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क्या यहोवा की आशीषें आपको जा लेंगी?

क्या यहोवा की आशीषें आपको जा लेंगी?

क्या यहोवा की आशीषें आपको जा लेंगी?

“यदि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात हमेशा सुनता रहे तो ये सारी आशीषें तुझ पर आ पड़ेंगी और तुझ को जा लेंगी।”व्यवस्थाविवरण 28:2, NW.

1. इस्राएलियों को आशीषें मिलतीं या शाप, यह किस बात पर निर्भर था?

 वीराने में भटकनेवाले इस्राएलियों का 40 साल का सफर खत्म होने पर था। वे मोआब की तराई में डेरा डाले हुए थे और वादा किया हुआ देश उनके सामने ही था। तभी मूसा ने व्यवस्थाविवरण की किताब लिखी, जिसमें बहुत सारी आशीषों और शापों का ज़िक्र मिलता है। अगर इस्राएली ‘हमेशा यहोवा की बात सुनते’ यानी उसकी आज्ञाएँ मानते रहते तो उन्हें आशीषें ‘जा लेतीं।’ यहोवा ने उनको अपनी “निज धन-सम्पत्ति” समझकर प्यार किया और वह उनकी खातिर अपनी शक्‍ति दिखाना चाहता था। लेकिन अगर वे यहोवा की सुनना छोड़ देते तो उन पर शाप पड़ना तय था।—व्यवस्थाविवरण 8:10-14; 26:18; 28:2,15.

2. व्यवस्थाविवरण 28:2 में जिन इब्रानी क्रियाओं का अनुवाद “हमेशा सुनता रहे” और “जा लेंगी” किया गया है, उनमें क्या अर्थ छिपा है?

2 व्यवस्थाविवरण 28:2 में जिस इब्रानी क्रिया का अनुवाद “हमेशा सुनता रहे” किया गया है, उसका मतलब ऐसा काम है जो लगातार किया जाता है। इससे ज़ाहिर होता है कि यहोवा के लोगों के लिए कभी-कभार उसकी बात सुन लेना काफी नहीं है; बल्कि उन्हें हमेशा, हर बात में उसकी सुननी चाहिए। सिर्फ तभी परमेश्‍वर की आशीषें उनको जा लेंगी। जिस इब्रानी क्रिया का अनुवाद “जा लेंगी” किया गया है, उसका कई बार यह मतलब बताया जाता है: “दौड़कर पकड़ लेना” या “पहुँच जाना।”

3. हम कैसे यहोशू की तरह हो सकते हैं और यह क्यों बेहद ज़रूरी है?

3 इस्राएलियों के अगुवे, यहोशू ने यहोवा की बात सुनने का चुनाव किया इसलिए यहोवा ने उसे आशीषें दीं। यहोशू ने लोगों से कहा: “आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे . . . मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा नित करूंगा।” इस पर लोगों ने कहा: “यहोवा को त्यागकर दूसरे देवताओं की सेवा करनी हम से दूर रहे।” (यहोशू 24:15,16) यहोशू का नज़रिया वाकई बढ़िया था, इसीलिए उसे अपनी पीढ़ी के उन चंद लोगों में से होने का मौका मिला जिन्होंने वादा किए गए देश में प्रवेश किया था। आज हम वादा किए गए एक ऐसे देश की दहलीज़ पर खड़े हैं जो इस्राएलियों के उस देश से कहीं बढ़कर होगा। जल्द ही यह धरती एक फिरदौस में बदल दी जाएगी और तब परमेश्‍वर का अनुग्रह पाए हुए लोगों को ऐसी आशीषें मिलेंगी जो यहोशू के दिनों में मिली आशीषों से लाख गुना बेहतर होंगी। क्या ये आशीषें आपको भी जा लेंगी? ज़रूर, लेकिन इसके लिए आपको लगातार यहोवा की सुनते रहना होगा। इस मामले में अपना इरादा पक्का करने के लिए, आइए हम प्राचीन इस्राएल देश के इतिहास पर और कुछ ऐसे लोगों के उदाहरण पर गौर करें जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।—रोमियों 15:4.

आशीष या शाप?

4. सुलैमान की प्रार्थना सुनकर परमेश्‍वर ने उसे क्या दिया और ऐसी आशीषों के बारे में हमें कैसा महसूस करना चाहिए?

4 राजा सुलैमान के शासन के दौरान ज़्यादातर समय इस्राएलियों को यहोवा की ओर से बेमिसाल आशीषें मिलीं। वे हर खतरे से सुरक्षित और पूरी तरह समृद्ध थे। (1 राजा 4:25) हालाँकि सुलैमान ने खुद कभी परमेश्‍वर से धन-दौलत नहीं माँगी थी, मगर फिर भी परमेश्‍वर ने उसे इतनी दौलत दी जिसके लिए आज तक उसका नाम लिया जाता है। जब सुलैमान जवान था और उसे कोई तजुर्बा नहीं था, तब उसने परमेश्‍वर से एक आज्ञाकारी मन देने की बिनती की। यहोवा ने उसकी यह बिनती सुनी और उसे बुद्धि और समझ की आशीष दी। इसीलिए सुलैमान भले-बुरे में भेद करने और लोगों का सही-सही न्याय करने की काबिलीयत हासिल कर सका। हालाँकि यहोवा ने सुलैमान को दौलत और शोहरत भी दी थी, मगर उसने आध्यात्मिक धन को ही सबसे ज़्यादा अहमियत दी। (1 राजा 3:9-13) आज हमारे पास धन-दौलत हो या नहीं, लेकिन अगर हम पर यहोवा का अनुग्रह है और हम आध्यात्मिक तरीके से धनी हैं, तो हम सचमुच एहसानमंद हो सकते हैं!

5. जब इस्राएल और यहूदा के लोगों ने यहोवा की बात सुनना छोड़ दिया तो अंजाम क्या हुआ?

5 यहोवा ने इस्राएलियों को आशीषें दी थीं, मगर वे इन आशीषों के लिए एहसानमंद नहीं थे। उन्होंने उसकी बात मानना छोड़ दिया था, इसलिए बताए गए शाप उन पर आ पड़े। अंजाम यह हुआ कि दुश्‍मनों ने इस्राएल और यहूदा की जातियों को परास्त कर दिया और उन्हें बंदी बनाकर ले गए। (व्यवस्थाविवरण 28:36; 2 राजा 17:22,23; 2 इतिहास 36:17-20) क्या ये तकलीफें झेलते वक्‍त परमेश्‍वर के लोगों ने यह सबक सीखा कि उसकी आशीषें सिर्फ ऐसे लोगों को जा लेती हैं जो हमेशा उसकी बात सुनते हैं? सामान्य युग पूर्व 537 में जो बचे हुए यहूदी अपने देश लौटे, उन्हें यह दिखाने का मौका मिला कि क्या उन्होंने “बुद्धि से भरा मन” पाया है और क्या उन्होंने समझ लिया है कि हमेशा परमेश्‍वर की बात सुनना कितना ज़रूरी है।—भजन 90:12, NHT.

6. (क) यहोवा ने हाग्गै और जकर्याह को अपने लोगों के पास क्यों भेजा? (ख) हाग्गै के ज़रिए दिए गए परमेश्‍वर के संदेश में कौन-सा सिद्धांत समझाया गया?

6 अपने देश लौटे यहूदियों ने यरूशलेम में एक वेदी खड़ी की और मंदिर बनाने का काम शुरू कर दिया। लेकिन जब दुश्‍मन उनके काम का कड़ा विरोध करने लगे, तो उनके हाथ ढीले पड़ गए और उन्होंने काम करना बंद कर दिया। (एज्रा 3:1-3,10; 4:1-4,23,24) इतना ही नहीं, वे ज़िंदगी के ऐशो-आराम में डूब गए। इसलिए परमेश्‍वर ने भविष्यवक्‍ता हाग्गै और जकर्याह को भेजा कि वे उसके लोगों में सच्ची उपासना के लिए दोबारा जोश पैदा करें। हाग्गै के ज़रिए यहोवा ने उनसे कहा: ‘क्या तुम्हारे लिये अपने छतवाले घरों में रहने का समय है, जब कि [उपासना का] यह भवन उजाड़ पड़ा है? अपने अपने चालचलन पर ध्यान करो। तुम ने बहुत बोया परन्तु थोड़ा काटा; तुम खाते हो, परन्तु पेट नहीं भरता; और जो मज़दूरी कमाता है, वह अपनी मज़दूरी की कमाई को छेदवाली थैली में रखता है।’ (हाग्गै 1:4-6) आध्यात्मिक बातों को नज़रअंदाज़ करके धन-दौलत के पीछे भागने से यहोवा की आशीष नहीं मिलती।—लूका 12:15-21.

7. यहोवा ने यहूदियों से ऐसा क्यों कहा: “अपने अपने चालचलन पर सोचो”?

7 यहूदी लोग रोज़मर्रा की चिंताओं में इतना डूब गए थे कि वे यह भी भूल गए कि वर्षा और अच्छी फसल परमेश्‍वर की आशीष से मिलती हैं और ये आशीषें उनको तभी जा लेंगी अगर वे हमेशा उसकी आज्ञाएँ मानेंगे, फिर चाहे उनका विरोध भी क्यों न किया जाए। (हाग्गै 1:9-11) इसलिए उनको यह कहकर उकसाना बिलकुल सही था: “अपने अपने चालचलन पर सोचो”! (हाग्गै 1:7) दूसरे शब्दों में यहोवा उनसे कह रहा था: ‘ज़रा सोचो! यह समझने की कोशिश करो कि खेतों में तुम्हारी मेहनत बेकार जाने और मेरी उपासना के भवन की उजड़ी हालत के बीच क्या ताल्लुक है।’ यहोवा की प्रेरणा से उसके भविष्यवक्‍ताओं ने जो वचन सुनाए, उनका आखिरकार लोगों के दिल पर असर पड़ा। इसलिए उन्होंने मंदिर का काम दोबारा शुरू किया और सा.यु.पू. 515 में उसे पूरा कर दिया।

8. यहोवा ने मलाकी के दिनों में यहूदियों को क्या करने के लिए कहा और क्यों?

8 मगर भविष्यवक्‍ता मलाकी के दिनों में यहूदी, एक बार फिर आध्यात्मिक बातों में ढीले पड़ गए। यहाँ तक कि वे परमेश्‍वर को ऐसे बलिदान चढ़ाने लगे जो उसे मंज़ूर नहीं थे। (मलाकी 1:6-8) इसलिए यहोवा ने उनसे कहा कि वे अपनी उपज का दशमांस उसके भंडार में लाकर उसे परखकर देखें कि वह आकाश के झरोखे खोलकर उन पर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता है या नहीं। (मलाकी 3:10) वे यहूदी कितने मूर्ख थे क्योंकि वे उन्हीं चीज़ों के लिए खून-पसीना एक करते थे जो उन्हें यहोवा बहुतायत में देने के लिए तैयार था। बस उन्हें हमेशा उसकी बात मानकर चलना था!—2 इतिहास 31:10.

9. बाइबल में बताए गए किन तीन लोगों की ज़िंदगी पर अब हम गौर करेंगे?

9 बाइबल में इस्राएल देश के इतिहास के अलावा, ऐसे बहुत-से स्त्री-पुरुषों का उदाहरण भी दर्ज़ है जिन्हें यहोवा की बात हमेशा सुनने की वजह से आशीषें मिली थीं या ना सुनने के कारण शाप मिला था। आइए ऐसे तीन लोगों के उदाहरण पर गौर करें और देखें कि हम उनसे क्या सीख सकते हैं। वे हैं बोअज़, नाबाल और हन्‍ना। इस सिलसिले में अगर आप चाहे तो रूत की पूरी किताब, साथ ही 1 शमूएल 1:1–2:21 और 1 शमूएल 25:2-42 पढ़ सकते हैं।

बोअज़ ने परमेश्‍वर की बात सुनी

10. बोअज़ और नाबाल में कौन-सी बातें मिलती-जुलती थीं?

10 हालाँकि बोअज़ और नाबाल अलग-अलग समय पर जीये थे मगर उन दोनों में कुछ बातें मिलती-जुलती थीं। मिसाल के लिए, ये दोनों पुरुष यहूदा देश के निवासी थे। वे दोनों बहुत बड़े ज़मीनदार थे और उनको ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने और उन्हें प्यार दिखाने का एक खास मौका मिला था। बस, इनके सिवा उनमें और कोई समानता नहीं थी।

11. बोअज़ ने यह कैसे दिखाया कि वह हमेशा यहोवा की बात सुननेवाला है?

11 बोअज़, इस्राएली न्यायियों के ज़माने का रहनेवाला था। वह हमेशा दूसरों के साथ आदर से पेश आता था। उसके खेत में काम करनेवाले मज़दूर उसकी बहुत इज़्ज़त करते थे। (रूत 2:4) व्यवस्था का पालन करते हुए बोअज़ हमेशा इस बात का ध्यान रखता था कि उसके खेत में गिरी हुई बालें गरीब और बेसहारा लोगों के लिए छोड़ दी जाएँ। (लैव्यव्यवस्था 19:9,10) जब उसे रूत और नाओमी के बारे में पता चला और उसने देखा कि किस तरह रूत मेहनत करके अपनी बूढ़ी सास की देखभाल करती है, तो उसने क्या किया? उसने रूत का खास लिहाज़ किया और अपने आदमियों को आज्ञा दी कि वे उसे खेत की गिरी हुई बालें बटोरने दिया करें। बोअज़ ने अपनी बातों से और प्यार से मदद करने के ज़रिए ज़ाहिर किया कि वह आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवाला और यहोवा की बात सुननेवाला पुरुष है। इसलिए उसने यहोवा का अनुग्रह और उसकी आशीष पायी।—लैव्यव्यवस्था 19:18; रूत 2:5-16.

12, 13. (क) बोअज़ ने किस तरह दिखाया कि वह छुड़ाने के बारे में यहोवा के नियम की गहरी कदर करता है? (ख) परमेश्‍वर की किन आशीषों ने बोअज़ को जा लिया?

12 बोअज़ यहोवा की सुनता रहा, यह कहने का सबसे बड़ा सबूत यह है कि उसने छुड़ाने के सिलसिले में यहोवा के नियम का निःस्वार्थ तरीके से पालन किया। नाओमी का मरहूम पति, एलीमेलेक बोअज़ का रिश्‍तेदार था। बोअज़ ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि एलीमेलेक की विरासत उसी के परिवार को मिले। इस्राएलियों में “भाई का धर्म” यानी देवर-विवाह का इंतज़ाम था जिसके ज़रिए एक विधवा को अपने मरहूम पति के किसी नज़दीकी रिश्‍तेदार से शादी करनी थी ताकि उस वंश को आगे बढ़ानेवाली कोई संतान पैदा हो सके। (व्यवस्थाविवरण 25:5-10; लैव्यव्यवस्था 25:47-49) नाओमी के बदले रूत ने खुद को शादी के लिए पेश किया क्योंकि नाओमी बूढ़ी हो चुकी थी और उससे संतान नहीं हो सकती थी। मगर जब एलीमेलेक के एक नज़दीकी रिश्‍तेदार ने नाओमी की मदद करने से इंकार कर दिया, तो बोअज़ ने रूत से शादी की। फिर बोअज़ और रूत का एक बेटा हुआ जिसका नाम ओबेद रखा गया। उसे नाओमी की संतान और एलीमेलेक का कानूनी वारिस समझा गया।—रूत 2:19,20; 4:1,6,9,13-16.

13 बोअज़ ने बिना किसी स्वार्थ के परमेश्‍वर की व्यवस्था का पालन किया था, इसीलिए ढेरों आशीषों ने उसे जा लिया। उसे और रूत को अपने बेटे ओबेद के ज़रिए यीशु मसीह के पूर्वज होने का खास सम्मान मिला। (रूत 2:12; 4:13,21,22; मत्ती 1:1,5,6) बोअज़ ने जिस तरह बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद की उससे हम सीखते हैं कि यहोवा की आशीषें ऐसे लोगों को जा लेती हैं जो दूसरों के लिए प्यार दिखाते और परमेश्‍वर के नियमों के मुताबिक काम करते हैं।

नाबाल ने नहीं सुनी

14. नाबाल किस तरह का इंसान था?

14 नाबाल का स्वभाव बोअज़ से बिलकुल उलटा था। उसने यहोवा की बात नहीं सुनी। उसने यहोवा का यह नियम तोड़ दिया: “एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखना।” (लैव्यव्यवस्था 19:18) नाबाल आध्यात्मिक बातों पर मन लगानेवाला नहीं था; वह “कठोर, और बुरे बुरे काम करनेवाला” था। यहाँ तक कि वह अपने सेवकों की नज़रों में “लुच्चा” (NHT) ठहरा। उसको नाबाल नाम दिया जाना बिलकुल सही था क्योंकि इस नाम का मतलब है, “नासमझ” या “मूर्ख।” (1 शमूएल 25:3,17,25) जब उसे एक ज़रूरतमंद इंसान यानी यहोवा के अभिषिक्‍त, दाऊद की मदद करने का मौका मिला, तब उसने क्या किया?—1 शमूएल 16:13.

15. नाबाल ने दाऊद के साथ कैसा सलूक किया, मगर इस मामले में किस तरह अबीगैल का नज़रिया उसके पति से अलग था?

15 जब दाऊद और उसके आदमी, नाबाल के जानवरों के झुंड के पास डेरा डाले हुए थे, तब उन्होंने लुटेरों से उस झुंड की रक्षा की थी और बदले में कोई मज़दूरी भी नहीं माँगी। नाबाल के एक चरवाहे ने कहा कि “वे रात दिन हमारी आड़ बने रहे।” लेकिन जब दाऊद के दूतों ने जाकर नाबाल से कुछ भोजन माँगा तो वह उन पर ‘बरस पड़ा’ (नयी हिन्दी बाइबिल) और उन्हें खाली हाथ भेज दिया। (1 शमूएल 25:2-16) इस पर दाऊद इतना आग-बबूला हो गया कि वह नाबाल और उसके आदमियों को मार डालने के लिए निकल पड़ा। तभी नाबाल की पत्नी, अबीगैल खाने-पीने की चीज़ें लेकर तुरंत दाऊद के पास गयी। अबीगैल के इस तरह कदम उठाने से बहुत सारे लोगों की जान बच गयी और दाऊद भी खूनी बनने से बच गया। मगर नाबाल के लालच और उसकी कठोरता की हद हो गयी थी। इसलिए दस दिन बाद “यहोवा ने नाबाल को ऐसा मारा, कि वह मर गया।”—1 शमूएल 25:18-38.

16. हम किस तरह बोअज़ की मिसाल पर चल सकते हैं और नाबाल का रवैया अपनाने से दूर रह सकते हैं?

16 बोअज़ और नाबाल के स्वभाव में कितना बड़ा फर्क था! हम नाबाल की तरह कठोर और स्वार्थी न बनें बल्कि बोअज़ की मिसाल पर चलते हुए बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करें। (इब्रानियों 13:16) ऐसा करने के लिए हमें प्रेरित पौलुस की इस सलाह पर चलना होगा: “जहां तक अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्‍वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों 6:10) आज यीशु की ‘अन्य भेड़ों’ यानी पृथ्वी पर जीने की आशा रखनेवाले मसीहियों को 1,44,000 के उन शेष अभिषिक्‍त जनों की मदद करने का मौका मिला है जिन्हें स्वर्ग में अमर जीवन मिलेगा। (यूहन्‍ना 10:16, NW; 1 कुरिन्थियों 15:50-53; प्रकाशितवाक्य 14:1,4) अभिषिक्‍तों को दिया जानेवाला यह प्यार और मदद यीशु की नज़रों में खुद उसे दिए जाने के बराबर है। और इन अच्छे कामों के लिए यहोवा उन्हें ढेरों आशीषें देगा।—मत्ती 25:34-40; 1 यूहन्‍ना 3:18.

हन्‍ना की परीक्षाएँ और आशीषें

17. हन्‍ना के सामने कौन-सी परीक्षाएँ खड़ी हुईं और उसने कैसा नज़रिया दिखाया?

17 परमेश्‍वर की भक्‍ति करनेवाली स्त्री, हन्‍ना को भी यहोवा की आशीषों ने जा लिया था। वह अपने लेवी पति, एल्काना के साथ एप्रैम के पहाड़ी इलाके में रहती थी। एल्काना की एक और पत्नी थी, पेनिन्‍ना। व्यवस्था के तहत दूसरी पत्नी रखने की इजाज़त थी और इसके संबंध में कुछ नियम भी दिए गए थे। पेनिन्‍ना के कई बच्चे थे जबकि हन्‍ना बाँझ थी और बाँझ होना एक इस्राएली स्त्री के लिए बड़ी निंदा की बात थी। (1 शमूएल 1:1-3; 1 इतिहास 6:16,33,34) मगर पेनिन्‍ना, हन्‍ना का दुःख बाँटने के बजाय उसके साथ बेरुखी से पेश आती और उसे इस हद तक चिढ़ाती थी कि हन्‍ना रो पड़ती और उसकी भूख भी मर जाती थी। और सबसे बुरी बात तो यह है कि “प्रति वर्ष” जब पूरा परिवार यहोवा के भवन के लिए शीलो जाया करता था, तब भी पेनिन्‍ना ऐसा ही व्यवहार करती थी। (1 शमूएल 1:4-8) पेनिन्‍ना सचमुच कितनी पत्थर दिल इंसान थी और उसका व्यवहार हन्‍ना के लिए कैसी बड़ी परीक्षा साबित हुई! मगर इतना कुछ होने के बावजूद, हन्‍ना ने कभी-भी यहोवा को दोष नहीं दिया; न ही वह उस वक्‍त घर पर बैठी रहती थी जब उसका पति शीलो जाता था। इसलिए, वक्‍त आने पर ज़रूर उसको एक बड़ी आशीष जा लेती।

18. हन्‍ना ने कैसी मिसाल कायम की?

18 हन्‍ना, आज यहोवा के लोगों के लिए एक उम्दा मिसाल है, खासकर ऐसे लोगों के लिए जिन्हें दूसरों की कड़वी बातों से चोट पहुँची हो। ऐसे हालात में अगर एक इंसान खुद को दूसरों से अलग रखे तो उसकी समस्या का हल नहीं होगा। (नीतिवचन 18:1) हन्‍ना ने परीक्षाओं के बावजूद अपना जोश ठंडा नहीं होने दिया और जहाँ परमेश्‍वर का वचन सिखाया जाता था और उसके लोग उपासना के लिए इकट्ठा होते थे, वहाँ जाने से वह पीछे नहीं हटी। इसीलिए वह आध्यात्मिक तरीके से मज़बूत बनी रही। यहोवा के लिए उसकी भक्‍ति कितनी गहरी थी, यह हम 1 शमूएल 2:1-10 से मालूम कर सकते हैं जहाँ सुंदर शब्दों में की गयी उसकी प्रार्थना दर्ज़ है। *

19. हम आध्यात्मिक बातों के लिए अपना एहसान कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?

19 यह सच है कि आज हम यहोवा के सेवक शीलो जैसी निवास-स्थान में जाकर उपासना नहीं करते। मगर हम भी हन्‍ना की तरह आध्यात्मिक बातों के लिए एहसान ज़ाहिर कर सकते हैं। मिसाल के लिए, हम मसीही सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में नियमित रूप से हाज़िर होकर आध्यात्मिक धन के लिए अपनी गहरी कदरदानी दिखा सकते हैं। आइए हम इन मौकों पर यहोवा की सच्ची उपासना करने में एक-दूसरे को उकसाएँ क्योंकि उसने हमें ‘निर्भयता से पवित्रता और धार्मिकता सहित उसकी सेवा करने का वर’ दिया है।—लूका 1:74,75, NHT; इब्रानियों 10:24,25.

20, 21. परमेश्‍वर के लिए भक्‍ति होने की वजह से हन्‍ना को क्या प्रतिफल मिला?

20 यहोवा ने देखा कि हन्‍ना के दिल में उसके लिए कितनी भक्‍ति थी इसलिए उसने उसे भरपूर आशीषें दी। जब एक बार हन्‍ना का परिवार अपनी सालाना यात्रा पर शीलो गया, तो हन्‍ना ने आँसू बहा-बहाकर परमेश्‍वर से प्रार्थना की और यह कहकर मन्‍नत मानी: “हे सेनाओं के यहोवा, यदि तू अपनी दासी के दुःख पर सचमुच दृष्टि करे, और मेरी सुधि ले, और अपनी दासी को भूल न जाए, और अपनी दासी को पुत्र दे, तो मैं उसे उसके जीवन भर के लिये यहोवा को अर्पण करूंगी।” (1 शमूएल 1:9-11) परमेश्‍वर ने हन्‍ना की बिनती सुन ली और उसे आशीष के तौर पर एक बेटा दिया जिसका नाम हन्‍ना ने शमूएल रखा। जब शमूएल का दूध छुड़ाया गया तो हन्‍ना उसे शीलो ले गयी ताकि वह तंबू में सेवा करे।—1 शमूएल 1:20,24-28.

21 इस तरह हन्‍ना ने शमूएल के संबंध में यहोवा से की गयी अपनी मन्‍नत पूरी की और उसके लिए अपना प्यार दिखाया। और सोचिए तो उसे और उसके पति एल्काना को कितनी बढ़िया आशीष मिली क्योंकि उनके लाड़ले बेटे ने यहोवा के तंबू में रहकर सेवा की! आज भी कई मसीही माता-पिताओं को ऐसी ही खुशियाँ और आशीषें मिली हैं क्योंकि उनके बेटे-बेटियाँ पूर्ण समय के पायनियरों या बेथेल परिवार के सदस्यों के तौर पर सेवा करते हैं या दूसरे तरीकों से यहोवा की महिमा करते हैं।

हमेशा यहोवा की सुनिए!

22, 23. (क) अगर हम हमेशा यहोवा की बात सुनेंगे, तो हम किस बात का पक्का यकीन रख सकते हैं? (ख) अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?

22 आज अगर हम भी यहोवा की सुनते रहेंगे, तो हम किस बात का पक्का यकीन रख सकते हैं? अगर हम यहोवा के लिए सच्चा प्यार दिखाएँगे और अपने जीने के तरीके से ज़ाहिर करेंगे कि हम उसके समर्पित सेवक हैं, तो हम आध्यात्मिक रूप से धनी बनेंगे। चाहे इस राह पर चलते हुए हमें कड़ी-से-कड़ी परीक्षाओं से भी क्यों न गुज़रना पड़े, मगर यहोवा की आशीषें हमें ज़रूर जा लेंगी, कभी-कभी तो इतनी आशीषें जिनकी हमने कल्पना भी नहीं की होगी।—भजन 37:4; इब्रानियों 6:10.

23 परमेश्‍वर के लोगों को भविष्य में बहुत सारी आशीषें मिलनेवाली हैं। यहोवा की बात हमेशा सुनने और उसकी आज्ञा मानने की वजह से “बड़ी भीड़” को “बड़े क्लेश” में से बचाया जाएगा और वे परमेश्‍वर की नयी दुनिया में खुशियाँ पाएँगे। (प्रकाशितवाक्य 7:9-14; 2 पतरस 3:13) वहाँ यहोवा अपने लोगों की ऐसी सभी इच्छाओं को पूरा करेगा जो उसकी धार्मिकता के मुताबिक हैं। (भजन 145:16) इतना ही नहीं, जो लोग हमेशा यहोवा की बात सुनते हैं, उन्हें आज भी ‘ऊपर से अच्छे वरदानों और उत्तम दान’ की आशीष मिलती है। इन्हीं आशीषों के बारे में अगले लेख में चर्चा की गयी है।—याकूब 1:17.

[फुटनोट]

^ हन्‍ना की यह प्रार्थना, कुँवारी मरियम की स्तुति से कुछ मिलती-जुलती है। मरियम ने यह स्तुति तब की थी जब उसे मालूम पड़ा कि वह मसीहा की माँ बननेवाली है।—लूका 1:46-55.

क्या आपको याद है?

• इस्राएल देश के इतिहास से हम परमेश्‍वर की आशीषों के बारे में क्या सीखते हैं?

• बोअज़ और नाबाल के स्वभाव में क्या फर्क था?

• हम हन्‍ना की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

• हमें क्यों यहोवा की बात हमेशा सुनते रहना चाहिए?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 10 पर तसवीर]

राजा सुलैमान ने एक आज्ञाकारी मन पाने की बिनती की और यहोवा ने उसे आशीष में बुद्धि दी

[पेज 12 पर तसवीर]

बोअज़ दूसरों का आदर करता और उनकी मदद करता था

[पेज 15 पर तसवीर]

यहोवा पर भरोसा रखने की वजह से हन्‍ना को बेशुमार आशीषें मिलीं