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अध्याय 82

पेरिया में सेवा

पेरिया में सेवा

लूका 13:22–14:6

  • सँकरे दरवाज़े से जाने के लिए संघर्ष करो

  • यीशु की मौत यरूशलेम में होनी है

यीशु कुछ समय पहले यहूदिया और यरूशलेम में सिखा रहा था और लोगों को चंगा कर रहा था। फिर वह यरदन के उस पार पेरिया ज़िले में चला जाता है। वह यहाँ शहर-शहर लोगों को सिखा रहा है। मगर जल्द ही वह फिर से यरूशलेम जाएगा।

पेरिया में एक आदमी यीशु से पूछता है, “प्रभु, जो उद्धार पाएँगे क्या वे थोड़े हैं?” यह आदमी शायद जानता है कि धर्म गुरुओं में इस बात को लेकर बहस होती है कि बहुत लोग उद्धार पाएँगे कि थोड़े। मगर यीशु यह बताने के बजाय कि कितने लोग उद्धार पाएँगे, समझाता है कि उद्धार पाने के लिए एक इंसान को क्या करना चाहिए। “सँकरे दरवाज़े से अंदर जाने के लिए जी-तोड़ संघर्ष करो।” जी हाँ, उद्धार पाने के लिए कड़ा संघर्ष करना ज़रूरी है। क्यों? “क्योंकि बहुत लोग अंदर जाना चाहेंगे, मगर नहीं जा पाएँगे।”​—लूका 13:23, 24.

यही बात समझाने के लिए यीशु एक मिसाल बताता है: ‘जब घर का मालिक उठकर दरवाज़ा बंद कर देगा, तो तुम बाहर खड़े होकर खटखटाओगे और कहोगे, “प्रभु, हमारे लिए दरवाज़ा खोल।” मगर वह तुमसे कहेगा, ‘मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ से आए हो। अरे दुष्ट काम करनेवालो, दूर हो जाओ मेरे सामने से!’​—लूका 13:25-27.

इससे पता चलता है कि अगर कोई देर से आए तो उसकी क्या हालत होगी। शायद वह तब आए जब उसे ठीक लगता है। मगर तब तक दरवाज़ा बंद हो जाएगा और ताला लग जाएगा। इसलिए थोड़ा जल्दी आना सही रहता है, फिर चाहे कोई तकलीफ क्यों न उठानी पड़े। यीशु के दिनों में भी कई लोगों का रवैया ठीक नहीं है। यीशु ने उन्हें कितना कुछ सिखाया है और वे चाहे तो सच्ची उपासना को ज़िंदगी में पहली जगह दे सकते हैं। मगर वे यह मौका हाथ से जाने दे रहे हैं। यीशु को लोगों का उद्धार करने भेजा गया है, लेकिन ज़्यादातर लोग उस पर विश्‍वास नहीं करते। यीशु बताता है कि उन्हें बाहर फेंक दिया जाएगा और वहाँ वे रोएँगे और दाँत पीसेंगे। मगर कुछ लोग “पूरब, पश्‍चिम, उत्तर और दक्षिण से आएँगे” यानी वे सब राष्ट्रों में से आएँगे और “परमेश्‍वर के राज में मेज़ से टेक लगाकर बैठेंगे।”​—लूका 13:28, 29.

यीशु बताता है, “कुछ लोग जो आखिरी हैं [यानी गैर-यहूदी और वे यहूदी जिन्हें तुच्छ समझा जाता है] वे पहले होंगे और कुछ जो पहले हैं [यानी धर्म गुरु जो घमंड करते हैं कि वे अब्राहम के खानदान से हैं] वे आखिरी होंगे।” (लूका 13:30) इसका क्या मतलब है कि वे आखिरी होंगे? वे परमेश्‍वर के राज में होंगे ही नहीं, क्योंकि परमेश्‍वर ने उनके लिए जो किया है उसकी वे कदर नहीं करते।

अब कुछ फरीसी यीशु से कहते हैं, “यहाँ से निकल जा क्योंकि हेरोदेस [अन्तिपास] तुझे मार डालना चाहता है।” यह असल में एक झूठी बात है जो शायद राजा हेरोदेस ने ही फैलायी है ताकि यीशु उस इलाके से चला जाए। हेरोदेस ने यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले को मरवा डाला था। अब उसे डर है कि कहीं उसके हाथ से एक और भविष्यवक्‍ता का खून न हो जाए। मगर यीशु फरीसियों से कहता है, “जाओ जाकर कहो उस लोमड़ी से, ‘देख! मैं आज और कल भी दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालूँगा और लोगों को चंगा करूँगा और तीसरे दिन मेरा काम पूरा होगा।’” (लूका 13:31, 32) शायद यीशु कह रहा है कि हेरोदेस लोमड़ी की तरह चालाक है, तभी वह यह चाल चल रहा है। लेकिन यीशु न उसकी चाल में फँसेगा, न किसी और की। वह अपने पिता का दिया काम पूरा करके ही रहेगा। और वह परमेश्‍वर के बताए समय पर पूरा करेगा, न कि किसी इंसान के हिसाब से।

यीशु अब यरूशलेम की तरफ निकल पड़ता है, क्योंकि वह कहता है, “यह हो नहीं सकता कि एक भविष्यवक्‍ता यरूशलेम के बाहर मारा जाए।” (लूका 13:33) बाइबल में ऐसी कोई भविष्यवाणी नहीं है कि मसीहा की मौत यरूशलेम में होनी है। तो फिर यीशु ने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि यरूशलेम देश की राजधानी है। यहीं पर 71 सदस्योंवाली महासभा है। यह यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत है। यहीं पर उन लोगों का मुकद्दमा चलाया जाता है जिन पर झूठे भविष्यवक्‍ता होने का इलज़ाम है। और यरूशलेम में ही जानवरों के बलिदान चढ़ाए जाते हैं। शायद इन कारणों से यीशु कहता है कि उसकी मौत यरूशलेम में होगी, कहीं और नहीं।

यीशु बड़े दुख के साथ कहता है, “यरूशलेम, यरूशलेम, तू जो भविष्यवक्‍ताओं का खून करनेवाली नगरी है और जो तेरे पास भेजे जाते हैं उन्हें पत्थरों से मार डालती है​—मैंने कितनी बार चाहा कि जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों तले इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बच्चों को इकट्ठा करूँ! मगर तुम लोगों ने यह नहीं चाहा! देखो! परमेश्‍वर ने तुम्हारे घर को त्याग दिया है।” (लूका 13:34, 35) इस राष्ट्र ने परमेश्‍वर के बेटे को ठुकरा दिया है, इसलिए इसे अंजाम भुगतना ही पड़ेगा।

इससे पहले कि यीशु यरूशलेम पहुँचता, फरीसियों का एक सरदार उसे अपने यहाँ खाने पर बुलाता है। यह सब्त का दिन है। वहाँ एक ऐसा आदमी भी है जो जलोदर का रोगी है। इस बीमारी में शरीर के किसी अंग में, खासकर हाथ या पैर में बहुत ज़्यादा पानी भर जाता है। दावत में आए लोग यीशु पर नज़रें जमाए हुए हैं कि वह उस आदमी को ठीक करेगा कि नहीं। यीशु फरीसियों और कानून के जानकारों से पूछता है, “क्या सब्त के दिन बीमारों को ठीक करना सही है?”​—लूका 14:3.

कोई कुछ नहीं कहता। यीशु उस आदमी को चंगा कर देता है। फिर वहाँ आए लोगों से पूछता है, “अगर तुममें से किसी का बेटा या बैल सब्त के दिन कुएँ में गिर जाए, तो कौन है जो उसे फौरन खींचकर बाहर नहीं निकालेगा?” (लूका 14:5) इस सवाल के जवाब में भी कोई कुछ नहीं कहता, क्योंकि यीशु की बात कोई काट ही नहीं सकता।