंगे। ऐसे दोस्तों से हम जो सीखेंगे, उससे यहोवा को खुश करने का हमारा इरादा और भी मज़बूत होगा।

^ पैरा. 4 जब यहोवा ने अब्राहम से कहा कि वह अपने बेटे की बलि करे, तो यह एक झलक थी कि यहोवा खुद अपने इकलौते बेटे का बलिदान चढ़ाएगा। (यूहन्‍ना 3:16) यहोवा ने अब्राहम को रोक लिया और इसहाक के बदले एक मेढ़ा चढ़ाने का इंतज़ाम किया।—उत्पत्ति 22:1, 2, 9-13.

^ पैरा. 9 जब दाविद ने गोलियात को मार गिराया तब वह “बस एक छोटा-सा लड़का” था। और योनातान की मौत के वक्‍त दाविद की उम्र करीब 30 साल थी और योनातान करीब 60 का था। (1 शमूएल 17:33; 31:2; 2 शमूएल 5:4) इससे पता चलता है कि योनातान दाविद से करीब 30 साल बड़ा था।

^ पैरा. 10 जैसे 1 शमूएल 23:17 दिखाता है, योनातान ने दाविद की हिम्मत बँधाने के लिए उससे पाँच बातें कहीं: (1) उसने दाविद से कहा कि उसे डरने की ज़रूरत नहीं। (2) उसने दाविद को यकीन दिलाया कि शाऊल की कोशिशें नाकाम होंगी। (3) उसने दाविद को याद दिलाया कि राजा का पद उसी को मिलेगा, जैसे परमेश्‍वर ने वादा किया है। (4) उसने शपथ खायी कि वह दाविद का वफादार रहेगा। (5) उसने दाविद को बताया कि शाऊल भी जानता है कि योनातान दाविद का वफादार है।

^ पैरा. 19 जिन लोगों का बहिष्कार किया गया है या जिन्होंने खुद मंडली से नाता तोड़ लिया है, उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए “जिनका बहिष्कार किया गया है, उनके साथ कैसे पेश आएँ” नाम का अतिरिक्‍त लेख देखिए।