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अध्याय 14

सब बातों में ईमानदार रहिए

सब बातों में ईमानदार रहिए

“हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।”—इब्रानियों 13:18.

1, 2. ईमानदार रहने की हमारी कोशिशें देखकर यहोवा को क्यों खुशी होती है? मिसाल देकर समझाइए।

एक माँ अपने छोटे-से लड़के के साथ एक दुकान से बाहर निकल रही है। तभी अचानक उस बच्चे के कदम थम जाते हैं। वह हैरान-परेशान है। क्योंकि उसके हाथों में दुकान का एक खिलौना है, जो वह गलती से उठा लाया है। उसने दुकान में उसे अपने हाथ में लिया था और वापस रखना भूल गया और अपनी माँ से यह पूछना भी भूल गया कि क्या वह उसे यह खिलौना दिलाएगी। अब वह घबराकर रोने लगता है। माँ उसे पुचकारती है और बोलती है कि वह उसके साथ दुकान में चले और खिलौना वापस रखकर दुकानदार से माफी माँगे। वह लड़का ऐसा ही करता है। यह देखकर माँ का दिल खुशी से बाग-बाग हो जाता है। उसे अपने बेटे पर गर्व महसूस होता है।

2 वाकई, माँ-बाप को शायद ही किसी और बात से इतनी खुशी मिलती हो जितनी यह देखकर कि उनके बच्चे बचपन से ही ईमानदारी की अहमियत सीख रहे हैं। स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता भी ऐसा ही महसूस करता है, क्योंकि वह ‘सच्चाई का परमेश्‍वर’ है। (भजन 31:5) यह देखकर उसे बहुत खुशी होती है कि हम उसके साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने के साथ-साथ ईमानदारी से जीने के लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं। हम भी यही चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमसे खुश हो और हम उसके प्यार के लायक बने रहें। इसलिए हम भी प्रेषित पौलुस की तरह महसूस करते हैं जिसने कहा, “हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।” (इब्रानियों 13:18) आइए हम ज़िंदगी के ऐसे चार खास पहलुओं पर ध्यान दें, जहाँ ईमानदार रहना हमारे लिए कभी-कभी एक बड़ी चुनौती हो सकता है। इसके बाद हम देखेंगे कि ईमानदारी के रास्ते पर चलने से क्या-क्या आशीषें मिलती हैं।

खुद के साथ ईमानदारी

3-5. (क) खुद को धोखे में रखने के खतरों के बारे में, परमेश्‍वर का वचन हमें क्या चेतावनी देता है? (ख) खुद के साथ ईमानदार होने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

3 हमारी सबसे पहली चुनौती है, खुद के साथ ईमानदार होना। हम पापी इंसानों की यह फितरत है कि हम अपने बारे में खुद से झूठ बोलते हैं और फिर उसी झूठ पर यकीन करने लगते हैं। यह खुद को धोखा देना है। लौदीकिया की मंडली के मसीहियों ने ऐसा ही किया था। उन्होंने खुद को इस झूठ का यकीन दिला रखा था कि वे परमेश्‍वर की सेवा में बहुत अमीर हैं। मगर यीशु ने उन्हें बताया कि उन्होंने खुद को बेवकूफ बना रखा है क्योंकि असल में वे ‘गरीब, अंधे और नंगे’ थे। उनकी हालत वाकई बहुत खराब थी। (प्रकाशितवाक्य 3:17) हकीकत से मुँह मोड़ने और खुद को धोखे में रखने की वजह से उनकी हालत और भी ज़्यादा खतरनाक हो चुकी थी।

4 आप चेले याकूब की यह चेतावनी भी याद कर सकते हैं, “अगर कोई आदमी खुद को परमेश्‍वर की उपासना करनेवाला समझता है मगर अपनी ज़बान पर कसकर लगाम नहीं लगाता, तो वह अपने दिल को धोखा देता है और उसका उपासना करना बेकार है।” (याकूब 1:26) अगर हम अपनी ज़बान का गलत इस्तेमाल करते हैं, मगर साथ ही यह यकीन रखते हैं कि यहोवा हमारी उपासना कबूल करेगा तो हम किसी और को नहीं बल्कि अपने आपको ही धोखा दे रहे होंगे। ऐसे में हमारे लिए यहोवा की उपासना करना बेकार साबित होगा और उसकी नज़रों में हमारी मेहनत फिज़ूल होगी। हमारा ऐसा बुरा हाल न हो, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?

5 ऊपर जो आयत हमने पढ़ी, उससे पहले की आयतों में याकूब ने परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई को एक आईने जैसा बताया है। याकूब हमें सलाह देता है कि हमें इस आईने में झाँककर खुद को देखना चाहिए, यानी परमेश्‍वर के खरे कानून की जाँच करने के बाद उसके मुताबिक अपने अंदर सुधार लाना चाहिए। (याकूब 1:23-25 पढ़िए।) खुद के साथ ईमानदार होने में बाइबल हमारी मदद कर सकती है। साथ ही, यह दिखा सकती है कि हमारे अंदर क्या-क्या ऐब हैं जिन्हें दूर करने की ज़रूरत है। (विलापगीत 3:40; हाग्गै 1:5) इसके अलावा, हम यहोवा से प्रार्थना कर सकते हैं और उससे बिनती कर सकते हैं कि वह हमें जाँचे और हमारी मदद करे ताकि हमारे अंदर जो बड़ी-बड़ी खामियाँ हैं उन्हें हम देख सकें और सुधारने की कोशिश करें। (भजन 139:23, 24) बेईमान होना एक ऐसी कमज़ोरी है जो हमें अपने अंदर आसानी से नज़र नहीं आती। इसके बारे में हमें वैसा ही नज़रिया रखना चाहिए जैसा हमारा पिता, यहोवा रखता है। नीतिवचन 3:32 कहता है कि “यहोवा कपटी लोगों से नफरत करता है, मगर सीधे-सच्चे लोगों से गहरी दोस्ती रखता है।” यहोवा हमारी मदद कर सकता है जिससे हम वैसा ही महसूस करेंगे जैसा वह करता है और उसकी नज़र से खुद को देख सकेंगे। याद रखिए कि पौलुस ने कहा था, “हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।” आज हम अपनी हर खामी दूर नहीं कर सकते मगर हम सच्चे दिल से ऐसा चाहते हैं और ईमानदार बने रहने की पूरी कोशिश करते हैं।

परिवार में ईमानदारी

ईमानदारी की वजह से हम ऐसा कोई गलत काम नहीं करेंगे जिसे हम बाद में छिपाने की कोशिश करें

6. पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ ईमानदारी से क्यों पेश आना चाहिए? और इस वजह से वे किन खतरों से बच सकते हैं?

6 ईमानदारी, मसीही परिवार की एक पहचान होनी चाहिए। आपसी मामलों में पति-पत्नी के बीच किसी किस्म का परदा नहीं होना चाहिए। उन्हें खुलकर बातचीत करनी चाहिए और किसी भी तरह से सच नहीं छिपाना चाहिए। मसीहियों के शादी के रिश्‍ते में ऐसी चोट पहुँचानेवाली अशुद्ध आदतों के लिए कोई जगह नहीं है, जैसे अपने साथी को छोड़ किसी और पर डोरे डालना या इश्‍क लड़ाना, इंटरनेट के ज़रिए चोरी-छिपे किसी और के साथ रिश्‍ता कायम करना, किसी भी तरीके से अश्‍लील फिल्में या तसवीरें (पोर्नोग्राफी) देखना। कुछ शादीशुदा मसीहियों ने इस तरह के गलत काम किए हैं और इन्हें अपने साथी से छिपाए रखा। ऐसा करना अपने साथी के साथ बेईमानी करना है। गौर कीजिए कि वफादार राजा दाविद ने क्या कहा था, “मैं छल करनेवालों से मेल-जोल नहीं रखता, अपनी असलियत छिपानेवालों से दूर रहता हूँ।” (भजन 26:4) अगर आप शादीशुदा हैं तो कभी-भी ऐसा काम मत कीजिए जिससे आपको अपने साथी से असलियत छिपाने की कोशिश करनी पड़े!

7, 8. बाइबल की किन मिसालों से माता-पिता अपने बच्चों को ईमानदारी की अहमियत सिखा सकते हैं?

7 अपने बच्चों को ईमानदारी की अहमियत समझाने के लिए माता-पिता अगर बाइबल में बताए लोगों की मिसालें दें, तो यह बुद्धिमानी होगी। एक तरफ, बाइबल में ऐसे लोगों की मिसालें हैं जो बेईमान थे। जैसे आकान, जिसने चोरी की और फिर अपनी चोरी छिपाने की कोशिश की; गेहजी जिसने पैसे के लालच में झूठ बोला; और यहूदा जिसने चोरी की और यीशु से विश्‍वासघात करने के बावजूद उसका दोस्त होने का झूठा दिखावा किया।—यहोशू 6:17-19; 7:11-25; 2 राजा 5:14-16, 20-27; मत्ती 26:14, 15; यूहन्‍ना 12:6.

8 दूसरी तरफ, बाइबल में ऐसे लोगों की अच्छी मिसालें भी हैं जो ईमानदार थे। एक था याकूब। उसने अपने बेटों से कहा कि अनाज के बोरों में उन्हें जो पैसा मिला है उसे वे जाकर लौटा दें, क्योंकि उसे लगा था कि वह पैसा शायद गलती से उन बोरों में डाल दिया गया था। एक और मिसाल यिप्तह और उसकी बेटी की है। बेटी ने अपने पिता की मन्‍नत पूरी करने के लिए बहुत बड़ा त्याग किया। एक और मिसाल है, यीशु। उसने बड़ी बहादुरी से एक खूँखार भीड़ के सामने आकर अपनी पहचान बतायी कि वही यीशु है ताकि भविष्यवाणी पूरी हो सके, साथ ही वह अपने दोस्तों की जान बचा सके। (उत्पत्ति 43:12; न्यायियों 11:30-40; यूहन्‍ना 18:3-11) इन चंद मिसालों से माता-पिता अंदाज़ा लगा सकते हैं कि परमेश्‍वर के वचन में कितनी अनमोल जानकारी पायी जाती है, जिसकी मदद से वे अपने बच्चों को ईमानदारी के गुण से प्यार करना सिखा सकते हैं और उसकी अहमियत समझा सकते हैं।

9. अगर माता-पिता अपने बच्चों के लिए ईमानदारी की मिसाल रखना चाहते हैं, तो उन्हें क्या नहीं करना चाहिए? और ऐसी मिसाल रखना क्यों ज़रूरी है?

9 जब माता-पिता अपने बच्चों को ईमानदारी का सबक सिखाते हैं तो वे अपने कंधों पर एक ज़िम्मेदारी भी लेते हैं। वह क्या है? प्रेषित पौलुस ने कहा, “तू जो दूसरे को सिखाता है, क्या खुद को नहीं सिखाता? क्या तू जो प्रचार करता है कि ‘चोरी न करना,’ खुद चोरी करता है?” (रोमियों 2:21) कुछ माता-पिता अपने बच्चों को तो ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं जबकि खुद बेईमानी के काम करते हैं। यह देखकर उनके बच्चे उलझन में पड़ जाते हैं। वे देखते हैं कि उनके मम्मी-पापा अपने ऑफिस से छोटी-मोटी चीज़ें चुरा लाते हैं और इस काम को सही ठहराने के लिए ऐसा कोई बहाना देते हैं, “मालिकों को मालूम है कि सब लोग ये चीज़ें घर ले जाते हैं।” या अपने झूठ को सही ठहराने के लिए कहते हैं कि थोड़ा-बहुत झूठ तो चलता है, इससे किसी का नुकसान नहीं होता। लेकिन सच तो यह है कि चोरी चोरी होती है, फिर चाहे मामूली चीज़ चुरायी जाए या कोई कीमती चीज़। उसी तरह झूठ झूठ होता है, फिर चाहे वह किसी भी मामले पर हो और छोटा हो या बड़ा। * (लूका 16:10 पढ़िए।) बच्चे जल्द ही भाँप लेते हैं कि उनके माँ-बाप सिखाते कुछ हैं और करते कुछ और हैं। मुमकिन है कि बड़े होकर वे खुद बेईमानी करें। (इफिसियों 6:4) लेकिन जब वे देखते हैं कि उनके माँ-बाप ईमानदार हैं, तो मुमकिन है कि वे भी बड़े होकर ईमानदार बनें और बेईमानी से भरी इस दुनिया में यहोवा का नाम रौशन करें।—नीतिवचन 22:6.

मंडली में ईमानदारी

10. अपने मसीही भाई-बहनों के साथ ईमानदारी से बात करने के लिए हमें क्या एहतियात बरतनी चाहिए?

10 अपने मसीही भाई-बहनों के साथ संगति करते वक्‍त हमें ईमानदारी का गुण बढ़ाने के कई मौके मिलते हैं। जैसे हमने अध्याय 12 में सीखा था, हमें बोलने के तोहफे का इस्तेमाल करने में एहतियात बरतनी चाहिए, खासकर हमारे मसीही भाई-बहनों के बारे में बात करते वक्‍त। हलकी-फुलकी बातचीत आसानी से किसी को नुकसान पहुँचानेवाली गपशप, यहाँ तक कि बदनाम करनेवाली बातें बन सकती है! अगर हम कोई ऐसी सुनी-सुनायी बात दोहरा रहे हैं जिसके बारे में हम पक्के तौर पर नहीं जानते कि यह सच भी है या नहीं, तो हम झूठ फैलाने का काम कर रहे होंगे। ऐसे में बेहतर यही होगा कि हम अपनी ज़बान पर काबू रखें। (नीतिवचन 10:19) दूसरी तरफ, ऐसी बातें भी हो सकती हैं जिनके बारे में हमें पता है कि वे सच हैं, फिर भी ज़रूरी नहीं कि ये बातें दूसरों को बतायी जाएँ। जैसे, अगर कोई ऐसी बात है जिससे हमारा कोई लेना-देना नहीं या हमारे बोलने से किसी को ठेस लग सकती है, तो ऐसी बात न ही की जाए तो बेहतर है। (1 थिस्सलुनीकियों 4:11) कुछ लोग बदतमीज़ी या रूखेपन से बात करने को यह कहकर जायज़ ठहराते हैं कि हमने ईमानदारी से खरी बात कही है। लेकिन बाइबल बताती है कि हमारे शब्द हमेशा मन को भानेवाले और प्यार-भरे होने चाहिए।—कुलुस्सियों 4:6 पढ़िए।

11, 12. (क) गंभीर पाप करनेवाले कुछ लोग कैसे अपनी समस्या को और बढ़ा लेते हैं? (ख) गंभीर पापों के बारे में शैतान के फैलाए कुछ झूठ क्या हैं? और हम कैसे उनका सामना कर सकते हैं? (ग) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यहोवा के संगठन के साथ ईमानदारी से पेश आ रहे हैं?

11 हमें खास तौर पर मंडली के अगुवों के साथ ईमानदारी से पेश आना चाहिए। कुछ लोग गंभीर पाप करने के बाद अपने पाप पर परदा डालने की कोशिश करते हैं और जब मंडली के प्राचीन इस बारे में उनसे पूछते हैं, तो वे झूठ बोलते हैं। इस तरह वे अपनी समस्या को और भी बढ़ा लेते हैं। ऐसे लोग दोहरी ज़िंदगी जीने लगते हैं। एक तरफ वे यहोवा की सेवा करने का दिखावा करते हैं, मगर साथ ही गंभीर पाप में लगे रहते हैं। दरअसल उनका ऐसा करना उनकी पूरी ज़िंदगी को एक झूठ बना देता है। (भजन 12:2) कुछ लोग ऐसे भी हैं जो प्राचीनों को सिर्फ आधी-अधूरी बात बताते हैं जबकि ज़रूरी सच्चाई छिपाते हैं। (प्रेषितों 5:1-11) ऐसी बेईमानी की वजह यह है कि वे शैतान की फैलायी कुछ झूठी बातों का यकीन कर लेते हैं।—“ गंभीर पापों के बारे में शैतान के झूठ” नाम का बक्स देखिए।

12 यह भी ज़रूरी है कि हम यहोवा के संगठन के साथ ईमानदारी से पेश आएँ, खासकर जब हम कुछ सवालों के जवाब लिखकर देते हैं। मिसाल के लिए, जब हम प्रचार की रिपोर्ट लिखते हैं तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि झूठी रिपोर्ट न डालें। और जब हम किसी खास किस्म की सेवा के लिए अर्ज़ी भरते हैं, तो अपनी सेहत के बारे में और अपने जीवन और अपनी सेवा के रिकॉर्ड के बारे में बिलकुल सही जानकारी भरें।—नीतिवचन 6:16-19 पढ़िए।

13. बिज़नेस के मामलों में हम अपने मसीही भाई-बहनों के साथ कैसे ईमानदारी से पेश आ सकते हैं?

13 मसीही भाई-बहनों के साथ ईमानदारी से पेश आना, बिज़नेस के मामलों पर भी लागू होता है। कभी-कभी हमारे मसीही भाई-बहन साथ मिलकर कोई बिज़नेस करते हैं। उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे बिज़नेस के मामलों को उपासना से बिलकुल अलग रखें और जब वे राज-घर में इकट्ठा होते हैं या प्रचार के लिए निकलते हैं, तब बिज़नेस के मामले न निपटाएँ। शायद किसी बिज़नेस में मसीही भाई-बहन मालिक या कर्मचारी हों। अगर कोई मसीही भाई या बहन हमारे यहाँ नौकरी करता है तो हमें उसके साथ ईमानदारी से पेश आना चाहिए। जैसे, जितनी तनख्वाह तय की गयी थी वह उसे वक्‍त पर दें और अपने यहाँ के कानून की माँगों के मुताबिक सुविधाएँ भी उसे दें। (1 तीमुथियुस 5:18; याकूब 5:1-4) दूसरी तरफ, अगर हम किसी भाई या बहन के यहाँ नौकरी करते हैं, तो हम जितनी तनख्वाह लेते हैं हमें उसके बराबर काम भी करना चाहिए। (2 थिस्सलुनीकियों 3:10) हमें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वे हमारे मसीही भाई-बहन हैं इसलिए हमारे साथ रिआयत करेंगे, मानो यह उनका फर्ज़ हो कि वे हमें दूसरे कर्मचारियों से ज़्यादा छुट्टियाँ या सुविधाएँ दें।—इफिसियों 6:5-8.

14. जब मसीही साथ मिलकर बिज़नेस करते हैं तो क्या एहतियात बरतना अक्लमंदी है? और क्यों?

14 अगर हम किसी मसीही भाई या बहन के साथ मिलकर बिज़नेस में पैसा लगाते हैं या बिज़नेस के लिए लोन लेते हैं, तब क्या? बाइबल इस बारे में एक बेहद ज़रूरी और फायदेमंद सिद्धांत बताती है: बिज़नेस से जुड़ी हर बात लिखित में होनी चाहिए! इसकी एक मिसाल यिर्मयाह से मिलती है। जब उसने ज़मीन का एक टुकड़ा खरीदा तो उसने दस्तावेज़ बनवाया और उसकी एक नकल बनवायी, गवाहों के सामने यह लेन-देन किया और दस्तावेज़ सँभालकर रखे ताकि बाद में ज़रूरत पड़ने पर देखे जा सकें। (यिर्मयाह 32:9-12; उत्पत्ति 23:16-20 भी देखिए।) अपने मसीही भाई-बहनों के साथ कोई बिज़नेस करते वक्‍त हर छोटे-से-छोटा ब्यौरा अच्छी तरह तैयार किए गए कागज़ात पर लिखवाना चाहिए, साथ ही गवाहों के सामने इन पर हस्ताक्षर करने चाहिए। ऐसा करने का यह मतलब नहीं कि आप एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते। इसके बजाय, ये कागज़ात किसी भी तरह की गलतफहमी या निराशा से बचाते हैं, साथ ही ऐसे झगड़ों से बचाते हैं जो भाई-बहनों में फूट डाल देते हैं। साथ मिलकर बिज़नेस करनेवाले मसीही भाई-बहनों को याद रखना चाहिए कि कोई भी बिज़नेस इतनी अहमियत नहीं रखता कि उसकी वजह से मंडली की एकता और शांति खतरे में डाली जाए। *1 कुरिंथियों 6:1-8.

दुनिया में ईमानदारी से पेश आइए

15. कारोबार में की जानेवाली बेईमानी के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है? दुनिया में बेईमानी का चलन होते हुए भी मसीही इस मामले में क्या रुख अपनाते हैं?

15 एक मसीही की ईमानदारी सिर्फ मंडली तक सीमित नहीं होनी चाहिए। पौलुस ने कहा, “हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।” (इब्रानियों 13:18) हमारा सृष्टिकर्ता देखता है कि जब हम दुनिया के लोगों के साथ बिज़नेस या कारोबार में लेन-देन करते हैं, तब भी क्या हम ईमानदारी से पेश आते हैं। अकेले नीतिवचन की किताब में, बेईमानी के तराज़ू का कई बार ज़िक्र किया गया है। (नीतिवचन 11:1; 20:10, 23) पुराने ज़माने में लेन-देन के वक्‍त सामान तौलने के लिए और ग्राहकों के पैसे तौलने के लिए तराज़ू और बाट-पत्थर इस्तेमाल होते थे। बेईमान व्यापारी, ग्राहकों को ठगने के लिए दो तरह के बाट-पत्थर और गलत वज़न दिखानेवाले तराज़ू रखते थे। * यहोवा ऐसे कामों से नफरत करता है! इसलिए हमें पूरी सख्ती बरतनी चाहिए कि हम अपने कारोबार में बेईमानी का कोई भी हथकंडा न अपनाएँ। तभी हम परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहेंगे।

16, 17. आज के ज़माने में लोग किस तरह की बेईमानी करते हैं? सच्चे मसीहियों ने क्या अटल फैसला किया है?

16 शैतान इस दुनिया का राजा है, इसलिए हमें यह देखकर ताज्जुब नहीं होता कि दुनिया में हर तरफ बेईमानी है। हर दिन हमारी ईमानदारी की आज़माइश हो सकती है। लोग नौकरी के लिए अर्ज़ी भरते वक्‍त अपनी योग्यताओं के बारे में झूठ या बढ़ा-चढ़ाकर लिखते हैं, झूठे सर्टिफिकेट बनवाते हैं और कोई तजुरबा न होते हुए भी खुद को तजुरबेकार बताते हैं। जब लोग इमिग्रेशन फॉर्म (किसी दूसरे देश में बसने के लिए दस्तावेज़), टैक्स या बीमा वगैरह के फॉर्म भरते हैं तो आम तौर पर वे सवालों के जवाब में झूठी जानकारी देते हैं, ताकि वे जो हासिल करना चाहते हैं वह उन्हें मिल सके। बहुत-से बच्चे इम्तिहानों में नकल करते हैं या फिर जब उन्हें स्कूल के लिए कोई लेख या रिपोर्ट तैयार करनी होती है, तो वे इंटरनेट से जानकारी लेकर उसे अपना बताकर लिख लेते हैं। और जब लोगों को भ्रष्ट अफसरों से काम पड़ता है तो वे उन्हें रिश्‍वत देने की पेशकश करते हैं ताकि उनका काम बन जाए। इस दुनिया में हम ऐसी ही बेईमानी की उम्मीद कर सकते हैं, जहाँ ज़्यादातर लोग “खुद से प्यार करनेवाले, पैसे से प्यार करनेवाले” हैं, मगर वे ‘भलाई से प्यार नहीं करते।’—2 तीमुथियुस 3:1-5.

17 सच्चे मसीहियों का यह अटल फैसला है कि वे बेईमानी का ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे। कभी-कभी ईमानदार होना इसलिए एक चुनौती बन जाता है क्योंकि जो लोग बेईमानी से काम लेते हैं, वे ही कामयाब होते नज़र आते हैं, यहाँ तक कि आज की दुनिया में वे दूसरों से आगे निकल जाते हैं। (भजन 73:1-8) ऐसे में हो सकता है कि मसीहियों को पैसे की तंगी झेलनी पड़े, क्योंकि वे “सब बातों में” ईमानदार रहना चाहते हैं। ईमानदार रहने के लिए इतनी कुरबानियाँ देना क्या सही है? जी हाँ, बिलकुल! मगर क्यों? ईमानदार रहने से क्या-क्या आशीषें मिलती हैं?

ईमानदार होने की आशीषें

18. ईमानदार होने का नाम कमाना क्यों बहुत बड़ी दौलत है?

18 ईमानदार और भरोसे लायक इंसान होने का नाम कमाना, एक ऐसी अनमोल दौलत है जो बहुत कम लोग अपनी ज़िंदगी में हासिल कर पाते हैं। (“ मैं कितना ईमानदार हूँ?” नाम का बक्स देखिए।) लेकिन गौर कीजिए कि यह एक ऐसी दौलत है जिसे हासिल करना हर किसी के बस में है! इसके लिए ज़रूरी नहीं कि आपके अंदर कोई खास हुनर, दौलत, खूबसूरती, ऊँचा खानदान या कोई ऐसी खूबी हो जिस पर आपका बस नहीं है। फिर भी, ज़्यादातर लोग एक अच्छा नाम कमाने में नाकाम हो जाते हैं। हीरे-मोतियों की तरह अच्छा नाम भी बहुत कम मिलता है। (मीका 7:2) कुछ लोग शायद आपके ईमानदार होने का मज़ाक उड़ाएँ, मगर दूसरे आपकी ईमानदारी की कदर करेंगे। इस अच्छाई का इनाम यह होगा कि आप उनका भरोसा जीत पाएँगे और उनसे इज़्ज़त पाएँगे। बहुत-से यहोवा के साक्षियों ने यह भी पाया है कि ईमानदार रहने से उन्हें काफी फायदा हुआ है। जब उनके मालिकों ने बेईमान कर्मचारियों को नौकरी से निकाला तो उनकी नौकरी बनी रही या फिर जहाँ ईमानदार लोगों की सख्त ज़रूरत थी ऐसी जगह पर उन्हें नौकरी मिली।

19. ईमानदारी से जीने का हमारे ज़मीर पर और यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते पर कैसा असर हो सकता है?

19 चाहे आपके मामले में ऐसा हो या न हो, फिर भी आप पाएँगे कि ईमानदार होने से और भी बड़े फायदे होते हैं। ईमानदार होने की वजह से आपका ज़मीर साफ रहेगा जो कि बहुत बड़ी आशीष है। पौलुस ने लिखा, “हमें यकीन है कि हमारा ज़मीर साफ है।” (इब्रानियों 13:18) इतना ही नहीं, हमारा प्यारा पिता, यहोवा आपकी ईमानदारी को कभी अनदेखा नहीं करेगा। वह ईमानदार लोगों से प्यार करता है। (भजन 15:1, 2; नीतिवचन 22:1 पढ़िए।) जी हाँ, ईमानदार होने से आप परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहते हैं और यही हमारी ईमानदारी का सबसे बड़ा इनाम है। अब आइए हम ईमानदारी से ही जुड़े एक और विषय पर चर्चा करें: काम के बारे में यहोवा कैसा नज़रिया रखता है

^ पैरा. 9 मंडली में अगर कोई किसी को बदनाम करने के इरादे से, उसके बारे में लगातार झूठ फैलाता है, तो प्राचीनों को ऐसे व्यक्‍ति के मामले में न्यायिक कार्रवाई करनी पड़ सकती है।

^ पैरा. 14 अगर साथ बिज़नेस करते-करते मसीहियों के बीच समस्याएँ पैदा हो जाती हैं तो उन्हें क्या करना चाहिए, इसके बारे में “बिज़नेस से जुड़े झगड़े कैसे निपटाएँ” नाम का अतिरिक्‍त लेख देखिए।

^ पैरा. 15 ये व्यापारी खरीदारी के लिए एक किस्म के बाट-पत्थर और बेचने के लिए दूसरे किस्म के बाट-पत्थर इस्तेमाल करते थे, ताकि इन दोनों से उन्हीं का फायदा हो। वे ऐसा तराज़ू भी इस्तेमाल करते थे जिसका डंडा एक तरफ से ज़्यादा लंबा या भारी होता था, ताकि वे कोई भी सामान तौलते वक्‍त ग्राहकों को ठग सकें।