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अध्याय 9

“नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!”

“नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!”

“अपने शरीर के उन अंगों को मार डालो जिनमें ऐसी लालसाएँ पैदा होती हैं जैसे, नाजायज़ यौन-संबंध, अशुद्धता, बेकाबू होकर वासनाएँ पूरी करना, बुरी इच्छाएँ और लालच जो कि मूर्तिपूजा के बराबर है।”—कुलुस्सियों 3:5.

1, 2. बिलाम ने यहोवा के लोगों का नुकसान करने के लिए क्या चाल चली?

एक मछुवारा मछली पकड़ने के लिए अपनी पसंदीदा जगह जाता है। आज वह एक खास किस्म की मछली पकड़ने के इरादे से आया है। वह सोच-समझकर चारा चुनता है। फिर उसे काँटे में लगाकर पानी में डालता है और बैठकर इंतज़ार करता है। कुछ ही पल बाद काँटे की डोर खिंचने लगती है और बंसी झुकने लगती है। वह अपने शिकार को ऊपर खींच लेता है। उसकी मुस्कुराहट बता रही है कि उसका चारा काम कर गया है।

2 यह मिसाल हमें बिलाम नाम के एक आदमी की याद दिलाती है, जो एक शातिर शिकारी से कम नहीं था। यह बात ईसा पूर्व 1473 की है जब बिलाम ने एक खास शिकार को फँसाने के लिए इसी तरह बहुत सोच-समझकर चारा डाला था। उसका शिकार कौन था? परमेश्‍वर के लोग। वे उस वक्‍त वादा किए गए देश की सरहद के पास मोआब के मैदानों में डेरा डाले हुए थे। बिलाम खुद को यहोवा का नबी कहता था, मगर असल में वह एक बेहद लालची इंसान था। उससे वादा किया गया था कि इसराएलियों को शाप देने के बदले उसे बड़ा धन दिया जाएगा। जब उसने इसराएलियों को शाप देना चाहा, तो यहोवा ने उसे कामयाब नहीं होने दिया। इसलिए उसके मुँह से शाप के बजाय आशीष ही निकली। मगर लालची बिलाम किसी भी कीमत पर इनाम पाना चाहता था। उसके शातिर दिमाग को एक चाल सूझी। उसने सोचा कि अगर मैं इसराएलियों को किसी गंभीर पाप में फँसा सका, तो उनका परमेश्‍वर खुद उन्हें शाप देगा। बिलाम ने अपना यह मंसूबा पूरा करने के लिए चारा डाला। चारा क्या था? मोआब की जवान लड़कियाँ, जो इसराएली आदमियों को अनैतिक काम करने के लिए लुभातीं।—गिनती 22:1-7; 31:15, 16; प्रकाशितवाक्य 2:14.

3. बिलाम की चाल किस हद तक कामयाब रही?

3 क्या यह चाल कामयाब हुई? हाँ, काफी हद तक। हज़ारों इसराएली आदमी इस चारे के लालच में आ गए और उन्होंने “मोआबी औरतों के साथ नाजायज़ यौन-संबंध” रखे। यहाँ तक कि वे मोआबी देवताओं को और पोर के घिनौने बाल देवता को पूजने लगे, जो प्रजनन या सेक्स का देवता था। अंजाम यह हुआ कि 24,000 इसराएली वादा किए गए देश की सरहद पर ही मारे गए। यह वाकई बहुत बड़ी तबाही थी!—गिनती 25:1-9.

4. हज़ारों इसराएली नाजायज़ यौन-संबंध के फंदे में क्यों फँस गए?

4 आखिर वह क्या बात थी जो इसराएलियों को ऐसी तबाही के रास्ते पर ले गयी? बहुत-से इसराएली यहोवा से दूर चले गए थे। उन्होंने अपना दिल कठोर करके दुष्ट बना लिया था। उन्होंने उस परमेश्‍वर से मुँह मोड़ लिया जिसने उन्हें मिस्र से छुड़ाया था, वीराने में खाना दिया और सही-सलामत वादा किए गए देश तक ले आया था। (इब्रानियों 3:12) उसी घटना को याद करते हुए प्रेषित पौलुस ने लिखा, “न ही हम नाजायज़ यौन-संबंध रखने का पाप करें जैसे उनमें से कुछ ने किया था और एक ही दिन में उनमें से 23,000 मारे गए।” *1 कुरिंथियों 10:8.

5, 6. मोआब के मैदानों में इसराएलियों ने जो पाप किया था, वह घटना आज हमारे लिए क्यों अहमियत रखती है?

5 आज परमेश्‍वर के लोग भी आनेवाली नयी दुनिया की सरहद पर खड़े हैं जिसका वादा किया गया है। इसलिए वे गिनती किताब में दर्ज़ इस घटना से कई ज़रूरी सबक सीख सकते हैं। (1 कुरिंथियों 10:11) पुराने वक्‍त के मोआबियों की तरह आज की दुनिया भी सेक्स के पीछे पागल है, फर्क सिर्फ इतना है कि आज और भी बड़े पैमाने पर यह पागलपन दिखायी देता है। इतना ही नहीं, हर साल हज़ारों मसीही, नाजायज़ यौन-संबंध के शिकार होते हैं। यह वही फंदा है जिसमें फँसकर इसराएलियों ने अपनी जान गँवायी थी। (2 कुरिंथियों 2:11) साथ ही, जिस तरह जिमरी एक मिद्यानी औरत को खुल्लम-खुल्ला इसराएलियों की छावनी के बीच अपने तंबू के अंदर ले आया था, उसी तरह आज परमेश्‍वर के लोगों के साथ संगति करनेवाले कुछ लोगों ने मंडली के अंदर बदचलनी का बुरा असर फैलाया है।—गिनती 25:6, 14; यहूदा 4.

6 क्या आप समझ रहे हैं कि मोआब के मैदानों में इसराएलियों ने जिन हालात का सामना किया था, आप भी ठीक उन्हीं हालात में हैं? क्या आप देख सकते हैं कि नयी दुनिया आपके बिलकुल सामने है? क्या यही वह इनाम नहीं जिसका सभी ने लंबे अरसे से इंतज़ार किया है? अगर हाँ, तो परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दीजिए और यह आदेश मानिए: “नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!”—1 कुरिंथियों 6:18.

मोआब के मैदान, जहाँ यह घटना हुई थी

नाजायज़ यौन-संबंध क्या है?

7, 8. “नाजायज़ यौन-संबंध” क्या है? इन कामों में लगे रहनेवाले कैसे अपनी करनी का अंजाम भुगतते हैं?

7 बाइबल में शब्द “नाजायज़ यौन-संबंध” (यूनानी, पोर्निया) उन सभी यौन-संबंधों के लिए इस्तेमाल हुआ है, जो परमेश्‍वर के ठहराए शादी के इंतज़ाम से बाहर रखे जाते हैं। नाजायज़ यौन-संबंध में ये सारे काम शामिल हैं: शादी के बाहर यौन-संबंध, वेश्‍यावृत्ति, कुँवारे लोगों के बीच यौन-संबंध, मुख मैथुन, गुदा मैथुन और जिससे आपकी शादी नहीं हुई उसके लैंगिक अंगों के साथ छेड़-छाड़। दो आदमियों का आपस में या दो औरतों का आपस में लैंगिक काम करना, साथ ही पशुओं के साथ ऐसे काम करना भी नाजायज़ यौन-संबंध है। *

8 बाइबल बिलकुल साफ बताती है कि जो नाजायज़ यौन-संबंध रखते हैं वे मसीही मंडली में बने नहीं रह सकते, साथ ही वे हमेशा की ज़िंदगी नहीं पाएँगे। (1 कुरिंथियों 6:9; प्रकाशितवाक्य 22:15) इतना ही नहीं, ऐसे लोगों को अभी अपनी करनी के अंजाम भुगतने पड़ते हैं। दूसरों का उन पर से भरोसा उठ जाता है, वे अपनी ही नज़र में गिर जाते हैं, उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में कलह होने लगती है, उनका ज़मीर उन्हें कोसता रहता है। साथ ही, उनके हिस्से में अनचाहा गर्भ, बीमारियाँ, यहाँ तक कि मौत आती है। (गलातियों 6:7, 8 पढ़िए।) जिस राह पर इतने अंगारे बिछे हों, उस राह पर कदम ही क्यों रखें? मगर अफसोस कि बहुत-से लोग इन खौफनाक अंजामों के बारे में उस वक्‍त नहीं सोचते जब वे पहला गलत कदम बढ़ाते हैं। अकसर यह पहला कदम होता है, पोर्नोग्राफी।

गलत राह पर पहला कदम

9. क्या यह दावा सही है कि पोर्नोग्राफी से कोई नुकसान नहीं होता? समझाइए।

9 पोर्नोग्राफी का मतलब है, यौन-इच्छाएँ जगाने के लिए अश्‍लील तसवीरें देखना, अश्‍लील कहानियाँ या लेख पढ़ना, अश्‍लील बातों या कामों की रिकॉर्ड की हुई आवाज़ें सुनना। इसमें, किसी की भड़काऊ अंदाज़ में खींची गयी तसवीरों से लेकर दो या ज़्यादा लोगों के बीच बेहद घिनौने यौन-संबंधों की तसवीरें हो सकती हैं। अखबारों-पत्रिकाओं में, टी.वी. पर और संगीत में इसकी भरमार है और इंटरनेट पर तो इसका अंबार लगा हुआ है। जैसा कि कुछ लोग दावा करते हैं, क्या पोर्नोग्राफी देखने में कोई नुकसान नहीं है? यह दावा सरासर गलत है। क्योंकि जो लोग पोर्नोग्राफी देखते हैं, वे हस्तमैथुन के आदी हो जाते हैं और उनके मन में ‘वासनाएँ बेकाबू होकर’ सुलगने लगती हैं। * नतीजा, उन्हें सेक्स की लत पड़ जाती है, वे अस्वाभाविक वासनाओं के गुलाम बन जाते हैं, अपने पति या पत्नी के साथ उनका रिश्‍ता तबाह हो जाता है, यहाँ तक कि उनका तलाक हो जाता है। (रोमियों 1:24-27; इफिसियों 4:19) एक खोजकर्ता कहता है कि सेक्स की लत कैंसर जैसी है। वह कहता है कि यह लत “बढ़ती ही रहती है और फैलती जाती है, बहुत कम ऐसा होता है कि यह खत्म हो। इसका इलाज करना और इसे पूरी तरह ठीक करना भी बेहद मुश्‍किल है।”

घर में सिर्फ उस जगह इंटरनेट लगाना बुद्धिमानी है, जहाँ सभी आते-जाते हैं

10. याकूब 1:14, 15 में दिए सिद्धांत को हम किन-किन तरीकों से लागू कर सकते हैं? (“ मैंने शुद्ध बने रहने की ताकत कैसे पायी” नाम का बक्स भी देखिए।)

10 ध्यान दीजिए कि याकूब 1:14, 15 में क्या कहा गया है, “हर किसी की इच्छा उसे खींचती और लुभाती है, जिससे वह परीक्षा में पड़ता है। फिर इच्छा गर्भवती होती है और पाप को जन्म देती है और जब पाप कर लिया जाता है तो यह मौत लाता है।” इसलिए अगर आपके मन में कोई बुरी इच्छा उठे, तो फौरन उसे निकाल बाहर कीजिए! मिसाल के लिए, अगर अचानक आपकी नज़र भड़काऊ, अश्‍लील तसवीरों पर पड़ जाती है तो फौरन नज़र फेर लीजिए या कंप्यूटर बंद कर दीजिए या टी.वी. का चैनल बदल दीजिए। इससे बचने के लिए जो भी ज़रूरी हो वह कीजिए, इससे पहले कि बुरी इच्छाओं पर काबू पाना मुश्‍किल हो जाए और ये आप पर हावी हो जाएँ!—मत्ती 5:29, 30 पढ़िए।

11. गंदी इच्छाओं से लड़ते वक्‍त हम यहोवा पर अपना भरोसा कैसे दिखा सकते हैं?

11 परमेश्‍वर हमारे बारे में हमसे बेहतर जानता है। उसने ज़रूर किसी वजह से ही हमें यह सलाह दी है: “अपने शरीर के उन अंगों को मार डालो जिनमें ऐसी लालसाएँ पैदा होती हैं जैसे, नाजायज़ यौन-संबंध, अशुद्धता, बेकाबू होकर वासनाएँ पूरी करना, बुरी इच्छाएँ और लालच जो कि मूर्तिपूजा के बराबर है।” (कुलुस्सियों 3:5) माना कि ऐसा करना बहुत मुश्‍किल हो सकता है। मगर याद रखिए कि स्वर्ग में हमारा ऐसा पिता और परमेश्‍वर है जो हमसे बहुत प्यार करता है और बड़े सब्र से हमारे साथ पेश आता है। हम मदद के लिए उससे बिनती कर सकते हैं। (भजन 68:19) इसलिए जैसे ही कभी आपके मन में गंदे विचार उठें, फौरन मदद के लिए उससे प्रार्थना कीजिए। उससे वह ताकत पाने के लिए प्रार्थना कीजिए जो “आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर” है और जबरन अपने मन को दूसरी बातों पर लगाइए।—2 कुरिंथियों 4:7; 1 कुरिंथियों 9:27; “ मैं गंदी आदत कैसे छोड़ सकता हूँ?” नाम का बक्स देखिए।

12. हमारा “दिल” क्या है? हमें क्यों इसकी रक्षा करनी चाहिए?

12 बुद्धिमान राजा सुलैमान ने लिखा, “सब चीज़ों से बढ़कर अपने दिल की हिफाज़त कर, क्योंकि जीवन के सोते इसी से निकलते हैं।” (नीतिवचन 4:23) यहाँ “दिल” शब्द का मतलब है, हमारा अंदर का इंसान, यानी परमेश्‍वर की नज़र में हम असल में कैसे इंसान हैं। जब परमेश्‍वर यह तय करेगा कि हमें हमेशा की ज़िंदगी मिलनी चाहिए या नहीं, तो वह यह नहीं देखेगा कि दूसरे हमें कैसा इंसान समझते हैं, बल्कि यह देखेगा कि हम असल में अंदर से कैसे इंसान हैं। यह सीधी-सी बात है। साथ ही बहुत गंभीर भी। परमेश्‍वर के वफादार सेवक अय्यूब ने हमारे लिए कितनी बढ़िया मिसाल रखी है! उसने अपनी आँखों के साथ एक करार किया था कि वह किसी औरत को गलत नज़र से नहीं देखेगा। (अय्यूब 31:1) एक भजनहार की भी ऐसी ही सोच थी। इसलिए उसने यह प्रार्थना की: “मेरी आँखों को बेकार की चीज़ों से फेर दे।”—भजन 119:37.

दीना का गलत चुनाव

13. दीना कौन थी? हम क्यों कहते हैं कि दोस्तों का चुनाव करने में उसने नासमझी दिखायी?

13 जैसे हमने अध्याय 3 में देखा था, हमारे दोस्तों का हम पर या तो अच्छा या बुरा असर हो सकता है। (नीतिवचन 13:20; 1 कुरिंथियों 15:33 पढ़िए।) कुलपिता याकूब की बेटी दीना को याद कीजिए। हालाँकि दीना के माता-पिता ने उसे बचपन से अच्छी बातें सिखायी थीं, फिर भी उसने कनान देश की लड़कियों से दोस्ती करने की नासमझी की। मोआब के लोगों की तरह कनान के लोग भी अनैतिक कामों के लिए बदनाम थे। (लैव्यव्यवस्था 18:6-25) कनानी आदमी और यहाँ तक कि शेकेम भी जो अपने पिता के पूरे घराने का “सबसे इज़्ज़तदार आदमी” था, यह समझते थे कि दीना को उनके साथ यौन-संबंध रखने में कोई एतराज़ नहीं होगा।—उत्पत्ति 34:18, 19.

14. दीना के गलत चुनाव से कैसी मुसीबत आयी?

14 जब दीना ने शेकेम को देखा, तो उसके मन में शायद दूर-दूर तक शारीरिक संबंधों का खयाल भी न आया हो। मगर शेकेम ने यौन-इच्छा पैदा होने पर वही किया जो कनानियों के लिए एक आम बात थी। अगर दीना ने आखिरी पल में उसका विरोध किया भी होगा तो वह बेकार था, क्योंकि शेकेम ने उसे “पकड़ लिया और उसका बलात्कार करके उसे भ्रष्ट कर डाला।” बाद में शायद शेकेम को दीना से “प्यार हो गया” मगर वह दीना के साथ जो कर चुका था उसे बदल नहीं सकता था। (उत्पत्ति 34:1-4 पढ़िए।) इसका बुरा अंजाम सिर्फ दीना को ही नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार को भी भुगतना पड़ा। गलत किस्म के दोस्त चुनने की वजह से एक-के-बाद-एक ऐसी घटनाएँ घटती गयीं जिनसे दीना को और उसके पूरे परिवार को शर्मिंदगी और बदनामी झेलनी पड़ी।—उत्पत्ति 34:7, 25-31; गलातियों 6:7, 8.

15, 16. हम सच्ची बुद्धि कैसे पा सकते हैं? (“ मनन के लिए आयतें” नाम का बक्स भी देखिए।)

15 दीना ने अगर इस घटना से सबक सीखा भी, तो बहुत भारी कीमत चुकाकर। जो लोग यहोवा से प्यार करते और उसकी आज्ञा मानते हैं, उन्हें कड़वे अंजाम भुगतने के बाद ज़िंदगी के सबक सीखने की ज़रूरत नहीं है। वे परमेश्‍वर की बात मानते हैं, इसलिए वे ‘बुद्धिमानों के साथ रहने’ का चुनाव करते हैं। (नीतिवचन 13:20क) इस तरह वे समझ पाते हैं कि “भली राहें” क्या हैं और बेवजह मुसीबतों और दुख-दर्द को बुलावा नहीं देते।—नीतिवचन 2:6-9; भजन 1:1-3.

16 परमेश्‍वर की बुद्धि ऐसे हर इंसान को मिल सकती है जो दिल से इसे पाना चाहता है और इसके लिए लगातार प्रार्थना करता है और हर रोज़ परमेश्‍वर के वचन का और विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास से मिलनेवाली किताबों-पत्रिकाओं का अध्ययन करता है। (मत्ती 24:45; याकूब 1:5) इसके अलावा, उस इंसान में नम्रता का गुण होना भी ज़रूरी है। बाइबल की सलाह मानने के लिए एक इंसान किस हद तक तैयार है, इससे उसकी नम्रता का पता लगता है। (2 राजा 22:18, 19) मिसाल के लिए, एक मसीही शायद दिमागी तौर पर यह बात माने कि उसका दिल धोखेबाज़ और उतावला हो सकता है। (यिर्मयाह 17:9) लेकिन अगर कुछ मामलों में वह बुद्धि से काम नहीं ले रहा और अगर उसे सीधे और साफ शब्दों में सलाह दी जाती है, तो क्या उसमें इतनी नम्रता है कि वह प्यार की वजह से दी गयी इस मदद को स्वीकार करे और सलाह माने?

17. एक परिवार में कैसे हालात पैदा हो सकते हैं? बताइए कि एक पिता अपनी बेटी को कैसे समझा सकता है।

17 मान लीजिए, यहोवा की सेवा करनेवालों का एक परिवार है। इस परिवार की लड़की मंडली के किसी जवान के साथ घूमने जाना चाहती है। मगर पिता कहता है कि कोई तीसरा तुम्हारे साथ जाएगा तो ही मैं इसकी इजाज़त दूँगा। लड़की कहती है, “पापा, क्या आपको मुझ पर भरोसा नहीं है? हम कोई गलत काम नहीं करेंगे!” वह शायद यहोवा से प्यार करती होगी और उसका कोई गलत इरादा न हो, फिर भी क्या वह ‘परमेश्‍वर की बुद्धि’ के मुताबिक चल रही है? क्या वह ‘नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भाग’ रही है? या क्या वह “अपने दिल पर भरोसा” करने की बेवकूफी कर रही है? (नीतिवचन 28:26) अब आप सोचिए, ऐसे हालात में वह पिता बाइबल के और किन सिद्धांतों की मदद से अपनी बेटी को समझा सकता है ताकि वह सही फैसला करे।—नीतिवचन 22:3; मत्ती 6:13; 26:41 देखिए।

यूसुफ नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागा

18, 19. यूसुफ के सामने क्या परीक्षा आयी? और उसने कैसे उसका सामना किया?

18 आइए अब एक और जवान की मिसाल लें जो परमेश्‍वर से प्यार करता था और इसलिए नाजायज़ यौन-संबंध से दूर भागने में कामयाब रहा। वह था दीना का सौतेला भाई, यूसुफ। (उत्पत्ति 30:20-24) बचपन में यूसुफ देख चुका था कि उसकी बहन की नासमझी का कितना बुरा अंजाम हुआ था। इस घटना की यादें और परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने की उसकी ख्वाहिश ने उस वक्‍त यूसुफ की हिफाज़त की जब वह मिस्र में गुलाम था। वहाँ उसके मालिक पोतीफर की पत्नी उसे “हर दिन” अपने मोह-जाल में फँसाने की कोशिश करती थी। यूसुफ अपने मालिक का खरीदा हुआ गुलाम था और गुलामों को यह आज़ादी नहीं थी कि अपने मालिक की नौकरी जब चाहे तब छोड़ दें। इसलिए उसे समझदारी और हिम्मत के साथ अपने हालात का सामना करना था। यूसुफ ने ऐसा ही किया। पोतीफर की पत्नी उसे बार-बार अपने पास बुलाती मगर वह इनकार करता रहा और आखिर में वह उसके चंगुल से बचकर भाग निकला।—उत्पत्ति 39:7-12 पढ़िए।

19 ज़रा सोचिए, अगर यूसुफ मन-ही-मन अपनी मालकिन के बारे में सोचता रहता या दिन-रात सेक्स के बारे में गंदे खयालों में डूबा रहता, तो क्या वह परमेश्‍वर की नज़र में निर्दोष बना रह पाता? नहीं, शायद ऐसा मुमकिन न होता। यूसुफ ने गलत विचारों पर सोचते रहने के बजाय, यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को सबसे अनमोल समझा। पोतीफर की पत्नी से उसने जो कहा उससे यह बात साफ ज़ाहिर होती है। वह उससे कहता था, ‘मेरे मालिक ने अपना सबकुछ मेरे हाथ में कर दिया है, सिवा तेरे क्योंकि तू उसकी पत्नी है। तो भला मैं इतना बड़ा दुष्ट काम करके परमेश्‍वर के खिलाफ पाप कैसे कर सकता हूँ?’—उत्पत्ति 39:8, 9.

20. यूसुफ के मामले में यहोवा ने हालात का रुख कैसे पलटा?

20 सोचिए, यहोवा को यह देखकर कितनी खुशी होती होगी कि नौजवान यूसुफ अपने घर-परिवार से इतनी दूर, हर दिन परीक्षाओं का सामना करते हुए भी निर्दोष बना हुआ है। (नीतिवचन 27:11) बाद में यहोवा ने घटनाओं का रुख इस तरह बदला कि यूसुफ को न सिर्फ कैद से रिहाई मिली बल्कि उसे मिस्र का प्रधान-मंत्री और अनाज के भंडारों का अधिकारी बना दिया गया! (उत्पत्ति 41:39-49) भजन 97:10 के ये शब्द कितने सच हैं: “यहोवा से प्यार करनेवालो, बुराई से नफरत करो। वह अपने वफादार लोगों की जान की हिफाज़त करता है, उन्हें दुष्टों के हाथ से छुड़ाता है।”

21. एक अफ्रीकी देश में एक भाई ने सही काम करने के लिए हिम्मत कैसे दिखायी?

21 यूसुफ की तरह, आज परमेश्‍वर के बहुत-से सेवक यह दिखाते हैं कि वे ‘बुराई से नफरत करते और भलाई से प्यार करते’ हैं। (आमोस 5:15) एक अफ्रीकी देश का एक जवान भाई बताता है कि उसकी क्लास में पढ़नेवाली एक लड़की ने उससे खुल्लम-खुल्ला कहा कि अगर वह गणित की परीक्षा में उसकी मदद करेगा तो वह बदले में उसे अपने साथ शारीरिक संबंधों की इजाज़त देगी। भाई कहता है, “मैंने फौरन उसकी यह पेशकश ठुकरा दी। परमेश्‍वर का खरा सेवक बने रहकर मैं अपनी गैरत और मान-सम्मान बनाए रख सका, जो सोने-चाँदी से कहीं ज़्यादा अनमोल है।” यह बात सच है कि पाप से ‘चंद दिनों का सुख’ मिल सकता है, मगर ऐसी घटिया किस्म की मौज-मस्ती अकसर बहुत दुख-दर्द लाती है। (इब्रानियों 11:25) ऐसी मौज-मस्ती, हमेशा कायम रहनेवाली उस खुशी के सामने बिलकुल फीकी पड़ जाती है, जो यहोवा की आज्ञा मानने से मिलती है।—नीतिवचन 10:22.

दयालु परमेश्‍वर की मदद लीजिए

22, 23. (क) अगर एक मसीही कोई गंभीर पाप करता है तो उसके लिए क्या उम्मीद है? (ख) पाप करनेवाले को कैसी मदद मिल सकती है?

22 पाप हमारे अंदर समाया हुआ है, इसलिए हम सभी को शरीर की इच्छाओं पर काबू पाने और परमेश्‍वर की नज़र में जो सही है, वह करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। (रोमियों 7:21-25) यहोवा यह जानता है, वह “याद रखता है कि हम मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:14) लेकिन अगर एक मसीही कोई गंभीर पाप कर बैठे तब क्या? क्या उसके लिए कोई उम्मीद नहीं? बिलकुल है। माना कि उसे अपनी करनी का फल भुगतना पड़ सकता है, जैसे राजा दाविद को भी भुगतना पड़ा था। फिर भी, जिन्हें अपने किए पर पछतावा होता है और जो “खुलकर अपने पाप मान” लेते हैं, उन्हें परमेश्‍वर “माफ करने को तत्पर रहता है।”—याकूब 5:16; भजन 86:5; नीतिवचन 28:13 पढ़िए।

23 इसके अलावा, परमेश्‍वर ने हमारी मदद करने के लिए मसीही मंडली में “आदमियों के रूप में तोहफे” दिए हैं। ये आदमी, परमेश्‍वर की सेवा में ऐसे तजुरबेकार चरवाहे हैं जो हमारी मदद करने के काबिल भी हैं और तैयार भी। (इफिसियों 4:8, 12; याकूब 5:14, 15) उनका मकसद यह होता है कि वे पाप में पड़नेवाले की मदद करें जिससे परमेश्‍वर के साथ उसका टूटा रिश्‍ता फिर जुड़ सके, साथ ही वह “समझ” हासिल करे ताकि दोबारा पाप न करे।—नीतिवचन 15:32.

“समझ हासिल” कीजिए

24, 25. (क) नीतिवचन 7:6-23 में बताए जवान ने कैसे दिखाया कि उसमें “बिलकुल समझ नहीं थी”? (ख) हम कैसे “समझ हासिल” कर सकते हैं?

24 बाइबल ऐसे लोगों के बारे में बताती है जिनमें “बिलकुल समझ नहीं” है और ऐसे लोगों के बारे में भी जो “समझ हासिल” करते हैं। (नीतिवचन 7:7) जिस इंसान में “बिलकुल समझ नहीं” होती वह नहीं जानता कि फलाँ मामले में परमेश्‍वर की सोच क्या है और उसे परमेश्‍वर की सेवा में कोई तजुरबा भी नहीं होता। इसलिए उसमें पैनी समझ नहीं होती और वह सही फैसला नहीं कर पाता। ऐसा इंसान नीतिवचन 7:6-23 में बताए जवान की तरह गंभीर पाप के फंदे में आसानी से फँस सकता है। लेकिन जो “समझ हासिल करता है,” वह इंसान प्रार्थना में परमेश्‍वर से मदद माँगकर हर रोज़ उसके वचन का अध्ययन करता है और खुद की जाँच-परख करता है कि वह अंदर से कैसा इंसान है। परिपूर्ण न होते हुए भी वह पूरी कोशिश करता है कि उसकी सोच, इच्छाएँ, भावनाएँ ज़्यादा-से-ज़्यादा परमेश्‍वर की सोच के मुताबिक हों और वह ऐसे लक्ष्य रखे जिनसे परमेश्‍वर खुश हो। इस तरह वह “खुद से प्यार करता है” यानी खुद को आशीष दिलाता है और “उसे कामयाबी मिलती है।”—नीतिवचन 19:8.

25 खुद से ये सवाल कीजिए: ‘क्या मुझे पूरा यकीन है कि परमेश्‍वर के स्तर सही हैं? क्या मैं पूरे दिल से मानता हूँ कि इन स्तरों पर चलने से सबसे बड़ी खुशी मिलती है?’ (भजन 19:7-10; यशायाह 48:17, 18) अगर आपके दिल में ज़रा भी शक है तो उसे दूर कीजिए। परमेश्‍वर के नियमों को नज़रअंदाज़ करने के बुरे अंजामों पर गहराई से सोचिए। इसके अलावा, सच्चाई के हिसाब से ज़िंदगी बिताइए और अपने मन में ऐसी बातें भरिए जो सच्ची हैं, नेक हैं, साफ-सुथरी हैं, चाहने लायक हैं और सद्‌गुण की हैं। तब आप देख सकेंगे कि “यहोवा कितना भला है।” (भजन 34:8; फिलिप्पियों 4:8, 9) आप यकीन रख सकते हैं कि आप जितना ज़्यादा ऐसा करेंगे, उतना ज़्यादा परमेश्‍वर के लिए आपका प्यार बढ़ेगा, उतना ज़्यादा आप उन बातों से प्यार करेंगे जिनसे परमेश्‍वर प्यार करता है और उन बातों से नफरत करेंगे जिनसे वह नफरत करता है। यूसुफ को याद कीजिए। वह परिपूर्ण नहीं था। फिर भी वह ‘नाजायज़ यौन-संबंधों से भागने’ में कामयाब हुआ क्योंकि यूसुफ बरसों तक खुद को यहोवा के हाथों सौंपता रहा ताकि वह उसे अपने साँचे में ढालकर ऐसा इंसान बनाए जो उसका दिल खुश करे। हमारी दुआ है कि आपके बारे में भी यही कहा जा सके।—यशायाह 64:8.

26. अगले अध्याय में हम किस ज़रूरी विषय पर चर्चा करेंगे?

26 हमारे सिरजनहार ने हमारे जननांग इसलिए नहीं बनाए कि हम सिर्फ मज़े के लिए इनके साथ खिलवाड़ करें बल्कि इसलिए बनाए हैं ताकि हम संतान पैदा कर सकें और शादी के रिश्‍ते में करीबी का आनंद ले सकें। (नीतिवचन 5:18) शादी के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया क्या है, यह हम अगले दो अध्यायों में चर्चा करेंगे।

^ पैरा. 4 ये 23,000 वे लोग थे जिन्हें खुद यहोवा ने मारा था। गिनती किताब में मरनेवालों का आँकड़ा 24,000 बताया गया है क्योंकि उस आँकड़े में लोगों के ‘अगुवे’ भी शामिल थे जिनकी गिनती 1,000 थी और इन्हें न्यायियों ने मार डाला था।—गिनती 25:4, 5.

^ पैरा. 7 अशुद्धता और निर्लज्ज काम का मतलब क्या है, इस बारे में जानकारी के लिए अक्टूबर-दिसंबर 2009 की प्रहरीदुर्ग का लेख, “पाठकों के प्रश्‍न” देखिए, जिसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ पैरा. 9 हस्तमैथुन के बारे में “हस्तमैथुन की घिनौनी आदत पर जीत हासिल कीजिए” नाम के अतिरिक्‍त लेख में चर्चा की गयी है।