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अध्याय 19

निर्माण काम से यहोवा की महिमा होती है

निर्माण काम से यहोवा की महिमा होती है

अध्याय किस बारे में है

पूरी दुनिया में होनेवाले निर्माण काम से राज का काम आगे बढ़ता है

1, 2. (क) एक लंबे अरसे से यहोवा के सेवक किस काम से खुशी पा रहे हैं? (ख) यहोवा किस बात को अनमोल समझता है?

एक लंबे अरसे से यहोवा के वफादार सेवकों ने खुशी-खुशी ऐसी इमारतें बनायी हैं जिनसे उसके नाम की तारीफ होती है। मिसाल के लिए, इसराएलियों ने पवित्र डेरा बनाने के काम में पूरे जोश के साथ हिस्सा लिया और दिल खोलकर उसके लिए ज़रूरी चीज़ों का दान किया।​—निर्ग. 35:30-35; 36:1, 4-7.

2 यहोवा के नज़रिए से देखें तो ये इमारतें जिन चीज़ों से बनती हैं उन्हीं से उसकी महिमा नहीं होती और न ही उन चीज़ों को वह सबसे अनमोल समझता है। (मत्ती 23:16, 17) इसके बजाय उसके सेवक उसकी जो उपासना करते हैं, उसकी सेवा के लिए खुद को जिस तरह खुशी-खुशी दे देते हैं और उसके काम के लिए जो जोश दिखाते हैं, इन्हीं को वह सबसे ज़्यादा अनमोल समझता है। यही सब उसके लिए तोहफा है जिससे उसकी महिमा होती है। (निर्ग. 35:21; मर. 12:41-44; 1 तीमु. 6:17-19) यह बात वाकई गौर करने लायक है। क्यों? क्योंकि इमारतें आज हैं तो कल नहीं। मिसाल के लिए, पवित्र डेरा और मंदिर आज नहीं हैं। फिर भी यहोवा अपने उन वफादार सेवकों की दरियादिली और कड़ी मेहनत को नहीं भूला है जिन्होंने डेरा और मंदिर बनाने में हाथ बँटाया था।​—1 कुरिंथियों 15:58; इब्रानियों 6:10 पढ़िए।

3. इस अध्याय में हम किस बात पर ध्यान देंगे?

3 आज के ज़माने के यहोवा के सेवकों ने भी उपासना के लिए इमारतें बनाने में कड़ी मेहनत की है। राजा यीशु मसीह के निर्देश में हमने इस मामले में जो हासिल किया है, वह सचमुच तारीफ के काबिल है! इससे साफ है कि यहोवा ने हमारी मेहनत पर आशीष दी है। (भज. 127:1) इस अध्याय में हम ऐसे कुछ निर्माण काम पर ध्यान देंगे और यह भी देखेंगे कि इससे कैसे यहोवा की महिमा हुई है। हम ऐसे कुछ लोगों का अनुभव भी सुनेंगे जिन्होंने इस काम में हिस्सा लिया है।

राज-घरों का निर्माण

4. (क) हमें उपासना के लिए और भी इमारतों की ज़रूरत क्यों है? (ख) कई शाखा दफ्तरों को क्यों मिला दिया गया है? (यह बक्स देखें: “ शाखा दफ्तरों का निर्माण​—ज़रूरत के मुताबिक बदलाव।”)

4 जैसे हमने अध्याय 16 में चर्चा की, यहोवा चाहता है कि हम उपासना के लिए इकट्ठा हों। (इब्रा. 10:25) हमारी सभाएँ न सिर्फ हमारा विश्‍वास मज़बूत करती हैं बल्कि प्रचार काम के लिए हमारा जोश भी बढ़ाती हैं। जैसे-जैसे आखिरी दिन खत्म होने जा रहे हैं, यहोवा इस काम में तेज़ी ला रहा है। नतीजा, हर साल हज़ारों लोग उसके संगठन से जुड़ रहे हैं। (यशा. 60:22) और जब राज की प्रजा की गिनती बढ़ती है तो उनके लिए बाइबल पर आधारित किताबें-पत्रिकाएँ छापने के लिए और भी छपाईखानों की ज़रूरत पैदा होती है। इसके अलावा, उपासना के लिए भी ज़्यादा इमारतों की ज़रूरत पड़ती है।

5. राज-घर, यह नाम क्यों सही है? (यह बक्स भी देखें: “ नयी ज्योति चर्च।”)

5 हमारे ज़माने में बाइबल विद्यार्थियों ने शुरू से ही समझ लिया था कि सभाओं के लिए खुद की इमारतें होना ज़रूरी है। ऐसा मालूम पड़ता है कि 1890 में अमरीकी राज्य वैस्ट वर्जिनिया में जो इमारत बनायी गयी थी, वह शुरू की इमारतों में से एक थी। सन्‌ 1930 के दशक तक यहोवा के लोग कई हॉल बना चुके थे और कुछ की मरम्मत भी कर चुके थे, मगर उन इमारतों की पहचान कराने के लिए एक अलग नाम नहीं रखा गया था। सन्‌ 1935 में भाई रदरफर्ड हवाई द्वीप गए जहाँ नए शाखा दफ्तर के साथ एक हॉल बनाया जा रहा था। जब किसी ने भाई रदरफर्ड से पूछा कि इस इमारत का क्या नाम होना चाहिए तो उन्होंने कहा, “क्या आपको नहीं लगता कि इसका नाम ‘राज-घर’ होना चाहिए क्योंकि हम राज के सुसमाचार का ही तो प्रचार करते हैं?” (मत्ती 24:14) यह नाम बिलकुल सही था! जल्द ही यह नाम न सिर्फ हवाई के उस हॉल को बल्कि दुनिया-भर में यहोवा के साक्षियों की उन ज़्यादातर इमारतों को भी दिया गया जहाँ सभाएँ होती थीं।

6, 7. कुछ ही दिनों के अंदर बनाए गए राज-घरों से क्या नतीजा मिला?

6 सन्‌ 1970 का दशक आते-आते राज-घर बनाने की ज़रूरत तेज़ी से बढ़ने लगी। इसलिए अमरीका के भाइयों ने ऐसा तरीका ढूँढ़ निकाला जिससे वे कुछ ही दिनों में बड़ी कुशलता से ऐसे राज-घर बना सकें, जो दिखने में सुंदर भी हों और सभाएँ रखने के लिए सही भी हों। सन्‌ 1983 तक अमरीका और कनाडा में इस तरह के करीब 200 राज-घर बनाए गए। इस काम को पूरा करने के लिए हमारे भाई क्षेत्रीय निर्माण-समितियाँ बनाने लगे। ऐसी समितियाँ बनाना इतना कारगर साबित हुआ कि 1986 में शासी निकाय ने इस इंतज़ाम को मंज़ूरी दे दी। सन्‌ 1987 तक अमरीका में 60 क्षेत्रीय निर्माण-समितियाँ बन गयीं। * सन्‌ 1992 तक अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, मैक्सिको और स्पेन में भी ऐसी समितियाँ बनायी गयीं। जो भाई राज-घर और सम्मेलन भवन बनाने में कड़ी मेहनत करते हैं, हमें उनका पूरा-पूरा साथ देना चाहिए क्योंकि उनका यह काम भी एक तरह की पवित्र सेवा है।

7 जिन इलाकों में कुछ ही दिनों के अंदर राज-घर बनाए गए थे, उनसे वहाँ के लोगों को अच्छी गवाही मिली। मिसाल के लिए, स्पेन के मारटोस नगर में जब ऐसा ही एक राज-घर बनाया गया तो यह खबर स्पेन के एक अखबार की सुर्खियों में आ गयी, “विश्‍वास पहाड़ों को हटा देता है।” अखबार ने उस राज-घर के निर्माण के बारे में कहा, “दुनिया में जहाँ हर कहीं स्वार्थी लोग हैं वहाँ यह कैसे मुमकिन है कि [स्पेन के] कई इलाकों से स्वयंसेवक बिना किसी स्वार्थ के मारटोस तक सफर करके आएँ और एक ऐसी इमारत खड़ी करें जो सारे रिकॉर्ड तोड़ दे? क्योंकि यह अब तक की सबसे जल्द बनायी गयी, सबसे उम्दा और बड़े कायदे से बनायी गयी इमारत है।” अखबार के लेख ने इस सवाल का जवाब देने के लिए साक्षियों में से एक स्वयंसेवक का हवाला दिया, “यह इसलिए मुमकिन हो पाया है क्योंकि हम यहोवा के सिखाए हुए लोग हैं।”

कम साधनवाले देशों में निर्माण काम

8. सन्‌ 1999 में शासी निकाय ने किस नयी योजना को मंज़ूरी दी और क्यों?

8 बीसवीं सदी के खत्म होते-होते, उन देशों में भी बहुत-से लोग यहोवा के संगठन से जुड़ने लगे जहाँ भाइयों के पास बहुत कम साधन होते हैं। वहाँ की मंडलियों ने राज-घर बनाने के लिए अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश की। मगर कुछ देशों में भाई-बहनों का मज़ाक उड़ाया गया और उन्हें नीचा देखा गया क्योंकि दूसरे धर्मों की उपासना की इमारतों के मुकाबले उनके राज-घर मामूली-से थे। मगर 1999 में शासी निकाय ने एक ऐसी योजना को मंज़ूरी दी जिससे गरीब देशों में राज-घर बनाने के काम में तेज़ी आ जाए। अमीर देशों से मिलनेवाला दान इन देशों को दिया जाने लगा ताकि “बराबरी” हो सके। (2 कुरिंथियों 8:13-15 पढ़िए।) इसके अलावा, दूसरे देशों के भाई-बहनों ने स्वयंसेवकों के तौर पर वहाँ जाकर काम किया।

9. (क) कौन-सा काम बहुत मुश्‍किल लग रहा था? (ख) मगर कैसी कामयाबी मिली है?

9 सन्‌ 2001 की एक रिपोर्ट में बताया गया कि 88 गरीब देशों में 18,300 से ज़्यादा राज-घरों की ज़रूरत है। शुरू में ऐसा लग रहा था कि गरीब देशों में इतने सारे राज-घर बनाना नामुमकिन है। लेकिन अगर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति और हमारा राजा यीशु मसीह मदद करे, तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं है। (मत्ती 19:26) सन्‌ 1999 से 2013 तक, यानी करीब 15 साल के अंदर परमेश्‍वर के लोगों ने गरीब देशों में राज-घर बनाने की योजना के तहत 26,849 राज-घर बना दिए। * यहोवा प्रचार काम पर लगातार आशीष दे रहा है, इसलिए 2013 तक उन देशों में करीब 6,500 राज-घरों की ज़रूरत थी। आज हर साल सैकड़ों और राज-घरों की ज़रूरत पैदा हो रही है।

कम साधनवाले देशों में राज-घर बनाने में कुछ अनोखी चुनौतियाँ आती हैं

10-12. राज-घरों के निर्माण से यहोवा के नाम की कैसे महिमा हुई है?

10 इन राज-घरों के निर्माण से यहोवा के नाम की कैसे महिमा हुई है? ज़िम्बाबवे के शाखा दफ्तर की एक रिपोर्ट कहती है, “अकसर देखा गया है कि जब किसी इलाके में राज-घर बनाया जाता है तो एक महीने के अंदर सभाओं की हाज़िरी दुगुनी हो जाती है।” बहुत-से देशों में ऐसा लगता है कि जहाँ उपासना के लिए सही जगह नहीं होती वहाँ लोग हमारी सभाओं में आने से हिचकिचाते हैं। लेकिन वहाँ जैसे ही एक राज-घर बन जाता है तो वह जल्द ही भर जाता है और फिर से एक नए राज-घर की ज़रूरत पैदा हो जाती है। मगर लोग सिर्फ इमारत देखकर साक्षियों की तरफ खिंचे चले नहीं आते। राज-घर बनानेवाले भाई-बहनों का सच्चा मसीही प्यार देखकर लोग यहोवा के संगठन के बारे में अच्छी राय कायम करते हैं। कुछ अनुभवों पर गौर कीजिए।

11 इंडोनेशिया: जब एक इलाके में राज-घर बनाया जा रहा था तो एक आदमी कई दिनों से यह देख रहा था। जब उसे पता चला कि काम करनेवाले सभी स्वयंसेवक हैं तो उसने कहा, “आप लोगों का जवाब नहीं! आपको इस काम के लिए कोई तनख्वाह नहीं मिलती, फिर भी हर कोई पूरे दिल से और खुशी-खुशी यह काम करता है। मेरे खयाल से आपके जैसा धार्मिक संगठन और कोई नहीं है!”

12 यूक्रेन: जब एक इलाके में राज-घर बनाया जा रहा था तो एक औरत वहाँ से हर दिन गुज़रती थी। वह समझ गयी कि वे ज़रूर यहोवा के साक्षी होंगे और राज-घर बना रहे होंगे। उसने कहा, “मैंने यहोवा के साक्षियों के बारे में अपनी बहन से सुना था। वह भी एक साक्षी है। जब मैंने यहाँ काम होते देखा तो मैंने फैसला किया कि मैं भी परमेश्‍वर के लोगों के इस परिवार का हिस्सा बनूँगी। यहाँ मैंने देखा कि सब एक-दूसरे से कितना प्यार करते हैं।” वह औरत बाइबल सीखने लगी और उसने 2010 में बपतिस्मा ले लिया।

13, 14. (क) आपने उस जोड़े के अनुभव से क्या सीखा जिन पर राज-घर के निर्माण काम का अच्छा असर हुआ? (ख) आप क्या कर सकते हैं ताकि आपके राज-घर से यहोवा के नाम की महिमा हो?

13 अर्जेंटीना: जब वहाँ एक भाई राज-घर निर्माण काम की निगरानी कर रहा था तो एक शादीशुदा जोड़ा उसके पास आया। पति ने कहा, “हमने आप लोगों को यह इमारत बनाते हुए देखा है . . . हमने फैसला किया है कि हम भी यहाँ आकर परमेश्‍वर के बारे में सीखेंगे।” फिर उसने पूछा, “यहाँ की सभाओं में आने के लिए हमें क्या करना होगा?” वह जोड़ा बाइबल सीखने के लिए राज़ी हो गया, मगर इस शर्त पर कि पूरे परिवार को सिखाया जाए। भाइयों ने खुशी-खुशी उनकी शर्त मान ली।

14 शायद आपको अपना राज-घर बनाने में हाथ बँटाने का मौका न मिला हो, फिर भी आप काफी कुछ कर सकते हैं ताकि आपके राज-घर से यहोवा के नाम की महिमा हो। जैसे, आप अपने बाइबल विद्यार्थियों को, वापसी भेंट पर मिलनेवालों को और दूसरे लोगों को राज-घर में होनेवाली सभाओं के लिए पूरे जोश के साथ बुला सकते हैं। आप राज-घर की साफ-सफाई और रख-रखाव में भी हाथ बँटा सकते हैं। आप अपने राज-घर की देखरेख के लिए या दूसरे देशों में राज-घर बनाने के लिए दान दे सकते हैं। इसके लिए आप पहले से कुछ पैसे अलग रख सकते हैं। (1 कुरिंथियों 16:2 पढ़िए।) इन सभी तरीकों से हम यहोवा के नाम की और भी तारीफ करते हैं।

“अपनी इच्छा से खुद को पेश” करनेवाले

15-17. (क) निर्माण का ज़्यादातर काम कौन करता है? (ख) अंतर्राष्ट्रीय निर्माण काम करनेवाले जोड़ों से आपने क्या सीखा?

15 राज-घर, सम्मेलन भवन और शाखा दफ्तर की इमारतें बनाने का ज़्यादातर काम उसी इलाके के भाई-बहन करते हैं जहाँ ये बनाए जाते हैं। और कई बार दूसरे देशों से ऐसे भाई-बहन आकर इस काम में मदद करते हैं जिन्हें निर्माण काम का तजुरबा है। इनमें से कुछ स्वयंसेवकों ने अपनी ज़िंदगी में कई फेरबदल किए हैं ताकि वे दूसरे देशों में जाकर कई हफ्तों तक निर्माण काम कर सकें। कुछ लोगों ने तो कई साल तक दूसरों देशों में यह काम करने के लिए खुद को दे दिया है।

टीमो और लीन लपालाइनन (पैराग्राफ 16 देखें)

16 अंतर्राष्ट्रीय निर्माण काम में कुछ खास चुनौतियाँ आती हैं, पर साथ ही कई आशीषें भी मिलती हैं। टीमो और लीन को ही लीजिए जिन्होंने एशिया, यूरोप और दक्षिण अमरीका के कई देशों तक सफर करके वहाँ राज-घर, सम्मेलन भवन और शाखा दफ्तर बनाने में हिस्सा लिया। टीमो कहता है, “पिछले 30 साल से मैं यह काम कर रहा हूँ और लगभग हर दो साल में मैंने एक अलग इलाके में काम किया है।” लीन, जिसने 25 साल पहले टीमो से शादी की थी, कहती है: “मैंने टीमो के साथ दस देशों में काम किया है। हर नए इलाके के खान-पान, मौसम और भाषा के आदी होने और वहाँ के इलाके के हिसाब से प्रचार करना सीखने और नए दोस्त बनाने में काफी समय और मेहनत लगती है।” * क्या उन्हें अपनी मेहनत का फल मिला? लीन कहती है, “इन चुनौतियों का सामना करने की वजह से हमें ढेरों आशीषें मिली हैं। हमें भाई-बहनों का प्यार मिला है और हमने उनकी मेहमान-नवाज़ी का आनंद उठाया है। हमने महसूस किया है कि यहोवा हमसे कितना प्यार करता है और हमारा कितना खयाल रखता है। हमने मरकुस 10:29, 30 में दर्ज़ यीशु के वादे को भी पूरा होते देखा है जो उसने अपने चेलों से किया था। हमें सौ गुना भाई-बहन और माँएँ मिली हैं।” टीमो कहता है, “हमें इस बात से गहरा संतोष मिलता है कि हम राजा की संपत्ति को बढ़ाने में अपना हुनर इस्तेमाल कर पाते हैं, जो कि दुनिया का सबसे महान काम है।”

17 डैरन और सारा ने अफ्रीका, एशिया, मध्य और दक्षिण अमरीका, यूरोप और दक्षिण प्रशांत महासागर के इलाकों में निर्माण काम किया है। वे मानते हैं कि इस काम में उन्होंने अपनी तरफ से जो भी दिया उससे कहीं ज़्यादा उन्होंने पाया है। कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद डैरन कहता है, “दुनिया के अलग-अलग देशों से आए भाइयों के साथ मिलकर काम करना एक बड़ा सम्मान है। मैंने देखा है कि यहोवा के लिए हम सबका प्यार एक डोरी की तरह है जो पूरी दुनिया के भाई-बहनों को एकता के बंधन में बाँध देता है।” सारा कहती है, “मैंने अलग-अलग संस्कृति के भाई-बहनों से बहुत कुछ सीखा है! यहोवा की सेवा में उनका त्याग देखकर मुझे बढ़ावा मिलता है कि मैं अपना भरसक करती रहूँ।”

18. भजन 110:1-3 की भविष्यवाणी आज कैसे पूरी हो रही है?

18 राजा दाविद ने भविष्यवाणी की थी कि परमेश्‍वर के राज की प्रजा चुनौतियों का सामना करते हुए भी “अपनी इच्छा से खुद को पेश” करेगी ताकि राज के कामों को आगे बढ़ा सके। (भजन 110:1-3 पढ़िए।) राज के कामों में हिस्सा लेनेवाले सभी लोग उस भविष्यवाणी को पूरा कर रहे हैं। (1 कुरिं. 3:9) दुनिया-भर में बने कई शाखा दफ्तर, सैकड़ों सम्मेलन भवन और हज़ारों राज-घर इस बात का ठोस सबूत है कि परमेश्‍वर का राज असली है और आज हुकूमत कर रहा है। हमें निर्माण काम करके राजा यीशु मसीह की सेवा करने का कितना बड़ा सम्मान मिला है। इस काम से यहोवा की महिमा होती है जिसका वह हकदार है!

^ पैरा. 6 सन्‌ 2013 में अमरीका में 2,30,000 स्वयंसेवकों को 132 क्षेत्रीय निर्माण-समितियों के साथ काम करने की मंज़ूरी दी गयी थी। उस देश में हर साल उन समितियों ने करीब 75 राज-घर बनाने और करीब 900 राज-घरों को नया रूप देने या उनकी मरम्मत करने का काम संगठित किया था।

^ पैरा. 9 इनके अलावा और भी कई राज-घर बनाए गए जो इस योजना का हिस्सा नहीं थे।

^ पैरा. 16 अंतर्राष्ट्रीय सेवक और स्वयंसेवक अपना ज़्यादातर समय निर्माण काम में लगाते हैं, पर साथ ही वे शाम को या शनिवार-रविवार को इलाके की मंडली के साथ प्रचार भी करते हैं।