गीत 90
एक-दूजे की हिम्मत बँधाएँ
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1. एक-दूजे की हिम्-मत बँधाएँ,
तो सेवा कर सकें याह की;
मज़बूत बनें तब बंधन प्यार के,
बढ़े सुकूँ और एकता भी।
प्यार जो मिले याह के बंदों से,
सह पाएँ सारी मुश्-कि-लें।
पनाह मिले हमें मंडली में,
महफूज़ जिसमें हम रह सकें।
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2. सही समय पे कही बातें
लगें मरहम जैसी दिल पे।
मिले अज़ीज़ों से दिलासा;
हैं दोस्त दिल के कितने प्यारे!
करें जब मेह-नत हम सब मिलके,
रास्ता मंज़िल तक हो आसाँ।
बढ़ाएँ बल जब हम दूसरों का,
भार वो उठा सकें खुद का।
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3. विश्वास की आँखों से जब देखें,
नज़दीक आया है दिन याह का;
एक-साथ मिलना कभी ना छोड़ें,
तो राह पे चल सकें सदा।
एक होके याह के बंदों के संग
दिन-रात करना चाहें सेवा।
बँधाएँ हिम्-मत एक-दूजे की,
हरदम निभा सकें वफा।
(लूका 22:32; प्रेषि. 14:21, 22; गला. 6:2; 1 थिस्स. 5:14 भी देखें।)