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गीत 95

बढ़ती है रौशनी सच्चाई की

बढ़ती है रौशनी सच्चाई की

(नीतिवचन 4:18)

  1. 1. कराहती थी सृष्टि रिहाई बिना,

    पर आशा की ज्योत दे दी याह ने।

    सारे नबियों ने ये जानना चाहा

    कौन होगा मसीह, कब वो आए।

    जब आया समय, मसीह राजा बना;

    मौजूद है वो ज़ाहिर हुआ।

    बेताब थे फरिश्‍ते भी जानने यही

    जिसका ज्ञान हमें याह ने दिया।

    (कोरस)

    रौशनी बढ़ी है अपनी राह पे;

    चलते हैं उजाले में हम।

    याह ने है सिखायी सच्‌-चा-ई

    उस नूर में चलें हर कदम।

  2. 2. यीशु ने इक “दास” को दिया काम अहम;

    वो दे सबको “खाना” समय पे।

    सच्‌-चा-ई वो खुलकर समझाए हमें,

    खिल जाएँ जिससे मन हमारे।

    जाना किस दिशा, इस में शक ना कोई,

    सच्‌-चा-ई के तेज में चलते।

    यहोवा का मानते हैं दिल से एहसान

    उसने दी ये सच्‌-चा-ई हमें।

    (कोरस)

    रौशनी बढ़ी है अपनी राह पे;

    चलते हैं उजाले में हम।

    याह ने है सिखायी सच्‌-चा-ई

    उस नूर में चलें हर कदम।