इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

यहोवा एक ऐसा परमेश्‍वर जिसे जानना फायदेमंद है

यहोवा एक ऐसा परमेश्‍वर जिसे जानना फायदेमंद है

यहोवा एक ऐसा परमेश्‍वर जिसे जानना फायदेमंद है

क्या ऐसा हो सकता है कि आप ज़िंदगी की कोई बेहद ज़रूरी बात जानने से चूक रहे हों जिससे आपको सचमुच फायदा हो सकता है? अगर आप परमेश्‍वर के बारे में बहुत कम जानते हैं, तो ज़रूर आप बहुत कुछ चूक रहे हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि लाखों लोगों ने पाया है कि बाइबल में बताए परमेश्‍वर को जानने से ज़िंदगी में ढेरों फायदे मिलते हैं। ये फायदे तुरंत मिलने लगते हैं और हमेशा कायम रहते हैं।

बाइबल का रचयिता, यहोवा परमेश्‍वर चाहता है कि हम उसे जानें। भजनहार ने लिखा: “जिस से यह जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” यहोवा जानता है कि उसे जानने में हमारी ही भलाई है। वह कहता है: “मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं।” परमप्रधान परमेश्‍वर, यहोवा को जानने से हमें क्या लाभ होगा?—भजन 83:18; यशायाह 48:17.

परमेश्‍वर को जानने का एक खास फायदा यह है कि हमें रोज़मर्रा की समस्याओं से निपटने के लिए मार्गदर्शन मिलेगा, भविष्य के लिए एक पक्की आशा, और मन की शांति मिलेगी। एक और फायदा यह है कि आज लोग जिन अहम सवालों को लेकर परेशान हैं, वे सवाल हमें परेशान नहीं करेंगे और बाकी लोगों से हमारी सोच अलग होगी। वे सवाल क्या हैं?

क्या आपकी ज़िंदगी का कोई मकसद है?

हालाँकि आज दुनिया ने टेकनॉलजी के क्षेत्र में बुलंदियाँ छू ली हैं, मगर आज भी लोग इन बुनियादी सवालों को लेकर परेशान हैं: ‘मैं दुनिया में क्यों आया हूँ? मेरी मंज़िल क्या है? ज़िंदगी का मकसद क्या है?’ जिस इंसान को इन सवालों के सही-सही जवाब नहीं मिलेंगे, उसकी ज़िंदगी में ना तो कोई मकसद होगा और ना ही उसे अपनी ज़िंदगी से संतोष मिलेगा। मगर, क्या ऐसे बहुत-से लोग हैं जिन्हें इस बात का एहसास है कि उनके जीने का कोई मकसद नहीं है? सन्‌ 1990 के दशक के आखिरी सालों में, जर्मनी में जब एक सर्वे लिया गया तो उसमें आधे लोगों ने कहा कि उन्हें कई बार या कभी-कभी ऐसा लगता है कि उनकी ज़िंदगी का कोई मकसद नहीं है। शायद आपके यहाँ भी लोग ऐसा ही सोचते होंगे।

अगर एक इंसान के जीने का कोई मकसद न हो, तो उसके पास कोई ठोस बुनियाद नहीं होती जिसके मुताबिक वह अपनी ज़िंदगी के लक्ष्य हासिल करे। बहुत-से लोग ज़िंदगी के इस खालीपन को भरने के लिए अपना वक्‍त किसी बढ़िया करियर में लगा देते हैं या धन-दौलत के पीछे भागते हैं। मगर ये सब हासिल करने के बाद भी, खालीपन उनका पीछा नहीं छोड़ता। ज़िंदगी में कोई मकसद न होने की वजह से कुछ लोग इस कदर मायूस हो जाते हैं कि वे जीने की उम्मीद ही छोड़ बैठते हैं। एक खूबसूरत और जवान लड़की के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। उसके बारे में इंटरनैशनल हेरल्ड ट्रिब्यून नाम का अखबार कहता है कि उसकी परवरिश “एक बहुत ही रईस और खानदानी परिवार में हुई थी, अगर वह चाहती तो पूरी दुनिया हासिल कर सकती थी।” मगर ऐशो-आराम की ज़िंदगी के बावजूद वह अपने आपको तन्हा महसूस करती थी और उसे जीने का कोई मकसद नज़र नहीं आता था। इसलिए उसने नींद की गोलियाँ खाकर खुदकुशी कर ली। आप भी शायद कुछ ऐसे लोगों को जानते होंगे जिन्होंने अकेलेपन से तंग आकर खौफनाक तरीके से अपनी जान ले ली।

लेकिन क्या आपने कभी लोगों को यह दावा करते सुना है कि विज्ञान हमें ज़िंदगी के सभी सवालों के जवाब दे सकता है? जर्मनी का साप्ताहिक अखबार, दी वोका कहता है: “विज्ञान भले ही सही जानकारी दे, मगर यह धर्म और नैतिकता से जुड़े सवालों के जवाब नहीं दे सकता। विकासवाद का सिद्धांत अधूरी जानकारी देता है और क्वांटम-सिद्धांत से भी, जिसमें बार-बार फेरबदल होते रहते हैं, इंसान को कोई दिलासा या सुरक्षा नहीं मिलती।” यह सच है कि वैज्ञानिक खोज से, अलग-अलग किस्म के प्राणियों और जीवन को कायम रखनेवाले प्राकृतिक चक्रों और प्रक्रियाओं के बारे में काफी जानकारी मिली है। मगर विज्ञान हमें इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता कि हम दुनिया में क्यों आए हैं और हमारी मंज़िल क्या है। अगर हम ज़िंदगी का मकसद जानने के लिए सिर्फ विज्ञान पर ही आस लगाए बैठे रहें, तो हमें अपने सवालों के जवाब कभी नहीं मिलेंगे। जैसे स्यूटडॉइची ट्‌साइटुंग नाम के अखबार ने कहा, विज्ञान की नाकामी की वजह से आज “सभी के लिए मार्गदर्शन की ज़रूरत” पैदा हो गयी है।

सिरजनहार से बढ़कर क्या कोई और हमें मार्गदर्शन दे सकता है? शुरूआत में उसी ने धरती पर इंसानों को ज़िंदगी दी थी, इसलिए वही जानता होगा कि इंसान यहाँ क्यों हैं। बाइबल समझाती है कि यहोवा ने इंसानों को इसलिए सृजा ताकि वे धरती को आबाद करें और इसकी देख-रेख करें। यहोवा चाहता था कि इंसान अपने सभी कामों में न्याय, बुद्धि और प्रेम जैसे उसके गुण ज़ाहिर करें। यह जानने पर कि यहोवा ने इंसान को क्यों बनाया, हम समझ पाएँगे कि दुनिया में हम किस लिए आए हैं।—उत्पत्ति 1:26-28.

आप क्या कर सकते हैं?

‘मैं दुनिया में क्यों आया हूँ? मेरी मंज़िल क्या है? ज़िंदगी क्या मायने रखती है?’ अगर इन सवालों के अब तक आपको सही-सही जवाब नहीं मिले हैं, तो आप क्या कर सकते हैं? बाइबल यह सुझाव देती है कि आप यहोवा को करीब से जानें। यीशु ने तो यह भी कहा था: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” आपको यह भी बढ़ावा दिया जाता है कि आप अपने अंदर परमेश्‍वर के गुण पैदा करें, खासकर प्रेम का गुण। साथ ही, यह लक्ष्य रखें कि आप परमेश्‍वर के आनेवाले मसीहाई राज्य में प्रजा बनकर जीएँगे। तब आपकी ज़िंदगी को एक मकसद मिलेगा और भविष्य के लिए एक बढ़िया और पक्की आशा मिलेगी। और जिन बुनियादी सवालों ने अब तक आपको परेशान कर रखा है, उनके जवाब भी आपको मिलेंगे।—यूहन्‍ना 17:3; सभोपदेशक 12:13.

उन सवालों के जवाब पाने से आपकी ज़िंदगी पर इसका कैसा असर पड़ सकता है? हान्स नाम का आदमी जानता है कि इसका कैसा असर पड़ता है। * कई साल पहले, हान्स सिर्फ ऊपरी तौर पर परमेश्‍वर को मानता था, मगर इससे उसकी ज़िंदगी पर कोई असर नहीं पड़ा। उसे ड्रग्स लेने, बदचलन औरतों के साथ रहने, छोटे-मोटे जुर्म करने और मोटरबाइक पर घूमने में बड़ा मज़ा आता था। वह कहता है: “मगर फिर भी मेरी ज़िंदगी में खालीपन था, संतोष नाम की कोई चीज़ नहीं थी।” जब वह करीब 25 साल का हुआ तो उसने फैसला किया कि वह बाइबल को ध्यान से पढ़कर परमेश्‍वर को निजी तौर पर जानेगा। फिर जब उसने यहोवा को करीब से जाना और समझा कि ज़िंदगी के मायने क्या हैं, तो उसने अपने जीने का तरीका बदल डाला और वह बपतिस्मा लेकर यहोवा का एक साक्षी बन गया। वह पिछले दस साल से पूरे समय की सेवा कर रहा है। वह साफ-साफ कहता है: “यहोवा की सेवा करना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है। इस काम की बराबरी किसी और काम से नहीं की जा सकती। यहोवा को जानने से मेरी ज़िंदगी को एक मकसद मिला है।”

बेशक, बहुतों के मन में सिर्फ यह सवाल नहीं है कि जीवन का मकसद क्या है। जैसे-जैसे दुनिया की हालत बदतर होती जा रही है, ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग एक और अहम सवाल को लेकर परेशान हैं।

आखिर ऐसा क्यों हुआ?

जब एक इंसान पर कोई मुसीबत आती है, तो उसके दिमाग में बस यही सवाल घूमता रहता है: आखिर ऐसा क्यों हुआ? इस सवाल का अगर उसे सही-सही जवाब मिल जाए तो उसे अपनी मुसीबत का सामना करने के लिए बहुत हिम्मत मिलेगी। दूसरी तरफ अगर उसे ठीक-ठीक जवाब न मिले, तो वह हमेशा दुःख में ही डूबा रहेगा और उसके दिल में कड़वाहट भर जाएगी। मिसाल के लिए, गौर कीजिए कि ब्रूनी के साथ क्या हुआ।

ब्रूनी, अधेड़ उम्र की एक स्त्री है, और उसके बच्चे हैं। वह कहती है: “कुछ साल पहले की बात है, मेरी नन्ही बच्ची, ज़ूज़ाना गुज़र गयी। मैं परमेश्‍वर को मानती थी, इसलिए मैं दिलासा पाने के लिए अपने इलाके के पादरी के पास गयी। उसने मुझे बताया कि ज़ूज़ाना को परमेश्‍वर ने उठा लिया है और अब वह एक फरिश्‍ते के रूप में स्वर्ग में है। ज़ूज़ाना की मौत से न सिर्फ मेरी दुनिया उजड़ गयी थी बल्कि मैं परमेश्‍वर से भी नफरत करने लगी कि उसने मेरी बच्ची को क्यों उठा लिया।” ब्रूनी कई साल तक बच्ची के गम में तड़पती रही। वह कहती है: “फिर यहोवा की एक साक्षी ने मुझे बाइबल से समझाया कि दरअसल ऐसी कोई वजह नहीं है जिससे मुझे परमेश्‍वर से नफरत करनी चाहिए। यहोवा ने ज़ूज़ाना को स्वर्ग में नहीं उठा लिया और ना ही वह एक फरिश्‍ता बन गयी है। वह अपनी असिद्धता की वजह से बीमार हुई थी। फिलहाल, ज़ूज़ाना मौत की नींद सो रही है और उस वक्‍त का इंतज़ार कर रही है जब यहोवा उसे दोबारा ज़िंदा करेगा। मैंने यह भी सीखा कि यहोवा ने इंसानों को धरती पर फिरदौस में सदा तक जीने के लिए बनाया था और जल्द ही उसका यह मकसद पूरा होगा। जब मैंने जाना कि यहोवा असल में कैसा परमेश्‍वर है, तो मैं उसके और भी करीब आने लगी और मेरा दुःख कम होने लगा।”—भजन 37:29; प्रेरितों 24:15; रोमियों 5:12.

आज करोड़ों लोग किसी-न-किसी तकलीफ का सामना करते हैं: ज़िंदगी का कोई हादसा, युद्ध, अकाल या किसी प्राकृतिक विपत्ति का। ब्रूनी ने जब बाइबल से जाना कि मुसीबतों के लिए यहोवा ज़िम्मेदार नहीं है, उसने कभी नहीं चाहा कि इंसान दुःख-तकलीफ सहे और वह बहुत जल्द बुराई को मिटानेवाला है, तो उसे बड़ी राहत मिली। आज दुष्टता का बढ़ना खुद इस बात की निशानी है कि हम इस दुनिया के “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं। हम जिस शानदार बदलाव के लिए तरस रहे हैं, वह बस होने ही वाला है।—2 तीमुथियुस 3:1-5; मत्ती 24:7, 8.

परमेश्‍वर को जानना

हान्स और ब्रूनी को पहले परमेश्‍वर के बारे में सिर्फ धुँधली समझ थी। वे बस उसे मानते थे, मगर उसके बारे में ज़्यादा कुछ नहीं जानते थे। लेकिन जब उन्होंने समय निकालकर यहोवा के बारे में सही-सही ज्ञान लिया, तो उन्हें अपनी मेहनत का फल मिला। उन्हें आम तौर पर लोगों के मन में उठनेवाले बेहद ज़रूरी सवालों के सही जवाब मिल गए हैं। इससे उन्हें मन का सुकून और भविष्य के लिए पक्की आशा मिली है। उनके जैसे लाखों यहोवा के सेवकों का ऐसा ही अनुभव रहा है।

यहोवा को जानने के लिए सबसे पहला कदम है, बाइबल को ध्यान से पढ़ना, क्योंकि बाइबल हमें उसके बारे में बताती है और समझाती है कि वह हमसे क्या चाहता है। पहली सदी में कुछ लोगों ने ऐसा ही किया था। इतिहासकार और वैद्य, लूका बताता है कि यूनान के बिरीया में यहूदी कलीसिया के सदस्यों ने “बड़ी लालसा से [पौलुस और सीलास से] वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें योंहीं हैं, कि नहीं।”—प्रेरितों 17:10, 11.

इसके अलावा, पहली सदी के मसीही, कलीसियाओं में एक-साथ इकट्ठे होते थे। (प्रेरितों 2:41, 42, 46; 1 कुरिन्थियों 1:1, 2; गलतियों 1:1, 2; 2 थिस्सलुनीकियों 1:1) आज भी ऐसा ही होता है। यहोवा के साक्षियों की कलीसियाएँ, सभाओं के लिए साथ इकट्ठी होती हैं। इन सभाओं का इंतज़ाम खास तौर पर इसलिए किया जाता है ताकि लोगों को यहोवा के करीब आने और खुशी-खुशी उसकी सेवा करने में मदद मिले। अपने प्रांत के रहनेवाले साक्षियों के साथ संगति करने के एक और फायदे पर गौर कीजिए। यह स्वाभाविक है कि लोग जिस परमेश्‍वर की उपासना करते हैं, धीरे-धीरे उसके जैसे ही बनते हैं। यहोवा के साक्षी भी यहोवा के गुणों को पूरी तरह न सही, मगर कुछ हद तक अपनी ज़िंदगी में दिखाते हैं। इसलिए साक्षियों के साथ इकट्ठा होने से हम यहोवा की शख्सियत को और अच्छी तरह जान सकेंगे।—इब्रानियों 10:24, 25.

क्या यह सब सुनकर आपको ऐसा लगता है कि सिर्फ एक शख्स को जानने के लिए इतनी मेहनत करना, कुछ ज़्यादा ही काम है? यह बात तो पक्की है कि यहोवा को जानने में मेहनत लगेगी। लेकिन ज़रा सोचिए कि ज़िंदगी की ज़्यादातर कामयाबियाँ क्या आपको कड़ी मेहनत से ही हासिल नहीं होतीं? अव्वल नंबर के एक खिलाड़ी के बारे में सोचिए कि वह ट्रेनिंग के वक्‍त कितनी मेहनत करता है। उदाहरण के लिए, फ्रांस के ओलंपिक के स्कीइंग में स्वर्ण पदक जीतनेवाला, शॉन-क्लॉड कीली बताता है कि अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में सफल होने के लिए क्या करने की ज़रूरत होती है: “ओलंपिक में भाग लेने के दस साल पहले से ही ट्रेनिंग शुरू करनी पड़ती है, योजना बनाने में कई साल लग जाते हैं और हर दिन उसी पर ध्यान लगाना पड़ता है . . . साल के एक-एक दिन, मानसिक और शारीरिक तौर पर मेहनत करनी होती है।” ज़रा सोचिए, इतना समय और इतनी मेहनत सिर्फ एक दौड़ के लिए, जो शायद सिर्फ दस मिनट तक चलती है! मगर खेलों में मिलनेवाले इनाम की तुलना में यहोवा को जानने से मिलनेवाला हमेशा का प्रतिफल तो कई-कई गुना बढ़कर है।

ऐसा रिश्‍ता जो गहरा होता जाता है

ज़िंदगी से जब कुछ खास फायदा मिलने का मौका है, तो कौन चाहेगा कि वह उसे पाने से चूक जाए? कोई नहीं चाहेगा। इसलिए अगर आपको महसूस हो कि आपकी ज़िंदगी में सच्चा मकसद नहीं है या अगर आप यह जानने के लिए तरसते हैं कि जीवन में मुसीबतें क्यों आती हैं, तो ठान लीजिए कि आप बाइबल में बताए परमेश्‍वर यहोवा के बारे में ज़रूर जानकारी हासिल करेंगे। उसके बारे में सीखने से आपकी ज़िंदगी हमेशा के लिए सँवर जाएगी।

क्या कभी ऐसा वक्‍त आएगा जब हम यहोवा के बारे में सीखना बंद कर देंगे? जो लोग बरसों से यहोवा की सेवा करते आए हैं, उन्होंने यहोवा के बारे में अब तक जो सीखा है और जो नयी-नयी बातें वे सीख रहे हैं, उनसे आज भी वे हैरान रह जाते हैं और यहोवा के लिए उनके दिल में श्रद्धा बढ़ती है। यहोवा के बारे में हम जो सीखते हैं, उससे हमें खुशी मिलती है और हम उसके और भी करीब आते हैं। आइए हम परमेश्‍वर के बारे में पौलुस के जैसा नज़रिया रखें जिसने लिखा: “आहा! परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं! प्रभु की बुद्धि को किस ने जाना? या उसका मंत्री कौन हुआ?”—रोमियों 11:33, 34.

[फुटनोट]

^ पैरा. 12 नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 5 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

लोग आज भी इन बुनियादी सवालों को लेकर परेशान हैं: ‘मैं दुनिया में क्यों आया हूँ? मेरी मंज़िल क्या है? ज़िंदगी का मकसद क्या है?’

[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“जब मैंने जाना कि यहोवा असल में कैसा परमेश्‍वर है, तो मैं उसके और भी करीब आने लगी”

[पेज 7 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“यहोवा की सेवा करना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है। इस काम की बराबरी किसी और काम से नहीं की जा सकती। यहोवा को जानने से मेरी ज़िंदगी को एक मकसद मिला है”