अध्याय 1
“तेरा राज आए”
1, 2. यीशु के तीन प्रेषितों ने यहोवा को क्या कहते सुना और उन्होंने क्या किया?
अगर यहोवा परमेश्वर खुद आपसे बात करता और कुछ करने के लिए कहता तो आप क्या करते? क्या आप उसकी बात जल्द-से-जल्द नहीं मानते, फिर चाहे वह आपसे जो भी कहता? आप ज़रूर मानते!
2 ईसवी सन् 32 के फसह के कुछ समय बाद पतरस, याकूब और यूहन्ना के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। (मत्ती 17:1-5 पढ़िए।) ये तीनों प्रेषित अपने मालिक यीशु के साथ “एक ऊँचे पहाड़” पर थे। उन्होंने एक दर्शन में झलक देखी कि जब यीशु स्वर्ग में राजा बनेगा तो वह कैसे महिमा से भरपूर होगा। दर्शन इतना असल लग रहा था कि पतरस ने उसमें हिस्सा लेने की कोशिश की। वह कुछ कह ही रहा था कि तभी उन पर एक बादल छा गया। तब पतरस और उसके साथियों को एक ऐसा सम्मान मिला जो बहुत कम इंसानों को मिला है। उन्होंने यहोवा की आवाज़ सुनी! यहोवा ने पहले कहा कि यीशु उसका बेटा है और फिर उनसे साफ शब्दों में कहा, “इसकी सुनो।” प्रेषितों ने परमेश्वर की यह बात मानी। यीशु ने जो सिखाया उसे उन्होंने सुना और दूसरों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया।—प्रेषि. 3:19-23; 4:18-20.
यीशु ने सबसे ज़्यादा परमेश्वर के राज के बारे में बात की थी
3. (क) यहोवा क्यों चाहता है कि हम उसके बेटे की बात सुनें? (ख) हमें किस बारे में अच्छी तरह जानना चाहिए?
3 “इसकी सुनो,” ये शब्द हमारे फायदे के लिए बाइबल में लिखे गए थे। (रोमि. 15:4) हमें यीशु की बात क्यों सुननी चाहिए? क्योंकि यीशु यहोवा की तरफ से बात करता है। वह हमेशा वही सिखाता है जो उसका पिता यहोवा हमें बताना चाहता है। (यूह. 1:1, 14) यीशु ने किसी और विषय से ज़्यादा परमेश्वर के राज के बारे में सिखाया, इसलिए हमें इस राज के बारे में अच्छी तरह जानना चाहिए। यह स्वर्ग की एक सरकार है जिसके राजा, मसीह यीशु और 1,44,000 जन हैं। (प्रका. 5:9, 10; 14:1-3; 20:6) मगर आइए पहले देखें कि यीशु ने सबसे ज़्यादा परमेश्वर के राज के बारे में क्यों सिखाया।
“जो दिल में भरा है . . . ”
4. हम क्यों कह सकते हैं कि परमेश्वर का राज यीशु के दिल के बहुत करीब है?
4 परमेश्वर का राज, यह एक ऐसा विषय है जो यीशु के दिल के बहुत करीब है। यह हम क्यों कह सकते हैं? क्योंकि एक इंसान की बातों से पता चलता है कि उसके लिए क्या चीज़ ज़्यादा मायने रखती है। खुद यीशु ने कहा था, “जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है।” (मत्ती 12:34) यीशु हर मौके पर राज के बारे में बात करता था। खुशखबरी की चार किताबों में राज के बारे में सौ से ज़्यादा बार ज़िक्र मिलता है और सबसे ज़्यादा बार यीशु ने ही ज़िक्र किया। उसके प्रचार का खास विषय ही परमेश्वर का राज था, इसलिए उसने कहा, “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनानी है क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:43) जब यीशु को दोबारा ज़िंदा किया गया तब भी वह अपने चेलों को राज के बारे में बताता रहा। (प्रेषि. 1:3) वाकई यीशु के दिल में राज के लिए इतनी कदरदानी भरी थी कि वह खुद को रोक नहीं पाया और राज के बारे में दूसरों को बताता रहा।
5-7. (क) हम कैसे जानते हैं कि परमेश्वर का राज यहोवा के दिल के बहुत करीब है? उदाहरण देकर समझाइए। (ख) अगर परमेश्वर का राज हमारे दिल के करीब है तो हम क्या करेंगे?
5 परमेश्वर का राज, यह विषय यहोवा के दिल के भी बहुत करीब है। यह हम कैसे जानते हैं? याद कीजिए कि यहोवा ने ही अपने इकलौते बेटे को धरती पर भेजा था और बेटे ने जो भी कहा और सिखाया वह यहोवा की तरफ से था। (यूह. 7:16; 12:49, 50) इसका मतलब, खुशखबरी की चार किताबों में यीशु की ज़िंदगी और सेवा के बारे में जो भी दर्ज़ है उसे यहोवा ने ही लिखवाया है। एक पल के लिए सोचिए कि इसका क्या मतलब है।
हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या परमेश्वर का राज मेरे दिल के करीब है?’
6 मान लीजिए, आप एक एल्बम में अपने परिवार की तसवीरें रखना चाहते हैं। आपके पास ढेरों तसवीरें हैं, मगर एल्बम में सारी तसवीरें नहीं आ सकतीं। आप क्या करेंगे? आप चुन-चुनकर तसवीरें रखेंगे। खुशखबरी की किताबें भी एक एल्बम जैसी हैं जिनसे हमें यीशु की एक साफ तसवीर मिलती है। यहोवा ने खुशखबरी के लेखकों को धरती पर यीशु की कही सारी बातें और उसके किए सभी कामों के बारे में लिखने के लिए प्रेरित नहीं किया। (यूह. 20:30; 21:25) इसके बजाय उसकी पवित्र शक्ति ने उन्हें यीशु की सिर्फ उन बातों और कामों के बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया जिनसे हम समझ पाते हैं कि यीशु की सेवा का मकसद क्या था और यहोवा किस बात को सबसे ज़रूरी समझता है। (2 तीमु. 3:16, 17; 2 पत. 1:21) खुशखबरी की किताबें परमेश्वर के राज के बारे में यीशु की शिक्षाओं से भरी हैं, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि परमेश्वर का राज यहोवा के दिल के करीब है। ज़रा सोचिए, यहोवा चाहता है कि हम उसके राज के बारे में सबकुछ जानें!
7 हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या परमेश्वर का राज मेरे दिल के करीब है?’ अगर हाँ, तो हम यह सुनने के लिए उत्सुक होंगे कि यीशु ने राज के बारे में क्या कहा और क्या सिखाया। हम जानना चाहेंगे कि वह राज क्यों इतना अहम है, वह कब और किस मायने में आएगा।
“तेरा राज आए”—किस मायने में?
8. यीशु ने कैसे चंद शब्दों में बताया कि राज कितना अहम है?
8 आदर्श प्रार्थना पर ध्यान दीजिए। यीशु ने चंद शब्दों में क्या ही दमदार तरीके से बताया कि राज कितना अहम है और यह क्या हासिल करेगा। उस प्रार्थना में सात बिनतियाँ हैं। शुरू की तीन बिनतियाँ यहोवा के मकसद के बारे में हैं: उसका नाम पवित्र किया जाए, उसका राज आए और धरती पर उसकी मरज़ी पूरी हो जैसे स्वर्ग में होती है। (मत्ती 6:9, 10 पढ़िए।) ये तीन बिनतियाँ एक-दूसरे से जुड़ी हैं। कैसे? मसीहा का राज ही वह इंतज़ाम है जिसके ज़रिए यहोवा अपने नाम को पवित्र करेगा और अपनी मरज़ी पूरी करेगा।
9, 10. (क) जब परमेश्वर का राज आएगा तो यह क्या करेगा? (ख) आप बाइबल में बताए किस वादे को पूरा होते देखने के लिए तरस रहे हैं?
9 परमेश्वर के राज के आने का क्या मतलब है? जब हम प्रार्थना करते हैं कि “तेरा राज आए” तो दरअसल हम यह बिनती कर रहे होते हैं कि वह राज ठोस कदम उठाए। जब वह राज आएगा तो धरती पर शक्तिशाली काम करेगा। वह इस बुरी दुनिया को मिटा देगा, इंसानों की बनायी सभी सरकारों को भी हटा देगा और एक नयी दुनिया लाएगा जहाँ नेकी का बसेरा होगा। (दानि. 2:44; 2 पत. 3:13) फिर जब यह राज हुकूमत करना शुरू करेगा तो पूरी धरती फिरदौस बन जाएगी। (लूका 23:43) जो मरे हुए लोग परमेश्वर की याद में हैं वे ज़िंदा किए जाएँगे और अपने अज़ीज़ों से दोबारा मिलेंगे। (यूह. 5:28, 29) परमेश्वर की आज्ञा माननेवाले इंसान परिपूर्ण हो जाएँगे और हमेशा की ज़िंदगी का आनंद उठाएँगे। (प्रका. 21:3-5) आखिरकार, धरती पर भी यहोवा की मरज़ी पूरी होगी जैसे स्वर्ग में पूरी होती है! क्या आप बाइबल में दर्ज़ इन अनमोल वादों को पूरा होते देखने के लिए तरस नहीं रहे हैं? याद रखिए, जब भी आप परमेश्वर के राज के आने के लिए प्रार्थना करते हैं तो आप यह बिनती कर रहे होते हैं कि वे वादे पूरे हों।
10 यह बात साफ है कि आदर्श प्रार्थना की वह बिनती पूरी नहीं हुई है, यानी परमेश्वर का राज अभी तक नहीं आया है। आज भी इंसानी सरकारों का राज है और नयी दुनिया अब तक नहीं आयी है। मगर एक खुशखबरी है। परमेश्वर के राज की हुकूमत स्वर्ग में शुरू हो चुकी है, जैसे कि हम अगले अध्याय में चर्चा करेंगे। अब आइए देखें कि यीशु ने इस बारे में क्या कहा था कि राज की हुकूमत कब शुरू होगी और यह राज कब धरती पर आएगा।
परमेश्वर के राज की हुकूमत कब शुरू होती?
11. परमेश्वर के राज की हुकूमत कब शुरू होगी, इस बारे में यीशु ने क्या ज़ाहिर किया?
11 पहली सदी में यीशु के कुछ चेले उम्मीद कर रहे थे कि परमेश्वर के राज की हुकूमत उनके दिनों में शुरू हो जाएगी। मगर यीशु ने ज़ाहिर किया कि ऐसा नहीं होगा। (प्रेषि. 1:6) ध्यान दीजिए कि उसने दो मिसालों में क्या बताया था। एक मिसाल उसने शायद ईसवी सन् 31 के वसंत में दी थी। उसने दूसरी मिसाल ईसवी सन् 33 में दी थी।
12. गेहूँ और जंगली पौधों की मिसाल से कैसे पता चलता है कि राज की हुकूमत पहली सदी में नहीं शुरू हुई थी?
12 गेहूँ और जंगली पौधों की मिसाल। (मत्ती 13:24-30 पढ़िए।) यीशु ने यह मिसाल बताने के बाद अपने चेलों को उसका मतलब समझाया। (मत्ती 13:36-43) चंद शब्दों में कहें तो वह मिसाल और उसका मतलब यह है: प्रेषितों की मौत के बाद शैतान गेहूँ (यानी ‘राज के बेटों’ या अभिषिक्त मसीहियों) के बीच जंगली पौधों के बीज (नकली मसीही) बो देगा। गेहूँ और जंगली पौधों को कटाई के समय तक यानी ‘दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त’ तक साथ-साथ बढ़ने दिया जाएगा। कटाई का समय शुरू होने के बाद जंगली पौधों को इकट्ठा किया जाएगा। इसके बाद गेहूँ को इकट्ठा किया जाएगा। यह मिसाल दिखाती है कि परमेश्वर के राज की हुकूमत पहली सदी में नहीं बल्कि तब शुरू होती जब गेहूँ और जंगली पौधों के बढ़ने का समय खत्म होता। और ऐसा ही हुआ, 1914 में गेहूँ और जंगली पौधों के बढ़ने का समय खत्म हुआ और कटाई का समय शुरू हुआ।
13. यीशु ने क्या मिसाल देकर समझाया कि उसे स्वर्ग लौटते ही राजा नहीं बनाया जाएगा?
13 दस मीना की मिसाल। (लूका 19:11-13 पढ़िए।) यीशु ने यह मिसाल तब दी थी जब वह आखिरी बार यरूशलेम जा रहा था। यीशु के कुछ चेलों को लगा कि जैसे ही वे यरूशलेम पहुँचेंगे, यीशु अपना राज कायम कर देगा। उनकी यह गलत सोच सुधारने के लिए और यह बताने के लिए कि राज की हुकूमत के शुरू होने में अभी लंबा समय बाकी है, यीशु ने एक मिसाल दी। उसने खुद की तुलना ‘एक ऐसे आदमी से की जो शाही खानदान से था’ और जिसे ‘राज-अधिकार पाने के लिए दूर देश’ तक सफर करना पड़ा। * यीशु के मामले में “दूर देश” स्वर्ग था जहाँ वह अपने पिता से राज करने का अधिकार पाता। मगर यीशु जानता था कि उसे स्वर्ग लौटते ही राजा नहीं बनाया जाएगा। उसे परमेश्वर के दाएँ हाथ बैठकर तय समय तक इंतज़ार करना था। सबूत दिखाते हैं कि इंतज़ार का वह समय कई सदियों तक चला।—भज. 110:1, 2; मत्ती 22:43, 44; इब्रा. 10:12, 13.
परमेश्वर का राज कब आएगा?
14. (क) यीशु ने अपने चार प्रेषितों के सवाल का क्या जवाब दिया? (ख) यीशु की भविष्यवाणी जिस तरह पूरी हो रही है, उससे उसकी मौजूदगी और राज के बारे में क्या पता चलता है?
14 यीशु की मौत से कुछ दिन पहले चार प्रेषितों ने उससे पूछा, “तेरी मौजूदगी की और दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त की क्या निशानी होगी?” (मत्ती 24:3; मर. 13:4) जवाब में यीशु ने एक भविष्यवाणी बतायी जो मत्ती के अध्याय 24 और 25 में दी गयी है। यीशु ने उस भविष्यवाणी में बहुत सारी घटनाओं के बारे में बताया जो पूरी दुनिया में होंगी और एक खास दौर यानी उसकी “मौजूदगी” की निशानी होंगी। उसकी मौजूदगी तब शुरू होगी जब स्वर्ग में राज की हुकूमत शुरू होगी और उसकी मौजूदगी तब खत्म होगी जब राज धरती पर आएगा। हमारे पास इस बात के ढेरों सबूत हैं कि यीशु की भविष्यवाणी 1914 से पूरी हो रही है। * इसलिए कहा जा सकता है कि उसी साल यीशु की मौजूदगी और परमेश्वर के राज की हुकूमत शुरू हुई।
15, 16. जब यीशु ने “यह पीढ़ी” कहा तो वह किन लोगों की बात कर रहा था?
15 मगर परमेश्वर का राज धरती पर कब आएगा? यीशु ने यह नहीं बताया कि यह ठीक कब आएगा। (मत्ती 24:36) मगर उसने एक ऐसी बात बतायी जिससे हमें यकीन होना चाहिए कि राज बहुत जल्द आनेवाला है। यीशु ने बताया कि लोगों की एक “पीढ़ी” भविष्यवाणी में बतायी निशानी को पूरा होते देखेगी और उसके बाद वह राज धरती पर आएगा। (मत्ती 24:32-34 पढ़िए।) “यह पीढ़ी” किन लोगों से बनी है? आइए यीशु के शब्दों को जाँचें।
16 “यह पीढ़ी।” क्या यीशु उन लोगों की बात कर रहा था जो उस पर विश्वास नहीं करते? जी नहीं। गौर कीजिए कि यीशु किन लोगों से बात कर रहा था। उसने यह भविष्यवाणी चंद प्रेषितों को बतायी जो ‘अकेले में उसके पास आए’ थे। (मत्ती 24:3) बहुत जल्द पवित्र शक्ति से प्रेषितों का अभिषेक किया जाता। यह भी गौर कीजिए कि ‘इस पीढ़ी’ के बारे में बताने से पहले उसने क्या कहा था। उसने कहा, “अब अंजीर के पेड़ की मिसाल से यह बात सीखो: जैसे ही उसकी नयी डाली नरम हो जाती है और उस पर पत्तियाँ आने लगती हैं, तुम जान लेते हो कि गरमियों का मौसम पास है। उसी तरह, जब तुम ये सब बातें होती देखो, तो जान लेना कि इंसान का बेटा पास है बल्कि दरवाज़े पर ही है।” जो लोग यीशु पर विश्वास नहीं करते, वे नहीं बल्कि उसके अभिषिक्त चेले उन घटनाओं को देखते जो उसने बतायी थीं और उनके मायने समझ पाते कि यीशु “दरवाज़े पर ही है।” इसलिए जब यीशु ने “यह पीढ़ी” कहा तो वह अपने अभिषिक्त चेलों की बात कर रहा था।
17. “पीढ़ी” और “ये सारी बातें,” इन शब्दों का क्या मतलब है?
17 “जब तक ये सारी बातें पूरी न हो जाएँ, तब तक यह पीढ़ी हरगिज़ नहीं मिटेगी।” यह बात कैसे पूरी होगी? जवाब जानने के लिए हमें दो बातों का मतलब समझना होगा: “पीढ़ी” और “ये सारी बातें।” “पीढ़ी” का अकसर मतलब होता है एक ही दौर में जीनेवाले अलग-अलग उम्र के लोग। एक पीढ़ी का समय बहुत लंबा नहीं होता और उसका अंत भी होता है। (निर्ग. 1:6) “ये सारी बातें,” इन शब्दों का मतलब है भविष्यवाणी में बतायी वे सारी घटनाएँ जो यीशु की मौजूदगी के दौरान होंगी, यानी 1914 में जब उसकी मौजूदगी शुरू होगी तब से लेकर “महा-संकट” तक जब उसकी मौजूदगी खत्म होगी।—मत्ती 24:21.
18, 19. (क) यीशु ने जब “यह पीढ़ी” कहा तो उसका क्या मतलब था? (ख) इसलिए हम क्या कह सकते हैं?
18 तो फिर यीशु ने जब “यह पीढ़ी” कहा तो उसका क्या मतलब था? इस पीढ़ी में अभिषिक्त मसीहियों के दो समूह शामिल हैं जो कुछ वक्त तक साथ-साथ जीते। पहले समूह में वे अभिषिक्त मसीही थे जिन्होंने 1914 से निशानी को पूरा होते देखा था। दूसरे समूह में वे अभिषिक्त मसीही हैं जो पहले समूह *
के मसीहियों के साथ कुछ वक्त जीए थे। इस दूसरे समूह के कम-से-कम कुछ मसीही आनेवाले संकट की शुरूआत के वक्त ज़िंदा होंगे। दोनों समूहों से मिलकर एक पीढ़ी बनती है, क्योंकि अभिषिक्त मसीहियों के नाते वे कुछ वक्त तक साथ-साथ जीए थे।19 इन बातों को ध्यान में रखते हुए हम क्या कह सकते हैं? राजा की हैसियत से यीशु की मौजूदगी की निशानी सारी दुनिया में पूरी होती दिखायी दे रही है। हम यह भी देख सकते हैं कि ‘इस पीढ़ी’ के जो अभिषिक्त मसीही आज ज़िंदा हैं उनकी उम्र ढल रही है, मगर महा-संकट के शुरू होने से पहले उन सबकी मौत नहीं होगी, उनमें से कुछ ज़िंदा रहेंगे। इसलिए हम कह सकते हैं कि परमेश्वर का राज बहुत जल्द आनेवाला है और धरती पर हुकूमत शुरू करनेवाला है! ज़रा सोचिए, यीशु ने हमें जो प्रार्थना सिखायी है कि “तेरा राज आए,” उसे अपनी आँखों से पूरा होते देखना कितना रोमांचक होगा!
20. (क) इस किताब में किस बारे में चर्चा की जाएगी? (ख) अगले अध्याय में क्या बताया जाएगा?
20 हम यह कभी न भूलें कि यहोवा ने खुद स्वर्ग से अपने बेटे के बारे में क्या कहा था। उसने कहा था, “इसकी सुनो।” सच्चे मसीही होने के नाते हम दिल से परमेश्वर की यह बात मानना चाहते हैं। यीशु ने परमेश्वर के राज के बारे में जो-जो कहा और सिखाया, वह सब हम जानना चाहते हैं। उस राज ने अब तक क्या-क्या किया है और आगे क्या करेगा, यह जानना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है और इसी बारे में इस किताब में चर्चा की जाएगी। अगले अध्याय में बताया जाएगा कि जब स्वर्ग में परमेश्वर के राज की हुकूमत शुरू हुई तो उससे पहले और बाद में कैसी रोमांचक घटनाएँ घटी थीं।
^ पैरा. 13 यीशु की मिसाल सुनकर शायद चेलों को हेरोदेस महान के बेटे अरखिलाउस की याद आयी होगी। हेरोदेस ने मरने से पहले अरखिलाउस को अपना वारिस चुना ताकि वह यहूदिया और दूसरे इलाकों का राजा बने। मगर अरखिलाउस को राज शुरू करने से पहले एक लंबा सफर तय करके रोम जाना पड़ा ताकि सम्राट औगुस्तुस की मंज़ूरी पा सके।
^ पैरा. 14 ज़्यादा जानने के लिए बाइबल हमें क्या सिखाती है? किताब का अध्याय 9 देखें।
^ पैरा. 18 पहले समूह के सभी अभिषिक्त मसीहियों (यानी जिन्होंने 1914 में ‘प्रसव-पीड़ा की तरह आनेवाली मुसीबतों की शुरूआत’ देखी थी) की मौत के बाद जिनका अभिषेक हुआ है, वे ‘इस पीढ़ी’ के लोग नहीं हैं।—मत्ती 24:8.