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अध्याय 7

प्रचार करने के तरीके​—लोगों तक संदेश पहुँचाने के अलग-अलग तरीके

प्रचार करने के तरीके​—लोगों तक संदेश पहुँचाने के अलग-अलग तरीके

अध्याय किस बारे में है

परमेश्‍वर के सेवक ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक संदेश पहुँचाने के लिए कई तरीके अपनाते हैं

1, 2. (क) यीशु ने लोगों की भीड़ को सिखाने के लिए क्या किया? (ख) मसीह के वफादार चेले कैसे उसकी मिसाल पर चले और क्यों?

एक बार जब यीशु झील के किनारे सिखा रहा था तो लोगों की भीड़ वहाँ इकट्ठी हो गयी। वह एक नाव पर चढ़ गया और किनारे से थोड़ी दूर जाकर उन्हें सिखाने लगा। उसने ऐसा क्यों किया? क्योंकि वह जानता था कि पानी की सतह के ऊपर से उसकी आवाज़ दूर-दूर तक साफ सुनायी देगी और लोगों की भीड़ उसका संदेश अच्छी तरह सुन पाएगी।​—मरकुस 4:1, 2 पढ़िए।

2 परमेश्‍वर के राज की शुरूआत से पहले और बाद के सालों में मसीह के वफादार चेले उसकी इस मिसाल पर चले। उन्होंने राज की खुशखबरी बड़ी तादाद में लोगों तक पहुँचाने के लिए नए-नए तरीके अपनाए। राजा के मार्गदर्शन में परमेश्‍वर के लोग आज भी बदलते हालात के मुताबिक नए-नए तरीके ढूँढ़ निकालते हैं या अपने तरीकों में फेरबदल करते हैं और नयी टेक्नॉलजी अपनाते हैं। हम चाहते हैं कि अंत आने से पहले ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक अपना संदेश पहुँचाएँ। (मत्ती 24:14) ऐसे कुछ तरीकों पर गौर कीजिए जिनकी मदद से हम लोगों तक पहुँच पाए हैं, फिर चाहे वे जहाँ भी रहते हों। यह भी सोचिए कि आप किन तरीकों से उन बाइबल विद्यार्थियों के विश्‍वास की मिसाल पर चल सकते हैं जिन्होंने खुशखबरी सुनायी थी।

उन्होंने बड़ी तादाद में लोगों तक संदेश पहुँचाया

3. जब हम अखबारों का इस्तेमाल करते थे तो सच्चाई के दुश्‍मन क्यों चिढ़ गए?

3 अखबार: भाई चार्ल्स टेज़ रसल और उनके साथी 1879 से प्रहरीदुर्ग  प्रकाशित कर रहे थे और उसके ज़रिए बहुत-से लोगों को राज का संदेश सुना रहे थे। मगर ऐसा मालूम पड़ता है कि मसीह ने 1914 से करीब दस साल पहले ही घटनाओं का रुख इस तरह मोड़ा कि खुशखबरी और भी ज़्यादा लोगों तक पहुँचने लगी। इन घटनाओं की शुरूआत 1903 में हुई। उस साल डॉ. ई. एल. ईटन ने, जो पेन्सिलवेनिया में प्रोटेस्टेंट प्रचारकों के एक समूह का वक्‍ता था, भाई रसल को चुनौती दी कि वे उसके साथ बाइबल की शिक्षाओं पर वाद-विवाद करें। ईटन ने भाई रसल को एक खत में लिखा, “मुझे लगता है कि जिन विषयों पर आपके और मेरे विचार नहीं मिलते, उनके बारे में अगर हम पूरी जनता के सामने वाद-विवाद करें . . . तो लोगों को उसे सुनने में काफी रुचि होगी।” भाई रसल और उनके साथियों को भी लगा कि आम जनता को इन वाद-विवादों में दिलचस्पी होगी, इसलिए उन्होंने इनके बारे में जाने-माने अखबार, द पिट्‌सबर्ग गज़ैट  में प्रकाशित करवाया। अखबार में छपे वे लेख इतने मशहूर हो गए और भाई रसल ने जिस तरह साफ शब्दों में बाइबल की सच्चाइयाँ समझायीं उससे लोग इतने कायल हो गए कि अखबार ने हर हफ्ते भाई रसल के भाषण प्रकाशित करने का प्रस्ताव रखा। इससे सच्चाई के दुश्‍मन कितने चिढ़ गए होंगे!

1914 तक 2,000 से ज़्यादा अखबारों में भाई रसल के भाषण प्रकाशित किए जा रहे थे

4, 5. (क) भाई रसल में कौन-सा अच्छा गुण था? (ख) ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाई कैसे उनकी मिसाल पर चल सकते हैं?

4 कुछ समय बाद और भी कई अखबारों ने भाई रसल के भाषण प्रकाशित करने की इच्छा ज़ाहिर की। सन्‌ 1908 तक प्रहरीदुर्ग  में यह रिपोर्ट छपी कि भाई के भाषण “ग्यारह समाचार-पत्रों में लगातार” प्रकाशित किए जा रहे हैं। फिर कुछ भाइयों ने, जो अखबारों के काम से अच्छी तरह वाकिफ थे, भाई रसल को सुझाव दिया कि वे संस्था के दफ्तरों को पिट्‌सबर्ग से किसी ऐसे शहर में ले जाएँ जो और भी जाना-माना है, तब और भी ज़्यादा अखबार बाइबल पर आधारित लेख प्रकाशित करेंगे। भाई रसल उनकी सलाह पर गौर करने और दूसरी बातों पर भी विचार करने के बाद संस्था के दफ्तरों को 1909 में न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन ले गए। नतीजा क्या हुआ? कुछ ही महीनों बाद करीब 400 अखबारों में भाषण प्रकाशित किए जाने लगे। इसके बाद ऐसे अखबारों की गिनती बढ़ती गयी। सन्‌ 1914 में जब राज शुरू हुआ तब तक चार भाषाओं में 2,000 से ज़्यादा अखबारों में भाई रसल के भाषण और लेख प्रकाशित किए जा रहे थे!

5 इस घटना से हमें कौन-सी अहम सीख मिलती है? आज परमेश्‍वर के संगठन में जिन भाइयों को ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, उन्हें भी भाई रसल की तरह नम्र होना चाहिए। कैसे? ज़रूरी फैसले लेते वक्‍त उन्हें दूसरों की सलाह पर भी ध्यान देना चाहिए।​—नीतिवचन 15:22 पढ़िए।

6. अखबार के लेखों में प्रकाशित सच्चाइयों का एक औरत पर क्या असर हुआ?

6 उन अखबारों में प्रकाशित राज की सच्चाइयों से लोगों की ज़िंदगी बदल गयी। (इब्रा. 4:12) बहन ओरा हेटसल की ही मिसाल लीजिए जिनका बपतिस्मा 1917 में हुआ था। वे उन लोगों में से एक थीं जिन्होंने अखबारों में छपे लेख पढ़कर सच्चाई सीखी। बहन ने कहा, “शादी के बाद, एक बार जब मैं अपनी माँ से मिलने मिन्‍नेसोटा राज्य के रॉचिस्टर शहर गयी थी तो मैंने देखा कि वह एक समाचार-पत्र से कुछ लेख काट रही थी। उन लेखों में भाई रसल के भाषण छपे थे। माँ ने मुझे वे सारी बातें समझायीं जो उन्होंने उन लेखों से सीखी थीं।” बहन हेटसल ने उन सच्चाइयों पर विश्‍वास किया और वे करीब 60 साल तक परमेश्‍वर के राज का ऐलान करती रहीं।

7. अगुवाई करनेवाले भाइयों ने अखबारों के इस्तेमाल पर क्यों दोबारा विचार किया?

7 सन्‌ 1916 में ऐसी दो बड़ी घटनाएँ हुईं जिनकी वजह से अगुवाई करनेवाले भाइयों को दोबारा विचार करना पड़ा कि अखबारों के ज़रिए खुशखबरी सुनाना जारी रखें या नहीं। पहली घटना यह थी कि उस वक्‍त विश्‍व युद्ध ज़ोरों पर था जिस वजह से छपाई का सामान मिलना मुश्‍किल हो रहा था। सन्‌ 1916 में ब्रिटेन से हमारे अखबार विभाग ने अपनी रिपोर्ट में यह समस्या बतायी, “फिलहाल मुश्‍किल से 30 समाचार-पत्रों में भाषण प्रकाशित किए जा रहे हैं। कागज़ के बढ़ते दाम को देखते हुए लगता है कि आनेवाले दिनों में और भी कम समाचार-पत्रों में भाषण प्रकाशित होंगे।” दूसरी घटना थी 31 अक्टूबर, 1916 को भाई रसल की मौत। पंद्रह दिसंबर, 1916 की प्रहरीदुर्ग  में यह घोषणा की गयी: “भाई रसल अब धरती पर नहीं रहे, इसलिए [समाचार-पत्रों में] भाषण प्रकाशित करना पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा।” हालाँकि प्रचार का यह तरीका बंद हो गया, मगर दूसरे तरीकों से प्रचार करने में बहुत कामयाबी मिल रही थी। जैसे, “सृष्टि का चलचित्र” (फोटो-ड्रामा ऑफ क्रिएशन) दिखाकर।

8. “सृष्टि का चलचित्र” तैयार करने में कितनी मेहनत लगी?

8 चलचित्र: भाई रसल और उनके साथियों ने करीब तीन साल मेहनत करके “सृष्टि का चलचित्र” तैयार किया था। (नीति. 21:5) इसे पहली बार 1914 में दिखाया गया था। हालाँकि इसे अँग्रेज़ी में “ड्रामा” कहा जाता था, मगर यह चलचित्र छोटी-छोटी फिल्मों, पहले से रिकॉर्ड की हुई आवाज़ों और काँच की सैकड़ों रंगीन स्लाइड से मिलकर बना था। इसे भाइयों ने ईजाद किया था। सैकड़ों लोगों ने बाइबल की घटनाओं का अभिनय किया और उनकी फिल्म ली गयी। यहाँ तक कि जानवरों को भी इस्तेमाल किया गया। सन्‌ 1913 की एक रिपोर्ट ने कहा, “दुनिया के इतिहास में नूह के दिनों में क्या हुआ था, यह दिखाने के लिए एक बड़े चिड़िया-घर में ऐसे स्थान पर शूटिंग की गयी जहाँ अधिकतर पशु-पक्षी थे।” न्यू यॉर्क, पैरिस, फिलाडेल्फिया और लंदन में चित्रकारों ने हर स्लाइड पर अपने हाथों से तसवीरों में रंग भरे।

9. “चलचित्र” तैयार करने में क्यों बहुत समय और पैसा लगाया गया?

9 “चलचित्र” तैयार करने में इतना समय और पैसा क्यों लगाया गया? सन्‌ 1913 के अधिवेशनों में अपनाए गए एक प्रस्ताव से इसका जवाब मिलता है: “अमरीकी समाचार-पत्र कार्टूनों और चित्रों के माध्यम से आम जनता की सोच ढालने में बहुत सफल रहे हैं। साथ ही, चलचित्रों में किसी जानकारी को नए-नए तरीके से पेश करना संभव होता है और यह बहुत लोकप्रिय होता जा रहा है। इससे पता चलता है कि जनता तक अपनी बात पहुँचाने का यह तरीका बहुत प्रभावशाली है। हम प्रचार करने और सभाओं में सिखाने का काम और भी अच्छी तरह करना चाहते हैं और इसका एक बढ़िया तरीका है चलचित्रों और स्लाइड शो का प्रयोग करना। इसलिए हम मानते हैं कि इन्हें पूरी तरह बढ़ावा देना चाहिए।”

ऊपर: “चलचित्र” का प्रोजेक्टर रूम; नीचे: “चलचित्र” की काँच की स्लाइड

10. “चलचित्र” कितने बड़े पैमाने पर दिखाया गया?

10 सन्‌ 1914 में हर दिन 80 शहरों में “चलचित्र” दिखाया गया। अमरीका और कनाडा में करीब 80 लाख लोगों ने इसे देखा। उसी साल “चलचित्र” ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, डेनमार्क, नॉर्वे, न्यूज़ीलैंड, फिनलैंड, ब्रिटेन, स्विट्‌ज़रलैंड और स्वीडन में भी दिखाया गया। इसका एक सरल रूप भी तैयार किया गया जिसे “यूरेका ड्रामा” कहा जाता था। उसमें फिल्में नहीं होती थीं। “यूरेका ड्रामा” छोटे-छोटे नगरों में दिखाया जाता था। इसे तैयार करने में ज़्यादा पैसा नहीं लगता था और एक जगह से दूसरी जगह ले जाना आसान था। सन्‌ 1916 तक “चलचित्र” और “यूरेका ड्रामा” में से एक का अनुवाद आर्मीनियाई, इतालवी, ग्रीक, जर्मन, पोलिश, फ्रांसीसी, स्पेनी, स्वीडिश और दूसरी भाषाओं में हो चुका था।

1914 में जब “चलचित्र” दिखाया जाता था तो हॉल खचाखच भरे होते थे

11, 12. (क) “चलचित्र” का एक नौजवान पर क्या असर हुआ? (ख) उससे हम क्या सीखते हैं?

11 फ्रांसीसी भाषा के “चलचित्र” का 18 साल के लड़के शार्ल रोनैर पर गहरा असर हुआ। शार्ल ने कहा, “वह चलचित्र मेरे नगर कोलमार में दिखाया गया था जो फ्रांस के अलसास प्रांत में था। आरंभ से ही मैं यह देखकर प्रभावित हो गया कि बाइबल की सच्चाई कैसे स्पष्ट रूप से प्रस्तुत की जा रही थी।”

12 इसलिए शार्ल ने बपतिस्मा लिया और 1922 में पूरे समय की सेवा शुरू की। उसे शुरूआत में जो ज़िम्मेदारियाँ दी गयी थीं उनमें से एक थी, फ्रांस के लोगों को “चलचित्र” दिखाने में मदद करना। शार्ल ने बताया, “मुझे कई प्रकार के काम सौंपे गए थे, जैसे वायलिन बजाना, हिसाब-किताब रखना और प्रकाशनों की देखरेख करना। मुझसे यह भी कहा गया था कि कार्यक्रम आरंभ होने से पहले मैं उपस्थित लोगों से कहूँ कि वे चुप हो जाएँ। अंतराल के समय हम लोगों को प्रकाशन देते थे। हम सभी भाई-बहनों को हॉल के अलग-अलग भागों में प्रकाशन बाँटने के लिए कहते थे। हर भाई और बहन के पास काफी प्रकाशन होते थे और उसे जो भाग दिया गया था, वहाँ वह हर किसी के पास जाकर प्रकाशन देता था। इसके अतिरिक्‍त, हॉल के द्वार के पास हम मेज़ों पर ढेर सारे प्रकाशन रखते थे।” सन्‌ 1925 में शार्ल को न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन बेथेल में सेवा करने के लिए बुलाया गया। वहाँ उसे यह काम सौंपा गया कि वह कुछ समय पहले बनाए गए डब्ल्यू.बी.बी.आर. रेडियो स्टेशन में संगीत दल का संचालन करे। भाई शार्ल रोनैर की मिसाल पर गौर करके हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘राज का संदेश फैलाने के लिए मुझे जो भी काम दिया जाता है उसे करने के लिए क्या मैं तैयार रहता हूँ?’​—यशायाह 6:8 पढ़िए।

13, 14. खुशखबरी फैलाने में रेडियो का कैसे इस्तेमाल किया गया? (ये बक्स भी देखें: “ डब्ल्यू.बी.बी.आर. के कार्यक्रम” और “ एक यादगार अधिवेशन।”)

13 रेडियो: 1920 से 1930 के बीच “चलचित्र” बहुत कम दिखाया गया और राज की खुशखबरी फैलाने में रेडियो का इस्तेमाल ज़ोर पकड़ने लगा। पेन्सिलवेनिया राज्य के फिलाडेल्फिया शहर के ‘मैट्रोपोलिटन ओपेरा हाउस’ में पहली बार 16 अप्रैल, 1922 को भाई रदरफर्ड ने रेडियो पर भाषण दिया। उनके भाषण का विषय था, “आज जीवित लाखों लोगों की मृत्यु कभी नहीं होगी।” अनुमान लगाया गया है कि 50,000 लोगों ने वह भाषण सुना था। फिर 1923 में पहली बार एक अधिवेशन के एक सेशन का कार्यक्रम प्रसारित किया गया। इसके बाद अगुवाई करनेवाले भाइयों ने फैसला किया कि अगर हम अपना एक रेडियो स्टेशन भी खोलें तो अच्छा होगा। उन्होंने संस्था का स्टेशन न्यू यॉर्क के स्टेटन द्वीप में बनाया और डब्ल्यू.बी.बी.आर. नाम से उसकी रजिस्ट्री करायी। उस स्टेशन से हमारा पहला कार्यक्रम 24 फरवरी, 1924 को प्रसारित किया गया।

1922 में करीब 50,000 लोगों ने रेडियो पर यह भाषण सुना, “आज जीवित लाखों लोगों की मृत्यु कभी नहीं होगी”

14 डब्ल्यू.बी.बी.आर. स्टेशन का मकसद 1 दिसंबर, 1924 की प्रहरीदुर्ग  में बताया गया: “हमें विश्‍वास है कि सच्चाई का समाचार फैलाने में रेडियो का प्रयोग अब तक का सबसे किफायती और प्रभावशाली तरीका रहा है।” लेख में यह भी कहा गया, “अगर प्रभु को उचित लगे कि सच्चाई फैलाने के लिए और भी रेडियो स्टेशन बनाए जाएँ तो वह इसके लिए अपने तरीके से पैसों का प्रबंध करेगा।” (भज. 127:1) सन्‌ 1926 तक यहोवा के लोगों के पास 6 रेडियो स्टेशन हो गए। दो स्टेशन अमरीका में थे: न्यू यॉर्क में डब्ल्यू.बी.बी.आर. और शिकागो के पास डब्ल्यू.ओ.आर.डी.। बाकी चार स्टेशन कनाडा के प्रांत एल्बर्टा, ऑन्टेरीयो, ब्रिटिश कोलंबिया और सस्केचेवान में थे।

15, 16. (क) रेडियो पर हमारे कार्यक्रमों के बारे में जानकर कनाडा के पादरियों ने क्या किया? (ख) रेडियो पर सुनाए गए भाषणों से कैसे घर-घर के प्रचार काम में तेज़ी आयी और घर-घर के प्रचार काम से रेडियो प्रसारणों को कैसे बढ़ावा मिला?

15 इस तरह जब बाइबल की सच्चाई दूर-दूर तक प्रसारित की जाने लगी तो ईसाईजगत के पादरियों ने इसे रोकने की कोशिश की। अल्बर्ट हॉफमेन ने, जो कनाडा के सस्केचेवान के रेडियो स्टेशन में हो रहे काम से वाकिफ थे, कहा: “अधिक-से-अधिक लोग बाइबल विद्यार्थियों को जानने लगे। [उन दिनों यहोवा के साक्षी इसी नाम से जाने जाते थे।] सन्‌ 1928 तक रेडियो के द्वारा बहुत बढ़िया तरीके से साक्षी दी गयी। फिर पादरियों ने सरकारी अधिकारियों पर दबाव डाला, इसलिए कनाडा में बाइबल विद्यार्थियों के सभी स्टेशनों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए।”

16 कनाडा में हमारे रेडियो स्टेशन भले ही बंद हो गए, मगर दूसरों के रेडियो स्टेशनों से बाइबल पर आधारित भाषण प्रसारित करना जारी रहा। (मत्ती 10:23) उन कार्यक्रमों से ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को फायदा पहुँचाने के लिए प्रहरीदुर्ग  और स्वर्ण युग  (आज सजग होइए! ) में उन स्टेशनों की सूची दी जाती थी। इसलिए प्रचारक घर-घर जाकर लोगों को पत्रिकाओं से उनके इलाकों के स्टेशनों के बारे में बताते और उन्हें बढ़ावा देते थे कि वे उन भाषणों को सुनें। इसका क्या असर हुआ? जनवरी 1931 के बुलेटिन  में बताया गया, “रेडियो के प्रयोग से घर-घर के प्रचार काम को बहुत प्रोत्साहन मिला है। हमें कई रिपोर्टें मिली हैं कि लोगों ने रेडियो पर हमारे कार्यक्रम सुने हैं और भाई रदरफर्ड के भाषण सुनने के कारण उन्होंने खुशी-खुशी भाइयों से पुस्तकें ली हैं।” बुलेटिन  में बताया गया कि रेडियो का इस्तेमाल और घर-घर का प्रचार काम “प्रभु के संगठन के प्रचार के दो प्रभावशाली तरीके हैं।”

17, 18. बदलते हालात के बावजूद रेडियो का इस्तेमाल करना कैसे जारी रहा?

17 सन्‌ 1930 से 1940 के दौरान, दूसरों के रेडियो स्टेशनों का इस्तेमाल करने का भी विरोध किया जाने लगा। इसलिए 1937 के खत्म होते-होते यहोवा के लोगों ने बदलते हालात के मुताबिक प्रचार के तरीकों में फेरबदल किया। उन्होंने दूसरों के स्टेशनों का इस्तेमाल करना भी बंद कर दिया और वे घर-घर के प्रचार काम पर ज़्यादा ध्यान देने लगे। * फिर भी दूर-दराज़ के इलाकों और उन इलाकों तक, जहाँ प्रचार करना मुश्‍किल था, खुशखबरी पहुँचाने में रेडियो एक खास भूमिका निभाता रहा। मिसाल के लिए, 1951 से 1991 तक जर्मनी के पश्‍चिमी बर्लिन के एक स्टेशन से बाइबल के भाषण लगातार प्रसारित किए गए ताकि उस ज़माने में जो प्रांत पूर्वी जर्मनी कहलाता था वहाँ के लोग राज का संदेश सुन सकें। सन्‌ 1961 से लेकर 30 से भी ज़्यादा साल तक, दक्षिण अमरीका के सूरीनाम में एक सरकारी रेडियो स्टेशन से बाइबल पर आधारित कार्यक्रम प्रसारित किया जाता था। यह कार्यक्रम 15 मिनट का होता था और हफ्ते में एक बार सुनाया जाता था। सन्‌ 1969 से 1977 तक हमारे संगठन ने “पूरा शास्त्र लाभदायक है” शीर्षक पर 350 से ज़्यादा कार्यक्रम रिकॉर्ड करके पेश किए। अमरीका के 48 राज्यों में 291 रेडियो स्टेशनों से हमारे कार्यक्रम सुनाए गए। सन्‌ 1996 में दक्षिण प्रशांत महासागर के समोआ देश की राजधानी, एपिया के एक रेडियो स्टेशन से हफ्ते में एक बार इस शीर्षक पर कार्यक्रम पेश किया जाता था, “बाइबल से जुड़े आपके प्रश्‍नों के उत्तर।”

18 बीसवीं सदी के खत्म होते-होते, खुशखबरी सुनाने में रेडियो का इस्तेमाल कम हो गया। मगर एक और तरह की टेक्नॉलजी मशहूर होने लगी जिसके ज़रिए इतने बड़े पैमाने पर लोगों तक संदेश पहुँचाया गया जितना पहले कभी नहीं हुआ था।

19, 20. (क) यहोवा के लोगों ने jw.org क्यों तैयार किया? (ख) यह वेबसाइट कितनी असरदार रही है? (यह बक्स भी देखें: “ JW.ORG.”)

19 इंटरनेट: 2013 के आते-आते 2.7 अरब से ज़्यादा लोग यानी दुनिया की करीब 40 प्रतिशत आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही थी। कुछ अनुमानों के मुताबिक करीब दो अरब लोग स्मार्टफोन और टैबलेट जैसे उपकरणों के ज़रिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। यह गिनती दुनिया-भर में बढ़ती जा रही है और इंटरनेट के इस्तेमाल में फिलहाल अफ्रीका सबसे आगे है। वहाँ 9 करोड़ से ज़्यादा लोगों के पास इंटरनेट है। इस टेक्नॉलजी की वजह से बहुत-से लोगों के लिए जानकारी हासिल करने का तरीका ही बदल गया है।

20 सन्‌ 1997 में यहोवा के लोगों ने अपना संदेश ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करना शुरू किया। सन्‌ 2013 में jw.org वेबसाइट करीब 300 भाषाओं में उपलब्ध हो गयी और बाइबल पर आधारित जानकारी 520 से ज़्यादा भाषाओं में डाउनलोड के लिए उपलब्ध करायी गयी। हर दिन 7,50,000 से ज़्यादा बार यह साइट खोली गयी। हर महीने लोगों ने वीडियो देखने के अलावा 30 लाख से ज़्यादा किताबें, 40 लाख पत्रिकाएँ और 2 करोड़ 20 लाख ऑडियो फाइलें डाउनलोड कीं।

21. सीना के अनुभव से आपने क्या सीखा?

21 हमारी वेबसाइट परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी फैलाने में बहुत असरदार रही है, यहाँ तक कि ऐसे देशों में भी जहाँ प्रचार काम पर कुछ पाबंदियाँ लगी हैं। मिसाल के लिए, 2013 की शुरूआत में सीना नाम के एक आदमी को जब jw.org वेबसाइट का पता चला तो उसने विश्‍व मुख्यालय को फोन किया, जो अमरीका में है। उस आदमी ने बाइबल के बारे में जानने की गुज़ारिश की। यह अनुभव क्यों अनोखा है? क्योंकि वह आदमी इस्लाम धर्म का माननेवाला है और एक ऐसे देश के दूर-दराज़ गाँव में रहता है जहाँ यहोवा के साक्षियों के काम पर सख्त पाबंदियाँ लगी हैं। उसके फोन करने की वजह से उसे बाइबल सिखाने का इंतज़ाम किया गया। अमरीका से एक साक्षी हफ्ते में दो बार उसे बाइबल सिखाता था। यह अध्ययन इंटरनेट के ज़रिए वीडियो कॉल पर चलाया जाता था।

लोगों को निजी तौर पर सिखाना चाहिए

22, 23. (क) क्या गवाही देने के अलग-अलग तरीके घर-घर के प्रचार के बदले अपनाए गए थे? (ख) राजा ने कैसे हमारी मेहनत पर आशीष दी है?

22 अब तक हमने ऐसे कई तरीकों पर गौर किया जिनसे बड़ी तादाद में लोगों तक संदेश पहुँचाया गया है, जैसे अखबार, “चलचित्र,” रेडियो और वेबसाइट। मगर ये तरीके अपनाने के बावजूद यहोवा के लोगों ने घर-घर जाकर प्रचार करना नहीं छोड़ा। क्यों? क्योंकि वे यीशु के दिखाए नमूने पर चलते हैं। यीशु न सिर्फ लोगों की भीड़ को प्रचार करता था बल्कि एक-एक इंसान को भी सिखाता था। (लूका 19:1-5) उसने अपने चेलों को भी ऐसा करना सिखाया और बताया कि उन्हें क्या संदेश सुनाना है। (लूका 10:1, 8-11 पढ़िए।) जैसे हमने अध्याय 6 में देखा, अगुवाई करनेवाले भाइयों ने शुरू से ही यहोवा के हर सेवक को बढ़ावा दिया है कि वह खुद लोगों से मिलकर उन्हें गवाही दे।​—प्रेषि. 5:42; 20:20.

23 राज की शुरूआत को अब सौ साल हो चुके हैं। आज करीब 80 लाख प्रचारक पूरे जोश से लोगों को परमेश्‍वर के मकसदों के बारे में सिखा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हमने राज का ऐलान करने के लिए जो भी तरीके अपनाए उन पर राजा ने आशीष दी है। जैसे अगले अध्याय में बताया जाएगा, राजा ने हमें ऐसे साधन भी दिए हैं जिनकी मदद से हम हर राष्ट्र, गोत्र और भाषा के लोगों को खुशखबरी सुना पाते हैं।​—प्रका. 14:6.

^ पैरा. 17 सन्‌ 1957 में अगुवाई करनेवाले भाइयों ने न्यू यॉर्क के डब्ल्यू.बी.बी.आर. को बंद करने का फैसला किया। यह हमारा आखिरी रेडियो स्टेशन था।