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अध्याय 14

“हम सबने एकमत होकर तय किया”

“हम सबने एकमत होकर तय किया”

शासी निकाय सही फैसले पर पहुँचता है और इससे मंडलियों की एकता बनी रहती है

प्रेषितों 15:13-35 पर आधारित

1, 2. (क) पहली सदी के शासी निकाय के सामने कौन-से सवाल खड़े होते हैं? (ख) किन बातों की मदद से प्रेषित और प्राचीन समझ पाते हैं कि उन्हें क्या फैसला लेना है?

 यरूशलेम के एक घर के कमरे में प्रेषित और प्राचीन इकट्ठा हैं। वे एक-दूसरे को देख रहे हैं। उन्हें एहसास है कि वह घड़ी आ चुकी है जब उन्हें खतने के मसले पर फैसला करना है। इस मसले से बहुत-से सवाल खड़े हुए हैं। जैसे, क्या मसीहियों को मूसा का कानून मानना होगा? क्या यहूदी मसीहियों और गैर-यहूदी मसीहियों के बीच कोई फर्क होना चाहिए?

2 अब तक प्रेषितों और प्राचीनों ने अपनी बैठक में कई सबूतों पर गौर किया है। उन्होंने शास्त्र की भविष्यवाणियों पर और चश्‍मदीद गवाहों के बयानों पर ध्यान दिया है जिनसे साफ ज़ाहिर है कि यहोवा ने गैर-यहूदियों पर आशीष दी है। प्रेषित और प्राचीन इस मसले के बारे में खुलकर अपनी-अपनी राय बता चुके हैं। यहोवा की पवित्र शक्‍ति उन्हें साफ बता रही है कि उन्हें क्या फैसला लेना है। क्या ये भाई पवित्र शक्‍ति के इस निर्देश को मानेंगे?

3. प्रेषितों अध्याय 15 से हम क्या-क्या जानेंगे?

3 पवित्र शक्‍ति के इस निर्देश को मानने के लिए शासी निकाय के भाइयों को मज़बूत विश्‍वास और हिम्मत की ज़रूरत होगी। क्यों? क्योंकि जब वे इस निर्देश के मुताबिक फैसला करेंगे तो यहूदी धर्म गुरु उनसे और भी नफरत करेंगे। इतना ही नहीं, मंडली के वे लोग भी उनका विरोध करेंगे जो इस बात पर अड़े हुए हैं कि मूसा का कानून मानना ज़रूरी है। अब शासी निकाय क्या करेगा? आइए प्रेषितों अध्याय 15 से इस बारे में जानें। हम यह भी जानेंगे कि शासी निकाय ने सही फैसला करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए और आज यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय कैसे उन्हीं की तरह काम करता है। जब हमें ज़िंदगी में कुछ फैसले करने होते हैं या हमारे सामने मुश्‍किलें खड़ी होती हैं, तो हम भी पहली सदी के शासी निकाय से सीख सकते हैं।

“इस बात से भविष्यवक्‍ताओं के वचन भी मेल खाते हैं” (प्रेषि. 15:13-21)

4, 5. याकूब किन आयतों का ज़िक्र करता है?

4 कमरे में हाज़िर लोगों के सामने शिष्य याकूब खड़ा होता है और बोलना शुरू करता है। याकूब, यीशु का भाई है। a शायद वह इस मौके पर प्रेषितों और प्राचीनों की बैठक का सभापति है। शासी निकाय के सभी भाइयों ने मिलकर जो फैसला लिया है, उसे अब याकूब चंद शब्दों में सुनाता है। वह कहता है, “शिमौन ने पूरा ब्यौरा देकर बताया कि परमेश्‍वर ने कैसे पहली बार गैर-यहूदी राष्ट्रों की तरफ ध्यान दिया ताकि उनके बीच से ऐसे लोगों को इकट्ठा करे जो परमेश्‍वर के नाम से पहचाने जाएँ। और इस बात से भविष्यवक्‍ताओं के वचन भी मेल खाते हैं।”​—प्रेषि. 15:14, 15.

5 याकूब ने शिमौन यानी पतरस का भाषण सुना था और उन सबूतों पर भी गौर किया था जो बरनबास और पौलुस ने दिए थे। यह सब सुनकर याकूब को ज़रूर कुछ आयतें याद आयी होंगी जिनसे भाई इस मामले में सही फैसला ले पाए। (यूह. 14:26) जैसे जब वह कहता है, “इस बात से भविष्यवक्‍ताओं के वचन भी मेल खाते हैं,” तो इसके बाद वह आमोस 9:11, 12 में लिखी बात का ज़िक्र करता है। इब्रानी शास्त्र में आमोस की किताब “भविष्यवक्‍ताओं” की किताबों में से एक है। (मत्ती 22:40; प्रेषि. 15:16-18) गौर कीजिए, याकूब ने जिन शब्दों का ज़िक्र किया वे आज की बाइबल में आमोस के शब्दों से थोड़े अलग हैं। यह फर्क इसलिए है क्योंकि याकूब ने शायद सेप्टुआजेंट  से हवाला दिया था, जो इब्रानी शास्त्र का यूनानी भाषा में अनुवाद है।

6. शास्त्र में दर्ज़ बातों से क्या बात साफ पता चलती है?

6 यहोवा ने भविष्यवक्‍ता आमोस से कहलवाया था कि एक ऐसा वक्‍त आएगा जब वह “दाविद का गिरा हुआ छप्पर” फिर से खड़ा करेगा। यानी उस शाही वंश को दोबारा कायम करेगा जिससे मसीहा का राज निकलेगा। (यहे. 21:26, 27) क्या इसका यह मतलब था कि यहोवा एक बार फिर इसराएल राष्ट्र के साथ एक खास रिश्‍ता कायम करेगा? जी नहीं! क्योंकि भविष्यवाणी आगे बताती है कि “सब राष्ट्रों”  के लोगों को इकट्ठा किया जाएगा और वे “[परमेश्‍वर के] नाम से पुकारे” जाएँगे। याद कीजिए, पतरस ने अभी-अभी समझाया था कि परमेश्‍वर ने “हमारे [यानी यहूदी मसीहियों] और उनके [यानी गैर-यहूदी मसीहियों के] बीच कोई फर्क नहीं किया, मगर विश्‍वास से उनके दिलों को शुद्ध किया।” (प्रेषि. 15:9) दूसरे शब्दों में कहें तो यह परमेश्‍वर की मरज़ी थी कि यहूदी और गैर-यहूदी दोनों राज के वारिस बनें। (रोमि. 8:17; इफि. 2:17-19) बाइबल की किसी भी भविष्यवाणी में यह इशारा नहीं मिलता कि राज के वारिस बनने के लिए गैर-यहूदी मसीहियों को पहले खतना करवाना चाहिए या यहूदी धर्म अपनाना चाहिए।

7, 8. (क) याकूब हाज़िर लोगों से क्या कहता है? (ख) याकूब ने जब कहा कि “मेरा फैसला यह है,” तो उसका क्या मतलब था?

7 शास्त्र के इन सारे सबूतों और पतरस, बरनबास और पौलुस की ज़बरदस्त गवाही की वजह से याकूब हाज़िर लोगों से कहता है, “इसलिए मेरा फैसला यह है कि गैर-यहूदियों में से जो लोग परमेश्‍वर की तरफ फिर रहे हैं, उन्हें हम परेशान न करें, मगर उन्हें यह लिख भेजें कि वे मूर्तिपूजा से अपवित्र हुई चीज़ों से, नाजायज़ यौन-संबंध से, गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से और खून से दूर रहें। इसलिए कि पुराने ज़माने से ही ऐसे लोग रहे हैं जो मूसा की किताबों में लिखी इन बातों का हर शहर में प्रचार करते आए हैं, हर सब्त के दिन सभा-घरों में उसकी किताबें पढ़कर सुनाते आए हैं।”​—प्रेषि. 15:19-21.

8 जब याकूब ने कहा, “इसलिए मेरा फैसला यह है” तो उसका क्या मतलब था? क्या वह सभापति होने के नाते अपना अधिकार जता रहा था और बाकी भाइयों पर अपना फैसला थोप रहा था? बिलकुल नहीं! क्योंकि जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “मेरा फैसला यह है” किया गया है उसका यह भी मतलब है, “मेरी राय में” या “मेरा सुझाव यह है।” याकूब सभी भाइयों की तरफ से कोई फैसला नहीं ले रहा था। वह सिर्फ सुझाव दे रहा था कि शास्त्र की बातों और गवाहों के सबूतों को ध्यान में रखकर क्या फैसला करना सही होगा।

9. याकूब का सुझाव मानने के क्या फायदे होते?

9 क्या याकूब का सुझाव अच्छा है? बेशक। इसीलिए प्रेषित और प्राचीन बाद में उसी के सुझाव के मुताबिक फैसला लेते हैं। इस सुझाव को मानने के क्या फायदे होते? एक फायदा यह होता कि गैर-यहूदी मसीहियों को यह कहकर “परेशान” नहीं किया जाता कि उन्हें मूसा का कानून मानना ही होगा। (प्रेषि. 15:19) दूसरा, यहूदी मसीहियों के ज़मीर का खयाल रखा जाता जो बरसों से ‘मूसा की किताबों में लिखी बातों को हर सब्त के दिन सभा-घरों में सुनते’ आए थे। b (प्रेषि. 15:21) इस फैसले से यहूदी और गैर-यहूदी मसीहियों का आपसी रिश्‍ता मज़बूत होता। सबसे बढ़कर, यह फैसला यहोवा को खुश करता क्योंकि यह उसके मकसद के मुताबिक होता। जिस मसले से मंडली की एकता और शांति भंग हो सकती थी उसे भाइयों ने क्या ही बेहतरीन तरीके से सुलझाया! आज की मसीही मंडली के लिए यह एक बढ़िया मिसाल है।

सन्‌ 1998 में एक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में भाई अलबर्ट श्रोडर भाषण दे रहे हैं

10. पहली सदी की तरह आज का शासी निकाय क्या करता है?

10 जैसा पिछले अध्याय में बताया गया था, पहली सदी की तरह आज भी यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय कोई भी फैसला लेने से पहले पूरे विश्‍व के महाराजा यहोवा से और मंडली के मुखिया यीशु मसीह से मार्गदर्शन लेता है। c (1 कुरिं. 11:3) वह यह कैसे करता है? भाई अलबर्ट डी. श्रोडर ने इस बारे में समझाया। भाई 1974 में शासी निकाय के सदस्य बने और मार्च 2006 में उन्होंने धरती पर अपनी सेवा पूरी की। उन्होंने कहा, “बुधवार को शासी निकाय की बैठक होती है। वे प्रार्थना से अपनी सभा शुरू करते हैं और मार्गदर्शन के लिए यहोवा की पवित्र शक्‍ति माँगते हैं। शासी निकाय इस बात का पूरा ध्यान रखता है कि वह जिस तरह मामले को निपटाता है या जो भी फैसला करता है, वह परमेश्‍वर के वचन बाइबल के मुताबिक हो।” भाई मिल्टन जी. हेन्शल ने भी इसी से मिलती-जुलती बात कही। भाई लंबे समय तक शासी निकाय के सदस्य रह चुके थे और उन्होंने मार्च 2003 में धरती पर अपनी सेवा पूरी की। उन्होंने गिलियड स्कूल की 101वीं क्लास के ग्रैजुएशन पर विद्यार्थियों से एक अहम सवाल किया, “क्या धरती पर ऐसा कोई संगठन है जिसका शासी निकाय ज़रूरी फैसले लेने से पहले परमेश्‍वर के वचन, बाइबल से सलाह लेता हो?” जवाब साफ है, यहोवा के साक्षियों के अलावा ऐसा कोई संगठन नहीं है।

“चुने हुए आदमियों को अंताकिया भेजें” (प्रेषि. 15:22-29)

11. शासी निकाय का फैसला किस तरह सारी मंडलियों तक पहुँचाया जाता है?

11 यरूशलेम में शासी निकाय खतने के मसले पर एकमत होकर फैसला करता है। लेकिन अब ज़रूरी है कि यह फैसला सभी मंडलियों को साफ शब्दों में और प्यार से बताया जाए ताकि वे खुशी-खुशी इसे कबूल करें और उनकी एकता बनी रहे। मंडलियों को बताने का सबसे अच्छा तरीका क्या होगा? बाइबल बताती है, “प्रेषितों और प्राचीनों ने पूरी मंडली के साथ मिलकर फैसला किया कि वे पौलुस और बरनबास के साथ अपने बीच से चुने हुए आदमियों को अंताकिया भेजें, यानी बर-सबा कहलानेवाले यहूदा और सीलास को, जो भाइयों में अगुवे थे।” इसके अलावा, इन आदमियों के हाथ एक चिट्ठी भी भेजी जाती है ताकि अंताकिया, सीरिया और किलिकिया की सभी मंडलियों में इसे पढ़कर सुनाया जाए।​—प्रेषि. 15:22-26.

12, 13. (क) यहूदा और सीलास को मंडलियों में भेजने का क्या फायदा होता? (ख) शासी निकाय की तरफ से चिट्ठी भेजने का क्या फायदा होता?

12 यहूदा और सीलास “भाइयों में अगुवे थे,” इसलिए वे शासी निकाय का फैसला सुनाने के लिए पूरी तरह योग्य थे। जब ये चार भाई मंडलियों में जाते, तो भाई-बहन समझ जाते कि ये भाई खतने पर उनके सवाल का सिर्फ जवाब देने नहीं आए हैं। बल्कि इस मामले पर शासी निकाय की तरफ से साफ हिदायत देने भी आए हैं। इन “चुने हुए आदमियों” यानी यहूदा और सीलास की मौजूदगी से मंडलियों के गैर-यहूदी मसीहियों और यरूशलेम के यहूदी मसीहियों के बीच रिश्‍ता मज़बूत हो जाता। इससे ज़रूर परमेश्‍वर के लोगों के बीच शांति और एकता भी बढ़ती। शासी निकाय ने इन भाइयों को भेजकर सच में बुद्धिमानी का काम किया! इससे यह भी पता चलता है कि वह मंडलियों से कितना प्यार करता है!

13 शासी निकाय की चिट्ठी से गैर-यहूदी मसीहियों को खतने के मसले पर साफ हिदायतें मिलतीं। उन्हें यह भी साफ-साफ समझ में आता कि परमेश्‍वर की मंज़ूरी और आशीष पाने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए। पूरी चिट्ठी का खास संदेश यह था, “हम पवित्र शक्‍ति की मदद से इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि इन ज़रूरी बातों को छोड़ हम तुम पर और बोझ न लादें कि तुम मूरतों को बलि की हुई चीज़ों से, खून से, गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से और नाजायज़ यौन-संबंध से हमेशा दूर रहो। अगर तुम ध्यान रखो कि तुम इन बातों से हमेशा दूर रहोगे, तो तुम्हारा भला होगा। सलामत रहो!”​—प्रेषि. 15:28, 29.

14. यहोवा के लोगों के बीच एकता क्यों है?

14 आज पूरी दुनिया में एक लाख से भी ज़्यादा मंडलियाँ हैं और उनमें यहोवा के साक्षियों की गिनती 80 लाख से भी ज़्यादा है। फिर भी वे एक जैसी शिक्षाओं को मानते हैं और एक होकर काम करते हैं। साक्षियों के बीच इतनी एकता क्यों है जबकि दुनिया में देखें, तो लोग आपस में बँटे हुए हैं और कहीं भी शांति नहीं है? इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि मंडली का मुखिया यीशु, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” यानी शासी निकाय के ज़रिए हमें साफ-साफ निर्देश देता है। (मत्ती 24:45-47) एकता की एक और वजह यह है कि पूरी दुनिया में सभी भाई-बहन शासी निकाय के निर्देशों को खुशी-खुशी मानते हैं।

‘उन्हें बहुत हौसला मिलता है और वे बेहद खुश होते हैं’ (प्रेषि. 15:30-35)

15, 16. शासी निकाय का निर्देश पाकर मंडली के भाइयों को कैसा लगता है? शासी निकाय के फैसले का बढ़िया नतीजा क्यों निकला?

15 प्रेषितों की किताब आगे बताती है कि जब यरूशलेम से भाई अंताकिया पहुँचते हैं, तो वे ‘सब चेलों को इकट्ठा करके उन्हें वह चिट्ठी सौंपते’ हैं। शासी निकाय का निर्देश पाकर मंडली के भाइयों को कैसा लगता है? ‘चिट्ठी पढ़कर उन्हें बहुत हौसला मिलता है और वे बेहद खुश होते हैं।’ (प्रेषि. 15:30, 31) चिट्ठी देने के अलावा, यहूदा और सीलास ‘कई भाषण देकर भाइयों की हिम्मत बँधाते और उन्हें मज़बूत करते हैं।’ पौलुस, बरनबास और दूसरे भाइयों की तरह यहूदा और सीलास को भी “भविष्यवक्‍ता” इसलिए कहा गया है क्योंकि उन्होंने मंडलियों को परमेश्‍वर की मरज़ी बतायी थी।​—प्रेषि. 13:1; 15:32; निर्ग. 7:1, 2.

16 शासी निकाय के फैसले पर यहोवा ने आशीष दी और इसका बढ़िया नतीजा निकला। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शासी निकाय ने परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक और पवित्र शक्‍ति की मदद से सही समय पर और साफ-साफ हिदायत दी। साथ ही, उन्होंने मंडलियों को अपना फैसला बड़े प्यार से समझाया।

17. आज के सर्किट निगरान कैसे पौलुस, बरनबास, यहूदा और सीलास की तरह हैं?

17 पहली सदी की तरह आज यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय भाइयों की पूरी बिरादरी को वक्‍त पर ज़रूरी निर्देश देता है। जब शासी निकाय कोई फैसला लेता है, तो उसका फैसला दुनिया की सभी मंडलियों को सीधे और साफ शब्दों में बताया जाता है। कैसे? एक तरीका है, सर्किट निगरानों के ज़रिए। ये भाई अलग-अलग मंडलियों का दौरा करते हैं और उन्हें शासी निकाय के निर्देश साफ-साफ बताते हैं और उन्हें मानने का बढ़ावा देते हैं। पौलुस और बरनबास की तरह वे प्रचार में भाई-बहनों के साथ मिलकर ‘यहोवा के वचन की खुशखबरी सुनाने और सिखाने’ में काफी मेहनत करते हैं। (प्रेषि. 15:35) यही नहीं, यहूदा और सीलास की तरह वे मंडलियों में ‘कई भाषण देकर भाइयों की हिम्मत बँधाते’ और उन्हें मज़बूत करते हैं।

18. यहोवा की आशीष मंडली पर कब होती है?

18 आज मसीही मंडलियों में शांति और एकता कैसे बनी रहती है? याद कीजिए कि शिष्य याकूब ने बाद में क्या लिखा, “जो बुद्धि स्वर्ग से मिलती है वह सबसे पहले तो पवित्र, फिर शांति कायम करनेवाली, लिहाज़ करनेवाली, आज्ञा मानने के लिए तैयार . . . होती है। जो शांति कायम करते हैं, उनके लिए शांति के हालात में नेकी का फल बोया जाता है।” (याकू. 3:17, 18) हम यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि याकूब ने शासी निकाय की उस बैठक को याद करके यह बात लिखी हो। लेकिन प्रेषितों अध्याय 15 में दी घटनाओं से हम इतना ज़रूर जानते हैं कि यहोवा की आशीष मंडली पर तभी होती है, जब भाई-बहनों के बीच एकता होती है और वे अगुवाई करनेवाले भाइयों के निर्देश मानते हैं।

19, 20. (क) किस बात से पता चलता है कि अंताकिया की मंडली में शांति और एकता थी? (ख) अब पौलुस और बरनबास किस काम में अपना पूरा ध्यान लगा पाते हैं?

19 अंताकिया की मंडली में अब कितनी शांति और एकता है! वहाँ के भाई-बहनों ने यरूशलेम से आए भाइयों से बहस नहीं की बल्कि शासी निकाय के फैसले को माना। वे इस बात के लिए बहुत एहसानमंद थे कि यहूदा और सीलास उनसे मिलने आए। उन दोनों के बारे में बाइबल बताती है, “उन्होंने वहाँ कुछ वक्‍त बिताया, फिर वहाँ के भाइयों ने उन्हें विदा किया और वे [यरूशलेम में] उन भाइयों के पास लौट आए जिन्होंने उन्हें भेजा था।” d (प्रेषि. 15:33) हम यकीन रख सकते हैं कि जब यहूदा और सीलास ने यरूशलेम के भाइयों को अपने सफर की पूरी कहानी सुनायी, तो उन्हें भी बहुत खुशी हुई होगी। यहोवा की महा-कृपा से दोनों भाइयों ने अपनी ज़िम्मेदारी अच्छे-से पूरी की!

20 पौलुस और बरनबास अंताकिया में ही रुक जाते हैं। अब वे प्रचार काम पर पूरा ध्यान लगा पाते हैं और अच्छे-से इस काम की अगुवाई कर पाते हैं, ठीक जैसे आज सर्किट निगरान मंडलियों का दौरा करते वक्‍त प्रचार काम में अगुवाई करते हैं। (प्रेषि. 13:2, 3) पौलुस और बरनबास यहोवा के लोगों के लिए वाकई एक आशीष थे! ये दोनों जोशीले प्रचारक और किस तरह यहोवा के काम आते हैं और वह उन्हें क्या आशीष देता है? इसका जवाब हमें अगले अध्याय में मिलेगा।

आज शासी निकाय और उसके प्रतिनिधि जो निर्देश देते हैं, उससे मसीहियों को बहुत फायदा होता है

a यह बक्स देखें, “ ‘प्रभु का भाई’ याकूब।

b याकूब ने बड़ी समझदारी से मूसा की किताबों का ज़िक्र किया। ऐसा हम क्यों कहते हैं? क्योंकि इन किताबों में मूसा के कानून के साथ-साथ ऐसी बातें भी लिखी हैं जिनसे पता चलता है कि कानून देने से पहले भी परमेश्‍वर लोगों से क्या चाहता था। मिसाल के लिए, उत्पत्ति की किताब से साफ पता चलता है कि उन्हें खून नहीं खाना और व्यभिचार और मूर्तिपूजा से दूर रहना है। (उत्प. 9:3, 4; 20:2-9; 35:2, 4) ये ऐसे सिद्धांत हैं जो सब इंसानों को मानने थे, फिर चाहे वे यहूदी हों या गैर-यहूदी।

d कुछ बाइबलों में आयत 34 में लिखा है कि सीलास ने अंताकिया में ही रहने का फैसला किया। (हिंदी - ओ.वी.) मगर सबसे पुरानी हस्तलिपियों में इस आयत में ऐसा कुछ नहीं लिखा है। ऐसा मालूम होता है कि प्रेषितों की किताब के लिखे जाने के बहुत समय बाद यह बात जोड़ी गयी थी।