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अध्याय 7

राष्ट्रों को “जानना होगा कि मैं यहोवा हूँ”

राष्ट्रों को “जानना होगा कि मैं यहोवा हूँ”

यहेजकेल 25:17

अध्याय किस बारे में है: यहोवा का नाम बदनाम करनेवाले राष्ट्रों के साथ इसराएल के मेल-जोल से हमें क्या सबक मिलता है

1, 2. (क) इसराएल किस तरह भेड़ियों के बीच अकेली भेड़ जैसा था? (शुरूआती तसवीर देखें।) (ख) इसराएल के लोगों और राजाओं की वजह से क्या हुआ?

 सैकड़ों सालों से इसराएल राष्ट्र खूँखार भेड़ियों के बीच एक अकेली भेड़ की तरह था। वह चारों तरफ से दुश्‍मनों से घिरा हुआ था। पूरब की सरहद पर अम्मोनी, मोआबी और एदोमी उसके लिए खतरा बने हुए थे। पश्‍चिम में पलिश्‍ती लोग सदियों से इसराएल के दुश्‍मन थे। उत्तर में सोर नाम का दौलतमंद और ताकतवर शहर था जो दूर-दूर के देशों का व्यापार केंद्र था। दक्षिण में मिस्र था जिस पर फिरौन की हुकूमत थी, जो वहाँ का ईश्‍वर माना जाता था।

2 जब इसराएली यहोवा पर भरोसा रखते थे, तो वह उन्हें दुश्‍मनों से बचाए रखता था। मगर इसराएल के लोग और राजा बार-बार अपने आस-पास के राष्ट्रों से मेल-जोल बढ़ाकर भ्रष्ट हो गए। ऐसा ही एक राजा था, अहाब जो इसराएल पर उस समय राज करता था जब यहूदा में यहोशापात राजा था। उसने दूसरों के बहकावे में आकर झूठी उपासना को बढ़ावा दिया। उसने सीदोनियों के राजा एतबाल की बेटी इज़ेबेल से शादी की। सोर नाम का दौलतमंद शहर एतबाल के कब्ज़े में था। इज़ेबेल ने इसराएल के कोने-कोने में बाल की उपासना करवायी और अपने पति को भी बहका दिया। अहाब ने सच्ची उपासना को इतना दूषित कर दिया जितना कि पहले कभी नहीं हुआ था।—1 राजा 16:30-33; 18:4, 19.

3, 4. (क) यहेजकेल ने अब किस बारे में भविष्यवाणी की? (ख) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

3 यहोवा ने अपने लोगों को पहले ही आगाह किया था कि उससे विश्‍वासघात करने का क्या अंजाम होगा। अब उसके सब्र का बाँध टूट चुका था। (यिर्म. 21:7, 10; यहे. 5:7-9) ईसा पूर्व 609 में बैबिलोन की सेना तीसरी बार वादा किए गए देश आयी। इससे दस साल पहले उन्होंने इस देश पर हमला किया था। इस बार उन्होंने यरूशलेम की दीवारें गिरा दीं और जिसने भी नबूकदनेस्सर से बगावत की, उसे कुचल दिया। जैसे ही घेराबंदी शुरू हुई, यहेजकेल की भविष्यवाणी की एक-एक बात पूरी हुई। इसके बाद यहेजकेल ने वादा किए गए देश के आस-पास के राष्ट्रों के बारे में भविष्यवाणी की कि उनका क्या होगा।

जिन राष्ट्रों ने यहोवा का नाम बदनाम किया, वे बुरे अंजामों से बच नहीं पाए

4 यहोवा ने यहेजकेल को बताया कि यरूशलेम के नाश पर पड़ोसी राष्ट्र खुशियाँ मनाएँगे और नाश से बचकर भागनेवालों को सताएँगे। इन राष्ट्रों ने यहोवा का नाम बदनाम किया था, उसके लोगों को सताया था और उन्हें बुरे कामों में फँसाया था। मगर अब वे अपनी करतूतों का अंजाम भुगतने से बच नहीं सकते। इसराएल ने उन राष्ट्रों के साथ जो मेल-जोल बढ़ाया, उससे हमें क्या सबक मिलता है? यहेजकेल ने उन राष्ट्रों के बारे में जो भविष्यवाणियाँ कीं, उनसे आज हमें क्या आशा मिलती है?

इसराएल के रिश्‍तेदारों ने उसे ‘नीचा दिखाया’

5, 6. अम्मोनियों का इसराएलियों से क्या नाता था?

5 अम्मोनियों, मोआबियों और एदोमियों का इसराएल के साथ खून का रिश्‍ता था। ये राष्ट्र जिन पुरखों से निकले थे, वे एक-दूसरे के रिश्‍तेदार थे और लंबे अरसे पहले साथ-साथ रहते थे। लेकिन रिश्‍तेदार होने के बावजूद इन राष्ट्रों ने इसराएलियों के साथ बुरा व्यवहार किया और उन्हें ‘नीचा दिखाया।’—यहे. 25:6.

6 अम्मोनी लोग।  वे अब्राहम के भतीजे लूत के वंशज थे जो उसकी छोटी बेटी से निकले थे। (उत्प. 19:38) उनकी भाषा इब्रानी से बहुत मिलती-जुलती थी, इसलिए इसराएली शायद उसे समझ सकते थे। इसराएली और अम्मोनी रिश्‍तेदार थे, इसलिए यहोवा ने इसराएलियों से कहा कि वे अम्मोनियों से युद्ध न करें। (व्यव. 2:19) फिर भी, अम्मोनियों ने इसराएलियों के साथ बुरा व्यवहार किया। न्यायियों के दिनों में उन्होंने मोआबी राजा एगलोन के साथ मिलकर इसराएल पर ज़ुल्म ढाए। (न्यायि. 3:12-15, 27-30) बाद में जब शाऊल राजा बना, तो अम्मोनियों ने इसराएल पर हमला कर दिया। (1 शमू. 11:1-4) फिर राजा यहोशापात के दिनों में वे इसराएल पर हमला करने के लिए फिर से मोआबी सेना के साथ मिल गए।—2 इति. 20:1, 2.

7. मोआबियों ने अपने इसराएली रिश्‍तेदारों से कैसा व्यवहार किया?

7 मोआबी लोग।  वे भी लूत के वंशज थे जो उसकी बड़ी बेटी से निकले थे। (उत्प. 19:36, 37) यहोवा ने इसराएलियों से कहा कि वे मोआबियों से लड़ाई न करें। (व्यव. 2:9) इसलिए इसराएलियों ने उन पर हमला नहीं किया, मगर मोआबी लोग उनका यह एहसान भूल गए। इसराएली उनके रिश्‍तेदार थे, फिर भी जब वे मिस्र से छूटकर वादा किए गए देश में जा रहे थे, तो मोआबियों ने उनकी मदद नहीं की। उलटा उन्हें उस देश में जाने से रोकने की कोशिश की। मोआबी राजा बालाक ने बिलाम को पैसे देकर कहा कि वह इसराएलियों को शाप दे। बिलाम ने बालाक को तरकीब बतायी कि वह कैसे इसराएलियों को फुसलाए ताकि वे नाजायज़ संबंध रखें और मूर्तिपूजा करें। (गिन. 22:1-8; 25:1-9; प्रका. 2:14) सदियों तक मोआबी लोग इसराएलियों पर अत्याचार करते रहे। ऐसा यहेजकेल के दिनों तक होता रहा।—2 राजा 24:1, 2.

8. (क) यहोवा ने क्यों कहा कि एदोमी इसराएलियों के भाई हैं? (ख) एदोमियों ने क्या किया?

8 एदोमी लोग।  वे याकूब के जुड़वाँ भाई एसाव के वंशज थे, यानी इसराएलियों के नज़दीकी रिश्‍तेदार थे। इसलिए यहोवा ने कहा कि एदोमी उनके भाई हैं। (व्यव. 2:1-5; 23:7, 8) फिर भी, जब इसराएली मिस्र से बाहर निकले तब से लेकर ईसा पूर्व 607 में यरूशलेम के नाश तक एदोमी उनका विरोध करते रहे। (गिन. 20:14, 18; यहे. 25:12) यरूशलेम के नाश के समय एदोमियों ने इसराएलियों का दुख देखकर खुशियाँ मनायीं। उन्होंने बैबिलोन के लोगों को उकसाया कि वे यरूशलेम को उजाड़ दें। उन्होंने उन इसराएलियों का रास्ता रोक लिया जो बचकर भाग रहे थे और उन्हें पकड़कर दुश्‍मनों के हाथ सौंप दिया।—भज. 137:7; ओब. 11, 14.

9, 10. (क) अम्मोनियों, मोआबियों और एदोमियों का क्या हुआ? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि उन राष्ट्रों के सब लोग इसराएलियों से नफरत नहीं करते थे?

9 यहोवा ने इन सभी राष्ट्रों से, जो इसराएल के रिश्‍तेदार थे, लेखा लिया क्योंकि उन्होंने इसराएलियों के साथ बुरा सलूक किया। उसने कहा, ‘मैं अम्मोनियों को पूरब के लोगों के हवाले कर दूँगा ताकि वे उन पर कब्ज़ा कर लें। इस तरह राष्ट्रों के बीच अम्मोनियों को फिर कभी याद नहीं किया जाएगा।’ और मोआब के बारे में यहोवा ने कहा, “मैं मोआब को सज़ा दूँगा और उन्हें जानना होगा कि मैं यहोवा हूँ।” (यहे. 25:10, 11) ये भविष्यवाणियाँ यरूशलेम के नाश के पाँच साल बाद पूरी होने लगीं। बैबिलोन के लोगों ने अम्मोन और मोआब देश पर कब्ज़ा कर लिया। एदोम देश के बारे में यहोवा ने बताया कि वह वहाँ के ‘इंसानों और मवेशियों, दोनों को काट डालेगा’ और उस देश को “उजाड़” देगा। (यहे. 25:13) जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, समय के चलते अम्मोनियों, मोआबियों और एदोमियों का वजूद मिट गया।—यिर्म. 9:25, 26; 48:42; 49:17, 18.

10 लेकिन इन दुश्‍मन राष्ट्रों के सब लोग परमेश्‍वर के लोगों से नफरत नहीं करते थे। जैसे, सेलेक नाम का अम्मोनी आदमी और यित्मा नाम का मोआबी आदमी। ये दाविद के वीर योद्धाओं में से थे। (1 इति. 11:26, 39, 46; 12:1) और मोआबी रूत यहोवा की उपासक बन गयी थी।—रूत 1:4, 16, 17.

अपने स्तरों से ज़रा-भी समझौता मत कीजिए

11. इसराएलियों की गलती से हमें क्या सबक मिलता है?

11 इसराएलियों ने उन राष्ट्रों से मेल-जोल बढ़ाने की जो गलती की, उससे हमें क्या सबक  मिलता है? जब इसराएली दूसरे राष्ट्रों से दूरी बनाए रखने में लापरवाह हो गए, तो वे धीरे-धीरे उनके झूठे धार्मिक रिवाज़ों को अपनाने लगे। जैसे, वे पोर के बाल (मोआबी देवता) और अम्मोनी देवता मोलेक की पूजा करने लगे। (गिन. 25:1-3; 1 राजा 11:7) हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ हो सकता है। शायद हमारे अविश्‍वासी रिश्‍तेदार न समझ पाएँ कि हम क्यों जन्मदिन, नया साल या ईस्टर नहीं मनाते, क्रिसमस के वक्‍त एक-दूसरे को तोहफे नहीं देते और इस तरह के दूसरे रिवाज़ नहीं मनाते। वे नेक इरादे से हम पर दबाव डाल सकते हैं कि हम चाहे थोड़े समय के लिए ही सही, अपने स्तरों से समझौता कर लें। हमें सावधान रहना चाहिए कि कहीं हम उनके दबाव में न आ जाएँ। इसराएलियों का इतिहास हमें यही सिखाता है कि हमारी छोटी-सी गलती भी हमें बड़ी मुसीबत में फँसा सकती है।

12, 13. (क) कौन हमारा विरोध कर सकता है? (ख) अगर हम यहोवा के वफादार रहें, तो क्या उम्मीद कर सकते हैं?

12 अम्मोनियों, मोआबियों और एदोमियों ने इसराएल के साथ जो व्यवहार किया, उससे हमें एक और सीख मिलती है। हमारे परिवार के जो लोग सच्चाई में नहीं हैं, वे हमारा कड़ा विरोध कर सकते हैं। यीशु ने हमें आगाह किया कि हम जो संदेश सुनाते हैं, उसकी वजह से कुछ परिवारों में ‘बेटा पिता के और बेटी माँ के खिलाफ’ हो सकती है। (मत्ती 10:35, 36) यहोवा ने इसराएलियों से कहा था कि वे उन राष्ट्रों से लड़ाई न करें जो उनके रिश्‍तेदार थे। उसी तरह हम भी अविश्‍वासी रिश्‍तेदारों या परिवारवालों से झगड़ा नहीं करते। फिर भी अगर वे हमारा विरोध करें, तो हमें हैरान नहीं होना चाहिए।—2 तीमु. 3:12.

13 भले ही हमारे रिश्‍तेदार खुलकर हमारा विरोध न करें, फिर भी हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम पर यहोवा से ज़्यादा उनका असर न पड़े। ऐसा क्यों? क्योंकि हमारे दिलों में यहोवा को पहली जगह मिलनी चाहिए। (मत्ती 10:37 पढ़िए।) अगर हम यहोवा के वफादार रहें, तो हम उम्मीद कर सकते हैं कि हमारे कुछ रिश्‍तेदार हमारे साथ मिलकर शुद्ध उपासना कर सकते हैं, जैसे सेलेक, यित्मा और रूत ने की थी। (1 तीमु. 4:16) तब वे भी सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की सेवा करके खुशी पाएँगे और यहोवा उनसे प्यार करेगा और उनकी हिफाज़त करेगा।

यहोवा के दुश्‍मनों को “कड़ी-से-कड़ी सज़ा” मिली

14, 15. पलिश्‍तियों ने इसराएलियों से कैसा व्यवहार किया?

14 पलिश्‍ती लोग।  वे क्रेते द्वीप के लोग थे, मगर कनान देश में आ बसे थे। बाद में यहोवा ने अब्राहम और उसके वंशजों से वादा किया कि वह उन्हें वह देश देगा। अब्राहम और इसहाक, दोनों का पलिश्‍तियों से वास्ता पड़ा था। (उत्प. 21:29-32; 26:1) जब इसराएली वादा किए गए देश में दाखिल हुए, तब तक पलिश्‍ती लोग एक ताकतवर राष्ट्र बन चुके थे और उनके पास एक बड़ी फौज थी। वे बाल-जबूब और दागोन जैसे झूठे देवताओं को पूजते थे। (1 शमू. 5:1-4; 2 राजा 1:2, 3) कभी-कभी इसराएली भी उनके साथ मिलकर उन देवताओं को पूजते थे।—न्यायि. 10:6.

15 इसराएली यहोवा के वफादार नहीं रहे, इसलिए यहोवा ने कई साल तक पलिश्‍तियों को उन पर अत्याचार करने दिया। (न्यायि. 10:7, 8; यहे. 25:15) पलिश्‍तियों ने इसराएलियों पर कई बंदिशें लगा दीं * और उनमें से कइयों को मार डाला। (1 शमू. 4:10) लेकिन जब भी इसराएली पश्‍चाताप करके यहोवा के पास लौट आते, वह उन्हें बचाता था। उसने अपने लोगों को छुटकारा दिलाने के लिए शिमशोन, शाऊल और दाविद जैसे आदमियों को ठहराया। (न्यायि. 13:5, 24; 1 शमू. 9:15-17; 18:6, 7) आगे चलकर बैबिलोनियों ने और फिर यूनानियों ने पलिश्‍तियों के देश पर कब्ज़ा कर लिया। इस तरह उन्हें “कड़ी-से-कड़ी सज़ा” मिली, ठीक जैसे यहेजकेल ने भविष्यवाणी की थी।—यहे. 25:15-17.

16, 17. पलिश्‍तियों ने इसराएलियों के साथ जो सलूक किया, उससे हमें क्या सीख मिलती है?

16 पलिश्‍तियों ने इसराएलियों के साथ जो सलूक किया, उससे हमें क्या सीख  मिलती है? हमारे ज़माने में कुछ ताकतवर राष्ट्रों ने यहोवा के लोगों पर धौंस जमायी है। हालाँकि हमने इसराएलियों की तरह यहोवा से विश्‍वासघात नहीं किया और उसके वफादार रहे, फिर भी सच्ची उपासना के दुश्‍मन कभी-कभी हम पर जीत हासिल करते हुए नज़र आए। मिसाल के लिए, 20वीं सदी की शुरूआत में अमरीकी सरकार ने हमारे संगठन में अगुवाई करनेवाले भाइयों को लंबी कैद की सज़ा सुनायी ताकि हमारा काम बंद हो जाए। दूसरे विश्‍व-युद्ध के दौरान जर्मनी के नात्ज़ियों ने साक्षियों का नामो-निशान मिटा देने की कोशिश की। उन्होंने हज़ारों भाई-बहनों को जेल में डाल दिया और सैकड़ों को मार डाला। उस युद्ध के बाद सोवियत संघ ने कई साल तक साक्षियों पर ज़ुल्म किए। हमारे कई भाइयों को मज़दूरों के शिविर में डाल दिया गया, तो कइयों को दूर-दराज़ के इलाकों में भेज दिया गया।

17 हो सकता है दुनिया की सरकारें आगे भी हमारे प्रचार काम पर पाबंदी लगाएँ, हममें से कुछ लोगों को जेल में डाल दें और कुछ को जान से मार डालें। क्या इन मुश्‍किलों के बारे में सोचकर हमें डरना चाहिए? क्या परमेश्‍वर पर हमारा विश्‍वास कमज़ोर पड़ जाना चाहिए? बिलकुल नहीं! यहोवा अपने वफादार सेवकों की हिफाज़त करेगा। (मत्ती 10:28-31 पढ़िए।) हमने देखा है कि कुछ ताकतवर और बेरहम सरकारों का नामो-निशान मिट गया, लेकिन यहोवा के सेवकों की गिनती लगातार बढ़ती जा रही है। जल्द ही, सभी इंसानी सरकारों का वही हाल होगा जो पलिश्‍तियों का हुआ था। उन्हें जानना पड़ेगा कि यहोवा कौन है और पलिश्‍तियों की तरह उनका वजूद भी हमेशा के लिए मिट जाएगा!

“अपार दौलत” ने उसे नहीं बचाया

18. सोर का व्यापार कितनी दूर तक फैला था?

18 सोर।  * पुराने ज़माने में यह शहर व्यापार का एक फलता-फूलता केंद्र था। उसके जहाज़ पश्‍चिम में भूमध्य सागर के उस पार के कई देशों से माल लाते ले जाते थे। पूरब में ज़मीन के रास्ते से भी दूर-दूर तक कई साम्राज्यों के साथ वह व्यापार करता था। सदियों से उसने अपने यहाँ दुनिया के कोने-कोने से आनेवाली दौलत का अंबार लगा रखा था। सोर के व्यापारी और सौदागर इतने रईस हो गए थे कि वे खुद को हाकिम समझते थे।—यशा. 23:8.

19, 20. सोर और गिबोन के लोगों में क्या फर्क था?

19 राजा दाविद और सुलैमान के राज में इसराएल और सोर के बीच काफी मेल-जोल था। सोर ने दाविद का महल बनाने और बाद में सुलैमान का मंदिर बनाने के लिए इसराएल को काफी सामग्री और कारीगर भेजे थे। (2 इति. 2:1, 3, 7-16) सोर ने इसराएल के इतिहास का वह दौर देखा जब इसराएली यहोवा के वफादार थे और यहोवा की आशीष उन पर थी। (1 राजा 3:10-12; 10:4-9) तो ज़रा सोचिए कि सोर के हज़ारों लोगों के पास कितना बढ़िया मौका था। वे चाहते तो शुद्ध उपासना के बारे में और यहोवा के बारे में जान सकते थे और खुद अपनी आँखों से देख सकते थे कि सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करने से कैसी आशीषें मिलती हैं।

20 सोर के लोगों ने यह मौका गँवा दिया और वे दौलत कमाने की धुन में ही लगे रहे। वे कनान देश के गिबोनियों की तरह नहीं थे जो यहोवा के महान कामों के बारे में सिर्फ सुनकर ही उसके सेवक बने। (यहो. 9:2, 3, 22–10:2) यही नहीं, सोर के लोगों ने इसराएलियों का विरोध किया और उनमें से कुछ लोगों को गुलामी करने के लिए बेच दिया।—भज. 83:2, 7; योए. 3:4, 6; आमो. 1:9.

हम यह कभी न सोचें कि दौलत एक दीवार की तरह हमारी हिफाज़त करेगी

21, 22. सोर का क्या हुआ और क्यों?

21 यहोवा ने यहेजकेल के ज़रिए उन विरोधियों से कहा, “हे सोर, मैं तेरे खिलाफ हूँ। मैं बहुत-से राष्ट्रों को तेरे खिलाफ ऐसे उठाऊँगा, जैसे समुंदर अपनी लहरें उठाता है। वे सोर की दीवारें ढा देंगे और उसकी मीनारें गिरा देंगे। मैं उसकी मिट्टी खुरच-खुरचकर उसे चिकनी, खुली चट्टान बना दूँगा।” (यहे. 26:1-5) सोर के लोग हिफाज़त के लिए अपनी दौलत पर भरोसा करते थे। वे इस गलतफहमी में थे कि उनकी दौलत उन्हें हर खतरे से बचाएगी, ठीक जैसे 150 फुट ऊँची दीवारें उनके शहर की हिफाज़त करती थीं। काश, उन्होंने सुलैमान की इस बात पर ध्यान दिया होता, “रईस की दौलत उसके लिए किलेबंद शहर है, मन-ही-मन वह सोचता है यह शहरपनाह उसे बचाएगी।”—नीति. 18:11.

22 जब बैबिलोनियों ने और फिर यूनानियों ने सोर पर हमला किया, तो वहाँ के लोगों को एहसास हुआ कि उन्होंने हिफाज़त के लिए शहर की दौलत और दीवारों पर उम्मीद लगाकर कितनी बड़ी भूल की। बैबिलोन ने यरूशलेम का नाश करने के बाद 13 साल तक सोर की घेराबंदी की। (यहे. 29:17, 18) बाद में ईसा पूर्व 332 में सिकंदर महान ने यहेजकेल की भविष्यवाणियों की एक खास बात पूरी की। * उसके सैनिकों ने मुख्य-भूमि पर बसे शहर सोर के मलबे यानी पत्थर, लकड़ी और मिट्टी से समुंदर पर रास्ता तैयार किया और वे उस रास्ते से द्वीप पर बसे शहर तक पहुँच गए। (यहे. 26:4, 12) वे उसकी दीवारों को तोड़कर शहर में घुस गए, उसे लूट लिया और हज़ारों लोगों और सैनिकों को मार डाला। इसके अलावा उन्होंने हज़ारों लोगों को गुलाम बनाकर बेच दिया। सोर के लोगों ने गलती करके सबक सीखा कि “दौलत” किसी की हिफाज़त नहीं कर सकती और तब जाकर उन्हें यह भी जानना पड़ा कि यहोवा कौन है।—यहे. 27:33, 34.

सोर शहर बहुत मज़बूत नज़र आता था, मगर जैसे यहेजकेल ने कहा था, उसका नाश हो गया (पैराग्राफ 22 देखें)

23. सोर के लोगों से हमें क्या सबक मिलता है?

23 सोर के लोगों से हमें क्या सबक  मिलता है? यही कि हमें कभी-भी धन-दौलत पर भरोसा नहीं करना चाहिए मानो वह एक दीवार की तरह हमारी हिफाज़त करेगी, क्योंकि ‘पैसा धोखा’ दे सकता है। (मत्ती 13:22) हम “परमेश्‍वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी” नहीं कर सकते। (मत्ती 6:24 पढ़िए।) जो लोग पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते हैं, सिर्फ वे ही सही मायनों में सुरक्षित हैं। (मत्ती 6:31-33; यूह. 10:27-29) सोर के बारे में की गयी भविष्यवाणियों की तरह इस दुनिया के अंत के बारे में की गयी भविष्यवाणियों की एक-एक बात पूरी होगी। जब यहोवा दुनिया की स्वार्थी और लालची व्यापार व्यवस्था का नाश करेगा, तो उस वक्‍त भी दौलत पर भरोसा रखनेवालों को जानना पड़ेगा कि यहोवा कौन है।

दिखने में ताकतवर मगर असल में “एक सूखा तिनका”

24-26. (क) यहोवा ने मिस्र को “एक सूखा तिनका” क्यों कहा? (ख) सिदकियाह ने कैसे यहोवा की आज्ञा तोड़ दी? (ग) अंजाम क्या हुआ?

24 मिस्र।  यह एक ऐसी राजनैतिक शक्‍ति थी जिसका सदियों से वादा किए गए देश पर काफी असर रहा। यूसुफ के ज़माने से पहले से लेकर यरूशलेम पर बैबिलोन के हमले तक ऐसा चलता रहा। मिस्र की जड़ें काफी पुरानी थीं। इसलिए वह एक विशाल पेड़ की तरह बहुत मज़बूत नज़र आता था, मगर यहोवा की तुलना में वह ‘बस एक सूखे तिनके’ की तरह कमज़ोर था।—यहे. 29:6.

25 मगर दुष्ट राजा सिदकियाह ने इस बात को नहीं समझा। यहोवा ने भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह के ज़रिए उससे कहा कि वह खुद को बैबिलोन के राजा के अधीन कर ले। (यिर्म. 27:12) सिदकियाह ने कहा कि वह ऐसा ही करेगा और उसने यहोवा के नाम से शपथ भी खायी कि वह नबूकदनेस्सर से बगावत नहीं करेगा। लेकिन बाद में उसने यहोवा की हिदायत नहीं मानी। उसने अपनी शपथ तोड़ दी और बैबिलोन से लड़ने के लिए मिस्र से मदद माँगी। (2 इति. 36:13; यहे. 17:12-20) मगर इसराएलियों ने मिस्र की राजनैतिक शक्‍ति पर भरोसा करके खुद का ही नुकसान कर लिया। (यहे. 29:7) मिस्र दिखने में “बड़ा और भयानक जीव” जैसा लगता था मानो उसे कोई काबू में नहीं कर सकता। (यहे. 29:3, 4) लेकिन यहोवा ने कहा कि वह मिस्र के जबड़ों में काँटे डालकर उसे ऐसे पकड़ेगा जैसे नील नदी में मगरमच्छों को पकड़ा जाता है और उसका नाश कर देगा। उसने ऐसा तब किया जब उसने बैबिलोन की सेना को मिस्र पर जीत हासिल करने भेजा।—यहे. 29:9-12, 19.

26 विश्‍वासघाती सिदकियाह का क्या हुआ? उसने यहोवा की बात नहीं मानी थी, इसलिए यहेजकेल ने भविष्यवाणी की कि उस “दुष्ट प्रधान” से उसका ताज छीन लिया जाएगा और उसके राज का अंत हो जाएगा। लेकिन यहेजकेल की भविष्यवाणी में एक आशा भी दी गयी थी। (यहे. 21:25-27) यहोवा ने यहेजकेल के ज़रिए बताया कि भविष्य में दाविद के शाही खानदान से एक ऐसा राजा आएगा जिसके पास राजगद्दी पाने का “कानूनी हक” होगा। इस किताब के अगले अध्याय में हम जानेंगे कि कौन वह राजा साबित हुआ।

27. इसराएल ने मिस्र पर भरोसा रखने की जो गलती की, उससे हमें क्या सबक मिलता है?

27 इसराएल ने मिस्र पर भरोसा करने की जो गलती की, उससे हम क्या सबक  सीखते हैं? हमें राजनैतिक शक्‍तियों पर भरोसा नहीं करना चाहिए और यह नहीं सोचना चाहिए कि वे हमारी हिफाज़त करेंगी। हमारी सोच पर भी दुनिया का असर नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम किसी भी तरह से इस “दुनिया के नहीं” होना चाहते। (यूह. 15:19; याकू. 4:4) भले ही राजनैतिक शक्‍तियाँ बहुत ताकतवर नज़र आएँ मगर वे भी प्राचीन मिस्र की तरह बस एक सूखा तिनका हैं। पूरे विश्‍व पर हुकूमत करनेवाले परमेश्‍वर यहोवा पर भरोसा रखने के बजाय नश्‍वर इंसानों पर भरोसा रखना कितनी बड़ी बेवकूफी होगी।—भजन 146:3-6 पढ़िए।

घर की चारदीवारी में भी हमें राजनीति में किसी का पक्ष नहीं लेना चाहिए (पैराग्राफ 27 देखें)

राष्ट्रों को “जानना होगा”

28-30. जिस तरह राष्ट्रों को “जानना होगा” कि यहोवा कौन है और जिस तरह हम यहोवा को जानते हैं, उसमें क्या अंतर है?

28 यहेजकेल किताब में यहोवा ने कई बार कहा, राष्ट्रों को “जानना होगा  कि मैं यहोवा हूँ।” (यहे. 25:17) यह बात पुराने ज़माने में कई बार सच साबित हुई। जब यहोवा ने अपने लोगों के दुश्‍मनों को सज़ा दी, तो उन्हें जानना पड़ा कि यहोवा कौन है। हमारे दिनों में यह बात और भी बड़े पैमाने पर पूरी होनेवाली है। वह कैसे?

29 इसराएलियों की तरह आज हम भी चारों तरफ से खूँखार राष्ट्रों से घिरे हुए हैं, जिन्हें लगता है कि हम एक अकेली भेड़ की तरह बेसहारा हैं। (यहे. 38:10-13) बहुत जल्द ये राष्ट्र परमेश्‍वर के लोगों को मिटाने के लिए उन पर ज़ोरदार हमला करेंगे। इस बारे में हम अध्याय 17 और 18 में और जानेंगे। लेकिन जल्द ही वे इस सच्चाई से रू-ब-रू होंगे कि असल में कौन ताकतवर है। जब हर-मगिदोन में यहोवा उनका नाश करेगा, तब उन्हें जानना होगा कि यहोवा कौन है और मानना पड़ेगा कि उसी को पूरे विश्‍व पर राज करने का अधिकार है।—प्रका. 16:16; 19:17-21.

30 लेकिन जहाँ तक हमारी बात है, यहोवा हमें महफूज़ रखेगा और हमें आशीष देगा। वह इसलिए क्योंकि हम अभी से यहोवा को जान गए हैं और उस पर भरोसा करते हैं, उसकी आज्ञा मानते हैं और उसकी शुद्ध उपासना करते हैं।—यहेजकेल 28:26 पढ़िए।

^ पैरा. 15 मिसाल के लिए पलिश्‍तियों ने इसराएल में धातु के कारीगरों पर रोक लगा दी थी। इसराएलियों को खेती-बाड़ी के औज़ारों पर धार लगवाने के लिए पलिश्‍तियों के यहाँ जाना होता था। धार लगवाने की कीमत कई दिनों की मज़दूरी के बराबर थी।—1 शमू. 13:19-22.

^ पैरा. 18 प्राचीन सोर शहर करमेल पहाड़ से 50 कि.मी. दूर उत्तर में एक द्वीप था। शायद यह शहर समुद्र-तट से कुछ दूरी पर उठे हुए एक चट्टान पर बसा था। सोर के लोगों ने बाद में अपने शहर की सरहदें बढ़ाने के लिए मुख्य-भूमि पर एक और शहर बनाया। इब्रानी में सोर का नाम सुर है, जिसका मतलब “चट्टान” है।

^ पैरा. 22 यशायाह, यिर्मयाह, योएल, आमोस और जकरयाह ने भी सोर की बरबादी की भविष्यवाणियाँ की थीं। उनकी भविष्यवाणियों की एक-एक बात पूरी हुई।—यशा. 23:1-8; यिर्म. 25:15, 22, 27; योए. 3:4; आमो. 1:10; जक. 9:3, 4.