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गीत 90

एक-दूजे की हिम्मत बँधाएँ

एक-दूजे की हिम्मत बँधाएँ

(इब्रानियों 10:24, 25)

  1. 1. एक-दूजे की हिम्‌-मत बँधाएँ,

    तो सेवा कर सकें याह की;

    मज़बूत बनें तब बंधन प्यार के,

    बढ़े सुकूँ और एकता भी।

    प्यार जो मिले याह के बंदों से,

    सह पाएँ सारी मुश्‌-कि-लें।

    पनाह मिले हमें मंडली में,

    महफूज़ जिसमें हम रह सकें।

  2. 2. सही समय पे कही बातें

    लगें मरहम जैसी दिल पे।

    मिले अज़ीज़ों से दिलासा;

    हैं दोस्त दिल के कितने प्यारे!

    करें जब मेह-नत हम सब मिलके,

    रास्ता मंज़िल तक हो आसाँ।

    बढ़ाएँ बल जब हम दूसरों का,

    भार वो उठा सकें खुद का।

  3. 3. विश्‍वास की आँखों से जब देखें,

    नज़दीक आया है दिन याह का;

    एक-साथ मिलना कभी ना छोड़ें,

    तो राह पे चल सकें सदा।

    एक होके याह के बंदों के संग

    दिन-रात करना चाहें सेवा।

    बँधाएँ हिम्‌-मत एक-दूजे की,

    हरदम निभा सकें वफा।