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अध्याय 13

ऐसे जश्‍न जो परमेश्‍वर को नाराज़ करते हैं

ऐसे जश्‍न जो परमेश्‍वर को नाराज़ करते हैं

“जाँच करके पक्का करते रहो कि प्रभु किन बातों को स्वीकार करता है।”—इफिसियों 5:10.

1. यहोवा किस तरह के लोगों को अपने पास ले आता है? उन्हें क्यों यह पक्का करते रहना चाहिए कि परमेश्‍वर किन बातों को स्वीकार करता है?

यीशु ने कहा था, “सच्चे उपासक पिता की उपासना पवित्र शक्‍ति और सच्चाई से करेंगे। दरअसल, पिता ऐसे लोगों को ढूँढ़ रहा है जो इसी तरह उसकी उपासना करेंगे।” (यूहन्‍ना 4:23) जब यहोवा ऐसे लोगों को ढूँढ़ निकालता है जो सच्चाई से प्यार करते हैं, जैसे उसने आपको ढूँढ़ निकाला है, तो वह उन्हें अपने और अपने बेटे के पास ले आता है। (यूहन्‍ना 6:44) एक इंसान के लिए इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है! लेकिन जो बाइबल की सच्चाइयों से प्यार करते हैं, उन्हें यह ‘जाँच करके पक्का करते रहना है कि प्रभु किन बातों को स्वीकार करता है।’ क्यों? क्योंकि शैतान लोगों को धोखे में रखने में माहिर है।—इफिसियों 5:10; प्रकाशितवाक्य 12:9.

2. सच्ची उपासना में झूठे धर्म की मिलावट करने की कोशिश करनेवालों को यहोवा किस नज़र से देखता है?

2 ध्यान दीजिए कि पुराने ज़माने में इसराएलियों के बीच क्या घटना घटी थी। इसराएली जब सीनै पहाड़ के पास थे, तब उन्होंने हारून से कहा कि वह उनके लिए एक देवता बनाए। हारून ने दबाव में आकर उनकी बात मान ली और उनके लिए सोने का एक बछड़ा बनाया। फिर उसने लोगों से कहा, “कल यहोवा के लिए एक त्योहार होगा।” इन शब्दों से उसने यह जताया कि बछड़ा, यहोवा का प्रतीक है। ऐसा करना सच्ची उपासना में झूठे धर्म की मिलावट करना था। क्या यहोवा ने यह सब बरदाश्‍त कर लिया? बिलकुल नहीं। उसने मूर्तिपूजा करनेवाले करीब 3,000 लोगों को मौत की सज़ा दी। (निर्गमन 32:1-6, 10, 28) इस घटना से हम क्या सीखते हैं? यही कि अगर हम खुद को परमेश्‍वर के प्यार के लायक बनाए रखना चाहते हैं तो हमें ‘किसी भी अशुद्ध चीज़ को नहीं छूना’ चाहिए और पूरे जोश के साथ सच्चाई की हिफाज़त करनी चाहिए ताकि उसमें किसी भी रूप में झूठे धर्म की मिलावट न होने दें।—यशायाह 52:11; यहेजकेल 44:23; गलातियों 5:9.

3, 4. जाने-माने रस्मो-रिवाज़ और जश्‍नों की जाँच करते वक्‍त हमें बाइबल के सिद्धांतों पर क्यों अच्छी तरह ध्यान देना चाहिए?

3 पहली सदी में जब तक यीशु के प्रेषित ज़िंदा थे, तब तक उन्होंने सच्चे मसीही धर्म की हिफाज़त की और उसमें झूठे धर्म की मिलावट नहीं होने दी। मगर अफसोस, उनकी मौत के बाद, ऐसे लोगों ने जो सिर्फ नाम के मसीही थे और जिन्हें सच्चाई से बिलकुल प्यार नहीं था, गैर-मसीही रीति-रिवाज़, जश्‍न और पवित्र दिन अपना लिए और उन्हें ईसाइयों के जश्‍न कहने लगे। (2 थिस्सलुनीकियों 2:7, 10) आइए इनमें से कुछ जश्‍नों की जाँच करें। आप देख सकेंगे कि इन जश्‍नों और रिवाज़ों का यहोवा परमेश्‍वर से कोई नाता नहीं है, बल्कि इनमें दुनिया की फितरत साफ नज़र आती है। मोटे तौर पर कहें तो सभी दुनियावी जश्‍नों में एक बात आम होती है: इन जश्‍नों में ऐसे काम किए जाते हैं जो हमारे पापी शरीर को अच्छे लगते हैं, साथ ही ये झूठी धार्मिक शिक्षाओं और जादू-टोने से जुड़े रस्मो-रिवाज़ को बढ़ावा देते हैं। यही इस बात की पहचान है कि ये जश्‍न और रस्में “महानगरी बैबिलोन” यानी झूठे धर्मों से निकले हैं। * (प्रकाशितवाक्य 18:2-4, 23) यह भी याद रखिए कि आज के जाने-माने रिवाज़, पुराने ज़माने के झूठे धर्मों से निकले हैं। उस ज़माने के ये रिवाज़ यहोवा की नज़रों में बेहद घिनौने थे। क्या इसमें कोई शक है कि आज भी वह इन रिवाज़ों को उतना ही घिनौना समझता है? तो फिर इन जश्‍नों के बारे में हमारे लिए क्या बात सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है? यहोवा का नज़रिया या लोगों का?—2 यूहन्‍ना 6, 7.

4 सच्चे मसीही होने के नाते, हम जानते हैं कि कौन-से जश्‍न यहोवा को नाराज़ करते हैं। मगर हमें अपने दिल में यह पक्का इरादा करना चाहिए कि हम इन जश्‍नों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रखेंगे। यह जानने के बाद कि ऐसे जश्‍न क्यों यहोवा को नाराज़ करते हैं, हमारा यह इरादा और मज़बूत होगा कि हम ऐसा कोई भी काम न करें जो परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने से हमें रोके।

सूरज-पूजा का नया नाम—क्रिसमस

5. हम क्यों यकीन के साथ कह सकते हैं कि यीशु का जन्म 25 दिसंबर को नहीं हुआ था?

5 बाइबल में कहीं भी यह ज़िक्र नहीं मिलता कि कभी यीशु का जन्मदिन मनाया गया हो। सच तो यह है कि वह किस तारीख को पैदा हुआ, यह कोई नहीं जानता। मगर एक बात हम पक्के तौर पर कह सकते हैं कि उसका जन्म 25 दिसंबर को नहीं हुआ था। * यह हम कैसे कह सकते हैं? पहली बात तो यह है कि यीशु बेतलेहेम में पैदा हुआ था। दुनिया के इस इलाके में दिसंबर महीने में कड़ाके की ठंड पड़ती है। इसके अलावा, लूका ने अपनी किताब में यह बताया है कि जिस वक्‍त यीशु पैदा हुआ था तब ‘कुछ चरवाहे मैदानों में रह रहे थे’ और अपनी भेड़ों की रखवाली कर रहे थे। (लूका 2:8-11) अगर ये चरवाहे बारहों महीने मैदानों में रहा करते, तो क्या यह बात ज़िक्र करने लायक होती? लेकिन दिसंबर के महीने में बेतलेहेम में कड़ाके की ठंड पड़ती है, बारिश होती है और बर्फ भी गिरती है। इसलिए सर्दियों के मौसम में भेड़ों को भेड़शालाओं के अंदर रखा जाता था, न कि चरवाहे उन्हें लेकर ‘मैदानों में रहा करते थे।’ दूसरी बात यह है कि यूसुफ और मरियम इसलिए बेतलेहेम गए थे क्योंकि रोम के सम्राट औगुस्तुस ने जनगणना के लिए सारी प्रजा को यह आदेश दिया था कि वे अपने-अपने पुरखों के शहर जाकर नाम लिखवाएँ। (लूका 2:1-7) ऐसा नहीं हो सकता कि सम्राट ने अपनी प्रजा को, जो पहले ही रोमी हुकूमत से नाराज़ थी, ऐसे मौसम में अपने-अपने शहर जाने का आदेश दिया हो जब कड़ाके की ठंड पड़ रही थी और सफर करना बहुत मुश्‍किल था।

6, 7. (क) क्रिसमस की ज़्यादातर रस्मों की शुरूआत कहाँ से हुई थी? (ख) तोहफे देने के मामले में सच्चे मसीहियों की भावना कैसे क्रिसमस की भावना से अलग है?

6 क्रिसमस का त्योहार परमेश्‍वर के वचन की शिक्षा नहीं है। इसके बजाय, यह त्योहार प्राचीन गैर-ईसाई धर्मों के त्योहारों से निकला है। जैसे रोम में सैटरनेलिया नाम का जश्‍न था, जो कृषि-देवता सैटर्न को समर्पित था। न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया कहती है कि इससे सदियों पहले मिथ्रा नाम के देवता के भक्‍त 25 दिसंबर को “अजेय सूर्य के जन्मदिन” का जश्‍न मनाते थे। वही इनसाइक्लोपीडिया कहती है, “क्रिसमस की शुरूआत उस वक्‍त हुई जब रोम में सूर्य-देवता की उपासना का बोलबाला था” और यह बात मसीह की मौत के 300 साल बाद की है।

सच्चे मसीही प्यार की भावना से तोहफे देते हैं

7 पुराने ज़माने के इन जश्‍नों में लोग एक-दूसरे को तोहफे देते थे और दावतें उड़ाते थे। यही रस्में आज तक क्रिसमस में बरकरार हैं। लेकिन एक-दूसरे को तोहफे देने के इस दस्तूर में वह भावना दिखायी नहीं देती, जो 2 कुरिंथियों 9:7 में बतायी गयी है, “हर कोई जैसा उसने अपने दिल में ठाना है वैसा ही करे, न कुड़कुड़ाते हुए, न ही किसी दबाव में क्योंकि परमेश्‍वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।” सच्चे मसीही प्यार की भावना से देते हैं। वे तोहफा देने के लिए किसी खास तारीख का इंतज़ार नहीं करते, न ही यह उम्मीद करते हैं कि उनके तोहफे के बदले में दूसरे भी उन्हें तोहफे दें। (लूका 14:12-14; प्रेषितों 20:35 पढ़िए।) इतना ही नहीं, वे दिल से इस बात के लिए शुक्रगुज़ार हैं कि उन्हें क्रिसमस का ताम-झाम जुटाने की भागम-भाग से छुटकारा मिला है और कर्ज़ के उस भारी बोझ से राहत मिली है जो ज़्यादातर लोग हर साल क्रिसमस के दौरान अपने सिर चढ़ा लेते हैं।—मत्ती 11:28-30; यूहन्‍ना 8:32.

8. क्या ज्योतिषियों ने यीशु को जन्मदिन के तोहफे दिए थे? समझाइए।

8 मगर कुछ लोग शायद इस बात पर बहस करें कि क्या ज्योतिषियों ने यीशु को जन्मदिन के तोहफे नहीं दिए थे? जी नहीं। वे जन्मदिन के तोहफे नहीं थे। बाइबल के ज़माने में यह एक आम दस्तूर था कि जब लोग किसी बड़े आदमी के पास जाते थे तो खाली हाथ नहीं जाते थे, बल्कि उसके आदर में अपने साथ कोई भेंट ले जाते थे। ज्योतिषियों की भेंट भी यीशु का आदर करने के लिए थी। (1 राजा 10:1, 2, 10, 13; मत्ती 2:2, 11) दरअसल वे उस रात यीशु के पास नहीं पहुँचे थे जिस रात वह पैदा हुआ था। जब वे यीशु के पास आए तो वह चरनी में पड़ा कोई शिशु नहीं था, बल्कि उसके जन्म को कई महीने बीत चुके थे और वह एक घर में था।

जन्मदिन मनाने के बारे में बाइबल क्या कहती है

9. बाइबल में बताए जन्मदिन के मौकों के बारे में क्या बात गौर करने लायक है?

9 बच्चे का जन्म हमेशा से खुशी का मौका रहा है। मगर जहाँ तक जन्मदिन मनाने की बात है तो बाइबल में कहीं भी यह ज़िक्र नहीं पाया जाता कि परमेश्‍वर के किसी भी सेवक के जन्मदिन का जश्‍न मनाया गया हो। (भजन 127:3) क्या बाइबल के लेखक जन्मदिन के जश्‍नों के बारे में लिखना भूल गए थे? जी नहीं। क्योंकि बाइबल में दो लोगों का जन्मदिन मनाने का ज़िक्र मिलता है। एक था, मिस्र का राजा फिरौन और दूसरा, राजा हेरोदेस अन्तिपास। (उत्पत्ति 40:20-22; मरकुस 6:21-29 पढ़िए।) मगर बाइबल इन दोनों ही मौकों को बहुत बुरे दिनों के तौर पर पेश करती है। खासकर हेरोदेस का जन्मदिन, जब बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना का सिर कटवा दिया गया।

10, 11. शुरू के मसीही, जन्मदिन के दस्तूर के बारे में क्या मानते थे? और क्यों?

10 द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया कहती है, “शुरू के मसीही किसी का भी जन्मदिन नहीं मनाते थे, क्योंकि उनका मानना था कि जन्मदिन का जश्‍न झूठे धर्मों का एक दस्तूर है।” मिसाल के लिए, पुराने ज़माने के यूनानी मानते थे कि हर इंसान की हिफाज़त करनेवाली एक आत्मा होती है जो उसके जन्म के वक्‍त मौजूद होती है और फिर ज़िंदगी-भर उसकी रक्षा करती है। जन्मदिन की कथा (अँग्रेज़ी) किताब कहती है कि “इस आत्मा का उस देवता के साथ एक रहस्यमयी रिश्‍ता होता है, जिसके जन्मदिन पर वह इंसान पैदा हुआ है।” पुराने ज़माने से ही जन्मदिन के दस्तूर का ज्योतिष-विद्या और जन्म-कुंडलियों के साथ गहरा नाता रहा है।

11 तो जैसा हमने देखा, जन्मदिन मनाना झूठे धर्मों का दस्तूर था और इसका जादू-टोने से भी नाता था। इसलिए गुज़रे वक्‍त में परमेश्‍वर के सेवक जन्मदिन नहीं मनाते थे। इसके अलावा, वे जिन उसूलों को मानते थे, उनकी वजह से भी वे शायद जन्मदिन नहीं मनाते थे। यह हम क्यों कह सकते हैं? परमेश्‍वर के सेवक ऐसे सीधे-सादे, नम्र लोग थे जो अपनी मर्यादा जानते थे। वे नहीं मानते थे कि उनका दुनिया में आना इतनी बड़ी बात है कि उसका जश्‍न मनाया जाए। * (मीका 6:8; लूका 9:48) इसके बजाय, उन्होंने हमेशा यहोवा की महिमा की और जीवन का कीमती तोहफा देने के लिए उसका धन्यवाद किया। *भजन 8:3, 4; 36:9; प्रकाशितवाक्य 4:11.

12. हमारे जन्म के दिन से हमारी मौत का दिन क्यों बेहतर हो सकता है?

12 जो लोग मरते दम तक परमेश्‍वर के वफादार रहते हैं, परमेश्‍वर उन्हें याद रखता है और यह गारंटी देता है कि वे फिर से ज़िंदा होंगे। (अय्यूब 14:14, 15) सभोपदेशक 7:1 कहता है, “एक अच्छा नाम बढ़िया तेल से भी अच्छा है और मौत का दिन जन्म के दिन से बेहतर है।” यहाँ “नाम” का मतलब है वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा करके उसकी नज़रों में अच्छा नाम कमाना। गौर करने लायक बात है कि मसीहियों को सिर्फ एक ही समारोह मनाने की आज्ञा दी गयी है। और यह समारोह जन्म से नहीं बल्कि मौत से जुड़ा हुआ है, यानी यीशु की मौत का समारोह। यीशु के शानदार “नाम” की बदौलत ही हमें छुटकारा मिलता है।—इब्रानियों 1:3, 4; लूका 22:17-20.

ईस्टर के नाम पर प्रजनन देवी की पूजा

13, 14. ईस्टर के जाने-माने रिवाज़ों की शुरूआत कहाँ से हुई?

13 कहने को तो ईस्टर का त्योहार यीशु के फिर से ज़िंदा होने की खुशी में मनाया जाता है। लेकिन असल में इस जश्‍न की शुरूआत झूठे धर्म से हुई थी। ईस्टर नाम ही एक देवी के नाम से निकला है। पश्‍चिमी यूरोप के लोग ईस्ट्र या इयोस्ट्रा देवी की पूजा करते थे, जिसे वे भोर और वसंत की देवी मानते थे। ईस्टर के जश्‍न में अंडों और खरगोश का इस्तेमाल कैसे होने लगा? इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका कहती है कि अंडों को “नयी ज़िंदगी और मरे हुओं के ज़िंदा होने की खास निशानियाँ माना जाता है।” और खरगोश को बहुत पहले से प्रजनन क्षमता की निशानी समझा जाता है। इससे पता चलता है कि मसीह के ज़िंदा होने के जश्‍न के नाम पर मनाया जानेवाला ईस्टर असल में प्रजनन क्षमता से जुड़ी एक धार्मिक रस्म है। *

14 क्या यहोवा यह बरदाश्‍त करेगा कि उसके बेटे के फिर से ज़िंदा होने की याद में ऐसा जश्‍न मनाया जाए जिसका नाता एक घिनौने रस्म से है? कभी नहीं! (2 कुरिंथियों 6:17, 18) दरअसल पहली बात तो यह है कि बाइबल, यीशु के ज़िंदा होने की याद में जश्‍न मनाने की कोई आज्ञा नहीं देती और ना ही इसकी इजाज़त देती है। उस पर अगर हम ईस्टर जैसा नाम देकर यह जश्‍न मनाएँ, तो हम परमेश्‍वर से गद्दारी करने के दुगने दोषी होंगे।

नए साल का जश्‍न कहाँ से शुरू हुआ?

15. नए साल का जश्‍न कहाँ से शुरू हुआ?

15 एक और जश्‍न जो बहुत मशहूर है, वह है नए साल का जश्‍न। यह जश्‍न कहाँ से शुरू हुआ? द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक, “ईसा पूर्व 46 में, रोमी सम्राट जूलियस सीज़र ने नया साल मनाने के लिए 1 जनवरी की तारीख चुनी थी। रोम के लोगों ने इस दिन को जेनस देवता के नाम समर्पित किया था, जो फाटकों, दरवाज़ों और हर तरह की शुरूआत का देवता था। जेनस से ही जनवरी महीने का नाम पड़ा। इस देवता के दो मुँह थे, एक आगे की तरफ, दूसरा पीछे की तरफ।” नए साल का जश्‍न दुनिया में हर कहीं मनाया जाता है, भले ही इसे मनाने की तारीख और रिवाज़ अलग-अलग हों। कई जगहों पर लोग इस जश्‍न में जमकर शराब पीते हैं और रंगरलियाँ मनाते हैं। लेकिन रोमियों 13:13 हमें यह सलाह देता है: “आओ हम शराफत से चलें जैसे दिन के वक्‍त शोभा देता है, न कि बेकाबू होकर रंगरलियाँ मनाएँ, शराब के नशे में धुत्त रहें, नाजायज़ संबंधों और निर्लज्ज कामों में डूबे रहें, न ही झगड़े और जलन करने में लगे रहें।”

अपनी शादी को दूषित मत होने दीजिए

16, 17. (क) जो मसीही जोड़े शादी करने की सोच रहे हैं उन्हें क्यों अपने इलाके के शादी के रिवाज़ों की जाँच बाइबल के सिद्धांतों की कसौटी पर करनी चाहिए? (ख) दूल्हा-दुल्हन पर चावल या फूल वगैरह बरसाने के रिवाज़ के बारे में मसीहियों को क्या ध्यान रखना चाहिए?

16 बहुत जल्द ऐसा वक्‍त आनेवाला है जब महानगरी बैबिलोन में ‘दूल्हा-दुल्हन की आवाज़ फिर कभी न सुनायी देगी।’ (प्रकाशितवाक्य 18:23) ऐसा क्यों? कुछ हद तक इसलिए क्योंकि यह महानगरी जादू-टोने को बढ़ावा देती है। ये रस्में शादी के पहले दिन से ही इस रिश्‍ते को दूषित कर सकती हैं।—मरकुस 10:6-9.

17 शादी से जुड़े रस्मो-रिवाज़ हर देश में अलग होते हैं। कुछ रिवाज़ों में हमें शायद कोई बुराई नज़र न आए मगर उनकी शुरूआत बैबिलोन की उन प्रथाओं से हुई है, जिनके बारे में माना जाता है कि ये दूल्हा-दुल्हन या मेहमानों के लिए “सौभाग्य” लाती हैं। (यशायाह 65:11) ऐसी ही एक परंपरा है, दूल्हा-दुल्हन पर चावल के दाने या फूल बरसाना। यह रिवाज़ शायद इस धारणा से निकला होगा कि खाना भूत-प्रेतों को शांत कर देता है और इसलिए वे दूल्हा-दुल्हन को कुछ नुकसान नहीं पहुँचाते। इसके अलावा, माना जाता है कि चावल में ऐसी जादुई ताकत होती है कि इससे बच्चे पैदा करने की शक्‍ति, खुशहाली और लंबी उम्र मिलती है। बेशक, जो परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहना चाहते हैं, वे ऐसे दूषित रिवाज़ों से कोसों दूर रहेंगे।—2 कुरिंथियों 6:14-18 पढ़िए।

18. शादी की दावत के मामले में दूल्हा-दुल्हन को और मेहमानों को बाइबल के किन सिद्धांतों पर चलना चाहिए?

18 यहोवा के सेवक अपनी शादी के समारोह या शादी की पार्टियों में दुनियावी शादियों की नकल नहीं करते जिनके दस्तूर शादी की गरिमा को मिट्टी में मिला सकते हैं या कुछ लोगों के ज़मीर को ठेस पहुँचा सकते हैं। मिसाल के लिए, वे शादी के मौके पर दूसरों की खिंचाई करने के इरादे से शादी के भाषण में हँसी-हँसी में ताने नहीं मारते, दोहरा मतलब रखनेवाली अश्‍लील बातें नहीं कहते। वे किसी का मज़ाक बनाने के लिए शरारती हरकतें नहीं करते और ऐसी बातें नहीं कहते जिससे दूल्हा-दुल्हन या कोई और शर्म से पानी-पानी हो जाए। (नीतिवचन 26:18, 19; लूका 6:31; 10:27) साथ ही, वे आलीशान दावतें नहीं रखते जैसे कोई राजा-महाराजा की शादी हो, क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसी महँगी दावतों से मर्यादा का गुण नहीं, बल्कि “अपनी चीज़ों का दिखावा” होता है। (1 यूहन्‍ना 2:16) अगर आप शादी करने की सोच रहे हैं तो कभी मत भूलिए कि यहोवा चाहता है कि जब भी आप अपनी शादी का खास दिन याद करें, तो आपको अफसोस नहीं बल्कि खुशी हो। *

सलामती का जाम पीना—क्या एक धार्मिक रस्म है?

19, 20. जाम पीने के रिवाज़ की शुरूआत के बारे में एक किताब क्या कहती है? मसीही क्यों इस रिवाज़ को सही नहीं मानते?

19 अकसर शादी की दावतों और दूसरी पार्टियों में किसी की सलामती का जाम पीना एक आम रिवाज़ है। सन्‌ 1995 की शराब और संस्कृति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय किताब (अँग्रेज़ी) कहती है, “ऐसा लगता है कि सलामती का जाम पीने की आज की सामाजिक रस्म . . . किसी प्राचीन रस्म से आयी है जिसमें देवी या देवता को मदिरा या खून अर्पण किया जाता था और बदले में उससे एक वरदान माँगा जाता था। इस तरह की कामना ऐसे शब्दों में की जाती थी जैसे, ‘यह जाम अच्छी सेहत के नाम!’ या ‘यह जाम लंबी उम्र के नाम!’”

20 आज बहुत-से लोग किसी की सलामती के लिए जाम पीने को भले ही एक धार्मिक रिवाज़ या अंधविश्‍वास न मानें, लेकिन शराब का गिलास आसमान की तरफ उठाने का मतलब “ईश्‍वर” या किसी अलौकिक शक्‍ति से आशीष के लिए प्रार्थना करना हो सकता है। लेकिन यह तरीका परमेश्‍वर से बिनती करने के लिए बाइबल में बताया तरीका नहीं है।—यूहन्‍ना 14:6; 16:23.

“यहोवा से प्यार करनेवालो, बुराई से नफरत करो”

21. ऐसे कुछ मशहूर जश्‍न क्या हैं जो भले ही सीधे तौर पर धार्मिक त्योहार न हों, फिर भी मसीही उनसे दूर रहते हैं? और क्यों?

21 आज दुनिया के स्तर कितनी तेज़ी से बदतर होते जा रहे हैं, इसकी एक मिसाल कार्निवल उत्सव हैं। कई देशों में हर साल कार्निवल उत्सव मनाने का चलन बढ़ता जा रहा है। यह एक ऐसा चलन है जिसे महानगरी बैबिलोन सीधे-सीधे या दूसरे तरीकों से बढ़ावा देती है। इन उत्सवों में कामुक किस्म का नाच किया जाता है और समलैंगिक औरतों और आदमियों की जीवन-शैली की बड़ाई की जाती है। क्या यहोवा से प्यार करनेवालों के लिए ऐसे उत्सव में हाज़िर होना या किसी भी तरीके से उसे देखना सही होगा? क्या ऐसा करना दिखाएगा कि वे बुराई से सचमुच नफरत करते हैं? (भजन 1:1, 2; 97:10) कितना अच्छा होगा कि हम भजनहार के जैसा नज़रिया रखें जिसने यह प्रार्थना की, “मेरी आँखों को बेकार की चीज़ों से फेर दे”!—भजन 119:37.

22. किस तरह के जश्‍न के मामले में एक मसीही, अपने ज़मीर के हिसाब से फैसला करेगा कि उसे शरीक होना चाहिए या नहीं?

22 किसी जश्‍न या त्योहार के दिन एक मसीही एहतियात बरतेगा कि वह कुछ ऐसा न करे जिससे दूसरों को लगे कि वह भी जश्‍न में शरीक हो रहा है। पौलुस ने लिखा, “चाहे तुम खाओ या पीओ या कोई और काम करो, सबकुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिए करो।” (1 कुरिंथियों 10:31; “ समझदारी से फैसले कीजिए” नाम का बक्स देखिए।) दूसरी तरफ, अगर यह बिलकुल साफ हो कि एक रिवाज़ या जश्‍न का झूठे धर्म से कोई नाता नहीं है, न ही वह राजनीति या देश-भक्‍ति से जुड़ा है और बाइबल के सिद्धांतों के भी खिलाफ नहीं है, तो हर मसीही अपने लिए फैसला कर सकता है कि उसमें शरीक होना चाहिए या नहीं। मगर साथ ही, उसे यह खयाल रखना चाहिए कि उसके फैसले से दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुँचे, न ही वह किसी के लिए ठोकर खाने की वजह बने।

कथनी और करनी से परमेश्‍वर की महिमा कीजिए

23, 24. यहोवा के स्तरों के बारे में हम कैसे अच्छी गवाही दे सकते हैं?

23 कुछ जश्‍नों या त्योहारों के बारे में ज़्यादातर लोग कहते हैं कि ये तो सिर्फ नाम के लिए जश्‍न हैं, लेकिन असल में यह अपने घर-परिवार और दोस्तों-रिश्‍तेदारों के साथ मिलकर बैठने का मौका होता है। इसलिए कुछ लोग हमारे बारे में गलत राय कायम कर लेते हैं कि यहोवा के साक्षी दूसरों से प्यार नहीं करते, बाइबल के आधार पर उनके फैसले कुछ ज़्यादा ही सख्त हैं। ऐसे लोगों को हम प्यार से समझा सकते हैं कि यहोवा के साक्षी भी अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलने-बैठने की अहमियत समझते हैं। (नीतिवचन 11:25; सभोपदेशक 3:12, 13; 2 कुरिंथियों 9:7) हम साक्षी पूरे साल अपने अज़ीज़ों और दोस्तों की संगति का लुत्फ उठाते हैं, सिर्फ कुछ खास दिनों पर नहीं। लेकिन हम इन मौकों को ऐसे रिवाज़ों से दूषित नहीं करना चाहते जिनसे परमेश्‍वर नाराज़ हो, क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं और उसके नेक स्तरों पर चलना चाहते हैं।—“ सच्ची उपासना सबसे बड़ी खुशी देती है” नाम का बक्स देखिए।

24 कुछ साक्षी ऐसे लोगों को अच्छी गवाही देने में कामयाब हुए हैं जिन्होंने हमारे विश्‍वास के बारे में सवाल पूछे हैं क्योंकि वे वाकई जानना चाहते थे। इन साक्षियों ने बाइबल असल में क्या सिखाती है? * किताब के अध्याय 16 से उन्हें अच्छी जानकारी दी है। मगर याद रखिए कि हमारा लक्ष्य दिलों को जीतना है, न कि किसी से बहस जीतना। इसलिए दूसरों को जवाब देते वक्‍त आदर और कोमलता से पेश आइए और आपके “बोल हमेशा मन को भानेवाले और सलोने हों।”—कुलुस्सियों 4:6.

25, 26. माता-पिता अपने बच्चों की कैसे मदद कर सकते हैं जिससे यहोवा पर उनका विश्‍वास और उसके लिए प्यार बढ़े?

25 हम यहोवा के सेवक अच्छी जानकारी रखनेवाले लोग हैं। हम जानते हैं कि हम क्यों किसी बात पर विश्‍वास करते हैं, क्यों हम कुछ काम करते हैं और क्यों कुछ कामों से साफ इनकार करते हैं। (इब्रानियों 5:14) इसलिए माता-पिताओ, अपने बच्चों को बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर सोच-विचार करना सिखाइए। ऐसा करने से आप न सिर्फ उनका विश्‍वास मज़बूत करेंगे, बल्कि आप उन्हें अपने विश्‍वास के बारे में उठनेवाले सवालों के जवाब देने के लिए तैयार करेंगे। साथ ही, आप उन्हें यकीन दिला रहे होंगे कि यहोवा उनसे कितना प्यार करता है।—यशायाह 48:17, 18; 1 पतरस 3:15.

26 वे सभी जो परमेश्‍वर की उपासना “पवित्र शक्‍ति और सच्चाई से” करते हैं, न सिर्फ ऐसे जश्‍नों से दूर रहते हैं जो बाइबल के हिसाब से गलत हैं बल्कि वे ज़िंदगी के हर दायरे में ईमानदारी से काम करते हैं। (यूहन्‍ना 4:23) आज बहुत-से लोग मानते हैं कि इस दुनिया में ईमानदारी से काम नहीं चलता। लेकिन जैसा कि हम अगले अध्याय में देखेंगे, परमेश्‍वर का तरीका हमेशा सबसे अच्छा होता है।

^ पैरा. 3 क्या मुझे इस जश्‍न में शामिल होना चाहिए?” नाम का बक्स देखिए। कई तरह के “पवित्र” माने जानेवाले दिनों और जश्‍नों के बारे में वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडैक्स में जानकारी दी गयी है। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ पैरा. 5 बाइबल और दुनियावी इतिहास के हिसाब से देखा जाए तो यीशु का जन्म शायद ईसा पूर्व 2 में यहूदी कैलेंडर के एतानीम महीने में हुआ था। यह हमारे कैलेंडर में सितंबर के आखिरी 15 दिनों से लेकर अक्टूबर के पहले 15 दिनों का वक्‍त था।— इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स, भाग 2, पेज 56-57 और बाइबल सिखाती है किताब के पेज 221-222 देखिए। इन किताबों को यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

^ पैरा. 11 जन्मदिन और शैतान-पूजा” नाम का बक्स देखिए।

^ पैरा. 11 मूसा के कानून की एक माँग थी कि बच्चे को जन्म देने के बाद एक औरत परमेश्‍वर के सामने पाप-बलि चढ़ाए। (लैव्यव्यवस्था 12:1-8) यह इसराएलियों को इस कड़वे सच की याद दिलाती थी कि इंसान अपने बच्चों को विरासत में पाप देते हैं। कानून की इस माँग ने उन्हें मदद दी कि वे बच्चे के जन्म के दिन को हद-से-ज़्यादा अहमियत न दें और इसी माँग की वजह से उन्होंने जन्मदिन मनाने के झूठे धर्मों के रिवाज़ नहीं अपनाए।—भजन 51:5.

^ पैरा. 13 इयोस्ट्रा (या ईस्ट्र) को भी प्रजनन देवी माना जाता था। कथा-कहानियों का शब्दकोश (अँग्रेज़ी) किताब के मुताबिक, “चाँद में इस देवी के पास एक खरगोश था जिसे अंडे बहुत पसंद थे और कई बार बताया जाता था कि इस देवी का सिर खरगोश जैसा है।”

^ पैरा. 18 शादी की दावत और दूसरी पार्टियों के बारे में 1 नवंबर 2006 की प्रहरीदुर्ग के पेज 12-23 पर तीन लेख देखिए।

^ पैरा. 24 इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।