गीत ९६
देवाचं अनमोल वचन
१. व-च-न या-हा-चे कि-ती अ-मो-ल,
सा-का-र-ले जे ‘श्वा-सा-ने’ त्या-च्या,
ना ग्रं-थ तो, सा-ठा ज-णू ज्ञा-ना-चा,
पा-नो-पा-नी मि-ळे हा पु-रा-वा!
तो दे-ई शां-ती, ह-र्ष मा-न-वां-ना,
अं-धां-ना-ही तो दा-ख-वे दि-शा.
द-री-तु-नी का-ळो-ख्या म-र-णा-च्या,
प-र-तु-नी तो आ-णे जी-व-ना!
२. ला-भ-ली ज्यां-ना प्रे-र-णा या-हा-ची,
उत-र-वि-ली त्यां-नी ही व-च-ने,
क-से या-हा-ने वि-श्व घ-डु-नी हे,
जी-वन दि-ले मा-न-वा सु-खा-चे.
पण पा-पा-च्या मा-र्गी ला-वू-न त्या-ला,
दु-ष्ट दू-ता-ने डा-व सा-ध-ला.
लो-ट-ले खा-ई-त ज-री दुः-खां-च्या,
हो-ईल पु-रा सं-क-ल्प या-हा-चा!
३. स-म-य हा आ-नं-दा-चा, अ-नो-खा,
रा-जा-स-नी ख्रि-स्त वि-रा-ज-ला,
झा-ले सु-रू स्व-र्गी रा-ज्य या-हा-चे,
बन-वे-ल नं-दन-वन या पृ-थ्वी-ला.
सां-गू-न वा-र्ता आ-म्हा आ-नं-दा-ची,
शां-ती, दि-ला-सा जे म-ना दे-ई,
वा-चा-वे प्रि-य मा-नु-नी स-र्वां-नी,
व-च-न या-हा-चे जी-वन-दा-यी!
(२ तीम. ३:१६; २ पेत्र १:२१ ही वचनंसुद्धा पाहा.)