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अध्याय 11

शादी आदर की बात समझी जाए

शादी आदर की बात समझी जाए

“अपनी जवानी की पत्नी के साथ खुश रह।”—नीतिवचन 5:18.

1, 2. हम किस सवाल पर गौर करेंगे? और क्यों?

क्या आपकी शादी हो चुकी है? अगर हाँ, तो क्या आप अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से खुश हैं या क्या आप पति-पत्नी के बीच गंभीर समस्याएँ पैदा हो गयी हैं? क्या आप दोनों के बीच दूरियाँ बढ़ गयी हैं? क्या आप इस रिश्‍ते से खुशी पाने के बजाय, इसे बस झेल रहे हैं? अगर इन सवालों के जवाब ‘हाँ’ हैं, तो आप शायद इस बात से दुखी हैं कि आप दोनों के बीच जो प्यार था, वह अब ठंडा पड़ गया है। एक मसीही होने की वजह से आप ज़रूर यह चाहेंगे कि आपकी शादीशुदा ज़िंदगी से आपके प्यारे परमेश्‍वर यहोवा की महिमा हो। इसलिए शायद आपके मौजूदा हालात आपको बहुत परेशान कर रहे हों या आपके दिल को दुख पहुँचा रहे हों। अगर ऐसा है, तो भी हिम्मत मत हारिए। यह सोचना सही नहीं होगा कि अब कुछ नहीं हो सकता।

2 मसीही मंडली में ऐसे कई जोड़े हैं जिनकी शादीशुदा ज़िंदगी आज बहुत खुशहाल है। मगर एक वक्‍त ऐसा था जब ये साथ रहते हुए भी एक-दूसरे के लिए अजनबी हो गए थे। फिर भी, उन्होंने यह दूरी मिटाने और शादी का यह बंधन मज़बूत करने का तरीका सीखा। आप भी इनकी तरह अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से ज़्यादा सुकून पा सकते हैं। कैसे? आइए देखें।

परमेश्‍वर के और करीब आइए और अपने साथी के भी

3, 4. अगर शादीशुदा जोड़े परमेश्‍वर के करीब आने के लिए मेहनत करें तो वे कैसे एक-दूसरे के करीब आते हैं? मिसाल देकर समझाइए।

3 अगर आप और आपका साथी परमेश्‍वर के और करीब आने की पूरी कोशिश करें, तो आप एक-दूसरे के भी करीब आते जाएँगे। वह कैसे? इसे समझने के लिए आइए एक मिसाल पर गौर करें। मान लीजिए एक पहाड़ है। उस पहाड़ की एक तरफ पति खड़ा है। और उसी पहाड़ की दूसरी तरफ उसकी पत्नी खड़ी है। जब तक पति-पत्नी नीचे अपनी-अपनी जगह खड़े रहते हैं, तब तक इनके बीच दूरी बनी रहेगी। मगर जैसे-जैसे वे दोनों पहाड़ की चोटी की तरफ चढ़ना शुरू करते हैं, वैसे-वैसे उनके बीच की दूरी घटती जाती है। दूसरे शब्दों में, वे जितनी ज़्यादा ऊँचाई पर चढ़ेंगे उनके बीच का फासला उतना ही कम होता जाएगा। यह मिसाल आपको जिस बात का यकीन दिलाती है, क्या आप उसे समझ पाए?

4 पहाड़ की चोटी की तरफ बढ़ने में लगनेवाली मेहनत, आपकी वह मेहनत है जो आप तन-मन से यहोवा की सेवा करने में लगाते हैं। क्योंकि आप यहोवा से प्यार करते हैं इसलिए आप उसकी सेवा में और आगे बढ़ने के लिए पहले से कड़ी मेहनत कर रहे हैं। अब अगर आप पति-पत्नी के बीच दूरियाँ बढ़ गयी हैं, तो यह ऐसा है मानो आप दोनों उस पहाड़ पर चढ़ रहे हैं मगर दो अलग-अलग दिशाओं से। लेकिन अगर आप चढ़ते चले जाएँगे तो क्या होगा? बेशक, शुरूआत में आप दोनों के बीच काफी दूरी होगी। मगर जैसे-जैसे आप चोटी की तरफ चढ़ते जाएँगे, यानी परमेश्‍वर के करीब आने की जी-जान से कोशिश करेंगे, वैसे-वैसे आप अपने साथी के करीब आते जाएँगे। जी हाँ, अगर आप अपने साथी के करीब आना चाहते हैं तो उसका एक ही रास्ता है कि आप परमेश्‍वर के करीब आएँ। मगर आप असल ज़िंदगी में यह कैसे कर सकते हैं?

बाइबल का ज्ञान शादी के रिश्‍ते को मज़बूत करने की ताकत रखता है, लेकिन इसे लागू करने की ज़रूरत है

5. (क) यहोवा के और अपने साथी के करीब आने का एक तरीका क्या है? (ख) यहोवा शादी के बंधन को किस नज़र से देखता है?

5 पहाड़ पर और ऊँचा चढ़ने यानी परमेश्‍वर के और करीब आने का एक खास तरीका यह है कि आप और आपका साथी दोनों शादी के बारे में बाइबल में दी सलाहों पर अमल करें। (भजन 25:4; यशायाह 48:17, 18) गौर कीजिए कि एक खास मुद्दे पर प्रेषित पौलुस ने क्या सलाह दी थी। उसने कहा, “शादी सब लोगों में आदर की बात समझी जाए।” (इब्रानियों 13:4) इसका क्या मतलब है? शब्द “आदर” से यह मतलब निकलता है कि कोई ऐसी चीज़ जिसे बहुत इज़्ज़त दी जाती है और जिसे अनमोल समझा जाता है। यहोवा की नज़र में शादी का बंधन बिलकुल ऐसा ही है। वह चाहता है कि इसे इज़्ज़त दी जाए और इसे अनमोल समझा जाए।

यहोवा के लिए सच्चा प्यार आपको उभारता है

6. पौलुस ने जो कहा, उसके बारे में आस-पास की आयतें क्या दिखाती हैं? और इस बात को ध्यान में रखना क्यों ज़रूरी है?

6 परमेश्‍वर के सेवक होने के नाते आप और आपकी पत्नी ज़रूर यह जानते हैं कि शादी का बंधन बहुत अनमोल है, यहाँ तक कि पवित्र है। यहोवा ने खुद इस इंतज़ाम की शुरूआत की थी। (मत्ती 19:4-6 पढ़िए।) लेकिन अगर फिलहाल आप पति-पत्नी के रिश्‍ते में समस्याएँ खड़ी हो गयी हैं, तो एक-दूसरे के साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आना शायद मुश्‍किल लगे। ऐसे में महज़ यह जानना आपके दिल को उभारने के लिए शायद काफी न हो कि शादी का बंधन अनमोल है और आदर के लायक है। तो फिर क्या बात आपको एक-दूसरे के साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आने के लिए उभारेगी? ध्यान दीजिए कि पौलुस ने शादी का आदर करने की बात कैसे कही। अगर हम इब्रानियों 13:4 की आस-पास की आयतें देखें तो पाते हैं कि पौलुस कई मामलों पर सलाह दे रहा था जिनमें से एक था, शादी। (इब्रानियों 13:1-5) इसलिए वह सिर्फ अपनी राय नहीं बता रहा था कि शादी आदर की बात है। इसके बजाय, वह मसीहियों को सलाह दे रहा था कि शादी आदर की बात समझी जाए। इस बात को ध्यान में रखने से आपका दिल आपको उभारेगा कि आप अपने साथी के लिए अपने दिल में प्यार और इज़्ज़त फिर से बढ़ाएँ। ऐसा हम क्यों कहते हैं?

7. (क) हम बाइबल की किन आज्ञाओं को मानते हैं? और क्यों? (ख) परमेश्‍वर की आज्ञा मानने से क्या बढ़िया नतीजे मिलते हैं?

7 थोड़ी देर के लिए सोचिए कि आप बाइबल की दूसरी आज्ञाओं के बारे में कैसा महसूस करते हैं, जैसे चेले बनाने या उपासना के लिए इकट्ठा होने के बारे में। (मत्ती 28:19; इब्रानियों 10:24, 25) यह सच है कि इन आज्ञाओं को मानना कभी-कभी मुश्‍किल हो सकता है। क्योंकि आप जिन लोगों के पास राज की खुशखबरी लेकर जाते हैं वे शायद आपका विरोध करें। या काम से लौटकर आप इतने पस्त हो जाते हैं कि आपके लिए सभाओं में जाना एक संघर्ष बन जाता है। लेकिन इन अड़चनों के बावजूद, आप राज का संदेश सुनाना और मसीही सभाओं में जाना नहीं छोड़ते। ऐसा करने से कोई आपको रोक नहीं सकता, यहाँ तक कि शैतान भी नहीं! क्यों नहीं? क्योंकि यहोवा के लिए सच्चा प्यार आपको उसकी आज्ञाएँ मानने के लिए उभारता है। (1 यूहन्‍ना 5:3) इससे आपको क्या बढ़िया नतीजे मिलते हैं? राज का संदेश सुनाने और सभाओं में जाने से आपको मन की शांति और दिली खुशी मिलती है क्योंकि आप जानते हैं कि आप परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी कर रहे हैं। और ऐसा महसूस करने की वजह से आपको नयी ताकत मिलती है। (नहेमायाह 8:10) इस चर्चा से हमने क्या सबक सीखा?

8, 9. (क) शादी के रिश्‍ते का आदर करने के लिए क्या बात हमें उभार सकती है? और क्यों? (ख) अब हम किन दो मुद्दों पर चर्चा करेंगे?

8 परमेश्‍वर के लिए गहरा प्यार आपको उसकी आज्ञाएँ मानने के लिए उभारता है और इसलिए आप अड़चनों के बावजूद राज का संदेश सुनाते हैं और सभाओं में जाते हैं। उसी तरह, यहोवा के लिए प्यार आपको उसकी यह आज्ञा मानने के लिए भी उभार सकता है कि आपकी शादी आदर की बात समझी जाए, फिर चाहे ऐसा करना कितना ही मुश्‍किल क्यों न लगे। (इब्रानियों 13:4; भजन 18:29; सभोपदेशक 5:4) इसके अलावा, जैसे राज का संदेश सुनाने और सभाओं में इकट्ठा होने की वजह से आपको परमेश्‍वर की तरफ से ढेरों आशीषें मिलती हैं, वैसे ही आप अपनी शादी के रिश्‍ते का आदर करने के लिए जो मेहनत करते हैं, वह यहोवा को नज़र आएगी और वह इसके लिए आपको ज़रूर आशीष देगा।—1 थिस्सलुनीकियों 1:3; इब्रानियों 6:10.

9 तो फिर आप अपने शादी के रिश्‍ते का आदर कैसे कर सकते हैं? आपको ऐसा बरताव नहीं करना चाहिए जो शादी के बंधन को नुकसान पहुँचा सकता है। साथ ही, आपको ऐसे कदम उठाने की ज़रूरत है जिनसे आपका शादी का बंधन मज़बूत हो।

ऐसी बोली और ऐसे बरताव से दूर रहिए जिससे शादी का अनादर होता है

10, 11. (क) किस तरह के बरताव से शादी का अनादर होता है? (ख) हमें अपने साथी से क्या बात पूछनी चाहिए?

10 कुछ वक्‍त पहले एक शादीशुदा मसीही बहन ने कहा था, “मैं यहोवा से प्रार्थना करती हूँ कि वह मुझे सहने की ताकत दे।” क्या सहने की? वह बताती है, “मेरा पति मुझे हाथों से नहीं बल्कि अपनी बातों से मारता है। मेरे ज़ख्म भले ही ऊपर से दिखायी न दें मगर उसकी जली-कटी बातों से मेरा दिल छलनी हो गया है। रात-दिन वह मुझे ताने मारता रहता है, ‘तू धरती पर बोझ है,’ ‘तू किसी काम की नहीं।’” इस बहन ने जो कहा उससे एक गंभीर मसला सामने आता है। वह है, पति-पत्नी के बीच गाली-गलौज।

11 दुख की बात है कि कुछ मसीही परिवारों में पति-पत्नी बड़ी बेरहमी से एक-दूसरे पर शब्दों से वार करते हैं और एक-दूसरे के दिल को ऐसे ज़ख्म देते हैं जो आसानी से नहीं भरते। ज़ाहिर है कि जो पति या पत्नी आए दिन अपने साथी को चोट पहुँचाने के लिए ताने मारते हैं, वे शादी के रिश्‍ते का आदर नहीं करते। इस मामले में आपकी शादीशुदा ज़िंदगी कैसी है? इसका जवाब पाने का एक तरीका यह है कि आप नम्रता से अपने साथी से पूछें, “मेरे शब्दों का तुम पर कैसा असर होता है?” अगर आपका साथी यह महसूस करता है कि बार-बार आप अपनी बातों से उसके दिल को गहरी चोट पहुँचाते हैं, तो हालात को सुधारने के लिए आपको अपने अंदर बदलाव करने की ज़रूरत होगी।—गलातियों 5:15; इफिसियों 4:31 पढ़िए।

12. एक इंसान की उपासना परमेश्‍वर की नज़र में बेकार कैसे हो सकती है?

12 यह बात हमेशा याद रखिए कि आप अपने पति या पत्नी के साथ जिस तरह बात करते हैं, उसका असर यहोवा के साथ आपके रिश्‍ते पर होता है। बाइबल कहती है, “अगर कोई आदमी खुद को परमेश्‍वर की उपासना करनेवाला समझता है मगर अपनी ज़बान पर कसकर लगाम नहीं लगाता, तो वह अपने दिल को धोखा देता है और उसका उपासना करना बेकार है।” (याकूब 1:26) हमारी बोली, हमारी उपासना से जुदा नहीं है। कई लोग मानते हैं कि घर की चारदीवारी में जो कुछ होता है वह ज़्यादा अहमियत नहीं रखता, बस एक इंसान को परमेश्‍वर की सेवा करते रहना चाहिए। मगर बाइबल के हिसाब से ऐसी सोच गलत है। खुद को धोखे में मत रखिए। यह बहुत गंभीर मामला है। (1 पतरस 3:7 पढ़िए।) आपके अंदर चाहे कितनी ही काबिलीयतें हों और आप परमेश्‍वर की सेवा में कितने ही जोशीले क्यों न हों, अगर आप जानबूझकर जली-कटी बातों से अपने साथी का दिल दुखाते हैं, तो आप शादी के रिश्‍ते का अनादर करते हैं और परमेश्‍वर की नज़र में आपकी उपासना बेकार है।

13. एक पति या पत्नी के कैसे बरताव से उसके साथी की भावनाओं को चोट पहुँच सकती है?

13 पति-पत्नी को सतर्क रहना चाहिए कि वे अपने बरताव से अनजाने में भी अपने साथी की भावनाओं को चोट न पहुँचाएँ। आइए दो मिसालों पर गौर करें: एक अकेली माँ, मंडली के एक शादीशुदा भाई से सलाह माँगने के लिए अकसर उसे फोन करती है और उनके बीच लंबी बातचीत होती है। एक अविवाहित भाई हर हफ्ते प्रचार के काम में एक शादीशुदा मसीही बहन के साथ बहुत समय बिताता है। इन दोनों मिसालों में हो सकता है, उस शादीशुदा भाई या बहन की नीयत में कोई खोट न हो। फिर भी, उनके इस बरताव का उनके साथी पर क्या असर होता है? ऐसे हालात का सामना करनेवाली एक पत्नी ने कहा, “जब मैं देखती हूँ कि मेरा पति मंडली की किसी और बहन को इतना वक्‍त दे रहा है और उस पर इतना ज़्यादा ध्यान देता है तो मेरे दिल को चोट पहुँचती है। इस वजह से मैं खुद को एकदम बेकार समझने लगी हूँ।”

14. (क) उत्पत्ति 2:24 में शादीशुदा लोगों की कौन-सी ज़िम्मेदारी बतायी गयी है? (ख) हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?

14 यह समझना मुश्‍किल नहीं कि यह पत्नी और ऐसे ही हालात में दूसरे शादीशुदा लोग क्यों अपने साथी के बरताव से दुखी हैं। उनके साथी, शादी के बारे में परमेश्‍वर की इस बुनियादी हिदायत को नज़रअंदाज़ करते हैं: “आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा।” (उत्पत्ति 2:24) बेशक, शादी के बाद भी एक आदमी और औरत अपने माता-पिता का आदर करते हैं। मगर परमेश्‍वर ने ऐसा इंतज़ाम किया है कि शादी के बाद पति या पत्नी की पहली ज़िम्मेदारी अपने साथी की तरफ होती है। वैसे ही, यहोवा की उपासना करनेवाले, अपने मसीही भाई-बहनों से बहुत प्यार करते हैं, मगर उनकी पहली ज़िम्मेदारी अपने साथी की तरफ बनती है। इसलिए अगर मंडली में एक भाई अपनी पत्नी के बजाय दूसरों के साथ, खासकर किसी और बहन के साथ हद-से-ज़्यादा वक्‍त बिताता है या ज़्यादा नज़दीकियाँ बढ़ाता है या कोई शादीशुदा बहन ऐसा करती है तो वे अपनी शादी के रिश्‍ते में तनाव पैदा करते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप पति-पत्नी के बीच तनाव की यही वजह हो? खुद से पूछिए, ‘क्या मैं सचमुच अपने साथी को उतना वक्‍त, उतना ध्यान और उतना प्यार देता हूँ जिसका वह हकदार है?’

15. मत्ती 5:28 के मुताबिक, शादीशुदा मसीहियों को अपने साथी को छोड़ किसी और के साथ नज़दीकियाँ क्यों नहीं बढ़ानी चाहिए?

15 यही नहीं, अगर एक शादीशुदा मसीही अपने साथी को छोड़ किसी और आदमी या औरत पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान देता है, तो वह ऐसी राह पर चलने की नासमझी करता है जहाँ खतरा ही खतरा है। दुख की बात है कि जब कुछ शादीशुदा मसीहियों ने किसी पराए के साथ नज़दीकियाँ बढ़ायीं तो उनके दिल में उस व्यक्‍ति के लिए रोमांस की भावनाएँ जाग उठीं। (मत्ती 5:28) इस तरह के लगाव का नतीजा यह हुआ कि उन लोगों ने ऐसे काम किए जिनसे शादी के रिश्‍ते का और भी ज़्यादा अनादर हुआ है। गौर कीजिए कि प्रेषित पौलुस ने इस बारे में क्या कहा।

“शादी की सेज दूषित न की जाए”

16. पौलुस ने शादी के बारे में क्या आदेश दिया?

16 यह सलाह देने के फौरन बाद कि शादी आदर की बात समझी जाए, पौलुस ने यह आदेश दिया: “शादी की सेज दूषित न की जाए क्योंकि परमेश्‍वर नाजायज़ यौन-संबंध रखनेवालों और व्यभिचारियों को सज़ा देगा।” (इब्रानियों 13:4) पौलुस ने यौन-संबंधों के लिए “शादी की सेज” शब्दों का इस्तेमाल किया। ऐसे संबंध सिर्फ एक सूरत में ‘दूषित नहीं’ समझे जाते हैं या नैतिक तौर पर शुद्ध माने जाते हैं, अगर ये संबंध शादी के इंतज़ाम के अंदर पति-पत्नी के बीच हों। इसलिए मसीही, परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखे इन शब्दों को मानते हैं: “अपनी जवानी की पत्नी के साथ खुश रह।”—नीतिवचन 5:18.

17. (क) व्यभिचार के बारे में दुनिया की राय का मसीहियों पर क्यों असर नहीं होना चाहिए? (ख) हम अय्यूब की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

17 जो अपने पति या पत्नी को छोड़ किसी और के साथ यौन-संबंध रखते हैं, वे परमेश्‍वर के नियमों का घोर अनादर करते हैं। यह सच है कि आज बहुतों की नज़र में व्यभिचार यानी शादी के बाहर यौन-संबंध रखना एक मामूली बात हो चुकी है। लेकिन ऐसे संबंधों के बारे में इंसानों की सोच चाहे जो भी हो, मगर सच्चे मसीहियों को खुद पर उनकी सोच का असर नहीं होने देना चाहिए। वे जानते हैं कि उनका न्याय इंसान नहीं बल्कि परमेश्‍वर करेगा और वह “नाजायज़ यौन-संबंध रखनेवालों और व्यभिचारियों को सज़ा देगा।” (इब्रानियों 10:31; 12:29) इसलिए सच्चे मसीही इस बारे में यहोवा के नज़रिए को सख्ती से मानते हैं। (रोमियों 12:9 पढ़िए।) याद कीजिए कि कुलपिता अय्यूब ने क्या कहा था, “मैंने अपनी आँखों के साथ करार किया है।” (अय्यूब 31:1) जी हाँ, सच्चे मसीही अपनी आँखों पर काबू रखते हैं और कभी-भी किसी और आदमी या औरत को हसरत भरी निगाहों से नहीं देखते जो उनका साथी नहीं है। वे ऐसे रास्ते पर पहला कदम तक नहीं रखना चाहते जो व्यभिचार की तरफ ले जा सकता है।—“तलाक और पति-पत्नी के अलग होने के बारे में बाइबल क्या कहती है” नाम का अतिरिक्‍त लेख देखिए।

18. (क) व्यभिचार यहोवा की नज़र में कितना गंभीर पाप है? (ख) व्यभिचार करने और मूरतों को पूजने के बीच क्या समानता है?

18 व्यभिचार यहोवा की नज़र में कितना गंभीर पाप है? इस मामले में यहोवा कैसा महसूस करता है, यह हम मूसा के कानून से समझ सकते हैं। प्राचीन इसराएल में व्यभिचार करना और मूरतों की पूजा करना ऐसे गुनाह थे जिनकी सज़ा मौत थी। (लैव्यव्यवस्था 20:2, 10) क्या आप समझ सकते हैं कि इन दोनों गंभीर पापों में क्या समानता थी? जो इसराएली किसी मूरत की पूजा करता, वह यहोवा के साथ अपना करार तोड़ने का गुनहगार था। उसी तरह, जो इसराएली व्यभिचार करता, वह अपने जीवन-साथी के साथ अपना करार तोड़ने का गुनहगार था। दोनों ही विश्‍वासघात के गुनहगार थे। (निर्गमन 19:5, 6; व्यवस्थाविवरण 5:9; मलाकी 2:14 पढ़िए।) इसलिए दोनों ही यहोवा के सामने सज़ा के लायक ठहरते क्योंकि यहोवा वफादार और भरोसेमंद परमेश्‍वर है।—भजन 33:4.

19. किस बात को याद रखने से व्यभिचार न करने का हमारा फैसला और पक्का हो सकता है? और क्यों?

19 यह सच है कि मसीही, मूसा के कानून के अधीन नहीं हैं। फिर भी, जब वे याद रखते हैं कि प्राचीन इसराएल में व्यभिचार एक गंभीर पाप माना जाता था, तो उनका यह फैसला और पक्का होता है कि वे ऐसा पाप न करें। वह कैसे? ज़रा गौर कीजिए: क्या आप किसी चर्च में जाकर मूरत के आगे घुटने टेककर प्रार्थना करेंगे? आप कहेंगे, ‘कभी नहीं!’ अगर कोई आपको मोटी रकम का लालच दे, तो क्या आप इस फंदे में फँसेंगे? आप कहेंगे, ‘ऐसा करने की मैं सोच भी नहीं सकता।’ जी हाँ, किसी मूरत को पूजकर यहोवा से विश्‍वासघात करने के खयाल से ही एक सच्चे मसीही को घिन आती है। उसी तरह, मसीहियों को इस बात के खयाल से ही घिन होनी चाहिए कि वे व्यभिचार करके अपने परमेश्‍वर यहोवा से और अपने साथी से विश्‍वासघात करें, फिर चाहे उन्हें इस पाप में फँसाने के लिए कैसा भी लालच क्यों न दिया जाए। (भजन 51:1, 4; कुलुस्सियों 3:5) हम कभी ऐसा कोई काम नहीं करना चाहेंगे जिससे शैतान तो खुशियाँ मनाए मगर यहोवा का और शादी के पवित्र रिश्‍ते का घोर अनादर हो।

शादी का बंधन कैसे मज़बूत करें

20. कुछ पति-पत्नी का रिश्‍ता कैसा हो चुका है? मिसाल देकर समझाइए।

20 शादी के बंधन का अनादर करनेवाले बरताव से दूर रहने के अलावा, आप कौन-से कदम उठा सकते हैं जिससे आपके जीवन-साथी के लिए आपके दिल में आदर की भावना फिर से जाग सके? इसका जवाब पाने के लिए एक घर की मिसाल लीजिए। शादी का रिश्‍ता एक घर बसाने जैसा होता है। इस घर को खूबसूरत बनाने के लिए उसे सजावट की कई चीज़ों से सँवारा जाता है। उसी तरह, पति-पत्नी के रिश्‍ते की खूबसूरती तब और भी बढ़ जाती है जब वे एक-दूसरे के साथ प्यार से बात करते हैं, एक-दूसरे की ज़रूरत पूरी करने का खयाल रखते हैं और अपनी बातचीत में और दूसरे तरीकों से एक-दूसरे को इज़्ज़त देते हैं। अगर आप एक-दूसरे को दिलो-जान से चाहते हैं, तो आपकी शादीशुदा ज़िंदगी उस घर जैसी होगी जो तरह-तरह की खूबसूरत चीज़ों से सजा हुआ है और इसलिए बेहद आकर्षक और अपना-सा लगता है। दूसरी तरफ, अगर आप दोनों के बीच का प्यार कम हो जाता है, तो आपका रिश्‍ता उस घर जैसा होगा जिसमें सजावट की ये चीज़ें एक-एक करके गायब हो रही हैं। इन खूबसूरत चीज़ों के बिना जैसे घर खाली-खाली लगता है वैसे ही आपकी शादीशुदा ज़िंदगी प्यार के बिना सूनी और बेजान होकर रह जाती है। बेशक, आप परमेश्‍वर का यह आदेश मानना चाहते हैं कि शादी आदर की बात समझी जाए, इसलिए आप बिगड़े हुए हालात को सुधारने के लिए हर मुमकिन कोशिश करना चाहेंगे। वाकई, जो चीज़ अनमोल है और आदर की माँग करती है, उसके खराब होने पर उसे पहले जैसा बनाने या सुधारने में किसी भी तरह की मेहनत या लागत बेकार नहीं मानी जाती। आप अपने शादी के रिश्‍ते को सुधारने और पहले जैसा बनाने के लिए क्या कर सकते हैं? परमेश्‍वर का वचन कहता है, “बुद्धि से घर बनता है और पैनी समझ से यह कायम रहता है। ज्ञान की बदौलत इसके कमरे तरह-तरह की कीमती और मनभावनी चीज़ों से भरे रहते हैं।” (नीतिवचन 24:3, 4) गौर कीजिए कि शादी के रिश्‍ते में इन शब्दों को कैसे अमल में लाया जा सकता है।

21. हम अपने शादी के बंधन को धीरे-धीरे कैसे मज़बूत कर सकते हैं? ( मैं अपने शादी के रिश्‍ते में कैसे सुधार ला सकता हूँ? नाम का बक्स भी देखिए।)

21 वे कीमती चीज़ें क्या हैं जो एक घर में खुशहाली लाती हैं? वे ऐसे गुण हैं जैसे सच्चा प्यार, परमेश्‍वर का डर और मज़बूत विश्‍वास। (नीतिवचन 15:16, 17; 1 पतरस 1:7) इन गुणों से शादी का बंधन मज़बूत होता है। लेकिन क्या आपने गौर किया कि ऊपर बताए नीतिवचन के मुताबिक घर के कमरे, कीमती चीज़ों से कैसे भर जाते हैं? “ज्ञान की बदौलत।” जी हाँ, बाइबल इस ज्ञान का खज़ाना है। यह ज्ञान पति-पत्नी की सोच बदलने और उनके दिल में एक-दूसरे के लिए सोया प्यार जगाने की ज़बरदस्त ताकत रखता है। लेकिन इस ज्ञान को इस्तेमाल में लाने की ज़रूरत है। (रोमियों 12:2; फिलिप्पियों 1:9) इसलिए जब कभी आप और आपका साथी शांत मन से साथ बैठकर बाइबल के किसी भाग पर चर्चा करते हैं, जैसे हर दिन के वचन पर या शादी के बारे में प्रहरीदुर्ग या सजग होइए! के किसी लेख पर, तो यह ऐसा है मानो आप दोनों सजावट की एक खूबसूरत चीज़ को साथ मिलकर देख रहे हैं जो आपके घर की रौनक बढ़ा सकती है। इसके बाद, जब यहोवा के लिए प्यार आपको उभारता है कि उस सलाह को आप अपनी शादीशुदा ज़िंदगी पर लागू करें, जिसे आपने अभी-अभी पढ़ा, तो यह ऐसा है मानो आप उस खूबसूरत चीज़ से अपना घर सजा रहे हैं। ऐसा करने से आपकी शादीशुदा ज़िंदगी एक बार फिर प्यार के रंगों से रंगने लगेगी और इसका आकर्षण और अपनापन लौटने लगेगा।

22. अगर हम अपना शादी का बंधन मज़बूत करने के लिए अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की पूरी कोशिश करेंगे, तो हमें किस बात का संतोष होगा?

22 माना कि इन सजावट की चीज़ों को दोबारा एक-एक करके सही जगह पर रखने में शायद काफी वक्‍त और मेहनत लगे। फिर भी, अगर आप पति-पत्नी अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की पूरी कोशिश करेंगे तो आपको इस बात का गहरा संतोष होगा कि आप बाइबल की यह आज्ञा मान रहे हैं: “खुद आगे बढ़कर दूसरों का आदर करो।” (रोमियों 12:10; भजन 147:11) सबसे बढ़कर, अपने शादी के रिश्‍ते का आदर करने की आपकी सच्ची कोशिशें आपको परमेश्‍वर के प्यार के लायक बनाए रखेंगी।