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‘सच्चाई के मार्ग’ पर चलिए

‘सच्चाई के मार्ग’ पर चलिए

‘सच्चाई के मार्ग’ पर चलिए

भविष्यवक्‍ता यशायाह ने ऐलान किया: ‘धर्मियों का भला होगा, क्योंकि वे अपने कामों का फल प्राप्त करेंगे।’ उसने यह भी कहा: “धर्मी का मार्ग सच्चाई है।” (यशायाह 3:10; 26:7) इससे पता चलता है कि अगर हम अपने कामों का अच्छा फल पाना चाहते हैं तो हमें वही करना चाहिए जो परमेश्‍वर की नज़र में सही है।

लेकिन हम सच्चाई के मार्ग पर कैसे चल सकते हैं? ऐसा करने से हम किन आशीषों की उम्मीद कर सकते हैं? और जब हम परमेश्‍वर के धार्मिक स्तरों के मुताबिक चलते हैं तो दूसरों को इससे कैसे फायदा होगा? बाइबल की नीतिवचन किताब के दसवें अध्याय में प्राचीन इस्राएली राजा सुलैमान ने इन सवालों के जवाब दिए हैं। इस अध्याय में उसने धर्मी और दुष्ट के बीच फर्क बताया है। ऐसा करते हुए उसने “धर्मी/धर्मियों” शब्द तेरह बार इस्तेमाल किए हैं। नौ बार ये शब्द आयत 15 से 32 में ही आते हैं। इसलिए नीतिवचन 10:15-32 पर चर्चा करने से हमें हिम्मत मिलेगी। *

शिक्षा पर चलिए

सुलैमान, धार्मिकता की अहमियत बताते हुए लिखता है: “धनी का धन उसका दृढ़ नगर है; किन्तु गरीब की गरीबी उसके विनाश का कारण है। धार्मिक मनुष्य का परिश्रम उसको जीवन की ओर ले जाता है; पर दुर्जन की कमाई उसको पाप की ओर अग्रसर करती है।”—नीतिवचन 10:15,16, नयी हिन्दी बाइबिल।

जिस तरह दृढ़ नगर की चारदीवारी उसमें रहनेवालों को बहुत-से खतरों से बचाती है ठीक उसी तरह धन-दौलत भी इंसान को जीवन में आनेवाली कई मुश्‍किलों से बचा सकती है। दूसरी तरफ गरीबी, ज़िंदगी के मुश्‍किल हालात को बद से बदतर बना सकती है। (सभोपदेशक 7:12) लेकिन हो सकता है कि इस आयत में सुलैमान एक ऐसे फंदे की ओर इशारा कर रहा हो जिसमें अमीर-गरीब दोनों फँस सकते हैं। एक अमीर आदमी धन-संपत्ति को एक “शहरपनाह” मानकर ज़रूरत से ज़्यादा उस पर भरोसा कर सकता है। (नीतिवचन 18:11) जबकि एक गरीब आदमी अपनी दरिद्रता को अपना नसीब मानकर हाथ-पर-हाथ रखकर बैठ सकता है। इस तरह दोनों ही हालात में एक इंसान परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते की अहमियत भूल सकता है।

दूसरी तरफ धर्मी के पास चाहे धन-संपत्ति हो या न हो, सच्चाई का मार्ग उसे जीवन की ओर ले जाता है। कैसे? उसके पास जितना भी है, वह उसी से संतुष्ट रहता है। चाहे हालात कैसे भी क्यों न हों वह परमेश्‍वर के साथ मज़बूत रिश्‍ता बनाए रखने की अहमियत कभी नहीं भूलता। चाहे एक धर्मी धनी हो या निर्धन, सच्चाई के मार्ग पर चलने से उसे न सिर्फ आज खुशियाँ मिलेंगी बल्कि भविष्य में भी अनंत जीवन की आशा मिलती है। (अय्यूब 42:10-13) लेकिन एक दुष्ट चाहे कितनी भी धन-संपत्ति क्यों न जमा कर ले उसे कुछ फायदा नहीं होता। वह पैसे से मिलनेवाली सुरक्षा की सही कदर करना नहीं जानता न ही वह परमेश्‍वर की इच्छा के मुताबिक जीता है। इसके बजाय वह पाप के मार्ग पर चलता है और सारी कमाई बुरे कामों में उड़ा देता है।

सुलैमान आगे कहता है: “जो शिक्षा पर चलता वह जीवन के मार्ग पर है, परन्तु जो डांट [“ताड़ना,” NHT] से मुंह मोड़ता, वह भटकता है।” (नीतिवचन 10:17) बाइबल के एक विद्वान बताते हैं कि इस आयत को दो तरीकों से समझा जा सकता है। एक है कि जो व्यक्‍ति शिक्षा पर चलता है और धार्मिकता का पीछा करता है वह जीवन के मार्ग पर है, मगर जो ताड़ना से मुँह मोड़ता है, वह उस मार्ग से भटक जाता है। इस आयत को ऐसे भी समझा जा सकता है कि “अनुशासन से जो जन सीखता है, जीवन के मार्ग की राह वह दिखाता है [क्योंकि उसकी अच्छी मिसाल पर दूसरे भी चलते हैं]। किन्तु जो सुधार की उपेक्षा करता है ऐसा मनुष्य तो भटकाया करता है।” (नीतिवचन 10:17, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) चाहे हम खुद जीवन के मार्ग पर चलते हों या दूसरे हमारी मिसाल से सीखते हों, दोनों मायनों में ज़रूरी है कि हम शिक्षा पर चलें और डाँट से मुँह न मोड़ें!

नफरत के बदले प्यार

सुलैमान आगे दो भागवाला नीतिवचन पेश करता है, जिसमें एक-से विचार हैं। इसमें दूसरा भाग पहले की बात को और भी पुख्ता करता है। वह कहता है: “जो बैर को छिपा रखता है, वह झूठ बोलता है।” अगर एक आदमी के दिल में किसी के लिए नफरत है और उस पर वह अपनी मीठी-मीठी बातों और चापलूसी का परदा डालता है तो वह आदमी मक्कार है, “वह झूठ बोलता है।” बात को आगे बढ़ाते हुए बुद्धिमान राजा कहता है: “जो अपवाद फैलाता है, वह मूर्ख है।” (नीतिवचन 10:18) कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी नफरत को छिपाने के बजाय दूसरों पर दोष मढ़ते हैं या फिर जिस व्यक्‍ति से वे नफरत करते हैं, उनके बारे में उल्टी-सीधी बातें फैलाते हैं। ऐसा करना सरासर बेवकूफी है क्योंकि झूठे लांछन लगाने से कोई व्यक्‍ति बदल नहीं जाता, वह ऐसा ही रहता है जैसा था। और एक अक्लमंद इंसान को यह समझते देर नहीं लगती कि ये सब झूठे इलज़ाम हैं और ऐसी अफवाहें फैलानेवाले के बारे में उसके मन में कोई इज़्ज़त नहीं रहती। इसलिए जो दूसरों के बारे में उलटी-सीधी बातें फैलाता है इनसे वह किसी और को नहीं बल्कि खुद को ही नुकसान पहुँचाता है।

धार्मिकता के रास्ते पर चलनेवाला कभी भी धोखाधड़ी या झूठ का रास्ता इख्तियार नहीं करता। परमेश्‍वर ने इस्राएलियों से कहा था: “तुम अपने भाई से हृदय में घृणा मत करना।” (लैव्यव्यवस्था 19:17, नयी हिन्दी बाइबिल) और यीशु ने भी सुननेवालों को हिदायत दी: “अपने बैरियों से [भी] प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो। जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे।” (मत्ती 5:44,45) यह कितना बेहतर होगा कि हम अपने दिल में नफरत भरने के बजाय प्यार भरें!

‘जीभ को वश में रखिए’

बुद्धिमान राजा, जीभ को वश में करने पर ज़ोर देता है: “जो मनुष्य अधिक बोलता है, वह अपराध करने से बच नहीं सकता; पर अपनी जीभ को वश में रखनेवाला मनुष्य बुद्धिमान है!”नीतिवचन 10:19, नयी हिन्दी बाइबिल।

“मूर्ख बहुत बातें बढ़ाकर बोलता है।” (सभोपदेशक 10:14) उसकी ज़बान से “मूढ़ता उबल आती है।” (नीतिवचन 15:2) इसका मतलब यह नहीं है कि हर बातूनी इंसान बेवकूफ होता है। मगर जो इंसान बहुत बातें करता है, वह कितनी आसानी से नुकसानदेह गपशप या अफवाहें फैलाने का ज़रिया बन सकता है! बेवकूफी-भरी बातों से अकसर किसी का नाम खराब होता है, किसी की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है, दूसरों के साथ उसका रिश्‍ता बिगड़ सकता है यहाँ तक कि शारीरिक रूप से नुकसान भी हो सकता है। “जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है।” (नीतिवचन 10:19) इसके अलावा, ऐसे व्यक्‍ति के पास होने से बड़ी खीज आती जिसे हर बात पर कुछ-न-कुछ बोलने की आदत होती है। ऐसा हो कि हम अधिक बोलनेवालों में न गिने जाएँ।

अपनी जीभ को वश में रखनेवाला इंसान न सिर्फ सच बोलता है बल्कि समझदारी से भी काम लेता है। वह बोलने से पहले सोचता है। दिल में यहोवा के स्तरों के लिए प्यार और दूसरों की मदद करने की इच्छा होने की वजह से वह हमेशा ख्याल रखता है कि उसकी बातों का दूसरों पर कैसा असर पड़ेगा। उसकी बातों में प्यार झलकता है उसके बोल सुहाने होते हैं। वह गहराई से सोचता है कि दूसरों के फायदे के लिए कैसे अपनी बातों को मनभावना बनाए। जैसे “चान्दी की टोकरियों में सोनहले सेब” होते हैं ठीक उसी तरह सही समय पर कहे गए उसके नपे-तुले, आदर-भरे और उम्दा शब्द होते हैं।—नीतिवचन 25:11.

‘बहुतों का पालन-पोषण करते रहिए’

सुलैमान कहता है: “धर्मी की जीभ सर्वोत्तम चांदी के समान है, परन्तु दुष्ट के मन का कोई मूल्य नहीं।” (नीतिवचन 10:20, NHT) धर्मी की बातें खरी और उत्तम चाँदी की तरह होती हैं जिनमें कोई मैल नहीं होता। यहोवा के सेवकों के बारे में यह बात सौ फीसदी सच है क्योंकि वे लोगों को परमेश्‍वर का वचन सिखाते हैं जिसका ज्ञान उनकी जान बचा सकता है। उनके महान उपदेशक, यहोवा परमेश्‍वर ने उन्हें सिखाया है और ‘शिक्षित जन की वाणी दी है ताकि वे थके-मांदे लोगों को सांत्वना के वचन बोलकर संभाल सकें।’ (यशायाह 30:20NW; यशायाह 50:4, नयी हिन्दी बाइबिल) उनकी जीभ निखरी चाँदी के समान ठहरती है क्योंकि वे बाइबल सच्चाई बयान करती हैं। नेकदिल लोगों के लिए यहोवा के सेवकों के बोल दुष्टों के बुरे विचारों से ज़्यादा अनमोल हैं! इसलिए आइए हम हर मौके का फायदा उठाते हुए परमेश्‍वर के राज्य और उसके आश्‍चर्यकर्मों के बारे में दूसरों को बताएँ।

धर्मी अपने आसपास के लोगों के लिए आशीष का कारण होता है। सुलैमान आगे कहता है: “धर्मी के वचनों से बहुतों का पालन-पोषण होता है, परन्तु मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के कारण मर जाते हैं।”—नीतिवचन 10:21.

कैसे “धर्मी के वचनों से बहुतों का पालन-पोषण होता है”? इसके लिए इब्रानी में जो शब्द इस्तेमाल किया गया है, उसका मतलब “चरवाही” है। प्राचीनकाल में चरवाहा अपनी भेड़ों को चराता और उनकी देखभाल करता था। इसलिए इस आयत से राह दिखाने और पालन-पोषण करने का ख्याल आता है। (1 शमूएल 16:11; भजन 23:1-3; श्रेष्ठगीत 1:7) धर्मी इंसान दूसरों को धार्मिकता का मार्ग दिखाता है या उनकी अगुवाई करता है, साथ ही सुननेवालों को उसकी बातों से फायदा होता है। वे खुशहाल ज़िंदगी जीते हैं, ज़्यादा संतुष्ट रहते हैं और भविष्य में उन्हें अनंत जीवन की आशा मिलती है।

लेकिन एक मूर्ख व्यक्‍ति के बारे में क्या? निर्बुद्धि होने की वजह से उसमें सही काम करने की समझ नहीं होती ना ही उसके बुरे अंजामों की फिक्र रहती है। ऐसा इंसान वही करता है जो उसके मन में आता है, वह नतीजों के बारे बिलकुल नहीं सोचता। इसलिए उसे अपने किए की सज़ा भुगतनी पड़ती है। जबकि धर्मी दूसरों को उद्धार पाने में मदद करता है, मगर निर्बुद्धि दूसरों को तो छोड़ खुद के उद्धार का दुश्‍मन बन जाता है।

लुचपन से दूर रहिए

एक इंसान को क्या अच्छा लगता है क्या नहीं, इससे उसका व्यक्‍तित्व ज़ाहिर होता है। इस बात की सच्चाई को बताते हुए इस्राएल का राजा कहता है: “मूर्ख को तो महापाप [“बुरे आचार,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] करना हंसी की बात जान पड़ती है, परन्तु समझवाले पुरुष में बुद्धि रहती है।”नीतिवचन 10:23.

कुछ लोगों के लिए बुरा आचार या लुचपन हँसी-खेल है जिसे वे सिर्फ “मज़ा” समझते हैं। वे नहीं मानते कि उन्हें परमेश्‍वर को लेखा देना है और जानबूझकर गलत रास्ते पर चलते हैं। (रोमियों 14:12) उनकी सोच इस हद तक गिर जाती है कि वे मानने लगते हैं कि परमेश्‍वर उनके गलत कामों को नहीं देखता। वे अपने कामों के ज़रिए कहते हैं: “कोई परमेश्‍वर है ही नहीं।” (भजन 14:1-3; यशायाह 29:15,16) यह कितनी मूर्खता की बात है!

दूसरी तरफ, समझदार इंसान को एहसास होता है कि लुचपन कोई खेल नहीं। वह जानता है कि इससे परमेश्‍वर नाराज़ होता है और उसके साथ बनाया हुआ रिश्‍ता खत्म हो सकता है। इस तरह का चालचलन मूर्खता है क्योंकि इससे इंसान खुद की नज़र में गिर जाता है, शादी-शुदा ज़िंदगी तबाह हो जाती है, मन और शरीर पर बुरा असर पड़ता है और आध्यात्मिक बातों के लिए कदर खत्म हो जाती है। इसलिए अक्लमंदी इसी में है कि हम लुचपन से दूर रहें और बुद्धि से ऐसा ही लगाव रखें जैसा हम अपनी प्यारी बहन से रखते हैं।—नीतिवचन 7:4.

एक सही बुनियाद डालिए

सुलैमान, ज़िंदगी की सही बुनियाद की अहमियत के बारे में बताता है: “दुष्ट जिस बात से डरता है वही उस पर आ पड़ेगी, और धर्मी की मनोकामना पूरी की जाएगी। बवंडर के निकलते ही, दुष्ट उड़ जाता है, परन्तु धर्मी की नींव सदा स्थिर रहती है।”नीतिवचन 10:24,25, NHT.

एक दुष्ट, लोगों में खौफ का कारण हो सकता है। मगर आखिर में, वह खुद उस बात का शिकार हो जाता है जिसका उसे डर होता है। जिस तरह कमज़ोर बुनियाद पर बनी एक इमारत हवा के थपेड़ों से गिर जाती है उसी तरह दुष्ट इंसान विपत्तियाँ आने पर बच नहीं पाता। क्योंकि उसकी ज़िंदगी में धार्मिक सिद्धांतों की मज़बूत बुनियाद नहीं होती। लेकिन धर्मी उस “बुद्धिमान मनुष्य” की तरह है जो यीशु मसीह के दृष्टांत के अनुसार ‘अपना घर चट्टान पर बनाता’ है। यीशु ने कहा: “और मेंह बरसा और बाढ़ें आईं, और आन्धियां चलीं, और उस घर पर टक्करें लगीं, परन्तु वह नहीं गिरा, क्योंकि उस की नेव चटान पर डाली गई थी।” (मत्ती 7:24,25) इस तरह का इंसान अटल रहता है, उसके सोच-विचार और काम परमेश्‍वर के सिद्धांतों की मज़बूत बुनियाद पर आधारित होते हैं।

दुष्ट और धर्मी में क्या फर्क है, इसके बारे में आगे बताने से पहले सुलैमान एक ज़रूरी चेतावनी देता है। वह चंद शब्दों में बताता है: “जैसे दांतों को सिरका और आँखों को धुआँ, वैसे ही आलसी अपने भेजने वालों के लिए होता है।” (नीतिवचन 10:26, NHT) सिरके से दाँतों को तकलीफ होती है। उसमें एसिटिक एसिड होता है जिससे मुँह में खट्टापन आता है और दाँतों में टीस उठती है। धुएं से आँखों में जलन होती है। वैसे ही एक आलसी, धुएं और सिरके की तरह होता है। जो कोई उसे काम पर रखता है या किसी काम से खुद की जगह उसे भेजता है तो इसमें कोई शक नहीं कि उसे घाटा होगा और तकलीफ उठानी पड़ेगी।

“यहोवा का मार्ग दृढ़ गढ़ है”

इस्राएल का राजा आगे कहता है: “यहोवा के भय मानने से आयु बढ़ती है, परन्तु दुष्टों का जीवन थोड़े ही दिनों का होता है। धर्मियों को आशा रखने में आनन्द मिलता है, परन्तु दुष्टों की आशा टूट जाती है।”—नीतिवचन 10:27,28.

एक धर्मी व्यक्‍ति परमेश्‍वर का भय मानते हुए ज़िंदगी बिताता है और अपने विचारों, बातों और कामों से परमेश्‍वर को खुश करने की कोशिश करता है। परमेश्‍वर भी उसकी देखभाल करता है और उसकी धर्मी इच्छाओं को पूरा करता है। जबकि दुष्ट परमेश्‍वर का भय नहीं मानता। कभी-कभी उसके मंसूबे कामयाब होते ज़रूर दिखाई दें, मगर ऐसा ज़्यादा समय तक नहीं रहता। उसके जीने के तरीके का अंजाम होता है कि वक्‍त से पहले ही हिंसा में या कोई बीमारी लगने से उसकी मौत हो जाती है। उसी वक्‍त उसके सारे अरमान खाक में मिल जाते हैं।—नीतिवचन 11:7.

सुलैमान कहता है: “खरे मनुष्य के लिए यहोवा का मार्ग दृढ़ गढ़ है, परन्तु अनर्थकारियों के लिए वह विनाश है।” (नीतिवचन 10:29, NHT) इस आयत में यहोवा का मार्ग, जीवन की राह नहीं है जिस पर हमें चलना चाहिए बल्कि इसका मतलब है कि परमेश्‍वर, लोगों के साथ कैसे व्यवहार करता है। मूसा ने कहा: “वह चट्टान है, उसका काम खरा है और उसकी सारी गति न्याय की है।” (व्यवस्थाविवरण 32:4) परमेश्‍वर की सारी गति न्याय की है, इसका मतलब है कि वह धर्मियों की हिफाज़त और दुष्टों का नाश करता है।

अपने लोगों के लिए यहोवा क्या ही दृढ़ गढ़ है! “धर्मी सदा अटल रहेगा, परन्तु दुष्ट पृथ्वी पर बसने न पाएंगे। धर्मी के मुंह से बुद्धि टपकती है, पर उलट फेर की बात कहनेवाले की जीभ काटी जायेगी। धर्मी ग्रहणयोग्य बात समझ कर बोलता है, परन्तु दुष्टों के मुंह से उलट फेर की बातें निकलती हैं।”नीतिवचन 10:30-32.

सच्चाई के मार्ग पर चलने से धर्मी का भला होता है साथ ही उसे आशीषें भी मिलती है। सचमुच “धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दुःख नहीं मिलाता।” (नीतिवचन 10:22) इसलिए आइए हम ध्यान से परमेश्‍वर के सिद्धांतों के मुताबिक चलें। अपनी जीभ को वश में रखें। दूसरों को धर्मी मार्ग दिखाने और परमेश्‍वर के वचन से ऐसी सच्चाई सिखाने में अपनी जीभ का इस्तेमाल करें जिससे कि उनकी जान बच सके।

[फुटनोट]

^ नीतिवचन 10:1-14 को बारीकी से समझने के लिए जुलाई 15,2001 की प्रहरीदुर्ग के पेज 24-7 देखिए।

[पेज 26 पर तसवीर]

हमारी जीभ “सर्वोत्तम चांदी” की तरह हो सकती है