गीत 55
उनसे मत डर!
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1. दे संदेश खुशखबरी का तू,
सच्-चा-ई सब सुन पाएँ;
ना डरना तू दुश्मन से,
पीछे ना कदम हटे।
हाँ, मेरे बेटे यीशु ने
शैताँ को फेंका नीचे,
गिनती के अब दिन हैं उसके,
जल्द सब को राहत मिले।
(कोरस)
सुन के धमकी बैरियों की
ना सहम जाना कभी;
तू पुतली मेरी आँखों की,
छू सके ना को-ई भी।
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2. दुश्मन चाहे लाख हों तेरे,
चाहे ताने वो मारें,
या मीठी बातें करें
और धोखा देना चाहें।
ना डरना, ओ जाँबाज़ सैनिक,
तेरी ढाल बनूँगा मैं,
कितना ही मुश्-किल हो लड़ना,
जंग में दूँगा मैं विजय!
(कोरस)
सुन के धमकी बैरियों की
ना सहम जाना कभी;
तू पुतली मेरी आँखों की,
छू सके ना को-ई भी।
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3. कल मैदाने-जंग में तेरी
चाहे मौत भी हो जाए,
मेरी यादों में महफूज़
रखूँ पलकों के साए।
तू वफा मुझसे निभाना,
बस यही चाहूँ तुझसे।
मंज़िल तक ले जाऊँगा मैं,
असली जीवन दूँ तुझे।
(कोरस)
सुन के धमकी बैरियों की
ना सहम जाना कभी;
तू पुतली मेरी आँखों की,
छू सके ना को-ई भी।
(व्यव. 32:10; नहे. 4:14; भज. 59:1; 83:2, 3 भी देखें।)