इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्याय 85

पश्‍चाताप करनेवाले पापी के लिए खुशियाँ

पश्‍चाताप करनेवाले पापी के लिए खुशियाँ

लूका 15:1-10

  • खोयी हुई भेड़ और खोए हुए सिक्के की मिसाल

  • स्वर्ग में स्वर्गदूत खुशियाँ मनाते हैं

यीशु ने कई बार लोगों को बताया कि उन्हें क्यों नम्र होना चाहिए। (लूका 14:8-11) वह ऐसे लोगों को ढूँढ़ रहा है जो नम्रता से परमेश्‍वर की सेवा करना चाहते हैं। मगर इस तरह के कुछ लोग बहुत बुरे-बुरे काम कर रहे हैं।

फरीसी और शास्त्री ऐसे लोगों को तुच्छ समझते हैं। जब वे देखते हैं कि ऐसे लोग यीशु की बातें सुनने के लिए उसके पास आते हैं, तो वे यीशु के बारे में कहते हैं, “यह तो पापियों को भी अपने पास आने देता है और उनके साथ खाता है।” (लूका 15:2) वे खुद को बहुत बड़ा समझते हैं और आम लोगों को पैरों की धूल। फरीसी उनसे इतनी घिन करते हैं कि वे उन्हें अमहारेट कहते हैं। यह एक इब्रानी शब्द है जिसका मतलब है “ज़मीन के लोग।”

लेकिन यीशु फरीसियों की तरह नहीं है। वह सबकी इज़्ज़त करता है। सबकी मदद करता है और उन पर दया करता है। इसलिए लोग उसकी बातें सुनना चाहते हैं, यहाँ तक कि वे भी जो बुरे-बुरे काम करते हैं और समाज में बदनाम हैं। लेकिन यीशु फरीसियों को क्या जवाब देता है जो उसे बुरा-भला कहते हैं?

यीशु एक अच्छी मिसाल बताता है। कुछ इसी तरह की मिसाल उसने पहले कफरनहूम में भी बतायी थी। (मत्ती 18:12-14) यह मिसाल वह ऐसे बताता है जैसे फरीसी नेक हैं और परमेश्‍वर की भेड़शाला में सुरक्षित हैं, मगर आम लोग भटक गए हैं और भेड़शाला से खो गए हैं।

यीशु कहता है, “तुममें ऐसा कौन है जिसके पास अगर 100 भेड़ें हों और उनमें से एक खो जाए, तो वह बाकी 99 को वीराने में छोड़कर उस एक को ढूँढ़ने न जाए? क्या वह उस खोयी हुई भेड़ को तब तक नहीं ढूँढ़ता रहेगा जब तक कि वह मिल न जाए? और जब वह उसे मिल जाती है, तो वह उसे अपने कंधों पर उठा लेता है और खुशी से फूला नहीं समाता। वह घर पहुँचकर अपने दोस्तों और पड़ोसियों को बुलाता है और उनसे कहता है, ‘मेरे साथ खुशियाँ मनाओ क्योंकि मुझे अपनी खोयी हुई भेड़ मिल गयी है।’”​—लूका 15:4-6.

“इसी तरह एक पापी के पश्‍चाताप करने पर स्वर्ग में इतनी ज़्यादा खुशियाँ मनायी जाएँगी, जितनी कि ऐसे 99 नेक लोगों के लिए नहीं मनायी जातीं, जिन्हें पश्‍चाताप की ज़रूरत नहीं।”​—लूका 15:7.

पश्‍चाताप की बात सुनकर फरीसी चौंक जाते हैं। दो साल पहले जब उन्होंने यीशु को कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ खाना खाते देखा, तो उन्होंने उसे बुरा-भला कहा था। तब यीशु ने उनसे कहा था, “मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।” (मरकुस 2:15-17) फरीसी सोचते हैं कि वे धर्मी हैं और उन्हें पश्‍चाताप करने की ज़रूरत नहीं है। इसलिए इनकी वजह से स्वर्गदूतों को खुशी नहीं मिलती। लेकिन जो पापी सच्चे दिल से पश्‍चाताप करते हैं, उनकी वजह से स्वर्ग में खुशियाँ मनायी जाती हैं।

यह बात और अच्छी तरह समझाने के लिए यीशु एक और मिसाल बताता है: “ऐसी कौन-सी औरत होगी जिसके पास दस चाँदी के सिक्के हों और अगर उनमें से एक खो जाए, तो वह दीया जलाकर पूरे घर में झाड़ू न लगाए और उस सिक्के को बड़े जतन से तब तक न ढूँढ़े, जब तक कि वह मिल नहीं जाता? और जब वह सिक्का उसे मिल जाता है, तो अपनी सहेलियों और पड़ोसिनों को बुलाती है और कहती है, ‘मेरे साथ खुशियाँ मनाओ क्योंकि मुझे अपना खोया हुआ सिक्का मिल गया है।’”​—लूका 15:8, 9.

यीशु फिर से कहता है, “पश्‍चाताप करनेवाले एक पापी के लिए भी, इसी तरह परमेश्‍वर के स्वर्गदूत बहुत खुशियाँ मनाते हैं।”​—लूका 15:10.

स्वर्गदूत सच में तारीफ के लायक हैं। वे जानते हैं कि जो पापी लौट आते हैं उन्हें स्वर्ग के राज में हिस्सा मिलेगा और तब उनका दर्जा स्वर्गदूतों से भी ऊँचा हो जाएगा। (1 कुरिंथियों 6:2, 3) फिर भी स्वर्गदूत उनसे जलते नहीं बल्कि बहुत खुश होते हैं। जब हम देखते हैं कि कोई पापी पश्‍चाताप करके परमेश्‍वर के पास लौट आया है, तो क्या हमें भी खुश नहीं होना चाहिए?