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अध्याय 6

प्रचार करनेवाले लोग​—अपनी इच्छा से खुद को पेश करते हैं

प्रचार करनेवाले लोग​—अपनी इच्छा से खुद को पेश करते हैं

अध्याय किस बारे में है

राजा, प्रचारकों की एक सेना को संगठित करता है

1, 2. (क) यीशु ने किस महान काम के बारे में भविष्यवाणी की? (ख) कौन-सा अहम सवाल उठता है?

देश-देश के नेता अकसर वादे करते हैं, मगर उन्हें कभी पूरा नहीं करते। यहाँ तक कि वे नेता भी अपने वादे पूरे नहीं कर पाते जिनके इरादे नेक होते हैं। मगर खुशी की बात है कि परमेश्‍वर के राज का राजा यीशु हमेशा अपना वादा पूरा करता है।

2 जब 1914 में यीशु राजा बना तो वह एक भविष्यवाणी पूरी करने को तैयार था जो उसने करीब 1,900 साल पहले की थी। अपनी मौत से कुछ ही समय पहले उसने कहा था, “राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा।” (मत्ती 24:14) इस भविष्यवाणी का पूरा होना उस निशानी का एक पहलू होता जो दिखाती कि यीशु राजा की हैसियत से मौजूद है। मगर इससे एक अहम सवाल उठता है। आखिरी दिनों में तो ज़्यादातर लोग स्वार्थी होंगे, उनमें प्यार नहीं होगा और परमेश्‍वर की उपासना करने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं होगी। तो फिर, राजा यीशु ऐसे प्रचारकों की सेना कैसे संगठित करता जो इस काम के लिए अपनी इच्छा से आगे आते? (मत्ती 24:12; 2 तीमु. 3:1-5) इसका जवाब जानना हमारे लिए ज़रूरी है क्योंकि प्रचार करने की ज़िम्मेदारी सभी मसीहियों को दी गयी है।

3. यीशु ने पूरे भरोसे के साथ क्या कहा और क्यों?

3 यीशु की भविष्यवाणी पर दोबारा गौर कीजिए। यीशु ने पूरे भरोसे के साथ कहा, “प्रचार किया जाएगा।” उसे यकीन था कि आखिरी दिनों में ऐसे लोग ज़रूर होंगे जो अपनी इच्छा से यह काम करने के लिए आगे आएँगे। उसने ऐसा भरोसा रखना अपने पिता से सीखा था। (यूह. 12:45; 14:9) धरती पर आने से पहले यीशु ने स्वर्ग से देखा था कि यहोवा को कैसे यकीन था कि उसकी उपासना करनेवाले अपनी इच्छा से उसके काम के लिए आगे बढ़ेंगे। आइए देखें कि यहोवा ने अपना यह यकीन कैसे ज़ाहिर किया।

“तेरे लोग अपनी इच्छा से खुद को पेश करेंगे”

4. (क) यहोवा ने इसराएलियों को किस काम में हाथ बँटाने का बुलावा दिया? (ख) इसराएलियों ने क्या किया?

4 याद कीजिए कि उस वक्‍त क्या हुआ था जब यहोवा ने मूसा को पवित्र डेरा बनाने की आज्ञा दी थी, जो इसराएल राष्ट्र के लिए उपासना की खास जगह होता। यहोवा ने मूसा के ज़रिए लोगों को बुलावा दिया कि वे इस काम में हाथ बँटाएँ। मूसा ने लोगों से कहा, ‘हर कोई जो दिल से देना चाहता है वह यहोवा के लिए दान दे।’ फिर क्या हुआ? “लोग हर सुबह अपनी खुशी से चीज़ें ला-लाकर दान करते रहे।” वे दान में इतनी सारी चीज़ें लाते रहे कि उन्हें “और चीज़ें लाने से मना” करना पड़ा। (निर्ग. 35:5; 36:3, 6) इस तरह इसराएलियों ने दिखाया कि यहोवा ने उन पर यकीन करके सही किया था।

5, 6. भजन 110:1-3 के मुताबिक, अंत के समय में यहोवा और यीशु ने सच्चे उपासकों से क्या उम्मीद की थी?

5 क्या यहोवा को भरोसा था कि आखिरी दिनों में भी उसके लोग ऐसा जज़्बा दिखाएँगे? जी हाँ! धरती पर यीशु के जन्म के 1,000 साल पहले यहोवा ने दाविद को उस समय के बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया जब मसीहा अपना राज शुरू करता। (भजन 110:1-3 पढ़िए।) राजा बनने के फौरन बाद यीशु को दुश्‍मनों के विरोध का सामना करना पड़ता। मगर उसके पास ऐसे लोगों की सेना भी होती जो उसका साथ देते। उन्हें राजा की सेवा करने के लिए मजबूर नहीं करना पड़ता। यहाँ तक कि जवान लोग भी खुद को खुशी-खुशी पेश करते और उनकी तादाद इतनी बढ़ जाती कि वे ओस की बेहिसाब बूँदों जैसे होते, जो सुबह सूरज की रौशनी में ज़मीन पर नज़र आती हैं। *

अपनी इच्छा से राज का साथ देनेवालों की गिनती ओस की बूँदों की तरह बेहिसाब है (पैराग्राफ 5 देखें)

6 यीशु जानता था कि भजन 110 में लिखी भविष्यवाणी उसके बारे में है। (मत्ती 22:42-45) इसलिए उसे यकीन था कि ऐसे लोग ज़रूर होंगे जो उसका साथ देंगे और पूरी धरती पर खुशखबरी सुनाने के लिए अपनी इच्छा से आगे आएँगे। इतिहास क्या दिखाता है? क्या राजा वाकई इन आखिरी दिनों में प्रचारकों की ऐसी सेना को संगठित कर पाया है?

“यह समाचार सुनाना मेरे लिए एक सुअवसर है और मेरा कर्तव्य भी है”

7. राजा बनने के बाद यीशु ने अपने चेलों को प्रचार काम के लिए कैसे तैयार किया?

7 राजा बनने के कुछ ही समय बाद से यीशु अपने चेलों को उस काम के लिए तैयार करने लगा जो उन्हें बड़े पैमाने पर करना था। जैसे हमने अध्याय 2 में देखा, उसने 1914 से लेकर 1919 के शुरूआती महीनों तक उन्हें जाँचा और शुद्ध किया। (मला. 3:1-4) फिर 1919 में उसने विश्‍वासयोग्य दास को ठहराया ताकि वह उसके चेलों की अगुवाई करे। (मत्ती 24:45) उस समय से वह दास खाना परोसने लगा, यानी अधिवेशनों के भाषणों और किताबों-पत्रिकाओं के ज़रिए सच्चाई सिखाने लगा। ऐसे भाषणों और प्रकाशनों में बार-बार ज़ोर दिया गया कि प्रचार करना हर  मसीही की ज़िम्मेदारी है।

8-10. अधिवेशनों में प्रचार काम के लिए कैसे जोश बढ़ाया गया? एक मिसाल दीजिए। (यह बक्स भी देखें: “ शुरू के अधिवेशनों से प्रचार काम में तेज़ी आ गयी।”)

8 अधिवेशनों के भाषण: पहले विश्‍व युद्ध के बाद 1919 में बाइबल विद्यार्थियों का एक बड़ा अधिवेशन हुआ जो 1 से 8 सितंबर तक चला। यह अधिवेशन अमरीकी राज्य ओहायो के सीडर पॉइंट में हुआ। वहाँ हाज़िर लोग यह जानने के लिए बेसब्र थे कि उन्हें क्या निर्देश दिया जाएगा। अधिवेशन के दूसरे दिन भाई रदरफर्ड ने एक भाषण में हाज़िर लोगों से साफ-साफ कहा, “पृथ्वी पर हर मसीही को यह काम सौंपा गया है कि वह प्रभु के राज का समाचार सुनाए।”

9 अधिवेशन की सबसे खास बात थी, भाई रदरफर्ड का वह भाषण जो उन्होंने पाँचवें दिन दिया। उनके भाषण का विषय था, “सहकर्मियों के लिए संदेश।” इस पूरे भाषण पर प्रहरीदुर्ग  में एक लेख प्रकाशित किया गया जिसका शीर्षक था, “राज की घोषणा करो।” भाई ने भाषण में कहा, “जब एक मसीही गंभीरता से विचार करता है कि पृथ्वी पर मेरे जीवन का उद्देश्‍य क्या है, तो उसका उत्तर यह होना चाहिए: प्रभु ने कृपा करके मुझे अपना राजदूत बनाया है ताकि मैं परमेश्‍वर का दिया मेल-मिलाप का समाचार पूरे जगत को सुनाऊँ। यह समाचार सुनाना मेरे लिए एक सुअवसर है और मेरा कर्तव्य भी है।”

10 उस यादगार भाषण में भाई रदरफर्ड ने घोषणा की कि एक नयी पत्रिका निकाली जा रही है, जिसका नाम है स्वर्ण युग  (आज सजग होइए! ) और इस पत्रिका का मकसद होगा, लोगों का ध्यान इस बात की तरफ खींचना कि परमेश्‍वर का राज ही इंसानों के लिए एकमात्र आशा है। फिर उन्होंने वहाँ हाज़िर लोगों से पूछा कि कौन-कौन उस पत्रिका को बाँटने में हिस्सा लेना चाहेंगे। अधिवेशन पर दी गयी एक रिपोर्ट में बताया गया: “छ: हज़ार लोग एक-साथ खड़े हो गए। वह दृश्‍य देखने योग्य था!” * इससे साफ था कि राजा का साथ देनेवाले ऐसे लोग थे जो उसके राज का प्रचार करने के लिए उत्सुक थे!

11, 12. सन्‌ 1920 में प्रहरीदुर्ग  ने प्रचार काम के बारे में क्या समझाया?

11 किताबें-पत्रिकाएँ: प्रहरीदुर्ग  के लेखों में खुशखबरी सुनाने की अहमियत और अच्छी तरह समझायी गयी, जिसके बारे में यीशु ने भविष्यवाणी की थी। ऐसे कुछ लेखों पर गौर कीजिए जो 1920 से छापे जाने लगे।

12 मत्ती 24:14 की भविष्यवाणी के मुताबिक, लोगों को क्या संदेश सुनाया जाता? यह काम कब किया जाता? 1 जुलाई, 1920 की प्रहरीदुर्ग  में एक लेख आया, “राज का सुसमाचार।” उसमें समझाया गया कि “यह सुसमाचार इस पुरानी व्यवस्था के अंत और मसीहा के राज के आरंभ के बारे में है।” उसमें यह भी साफ बताया गया कि “यह समाचार महा विश्‍व युद्ध [यानी पहला विश्‍व युद्ध] और ‘भारी क्लेश’ के बीच सुनाया जाना चाहिए।” इसलिए लेख ने कहा, ‘यही समय है कि यह सुसमाचार ईसाइयों के देशों में दूर-दूर तक सुनाया जाए।’

13. सन्‌ 1921 में प्रहरीदुर्ग  ने अभिषिक्‍त मसीहियों को कैसे बढ़ावा दिया कि वे प्रचार करने के लिए अपनी इच्छा से आगे आएँ?

13 क्या परमेश्‍वर के लोगों को वह काम करने के लिए मजबूर किया जाता, जिसकी भविष्यवाणी यीशु ने की थी? जी नहीं। पंद्रह मार्च, 1921 की प्रहरीदुर्ग  के लेख, “साहसी रहिए” में अभिषिक्‍त मसीहियों से कहा गया कि वे इस काम के लिए अपनी इच्छा से आगे आएँ। हरेक को खुद से यह पूछने का बढ़ावा दिया गया, “क्या इस काम में भाग लेना मेरे लिए एक सुअवसर नहीं है और क्या यह मेरा कर्तव्य भी नहीं है?” लेख में यह भी बताया गया: “हमें विश्‍वास है कि जब आप समझ जाएँगे [कि इस काम में भाग लेना एक सुअवसर है] तो आप यिर्मयाह की तरह महसूस करेंगे। उसके हृदय में प्रभु का वचन ऐसा था जैसे ‘हड्डियों में धधकती आग’ हो। इसलिए वह उसका वचन सुनाने से अपने आपको रोक नहीं पाया।” (यिर्म. 20:9) इस तरह प्यार से जो बढ़ावा दिया गया वह दिखाता है कि यहोवा और यीशु को राज का साथ देनेवाले वफादार लोगों पर भरोसा था।

14, 15. सन्‌ 1922 में प्रहरीदुर्ग  ने किस तरीके से प्रचार करने के लिए अभिषिक्‍त मसीहियों को बढ़ावा दिया?

14 सच्चे मसीहियों को राज का संदेश दूसरों को कैसे सुनाना चाहिए? पंद्रह अगस्त, 1922 की प्रहरीदुर्ग  में एक लेख छपा था जिसका शीर्षक था, “सेवा अनिवार्य।” यह एक छोटा-सा मगर ज़बरदस्त लेख था। इसमें अभिषिक्‍त मसीहियों को बढ़ावा दिया गया कि वे “छपा हुआ संदेश लेकर उत्साह से घर-घर जाएँ, लोगों से बात करें और उन्हें साक्षी दें कि स्वर्ग का राज निकट है।”

15 यह साफ है कि 1919 से मसीह ने अपने विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास के ज़रिए बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि राज का संदेश सुनाना हर मसीही के लिए सम्मान की बात है और उसका फर्ज़ भी है। मगर सवाल है कि जब बाइबल विद्यार्थियों को यह काम करने का बढ़ावा दिया गया तो उन्होंने क्या किया?

“विश्‍वासयोग्य जन अपनी इच्छा से आगे आएँगे”

16. कुछ प्राचीनों ने प्रचार करने के बारे में कैसा रवैया दिखाया?

16 सन्‌ 1920 से 1940 के बीच, कुछ मसीहियों ने इस बात का विरोध किया कि सभी  अभिषिक्‍त मसीहियों को प्रचार करना चाहिए। एक नवंबर, 1927 की प्रहरीदुर्ग  में बताया गया कि क्या हो रहा था: “आज चर्च [यानी मंडली] में ऐसे लोग हैं जिन पर प्राचीन होने का दायित्व है, मगर वे . . . न अपने भाइयों को प्रचार करने का प्रोत्साहन देते हैं और न ही स्वयं प्रचार करते हैं। . . . वे घर-घर जाकर परमेश्‍वर, उसके राज और राजा का समाचार सुनाने के सुझाव का उपहास करते हैं।” लेख में साफ बताया गया: “अब समय आ गया है कि विश्‍वासयोग्य लोग ऐसे पुरुषों पर दृष्टि रखें और उनसे दूर रहें और उन्हें बता दें कि अब से हम उन्हें प्राचीन का पद नहीं सौंपेंगे।” *

17, 18. (क) ज़्यादातर लोगों ने मुख्यालय से निर्देश मिलने पर क्या किया? (ख) पिछले सौ सालों से लाखों लोगों ने कैसा रवैया दिखाया है?

17 खुशी की बात है कि मंडलियों के ज़्यादातर लोगों ने मुख्यालय के निर्देश को पूरे जोश के साथ माना। उन्होंने राज का संदेश सुनाना एक सम्मान की बात समझा। पंद्रह मार्च, 1926 की प्रहरीदुर्ग  में बताया गया था, “लोगों को यह समाचार देने के लिए विश्‍वासयोग्य जन अपनी इच्छा से आगे आएँगे।” उन वफादार जनों ने भजन 110:3 की भविष्यवाणी पूरी की और साबित किया कि वे अपनी इच्छा से राजा मसीह का साथ दे रहे हैं।

18 पिछले सौ सालों से लाखों लोगों ने राज का संदेश सुनाने के लिए अपनी इच्छा से खुद को पेश किया है। अगले कुछ अध्यायों में हम चर्चा करेंगे कि उन्होंने कैसे  प्रचार किया, यानी उन्होंने कौन-से तरीके अपनाए और कौन-से साधन इस्तेमाल किए और इसके क्या  नतीजे निकले हैं। मगर पहले आइए देखें कि लाखों लोग क्यों  अपनी इच्छा से राज का प्रचार करने के लिए आगे आए हैं, इसके बावजूद कि वे एक मतलबी दुनिया में रहते हैं। इस सवाल के जवाब की चर्चा करते वक्‍त हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘मैं क्यों दूसरों को खुशखबरी सुनाता हूँ?’

‘पहले राज की खोज में लगे रहो’

19. हम क्यों यीशु की यह सलाह मानते हैं, ‘पहले उसके राज की खोज में लगे रहो’?

19 यीशु ने अपने चेलों को सलाह दी, ‘पहले उसके राज की खोज में लगे रहो।’ (मत्ती 6:33) हम यह सलाह क्यों मानते हैं? इसकी खास वजह यह है कि हम जानते हैं कि राज कितनी अहमियत रखता है, इसी के ज़रिए परमेश्‍वर अपना मकसद पूरा करेगा। जैसे हमने पिछले अध्याय में देखा, पवित्र शक्‍ति ने समय के गुज़रते राज के बारे में रोमांचक सच्चाइयों का खुलासा किया है। जब ये सच्चाइयाँ हमारे दिल को छू जाती हैं तो हम उस राज की खोज करने के लिए उभारे जाते हैं।

जिस तरह छिपा खज़ाना पाकर एक आदमी खुशी से फूला नहीं समाता, उसी तरह राज की सच्चाई पाकर मसीही खुशी मनाते हैं (पैराग्राफ 20 देखें)

20. छिपे खज़ाने की मिसाल के मुताबिक, यीशु के चेले पहले राज की खोज करने के लिए क्या करते हैं?

20 यीशु जानता था कि उसके चेले उसकी सलाह मानकर पहले राज की खोज करते रहेंगे। उसने छिपे खज़ाने की जो मिसाल दी उस पर गौर कीजिए। (मत्ती 13:44 पढ़िए।) खेत में काम करनेवाले एक मज़दूर को एक दिन अचानक छिपा हुआ खज़ाना मिलता है और वह फौरन समझ जाता है कि यह कितना अनमोल है। फिर वह क्या करता है? वह “खुशी के मारे जाकर अपना सबकुछ बेच देता है और उस ज़मीन को खरीद लेता है।” इससे हम क्या सीखते हैं? जब हमें राज की सच्चाई मिलती है और हम इसका मोल जान लेते हैं, तो हम राज के कामों को ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं और इसके लिए खुशी-खुशी त्याग करते हैं। *

21, 22. राज का वफादारी से साथ देनेवालों ने कैसे दिखाया है कि वे पहले राज की खोज कर रहे हैं? एक अनुभव बताइए।

21 जो लोग वफादारी से राज का साथ देते हैं, वे न सिर्फ कहते हैं कि वे पहले राज की खोज करते हैं बल्कि वाकई में ऐसा करते भी हैं। वे राज का प्रचार करने में अपनी काबिलीयतें, अपना साधन और अपनी पूरी ज़िंदगी लगा देते हैं। कइयों ने तो बड़े-बड़े त्याग किए हैं ताकि वे पूरे समय की सेवा कर सकें। इस तरह अपनी इच्छा से खुद को पेश करनेवाले प्रचारकों ने अनुभव किया है कि यहोवा उन सबको आशीष देता है जो राज को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं। पुराने ज़माने के एक अनुभव पर गौर कीजिए।

22 एवरी और लोवीन्या ब्रिस्टो ने साथ मिलकर 1925 के बाद अमरीका के दक्षिण में पायनियर सेवा शुरू की थी। कई साल बाद बहन लोवीन्या ने कहा, “कई वर्षों तक पायनियर सेवा करके मुझे और एवरी को बहुत खुशियाँ मिलीं। कई बार ऐसा हुआ कि हमारे पास पेट्रोल और राशन-पानी के लिए बिलकुल पैसा नहीं था और हमें पता नहीं था कि आगे गुज़ारा कैसे होगा। मगर हर बार यहोवा ने किसी-न-किसी तरह हमारी आवश्‍यकताएँ पूरी कीं। हम बस पायनियर सेवा करते रहे। हमें आवश्‍यक वस्तुएँ हमेशा मिल जाती थीं।” बहन ने बताया कि जब वे फ्लोरिडा राज्य के पेनसाकोला शहर में सेवा करते थे तो एक बार उनके पास न पैसा था न खाने-पीने की चीज़ें। जब वे अपने ट्रेलर (घर-नुमा गाड़ी) में वापस आए जिसमें वे रहते थे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ दो बड़े-बड़े थैलों में खाने की चीज़ें भरी हुई थीं। साथ में एक परचा था जिस पर लिखा था, “पेनसाकोला कलीसिया की ओर से प्यार-भरी भेंट।” * बहन ने पायनियर सेवा के उन सालों को याद करते हुए कहा, “यहोवा कभी हमारा साथ नहीं छोड़ता। वह हमारा विश्‍वास कभी नहीं तोड़ता।”

23. (क) राज की सच्चाई पाकर आप कैसा महसूस करते हैं? (ख) आपने क्या करने की ठान ली है?

23 हम सबके हालात अलग-अलग हैं, इसलिए कोई ज़्यादा प्रचार कर पाता है तो कोई कम। फिर भी तन-मन से खुशखबरी सुनाने का सम्मान हम सबको मिला है। (कुलु. 3:23) हम राज की सच्चाई को अनमोल समझते हैं, इसलिए हमने ठान लिया है कि ज़्यादा सेवा करने के लिए जो भी त्याग करना पड़े हम करेंगे। क्या आपने भी ऐसा करने की नहीं सोची है?

24. आखिरी दिनों में राज के बड़े-बड़े कामों में से एक क्या है?

24 जैसा कि हमने देखा, पिछले सौ सालों से राजा मत्ती 24:14 की भविष्यवाणी पूरी कर रहा है। और यह काम करने के लिए वह अपने चेलों के साथ कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता। इस मतलबी दुनिया से बाहर निकल आने के बाद चेलों ने प्रचार काम के लिए अपनी इच्छा से खुद को दे दिया है। वे पूरी धरती पर खुशखबरी का जो प्रचार कर रहे हैं, वह उस निशानी का एक पहलू है जो दिखाती है कि यीशु राजा की हैसियत से मौजूद है। उनका प्रचार काम राज के उन बड़े-बड़े कामों में से एक है जो आखिरी दिनों में किए जा रहे हैं।

^ पैरा. 5 बाइबल में ओस की मिसाल बहुतायत को दिखाने के लिए दी जाती है।​—उत्प. 27:28; मीका 5:7.

^ पैरा. 10 जिन्हें काम सौंपा गया  (अँग्रेज़ी) पुस्तिका में यह समझाया गया: “स्वर्ण युग  अभियान, घर-घर जाकर राज का समाचार सुनाने का अभियान है। . . . हर घर में समाचार सुनाने के अतिरिक्‍त स्वर्ग युग  की एक प्रति दी जानी चाहिए, फिर चाहे घर के लोग अभिदान करें या न करें।” इसके बाद कई सालों तक भाइयों को बढ़ावा दिया गया कि वे प्रचार में स्वर्ण युग  और प्रहरीदुर्ग  का अभिदान करने की पेशकश करें। मगर 1 फरवरी, 1940 से यहोवा के लोगों को बढ़ावा दिया गया कि वे प्रचार में इन पत्रिकाओं की अलग-अलग कॉपियाँ भी बाँटें और जितनी कॉपियाँ उन्होंने बाँटी हैं उसकी गिनती प्रचार की रिपोर्ट में लिखें।

^ पैरा. 16 उन दिनों मंडली के सदस्य वोट डालकर प्राचीनों को चुनते थे। इसलिए एक मंडली चाहे तो उन आदमियों को वोट न देने का फैसला कर सकती थी जो प्रचार काम के खिलाफ थे। मगर बाद में बाइबल में बताए तरीके से प्राचीनों को ठहराया जाने लगा। इस बारे में अध्याय 12 में चर्चा की जाएगी।

^ पैरा. 20 यीशु ने इससे मिलती-जुलती बात एक व्यापारी की मिसाल में बतायी जो एक बेशकीमती मोती की तलाश में घूमता है। जब उसे वह मोती मिल जाता है तो वह अपना सबकुछ बेचकर उसे खरीद लेता है। (मत्ती 13:45, 46) ये दोनों मिसालें दिखाती हैं कि हम राज की सच्चाई शायद अलग-अलग तरीकों से सीखें। कुछ लोग सच्चाई की तलाश करने के बाद इसे पाते हैं, जबकि दूसरों को तलाश किए बिना ही मिल जाती है। हमें सच्चाई चाहे किसी भी तरह मिली हो, हम राज को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देने के लिए खुशी-खुशी त्याग करते हैं।

^ पैरा. 22 उन दिनों मंडली को अँग्रेज़ी में ‘कंपनी’ कहा जाता था।