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अध्याय 3

यहोवा अपने मकसद के बारे में समझ देता है

यहोवा अपने मकसद के बारे में समझ देता है

अध्याय किस बारे में है

यहोवा समय के गुज़रते अपने मकसद के बारे में समझ देता रहा है। मगर वह सिर्फ उन्हीं को यह समझ देता है जो उसका डर मानते हैं

1, 2. यहोवा ने इंसानों के बारे में अपना मकसद कैसे बताया?

अपने बच्चों से प्यार करनेवाले माता-पिता जब परिवार से जुड़े मामलों के बारे में बात करते हैं, तो वे बच्चों को भी शामिल करते हैं। मगर वे समझ से काम लेते हैं और बच्चों को कुछ ही बातें बताते हैं। वे उनकी उम्र का ध्यान रखते हुए उन्हें सिर्फ उतनी जानकारी देते हैं जितनी वे समझ सकते हैं।

2 उसी तरह, यहोवा समय के गुज़रते अपने लोगों को समझ देता रहा है कि इंसानी परिवार के बारे में उसका मकसद क्या है। उसने यह समझ तभी दी जब उसे सही लगा। आइए एक नज़र डालें कि यहोवा ने शुरू से लेकर अब तक राज की सच्चाइयों का खुलासा कैसे किया।

राज की ज़रूरत क्यों पड़ी?

3, 4. क्या यहोवा ने पहले से तय किया था कि उसके अधिकार के खिलाफ बगावत हो? समझाइए।

3 शुरू में परमेश्‍वर का यह मकसद नहीं था कि वह एक ऐसा राज कायम करे जिसका राजा मसीहा होगा। क्यों? क्योंकि यहोवा ने पहले से तय नहीं किया था कि उसके अधिकार के खिलाफ बगावत हो। उसने इंसानों को खुद फैसला करने की आज़ादी दी थी। उसने आदम और हव्वा को बताया कि उसने किस मकसद से इंसानों को बनाया है। उसने कहा, “फूलो-फलो और गिनती में बढ़ जाओ, धरती को आबाद करो और इस पर अधिकार रखो।” (उत्प. 1:28) यहोवा ने उन्हें यह आज्ञा भी दी कि वे अच्छे-बुरे के बारे में उसके स्तरों को मानें। (उत्प. 2:16, 17) आदम और हव्वा चाहते तो उसके वफादार रह सकते थे। अगर वे और उनके वंशज यहोवा के वफादार रहते तो उसका मकसद पूरा करने के लिए एक ऐसे राज की ज़रूरत नहीं होती जिसका राजा मसीह होता। आज सारी धरती परिपूर्ण इंसानों से भरी होती और वे सब यहोवा की उपासना कर रहे होते।

4 भले ही शैतान, आदम और हव्वा ने यहोवा से बगावत कर दी, फिर भी यहोवा धरती को परिपूर्ण इंसानों से आबाद करने का अपना मकसद नहीं भूला। उसने बस उसे पूरा करने का तरीका बदल दिया। उसका मकसद एक ट्रेन की तरह नहीं है, जो किसी एक पटरी पर चलने से ही मंज़िल तक पहुँच सकती है और अगर किसी ने बीच में रुकावट डाल दी तो वह पटरी से उतर जाती है। इसके बजाय, यहोवा जब एक बार अपना मकसद बता देता है तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे पूरा होने से नहीं रोक सकती। (यशायाह 55:11 पढ़िए।) अगर उसके रास्ते में कोई रुकावट पैदा हो जाए तो वह दूसरा रास्ता लेता है। * (निर्ग. 3:14, 15) वह अपना मकसद पूरा करने के लिए जो नया रास्ता अपनाता है, उसके बारे में सही वक्‍त पर वह अपने वफादार सेवकों को बताता है।

5. जब अदन में बगावत हुई तो यहोवा ने क्या किया?

5 जब अदन में बगावत हुई तो यहोवा ने एक राज की शुरूआत करने का मकसद ठहराया। (मत्ती 25:34) बगावत के बाद ऐसा लगा कि इंसानों के लिए कोई उम्मीद नहीं बची। मगर यहोवा ने एक इंतज़ाम के बारे में बताया जिसके ज़रिए वह इंसानों को दोबारा परिपूर्ण बनाएगा और शैतान ने अधिकार पाने की कोशिश में जो नुकसान किया था, उसकी भरपाई करेगा। (उत्प. 3:14-19) मगर यहोवा ने उस राज के बारे में सारी बातें एक-साथ नहीं बता दीं।

यहोवा ने राज की सच्चाइयाँ बतानी शुरू कीं

6. (क) यहोवा ने क्या वादा किया? (ख) मगर उस वक्‍त उसने क्या नहीं बताया?

6 यहोवा ने सबसे पहली भविष्यवाणी में एक “वंश” के आने का वादा किया जो साँप को कुचल देगा। (उत्पत्ति 3:15 पढ़िए।) लेकिन यहोवा ने यह नहीं बताया कि वह वंश और साँप का वंश किसे दर्शाते हैं। उसने अगले 2,000 सालों तक इन बातों पर कोई रौशनी नहीं डाली। *

7. यहोवा ने अब्राहम को क्यों चुना और इससे हम क्या सीखते हैं?

7 समय आने पर यहोवा ने अब्राहम को बताया कि उसके ज़रिए वादा किया गया वंश आएगा। यहोवा ने अब्राहम को इसलिए चुना क्योंकि वह यहोवा की ‘आज्ञा मानता था।’ (उत्प. 22:18) इससे हम सीखते हैं कि यहोवा अपने मकसद के बारे में सिर्फ उन्हीं को बताता है जो उसका आदर करते और उसका डर मानते हैं।​—भजन 25:14 पढ़िए।

8, 9. यहोवा ने अब्राहम और याकूब को वादा किए गए वंश के बारे में क्या बताया?

8 जब यहोवा ने एक स्वर्गदूत के ज़रिए अपने दोस्त अब्राहम से बात की, तो उसने पहली बार उस वंश के बारे में यह अहम जानकारी दी कि वह एक इंसान होगा। (उत्प. 22:15-17; याकू. 2:23) मगर इसका मतलब क्या है कि वह इंसान साँप को कुचल देगा? साँप किसे दर्शाता है? बाद में जो बातें ज़ाहिर की गयीं उनसे इन सवालों के जवाब मिल गए।

9 यहोवा ने तय किया कि वादा किया गया वंश अब्राहम के पोते याकूब के ज़रिए आएगा, क्योंकि याकूब को परमेश्‍वर पर मज़बूत विश्‍वास था। (उत्प. 28:13-22) याकूब के ज़रिए यहोवा ने खुलासा किया कि वादा किया गया वंश उसके बेटे यहूदा का वंशज होगा। याकूब ने भविष्यवाणी की कि यहूदा के उस वंशज को “राजदंड” दिया जाएगा, जो राज करने के अधिकार की निशानी है और “देश-देश के लोग उसकी आज्ञा मानेंगे।” (उत्प. 49:1, 10) इस भविष्यवाणी में यहोवा ने सुराग दिया कि वादा किया गया वंश एक राजा बनेगा।

10, 11. यहोवा ने अपने मकसद के बारे में दाविद और दानियेल को क्यों बताया?

10 यहूदा के ज़माने के करीब 650 साल बाद, यहोवा ने अपने मकसद के बारे में राजा दाविद को कुछ और जानकारी दी। दाविद, यहूदा का एक वंशज था और उसके बारे में यहोवा ने कहा, “वह एक ऐसा इंसान है जो मेरे दिल को भाता है।” (1 शमू. 13:14; 17:12; प्रेषि. 13:22) दाविद यहोवा का आदर करता और उसका डर मानता था, इसलिए यहोवा ने उसके साथ एक करार किया। यहोवा ने उससे वादा किया कि उसका एक वंशज सदा राज करेगा।​—2 शमू. 7:8, 12-16.

11 दाविद के ज़माने के करीब 500 साल बाद, यहोवा ने भविष्यवक्‍ता दानियेल के ज़रिए खुलासा किया कि वह “मसीहा” या “अभिषिक्‍त जन” ठीक किस साल धरती पर प्रकट होगा। (दानि. 9:25; फुटनोट) यहोवा की नज़र में दानियेल “बहुत अनमोल” था। क्यों? क्योंकि दानियेल, यहोवा का गहरा आदर करता था और लगातार उसकी सेवा करता था।​—दानि. 6:16; 9:22, 23.

12. दानियेल से क्या करने के लिए कहा गया और क्यों?

12 हालाँकि यहोवा ने दानियेल जैसे वफादार भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए वादा किए गए वंश या मसीहा के बारे में बहुत सारी बातें लिखवायीं, मगर तब तक यहोवा का समय नहीं आया था कि उसके सेवक उन बातों का ठीक-ठीक मतलब समझें। मिसाल के लिए, दानियेल को जब परमेश्‍वर के राज की शुरूआत के बारे में एक दर्शन दिया गया तो उससे कहा गया कि वह यहोवा के ठहराए समय तक उस भविष्यवाणी पर मुहर लगा दे। उसे बताया गया कि भविष्य में जब वह समय आएगा तो “सच्चा ज्ञान बहुत बढ़” जाएगा।​—दानि. 12:4.

यहोवा ने दानियेल जैसे वफादार आदमियों से मसीहा के राज के बारे में बहुत सारी बातें लिखवायीं

यीशु ने परमेश्‍वर के मकसद पर रौशनी डाली

13. (क) वादा किया गया वंश कौन था? (ख) यीशु ने उत्पत्ति 3:15 की भविष्यवाणी पर कैसे रौशनी डाली?

13 यहोवा ने साफ-साफ बताया कि यीशु वादा किया गया वंश है और दाविद का वह वंशज है जो राजा बनेगा। (लूका 1:30-33; 3:21, 22) जब यीशु ने सेवा शुरू की तो मानो ज्ञान की तेज़ रौशनी चमक उठी। परमेश्‍वर के मकसद के बारे में कई बातों का खुलासा हो गया। (मत्ती 4:13-17) मिसाल के लिए, जब यीशु ने शैतान को “हत्यारा” और “झूठ का पिता” कहा तो उसने साफ ज़ाहिर किया कि उत्पत्ति 3:14, 15 में बताया “साँप” शैतान है। (यूह. 8:44) और जब उसने यूहन्‍ना पर आगे होनेवाली बातें प्रकट कीं तो उसने बताया कि ‘वह पुराना साँप, इबलीस और शैतान है।’ * (प्रकाशितवाक्य 1:1; 12:9 पढ़िए।) यीशु ने यूहन्‍ना को यह भी दिखाया कि वादा किए गए वंश के नाते वह अदन में की गयी भविष्यवाणी को आखिर में कैसे पूरा करेगा और शैतान का नामो-निशान मिटा देगा।​—प्रका. 20:7-10.

14-16. क्या पहली सदी के चेले यीशु की बतायी सच्चाइयों का मतलब पूरी तरह जान गए? समझाइए।

14 जैसे हमने इस किताब के अध्याय 1 में देखा, यीशु ने राज के बारे में बहुत-सी बातें सिखायी थीं। लेकिन उसने अपने चेलों को हर बारीक जानकारी नहीं दी जो वे जानना चाहते थे। और जो जानकारी उसने दी उसे भी चेले बहुत बाद में जाकर समझ पाए। उसकी बतायी कुछ सच्चाइयों के बारे में तो मसीहियों ने सदियों बाद जाकर पूरी तरह समझा। ऐसी कुछ सच्चाइयों पर गौर कीजिए।

15 ईसवी सन्‌ 33 में यीशु ने साफ बताया था कि परमेश्‍वर के राज में उसके साथ हुकूमत करनेवाले धरती से लिए जाएँगे और उन्हें स्वर्ग में जीवन दिया जाएगा। मगर चेलों के लिए यह एक नयी बात थी जो वे उस वक्‍त नहीं समझ पाए। (दानि. 7:18; यूह. 14:2-5) उसी साल यीशु ने मिसालें देकर बताया कि उसके स्वर्ग लौटने के लंबे अरसे बाद ही राज की शुरूआत होगी। (मत्ती 25:14, 19; लूका 19:11, 12) चेले इस ज़रूरी बात को भी नहीं समझ पाए, इसलिए बाद में जब यीशु को ज़िंदा किया गया तो उन्होंने उससे पूछा, “क्या तू इसी वक्‍त इसराएल को उसका राज दोबारा दे देगा?” यीशु ने उस वक्‍त उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी। (प्रेषि. 1:6, 7) यीशु ने यह भी सिखाया था कि ‘दूसरी भेड़ों’ का एक समूह भी होगा जिसके लोग यीशु के साथी राजाओं से बने “छोटे झुंड” का हिस्सा नहीं होंगे। (यूह. 10:16; लूका 12:32) इन दोनों समूहों के लोग कौन हैं, यह बात मसीह के चेले साफ-साफ नहीं समझ पाए थे। सन्‌ 1914 में राज की शुरूआत के काफी समय बाद जाकर उन्हें यह बात समझ आयी।

16 यीशु चाहता तो धरती पर रहते वक्‍त अपने चेलों को बहुत कुछ बता सकता था, मगर वह जानता था कि वे उस वक्‍त उन बातों को समझ नहीं पाएँगे। (यूह. 16:12) इसमें कोई शक नहीं कि परमेश्‍वर के लोगों को पहली सदी में राज के बारे में बहुत सारा ज्ञान दिया गया था। मगर वह समय अभी तक नहीं आया था जब वह ज्ञान बढ़ जाता।

“अंत के समय” सच्चा ज्ञान बढ़ जाता है

17. (क) राज के बारे में सच्चाइयाँ समझने के लिए हमें क्या करना चाहिए? (ख) हमें और किस चीज़ की ज़रूरत है?

17 यहोवा ने दानियेल से वादा किया था कि ‘अंत के समय बहुत-से लोग ढूँढ़-ढाँढ़ करेंगे’ और परमेश्‍वर के मकसद के बारे में “सच्चा ज्ञान बहुत बढ़ जाएगा।” (दानि. 12:4) जो यह ज्ञान पाना चाहते हैं उन्हें बहुत मेहनत करनी होगी। एक किताब बताती है कि ‘ढूँढ़-ढाँढ़ करने’ के लिए इब्रानी क्रिया का जो रूप इस्तेमाल किया गया है उसका मतलब है, किसी किताब को शुरू से आखिर तक अच्छी तरह जाँचना। मगर हम बाइबल को चाहे कितनी भी अच्छी तरह जाँचें, हम यहोवा की मदद के बिना राज के बारे में सच्चाई ठीक-ठीक नहीं समझ पाएँगे।​—मत्ती 13:11 पढ़िए।

18. यहोवा का डर माननेवालों ने कैसे विश्‍वास और नम्रता का सबूत दिया?

18 अंत के इस समय में यहोवा राज के बारे में सच्चाई की समझ लगातार दे रहा है, ठीक जैसे उसने 1914 से पहले दी थी। जैसे इस किताब के अध्याय 4 और 5 में बताया जाएगा, पिछले सौ सालों के दौरान परमेश्‍वर के लोगों को कई बार अपनी समझ में फेरबदल करनी पड़ी। तो क्या इसका यह मतलब है कि यहोवा उनका साथ नहीं दे रहा है? ऐसी बात नहीं है। यहोवा उनका साथ दे रहा है। क्यों? क्योंकि यहोवा का डर माननेवालों में ऐसे दो गुण होते हैं जो उसे बहुत पसंद हैं। ये हैं विश्‍वास और नम्रता। (इब्रा. 11:6; याकू. 4:6) यहोवा के सेवकों को विश्‍वास है कि उसके वचन में लिखे सारे वादे पूरे होंगे। और उनकी नम्रता इस बात से देखी जा सकती है कि अगर उन्होंने परमेश्‍वर के वादों के पूरा होने के बारे में किसी बात को गलत समझा है तो वे अपनी गलती मान लेते हैं। उनकी इस नम्रता का सबूत 1 मार्च, 1925 की प्रहरीदुर्ग  से मिलता है जिसमें लिखा था: “हम जानते हैं कि प्रभु अपने वचन की समझ खुद देता है। वह अपने लोगों को अपने तरीके से और अपने समय पर यह समझ देगा।”

“प्रभु अपने वचन की समझ . . . अपने लोगों को अपने तरीके से और अपने समय पर . . . देगा”

19. यहोवा ने आज हमें कैसी समझ दी है और क्यों?

19 सन्‌ 1914 में जब राज की हुकूमत शुरू हुई तब परमेश्‍वर के लोगों को इस बारे में आधी-अधूरी जानकारी थी कि राज से जुड़ी भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होंगी। (1 कुरिं. 13:9, 10, 12) हममें परमेश्‍वर के वादों को पूरा होते देखने की इतनी गहरी इच्छा थी कि हम कभी-कभी गलत नतीजे पर पहुँच गए। पिछले पैराग्राफ में बतायी प्रहरीदुर्ग  में यह भी लिखा था: “यह मानकर चलना सही होगा कि जब एक भविष्यवाणी पूरी हो जाती है या पूरी हो रही होती है, तभी हम उसे समझ सकते हैं।” कई सालों से देखा गया है कि इस बात को मानने में ही बुद्धिमानी है। आज हम अंत के समय के बिलकुल आखिर में पहुँच गए हैं, इसलिए राज से जुड़ी बहुत-सी भविष्यवाणियाँ पूरी हो चुकी हैं और बहुत-सी पूरी हो रही हैं। परमेश्‍वर के लोग नम्र हैं और अपनी समझ में सुधार करने के लिए तैयार रहते हैं, इसलिए यहोवा ने उन्हें अपने मकसद की और भी ज़्यादा समझ दी है। सच्चा ज्ञान वाकई बहुत बढ़ गया है!

समझ में हुए सुधार से परमेश्‍वर के लोगों की परीक्षा होती है

20, 21. जब पहली सदी के मसीहियों की समझ में सुधार किया गया तो उन पर कैसा असर हुआ?

20 जब यहोवा सच्चाई के बारे में हमारी समझ में सुधार करता है तो हमारे दिल की परख होती है। क्या हममें इतना विश्‍वास और इतनी नम्रता है कि हम उन बदलावों को स्वीकार करें? पहली सदी के मसीहियों के सामने ऐसी ही परीक्षा आयी थी। मान लीजिए कि आप उस ज़माने के एक यहूदी मसीही हैं। आप मूसा के कानून का गहरा आदर करते हैं और आपको गर्व है कि आप इसराएल राष्ट्र से हैं। अब आपको प्रेषित पौलुस से कुछ चिट्ठियाँ मिलती हैं जो उसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी हैं। चिट्ठियों में पौलुस ने लिखा है कि अब से उस कानून को मानना ज़रूरी नहीं है और यहोवा ने इसराएल राष्ट्र को ठुकराकर एक अलग राष्ट्र को चुन लिया है जिसमें यहूदी और गैर-यहूदी दोनों हैं। (रोमि. 10:12; 11:17-24; गला. 6:15, 16; कुलु. 2:13, 14) अब आप क्या करेंगे?

21 जो मसीही नम्र थे उन्होंने पौलुस की बतायी बातें स्वीकार कीं और उन्हें यहोवा से आशीष मिली। (प्रेषि. 13:48) मगर दूसरों को ये बदलाव रास नहीं आए और वे अपने विचारों पर अड़े रहे। (गला. 5:7-12) अगर वे अपना नज़रिया नहीं बदलते तो वे मसीह के साथी राजा होने का मौका गँवा देते।​—2 पत. 2:1.

22. परमेश्‍वर के मकसद के बारे में हमारी समझ में जो सुधार किया गया है, उस बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

22 हाल के सालों में यहोवा ने राज के बारे में हमारी समझ में काफी सुधार किया है। मिसाल के लिए, उसने हमें यह बात अच्छी तरह समझने में मदद दी है कि जैसे भेड़ों को बकरियों से अलग किया जाता है, वैसे ही राज की प्रजा बननेवालों को उन लोगों से कब अलग किया जाएगा जो खुशखबरी नहीं सुनते। उसने हमें यह भी सिखाया है कि 1,44,000 जनों की गिनती कब पूरी होगी, राज के बारे में यीशु की बतायी मिसालों का क्या मतलब है और बचे हुए सभी अभिषिक्‍त जनों को कब स्वर्ग ले जाया जाएगा। * ऐसी बातों की साफ समझ पाकर आपको कैसा लगता है? क्या आपका विश्‍वास मज़बूत होता है? क्या इससे आप देख पाते हैं कि यहोवा अपने नम्र लोगों को लगातार सिखा रहा है? आगे के अध्यायों में दी जानकारी से आपका विश्‍वास और मज़बूत होगा कि यहोवा समय के गुज़रते उन लोगों को अपने मकसद के बारे में ज़्यादा समझ देता है जो उसका डर मानते हैं।

^ पैरा. 4 इब्रानी में परमेश्‍वर का नाम एक क्रिया से निकला है जिसका मतलब है “बनना।” यहोवा नाम दिखाता है कि वह अपने वादों को पूरा करनेवाला परमेश्‍वर है। अध्याय 4 में यह बक्स देखें: “परमेश्‍वर के नाम का मतलब।”

^ पैरा. 6 आज 2,000 साल काफी लंबा समय लग सकता है, मगर हमें याद रखना चाहिए कि उस ज़माने में लोगों की उम्र बहुत लंबी होती थी। आदम की मौत से पहले, नूह का पिता लेमेक पैदा हो गया था। लेमेक की मौत से पहले, नूह का बेटा शेम पैदा हो गया था। और शेम की मौत से पहले अब्राहम पैदा हो गया था। इन चार आदमियों के जीवनकाल में ही 2,000 साल बीत गए थे।​—उत्प. 5:5, 31; 9:29; 11:10, 11; 25:7.

^ पैरा. 13 शब्द “शैतान” इब्रानी शास्त्र में 18 बार आता है। लेकिन मसीही यूनानी शास्त्र में यह शब्द 30 से भी ज़्यादा बार आता है। यह बिलकुल सही था कि इब्रानी शास्त्र में शैतान के बजाय मसीहा की पहचान के बारे में ज़्यादा बताया गया था। जब मसीहा आया तो उसने शैतान का पूरी तरह परदाफाश किया, जैसा कि मसीही यूनानी शास्त्र में दर्ज़ है।

^ पैरा. 22 हमारी समझ में हुए कुछ फेरबदल के बारे में ज़्यादा जानने के लिए प्रहरीदुर्ग  के ये अंक देखें: 15 अक्टूबर, 1995, पेज 23-28; 15 जनवरी, 2008, पेज 20-24; 15 जुलाई, 2008, पेज 17-21; 15 जुलाई, 2013, पेज 9-14.