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गीत 87

आओ, ताज़गी पाओ!

आओ, ताज़गी पाओ!

(इब्रानियों 10:24, 25)

  1. 1. आज लोग हैं गुमराह, करते मन-मरज़ियाँ,

    ठुकराते हैं वो याह की राह।

    हम जानते हैं मंज़िल पाना हो अगर,

    ज़रूरी है याह की सलाह।

    सच्‌-चा-ई जब सीखते वचन से याह के

    प्यार इसके लिए और बढ़े;

    विश्‍वास की हिफाज़त करना हम सीखते

    कि आशा की लौ ना बुझे।

    हम याह के हुकुम जब संजोएँ दिल में,

    हर बात उसकी मानते रहें।

    सभाओं में आने से हिम्‌-मत बढ़े,

    मिलती इनसे ताज़गी हमें।

  2. 2. यहोवा बखूबी समझता हमें,

    सो मानें हम उसकी सलाह।

    कहे वो, ‘सभाओं में मिलते रहो,

    तुम ना कभी होगे तनहा।’

    यहोवा की बुद्‌-धि से मिलती मदद,

    समझदार जिससे हम बनें।

    बुज़ुर्गों के विश्‍वास और नेक कामों से,

    वफा से चलना हम सीखें।

    सभाओं में दोस्तों का प्यार भी मिले,

    ज़रूरी सहारा है ये।

    फिरदौस की त-मन्‌-ना दिलों में रखके

    सभाओं में आते रहें।