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पाठ 7

बाबेल की मीनार

बाबेल की मीनार

जलप्रलय के बाद, नूह के बेटों के कई बच्चे हुए। उनके परिवार बढ़ने लगे और वे धरती की अलग-अलग जगहों में जाकर रहने लगे, ठीक जैसे यहोवा ने उनसे कहा था।

मगर कुछ परिवारों ने यहोवा की बात नहीं मानी। उन्होंने कहा, ‘आओ, हम यहाँ एक शहर बनाएँ और यहीं रहें। हम एक मीनार भी बनाएँगे जो इतनी ऊँची होगी कि वह आसमान को छू लेगी। इससे हमारा बहुत नाम होगा।’

यहोवा उन लोगों के काम से खुश नहीं था, इसलिए उसने उन्हें रोकने का फैसला किया। जानते हो यहोवा ने क्या किया? उसने अचानक कुछ ऐसा किया कि वे अलग-अलग भाषाएँ बोलने लगे। अब वे एक-दूसरे की बात बिलकुल नहीं समझ पा रहे थे। इसलिए उन्होंने शहर बनाने का काम बंद कर दिया। उस शहर का नाम बाबेल पड़ा। बाबेल का मतलब है “गड़बड़ी।” लोग उस शहर को छोड़कर धरती की अलग-अलग जगहों में रहने लगे। मगर वहाँ भी वे बुरे काम करते रहे। क्या दुनिया में ऐसा कोई था जो यहोवा से प्यार करता था? हम अगले अध्याय में देखेंगे।

“हर कोई जो खुद को ऊँचा करता है उसे नीचा किया जाएगा, मगर जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।”—लूका 18:14